रावण को मारने के बाद जब हनुमानजी भरत से मिलते हैं और उन्हें बताते हैं कि राम आ रहे हैं तो भरत ने कहा कि हनुमान जी को कुछ उपहार देंगे.
भरत, "देवो वा मानुषो वा त्वमनुक्रोशादिहागतः ।
प्रियाख्यानस्य ते सौम्य ददामि ब्रुवतः प्रियम् ।। ६.१२८.४३ ।।
गवां शतसहस्रं च ग्रामाणां च शतं परम् ।
सुकुण्डलाः शुभाचारा भार्याः कन्याश्च षोडश ।। ६.१२८.४४ ।।
हेमवर्णाः सुनासोरूः शशिसौम्याननाः स्त्रियः ।
सर्वाभरणसम्पन्नाः सम्पन्नाः कुलजातिभिः ।। ६.१२८.४५ ।।
निशम्य रामागमनं नृपात्मजः कपिप्रवीरस्य तदद्भुतोपमम् ।
प्रहर्षितो रामदिदृक्षया ऽभवत् पुनश्च हर्षादिदमब्रवीद्वचः ।। ६.१२८.४६ ।।
अर्थात हे कोमल प्राणी! तुम एक दिव्य प्राणी हो या एक इंसान हो, जो करुणा करके आये हो? तुमने जो मुझे इतनी बढ़िया खबर दी है, उसके बदले में मैं तुम्हें एक सौ हजार गाय, एक सौ सबसे अच्छे गांव और पत्नियों बनाने के लिए16 स्वर्ण रूपी अच्छे आचरण की कुंवारी कन्याएं दूंगा. इन लड़कियों के कानों में सुंदर छल्ले हैं, इनकी नाक और जांघें सुंदर हैं, ये चाँद के रूप जैसी रमणीय हैं और अच्छे परिवार में पैदा हुई हैं."
हनुमान जी के लिए 16 कुंवारी कन्याएं!
और ऐसा लगता है वहां राजा के पास असंख्य गुलाम लड़कियों थीं जो किसी को भी दी जा सकती थीं.
महान रघुकुल!!
वाल्मीकि रामायण/युद्ध कांड /125/44-45
Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Saturday, 21 April 2018
दिल्ली में सीलिंग
राजा गार्डन से धौला कुआं को चलो तो शुरू में ही सड़क के दोनों तरफ मार्बल की मार्किट है. ये दूकान-दार कोई छोटे व्यापारी नहीं हैं. करोड़ों के मालिक हैं. लाखों का धंधा रोज़ करते होंगे. इन्होनें अपनी दुकानों के आगे सैंकड़ों फुट जगहें घेर रखीं थीं. मार्बल का काम ही ऐसा है. जगह चाहिए.
आज ही पढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी मोनिटरिंग कमिटी के सदस्य वहां से गुज़र रहे थे. एकाएक उनका ख्याल बन गया. आधी मार्किट सील कर दी. कुछ दंगा-वंगा भी हुआ. कोई दुकानदार गिरफ़्तार भी हो गए.
अब ऐसे लोगों के साथ खड़े हैं सब के सब नेता. केजरीवाल भी.
एक दम बकवास बात है.
मेरा मानना है कि जो इस धरती पर आ गया, उसे रहने की जगह मिलनी ही चाहिए और किराए का कांसेप्ट ही खत्म होना चाहिए. असल में तो प्रॉपर्टी का कांसेप्ट ही खत्म होना चाहिए. लेकिन वो बहुत दूर की बात है अभी. कम से कम गरीब लोगों को बक्श दिया जाना चाहिए या फिर उन्हें तरीके के घर मिलने चाहियें और वो भी मुफ्त. लेकिन ऐसे अमीर, ऐसे करोड़ों अरबों के मालिकों द्वारा ज़मीन की घेरा-घारी न रोकेंगे तो अराजकता ही फैलेगी और दिल्ली में अराजकता ही है. जिसका जहाँ मन करता है, जगह घेर लेता है.
पीछे खबर थी कि छतरपुर की तरफ सैंकड़ों बीघे ज़मीन घेर ली गई. बड़े नेता और धार्मिक नेता शामिल थे. राधा-स्वामी सत्संग वालों ने भी ज़मीन घेर रखी थी. आलीशान बिल्डिंग बना रखीं थी. तोड़ दीं गयीं, फिर भी कब्जा नहीं छोड़ रहे थे. अब पता नहीं क्या स्थिति है.
तो भैये, समझ लीजिये. ये बिक गई है गौरमिंट. सारे मिल के तूचिया बना रहे हैं हमें. बस. कुछ नहीं होना इनमें से किसी से. सब ऐसे भगवान भरोसे है, जो पता नहीं है भी कि नहीं, पता नहीं जिसे हम से कोई मतलब है भी कि नहीं.
नमन....तुषार कॉस्मिक
केजरीवाल: एक लघु समीक्षा
जब केजरीवाल ताज़े-ताज़े उभर रहे थे, शायद २०१२ की बात है, तब मैंने एक लेख लिखा था. टाइटल था, "मूर्ख केजरीवाल." और यकीन जानिये कदम-दर-कदम केजरीवाल ने मुझे सही साबित किया है.
ताज़ा मिसाल उनके माफ़ीनामे हैं, जो उन्होंने मानहानि के मुकद्दमों से पीछा छुड़ाने के लिए दिए हैं. कतई अपरिपक्व हैं केजरी सर. बस लगा दिए आरोप. बिना किसी पुख्ता सबूत के. सुनी-सुनाई उड़ा दी. ऐसा तो मैं फेसबुक पर लिखते हुए भी नहीं करता. ज़रूरत हो तो थोड़ा रिसर्च कर लेता हूँ. रिफरेन्स भी खोज के डाल देता हूँ. मुझे पता है कि सवाल उठेंगे. सवाल उठेंगे तो जवाब भी होने चाहियें. और यह साहेब राष्ट्र की राजनीति बदलने चले थे. जनाब को अभी बहुत सीखना है.
असल में तो यह केजरीवाल की ही बेवकूफी है कि आज मोदी विराजमान है. कांग्रेस के नीचे से सीट खींच ली, जिसे झट से भाजपा ने लपक लिया. लाइफ-टाइम अवसर था. संघ नब्बे सालों में वो न कर पाया जो केजरी-अन्ना ने उसे करने का मौका दे दिया.
सो कुल मिला कर मेरा मानना यह है कि राष्ट्र केजरीवाल की मूर्खताओं का नतीजा भुगत रहा है.
दूसरा उनका कमजोर पक्ष है, अपने साथियों को साथ लेकर न चलना. मैंने सुना-पढ़ा उनका डिफेन्स. "लोग आते-जाते रहते हैं. जितने गए हैं, उनसे ज़्यादा आ गए हैं." लेकिन सब बकवास है. उनके अधिकांश शुरुआती साथी साथ छोड़ चुके हैं. कुछ तो कमी होगी साहेब में. मैं आज भी दीवाली पर उन सब मित्रों को खुद मिलने जाता हूँ, जो पूरा साल मुझे जुत्ती नहीं मारते. बीवी मुझे कोसती रहती है, "ये एकतरफ़ा इश्क पालने से क्या फायदा?" लेकिन मैं ढीठ. जब तक सामने वाला मुझे घर से भगा नहीं देगा, मैं रिश्ता खत्म नहीं मान सकता. इडियट हूँ न.
खैर, मुझे अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि राष्ट्र को केजरीवाल के बेहतरीन वर्ज़न की ज़रूरत है.
नमन...तुषार कॉस्मिक
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