मूढ़.......गंगा की सफाई की चिंता है.........अरे, सारा माहौल जहरीला कर दिया तुम्हारी अकलों ने....
क्या ज़मीन, क्या दरिया...क्या समन्दर......क्या हवा....
क्या इंसानियत.....क्या मासूमियत.....
सब कुछ
और
और तुम्हें चिंता हो रही है कि गंगा मैली हो गयी है.
जैसे सिर्फ गंगा ही मैली हुई है
सब ..सब कुछ मैला है
ज़्यादा अक्ल है न ...ज्यादा अक्ल है न तुम सब में
और तुम्हें चिंता है कि गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए, जैसे सिर्फ गाय ही पवित्र हो बाक़ी सब अपवित्र........
जैसे बाकी जानवर मार देने के काबिल हों...जैसे मुर्गा....बकरा कोई कम पवित्र हो.......
मूढ़ ज़्यादा अक्ल है न तुममें....
बस तुम्हारी किसी किताब ने बता दिया कि गंगा और गाय बचनी चाहिए और तुम चल पड़े इनको बचाने..... ....
तुम इनको भी इसलिए नहीं बचाने निकले कि तुम्हें कोई समझ है कि पर्यावरण के लिए इनको बचाना ज़रूरी है......
तुम इनको इसलिए नहीं बचाने निकले कि इस पृथ्वी के प्राण सूखते जा रहे हैं..,,कि हवा, पानी, ज़मीन सब ज़हरीला होता जा रहा है....
तुम इसलिए इनको बचाने निकले हो क्योंकि यही तुम्हारे कानों में बचपन से आज तक फूँका गया है........क्योंकि यह तुम्हारा मज़हब है....
मूढ़
क्या ज़मीन, क्या दरिया...क्या समन्दर......क्या हवा....
क्या इंसानियत.....क्या मासूमियत.....
सब कुछ
और
और तुम्हें चिंता हो रही है कि गंगा मैली हो गयी है.
जैसे सिर्फ गंगा ही मैली हुई है
सब ..सब कुछ मैला है
ज़्यादा अक्ल है न ...ज्यादा अक्ल है न तुम सब में
और तुम्हें चिंता है कि गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए, जैसे सिर्फ गाय ही पवित्र हो बाक़ी सब अपवित्र........
जैसे बाकी जानवर मार देने के काबिल हों...जैसे मुर्गा....बकरा कोई कम पवित्र हो.......
मूढ़ ज़्यादा अक्ल है न तुममें....
बस तुम्हारी किसी किताब ने बता दिया कि गंगा और गाय बचनी चाहिए और तुम चल पड़े इनको बचाने..... ....
तुम इनको भी इसलिए नहीं बचाने निकले कि तुम्हें कोई समझ है कि पर्यावरण के लिए इनको बचाना ज़रूरी है......
तुम इनको इसलिए नहीं बचाने निकले कि इस पृथ्वी के प्राण सूखते जा रहे हैं..,,कि हवा, पानी, ज़मीन सब ज़हरीला होता जा रहा है....
तुम इसलिए इनको बचाने निकले हो क्योंकि यही तुम्हारे कानों में बचपन से आज तक फूँका गया है........क्योंकि यह तुम्हारा मज़हब है....
मूढ़
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