Friday 8 December 2023

What is this bullshit?

Left, Right.

Far right, far left.
Mid right, mid left.
Idiotic.
Either someone is idiotic or wise. Right or Wrong. That is it. This right-wing-left-wing theory is idiotic

जन्नत और दोजख

 इस्लाम में जन्नत और दोजख की स्पष्ट अवधारणा है।

"सबूत क्या है? क्या आपको जन्नत या जहन्नुम से कोई एसएमएस, व्हाट्सएप, ईमेल या फोन कॉल प्राप्त हुआ है? क्या आपके पास जन्नत या जहन्नुम के अस्तित्व को साबित करने के लिए कोई वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग है? या क्या आपके पास कोई अन्य सबूत है?" मैं मुसलमानों से पूछना चाहता हूं.
There is a clear concept of Jannat and Dojakh in Islam.
"What is the Evidence? Have you received any SMS, WhatsApp, email or phone call from Jannat or Jahannum? Do you have any video or audio recordings to prove the existence of Jannat or Jahannum? Or do you have any other proof to prove your belief?" I wanna ask Muslims friends.

गज़वा-ए-हिन्द' ~~ Gazwa-E- Hind

यह वर्णन किया गया था कि अल्लाह के दूत (ﷺ) के मुक्त गुलाम थावबन ने कहा:

"अल्लाह के दूत (ﷺ) ने कहा: 'मेरी उम्मत के दो समूह हैं जिन्हें अल्लाह आग से मुक्त करेगा: वह समूह जो भारत पर आक्रमण करेगा, और वह समूह जो 'ईसा बिन मरियम' के साथ होगा, शांति उस पर हो।' "
Sunan an-Nasa'i » The Book of Jihad - كتاب الجهاد » Hadith 3175/ 25 The Book of Jihad/ (41)Chapter: The Battle Expedition of India..
It was narrated that Thawban, the freed slave of the Messenger of Allah (ﷺ), said:
"The Messenger of Allah (ﷺ) said: 'There are two groups of my Ummah whom Allah will free from the Fire: The group that invades India, and the group that will be with 'Isa bin Maryam, peace be upon him.'"

नुपुर शर्मा

यह मुद्दा इन दिनों फिर से महत्वपूर्ण इसलिए है चूँकि "गर्ट विल्डर" ने नेदरलॅंड्स का चुनाव जीत लिया है. तो क्या? उस से क्या सम्बन्ध? संबंध है. यह एकमात्र ऐसा राजनेता था जिसने नूपुर शर्मा का साथ दिया था, उस वक्त साथ दिया था जब कि नूपुर शर्मा की अपनी पार्टी ने उसे निकासित कर दिया था.
खैर.

जो भी नुपुर ने कहा था, वो रहमानी के जवाब में कहा था.
और
जो कहा था वो कुछ भी मन-घडंत नहीं था. पैगम्बर साहेब की निंदा तो तब होती जब नुपुर ने कुछ ऐसा बोला होता जो इस्लाम मानता न होता. इस्लामिक ग्रन्थों में लिखा है कि पैगम्बर साहेब ने हज़रत आईशा से जब शादी की तो वो 6 साल की थीं. जब जिस्मानी रिश्ता बनाया तब वो 9 साल की थी. इसी बात को श्रीमान जाकिर नायक ने भी तसदीक किया है.

लेकिन नुपुर शर्मा ने बोल दिया तो उसे मार दिया जाना चाहिए!
क्यों?
नुपुर शर्मा ने नेगेटिव सेंस में बोला शायद इसलिए. ठीक है, तो आप इसी मुद्दे को पॉजिटिव कर के बता दें. बता दीजिये कि नुपुर कहाँ ग़लत है. और पैगम्बर साहेब ने जो किया वो कैसे सही है, किन विशिष्ट हालात में ऐसा किया और वो कैसे अनुकरणीय है.
बस, नुपुर को टांग दो.
टांग भी दिया उस के पुतले को.
नुपुर को मार दो.
मार भी दिया नुपुर नाम की एक बेगुनाह औरत को बांगला देश में. पहले बलात्कार किया, फिर मार के, लाश खेत में फेंक दी. मात्र इसलिए चूँकि उस का नाम नुपुर था.

होना क्या चाहिए था?
होना यह चाहिए था कि यदि नुपुर की बात गलत लगी तो सब से पहले यह देखना था कि वो ग़लत है भी कि नहीं. तथ्यात्मक तौर पर.

लेकिन जैसा कि अब पता पड़ रहा है कि बात तथ्यात्मक रूप में गलत नहीं थी.
तो फिर नुपुर ने जैसे कहा, वो देखना था कि किन हालात में कहा, वो गलत था या सही. तो वो भी गलत प्रतीत होता नहीं. चूँकि बहस में शिवलिंग को भी कोई सम्मान नहीं दिया जा रहा था, तो तैश में आकर जवाब में नुपुर की तरफ से यह कथन आया.

फिर यह देखना चाहिए था कि उस कथन को चाहे नुपुर ने नेगेटिव ढंग से कहा लेकिन पैगम्बर साहेब की वो शादी पॉजिटिव काम है क्या, अनुकरणीय है क्या? जैसा मैंने ऊपर लिखा है, इस का जवाब भी मुस्लिम' को ही देना था. लेकिन मुस्लिम ने ऐसा नहीं किया. मुस्लिम ने टिपण्णी कर ने वाली के खिलाफ़ झंडा-डंडा बुलंद कर दिया.

इस से क्या प्रतीत होता है?
ऐसा लगता है कि मुस्लिम हज़म ही नहीं कर पाए कि यह बात Out हो गयी. मुस्लिम इस बात को झुठलाते हुए प्रतीत होते हैं.

मुस्लिम इस शादी का औचित्य साबित करने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हैं.
और फिर दुनिया के किसी भी विषय पर, व्यक्ति पर तार्किक रूप से क्यों सोचा नहीं जाना चाहिए? पैगम्बर साहेब थे तो इंसान ही न. क्यों उन के जीवन की घटनाओं का बौद्धिक रूप से विश्लेष्ण नहीं होना चाहिए? क्यों मुस्लिम इस बुरी तरह से उखड़ जाते हैं? क्या इस लिए कि मुस्लिम जवाब देने में असमर्थ समझते हैं खुद को?

मैंने सुना जाकिर नायक को, ये श्रीमान बता रहे थे कि लड़की का जब मासिक धर्म शुरू हो जाता है तो उस से शादी की जा सकती है. और मासिक धर्म 9-10 साल की उम्र में शुरू हो जाता है और इसी उम्र में हज़रत आएशा से पैगम्बर साहेब ने शादी की थी. और मैंने यह भी सुना है कई बार कि मुस्लिम को पैगम्बर मोहम्मद के जीवन की यथा-सम्भव नकल करनी होती है जीवन में. इसे शायद सुन्नत कहते हैं. क्या यह सवाल नहीं उठता कि मासिक धर्म का शुरू हो जाना ही काफी है क्या यह तय करने को कि लड़की शादी के काबिल हो गयी? एक 10 साल की बच्ची जब pregnant हो जाएगी तो क्या उस का शरीर इस pregnancy को सम्भाल पायेगा? प्रसव को झेल पायेगा? क्या एक दस साल की बच्ची ने इतना जीवन देख लिया होता है कि वो अपने बच्चे को सम्भाल पाए? क्या नौ साल की बच्ची की शादी कर के उस का बचपन तो नही छीना जा रहा? ऐसी शादी में बच्ची की मर्ज़ी को उस की मर्ज़ी माना जा सकता है क्या? फिर यदि उस का पति बड़ी उम्र का हुआ और जवानी में ही यदि वो विधवा हो गयी तो क्या यह शादी एक सही फैसला माना जा सकता है? क्या पैगम्बर साहेब की यह शादी अनुकरणीय है? ऐसे ढेर से सवाल खड़े होते हैं.

शायद मुस्लिम समाज इस मुद्दे के अंतर-निहित सवालों को समझता है. और इन सवालों से बचने के लिए ही बवाल किया गया है.

यदि इस्लाम वैज्ञानिक मज़हब है तो इस्लाम को तो हाथ पसार सवाल उठाने वालों का स्वागत करना चाहिए कि आओ, जो भी शंका हो, जवाब हम देंगे.
लेकिन ज़मीनी हकीक़त तो बिलकुल उलट है. तर्क तो दूर की बात, टिपण्णी ही क्यों की?

मेरे ख्याल है कि इस दुनिया के हर इंसान को किसी भी विषय-व्यक्ति पर सोचने का, टीका टिपण्णी करने का हक़ है. हमें खुद की सोच को ही दुरुस्त नहीं करना होता बल्कि दूसरों की सोच दुरुस्त हो इस का भी ख्याल रखना होता है. एक सड़क जिस पर सब ग़लत- शलत कारें चला रहे हों, आप ड्राइव करना पसंद करेंगे? पता नहीं कब कौन ठोक दे. सड़क पर चलना तभी सुरक्षित है यदि सिर्फ आप ही नहीं, दूसरे लोग भी गाड़ी सही-सही चलायें. यह सिर्फ़ मिसाल है. समझाने के लिए. किसी धर्म पर कोई टिपण्णी नहीं है.

यह तर्क भी सही नहीं है कि तुम्हें क्या हक़ है हमारे नबी, हमारे अवतार, हमारे भगवान, हमारे गुरु के बारे में कुछ भी कहने का. हक़ हमें बुनियादी है. कुदरती है. संवैधानिक है. फ्री थिंकिंग और फ्री एक्सप्रेशन एक फ्री समाज की बुनियादी ज़रूरत है.

एक व्यंग्य अक्सर पढ़ता हूँ. एक कुत्ते को गली से उठा कर राज महल में ले जाया गया. वो कुछ समय राज महल में रहा लेकिन फ़िर वापिस गली में आ गया. अब उस के साथी कुत्तों ने पूछा कि क्या हुआ? वापिस क्यों आ गया? तो उस कुत्ते ने जवाब दिया, " वहां राज महल में सब सुविधा थी. खाना पीना, सब बढ़िया. चिंता फिकिर नाहीं. बस दिक्कत एक ही थी. वहां भौंकने की आज़ादी नहीं थी.
यह व्यंग्य साधा गया है उन पर जो फ्री एक्सप्रेशन की डिमांड करते हैं, इस का समर्थन करते हैं.

लेकिन मैं इस कथ्य को दूसरे ढंग से लेता हूँ. मेरा मानना है कि यदि फ्री एक्सप्रेशन की आज़ादी नहीं तो सब सहूलतें बेकार हैं. मैं उस कुत्ते की कद्र करता हूँ जिस ने फ्री एक्सप्रेशन न मिलने पर राज महल को लात मार दी. जिस समाज में फ्री एक्सप्रेशन की आज़ादी नहीं, वहाँ फ्री थिंकिंग भी रुक जाएगी, वैज्ञानिकता थम जाएगी. फ्री एक्सप्रेशन से फ्री थिंकिंग stimulate होती है.

लेकिन यहाँ तो हर कोई दूसरे को कोर्ट कचहरी में खींच रहा है. ऐसे ही गेलीलिओ को खींचा गया था, ऐसे ही ब्रूनो को.....समय-चक्र ने इन को सही साबित किया. समय-चक्र ने इन को इंसानियत के हीरो साबित किया.

"मेरी भावना आहत हो गयी."
तो क्या करें भाई? आप अपनी भावनाओं को मजबूत बनाओ न.
आप Newton के काम के खिलाफ़, शेक्सपियर के नाटकों के खिलाफ़, मुंशी प्रेम चंद के लेखन के खिलाफ़, शिव कुमार बटालवी की कविताओं के खिलाफ़ जितना मर्जी बोलो, जितना मर्जी लिखो कोई तलवारें नहीं खींचेगी. लेकिन आप किसी भी तथा-कथित धार्मिक किताब, व्यक्ति के खिलाफ़ कुछ बोल दो, लिख दो तो मार-काट मच जायेगी. क्यों? सोचिये.

यह जो ईश निंदा, ब्लासफेमी कानून हैं, यह वैज्ञानिक सोच की राह में रोड़ा हैं. ईश की निंदा हो गयी. कैसे साबित करोगे? पहले साबित तो करो कि ईश है भी कि नहीं. ठीक वैसे ही जैसे तुम आलू, गोभी कोर्ट में दिखा सकते हो, छुआ सकते हो, वैसे ही.

ईश सिर्फ एक मान्यता है. मान्यता तो फिर ईश पर सवाल उठाने वालों की भी है. इन को क्यों मार देना? इसलिए चूँकि यह गिनती में कम हैं. भीड़ का गणित. सही हो न हो, सही ही माना जाता है चूँकि भीड़ मानती है.

नुपुर वाला मुद्दा, इस का एक दूसरा पहलू भी है. ऐसा भी लगता है कि जान-बूझ कर भी उछाला जा रहा है. भाजपा को वोट से मुस्लिम समर्थक दल हरा नहीं पा रहे. तो अब मुस्लिम और मुस्लिम समर्थक दल, भाजपा विरोधी दल गाहे-बगाहे सड़क पर उतर रहे हैं. यह सिलसिला शाहीन बाग़ से शुरू हुआ तो चलता ही जा रहा है. दिल्ली ने हिन्दू-मुस्लिम दंगे देखे. अब कानपुर ने. और कितने ही और शहरों ने भी. मुस्लिम हर हाल में भाजपा सरकार पर अपना दबाव बनाये रखना चाह रहे हैं. नुपुर वाला मुद्दा भी उसी सिलसिले की एक कड़ी प्रतीत हो रहा है. सही गलत से कोई मतलब नहीं. बस मुद्दा बनाये रखो.

लेकिन मैं अपने मुस्लिम भाईओं और बहनों से यह कहना चाहता हूँ कि आप को गैर मुस्लिम देख रहा है, नोटिस कर रहा है, उस का मुस्लिम के प्रति डर बढ़ता जा रहा है जो उसे मजबूर करता है मोदी की हजार गलतियाँ माफ़ कर के उसे ही सत्ता सौपने को.

तो मेरा संदेश है मुस्लिम मित्रो को और गैर-मुस्लिम मित्रों को भी, आज ज़माना इन्टरनेट का है. सब पलों में चेक हो जाता है. दीन- धर्मों को सब से बड़ा चैलेंज किसी व्यक्ति-विशेष से नहीं है बल्कि इन्टरनेट से है, सोशल मीडिया से है. अब चीज़ें छुपाई न जा सकेंगीं.

सो यह मरने-मारने की भाषा छोड़ दें. अपनी सोच में वैज्ञानिकता लायें. तार्किकता लाएं. ध्यान लाएं. समाधान लाएं.

और जो भी लिखा, यदि कहीं कुछ गलत लिखा हो तो ज़रूर बताएँ.

नमन
तुषार कॉस्मिक

Saturday 2 December 2023

वेज बिरयानी ???

यह एक मिथ्या नाम है. ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे वेज बिरयानी कहा जा सके। हम हिंदी में इसे पुलाव कहते हैं. पुलाव का मतलब मिश्रित सब्जियों के साथ पकाया गया चावल है। तो फिर इसे वेज बिरयानी क्यों कहा जा रहा है? इस्लामिक प्रभाव के कारण. मुस्लिम लोगों को चावल और मांस का मिश्रण बिरयानी बहुत पसंद होती है. उन्हीं के प्रभाव से पुलाव भी वेज बिरयानी बन गया है। इस तरह संस्कृति पर आक्रमण होता है। छोटे कदम। बड़े प्रभाव. 

आप कैसे जानते हैं, "अल्लाह हू अकबर"?

आप कैसे जानते हैं कि अल्लाह महान है, या अल्लाह महान है?

सबूत क्या हैं? अल्लाह ने कौन सी प्रतियोगिता लड़ी है? और किसके साथ? कैसी तुलना? किसके साथ? और उस तुलना के प्रमाण क्या हैं? कोई वीडियो? कोई ऑडियो?

Monday 27 November 2023

इस्लामिक कलमा पर मेरे प्राथमिक सवाल

यह है शुरूआती कलमा:--
“अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल है।”
There is no God but Allah Muhammad is the messenger of Allah
“मैं गवाही देता हुँ के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हुँ के हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के नेक बन्दे और आखिरी रसूल है।”
I bear witness that no-one is worthy of worship but Allah, the One alone, without partner, and I bear witness that Muhammad is His servant and Messenger.
“अल्लाह की ज़ात हर ऐब से पाक है और तमाम तारीफे अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है और किसी में ना तो ताकत है न बल, ताकत और बल तो अल्लाह ही में है, जो बहुत मेहरबान निहायत रेहम वाला है|”
Glory be to Allah and Praise to Allah, and there is no God but Allah, and Allah is the Greatest. And there is no Might or Power except with Allah.
सवाल:--
कैसे पता आप को कि अल्लाह के अलावा कोई और गॉड नहीं है? कैसे पता आप को कि मोहम्मद ही उस गॉड के मैसेंजर हैं? आप गवाही देते हैं. ठीक है. लेकिन आप की गवाही का आधार क्या है? आप के पास कोई ऑडियो, कोई वीडियो है? या कोई और सबूत है कि अल्लाह मियां मोहम्मद साहेब को अपना मैसेंजर बना रहे हैं? आप के पास सबूत जैसा क्या है कि जिन को आप अल्लाह कह रहे हैं, उन का नाम अल्लाह ही है? क्या सबूत है कि वही इकलौते गॉड हैं, वही इकलौते पूजनीय हैं, इबादत के लायक हैं? क्या पता एक से ज़्यादा अल्लाह या अल्लाह जैसी कोई हस्तियाँ हों? क्या पता कोई न ही हो? क्या पता कायनात स्वयं-भू हो? और उसे किसी की इबादत की कोई परवाह हो ही न? क्या पता कोई भी न हो, जिसे पूजा, इबादत की कोई ज़रूरत हो, या जिसे पूजा, इबादत से कोई फर्क पड़ता हो, या जिस की इबादत से हमारी कोई दुआ कबूल होती हो?
बस आप गवाही देते हैं. आप की गवाही का कोई मतलब, कोई आधार है? आप की गवाही के पीछे कोई सबूत, कोई सबूत जैसा सबूत है?
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Sunday 26 November 2023

Islamophobia is not a right Word. Start calling it ISLAMOFEAR

सबसे पहले ये समझें कि "फोबिया" क्या है.

किसी अनुचित कारण से डर लगना ही फ़ोबिया है। अकारण भय महसूस होना। किसी ऐसी चीज़ से डरना जो वास्तव में डरावनी नहीं है।

इस्लामोफोबिया.
इस शब्द से यह आभास होता है कि लोग किसी फोबिया से पीड़ित हैं। लेकिन यह एक मिथ्या नाम है. इस्लाम से डरने वाले लोगों के पास कारण हैं. उचित कारण. इस्लामी Text/Books, इस्लामी इतिहास, इस्लामी सैन्य और सांस्कृतिक आक्रमण। सदियों पुरानी मान्यताएं. अवैज्ञानिक दृष्टिकोण. मुसलमानों की सर्वोच्चता की अनुचित भावना। पूरी दुनिया में गैर-मुसलमानों के खिलाफ हिंसा।

यह इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब का युग है। चीजें ज्यादा दिनों तक छुपी नहीं रह सकतीं. लोग दिन-ब-दिन इस्लाम की हकीकत से वाकिफ होते जा रहे हैं। इसलिए डर है.

इस डर को "इस्लामोफोबिया" शब्द से दूर नहीं किया जा सकता। नहीं, इनकार मोड किसी की मदद नहीं करेगा। मुसलमान की भी नहीं. दरअसल, अक्सर यह कहा जाता है कि मुसलमान इस्लाम के पहले शिकार हैं।

इसलिए सबसे पहले हमें इस शब्द को, इस शब्द इस्लामोफोबिया फोबिया को छोड़ देना चाहिए और इसे ISLAMOFEAR कहना शुरू कर देना चाहिए और फिर हमें इस डर को हमेशा के लिए दूर करने के तरीके खोजने शुरू करने चाहिए।

++++++++++++++++

First, understand what Phobia is. A phobia is feeling fearful for some unreasonable reason. Feeling fear unreasonably. Fearing from something which is not fearful in fact. 

Islamophobia. The word,  it gives the impression that people are suffering from a phobia. But this is a misnomer. People fearing from Islam have reasons. Reasonable reasons. Islamic text, Islamic history, Islamic Military, and Cultural Invasions. Muslims aggressions. Age-old beliefs. Unscientific approach. Muslim's Unreasonable Feeling of Supremacy. Violence against Non-Muslims all over the World. 

This is an age of the Internet and the World Wide Web. Things cannot be concealed for a long time. People are becoming aware of the reality of Islam day by day. Hence the fear. 

This fear can not be washed away by the term Islamophobia. No. Denial mode shall not help anyone. Not even Muslims. In fact, it is often said that Muslims are the first victims of Islam. 

Hence first we should drop this word, this term i.e. Islamophobia phobia, and start calling it ISLAMOFEAR, and then we must start to find ways of removing this fear forever. 

Wednesday 22 November 2023

Religions are not belief systems. There is no system in these beliefs.

These are just superstitions.

Different sets of superstitions.

कला को वह मूल्य नहीं दिया गया जिसकी वह हकदार थी

कला को वह मूल्य नहीं दिया गया जिसकी वह हकदार थी। कला का अर्थ समाजशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान और साहित्य है.
यदि कला को उसका उचित मूल्य दिया गया होता, तो विश्व को युद्धों का सामना नहीं करना पड़ता।
धर्मों, पवित्र चीज़ों ने कला का स्थान ले लिया है। धर्मों के अनुसार लोगों को मूल्य दिये गये हैं। वे मूल्य जो आदिम, सदियों पुराने और समय-वर्जित हैं। वे मूल्य जो मूल्य कला से प्राप्त होने चाहिये थे. इसीलिए सामाजिक मूल्य विकसित नहीं हो रहे हैं जब कि अन्य विज्ञान विकसित हो रहे हैं और समाज को बदल रहे हैं।
इसलिए युद्ध हो रहे हैं.
तुम दर्शन (Philosophy) का मूल्य नहीं समझते।
दर्शनशास्त्र की समझ का उथलापन ही मनुष्य की लगभग हर समस्या का मूल कारण है।
लोग पवित्र पुस्तकें पढ़ते हैं। मुझे विश्व साहित्य में रुचि है.
लोग पवित्र पुरुषों में रुचि रखते हैं। मुझे वैज्ञानिकों और कलाकारों में दिलचस्पी है.
लोगों ने अपने जीवन मूल्य पवित्र पुरुषों और पवित्र पुस्तकों से प्राप्त किए हैं। मैंने अपने मूल्य जीवन और साहित्य से प्राप्त किये हैं. Arts has not been given the value that it deserves. Arts mean sociology, philosophy, psychology, political science, and literature, If arts had been given its due value, the World would not have been facing wars. Religions, the Holy shit has taken Arts place. People have been given values according to religions. Values that are Primitive, age-old, and time-barred. The values which have been derived from the Arts. That is why social values are not evolving as the other sciences are evolving and changing society. Hence the WARS.
People read holy books. I am interested in World Literature.
People are interested in Holy men. I am interested in Scientists and Artists.
People have derived their life values from Holy men and Holy books. I have derived my values from Life and Litrature

Indian should offer Jews to leave Israel and live in India

 यहूदियों की आबादी बहुत कम है. और हम भारतीयों को भारत में पहले से रह रहे यहूदियों से कोई दिक्कत नहीं है. और मेरे विचार से यहूदी एक बहुत अच्छी कौम है.

उन्हें भारत में रहने की पेशकश क्यों नहीं की जाती? क्यों न उन्हें प्रस्ताव दिया जाए, "इज़राइल छोड़ो और आओ और भारत को अपने निवास स्थान के रूप में स्वीकार करो।"
इस प्रकार, हम भारतीयों को भी उनकी वैज्ञानिक और तकनीकी मानसिकता से लाभ होगा। नहीं?

What is the meaning of "Cosmic" in my name Tushar Cosmic?

 My pen name is Tushar Cosmic.

I like this name. That is why I chose "Kuhoo Kosmic" for my younger daughter.
Do you know what the meaning of "Cosmic" is?
अहं ब्रह्मास्मि.

मुसलमान कश्मीरी हिंदुओं के लिए वही रुख क्यों नहीं अपना रहे जो वे फ़िलिस्तीनियों के बारे में कह रहे हैं?

वे यह क्यों नहीं कहते कि कश्मीरी हिंदुओं के घरों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है और उनकी महिलाओं के साथ मुसलमानों ने बलात्कार किया है और उनके पुरुषों को मुसलमानों ने मार डाला है?

Sunday 19 November 2023

इस्लाम को पहले बिंदु से ही खारिज कर देना चाहिए क्योंकि यह आलोचना करने की इजाजत नहीं देता।

यह मोहम्मद, क़ुरान और इस्लाम की आलोचना करने की अनुमति नहीं देता है। और जहां आलोचना करने की यह आजादी नहीं है, वहां कोई बहस नहीं हो सकती, कोई तर्क-वितर्क नहीं हो सकता। और कोई भी किसी बात को बिना बहस के तार्किक ढंग से कैसे स्वीकार कर सकता है.

यह हमास नहीं है, यह इस्लाम है

 भारत में मुसलमानों ने हिंदुओं के मंदिरों पर कब्जा कर लिया है, कश्मीरी हिंदुओं के घरों, संपत्तियों पर कब्जा कर लिया.

तो क्या हुआ?
क्या किसी मुसलमान ने हिंदुओं के पक्ष में कुछ बात की/कुछ किया?
कुछ नहीं।
अधिक सटीक रूप से कहें तो यह हमास नहीं है, यह इस्लाम है.

गाजा में भूमिगत सुरंगें एक दिन में नहीं बनाई जा सकतीं।

 स्थानीय नागरिकों को हमास के साथ सहमत होना चाहिए। तो उन्हें निर्दोष कैसे कहा जा सकता है? और क्या आपने एक भी फ़िलिस्तीनी को इज़राइल या दुनिया में कहीं भी मुसलमानों के हमलों की निंदा करते देखा है? यदि नहीं, तो वे अब दुनिया से मदद क्यों मांग रहे हैं?

एक आदमी को शादी करते समय या दफनाते जाते समय सबसे अच्छा दिखना चाहिए।

 एक आदमी को शादी करते समय या दफनाते जाते समय सबसे अच्छा दिखना चाहिए।

इसीलिए जब हमें यह समझ आता है कि हम अच्छे नहीं दिखते या अच्छा महसूस नहीं करते तो हम अपने प्रियजनों से भी मिलना नहीं चाहते।
लेकिन दूसरे को लग सकता है कि हम उससे इसलिए बचते हैं क्योंकि हम मिलना नहीं चाहते।
लेकिन वजह ये नहीं कि हम मिलना नहीं चाहते. इसका कारण यह है कि हमें लगता है कि हमारी शक्ल-सूरत या मानसिक स्थिति मिलने लायक नहीं है।

मुझे क्रिकेट से नफरत है

मुझे खेलों से प्यार है।लेकिन मुझे क्रिकेट से नफरत है.

बहुत कारण से।
एक तो इस खेल में प्रदर्शन को मापा नहीं जा सकता. यह संभावनाओं का खेल है. जिसने कल वर्ल्ड कप जीता, हो सकता है अगले दिन उसे हार मिल जाए. सच्चा खेल नहीं. शायद यही एक कारण है कि क्रिकेट फुटबॉल या किसी अन्य खेल की तरह विश्व खेल नहीं है। इसीलिए शायद क्रिकेट को अब तक ओलंपिक में नहीं लिया गया है.

मेरी नफरत का दूसरा कारण यह है कि मैं सभी संगठित, संस्थागत, भीड़ पैदा करने वाले धर्मों का विरोध करता हूं। और क्रिकेट तो मानो एक धर्म बन गया है. भारत में लोगों ने क्रिकेटरों के मंदिर बना रखे हैं. और उन्होंने क्रिकेटरों को भगवान कहना शुरू कर दिया है. Holy-shit

Tushar Cosmic

Sunday 22 October 2023

इजराइल-फ़लस्तीन-यहूदी-मुसलमान-ज़मीन-आसमान

बड़ी बहस है कि इजराइल की धरती यहूदियों की है या मुसलमानों की है. मुसलमान कहते हैं कि वो ज़मीन उन से छीन कर यहूदियों को दी गयी है. जब कि यहूदी उस ज़मीन पर अपना हक़ बताते हैं. ऐसा ही कुछ मामला कश्मीर का है. हिन्दू उस ज़मीन पर अपना पुराना हक़ जमाते हैं, जब कि इस वक्त ज़यादातर मुस्लिम रहते हैं वहाँ. तो हक़ किसका हुआ?

असल बात यह है कि किसी भी ज़मीन पर किसी का कोई हक़ नहीं है. धरती माता ने आज तक किसी के नाम कोई रजिस्ट्री नहीं की है. ज़मीन पर कब्जा खेती जब शुरू हुई तभी से है. वो कब्ज़ा कबीलों से ले कर मुल्कों तक फैला है और उस कब्जे के झगड़े पूरी दुनिया में हैं.

क्या हवा किसी एक की है, क्या दरिया किसी एक के हैं? वैसे दरिया भी बाँट लिए गए हैं. ऐसे ही धरती भी बाँट ली गयी है. बस चले तो हवा भी बाँट ली जाएगी और शायद आसमान भी. यह क्या बेवकूफी है? हम पशु-पक्षियों से भी बदतर हैं. इलाकों के लिए शायद वो भी इतना नहीं लड़ते जितना हम लड़ते हैं. हम उन से ज़्यादा समझदार हैं. हम में इन मुद्दों को लेकर तो कतई कोई झगड़ा होना ही नहीं चाहिए. लेकिन हमारी पीढ़ियां लड़ रही हैं. कबीले लड़ रहे हैं, गाँव लड़ रहे हैं. मुल्क लड़ रहे हैं.

सब से खतरनाक इस्लामिक कबीला है. हाँ, मैं इसे कबीला मानता हूँ. मुस्लिम उम्मा, पूरी दुनिया में चाहे बिखरी हो लेकिन यह अपने आप में अलग-थलग ही रहती है. यह बिखरी होने के बावजूद एक कबीलनुमा आबादी है. इस आबादी का बाकी दुनिया की सारी आबादी से झगड़ा है. अनवरत. इसे पूरी दुनिया को मुसलमान करना है. अपने जैसा झगड़ालू. अपने जैसा आदिम. इन का इतिहास सारे का सारा मार-काट से भरा है. आज भी जहाँ मुसलमान हैं, वहाँ शांति नाम की कोई चीज़ नहीं है जब कि मुसलमान खुद को अमन-पसंद बताते हैं. इन के इसी दावे की वजह से गैर-मुस्लिम "शांति-दूत" लिखते हैं इन को . खिल्ली उड़ाते हुए. चूँकि अक्सर खबर आती है, कि शांतिदूत ने फलां जगह बम्ब बाँध "अल्लाह-हू-अकबर" कर दिया, खुद तो फटा, साथ में कितने ही निर्दोष लोगों को और उड़ा दिया. और यह चलता ही आ रहा है. फिर भी इन को सारी दुनिया को मुसलमान करना है.

यह सब बड़ा ही संक्षिप्त लिखा है मैंने. अब क्या ऐसे समाज को कहीं भी रहने की इजाज़त मिलनी चाहिए? मेरा सवाल यह है कि मुसलमान को कश्मीर छोड़ो दुनिया के किसी भी कोने में रहने की इजाज़त होनी चाहिए क्या? सोचिये. सवाल यहाँ यह तो होना ही नहीं चाहिए कि ज़मीन के किस टुकड़े पर कौन कब काबिज था या है. धरती लाखों वर्षों से है. इंसान हज़ारों वर्षों से और इंसानी तथाकथित सभ्यता उस से भी कम समय से है. धरती पर किस का, कैसा कब्जा? कब्जा पहले पीछे होना कोई कसौटी होना ही नहीं चाहिए कि किस भू-भाग पर कौन रहेगा?

ऐसे ही आरएसएस (संघ) वाले भी हिन्दू-भूमि के गीत गाते है. कौन सी भूमि है हिन्दू भूमि है? भूमि ने कभी कहा है की वो हिन्दू भूमि है? यह सब बस कथन हैं. कोई भूमि न तो हिन्दू भूमि है, न मुस्लिम, न यहूदी. भूमि सिर्फ भूमि है.

फिर किस को किस भूमि का अधिकार होना चाहिए? जिस समाज की मान्यताएं ही आदिम हों, हिंसक हों, उसे कैसे किसी भी भू-भाग का अधिकार दे दिया जाए?

दीन-धर्म-मज़हब सिर्फ़ दीन -धर्म-मज़हब नहीं हैं. एक जैसे नहीं हैं. उन में ज़मीन आसमान का फर्क है. इन में इस्लाम सब से ज़्यादा हिंसक है, विस्तारवादी है. तर्क की कोई गुंजाइश ही नहीं. हथियार ही इस का तर्क है. ज़्यादा तर्क करने वाले को मार-काट दिया जाता है. सवाल उठाने की कोई आज़ादी नहीं. आप क़ुरान, मोहम्मद और इस्लाम की आलोचना नहीं कर सकते. ख़ास कर के इस्लामिक समाजों में. और जहाँ आज़ादी नहीं, जहाँ विचार के पैरों में बेड़ियाँ डाल दी जाएँ, जहाँ विचार को हथकड़ियां लगा दी जाएँ, वो कैसे दौड़ेगा? तो यह समाज बस जकड़ा पड़ा है. पिछले १४०० सालों से. और पूरी दुनिया को अपने जैसा बनाना चाहता है. इस समाज को इजराइल, फ़लस्तीन, कश्मीर छोड़ो दुनिया के किसी भी कोने में नहीं होना चाहिए. आज दुनिया में जो भी मुद्दे हैं, झगड़े हैं उन में ज़्यादातर मुसलमानों की वजह से हैं. भारत में भी ज़्यादातर झगड़े-झंझट-इन्ही की वजह से हैं. भारत की आधी ऊर्जा मुसलमानों के मुद्दों में ही उलझी पड़ी है. अनवरत.

और मुसलमानों की बड़ी आबादी है. क्या किया जाये? इन को समन्दर में डूबा नहीं सकते? हिटलर की तरह हवा में उड़ा नहीं सकते. तो फिर क्या किया जाये?

एक तरीका यह है कि दुनिया में एक ऐसा मुल्क बनाया जाये, जहाँ एक्स-मुस्लिम बसाये जा सकें. बहुत लोग अंदर-अंदर इस्लाम छोड़ चुके हैं, लेकिन चूँकि रहना उन को मुस्लिम समाजों में है मज़बूरी-वश, तो वो मुसलमान ही बने रहते हैं. इन को वहां से निकाला जाना चाहिए. अलग मुल्क दिया जाना चाहिए.

दूसरा, पूरी दुनिया में De-Islamization प्रोग्राम चलाये जाने चाहिए. असल में तो किसी भी बच्चे को किसी भी तरह की धार्मिक शिक्षा दी ही नहीं जानी चाहिए. यह अनैतिक है. यह गैर-कानूनी होना चाहिए. सब मदरसे, सब धार्मिक किस्म के स्कूल बंद होने चाहिए. सब स्कूलों में वैज्ञानिक सोच को विकसित करना सिखाया जाना चाहिए.

तीसरा, गैर-मुस्लिम समाज को तेजी से इस्लामिक साहित्य पढ़ाया जाना चाहिए। गैर-मुस्लिम को पता होना चाहिए कि इस्लामिक हिंसा इस्लामिक साहित्य से आती है. जब एक समाज का साहित्य ही नफरत सिखा रहा हो, हिंसा सिखा रहा हो, आदिम कबीलाई किस्म की मान्यताएं सिखा रहा हो तो वो बदलते ज़माने के साथ कैसे तालमेल बिठा पायेगा? लेकिन गैर-मुस्लिमों में से बहुत लोग यह सब नहीं समझते. वो आज भी गंगा-जमुनी तहज़ीब के गीत गाते हैं, या ईश्वर के साथ अल्लाह को जोड़ते है. जो कि सरासर झूठ है. अल्लाह के साथ किसी को नहीं जोड़ा जा सकता, ऐसा इस्लाम कहता है खुद. यह शिर्क है, जो गुनाह है. यह सब समझना होगा गैर-मुस्लिम को. पूरी दुनिया को इस्लामिक खतरों को समझना होगा और इस के लिए युद्ध स्तर पर काम करना होगा.

और मुसलामानों को समझना होगा कि तुम्हारी समस्याओं की जड़ तुम खुद हो, तुम्हारा इस्लाम है. जिसे तुम अपना सब से कीमती आभूषण समझते हो, वही तुम्हारी बेड़ियाँ हैं, हथकड़ियां हैं, वही तुम्हारी जेल है।

आज सोशल मीडिया भरता जा रहा है, फलस्तीनी बच्चों की मौतें दिखाने के लिए. इजराइल ने मार दिया. क्या मुसलमान ने जो आज तक हिंसा, कत्लो-गारत की है पूरी दुनिया में या अभी भी जो कर रहा है जो, वो नहीं देखनी-दिखानी चाहिए? जिन का फलसफा ही यह कि इस्लाम को पूरी दुनिया पर ग़ालिब होना है, उन की ज़्यादतियों को नहीं दिखाया जाना चाहिए क्या? "तुम करो तो रास लीला, हम करें तो करैक्टर ढीला." तुम मारो तो यह दीन, और सामने वाला मारे तो यह ज़ुल्म?

तो वक्त आ गया है, जिस तरह से साम-दाम-दंड -भेद से लोगों को मुसलमान किया गया है, वैसे ही इन को इस्लाम से बाहर निकाला जाये, अन्यथा दुनिया में हिंसा थमेगी नहीं.

या फिर गैर-मुस्लिम सब किसी और सुन्दर ग्रह पर शिफ्ट हो जाएँ और मुसलामानों को यहीं छोड़ दें. लो बना लो इस धरती को मुसलमान. फिर कुछ सालों बाद जब मुसलमान आपस में लड़ मरें तो फिर वापिस इस धरती पर भी कुछ गैर-मुस्लिम लोग आ बसें.

यह हैं कुछ सुझाव. बाकी आप सुझाएं...

नमन.
तुषार कॉस्मिक
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Saturday 21 October 2023

पहले पेट फाड़ा, फिर गर्भवती मां को मार दी गोली, 20 बच्चों को जिंदा जलाया... हमास की क्रूरता सुन रो पड़ेंगे!

Curated By प्रियेश मिश्र | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 12 Oct 2023, 10:02 pm

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इजरायल ने हमास के आतंकवादियों की बर्बरता को दुनिया के सामने रखा है। हमास के आतंकवादियों ने इजरायल में हैवानियत का वो प्रदर्शन किया, जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप जाएगी। उन्होंने बच्चे और बूढों तक को नहीं बख्शा। कई इजरायली मासूम बच्चों के सिर काटकर हत्या कर दी।

Hamas cruelty
इजरायल में हमास की क्रूरता
तेल अवीव: हमास ने इजरायल पर हमले के दौरान जो अत्याचार किए हैं, उन्हें सुनकर ही आपकी आंखें भर जाएंगी। फिर सोचिए, जिन पर ये बीती है, उन्हें कैसा लगा होगा। हमास ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमले के दौरान यह नहीं देखा कि सामने कोई बच्चा है, बूढ़ा है, अपंग है, महिला है या कोई पुरुष। उसके लिए हर एक इंसान सिर्फ इजरायली और यहूदी था, जिसकी हत्या करना उनके लिए किसी मेडल से कम नहीं था। हमास के आतंकवादियों के सामने जो कोई आया, उन्होंने उसे मार दिया। इजरायली नागरिकों की हत्या सिर्फ गोलियों से नहीं की गई। बल्कि, कई हत्याओं में चाकूओं और आग का भी इस्तेमाल किया गया। ताकि, उनकी क्रूरता की गूंज दुनिया में सुनाई दे। अब हमले के छह दिन बाद इजरायल में हमास का क्रूरता के ऐसे कृत्य सामने आए हैं, जो पूरी मानव जाति के लिए किसी कलंक से कम नहीं हैं।

गर्भवती महिला का पेट फाड़ा, भ्रूण को मरने के लिए छोड़ा


इजरायली न्यूज चैनल i24 News के अनुसार, इजरायल की वॉलेंटियर सिविल इमरजेंसी सर्विस जका के कमांडर योसी लैंडो ने बताया कि एक घर की तलाशी के दौरान हमने एक गर्भवती महिला को फर्श पर पड़े देखा। जब हमने महिला को पलटा तो उसका पेट खुला हुआ था। गर्भनाल से एक अजन्मा बच्चा जुड़ा हुआ था, जिस पर चाकू से वार किया गया था। मां के सिर में गोली मारी गई थी।

माता-पिता और बच्चों का हाथ बांधकर जिंदा जलाया


योसी लैंडो ने बताया कि एक अलग घटना में दो माता-पिता के हाथ पीछे बंधे हुए थे। उनके सामने दो छोटे बच्चे थे, उनके भी हाथ पीछे बंधे हुए थे। उनमें से प्रत्येक को जला दिया गया था। जब माता-पिता और बच्चे जल रहे थे, उस दौरान आतंकवादी बैठे थे और खाना खा रहे थे।

मां और बच्चे को एक गोली से मारा, 20 बच्चों को जलाया


एक अलग घटनाक्रम में जका साउथ के कमांडर योसी लैंडो ने बताया कि मैंने एक मां को अपने बच्चे को पकड़े हुए देखा। एक गोली उन दोनों को एक साथ पार कर गई थी। मैंने 20 बच्चों को एक साथ देखा, जिनके हाथ पीछे की ओर बंधे थे और उन्हें गोली मार दी गई थी। इसके बाद उनको एक साथ जला दिया गया था।

40 इजरायली बच्चों की हत्या की


हमास के आतंकवादियों ने कफर अजा में एक इजरायली समुदाय पर 70 आतंकवादियों ने हमला किया। इन हमलों का शिकार इस समुदाय में रहने वाले 40 बच्चे बनें, जिनमें से कई की उम्र चंद महीने थी। इजरायली मेजर जनरल इताई वेरुव ने कहा कि जब हमने अपने घरों में मारे गए निवासियों के शवों को इकट्ठा करने के लिए दरवाजा खोला तो देखा कि माता-पिता, बच्चों और युवाओं को उनके बिस्तरों, प्रोटेक्शन रूम में, डाइनिंग रूम में, उनके बगीचों में मार दिया गया। उन्होंने कहा कि यह युद्ध नहीं है, यह युद्धक्षेत्र भी नहीं है। यह नरसंहार है। उन्होंे कहा कि कुछ पीड़िचों का सिर काट दिया गया। मैंने ऐसा कभी नहीं देखा, मैंने 40 साल तक सर्विस की है।

हमास ने आरोपों का किया खंडन


हमास ने इस बात से इनकार किया है कि उसके आतंकवादियों ने बच्चों का सिर काटा या महिलाओं पर हमला किया। आतंकवादी समूह के प्रवक्ता और वरिष्ठ अधिकारी इज़्ज़त अल-रिशेक ने बुधवार को आरोप को "मनगढ़ंत और निराधार आरोप" बताया।

https://navbharattimes.indiatimes.com/world/uae/eye-witness-recounts-horrific-details-of-hamas-cruelty-on-pregnant-women-children-and-innocent-israeli-civilians/articleshow/104379580.cms?fbclid=IwAR2-ptXyHwq43CvDLiHTQ58qyJIdp750YnQoiNyusOxEi5hkBR7rzhI3YQI