एक समय था मुझे कानून की ABCD नहीं पता थी.......सुना था कि कचहरी और अस्पताल से भगवान दुश्मन को भी दूर रखे.......लोगों की उम्रें निकल जाती हैं........जवानी से बुढापे और बुढापे से लाश में तब्दील हो जाते हैं और जज सिर्फ तारीखें दे रहे होते हैं
लेकिन मेरा जीवन.....मुझे कचहरी के चक्कर में पड़ना था सो पड़ गया .........शुरू में वकील से बात भी नहीं कर पाता था ठीक से.....वकील की बात को समझने की कोशिश करता लेकिन समझ नहीं पाता...जैसे डॉक्टर की लिखत को आप समझना चाहें भी तो नहीं समझ पाते वैसे ही वकील की बात का कोई मुंह सर निकालना चाहते हुए भी नहीं निकाल पाता
एक वकील से असंतुष्ट हुआ, अधर में ही उसे छोड़ दूसरा पकड़ा......वो भी समझ नहीं आया ..तीसरा पकड़ा......कुछ पता नहीं था....तारीख का मतलब बस जैसे तैसे कचहरी में हाज़िरी देना ही समझता था
तकरीबन तीन साल चला केस.....यह मेरी ज़िन्दगी का पहला केस था...और जायज़ केस था.....किसी से पैसे लेने थे....चेक का केस था और फिर भी मैं हार गया......
जब घर वापिस आया तो औंधा मुंह लेट गया, घंटों पड़ा रहा....गहन ग्लानि
खुद को पढ़ा लिखा समझदार समझता था लेकिन एक कम पढ़े लिखे आदमी से अपने जायज़ पैसे नहीं ले पाया
फिर उस आदमी ने मुझ पर वापिस केस डाला.....लाखों रुपैये वसूली का........कि मैंने उस पर नाजायज़ केस किया था.....उसे नुक्सान हुआ.
अब मैं और ज़्यादा अवसाद में पहुँच गया.....कोशिश की समझौते की...उल्टा मैं उसे पैसे देने को राज़ी हो गया लेकिन वो माने ही नहीं........पहाड़ी पर चढ़ गया.....मैं तुषार से माफी मंगवाऊंगा......लिखित में ...मोहल्ले के सामने.
खैर, मुझे समझ आ गया कि बेटा, तुझे अब लड़ना ही होगा......अब लड़ना ही है तो फिर कोई अच्छा वकील करना होगा...खैर, मैंने एक महंगा वकील किया
अभी तक मुझे कुछ कानून समझ नहीं आया था....इसी बीच हमारे एक मकान पर किसी किरायेदार ने कब्जा कर लिया......अब उसे खाली कराने के लिए मुझे फिर से, बहुत से वकीलों से मिलना होता था.......जो भी वो बताते मैं इन्टरनेट पर चेक करता.....कई वकीलों ने पहली मीटिंग के पैसे लिए, कईयों ने नहीं लिए.......अपने चल रहे वकील से भी अपने केस की बात की लेकिन जमा नहीं कि उसे यह केस भी दिया जाए.........
फिर एक वकील जोड़ी, (एक स्त्री और एक पुरुष), इन को हायर किया ...... तब तक काफी कुछ अपने केस के बारे में समझ चुका था.....मेरे वकील भी समझते थे कि मैं कुछ कुछ चीज़ें समझता हूँ....एक मैत्री बन गयी.....अक्सर वकील ऐसे पेश आते हैं अपने मुवक्किल से जैसे मुवक्किल उनका नौकर हो जबकि होता उल्टा है.....मुवक्किल जब चाहे अपने वकील को हटा सकता है
अब मैंने अपने दोनों केस इस जोड़ी को सौंप दिए......इन को मैंने एक मुश्त रकम तय की हर केस की....जिसे मुझे बीच बीच में देना था.....उसके अलावा मैंने खुद से उनको जीतने पर एक मुश्त रकम देने का वादा किया.....और इसके भी अलावा मैंने हर मीटिंग के पैसे अलग तय किये....वो इसलिए कि मेरी मीटिंग उनके साथ लम्बी होने वाली थी...मैं उनसे इतना कुछ सीखना और सिखाना चाहता था, इतना सर खाना चाहता था जो आम मुवक्किल नहीं करता
खैर, हर तारीख के बीच बीच हम मीटिंग करते ..लम्बी ....घंटों....... वो जो ड्राफ्टिंग करते वो मुझे ई-मेल करते....मैं अपनी तरफ से उस ड्राफ्टिंग को कई दिन तक बेहतर करता रहता.....फिर वो लोग उसे फाइनल करते.....हम हर बात को तर्क और कानून के हिसाब से फिट बिठाते........सब रज़ामंदी से........नतीजा यह हुआ कि मैं सब केस जीत गया
उनके साथ जो तय था वो सब पैसे दिए...जो जीतने पर इनाम जैसे पैसे देने थे वो भी दिए और उनसे जो सम्बन्ध बना तो आज तक कायम है
उसके बाद कुछ और केस भी फाइट किये... सब जीतता चला गया
पली, रिप्लाई, रेप्लिकेशन, रेबटल, एविडेंस, आर्गुमेंट, आर टी आई ....सब मेरे ज़ेहन में बस गये
उसके बाद एक बार बिजली कम्पनी ने बिना मतलब मेरे ऑफिस छापा मार एक नोटिस भेज दिया मुझे.....मुझ से जवाब माँगा...उस जवाब में ही मैंने उनको इतना झाड़ दिया कि कुछ ही दिन बाद उनका लैटर आ गया कि मुझ पर कोई चार्ज नाही बनता
एक बार MCD का पंगा पड़ा तो उन्होंने मुझे कारण बताओ नोटिस भेजा....जवाब में मैंने उनसे ढेर सारे सवाल पूछ लिए...मामला खत्म
फिर तो कई मित्रगणों को बचाया मैंने खामख्वाह कि कानूनी उलझनों से
अब तो काम ही करता हूँ कानूनी पेचीदगियों में फंसी प्रॉपर्टी का
बहुत लोग अपनी प्रॉपर्टी मिटटी करे बैठे हैं....विदेश रहते हैं......या फिर अपढ़ हैं....या उनके पास पैसे ही नहीं कि वो अपनी लगभग खत्म प्रॉपर्टी को जिंदा कर पाएं......मैं देखता हूँ कि जिंदा होने लायक है तो एक अग्रीमेंट के तहत अपने खर्चे से उसे जिंदा करता हूँ और फिर अग्रीमेंट के तहत हिस्सा बाँट लेता हूँ
आपको यह सब अपनी कहानी इसलिए सुनाई कि मेरी कहानी में आपको बहुत जगह अपनी, अपने रिश्तेदार की, अपने दोस्त की कहानी नज़र आयेगी
जिन चीज़ों की शिक्षा मिलनी चाहिए, वो न मिल के बकवास विषयों पर सालों खराब करवाए जाते हैं. कानून ऐसा ही एक क्षेत्र है, जो पढाया जाना चाहिए लेकिन नहीं पढ़ाया जाता..नतीजा यह है कि हम कानून के मामले में लगभग जीरो होते हैं.....उसका नतीजा यह होता है कि हम खामख्वाह के केस में फंस जाते है...वकीलों और कचहरी से जुड़े लोगों का घर भरते जाते हैं.....
पुलिस का IO..उसका काम होता है कि वो केस की तफ्तीश करे, लेकिन वो तफ्तीश यह करता है कि जेब किसकी भारी है और उसे पैसे कहाँ से मिलने वाले हैं......मैंने कल ही एक केस देखा जो बिना किसी सबूत के कचहरी में दाख़िल था.......मतलब कोई गवाह नहीं, कोई और किसी तरह का सबूत नहीं....मात्र बयान से केस थोप दिया गया.........ऐसे तो कोई भी किसी पर भी केस लगा देगा ....खैर मेरे हिसाब से तो जिस केस में IO की भूमिका गलत साबित होती हो उसे भी तुरत सज़ा मिलनी चाहिए....
मेरे हिसाब से जब तक जज किसी को मुजरिम साबित न कर दे उसे सजा मिलनी ही नहीं चाहिए. लेकिन पुलिस लॉकअप अपने आप में एक नर्क होता है. भले ही बन्दा निर्दोष छूटे लेकिन लॉकअप में रहा हो तो समाज में कद कुछ तो कम हो ही जाता है
वकील लोग चूँकि तारीख तारीख दर पैसे ले रहे होते हैं सो जो केस साल में खत्म हो सकता है उसे वो दस साल चलाते हैं......वो क्यूँ चाहेंगे कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी जल्द हाथ से निकल जाए...आपका मामला चलता रहे और आप उसे पैसे देते रहें इसी में तो उनकी भलाई है....फिर आपको तो पता भी नहीं कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं....सो वो अपनी मनमर्जी करते रहते हैं
मेरे तजुर्बे से सीखें.....जीत हार आपकी होनी है, आपके वकील की नहीं...नफा नुक्सान आपका होना है.... केस आपका है.....अपने केस के विद्यार्थी बनिए.......सारा काम वकील पर छोड़ कर खुद बेक सीट पर मत बैठे रहिये...खुद आगे वकील के साथ वाली सीट पर बैठिये.....वो क्या कर रहा है, क्यूँ कर रहा है ......पूरी कार्यविधि समझिये....और जो वकील न समझने दे, उसे एक पल गवाए बिना दफा कर दीजिये.....इन्टरनेट से हर मुद्दा चेक करते रहिये.......मैं तो देखता हूँ लोगों के पास अपने केस की फाइल तक नहीं होती...सब वकील के पास....क्या ख़ाक पढेंगे अपना केस
कहते हैं कि भारतीय व्यवस्था वकीलों के लिए चारागाह है.........सही कहते हैं ..... शिक्षा वैसे ही कम है.......और जो है भी वो आधी अधूरी है.....ऐसे में आप लूटे नहीं जायेंगे तो और क्या होगा आपके साथ?
वकील को कभी तारीख दर तारीख पैसे मत दीजिये...एक मुश्त पैसे तय कीजिये और जीतने पर अलग से पैसे देने का वादा कीजिये, लिखित भी दे सकते हैं
अपने केस की सारी की सारी सर्टिफाइड कापियां अपने पास रखें.....कोर्ट से जल जाएँ, जला दी जाएं, गुम जाएं, गुमा दी जाएं तो भी आपके वाली कापियां काम आ सकती हैं
अपने केस से जुड़े केसों के फैसले पढ़िए, आपको समझ आ जायेगा कि फैसले किन आधारों पर किये जाते हैं, उससे आपको अपने केस का भविष्य देखने में भी आसानी रहेगी
एक और बात, कोर्ट में सारी की कार्रवाई लिखित में करें...यानि आप कोर्ट पर भरोसा मत करें कि आप जो भी कोई जुबानी बात कह रहे हैं वो वैसे रिकॉर्ड में ही रहेगी.....हमारे कोर्ट में विडियो या ऑडियो नहीं होती जो जज को कई तरह की सुविधा देती है....सो आप कोई भी सबमिशन देना चाहते हैं लिखित में दें....आर्गुमेंट भी लिखित में दें.
लिखना अपने आप में बहुत समय खाने वाला काम है सो वकील लोग कोताही बरत सकते हैं लेकिन मेरा तजुर्बा है कि यदि आपने आर्गुमेंट आदि लिखित में दिया होगा तो कोई माई का लाल रिकॉर्ड से उसे हटा नहीं पायेगा और फैसले में उसे नज़रंदाज़ नहीं कर पायेगा
जब आप का केस कोर्ट में हो तो आप मात्र अपने Opponent से ही केस नहीं लड़ रहे होते आप अपने वकील और जज से भी केस लड़ रहे होते हैं.
आपको देखना है कि आप केस ऐसे फाइट करें कि कोई चूं तक न कर पाए....छिद्र छोडेंगे तो कोई भी नाजायज़ फायदा उठा लेगा.
हमें न्याय व्यवस्था पर यकीन होना चाहिए.....कहते ज़रूर हैं लेकिन यदि हर फैसला सही होता तो फिर फैसले पलटी ही नहीं होते अगली अदालतों में.....और बहुत बार तो एक ही जैसे केस में एक कोर्ट कुछ फैसला दे रहा होता है, दूसरा कुछ और...........अभी पीछे ही मार्कंदय काटजू किसी जज के भ्रष्ट होने पर खूब लिख रहे थे...... हमें न्याय व्यवस्था पर यकीन होना चाहिए, लेकिन आँख बंद कर हमें न अपने वकील पर भरोसा करना चाहिए न ही जज पर
केस ऐसे फाइट करना चाहिए...इतने फैक्ट्स दें, इतनी दलील दें, इतने सबूत दें........इतनी Citation दें कि जज मजबूर हो जाए आपके हक में फैसला देने को......Citation एक तरह की मिसाल हैं, कानूनी मिसाल....आपके केस से मिलते जुलते पहले से हो रखे फैसले.....Citation ढूँढना अपने आप में मेहनत का काम होता है.......Manupatra.com है एक वेबसाइट जिसके पास सब तरह के फैसले होते हैं, वो फीस देकर उनसे लिए जा सकते हैं....लेकिन कम ही वकील ऐसा करते हैं..लेकिन आपको ज़रूर करना चाहिए...वैसे आप गूगल करके भी काफी फैसले खोज सकते हैं...indiankanooon.org से भी बहुत फैसले आपको मिल सकते हैं
एक साईट है Lawyersclubindia.com यहाँ से आप वकील बंधुओं से मुफ्त सलाह ले सकते हैं
Yahooo Answers पर Vijay M Lawyer नाम से एक वकील हैं, इन्होने बहुत सवाल जवाब लिखे हैं वहां पर.....मेरी समझ के मुताबिक इनकी कानूनी समझ बहुत गहरी है....इनके लेख बहुत काम के साबित हो सकते हैं
मैंने भी कुछ और लेख, टीका टिप्पणी की हैं.......वो गूगल से अलग अलग बिखरी तो मिल सकती हैं लेकिन एक जगह इकट्ठी नहीं हैं अभी.....इकट्ठा करके एक आर्टिकल में पिरो लूँगा तो उसका लिंक यहाँ दूंगा...वो भी काम आ सकता है.....एक आम आदमी का कानून और कानून के रखवालों के प्रति नजरिया
खैर, सब तो नहीं लिख पाया हूँ....आप चाहें तो मुझ से अपने किसी केस की राय ले सकते हैं
सादर नमन.......कॉपी राईट.......चुराएं न.....समझ लीजिये मुझे कॉपी राईट लॉ भी पता है
लेकिन मेरा जीवन.....मुझे कचहरी के चक्कर में पड़ना था सो पड़ गया .........शुरू में वकील से बात भी नहीं कर पाता था ठीक से.....वकील की बात को समझने की कोशिश करता लेकिन समझ नहीं पाता...जैसे डॉक्टर की लिखत को आप समझना चाहें भी तो नहीं समझ पाते वैसे ही वकील की बात का कोई मुंह सर निकालना चाहते हुए भी नहीं निकाल पाता
एक वकील से असंतुष्ट हुआ, अधर में ही उसे छोड़ दूसरा पकड़ा......वो भी समझ नहीं आया ..तीसरा पकड़ा......कुछ पता नहीं था....तारीख का मतलब बस जैसे तैसे कचहरी में हाज़िरी देना ही समझता था
तकरीबन तीन साल चला केस.....यह मेरी ज़िन्दगी का पहला केस था...और जायज़ केस था.....किसी से पैसे लेने थे....चेक का केस था और फिर भी मैं हार गया......
जब घर वापिस आया तो औंधा मुंह लेट गया, घंटों पड़ा रहा....गहन ग्लानि
खुद को पढ़ा लिखा समझदार समझता था लेकिन एक कम पढ़े लिखे आदमी से अपने जायज़ पैसे नहीं ले पाया
फिर उस आदमी ने मुझ पर वापिस केस डाला.....लाखों रुपैये वसूली का........कि मैंने उस पर नाजायज़ केस किया था.....उसे नुक्सान हुआ.
अब मैं और ज़्यादा अवसाद में पहुँच गया.....कोशिश की समझौते की...उल्टा मैं उसे पैसे देने को राज़ी हो गया लेकिन वो माने ही नहीं........पहाड़ी पर चढ़ गया.....मैं तुषार से माफी मंगवाऊंगा......लिखित में ...मोहल्ले के सामने.
खैर, मुझे समझ आ गया कि बेटा, तुझे अब लड़ना ही होगा......अब लड़ना ही है तो फिर कोई अच्छा वकील करना होगा...खैर, मैंने एक महंगा वकील किया
अभी तक मुझे कुछ कानून समझ नहीं आया था....इसी बीच हमारे एक मकान पर किसी किरायेदार ने कब्जा कर लिया......अब उसे खाली कराने के लिए मुझे फिर से, बहुत से वकीलों से मिलना होता था.......जो भी वो बताते मैं इन्टरनेट पर चेक करता.....कई वकीलों ने पहली मीटिंग के पैसे लिए, कईयों ने नहीं लिए.......अपने चल रहे वकील से भी अपने केस की बात की लेकिन जमा नहीं कि उसे यह केस भी दिया जाए.........
फिर एक वकील जोड़ी, (एक स्त्री और एक पुरुष), इन को हायर किया ...... तब तक काफी कुछ अपने केस के बारे में समझ चुका था.....मेरे वकील भी समझते थे कि मैं कुछ कुछ चीज़ें समझता हूँ....एक मैत्री बन गयी.....अक्सर वकील ऐसे पेश आते हैं अपने मुवक्किल से जैसे मुवक्किल उनका नौकर हो जबकि होता उल्टा है.....मुवक्किल जब चाहे अपने वकील को हटा सकता है
अब मैंने अपने दोनों केस इस जोड़ी को सौंप दिए......इन को मैंने एक मुश्त रकम तय की हर केस की....जिसे मुझे बीच बीच में देना था.....उसके अलावा मैंने खुद से उनको जीतने पर एक मुश्त रकम देने का वादा किया.....और इसके भी अलावा मैंने हर मीटिंग के पैसे अलग तय किये....वो इसलिए कि मेरी मीटिंग उनके साथ लम्बी होने वाली थी...मैं उनसे इतना कुछ सीखना और सिखाना चाहता था, इतना सर खाना चाहता था जो आम मुवक्किल नहीं करता
खैर, हर तारीख के बीच बीच हम मीटिंग करते ..लम्बी ....घंटों....... वो जो ड्राफ्टिंग करते वो मुझे ई-मेल करते....मैं अपनी तरफ से उस ड्राफ्टिंग को कई दिन तक बेहतर करता रहता.....फिर वो लोग उसे फाइनल करते.....हम हर बात को तर्क और कानून के हिसाब से फिट बिठाते........सब रज़ामंदी से........नतीजा यह हुआ कि मैं सब केस जीत गया
उनके साथ जो तय था वो सब पैसे दिए...जो जीतने पर इनाम जैसे पैसे देने थे वो भी दिए और उनसे जो सम्बन्ध बना तो आज तक कायम है
उसके बाद कुछ और केस भी फाइट किये... सब जीतता चला गया
पली, रिप्लाई, रेप्लिकेशन, रेबटल, एविडेंस, आर्गुमेंट, आर टी आई ....सब मेरे ज़ेहन में बस गये
उसके बाद एक बार बिजली कम्पनी ने बिना मतलब मेरे ऑफिस छापा मार एक नोटिस भेज दिया मुझे.....मुझ से जवाब माँगा...उस जवाब में ही मैंने उनको इतना झाड़ दिया कि कुछ ही दिन बाद उनका लैटर आ गया कि मुझ पर कोई चार्ज नाही बनता
एक बार MCD का पंगा पड़ा तो उन्होंने मुझे कारण बताओ नोटिस भेजा....जवाब में मैंने उनसे ढेर सारे सवाल पूछ लिए...मामला खत्म
फिर तो कई मित्रगणों को बचाया मैंने खामख्वाह कि कानूनी उलझनों से
अब तो काम ही करता हूँ कानूनी पेचीदगियों में फंसी प्रॉपर्टी का
बहुत लोग अपनी प्रॉपर्टी मिटटी करे बैठे हैं....विदेश रहते हैं......या फिर अपढ़ हैं....या उनके पास पैसे ही नहीं कि वो अपनी लगभग खत्म प्रॉपर्टी को जिंदा कर पाएं......मैं देखता हूँ कि जिंदा होने लायक है तो एक अग्रीमेंट के तहत अपने खर्चे से उसे जिंदा करता हूँ और फिर अग्रीमेंट के तहत हिस्सा बाँट लेता हूँ
आपको यह सब अपनी कहानी इसलिए सुनाई कि मेरी कहानी में आपको बहुत जगह अपनी, अपने रिश्तेदार की, अपने दोस्त की कहानी नज़र आयेगी
जिन चीज़ों की शिक्षा मिलनी चाहिए, वो न मिल के बकवास विषयों पर सालों खराब करवाए जाते हैं. कानून ऐसा ही एक क्षेत्र है, जो पढाया जाना चाहिए लेकिन नहीं पढ़ाया जाता..नतीजा यह है कि हम कानून के मामले में लगभग जीरो होते हैं.....उसका नतीजा यह होता है कि हम खामख्वाह के केस में फंस जाते है...वकीलों और कचहरी से जुड़े लोगों का घर भरते जाते हैं.....
पुलिस का IO..उसका काम होता है कि वो केस की तफ्तीश करे, लेकिन वो तफ्तीश यह करता है कि जेब किसकी भारी है और उसे पैसे कहाँ से मिलने वाले हैं......मैंने कल ही एक केस देखा जो बिना किसी सबूत के कचहरी में दाख़िल था.......मतलब कोई गवाह नहीं, कोई और किसी तरह का सबूत नहीं....मात्र बयान से केस थोप दिया गया.........ऐसे तो कोई भी किसी पर भी केस लगा देगा ....खैर मेरे हिसाब से तो जिस केस में IO की भूमिका गलत साबित होती हो उसे भी तुरत सज़ा मिलनी चाहिए....
मेरे हिसाब से जब तक जज किसी को मुजरिम साबित न कर दे उसे सजा मिलनी ही नहीं चाहिए. लेकिन पुलिस लॉकअप अपने आप में एक नर्क होता है. भले ही बन्दा निर्दोष छूटे लेकिन लॉकअप में रहा हो तो समाज में कद कुछ तो कम हो ही जाता है
वकील लोग चूँकि तारीख तारीख दर पैसे ले रहे होते हैं सो जो केस साल में खत्म हो सकता है उसे वो दस साल चलाते हैं......वो क्यूँ चाहेंगे कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी जल्द हाथ से निकल जाए...आपका मामला चलता रहे और आप उसे पैसे देते रहें इसी में तो उनकी भलाई है....फिर आपको तो पता भी नहीं कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं....सो वो अपनी मनमर्जी करते रहते हैं
मेरे तजुर्बे से सीखें.....जीत हार आपकी होनी है, आपके वकील की नहीं...नफा नुक्सान आपका होना है.... केस आपका है.....अपने केस के विद्यार्थी बनिए.......सारा काम वकील पर छोड़ कर खुद बेक सीट पर मत बैठे रहिये...खुद आगे वकील के साथ वाली सीट पर बैठिये.....वो क्या कर रहा है, क्यूँ कर रहा है ......पूरी कार्यविधि समझिये....और जो वकील न समझने दे, उसे एक पल गवाए बिना दफा कर दीजिये.....इन्टरनेट से हर मुद्दा चेक करते रहिये.......मैं तो देखता हूँ लोगों के पास अपने केस की फाइल तक नहीं होती...सब वकील के पास....क्या ख़ाक पढेंगे अपना केस
कहते हैं कि भारतीय व्यवस्था वकीलों के लिए चारागाह है.........सही कहते हैं ..... शिक्षा वैसे ही कम है.......और जो है भी वो आधी अधूरी है.....ऐसे में आप लूटे नहीं जायेंगे तो और क्या होगा आपके साथ?
वकील को कभी तारीख दर तारीख पैसे मत दीजिये...एक मुश्त पैसे तय कीजिये और जीतने पर अलग से पैसे देने का वादा कीजिये, लिखित भी दे सकते हैं
अपने केस की सारी की सारी सर्टिफाइड कापियां अपने पास रखें.....कोर्ट से जल जाएँ, जला दी जाएं, गुम जाएं, गुमा दी जाएं तो भी आपके वाली कापियां काम आ सकती हैं
अपने केस से जुड़े केसों के फैसले पढ़िए, आपको समझ आ जायेगा कि फैसले किन आधारों पर किये जाते हैं, उससे आपको अपने केस का भविष्य देखने में भी आसानी रहेगी
एक और बात, कोर्ट में सारी की कार्रवाई लिखित में करें...यानि आप कोर्ट पर भरोसा मत करें कि आप जो भी कोई जुबानी बात कह रहे हैं वो वैसे रिकॉर्ड में ही रहेगी.....हमारे कोर्ट में विडियो या ऑडियो नहीं होती जो जज को कई तरह की सुविधा देती है....सो आप कोई भी सबमिशन देना चाहते हैं लिखित में दें....आर्गुमेंट भी लिखित में दें.
लिखना अपने आप में बहुत समय खाने वाला काम है सो वकील लोग कोताही बरत सकते हैं लेकिन मेरा तजुर्बा है कि यदि आपने आर्गुमेंट आदि लिखित में दिया होगा तो कोई माई का लाल रिकॉर्ड से उसे हटा नहीं पायेगा और फैसले में उसे नज़रंदाज़ नहीं कर पायेगा
जब आप का केस कोर्ट में हो तो आप मात्र अपने Opponent से ही केस नहीं लड़ रहे होते आप अपने वकील और जज से भी केस लड़ रहे होते हैं.
आपको देखना है कि आप केस ऐसे फाइट करें कि कोई चूं तक न कर पाए....छिद्र छोडेंगे तो कोई भी नाजायज़ फायदा उठा लेगा.
हमें न्याय व्यवस्था पर यकीन होना चाहिए.....कहते ज़रूर हैं लेकिन यदि हर फैसला सही होता तो फिर फैसले पलटी ही नहीं होते अगली अदालतों में.....और बहुत बार तो एक ही जैसे केस में एक कोर्ट कुछ फैसला दे रहा होता है, दूसरा कुछ और...........अभी पीछे ही मार्कंदय काटजू किसी जज के भ्रष्ट होने पर खूब लिख रहे थे...... हमें न्याय व्यवस्था पर यकीन होना चाहिए, लेकिन आँख बंद कर हमें न अपने वकील पर भरोसा करना चाहिए न ही जज पर
केस ऐसे फाइट करना चाहिए...इतने फैक्ट्स दें, इतनी दलील दें, इतने सबूत दें........इतनी Citation दें कि जज मजबूर हो जाए आपके हक में फैसला देने को......Citation एक तरह की मिसाल हैं, कानूनी मिसाल....आपके केस से मिलते जुलते पहले से हो रखे फैसले.....Citation ढूँढना अपने आप में मेहनत का काम होता है.......Manupatra.com है एक वेबसाइट जिसके पास सब तरह के फैसले होते हैं, वो फीस देकर उनसे लिए जा सकते हैं....लेकिन कम ही वकील ऐसा करते हैं..लेकिन आपको ज़रूर करना चाहिए...वैसे आप गूगल करके भी काफी फैसले खोज सकते हैं...indiankanooon.org से भी बहुत फैसले आपको मिल सकते हैं
एक साईट है Lawyersclubindia.com यहाँ से आप वकील बंधुओं से मुफ्त सलाह ले सकते हैं
Yahooo Answers पर Vijay M Lawyer नाम से एक वकील हैं, इन्होने बहुत सवाल जवाब लिखे हैं वहां पर.....मेरी समझ के मुताबिक इनकी कानूनी समझ बहुत गहरी है....इनके लेख बहुत काम के साबित हो सकते हैं
मैंने भी कुछ और लेख, टीका टिप्पणी की हैं.......वो गूगल से अलग अलग बिखरी तो मिल सकती हैं लेकिन एक जगह इकट्ठी नहीं हैं अभी.....इकट्ठा करके एक आर्टिकल में पिरो लूँगा तो उसका लिंक यहाँ दूंगा...वो भी काम आ सकता है.....एक आम आदमी का कानून और कानून के रखवालों के प्रति नजरिया
खैर, सब तो नहीं लिख पाया हूँ....आप चाहें तो मुझ से अपने किसी केस की राय ले सकते हैं
सादर नमन.......कॉपी राईट.......चुराएं न.....समझ लीजिये मुझे कॉपी राईट लॉ भी पता है
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