यहाँ इस भूमि पर, जिसे अब "भारत" कहा जाता है, अनेक राजा थे. वे लड़ते रहते थे. यह कहना गलगट है कि वे "आपस" में लड़ रहे थे चूँकि आपस वाली कोई बात नहीं थी. हर राज्य अपने आप में देश था. यही उनकी दुनिया थी.
मिसाल के लिए देखिए. एक राष्ट्र रहा होगा. छोटा. फिर उस से कुछ बड़ा कोई राज्य बना होगा जो "महाराष्ट्र" बन गया. महाराष्ट्र जो आज भारत का सिर्फ एक स्टेट है. आज भारत को हम राष्ट्र कहते हैं. राष्ट्र में महाराष्ट्र. छोटे डब्बे में बड़ा डब्बा. है न हैरानी की बात! मतलब यह है कि किसी जमाने में कोई छोटा सा नगर ही अपने आप में राष्ट्र माना जाता रहा होगा.
महाराष्ट्र का नाम यदि "म्हार राष्ट्र" से बना मान भी लिया जाये तो भी मेरा क्लेम पुख्ता होता है. कैसे? म्हार राष्ट्र ही म्हार लोगों के लिए एक राष्ट्र था. और यही तो मैंने कहा है कि भारत नाम से कोई राष्ट्र कभी नहीं रहा.
और यह "भारत" नाम राजा "भरत" के नाम पर है, यह भी एक भ्रान्ति है. प्रत्येक राज्य/रियासत का अपना नाम होता था....अपना राजकुमार/राजा।
जितना इतिहास हम जानते हैं, उसमें केवल अशोक के पास ही बहुत बड़ा राज्य था, और उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह के पास। अन्यथा मुगलों के पास बड़े राज्य थे और फिर अंग्रेजों के पास सबसे बड़ा राज्य था....भारत...जिसमें पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश और शायद कई अन्य पड़ोसी क्षेत्र शामिल थे।
यह ब्रिटिश India था, जो 1947 में दो भागों में विभाजित हो गया, अन्यथा ब्रिटिश राज से पहले जैसा भारत आज हम देखते हैं ऐसा कुछ भी नहीं था. सैंकड़ों राज्य थे. अलग-अलग. आज का भारत 1947 में विभक्त नहीं हुआ था, पैदा हुआ था. आशा है मैं स्पष्ट हूं....
दिल्ली-पंजाब में मज़दूरी करने वाला मज़दूर जब बिहार/उत्तर प्रदेश जाता है तो अक्सर मैंने उसे कहते सुना है, "हम अपने मुलुक जा रहा हूँ." यानि उस के लिए बिहार/यू पी उस का मुल्क है. और वो दिल्ली या पंजाब में "परदेसी" है. "देस" उस का बिहार या उत्तर प्रदेश है.
"प्रदेश" शब्द देखिये. परदेस शब्द इसी से आया होगा। निश्चित ही.
यानि "प्रदेश", यह शब्द जिसे आज हम स्टेट के लिए प्रयोग करते हैं, किसी समय यह भी गाँव-देहात में रहने वाले लोगों के लिए दूसरे देश जैसी ही अवधारणा रही होगा. तभी तो "प्रदेश". "परदेस". आई बात समझ में?
एक और बड़े मजे का तर्क दिया जाता है कि यदि भारत नहीं था तो फिर "महाभारत" कैसे लिखी गयी? कहाँ से आ गयी? पहली तो बात यह है कि महाभारत को आज तक कोई ऑथेंटिक इतिहास नहीं माना जाता. यह मिथिहास है. मिथ्या इतिहास. मिथिहास. जिस का यह नहीं पता कि सच कितना है और कल्पना कितनी.
चलिए बहस के लिए मान लेते हैं कि यह इतिहास है तो फिर महाभारत में भी भारत जैसा आज एक देश है ऐसे, इतने बड़े देश का कहाँ ज़िक्र है? दिल्ली और इस के इर्द-गिर्द के किसी इलाके को हस्तिना-पुर कहा गया. दिल्ली के पुराने नामों में इंद्रप्रस्थ भी कहा जाता है. बस इसी इलाके की तो लड़ाई थी. बाकी तो सब आस-पास के राजा थे. जरासंध शायद मथुरा-वृंदावन का राजा था. गांधारी शायद कंधार/अफगानिस्तान से थी. कौन सा राजा था उस समय भी जिस के पास आज जितना बड़ा कोई राज्य था जिसे "भारत" कहा जाता था? कोई भी नहीं.
एक और तर्क दिया जाता है की विष्णु पुराण में कहीं लिखा है, "उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् | वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||" इसका मतलब है कि समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं और वहां रहने वाले लोगों को भारतीय कहते हैं. लिखा होगा लेकिन उस से साबित ही क्या होता है? पहली तो बात है कि पुराण कोई ऑथेंटिक ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं हैं. ये सब तथा-कथित धार्मिक किस्म की किताब हैं, जिन पर तर्क बिठाने लगते हैं तो सब रायता बिखर जाता है. दूसरी बात यह है कि जिन को भारती कहा जा रहा है उन में सन सैंतालीस से पहले कौन खुद को भारती कहता था. मैंने ऊपर ही लिखा न राष्ट्र की कोई धारणा ही नहीं थी जैसी आज है. हर राजा का राज्य अपने आप में ही एक राष्ट्र था. बस. और जिस भूमि को भारत कहा जा रहा है विष्णु पुराण में वहाँ पता नहीं कितने ही राष्ट्र थे सन सैंतालीस से पहले. जो बनते-बिगड़ते रहते थे, घटते-बढ़ते रहते थे.
यह सिर्फ तथा कथित हिन्दुओं द्वारा फैलायी गयी एक मिथ्या धारणा है कि भारत के 1947 में दो टुकड़े हो गए. हो गए लेकिन ब्रिटिश राज वाले "इंडिया" के. असलियत यह है. अगर भारत एक ही था तो फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल कौन सी रियासतों को एकीकृत किये थे? एक को क्या एकीकृत करना?
और असलियत यह है कि हिन्दू या सनातन धर्म नाम से भी कुछ नहीं है. धरती का यह हिस्सा जिसे आज भारत कहा जा रहा है, यहाँ न तो हिन्दू/सनातन धर्म नाम से कोई धर्म रहा है और न ही भारत नाम से कोई राष्ट्र.
हिन्दू शब्द कहाँ से आया इस पर भी भिन्न-भिन्न धारणाएं हैं. एक धारणा यह है कि यह शब्द "सिंधु" से बना है. सिंधु दरिया के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा जाने लगा. लेकिन दूसरी धारणा यह है कि यह शब्द पुरातन स्थानीय ग्रंथों में भी है कहीं-कहीं. संस्कृत ग्रंथों में. लेकिन तथा-कथित हिन्दुओं के मुख्य ग्रंथों में "हिन्दू" शब्द कहीं भी नहीं है. न रामायण में, न महाभारत में. न राम ने कभी खुद को हिन्दू कहा, न कृष्ण ने और न ही हिन्दुओं के किसी और बड़े अवतार, देवी-देवता ने.
यहाँ जैसे छोटे-छोटे राज्य रहे हैं, वैसे ही हर इलाके के अपने देवी-देवता. आज लॉरेंस बिश्नोई को सभी जानते हैं. बिश्नोई समाज पंजाब और हरियाणा के बॉर्डर एरिया में रहता है. यह समाज जम्भेश्वर नाथ को मानते हैं. क्या बाहर किसी को पता है कि कौन थे ये जम्भेश्वर नाथ? आज भी यहाँ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर देवी-देवता बदल जाते हैं. यहाँ शिव लिंग की पूजा होती है तो यहाँ आसाम में कामाख्या मंदिर में योनि की पूजा भी होती है. यहाँ मृत्यु के बाद शरीर जलाये जाते हैं तो लिंगायत लोगों के शरीर दफनाए जाते हैं. माता दुर्गा! ऐसा लगता है जैसे किसी दुर्ग (किले) की रक्षा के लिए हों. बंगाली लोग श्रद्धा से मूर्ती पूजा करते हैं. दुर्गा पूजा और विसर्जन उन के धार्मिक क्रिया कलापों में सब से प्रमुख है, वहीं आर्य समाजी मूर्ती पूजा का सख्त विरोध करते हैं. यहाँ आस्तिक हैं तो नास्तिक भी हैं. गुरु नानक के उद्घोष "एक औंकार सत नाम" में न तो मूर्ती पूजा है और न ही किसी भगवान का ज़िक्र.
जितना मुझे पता है, सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है. वैसे आरएसएस खुद यह कहता है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है. मैंने योगी आदित्यनाथ को भी ऐसा ही कुछ कहते हुए सुना है.
और अब सनातन. क्या है भाई यह? जितना मुझे पता है, इस्लाम भी खुद को सनातन ही कहता है. आदम-हव्वा से चलता हुआ. सदैव के लिए. हर समय के लिए और हरेक के लिए.
बात हिन्दुओं वाले "सनातन" की. भाई, दशरथ से पहले तो राम नहीं थे. यशोदा मैया से पहले तो कृष्ण नहीं थे. राम और कृष्ण तो तुम्हारे प्रिय भगवान हैं. एक समय ये नहीं थे. ऐसे ही कितने और देवी-देवता जन्में और मरे. सवाल यह है कि इन के समय से पहले सनातन था या नहीं? जो लोग किसी और भगवान, किसी और देवी-देवता को पूजते थे, वो सनातनी थे या नहीं? और रामायण और महाभारत काल से पहले के लोग किन्ही और ग्रंथों को पढ़ते होंगे, पूजनीय मानते होंगे, तो वो सनातनी थे या नहीं? ठीक-ठीक डिफाइन करो यार पहले तो सनातनी से तुम्हारा मतलब क्या है? कौन सा देवी-देवता, कौन सी किताब, कौन सी मान्यता? क्या है सनातन?
सनातन का मतलब जितना मैं समझता हूँ, ऐसा कुछ जो सदैव था, सदैव रहेगा और हरेक के लिए है और हरेक के लिए रहेगा. तो भाई, क्या है आप लोगों की मान्यताओं में जो सनातन हैं? मैंने ऊपर ही लिखा कि जिन को सनातनी कहा जा रहा है, उन की मान्यताएं एक-दूसरे के विरोध में खड़ी हैं. अनेकता में एकता? तो फिर कर लो मुस्लिम से, ईसाई से एकता. होगी? नहीं न.
सनातन की कोई परिभाषा मुझे नहीं मिली, आप को मिलती हो तो ज़रूर लिखना.
धर्म-स्थलों में "विश्व में शांति हो", "सर्वस्व का भला हो" बोलने से कुछ साबित नहीं होता. जो लोग तुम्हारे धर्मों को, तुम्हारे धर्म-स्थलों को ही नहीं मानते, जो लोग तुम्हारे धर्म-स्थलों को ही अशांति का बुराई का केंद्र मानते हैं, उन को क्या जवाब दोगे? वो सनातनी हैं या नहीं? यहाँ मैं मुस्लिम या अन्य रिलिजन को मानने वालों की बात नहीं कर रहा. यहाँ मैं उन्ही लोगों की बात कर रहा हूँ जिन को सनातनी ही समझा जाता है. मिसाल के लिए आर्य समाजी भी सनातनी ही माने जाते हैं लेकिन वो तो मूर्ती पूजा के सख्त विरोधी है जब कि तथा कथित हिंदू अधिकांश मूर्ती पूजक हैं. तो ऐसे में ये मूर्ती पूजक सनातनी आर्य समाजियों को सनातनी कहेंगे या नहीं? सवाल हैं.
कह सकते हैं. कहते भी हैं.
लेकिन यह सब बहुत ही अंतर्-विरोधी है. बहुत ही अतार्किक. बहुत ही उलझा हुआ. निरर्थक.
सनातनी कौन है इस के अर्थ खोजने जाते हैं तो बस तनातनी ही मिलती है. असल में परिभाषित करने की कोई ज़रूरत है भी नहीं. यह ज़रूरत सिर्फ इसलिए पड़ रही है चूँकि हिंदुत्व और सनातन शब्दों पर बहुत जोर दिया जा रहा है. अन्यथा एक परिभाषा विहीन समाज मेरी नज़र में बेहतर है परिभाषा में बंधे हुए समाज से. वहाँ सोच की फ्रीडम है. इसी का नतीजा है कि आज तथा-कथित हिन्दू समाज से निकले लोग दुनिया के शीर्ष स्थलों पर पहुँच रहे हैं.
सिर्फ इस्लाम, इसाईयत और बाकी बाहरी विचारधारों के प्रभाव से बचने के लिए भारत राष्ट्र/ हिन्दू राष्ट्र या हिंदुत्व/सनातन जैसे नैरेटिव घड़े गए और समाज में पोषित किये गए. खास कर के आरएसएस द्वारा. आरएसएस की तो प्रार्थना में ही हिन्दू भूमि का ज़िक्र है. असल में इस तथा कथित भारत भूमि पर बिखरी हुई मान्यताओं की वजह से समाज एक जुट नहीं हो पाया और यह भी एक वजह रही कि यहाँ के लोग लगभग हर आक्रमणकारी से हारते चले गए. इन में अधिकाँश आक्रमणकारी अपने अपने रिलिजन, होली बुक, सामाजिक कोड, राजनीतिक कोड से बंधे थे. इसलिए इन में एकता थी, जो कि स्थानीय समाज में नहीं थी.
यह आक्रमण आज भी जारी है. इस्लाम और ईसाइयत द्ववारा आज भी प्रयास किये जा रहे हैं कि यहाँ के लोगों को कन्वर्ट कर लिया जाये. इस्लाम इस में सब से ज़्यादा प्रयासशील है. साम, दाम, दंड, भेद सब तरह की नीति अपनाई जाती है कि काफ़िर को किसी तरह से मुस्लिम कर दिया जाये. इसी लिए हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र घड़ा गया है. इस में बड़ा योगदान वीर विनायक दामोदर सावरकर की किताब "हिंदुत्व" का है और जिसे धरातल पर उतारा डॉक्टर बलि राम सदाशिव राव हेडगेवार ने.
अब बड़े मजे की बात है कोई भूमि कभी हिन्दू या मुस्लिम होती है? भूमि को खुद नहीं पता होगा कि वो हिन्दू या मुस्लिम हो चुकी. कैसी मूर्खताएं हैं? भूमि ने कभी कोई रजिस्टरी की क्या हिन्दुओं के नाम? या किसी भी और के नाम? लेकिन इंसानी मूर्खताओं की वजह से यह सब भी तार्किक लगने लगा है. सब के पास अपने तर्क हैं. कुतर्कों पर टिके तर्क.
प्याज के छिलके उतारते जाओ तो अंत में कुछ भी नहीं बचेगा. ऐसे ही हिंदुत्व है. जैसे-जैसे खोजते जाओगे वैसे-वैसे पाओगे कि अंत में कुछ भी हासिल नहीं हुआ. और यह शुभ है. यह समाज किसी ख़ास कोड से, बहुत कस के, बहुत ज़ोरों से कतई बंधा हुआ है ही नहीं. जो-२ समाज बंधे हैं वो अन्ततः पूरी दुनिया के लिए अशुभ साबित होंगें. जो समाज किसी किताब से कस के बंध जाये, टस से मस होने को राज़ी न हो, वो सभ्य हो ही नहीं सकता, वो अशुभ साबित होगा ही.
यहाँ मैं दुनिया के दो मसलों का ज़िक्र करूंगा. कश्मीर और फिलस्तीन/इजराइल. मुस्लिम दोनों जगह अपना हक़ जताते हैं. फिलस्तीन/इजराइल पर उन का तर्क है कि वो ज़मीन यहूदियों ने उन से छीन ली. लेकिन यही तर्क वो कश्मीर पर नहीं लगाते. यहाँ भी तो हिन्दू रहते थे पहले. जिन्हें मार-मार कर भगा दिया गया. आज भी रोज़ हिन्दू मज़दूर कत्ल किये जाते हैं. ताकि वहाँ सिर्फ मुस्लिम ही रह सके. ज़मीन के किस टुकड़े पर, बल्कि पूरी ज़मीन, पूरी धरती पर ही कोई सभ्यता, कोई समाज जो मार-काट में यकीन रखता हो, उसे रहना ही नहीं चाहिए. जो दूसरे को जीने का हक़ ही नहीं देना चाहता, उसे जड़ से खत्म कर देना चाहिए.
खत्म करने से यहाँ मेरा मतलब किसी को मारने-काटने से नहीं है. मेरा मतलब है, दूसरों के प्रति जिस भी समाज में वैमन्सयता का भाव आता हो, वो भाव, वो तर्क, मान्यताएं छिन्न-भिन्न कर देनी चाहियें. और यह आज आसान है. सोशल मीडिया बड़ा रोल अदा कर सकता है, कर रहा है. आप इस पोस्ट को भी उसी दिशा में एक कदम मान सकते हैं.
कुछ और सवाल-जवाब India के अस्तित्व पर:-
India(?) में कोई एक संस्कृति (?) कभी भी नहीं थी. आज भी नहीं है.
सिक्ख खुद को हिन्दू मानते ही नहीं और न बौद्ध और न जैन और न लिंगायत. सिख सरे आम कहते हैं हम हिन्दू नहीं. बौद्ध भी खुद को हिन्दू नहीं मानते. लिंगायत ने भी पीछे कहा कि वो हिन्दू नहीं हैं. बाकी आरएसएस या आरएसएस के समर्थक कहते रहें, जो कहना है.
वैसे भी पूरी दुनिया में कोई संस्कृति है ही नहीं और न रही है. संस्कृति का अर्थ है ऐसे कृति जिस में कोई संतुलन हो. यहाँ कोई एक दम भिखारी है तो कोई Super Rich. ऐसा हमेशा रहा है. इसे संस्कृति कैसे कहा जा सकता है? यह बस एक मिसाल है. कुछ सनातन परम्परा नहीं है. कुछ सनातन ही नहीं है. अगर कुछ सनातन है तो वो है परिवर्तन. Change is the only Constant.
इंसान जंगलो से गाँव और फिर शहरों तक पहुंचा है. उसे एक गाँव से दुसरे गाँव तक तो खबर नहीं थी. जम्बुद्वीब, आर्यवर्त, भारत वर्ष था शुरू से? कैसी बात है सर?
As I know… एशिया का एक हिस्सा है. साउथ एशिया. अंग्रेजों के समय में इसे Indian Subcontinent कहा जाने लगा था. जिस में आज के भारत के अलावा इर्द-गिर्द के पड़ोसी मुल्क भी थे. वो अंग्रेजों की अपनी समझ के लिए था. जिस में अलग-अलग Province थे. Bengal Province, Punjab Province, Bombay Province etc.....बात है एक राजनितिक इकाई की, जैसी आज है. ऐसा भारत सैंतालीस से पहले (except English Raj ) कभी नहीं रहा, तथा-कथित हिन्दुओं के पास तो कभी भी नहीं.
Tushar Cosmic