Do you believe that Loving is a higher, upper stage of liking? First, we like someone, and then, if we go deeper, we may start loving someone. But it is not always like that. Sometimes it may be the opposite. For example, you may love one of your children but not like her. Your love for her is the love of a father. But her erratic behavior, her irresponsible conduct, her egoistic and insulting body language.......You might not like it, You might even hate it. So that is the difference. Love, it is there, but liking her...no. Not all. That is the difference. Just an example.
Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Saturday, 16 December 2023
Thursday, 14 December 2023
Cease-fire
हमास फिलिस्तीन है. फिलिस्तीन इस्लामिक है. इस्लाम हर गैर-मुस्लिम के खिलाफ है चाहे वह यहूदी हो, हिंदू हो या कोई और। हम इन सबके ख़िलाफ़ हैं. हम इजराइल के साथ हैं. हम भारतीय हैं. हम गैर मुस्लिम भारतीय हैं.
संघर्ष विराम. लेकिन इज़रायली बंधकों की वापसी की गारंटी कौन लेता है? इजराइल पर दोबारा हमला न हो इसकी गारंटी कौन लेता है?
Hamas is Palestine. Palestine is Islamic. Islam is against every Non-Muslim be it Jews, Hindus, or anyone else. We are against all this. We are with Israel. We are Indians. We are Non-Musim Indians.
Cease-fire. But who takes the guarantee of the return of the Israeli hostages? Who takes the guarantee of no attack on Israel again?
Sunday, 10 December 2023
नेकी कर और जूते खा
हम ने किताबों में पढ़ा, फिल्मों से सीखा कि दूसरों की मदद करो. इंसान ही इंसान के काम आता है, काम आना चाहिए.
मैंने भी ११०० से ज़्यादा लेख लिखे हैं. क्यों लिखे हैं? इंसान की, इंसानियत की बेहतरी के लिए. वैसे भी जीवन में कोशिश की है हमेशा कि जितनी भी मेरी तरफ से किसी की मदद हो सकती हो, हो जाए.
अक्सर कहते भी हैं हम कि इंसानियत ही सब से बड़ा धर्म है. लेकिन पीछे कुछ समय से मेरी राय बदलती जा रही है.
हमारी सभ्यता सिर्फ दिखावा है. ज़रा सी परत खुरचो तो नीचे जंगली जानवर निकलता है. हमारे शहर सिर्फ कंक्रीट के जंगल हैं. इंसान सिर्फ अपना स्वार्थ समझता है, अपनी वक्ती ज़रूरत समझता है, अपनी भूख समझता है, अपनी प्यास समझता है. नाक से आगे देखने, सोचने की उस की क्षमता बहुत कम होती है. अपने और अपने परिवार से आगे उस की आँख बहुत कम देख पाती है. बड़ी-बड़ी मीठी-मीठी बातें सिर्फ ढकोसला है, छलावा है, मुखौटा है, उस की गंदगी, उस का मतलबी चेहरा छुपाने को.
अक्सर सुनता था, पढता था कि कोई किसी को छुरा मारता रहा, जनता देखती रही, किसी ने रोका नहीं, लुटेरा लूट कर रहा था सरे-राह, लोग अपने रस्ते चलते रहे. कोई बलात्कार हुआ, लोगों ने देखा लेकिन कोर्ट तक कोई गया नहीं गवाही देने. बड़ा अजीब लगता था. लानते भेजने को मन करता था ऐसे लोगों को. लेकिन अब लगता है कि जनता सही है, समझदार है. मेरे जैसे लोग मूर्ख हैं.
मैं प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ. डीलर बदनाम हैं कि हेरफेर करते हैं. लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि हमारे ग्राहक ही सब से बड़े हेर-फेरी मास्टर होते हैं. महीनों किसी एक डीलर से बंधे रहेंगे, उस से दिन-रात एक करवा लेंगें और फिर बिना किसी वजह से उसे ड्राप कर देंगे और उस की दिखाई हुई डील किसी और के ज़रिये ले लेंगे या डायरेक्ट ले लेंगे ताकि डीलर को कमीशन न देनी पड़े.
अभी मोहल्ले में दो परिवारों का झगड़ा हो रहा था. दुनिया देख रही थी. जिस परिवार की गलती थी, मैंने सब के सामने खुले-आम विरोध किया. मेरे कहने पर मोहल्ले के बीसियों लोगों ने लिखित गवाही दी. बाद में जानते हैं क्या हुआ? जिस परिवार ने बिना गलती के जूते खाये थे, उस ने खुद माफी मांग ली और हर्ज़ाना भी दे दिया. और हम सब को बना दिया झूठा, बेवकूफ और दोषी परिवार की नज़र में दुश्मन. यह हुआ मदद का नतीजा, इंसानियत का नतीजा.
इंसानियत किस के लिए दिखाओ? इंसान के लिए? जो खुद एक नंबर का जानवर है. नहीं, नहीं, जानवर से भी गया बीता है. न बाबा न. अब तो यही सीखा है कि कभी किसी की मदद न करो, खुद को तो ज़रा सा भी खतरे में डाल कर न करो. या करो तो फिर यह समझ कर करो की जिस की मदद कर रहे हो, वो तुम्हारी मदद तो क्या करेगा बल्कि तुम्हें छोड़ अपने दुश्मन से संधि कर के तुम्हें चूतिया बना देगा, तुम्हें मरवा देगा.
Moral of the Story :-
उड़ता तीर मत पकड़ो.
लंगड़े घोड़े पर दांव मत लगाओ.
किसी के फ़टे में टांग न अड़ाओ.
अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता.
तुषार कॉस्मिक
Saturday, 9 December 2023
सही परवरिश
सही परवरिश यह है कि बच्चों को मज़बूत बनाएं.
मैं अक्सर कहता हूँ, "औलाद और शरीर छित्तर मार कर के पालो तो ही सही रहेंगे."
तुषार कॉस्मिक
Friday, 8 December 2023
What is this bullshit?
Left, Right.
जन्नत और दोजख
इस्लाम में जन्नत और दोजख की स्पष्ट अवधारणा है।
गज़वा-ए-हिन्द' ~~ Gazwa-E- Hind
यह वर्णन किया गया था कि अल्लाह के दूत (ﷺ) के मुक्त गुलाम थावबन ने कहा:
नुपुर शर्मा
यह मुद्दा इन दिनों फिर से महत्वपूर्ण इसलिए है चूँकि "गर्ट विल्डर" ने नेदरलॅंड्स का चुनाव जीत लिया है. तो क्या? उस से क्या सम्बन्ध? संबंध है. यह एकमात्र ऐसा राजनेता था जिसने नूपुर शर्मा का साथ दिया था, उस वक्त साथ दिया था जब कि नूपुर शर्मा की अपनी पार्टी ने उसे निकासित कर दिया था.
खैर.
जो भी नुपुर ने कहा था, वो रहमानी के जवाब में कहा था.
और
जो कहा था वो कुछ भी मन-घडंत नहीं था. पैगम्बर साहेब की निंदा तो तब होती जब नुपुर ने कुछ ऐसा बोला होता जो इस्लाम मानता न होता. इस्लामिक ग्रन्थों में लिखा है कि पैगम्बर साहेब ने हज़रत आईशा से जब शादी की तो वो 6 साल की थीं. जब जिस्मानी रिश्ता बनाया तब वो 9 साल की थी. इसी बात को श्रीमान जाकिर नायक ने भी तसदीक किया है.
लेकिन नुपुर शर्मा ने बोल दिया तो उसे मार दिया जाना चाहिए!
क्यों?
नुपुर शर्मा ने नेगेटिव सेंस में बोला शायद इसलिए. ठीक है, तो आप इसी मुद्दे को पॉजिटिव कर के बता दें. बता दीजिये कि नुपुर कहाँ ग़लत है. और पैगम्बर साहेब ने जो किया वो कैसे सही है, किन विशिष्ट हालात में ऐसा किया और वो कैसे अनुकरणीय है.
बस, नुपुर को टांग दो.
टांग भी दिया उस के पुतले को.
नुपुर को मार दो.
मार भी दिया नुपुर नाम की एक बेगुनाह औरत को बांगला देश में. पहले बलात्कार किया, फिर मार के, लाश खेत में फेंक दी. मात्र इसलिए चूँकि उस का नाम नुपुर था.
होना क्या चाहिए था?
होना यह चाहिए था कि यदि नुपुर की बात गलत लगी तो सब से पहले यह देखना था कि वो ग़लत है भी कि नहीं. तथ्यात्मक तौर पर.
लेकिन जैसा कि अब पता पड़ रहा है कि बात तथ्यात्मक रूप में गलत नहीं थी.
तो फिर नुपुर ने जैसे कहा, वो देखना था कि किन हालात में कहा, वो गलत था या सही. तो वो भी गलत प्रतीत होता नहीं. चूँकि बहस में शिवलिंग को भी कोई सम्मान नहीं दिया जा रहा था, तो तैश में आकर जवाब में नुपुर की तरफ से यह कथन आया.
फिर यह देखना चाहिए था कि उस कथन को चाहे नुपुर ने नेगेटिव ढंग से कहा लेकिन पैगम्बर साहेब की वो शादी पॉजिटिव काम है क्या, अनुकरणीय है क्या? जैसा मैंने ऊपर लिखा है, इस का जवाब भी मुस्लिम' को ही देना था. लेकिन मुस्लिम ने ऐसा नहीं किया. मुस्लिम ने टिपण्णी कर ने वाली के खिलाफ़ झंडा-डंडा बुलंद कर दिया.
इस से क्या प्रतीत होता है?
ऐसा लगता है कि मुस्लिम हज़म ही नहीं कर पाए कि यह बात Out हो गयी. मुस्लिम इस बात को झुठलाते हुए प्रतीत होते हैं.
मुस्लिम इस शादी का औचित्य साबित करने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हैं.
और फिर दुनिया के किसी भी विषय पर, व्यक्ति पर तार्किक रूप से क्यों सोचा नहीं जाना चाहिए? पैगम्बर साहेब थे तो इंसान ही न. क्यों उन के जीवन की घटनाओं का बौद्धिक रूप से विश्लेष्ण नहीं होना चाहिए? क्यों मुस्लिम इस बुरी तरह से उखड़ जाते हैं? क्या इस लिए कि मुस्लिम जवाब देने में असमर्थ समझते हैं खुद को?
मैंने सुना जाकिर नायक को, ये श्रीमान बता रहे थे कि लड़की का जब मासिक धर्म शुरू हो जाता है तो उस से शादी की जा सकती है. और मासिक धर्म 9-10 साल की उम्र में शुरू हो जाता है और इसी उम्र में हज़रत आएशा से पैगम्बर साहेब ने शादी की थी. और मैंने यह भी सुना है कई बार कि मुस्लिम को पैगम्बर मोहम्मद के जीवन की यथा-सम्भव नकल करनी होती है जीवन में. इसे शायद सुन्नत कहते हैं. क्या यह सवाल नहीं उठता कि मासिक धर्म का शुरू हो जाना ही काफी है क्या यह तय करने को कि लड़की शादी के काबिल हो गयी? एक 10 साल की बच्ची जब pregnant हो जाएगी तो क्या उस का शरीर इस pregnancy को सम्भाल पायेगा? प्रसव को झेल पायेगा? क्या एक दस साल की बच्ची ने इतना जीवन देख लिया होता है कि वो अपने बच्चे को सम्भाल पाए? क्या नौ साल की बच्ची की शादी कर के उस का बचपन तो नही छीना जा रहा? ऐसी शादी में बच्ची की मर्ज़ी को उस की मर्ज़ी माना जा सकता है क्या? फिर यदि उस का पति बड़ी उम्र का हुआ और जवानी में ही यदि वो विधवा हो गयी तो क्या यह शादी एक सही फैसला माना जा सकता है? क्या पैगम्बर साहेब की यह शादी अनुकरणीय है? ऐसे ढेर से सवाल खड़े होते हैं.
शायद मुस्लिम समाज इस मुद्दे के अंतर-निहित सवालों को समझता है. और इन सवालों से बचने के लिए ही बवाल किया गया है.
यदि इस्लाम वैज्ञानिक मज़हब है तो इस्लाम को तो हाथ पसार सवाल उठाने वालों का स्वागत करना चाहिए कि आओ, जो भी शंका हो, जवाब हम देंगे.
लेकिन ज़मीनी हकीक़त तो बिलकुल उलट है. तर्क तो दूर की बात, टिपण्णी ही क्यों की?
मेरे ख्याल है कि इस दुनिया के हर इंसान को किसी भी विषय-व्यक्ति पर सोचने का, टीका टिपण्णी करने का हक़ है. हमें खुद की सोच को ही दुरुस्त नहीं करना होता बल्कि दूसरों की सोच दुरुस्त हो इस का भी ख्याल रखना होता है. एक सड़क जिस पर सब ग़लत- शलत कारें चला रहे हों, आप ड्राइव करना पसंद करेंगे? पता नहीं कब कौन ठोक दे. सड़क पर चलना तभी सुरक्षित है यदि सिर्फ आप ही नहीं, दूसरे लोग भी गाड़ी सही-सही चलायें. यह सिर्फ़ मिसाल है. समझाने के लिए. किसी धर्म पर कोई टिपण्णी नहीं है.
यह तर्क भी सही नहीं है कि तुम्हें क्या हक़ है हमारे नबी, हमारे अवतार, हमारे भगवान, हमारे गुरु के बारे में कुछ भी कहने का. हक़ हमें बुनियादी है. कुदरती है. संवैधानिक है. फ्री थिंकिंग और फ्री एक्सप्रेशन एक फ्री समाज की बुनियादी ज़रूरत है.
एक व्यंग्य अक्सर पढ़ता हूँ. एक कुत्ते को गली से उठा कर राज महल में ले जाया गया. वो कुछ समय राज महल में रहा लेकिन फ़िर वापिस गली में आ गया. अब उस के साथी कुत्तों ने पूछा कि क्या हुआ? वापिस क्यों आ गया? तो उस कुत्ते ने जवाब दिया, " वहां राज महल में सब सुविधा थी. खाना पीना, सब बढ़िया. चिंता फिकिर नाहीं. बस दिक्कत एक ही थी. वहां भौंकने की आज़ादी नहीं थी.
यह व्यंग्य साधा गया है उन पर जो फ्री एक्सप्रेशन की डिमांड करते हैं, इस का समर्थन करते हैं.
लेकिन मैं इस कथ्य को दूसरे ढंग से लेता हूँ. मेरा मानना है कि यदि फ्री एक्सप्रेशन की आज़ादी नहीं तो सब सहूलतें बेकार हैं. मैं उस कुत्ते की कद्र करता हूँ जिस ने फ्री एक्सप्रेशन न मिलने पर राज महल को लात मार दी. जिस समाज में फ्री एक्सप्रेशन की आज़ादी नहीं, वहाँ फ्री थिंकिंग भी रुक जाएगी, वैज्ञानिकता थम जाएगी. फ्री एक्सप्रेशन से फ्री थिंकिंग stimulate होती है.
लेकिन यहाँ तो हर कोई दूसरे को कोर्ट कचहरी में खींच रहा है. ऐसे ही गेलीलिओ को खींचा गया था, ऐसे ही ब्रूनो को.....समय-चक्र ने इन को सही साबित किया. समय-चक्र ने इन को इंसानियत के हीरो साबित किया.
"मेरी भावना आहत हो गयी."
तो क्या करें भाई? आप अपनी भावनाओं को मजबूत बनाओ न.
आप Newton के काम के खिलाफ़, शेक्सपियर के नाटकों के खिलाफ़, मुंशी प्रेम चंद के लेखन के खिलाफ़, शिव कुमार बटालवी की कविताओं के खिलाफ़ जितना मर्जी बोलो, जितना मर्जी लिखो कोई तलवारें नहीं खींचेगी. लेकिन आप किसी भी तथा-कथित धार्मिक किताब, व्यक्ति के खिलाफ़ कुछ बोल दो, लिख दो तो मार-काट मच जायेगी. क्यों? सोचिये.
यह जो ईश निंदा, ब्लासफेमी कानून हैं, यह वैज्ञानिक सोच की राह में रोड़ा हैं. ईश की निंदा हो गयी. कैसे साबित करोगे? पहले साबित तो करो कि ईश है भी कि नहीं. ठीक वैसे ही जैसे तुम आलू, गोभी कोर्ट में दिखा सकते हो, छुआ सकते हो, वैसे ही.
ईश सिर्फ एक मान्यता है. मान्यता तो फिर ईश पर सवाल उठाने वालों की भी है. इन को क्यों मार देना? इसलिए चूँकि यह गिनती में कम हैं. भीड़ का गणित. सही हो न हो, सही ही माना जाता है चूँकि भीड़ मानती है.
नुपुर वाला मुद्दा, इस का एक दूसरा पहलू भी है. ऐसा भी लगता है कि जान-बूझ कर भी उछाला जा रहा है. भाजपा को वोट से मुस्लिम समर्थक दल हरा नहीं पा रहे. तो अब मुस्लिम और मुस्लिम समर्थक दल, भाजपा विरोधी दल गाहे-बगाहे सड़क पर उतर रहे हैं. यह सिलसिला शाहीन बाग़ से शुरू हुआ तो चलता ही जा रहा है. दिल्ली ने हिन्दू-मुस्लिम दंगे देखे. अब कानपुर ने. और कितने ही और शहरों ने भी. मुस्लिम हर हाल में भाजपा सरकार पर अपना दबाव बनाये रखना चाह रहे हैं. नुपुर वाला मुद्दा भी उसी सिलसिले की एक कड़ी प्रतीत हो रहा है. सही गलत से कोई मतलब नहीं. बस मुद्दा बनाये रखो.
लेकिन मैं अपने मुस्लिम भाईओं और बहनों से यह कहना चाहता हूँ कि आप को गैर मुस्लिम देख रहा है, नोटिस कर रहा है, उस का मुस्लिम के प्रति डर बढ़ता जा रहा है जो उसे मजबूर करता है मोदी की हजार गलतियाँ माफ़ कर के उसे ही सत्ता सौपने को.
तो मेरा संदेश है मुस्लिम मित्रो को और गैर-मुस्लिम मित्रों को भी, आज ज़माना इन्टरनेट का है. सब पलों में चेक हो जाता है. दीन- धर्मों को सब से बड़ा चैलेंज किसी व्यक्ति-विशेष से नहीं है बल्कि इन्टरनेट से है, सोशल मीडिया से है. अब चीज़ें छुपाई न जा सकेंगीं.
सो यह मरने-मारने की भाषा छोड़ दें. अपनी सोच में वैज्ञानिकता लायें. तार्किकता लाएं. ध्यान लाएं. समाधान लाएं.
और जो भी लिखा, यदि कहीं कुछ गलत लिखा हो तो ज़रूर बताएँ.
नमन
तुषार कॉस्मिक
Saturday, 2 December 2023
वेज बिरयानी ???
यह एक मिथ्या नाम है. ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे वेज बिरयानी कहा जा सके। हम हिंदी में इसे पुलाव कहते हैं. पुलाव का मतलब मिश्रित सब्जियों के साथ पकाया गया चावल है। तो फिर इसे वेज बिरयानी क्यों कहा जा रहा है? इस्लामिक प्रभाव के कारण. मुस्लिम लोगों को चावल और मांस का मिश्रण बिरयानी बहुत पसंद होती है. उन्हीं के प्रभाव से पुलाव भी वेज बिरयानी बन गया है। इस तरह संस्कृति पर आक्रमण होता है। छोटे कदम। बड़े प्रभाव.
आप कैसे जानते हैं, "अल्लाह हू अकबर"?
आप कैसे जानते हैं कि अल्लाह महान है, या अल्लाह महान है?
सबूत क्या हैं? अल्लाह ने कौन सी प्रतियोगिता लड़ी है? और किसके साथ? कैसी तुलना? किसके साथ? और उस तुलना के प्रमाण क्या हैं? कोई वीडियो? कोई ऑडियो?