कृष्ण। बड़े पूज्य हैं तथा कथित हिन्दुओं के. लेकिन पूजनीय हैं नहीं. चंद सेकंड में साबित करूंगा. किस का साथ दे रहे थे महाभारत में कृष्ण? पांडवों का. पांडवों में सब से बड़ा भाई युधिष्ठिर, धर्मराज युधिष्ठिर. जानते हैं वो जुए में अपना राज्य, अपने भाई, अपनी बीवी, खुद अपने आप को भी हार गया था. ऐसा भयंकर जुआरी. आज एक गंजेड़ी, भंगेड़ी, परले दर्जे का नशेड़ी भी इतना होश रखता है कि बीवी जूए पर लगाने की वस्तु नहीं है लेकिन ये श्रीमान तो धर्मराज थे. और कृष्ण, अवतारी कृष्ण इन धर्मराज के बंधू हैं, सखा हैं, सहाई हैं. द्रौपदी के अपमान का दोषी तो धर्मराज युधिष्ठिर था, न वो दांव पर द्रौपदी को लगाता न दुशासन और दुर्योधन उस का अपमान कर पाते. भीम को भी सारा गुस्सा युधिष्ठिर पर उतारना था. और महाभारत यदि लड़नी ही थी तो पांडवों में ही एक दुसरे के साथ लड़ी जानी चाहिए थी चूँकि युधिष्ठरि न सिर्फ द्रौपदी बल्कि बाकी भाइयों को भी जुए में हार गया था. भीम और बाकी पांडवों का पहला गुस्सा युधिष्ठिर के खिलाफ होना चाहिए थे. कौरवों पर गुस्सा तो बाद की बात थी. लेकिन कृष्ण यह सब नहीं समझाते. कृष्ण कौरवों के खिलाफ भिड़ा देते हैं पांडवों को. कुल नतीजा यह है कि न तो युधिष्ठिर कोई धर्म राज हैं और न ही उन का साथ देने वाले कृष्ण कोई अवतार। और पूज्य तो कतई नहीं.
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