राष्ट्र हैं और अभी रहेंगे. लेकिन हमारा राष्ट्रवाद यदि विश्व-बंधुत्व के खिलाफ है तो फिर वो कूड़ा है और सच्चाई यही है कि वो कूड़ा है. जभी तो आप गाते हैं, “सारे जहाँ से अच्छा, हिंदुस्तान हमारा” “सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी”. तभी तो आपको “विश्व-गुरु” होने का गुमान है. सही राष्ट्र-वाद यही है जो अंतर-राष्ट्रवाद का सम्मान करता है, जो दूसरे राष्ट्रों की छाती पर सवार होने की कल्पनाएँ नहीं बेचता.
मैं हैरान होता था जब बाबा रामदेव जैसा उथली समझ का व्यक्ति अपने भाषणों में अक्सर कहता था कि भारत को विश्व-गुरु बनाना है. क्यूँ भई? भारत अभी ठीक से विश्व-शिष्य तो बना नहीं और तुम्हें इसको विश्व-गुरु बनाना है.
यह सब बकवास छोडनी होगी. पृथ्वी एक है.......यह देश भक्ति, मेरा मुल्क महान है, विश्व गुरु है, यह सब बकवास ज़्यादा देर नहीं चलेगी.......हम सब एक है......बस एक अन्तरिक्ष यात्री की नज़र चाहिए......उसे पृथ्वी टुकड़ा टुकड़ा दिखेगी क्या?
अगर कोई बाहरी ग्रह का प्राणी हमला कर दे तो क्या सारे देश मिल कर एक न होंगे....तब क्या यह गीत गायेंगे, "सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा"?
सिर्फ इसलिए कि कोई हिंदुस्तान में पैदा हो गया तो वो गा रहा है सारे जहाँ से अच्छा.....अहँकार का ही फैलाव है इस तरह का देश प्रेम.....और जी-जान से लगा है भारतीय साबित करने में कि नहीं, भारत ही विश्वगुरु है, सर्वोतम है...
हमने विश्व को जीरो दिया
लेकिन यह कभी न सोचेगा कि जीरो देकर जीरो हो गया
जीरो देना ही काफी नहीं था, बुनियाद डालना ही काफी नहीं होता, इमारत आगे भी खड़ी करनी होती है
आज ग्लोबल होती दुनिया में नज़रिया भी ग्लोबल रखना होगा. एक दूजे से सीखना होता है. कहीं हम गुरु होते हैं तो कहीं शिष्य.
अब राष्ट्र-वाद को एक ‘नेसेसरी ईविल’ मतलब ज़रूरी बुराई की तरह समझना होगा. जैसे फिजिक्स में पढाते हैं. 'फ्रिक्शन' एक ‘नेसेसरी ईविल’ है. गति रोकती है, जितना ज़्यादा फ्रिक्शन होगी उतनी गति घटेगी. जैसे कार अगर पथरीली सड़क पर होगी तो धीरे ही चलानी होगी. चूँकि फ्रिक्शन बढ़ गई है. अब अगर कार बिलकुल चिकनी सड़क पर हो, जहाँ तेल गिरा हो तो भी नहीं चल पायेगी. तो फ्रिक्शन गति कम करती है लेकिन ज़रूरी भी है गति के लिए. बुराई है, लेकिन ज़रूरी है, उसके बिन गति नहीं है.
इसी तरह से मजहबों में बंटी दुनिया, विभिन्न धारणाओं में जकड़ी दुनिया अभी तो एक ग्लोबल इकाई होती नहीं दीखती. अभी तो यह राष्ट्रों में बंटी रहेगी. अभी ताज़ा मिसाल हरियाणा की है. एक होना दूर, जाट और नॉन- जाट में बंट गया एक प्रदेश.
लेकिन आगे सम्भावना है कि दुनिया ग्लोबल होगी और निश्चित ही होगी. और उम्मीद से जल्द होगी, चूँकि भविष्य की तकनीक और सहूलतें ऐसा कर ही देंगी. लेकिन तब तक राष्ट्र एक हकीकत रहेंगे और राष्ट्र-वाद भी. ‘नेसेसरी ईविल.
हम जानते हैं कि ग्लोब पर डाली गयी राजनीतिक लकीरें नकली हैं, घातक हैं. लेकिन क्या करें? हमारा जानना काफी नहीं हैं. सारी दुनिया तो ऐसा नहीं जानती या समझती. सो राष्ट्र हकीकत हैं अभी. लेकिन घमंडी किस्म के राष्ट्र-वाद से तुरत छुटकारा पाना होगा. हम सर्वोतम हैं, इस तरह की बकवास से पिंड छुडाना होगा.
मेरा राष्ट्रवाद मेरे राष्ट्र तक ही सीमित नहीं होना चाहिए. उसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और हर स्थान तक फैलना चाहिए. वो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘विश्व बंधुत्व’ की धारणा को समोए होना चाहिए न कि दूसरे राष्ट्रों की छाती पर सवार होकर खुद को ‘विश्व-गुरु’ स्थापित करनी की छद्म इच्छा से आपूर्त होना चाहिए.
नमन......कॉपीराईट मैटर....तुषार कॉस्मिक
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