मैं इसे शिक्षा प्रणाली मानता ही नहीं.......मैं इसे साज़िश मानता हूँ......हमारे बच्चों को मंद बुद्धि रखने की....उनकी प्राकृतिक सोच समझ को कुंद करने की साज़िश.
वैसे तो इसमें आमूल-चूल बदलाव होना चाहिए लेकिन अभी बस दो पहलू छू रहा हूँ
दसवीं कक्षा पास की मैंने ....स्कूल में टॉप किया.......और शायद अंग्रेज़ी में स्टेट में भी, लेकिन इसका पक्का ख्याल नहीं है.......फिर चयन करना था कि मेडिकल लिया जाए या नॉन मेडिकल या कॉमर्स....मैंने नॉन-मेडिकल लिया..........अब यहाँ तक आते आते मेरी रूचि इस तरह की पढ़ाई में बिलकुल न रही....खैर, मैंने फर्स्ट डिविज़न से पास किया लेकिन कोई तीर न मारा......अब आगे मैं यह सब बिलकुल नहीं पढ़ना चाहता था.
लड़के लड़कियों के पीछे थे और मैं लाइब्रेरीज़ में किताबों के पीछे.....मेरी महबूबा क़िताबें बन चुकी थीं.
जान बूझ कर आर्ट्स लिया.......बहुत समझाया लोगों ने आर्ट्स में तो वो लोग जाते हैं जिनके बस का कुछ और पढ़ना ही नहीं होता.....आर्ट्स के विद्यार्थी का कोई भविष्य ही नहीं .....चूँकि न तो आर्ट्स को कोई विद्या समझा जाता है और न ही उसके विद्यार्थी को विद्या का अर्थी.....आर्ट्स तो विद्या की बस अर्थी है.....राम नाम सत्य.
खैर, मैंने वो ही किया जो करना चाहा.....आर्ट्स ले ली......प्रथम वर्ष कॉलेज से ही किया.....मात्र दो महीने की पढाई और फर्स्ट डिविज़न पास....अब मुझे लगा कि इसके लिए कॉलेज भी क्यों जाया जाए?सो कॉरेस्पोंडेंस कोर्स ले लिया......फिर हर दो माह की पढ़ाई और बेडा पार
ये जो कहानी सुनाई मैंने आपको, उसका मंतव्य है कुछ.......पहली बात तो यह कि आर्ट्स मतलब बकवास.....कैसा समाज बनाया हमने जिसमें कला की कोई वैल्यू नहीं? मिल्टन, कीट्स की कविता की कोई वैल्यू नहीं? सुकरात, अरस्तु आदि की फिलोसोफी की कोई वैल्यू नहीं....कैसा समाज बनाया हमने? राजनीति वैज्ञानिक की कोई वैल्यू नहीं? जो आपके राजनेता हैं वो न तो वैज्ञानिक हैं और न ही नेता सो इन की तो मैं बात ही नहीं कर रहा.
क्या जो इंजिनियर इमारतें, पुल, सडकें बनाये उसकी वैल्यू है, जो डॉक्टर लाखों रुपये ले इलाज़ करे उसी की वैल्यू है, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट लाखों रुपैये ले इस बात के कि आपको टैक्स कैसे भरना है और कैसे नहीं भरना है ..उसी की वैल्यू है?
जो समाज शास्त्री बताये कि समाज को इस तरह से गठित किया जाए कि बीमारी कम हो, टैक्स की उलझने ही कम हों वो समाज शास्त्री की कोई वैल्यू नहीं? जो राजनीति का वैज्ञानिक हमें बताये कि कैसे राजनीति बेहतर हो सकती है, समाज बेहतर हो सकता है उस की कोई वैल्यू नहीं? जो बीमारी की जड़ ही खतम करने का प्रयास करे उसकी कोई वैल्यू नहीं.......जो साहित्य समाज को आइना दिखाए उसकी कोई वैल्यू नहीं?......लानत है!
जो समाज कला की वैल्यू समझेगा, फलसफे की वैल्यू समझेगा, समाज शास्त्री, राजनीति वैज्ञानिक की वैल्यू समझेगा उस समाज कुछ सभ्य माना जा सकता है
दूसरी बात, जो पढाई मैं चार माह में पूरी कर सकता था उसके लिए मेरे तीन वर्ष लेना यह कहाँ कि समझदारी? हो सकता है कोई स्टूडेंट तीन से भी ज़्यादा वर्ष मांगता हो, ठीक है दे दीजिये....लेकिन कोई यदि कम समय मांगता है और इम्तिहान लिए जाने की गुज़ारिश करता है और उसकी फीस भी अदा करने को राज़ी है तो आप कौन है जबरदस्ती करने वाले कि नहीं तीन साल ही लगाओ?
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त, लेकिन आज बस इतनी ही
सादर नमन....कॉपी राईट मैटर
वैसे तो इसमें आमूल-चूल बदलाव होना चाहिए लेकिन अभी बस दो पहलू छू रहा हूँ
दसवीं कक्षा पास की मैंने ....स्कूल में टॉप किया.......और शायद अंग्रेज़ी में स्टेट में भी, लेकिन इसका पक्का ख्याल नहीं है.......फिर चयन करना था कि मेडिकल लिया जाए या नॉन मेडिकल या कॉमर्स....मैंने नॉन-मेडिकल लिया..........अब यहाँ तक आते आते मेरी रूचि इस तरह की पढ़ाई में बिलकुल न रही....खैर, मैंने फर्स्ट डिविज़न से पास किया लेकिन कोई तीर न मारा......अब आगे मैं यह सब बिलकुल नहीं पढ़ना चाहता था.
लड़के लड़कियों के पीछे थे और मैं लाइब्रेरीज़ में किताबों के पीछे.....मेरी महबूबा क़िताबें बन चुकी थीं.
जान बूझ कर आर्ट्स लिया.......बहुत समझाया लोगों ने आर्ट्स में तो वो लोग जाते हैं जिनके बस का कुछ और पढ़ना ही नहीं होता.....आर्ट्स के विद्यार्थी का कोई भविष्य ही नहीं .....चूँकि न तो आर्ट्स को कोई विद्या समझा जाता है और न ही उसके विद्यार्थी को विद्या का अर्थी.....आर्ट्स तो विद्या की बस अर्थी है.....राम नाम सत्य.
खैर, मैंने वो ही किया जो करना चाहा.....आर्ट्स ले ली......प्रथम वर्ष कॉलेज से ही किया.....मात्र दो महीने की पढाई और फर्स्ट डिविज़न पास....अब मुझे लगा कि इसके लिए कॉलेज भी क्यों जाया जाए?सो कॉरेस्पोंडेंस कोर्स ले लिया......फिर हर दो माह की पढ़ाई और बेडा पार
ये जो कहानी सुनाई मैंने आपको, उसका मंतव्य है कुछ.......पहली बात तो यह कि आर्ट्स मतलब बकवास.....कैसा समाज बनाया हमने जिसमें कला की कोई वैल्यू नहीं? मिल्टन, कीट्स की कविता की कोई वैल्यू नहीं? सुकरात, अरस्तु आदि की फिलोसोफी की कोई वैल्यू नहीं....कैसा समाज बनाया हमने? राजनीति वैज्ञानिक की कोई वैल्यू नहीं? जो आपके राजनेता हैं वो न तो वैज्ञानिक हैं और न ही नेता सो इन की तो मैं बात ही नहीं कर रहा.
क्या जो इंजिनियर इमारतें, पुल, सडकें बनाये उसकी वैल्यू है, जो डॉक्टर लाखों रुपये ले इलाज़ करे उसी की वैल्यू है, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट लाखों रुपैये ले इस बात के कि आपको टैक्स कैसे भरना है और कैसे नहीं भरना है ..उसी की वैल्यू है?
जो समाज शास्त्री बताये कि समाज को इस तरह से गठित किया जाए कि बीमारी कम हो, टैक्स की उलझने ही कम हों वो समाज शास्त्री की कोई वैल्यू नहीं? जो राजनीति का वैज्ञानिक हमें बताये कि कैसे राजनीति बेहतर हो सकती है, समाज बेहतर हो सकता है उस की कोई वैल्यू नहीं? जो बीमारी की जड़ ही खतम करने का प्रयास करे उसकी कोई वैल्यू नहीं.......जो साहित्य समाज को आइना दिखाए उसकी कोई वैल्यू नहीं?......लानत है!
जो समाज कला की वैल्यू समझेगा, फलसफे की वैल्यू समझेगा, समाज शास्त्री, राजनीति वैज्ञानिक की वैल्यू समझेगा उस समाज कुछ सभ्य माना जा सकता है
दूसरी बात, जो पढाई मैं चार माह में पूरी कर सकता था उसके लिए मेरे तीन वर्ष लेना यह कहाँ कि समझदारी? हो सकता है कोई स्टूडेंट तीन से भी ज़्यादा वर्ष मांगता हो, ठीक है दे दीजिये....लेकिन कोई यदि कम समय मांगता है और इम्तिहान लिए जाने की गुज़ारिश करता है और उसकी फीस भी अदा करने को राज़ी है तो आप कौन है जबरदस्ती करने वाले कि नहीं तीन साल ही लगाओ?
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त, लेकिन आज बस इतनी ही
सादर नमन....कॉपी राईट मैटर
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