Friday, 26 February 2016

कार्टेल

मैं प्रॉपर्टी के धंधे में अभी नया ही था. विकास सदन DDA जाना होता था. कई प्रॉपर्टी ऑक्शन में भी बिकती थीं. तब पता लगा कि बोली देने वाले आपस में मिले होते थे. एक निश्चित सीमा से ऊपर बोली जाने ही नहीं देते थे.

उसके बहुत बाद में जब यह शब्द "कार्टेल" सामने आया तो वो चलचित्र सामने घूम गया और इस शब्द का मतलब भी समझ आ गया.

अभी मेरे cousin के बेटे को तेज़ सरदर्द हुआ. एक डॉक्टर के पास गए, उसने बोला कि ब्रेन खिसक कर रीढ़ को टच कर रहा है, ऑपरेशन करके ऊपर उठाना होगा, वरना बेटा अपंग भी हो सकता है. फिर ऑपरेशन भी करा लिया. आठ- दस लाख लग भी गए. मैं जब देखने गया तो पूछा, "आपने और डॉक्टरों से राय ली था, सेकंड ओपिनियन, थर्ड ओपिनियन?"

उन्होंने कहा, "बिलकुल..बिलकुल....सबने यही राय दी कि ऑपरेशन करा लीजिये." Cousin करोड़ोपति हैं......अपने धंधे के माहिर हैं...ज़्यादा पढ़े नहीं हैं. अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे ग्राहक किसे नहीं चाहिए होते? पता नहीं क्यूँ, मेरे ज़ेहन में वही शब्द कौंध रहा था.... “कार्टेल”

कोई दस साल पहले मुझ पर ज़ुकाम का प्रकोप हुआ....सर्दियां मेरी बिस्तर में गुजरती.....छींकते, नाक, मुंह पोंछते, खांसते.........अपोलो, मैक्स, लोहिया, गंगा राम हॉस्पिटल के अलावा और न जाने कितने ही डॉक्टरों को दिखाया. कितनी ही दवाएं खा लीं......नाक का ऑपरेशन तक करवा लिया........नतीजा सिफ़र. जानते हैं कैसे ठीक हुआ? एक नैचुरोपैथ ने गर्म और ठंडे पानी से भरे कपड़े का बारी-बारी नाक पर सेक करने को कहा.......धूप सेकने को कहा. दिनों में फर्क पड़ गया. आज भी ज़रा सी दिक्कत होने पर यही करता हूँ और ठीक रहता हूँ......आप भी ऐसा कर सकते हैं....मेरा यकीन है, फायदा पायेंगे. कितना ही समय और पैसा बर्बाद हुआ, तकलीफ सही, वो अलग......नतीजा सिफ़र . अब डॉक्टरों और अस्पतालों को याद करता हूँ तो एक ही शब्द ज़ेहन में कौन्धता है “कार्टेल”

कभी आप टीवी पर अलग-अलग राजनेताओं की बहस देखो........ अगर एक पार्टी के प्रवक्ता के पास कोई जवाब नहीं होगा तो वो बदले में अपोजिट पार्टी पर अटैक करेगा...........कांग्रेस यदि गुजरात में मुस्लिमों पर हुए अत्याचार पर सवाल उठायेगी तो भाजपा उसे चौरासी की दिल्ली याद करा देगी...........और मुझे बस एक ही शब्द ध्यान आता रहेगा “कार्टेल”

देव नगर से मेरी एक पार्टी थीं छोटी देवी........उनकी बेटी ने भी मेरे द्वारा प्रॉपर्टी का कुछ आदान-प्रदान किया.............मंदिर जाने वाले लोग. हिन्दू किस्सा-कहानियों में यकीन करने वाले.....ब्राह्मण जब शिव, गणेश, दुर्गा, राम कृष्ण के किस्से सुनाएं तो विभोर होने वाले लोग. फिर न जाने कैसे ईसाई गुट में आ गए ....अब जीसस के किस्सों में यकीन करते हैं....पानी को शराब बना दिया........पानी पर चल पड़े थे...........हमारे पापों के लिए सूली चढ़ गए............जब मैं पंडे और फादर को याद करता हूँ तो एक ही शब्द याद आता है. "कार्टेल”

अगाथा क्रिस्टी मर्डर मिस्ट्री की मास्टर राइटर मानी जाती हैं.....आर्थर कानन डोयल के शेर्लोक्क होल्म्स के बाद क्रिस्टी का “हेरकुले पोइरोट” बहुत मशहूर करैक्टर है. कॉलेज के जमाने में कई नावेल पढ़े थे अगाथा क्रिस्टी के. एक है “मर्डर ऑन ओरिएंट एक्सप्रेस.” चलती ट्रेन में मर्डर हो जाता है. पोइरोट भी उसी ट्रेन में है. सभी यात्रियों के पास परफेक्ट ‘एलीबाई’ है. एलीबाई एक ख़ास गवाही को कहते हैं, मतलब घटना के वक्त कौन कहाँ था, इस बात कि गवाही, ताकि पता लग सके कि असल कातिल कौन है. जिसके पास एलीबाई न हो उसके कातिल होने की सम्भावना समझी जाती है, लेकिन इस केस में सबके पास परफेक्ट एलीबाई. अब यह कैसे सम्भव? पोइरोट परेशान. कातिल ढूंढना लगभग असम्भव. फिर पोइरोट को सूझ ही जाता है कि ऐसा तभी सम्भव है जब सभी मिले हुए हों. “कार्टेल”

जब कोई मकान-दूकान खरीदता था तो निश्चित ही इलाके के प्रॉपर्टी डीलरों से पूछताछ करता था......आखिर रेट जो वो बताते, वो ही तो माना जाता. लेकिन बाज़ार कोई डिमांड-सप्लाई से थोड़ा तय होती थी.....बाज़ार तय करते थे फाइनेंसर और डीलर...........बाज़ार गिरने ही नहीं देते थे...गिरे भी तो उसका फायदा आम-जन तक पहुँचने ही नहीं देते थे. मात्र तीन साल पहले की दिल्ली की कहानी है यह. “कार्टेल”

ध्यान कीजिये....अपने इर्द गिर्द...अपने जीवन के पीछे-आगे, दायें-बायें, ऊपर-नीचे..........इस शब्द का मर्म समझ में आ जाना बहुत काम आ सकता है “कार्टेल”

नमन...........कॉपी-राईट मैटर...........तुषार कॉस्मिक

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