Monday, 27 November 2023

इस्लामिक कलमा पर मेरे प्राथमिक सवाल

यह है शुरूआती कलमा:--
“अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल है।”
There is no God but Allah Muhammad is the messenger of Allah
“मैं गवाही देता हुँ के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हुँ के हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के नेक बन्दे और आखिरी रसूल है।”
I bear witness that no-one is worthy of worship but Allah, the One alone, without partner, and I bear witness that Muhammad is His servant and Messenger.
“अल्लाह की ज़ात हर ऐब से पाक है और तमाम तारीफे अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है और किसी में ना तो ताकत है न बल, ताकत और बल तो अल्लाह ही में है, जो बहुत मेहरबान निहायत रेहम वाला है|”
Glory be to Allah and Praise to Allah, and there is no God but Allah, and Allah is the Greatest. And there is no Might or Power except with Allah.
सवाल:--
कैसे पता आप को कि अल्लाह के अलावा कोई और गॉड नहीं है? कैसे पता आप को कि मोहम्मद ही उस गॉड के मैसेंजर हैं? आप गवाही देते हैं. ठीक है. लेकिन आप की गवाही का आधार क्या है? आप के पास कोई ऑडियो, कोई वीडियो है? या कोई और सबूत है कि अल्लाह मियां मोहम्मद साहेब को अपना मैसेंजर बना रहे हैं? आप के पास सबूत जैसा क्या है कि जिन को आप अल्लाह कह रहे हैं, उन का नाम अल्लाह ही है? क्या सबूत है कि वही इकलौते गॉड हैं, वही इकलौते पूजनीय हैं, इबादत के लायक हैं? क्या पता एक से ज़्यादा अल्लाह या अल्लाह जैसी कोई हस्तियाँ हों? क्या पता कोई न ही हो? क्या पता कायनात स्वयं-भू हो? और उसे किसी की इबादत की कोई परवाह हो ही न? क्या पता कोई भी न हो, जिसे पूजा, इबादत की कोई ज़रूरत हो, या जिसे पूजा, इबादत से कोई फर्क पड़ता हो, या जिस की इबादत से हमारी कोई दुआ कबूल होती हो?
बस आप गवाही देते हैं. आप की गवाही का कोई मतलब, कोई आधार है? आप की गवाही के पीछे कोई सबूत, कोई सबूत जैसा सबूत है?
Like
Comment
Share

Sunday, 26 November 2023

Islamophobia is not a right Word. Start calling it ISLAMOFEAR

सबसे पहले ये समझें कि "फोबिया" क्या है.

किसी अनुचित कारण से डर लगना ही फ़ोबिया है। अकारण भय महसूस होना। किसी ऐसी चीज़ से डरना जो वास्तव में डरावनी नहीं है।

इस्लामोफोबिया.
इस शब्द से यह आभास होता है कि लोग किसी फोबिया से पीड़ित हैं। लेकिन यह एक मिथ्या नाम है. इस्लाम से डरने वाले लोगों के पास कारण हैं. उचित कारण. इस्लामी Text/Books, इस्लामी इतिहास, इस्लामी सैन्य और सांस्कृतिक आक्रमण। सदियों पुरानी मान्यताएं. अवैज्ञानिक दृष्टिकोण. मुसलमानों की सर्वोच्चता की अनुचित भावना। पूरी दुनिया में गैर-मुसलमानों के खिलाफ हिंसा।

यह इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब का युग है। चीजें ज्यादा दिनों तक छुपी नहीं रह सकतीं. लोग दिन-ब-दिन इस्लाम की हकीकत से वाकिफ होते जा रहे हैं। इसलिए डर है.

इस डर को "इस्लामोफोबिया" शब्द से दूर नहीं किया जा सकता। नहीं, इनकार मोड किसी की मदद नहीं करेगा। मुसलमान की भी नहीं. दरअसल, अक्सर यह कहा जाता है कि मुसलमान इस्लाम के पहले शिकार हैं।

इसलिए सबसे पहले हमें इस शब्द को, इस शब्द इस्लामोफोबिया फोबिया को छोड़ देना चाहिए और इसे ISLAMOFEAR कहना शुरू कर देना चाहिए और फिर हमें इस डर को हमेशा के लिए दूर करने के तरीके खोजने शुरू करने चाहिए।

++++++++++++++++

First, understand what Phobia is. A phobia is feeling fearful for some unreasonable reason. Feeling fear unreasonably. Fearing from something which is not fearful in fact. 

Islamophobia. The word,  it gives the impression that people are suffering from a phobia. But this is a misnomer. People fearing from Islam have reasons. Reasonable reasons. Islamic text, Islamic history, Islamic Military, and Cultural Invasions. Muslims aggressions. Age-old beliefs. Unscientific approach. Muslim's Unreasonable Feeling of Supremacy. Violence against Non-Muslims all over the World. 

This is an age of the Internet and the World Wide Web. Things cannot be concealed for a long time. People are becoming aware of the reality of Islam day by day. Hence the fear. 

This fear can not be washed away by the term Islamophobia. No. Denial mode shall not help anyone. Not even Muslims. In fact, it is often said that Muslims are the first victims of Islam. 

Hence first we should drop this word, this term i.e. Islamophobia phobia, and start calling it ISLAMOFEAR, and then we must start to find ways of removing this fear forever. 

Wednesday, 22 November 2023

Religions are not belief systems. There is no system in these beliefs.

These are just superstitions.

Different sets of superstitions.

कला को वह मूल्य नहीं दिया गया जिसकी वह हकदार थी

कला को वह मूल्य नहीं दिया गया जिसकी वह हकदार थी। कला का अर्थ समाजशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान और साहित्य है.
यदि कला को उसका उचित मूल्य दिया गया होता, तो विश्व को युद्धों का सामना नहीं करना पड़ता।
धर्मों, पवित्र चीज़ों ने कला का स्थान ले लिया है। धर्मों के अनुसार लोगों को मूल्य दिये गये हैं। वे मूल्य जो आदिम, सदियों पुराने और समय-वर्जित हैं। वे मूल्य जो मूल्य कला से प्राप्त होने चाहिये थे. इसीलिए सामाजिक मूल्य विकसित नहीं हो रहे हैं जब कि अन्य विज्ञान विकसित हो रहे हैं और समाज को बदल रहे हैं।
इसलिए युद्ध हो रहे हैं.
तुम दर्शन (Philosophy) का मूल्य नहीं समझते।
दर्शनशास्त्र की समझ का उथलापन ही मनुष्य की लगभग हर समस्या का मूल कारण है।
लोग पवित्र पुस्तकें पढ़ते हैं। मुझे विश्व साहित्य में रुचि है.
लोग पवित्र पुरुषों में रुचि रखते हैं। मुझे वैज्ञानिकों और कलाकारों में दिलचस्पी है.
लोगों ने अपने जीवन मूल्य पवित्र पुरुषों और पवित्र पुस्तकों से प्राप्त किए हैं। मैंने अपने मूल्य जीवन और साहित्य से प्राप्त किये हैं. Arts has not been given the value that it deserves. Arts mean sociology, philosophy, psychology, political science, and literature, If arts had been given its due value, the World would not have been facing wars. Religions, the Holy shit has taken Arts place. People have been given values according to religions. Values that are Primitive, age-old, and time-barred. The values which have been derived from the Arts. That is why social values are not evolving as the other sciences are evolving and changing society. Hence the WARS.
People read holy books. I am interested in World Literature.
People are interested in Holy men. I am interested in Scientists and Artists.
People have derived their life values from Holy men and Holy books. I have derived my values from Life and Litrature

Indian should offer Jews to leave Israel and live in India

 यहूदियों की आबादी बहुत कम है. और हम भारतीयों को भारत में पहले से रह रहे यहूदियों से कोई दिक्कत नहीं है. और मेरे विचार से यहूदी एक बहुत अच्छी कौम है.

उन्हें भारत में रहने की पेशकश क्यों नहीं की जाती? क्यों न उन्हें प्रस्ताव दिया जाए, "इज़राइल छोड़ो और आओ और भारत को अपने निवास स्थान के रूप में स्वीकार करो।"
इस प्रकार, हम भारतीयों को भी उनकी वैज्ञानिक और तकनीकी मानसिकता से लाभ होगा। नहीं?

What is the meaning of "Cosmic" in my name Tushar Cosmic?

 My pen name is Tushar Cosmic.

I like this name. That is why I chose "Kuhoo Kosmic" for my younger daughter.
Do you know what the meaning of "Cosmic" is?
अहं ब्रह्मास्मि.

मुसलमान कश्मीरी हिंदुओं के लिए वही रुख क्यों नहीं अपना रहे जो वे फ़िलिस्तीनियों के बारे में कह रहे हैं?

वे यह क्यों नहीं कहते कि कश्मीरी हिंदुओं के घरों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है और उनकी महिलाओं के साथ मुसलमानों ने बलात्कार किया है और उनके पुरुषों को मुसलमानों ने मार डाला है?

Sunday, 19 November 2023

इस्लाम को पहले बिंदु से ही खारिज कर देना चाहिए क्योंकि यह आलोचना करने की इजाजत नहीं देता।

यह मोहम्मद, क़ुरान और इस्लाम की आलोचना करने की अनुमति नहीं देता है। और जहां आलोचना करने की यह आजादी नहीं है, वहां कोई बहस नहीं हो सकती, कोई तर्क-वितर्क नहीं हो सकता। और कोई भी किसी बात को बिना बहस के तार्किक ढंग से कैसे स्वीकार कर सकता है.

यह हमास नहीं है, यह इस्लाम है

 भारत में मुसलमानों ने हिंदुओं के मंदिरों पर कब्जा कर लिया है, कश्मीरी हिंदुओं के घरों, संपत्तियों पर कब्जा कर लिया.

तो क्या हुआ?
क्या किसी मुसलमान ने हिंदुओं के पक्ष में कुछ बात की/कुछ किया?
कुछ नहीं।
अधिक सटीक रूप से कहें तो यह हमास नहीं है, यह इस्लाम है.

गाजा में भूमिगत सुरंगें एक दिन में नहीं बनाई जा सकतीं।

 स्थानीय नागरिकों को हमास के साथ सहमत होना चाहिए। तो उन्हें निर्दोष कैसे कहा जा सकता है? और क्या आपने एक भी फ़िलिस्तीनी को इज़राइल या दुनिया में कहीं भी मुसलमानों के हमलों की निंदा करते देखा है? यदि नहीं, तो वे अब दुनिया से मदद क्यों मांग रहे हैं?

एक आदमी को शादी करते समय या दफनाते जाते समय सबसे अच्छा दिखना चाहिए।

 एक आदमी को शादी करते समय या दफनाते जाते समय सबसे अच्छा दिखना चाहिए।

इसीलिए जब हमें यह समझ आता है कि हम अच्छे नहीं दिखते या अच्छा महसूस नहीं करते तो हम अपने प्रियजनों से भी मिलना नहीं चाहते।
लेकिन दूसरे को लग सकता है कि हम उससे इसलिए बचते हैं क्योंकि हम मिलना नहीं चाहते।
लेकिन वजह ये नहीं कि हम मिलना नहीं चाहते. इसका कारण यह है कि हमें लगता है कि हमारी शक्ल-सूरत या मानसिक स्थिति मिलने लायक नहीं है।

मुझे क्रिकेट से नफरत है

मुझे खेलों से प्यार है।लेकिन मुझे क्रिकेट से नफरत है.

बहुत कारण से।
एक तो इस खेल में प्रदर्शन को मापा नहीं जा सकता. यह संभावनाओं का खेल है. जिसने कल वर्ल्ड कप जीता, हो सकता है अगले दिन उसे हार मिल जाए. सच्चा खेल नहीं. शायद यही एक कारण है कि क्रिकेट फुटबॉल या किसी अन्य खेल की तरह विश्व खेल नहीं है। इसीलिए शायद क्रिकेट को अब तक ओलंपिक में नहीं लिया गया है.

मेरी नफरत का दूसरा कारण यह है कि मैं सभी संगठित, संस्थागत, भीड़ पैदा करने वाले धर्मों का विरोध करता हूं। और क्रिकेट तो मानो एक धर्म बन गया है. भारत में लोगों ने क्रिकेटरों के मंदिर बना रखे हैं. और उन्होंने क्रिकेटरों को भगवान कहना शुरू कर दिया है. Holy-shit

Tushar Cosmic

Sunday, 22 October 2023

इजराइल-फ़लस्तीन-यहूदी-मुसलमान-ज़मीन-आसमान

बड़ी बहस है कि इजराइल की धरती यहूदियों की है या मुसलमानों की है. मुसलमान कहते हैं कि वो ज़मीन उन से छीन कर यहूदियों को दी गयी है. जब कि यहूदी उस ज़मीन पर अपना हक़ बताते हैं. ऐसा ही कुछ मामला कश्मीर का है. हिन्दू उस ज़मीन पर अपना पुराना हक़ जमाते हैं, जब कि इस वक्त ज़यादातर मुस्लिम रहते हैं वहाँ. तो हक़ किसका हुआ?

असल बात यह है कि किसी भी ज़मीन पर किसी का कोई हक़ नहीं है. धरती माता ने आज तक किसी के नाम कोई रजिस्ट्री नहीं की है. ज़मीन पर कब्जा खेती जब शुरू हुई तभी से है. वो कब्ज़ा कबीलों से ले कर मुल्कों तक फैला है और उस कब्जे के झगड़े पूरी दुनिया में हैं.

क्या हवा किसी एक की है, क्या दरिया किसी एक के हैं? वैसे दरिया भी बाँट लिए गए हैं. ऐसे ही धरती भी बाँट ली गयी है. बस चले तो हवा भी बाँट ली जाएगी और शायद आसमान भी. यह क्या बेवकूफी है? हम पशु-पक्षियों से भी बदतर हैं. इलाकों के लिए शायद वो भी इतना नहीं लड़ते जितना हम लड़ते हैं. हम उन से ज़्यादा समझदार हैं. हम में इन मुद्दों को लेकर तो कतई कोई झगड़ा होना ही नहीं चाहिए. लेकिन हमारी पीढ़ियां लड़ रही हैं. कबीले लड़ रहे हैं, गाँव लड़ रहे हैं. मुल्क लड़ रहे हैं.

सब से खतरनाक इस्लामिक कबीला है. हाँ, मैं इसे कबीला मानता हूँ. मुस्लिम उम्मा, पूरी दुनिया में चाहे बिखरी हो लेकिन यह अपने आप में अलग-थलग ही रहती है. यह बिखरी होने के बावजूद एक कबीलनुमा आबादी है. इस आबादी का बाकी दुनिया की सारी आबादी से झगड़ा है. अनवरत. इसे पूरी दुनिया को मुसलमान करना है. अपने जैसा झगड़ालू. अपने जैसा आदिम. इन का इतिहास सारे का सारा मार-काट से भरा है. आज भी जहाँ मुसलमान हैं, वहाँ शांति नाम की कोई चीज़ नहीं है जब कि मुसलमान खुद को अमन-पसंद बताते हैं. इन के इसी दावे की वजह से गैर-मुस्लिम "शांति-दूत" लिखते हैं इन को . खिल्ली उड़ाते हुए. चूँकि अक्सर खबर आती है, कि शांतिदूत ने फलां जगह बम्ब बाँध "अल्लाह-हू-अकबर" कर दिया, खुद तो फटा, साथ में कितने ही निर्दोष लोगों को और उड़ा दिया. और यह चलता ही आ रहा है. फिर भी इन को सारी दुनिया को मुसलमान करना है.

यह सब बड़ा ही संक्षिप्त लिखा है मैंने. अब क्या ऐसे समाज को कहीं भी रहने की इजाज़त मिलनी चाहिए? मेरा सवाल यह है कि मुसलमान को कश्मीर छोड़ो दुनिया के किसी भी कोने में रहने की इजाज़त होनी चाहिए क्या? सोचिये. सवाल यहाँ यह तो होना ही नहीं चाहिए कि ज़मीन के किस टुकड़े पर कौन कब काबिज था या है. धरती लाखों वर्षों से है. इंसान हज़ारों वर्षों से और इंसानी तथाकथित सभ्यता उस से भी कम समय से है. धरती पर किस का, कैसा कब्जा? कब्जा पहले पीछे होना कोई कसौटी होना ही नहीं चाहिए कि किस भू-भाग पर कौन रहेगा?

ऐसे ही आरएसएस (संघ) वाले भी हिन्दू-भूमि के गीत गाते है. कौन सी भूमि है हिन्दू भूमि है? भूमि ने कभी कहा है की वो हिन्दू भूमि है? यह सब बस कथन हैं. कोई भूमि न तो हिन्दू भूमि है, न मुस्लिम, न यहूदी. भूमि सिर्फ भूमि है.

फिर किस को किस भूमि का अधिकार होना चाहिए? जिस समाज की मान्यताएं ही आदिम हों, हिंसक हों, उसे कैसे किसी भी भू-भाग का अधिकार दे दिया जाए?

दीन-धर्म-मज़हब सिर्फ़ दीन -धर्म-मज़हब नहीं हैं. एक जैसे नहीं हैं. उन में ज़मीन आसमान का फर्क है. इन में इस्लाम सब से ज़्यादा हिंसक है, विस्तारवादी है. तर्क की कोई गुंजाइश ही नहीं. हथियार ही इस का तर्क है. ज़्यादा तर्क करने वाले को मार-काट दिया जाता है. सवाल उठाने की कोई आज़ादी नहीं. आप क़ुरान, मोहम्मद और इस्लाम की आलोचना नहीं कर सकते. ख़ास कर के इस्लामिक समाजों में. और जहाँ आज़ादी नहीं, जहाँ विचार के पैरों में बेड़ियाँ डाल दी जाएँ, जहाँ विचार को हथकड़ियां लगा दी जाएँ, वो कैसे दौड़ेगा? तो यह समाज बस जकड़ा पड़ा है. पिछले १४०० सालों से. और पूरी दुनिया को अपने जैसा बनाना चाहता है. इस समाज को इजराइल, फ़लस्तीन, कश्मीर छोड़ो दुनिया के किसी भी कोने में नहीं होना चाहिए. आज दुनिया में जो भी मुद्दे हैं, झगड़े हैं उन में ज़्यादातर मुसलमानों की वजह से हैं. भारत में भी ज़्यादातर झगड़े-झंझट-इन्ही की वजह से हैं. भारत की आधी ऊर्जा मुसलमानों के मुद्दों में ही उलझी पड़ी है. अनवरत.

और मुसलमानों की बड़ी आबादी है. क्या किया जाये? इन को समन्दर में डूबा नहीं सकते? हिटलर की तरह हवा में उड़ा नहीं सकते. तो फिर क्या किया जाये?

एक तरीका यह है कि दुनिया में एक ऐसा मुल्क बनाया जाये, जहाँ एक्स-मुस्लिम बसाये जा सकें. बहुत लोग अंदर-अंदर इस्लाम छोड़ चुके हैं, लेकिन चूँकि रहना उन को मुस्लिम समाजों में है मज़बूरी-वश, तो वो मुसलमान ही बने रहते हैं. इन को वहां से निकाला जाना चाहिए. अलग मुल्क दिया जाना चाहिए.

दूसरा, पूरी दुनिया में De-Islamization प्रोग्राम चलाये जाने चाहिए. असल में तो किसी भी बच्चे को किसी भी तरह की धार्मिक शिक्षा दी ही नहीं जानी चाहिए. यह अनैतिक है. यह गैर-कानूनी होना चाहिए. सब मदरसे, सब धार्मिक किस्म के स्कूल बंद होने चाहिए. सब स्कूलों में वैज्ञानिक सोच को विकसित करना सिखाया जाना चाहिए.

तीसरा, गैर-मुस्लिम समाज को तेजी से इस्लामिक साहित्य पढ़ाया जाना चाहिए। गैर-मुस्लिम को पता होना चाहिए कि इस्लामिक हिंसा इस्लामिक साहित्य से आती है. जब एक समाज का साहित्य ही नफरत सिखा रहा हो, हिंसा सिखा रहा हो, आदिम कबीलाई किस्म की मान्यताएं सिखा रहा हो तो वो बदलते ज़माने के साथ कैसे तालमेल बिठा पायेगा? लेकिन गैर-मुस्लिमों में से बहुत लोग यह सब नहीं समझते. वो आज भी गंगा-जमुनी तहज़ीब के गीत गाते हैं, या ईश्वर के साथ अल्लाह को जोड़ते है. जो कि सरासर झूठ है. अल्लाह के साथ किसी को नहीं जोड़ा जा सकता, ऐसा इस्लाम कहता है खुद. यह शिर्क है, जो गुनाह है. यह सब समझना होगा गैर-मुस्लिम को. पूरी दुनिया को इस्लामिक खतरों को समझना होगा और इस के लिए युद्ध स्तर पर काम करना होगा.

और मुसलामानों को समझना होगा कि तुम्हारी समस्याओं की जड़ तुम खुद हो, तुम्हारा इस्लाम है. जिसे तुम अपना सब से कीमती आभूषण समझते हो, वही तुम्हारी बेड़ियाँ हैं, हथकड़ियां हैं, वही तुम्हारी जेल है।

आज सोशल मीडिया भरता जा रहा है, फलस्तीनी बच्चों की मौतें दिखाने के लिए. इजराइल ने मार दिया. क्या मुसलमान ने जो आज तक हिंसा, कत्लो-गारत की है पूरी दुनिया में या अभी भी जो कर रहा है जो, वो नहीं देखनी-दिखानी चाहिए? जिन का फलसफा ही यह कि इस्लाम को पूरी दुनिया पर ग़ालिब होना है, उन की ज़्यादतियों को नहीं दिखाया जाना चाहिए क्या? "तुम करो तो रास लीला, हम करें तो करैक्टर ढीला." तुम मारो तो यह दीन, और सामने वाला मारे तो यह ज़ुल्म?

तो वक्त आ गया है, जिस तरह से साम-दाम-दंड -भेद से लोगों को मुसलमान किया गया है, वैसे ही इन को इस्लाम से बाहर निकाला जाये, अन्यथा दुनिया में हिंसा थमेगी नहीं.

या फिर गैर-मुस्लिम सब किसी और सुन्दर ग्रह पर शिफ्ट हो जाएँ और मुसलामानों को यहीं छोड़ दें. लो बना लो इस धरती को मुसलमान. फिर कुछ सालों बाद जब मुसलमान आपस में लड़ मरें तो फिर वापिस इस धरती पर भी कुछ गैर-मुस्लिम लोग आ बसें.

यह हैं कुछ सुझाव. बाकी आप सुझाएं...

नमन.
तुषार कॉस्मिक
*********************************

Saturday, 21 October 2023

पहले पेट फाड़ा, फिर गर्भवती मां को मार दी गोली, 20 बच्चों को जिंदा जलाया... हमास की क्रूरता सुन रो पड़ेंगे!

Curated By प्रियेश मिश्र | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 12 Oct 2023, 10:02 pm

Subscribe

इजरायल ने हमास के आतंकवादियों की बर्बरता को दुनिया के सामने रखा है। हमास के आतंकवादियों ने इजरायल में हैवानियत का वो प्रदर्शन किया, जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप जाएगी। उन्होंने बच्चे और बूढों तक को नहीं बख्शा। कई इजरायली मासूम बच्चों के सिर काटकर हत्या कर दी।

Hamas cruelty
इजरायल में हमास की क्रूरता
तेल अवीव: हमास ने इजरायल पर हमले के दौरान जो अत्याचार किए हैं, उन्हें सुनकर ही आपकी आंखें भर जाएंगी। फिर सोचिए, जिन पर ये बीती है, उन्हें कैसा लगा होगा। हमास ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमले के दौरान यह नहीं देखा कि सामने कोई बच्चा है, बूढ़ा है, अपंग है, महिला है या कोई पुरुष। उसके लिए हर एक इंसान सिर्फ इजरायली और यहूदी था, जिसकी हत्या करना उनके लिए किसी मेडल से कम नहीं था। हमास के आतंकवादियों के सामने जो कोई आया, उन्होंने उसे मार दिया। इजरायली नागरिकों की हत्या सिर्फ गोलियों से नहीं की गई। बल्कि, कई हत्याओं में चाकूओं और आग का भी इस्तेमाल किया गया। ताकि, उनकी क्रूरता की गूंज दुनिया में सुनाई दे। अब हमले के छह दिन बाद इजरायल में हमास का क्रूरता के ऐसे कृत्य सामने आए हैं, जो पूरी मानव जाति के लिए किसी कलंक से कम नहीं हैं।

गर्भवती महिला का पेट फाड़ा, भ्रूण को मरने के लिए छोड़ा


इजरायली न्यूज चैनल i24 News के अनुसार, इजरायल की वॉलेंटियर सिविल इमरजेंसी सर्विस जका के कमांडर योसी लैंडो ने बताया कि एक घर की तलाशी के दौरान हमने एक गर्भवती महिला को फर्श पर पड़े देखा। जब हमने महिला को पलटा तो उसका पेट खुला हुआ था। गर्भनाल से एक अजन्मा बच्चा जुड़ा हुआ था, जिस पर चाकू से वार किया गया था। मां के सिर में गोली मारी गई थी।

माता-पिता और बच्चों का हाथ बांधकर जिंदा जलाया


योसी लैंडो ने बताया कि एक अलग घटना में दो माता-पिता के हाथ पीछे बंधे हुए थे। उनके सामने दो छोटे बच्चे थे, उनके भी हाथ पीछे बंधे हुए थे। उनमें से प्रत्येक को जला दिया गया था। जब माता-पिता और बच्चे जल रहे थे, उस दौरान आतंकवादी बैठे थे और खाना खा रहे थे।

मां और बच्चे को एक गोली से मारा, 20 बच्चों को जलाया


एक अलग घटनाक्रम में जका साउथ के कमांडर योसी लैंडो ने बताया कि मैंने एक मां को अपने बच्चे को पकड़े हुए देखा। एक गोली उन दोनों को एक साथ पार कर गई थी। मैंने 20 बच्चों को एक साथ देखा, जिनके हाथ पीछे की ओर बंधे थे और उन्हें गोली मार दी गई थी। इसके बाद उनको एक साथ जला दिया गया था।

40 इजरायली बच्चों की हत्या की


हमास के आतंकवादियों ने कफर अजा में एक इजरायली समुदाय पर 70 आतंकवादियों ने हमला किया। इन हमलों का शिकार इस समुदाय में रहने वाले 40 बच्चे बनें, जिनमें से कई की उम्र चंद महीने थी। इजरायली मेजर जनरल इताई वेरुव ने कहा कि जब हमने अपने घरों में मारे गए निवासियों के शवों को इकट्ठा करने के लिए दरवाजा खोला तो देखा कि माता-पिता, बच्चों और युवाओं को उनके बिस्तरों, प्रोटेक्शन रूम में, डाइनिंग रूम में, उनके बगीचों में मार दिया गया। उन्होंने कहा कि यह युद्ध नहीं है, यह युद्धक्षेत्र भी नहीं है। यह नरसंहार है। उन्होंे कहा कि कुछ पीड़िचों का सिर काट दिया गया। मैंने ऐसा कभी नहीं देखा, मैंने 40 साल तक सर्विस की है।

हमास ने आरोपों का किया खंडन


हमास ने इस बात से इनकार किया है कि उसके आतंकवादियों ने बच्चों का सिर काटा या महिलाओं पर हमला किया। आतंकवादी समूह के प्रवक्ता और वरिष्ठ अधिकारी इज़्ज़त अल-रिशेक ने बुधवार को आरोप को "मनगढ़ंत और निराधार आरोप" बताया।

https://navbharattimes.indiatimes.com/world/uae/eye-witness-recounts-horrific-details-of-hamas-cruelty-on-pregnant-women-children-and-innocent-israeli-civilians/articleshow/104379580.cms?fbclid=IwAR2-ptXyHwq43CvDLiHTQ58qyJIdp750YnQoiNyusOxEi5hkBR7rzhI3YQI

Thursday, 19 October 2023

It is not Hamas, it is Islam.

 It is not Hamas, it is Islam. Until Islam is confronted, the world shall go on suffering such attacks. Killings. Rapes. Loots. If the Muslims had been as strong as Israel, Muslims have finished each and every Jew without mercy. The recent attack on Israel is the proof. So let them reap the crop sown by them. Wherever Islam is, trouble is.

The real reason is Islam. The real reason is the Quran. Hadith. Islamic Books.
Until these books are allowed to confront logically worldwide, the world shall see such devastations again and again. O Muslims, Similarly Hindus were driven out of Kashmir.

Similarly, Hindu Temples were broken and converted to Islam. Now is the time to feel the pain. Everyone is An Israeli now.
All rea
All react

"THEY" ARE CRIMINALS

 They don't follow any religion. No. Religion is just a facade. They are plunderers, rapists, murderers. Murderers of your culture, your history, your free-thinking. They are barbarians. They have only one thing.

A crowd, a big crowd, a very big crowd, a very big crude crowd.
You must think ways to confront them. YOU MUST. ~ Tushar Cosmic

I am all in favour of Nudity.

 In the whole Cosmos, it is only human beings who wear clothes and that too almost all the time. A nude person is considered abnormal whereas a man in Clothes is abnormal.

I am all in favour of Nudity. Man is obsessed with Clothes. Even the best clothes make him ugly.
Nudity is Beauty.
Nudity is Normal.
Nudity is Natural.
Nudity is healthier.
~ Tushar Cosmic

Wisdom has nothing to do with Heart. It is pure processing of the information. That is the basis of AI (Artificial Intelligence) also. Info and processing of that info. That is it.

In a sane world, people shall be religious but there shall be no religions.

Every artistic work descends from the Heaven

 They say that Quran was not written but descended from Allah upon Hazrat Mohammad. Believe me, I have published hundreds of articles in my name, in Hindi and English, all descended. In fact, no writer or artist is a writer or artist himself, all art descends, artists are just the mediums.

हमास/इजराइल/जंग-असल जंग कुछ और है

मुस्लिम कहते हैं कि वो एक अल्लाह को मानते हैं बस. उसी की इबादत करते हैं. वैरी गुड. मैं पूछता हूँ उन से कि आप को कैसे पता कि कोई अल्लाह है? या फिर वो एक ही है दो नहीं, तीन नहीं, चार नहीं.....? आप को कैसे पता कि उस अल्लाह के आखिरी नबी /रसूल श्री मोहम्मद हैं? कोई सबूत? कोई वीडियो? कोई ऑडियो? या कोई और सबूत? या फिर बस मानते चले जाते हो?

भाई, जब हर बात को इंसान सोच समझ के ही मानता है तो फिर जिन मान्यताओं पर पूरा समाज, पूरा कल्चर ही खड़ा कर दिया उन मान्यताओं का क्या आधार है, वो भी तो पूछा जाना चाहिए.
और यदि इन मान्यताओं का कोई सबूत ही नहीं है तो मान लीजिये कि सारा समाज-देश-कल्चर ही बचकाना है. त्याग दीजिये. और यह मैं दुनिया के बाकी धर्मों को मानने वालों को भी कहना चाहता हूँ.
मैं तमाम बहस देखता हूँ लेकिन सब गोल-गोल घूमती हैं, ऊपर-ऊपर. जड़ में कोई जाना नहीं चाहता. जड़ में जाईये. मज़हबी मान्यताओं को सवाल कीजिये. असल लड़ाई वहाँ है, असल लड़ाई बम्ब-बन्दूक-तोप की नहीं है.
असल लड़ाई किताबों की हैं, विचारों की है, शब्दों की है, मान्यतों की है. असल लड़ाई लड़ो. गली-गली लड़ो, हर चौक-चौबारे लड़ो.
Tushar Cosmic
+++++++++++++++++
*Hamas/Israel Conflict - The Real Battle is Something Else*
Muslims say they believe in Allah, and they worship only Him. That's good. I ask them, how do you know if there is an Allah? Or if there is just one Allah, not two, not three, not four...? How do you know that the final prophet/messenger is Prophet Muhammad? Any evidence? Any videos? Any audio recordings? Or any other proof? Or do you just believe it?
Brother, when every belief is accepted based on human understanding, then the foundation of those beliefs, upon which the entire society and culture stands, should also be questioned. And if there is no concrete evidence for these beliefs, then let's assume that the entire society, country, and culture is based on mere speculation. Abandon them. This is what I want to say to the followers of all other religions in the world as well.
I see all the debates, but they revolve in circles, staying on the surface. No one wants to delve into the roots. Go to the roots. Question religious beliefs. The real battle is there; it's not about bombs and guns.
The real battle is about books, ideas, words, and beliefs. Fight the real battle. Fight on every street, every corner.
Tushar Cosmic

फ़िलिस्तीन के लोग निर्दोष नहीं हैं। हमास ने उनकी मदद के बिना हमला कैसे किया और उनकी मदद और सहयोग के बिना भूमिगत सुरंगें कैसे बनाईं?

Monday, 31 July 2023

Victims of Islam

 The biggest victims of Islam are not Non-Muslims but Mulsims themselves.

Society hates Intelligence

 So you think schools and families want to make the kids intelligent, respect the intelligence. No. None wants to make you intelligent. None respect Intelligence. Every one wants to keep you retarded, mediocre, idiot. Intelligence is fire. Real fire. An intelligent person, real intelligent person is disrespected, hated by the society.

Tuesday, 25 July 2023

Fail Indian Judicial machinery~ Methods to revive it

Until videos of Court proceedings are online
&
Dates are given between 7 to 15 days, it is almost impossible to expect Justice.
A Court date is called *Date of Hearing*.
Indian Judges are so rude, so bossy, so egoistic, so deaf that it is wrong to call the dates as *Dates of Hearing*.
Half the time, the judge is not ready to hear and half the time, whatsoever he hears, he understands wrong.
Indian Judiciary is almost failed. Let's start an online campaign. Write on every platform, send messages to every friends and demand online video sharing of the Court proceedings.
Most of the Public servants are autocrats. Almost zero accountability.
Indian judges are most autocrats. They behave just like gods. Actually, they have been given godlike powers. And whenever, wherever public gives blind power to anyone, such power is gonna used against public.
The same is happening in Indian court. These courts are supposed to deliver justice but they deliver dates. Judges are supposed to understand the cases via lawyers but they are not ready even to listen properly.
Online video streaming and 7 to 15 days gaps in dates is the only solution. In a republic, Courts are for the public. But today, it seems Public is for Court, Public is the servant of Courts.
Nani Palkhivala once said, “Law may or may not be an ass; but in India, it is a snail – it moves at a pace which would be regarded as unduly slow in a community of snails.”
The people who are enjoying never like a change. They want to maintain a status-quo. So is Indian Judiciary. It is almost a failure. Reform in judicial sytem is expected from inside, by judiciary itself, which is never gonna happen. Only public pressure can being changes. Public must put pressure on Govt as well as on Judiciary to revive this Dead sytem.
~
*Tushar Cosmic*

*Questions and Answers on Hindutava/ Hindu Religion *

There is no religion as Hindu religion. Though people living here in the land called Bharat (India) were having diverse religious kind of beliefs and diverse ways of worshipping. But that did't fall under the strict frame of religion (Deen or Mazhab) like Islam. There was no strictness. Anyone could worship anyway. Ofcourse there were discords. There had been bloody fights also amongst people over these discords still because of the lack of strong frames/ circumferences like Islam, these discords were not as strong as there are between Islam and the other religions.

Now whatsoever
religious kinda strictness is visible in the so-called Hindu society that is also because of Islam. This strictness is just to confront Islam and Islam like social and cultural invasion. This Hindutava, the concept of Hindutava is just to confront these invasions. Otherwise there is no definition of Hindu or Hinduism and even of Hindutava. Whatsoever definition is being given, that has been carved and crafted very loosely, very much forcibly. This definition is just like a piece of ice. You just give a heat and this peice starts melting down and becoming shapeless.
Now a common Hindu might get startled going through this analysis.
There is nothing like Hindu religion or Hinduism or Hindutava! Ha!! As if something is suddenly lost.
But no. Nothing is lost. This is something very positive for this society. This loosening of religiousness is a boon not a bane. This loosening has given a raise to logical prowess and the the result is people having roots in this so-called society are becoming world class leaders. Nasa, World bank, Pepsi, Google, microsoft and so many other Public or Private concerns are having there chiefs whose roots somewhere belong to this so-called Hindu society. UK PM is another example.
But there is another twist. Many people raise a question that many of these people are not Indians now or don't consider themselves as Hindus.
Good. A valid point.
Here a deeper look is required. Yes, many of these world leaders don't have Indian Citizenship and don't consider themselves as Hindus but they could rise because they had roots, connections with a society which was liberal in thinking, which was not religious in terms of Islam, which was not Islam like, which was not religious infact in terms of religiousness, which is called Hindu but actually is not Hindu because there is nothing which can be called Hindu. And this society must maintain this nothingness. This nothingness shall create more world leaders, inventors and artists. From this nothingness a better humanity may emerge. And on the other hand, people with Islam and Islam like beliefs shall have the fate of Seria, Afghanistan and Pakistan. Bomb blasts, killings, terrorist attacks.
"Every Muslim is not a terrorist but every terrorist is a Muslim."
"A Muslim can happily live amongst Non-Muslims but not vice versa."
"Muslims fight and kill not only Non-Muslims but Muslims."
Such are the social notions.
That is why, I conclude that lack of Deen, lack of religious strictness, lack of religiousness like religiousness is a boon for this so-called Hindu society which is not Hindu in fact.
~ Tushar Cosmic

Average human being is just an Idiot

 Evidence:- In the name of Corona, the whole world has been fooled. No upheavals. Taken so easily. No questioning, no cross questing. The world goes on as if nothing happened.

Monday, 24 July 2023

There is no concept of Dargah or Shrine worshipping in Islam

 It is another misconception that Dargah of Nizamuddin or Ajmer Sharif or any other Dargah is a Muslim place of worship. No. There is no concept of Dargah or Shrine worshipping in Islam. Rather it is considered a Shirk (a type of sin). Neither such places nor the worshippers of such places have anything to do with Islam.