Friday, 3 July 2015

बुलेट ट्रेन

"बुलेट ट्रेन"


सादर निवेदन यह है कि किसी मुल्क की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए.......यह मुद्दा है.......कोई व्यक्ति मानो हड्डी तुडाये बैठा है टांग की..... तो क्या होगी उसकी प्राथमिकता....लेकिन वो तो अड़ गया कि नहीं, पहले बाइक खरीदने जाना है, फिर कार, फिर बुलेट ट्रेन...उम्मीद है मैं अपनी बात समझा पाया होऊंगा.


बुलेट ट्रेन लाना ठीक वैसे ही है जैसे किसी भूखे नंगे को खाना, कपड़ा न देना लेकिन उसके क्नॉट प्लेस घुमाने का इंतज़ाम कर देना 



बुलेट ट्रेन से विदेशों तक में India Shining जैसी तस्वीर पेश कर सकते हैं लेकिन नीचे की असलियत उससे बिलकुल उलट होगी...

मेरी नज़र में अभी इस बुलेट ट्रेन जैसे शिगूफे की बजाए हजारों लाखों काम हैं जो हमारी सारी सामाजिक व्यवस्था, राजनितिक व्यवस्था और कानूनी व्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था को सुधार सकती हैं.....

बेहतर है ज़मीनी लेवल पर अभी जो बहुत कुछ किया जाना है ...वो सब किया जाए......

एक मुल्क अपना समय और अपनी उर्जा और अपना पैसा कहाँ लगाता है और कब लगाता है ...यह है देखने की बात...

ग्लैमर ठीक नहीं...वो गलत तस्वीर पेश करता है विकास कि ठीक वैसे ही जैसा कांग्रेस ने India Shining दिखया दुनिया को

चलिए..दिल्ली की मेट्रो को ले लेते हैं.......दिल्ली की यातायात व्यवस्था इतनी ख़राब थी और है कि सडक पर गाड़ियाँ रेंगती हैं......

मेट्रो आने से क्या सडकों पर यातायात कम हो गया.....प्रदूषण घटा गया...? नहीं बल्कि बढ़ गया हो शायद

यहाँ पर ही मैं कहता हूँ कि जब आप बड़े लेवल पर प्रयास नहीं करेंगे...तस्वीर पूरी सामने नहीं रखेंगे तो कुछ होगा नहीं.....

ऐसा होता ही क्यों है कि चंद शहरों में ही विकास है...रोटी है......तभी तो भागते हैं लोग दिल्ली मुंबई......क्योंकि उल्लू के पट्ठे नेताओं ने चंद शहरों को छोड़ बाकी जगह विकास दिया ही नहीं.......यह मेट्रो आदि शिगूफा ही है.......बेहतर होता कुछ यूनिफार्म विकास करते भारत का...क्यों जाए बन्दा बिहार से दिल्ली मुंबई....क्यों छोड़े अपना गाँव?

क्यों हो बेतहाशा भीड़ चंद शहरों में ही......उस तरफ तो कुछ कर नहीं सके...दिल्ली. मुंबई, बंगलोर को मेट्रो दे रहे हैं....बकवास है यह सब

बेशक इस मुल्क...में अमीर भी हैं और गरीब भी हैं.........लेकिन देखना यह चाहिए कि आपके कितने लोग हैं जो गरीब हैं और गरीब भी हैं तो किस तरह के गरीब हैं........और देखना यह चाहिए कि आप किस तरह से उन गरीब लोगों को, उन अनपढ़, उन बेचारे लोगों के जीवन स्तर ऊपर उठा सकते हैं.....

कोई गरीब है ,,,कोई अमीर है...कुदरत कोई बच्चा गरीब अमीर पैदा नहीं करती....हम तय करते हैं कि नहीं, यह बच्चा गरीब है, यह अमीर है......क्या कसूर किसी बच्चे का कि वो गरीब की तरह जीए......?

प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?.......यह कि आप सब जगह माल बना दो, सब जगह फाइव स्टार होटल बना दो, सब जगह फाइव स्टार जैसी ट्रेन दे दो..........और दूसरी तरफ आपकी आबादी का एक बड़ा तबका कीड़ों जैसी ज़िंदगी रेंग रेंग कर जीता रहे

मुद्दे तो एक क्या अनेक हैं, जो बुलेट ट्रेन जैसे बकवास कांसेप्ट से बेहतर है.......जो करने लायक हैं.........

मेरी नज़र में बुलेट ट्रेन एक फिलहाल के लिए गैर-ज़रूरी कदम है.....बे-अक्ला कदम है

एक बार एक विदेशी खड़ा था नयी दिल्ली स्टेशन पर...और एक ट्रेन जो 6 बजे आनी थी वो 5.50 पर ही प्लेटफार्म पर लग गयी.....विदेशी बड़ा खुश...वाह भाई, यह तो कमाल है...भारतीय रेल समय से पहले ....वो तो बाद में पता लगा कि यह ट्रेन जो बीते कल आनी थी छे बजे , वो वाली थी, खैर विदेशी को यह कदापि नहीं बताया गया....सन्दर्भ ---बुलेट ट्रेन

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