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Showing posts from November, 2017

मैं और धर्म

मैं सिरे का अधार्मिक व्यक्ति हूँ. किशोर-अवस्था से. गुरूद्वारे में ग्रन्थ-साहेब-जी-दी-ग्रेट के सामने किसी के मत्था टेके पैसे उठा लिए एक बार. फिर सोचा मन्दिर में हाथ आज़माया जाए, लेकिन कुछ हासिल न हुआ सिवा चरणामृत के. बंगला साहेब गुरूद्वारे जाना होता है, परिवार की जिद्द की वजह से, मुझे सिर्फ दो चीज़ पसंद हैं.....एक कड़ाह प्रसाद, दूजा लंगर प्रसाद. शनिवार को वो जो बर्तन में सरसों का तेल डाल के मंगते घूमते हैं न, उनमें से एक का तेल से भरा डोलू (बर्तन) ही धरवा लिया था मैंने. मोहल्ले में भागवत कथा हो रही है. मैं बीवी जी को कह रहा था, "मैं भी जा सकता हूँ क्या?" बीवी ने कहा, "नहीं. हमने मोहल्ले भर से लड़ाई नहीं करनी." "पंडित जी से पूछ तो लेता कि शंकर जी ने कौन सी विद्या से हाथी का सर इन्सान के धड़ से जड़ दिया था? पंडित जी की गर्दन काट कर भी ऐसा ही चमत्कार किया जा सकता है क्या? ट्राई करने में क्या हर्ज़ है? फिर सारी दुनिया उनकी भी पूजा करेगी. मॉडर्न गणेश जी. नहीं?" "नहीं....नहीं." "हनुमान जी तो उड़ते थे, जंगल-पहाड़ लाँघ जाते थे. ज़रा पंडी जी ...

नमन शहीदों को?

सीमा पर कोई जवान मरेगा, तो सरकारी अमला सलाम ठोकेगा उसकी लाश को, शायद उसे कोई तगमा भी दे दे मरणोंपरांत, हो सकता है उसके परिवार को कोई पेट्रोल पंप दे दे या फिर कोई और सुविधा दे दे. शहीदों को सलाम. नमन. किसी दिन कूड़ा उठाने वाली निगम की गाड़ी न आई हो तो झट से कूड़े को ढक दिया जाता है, बहुत अच्छे से, ताकि बदबू का ज़र्रा भी बाहर न आ सके. यह शहीदों का सम्मान-इनाम-इकराम सब वो ढक्कन है जो संस्कृति के नाम पर खड़ी की गई विकृति की बदबू को बाहर नहीं फैलने देता. "ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुरबानी." शहीद! वतन के लिए मर मिटने वाला जवान!! गौरवशाली व्यक्तित्व!!! है न? गलत. कुछ नहीं है ऐसा. जीवन किसे नहीं प्यारा? अगर जीवन जीने लायक हो तो कौन नहीं जीना चाहेगा? जो न जीना चाहे उसका दिमाग खराब होगा. और यही किया जाता है. दिमाग खराब. वतन के लिए शहीद हो जाओ. असल में तुम्हारे सब शहीद बेचारे गरीब हैं, जिनके पास कोई और चारा ही नहीं था जीवन जीने का इसके अलावा कि वो खुद को बलि का बकरा बनने के लिए पेश कर दें. एक मोटा 150 किलो का निकम्मा सा आदमी...

यादें बचपन की

तूने खाया, मैंने खाया एक ही बात है." और अपनी पसंद की चीज़ माँ मेरे मुंह में ठूंसती जाती थी. आज काजू लाते हैं तो मैं श्रीमति को कहता हूँ, "मुझ से छुपा के रख दो, बच्चों को पसंद हैं, वो खायेंगे."

यादें

बहुत छोटा था तो कभी-कभार पानी में नमक-मिर्च डाल कर बासी रोटी के साथ भी खिलाई ममी ने.......हमारा परिवार वैसे अच्छा खाता-पीता था लेकिन अब लगता है कि शायद कुछ लोग सब्जी अफ्फोर्ड नहीं कर पाते होंगे तो ऐसे भी खाना खाते होंगे.......वैसे रोटी के घुग्घु में नमक और लाल मिर्च डाल करारा सा बना के भी ममी देतीं थीं कभी-कभी ...शायद तब ज़िन्दगी बेहतर थी....हम आगे जाने की बजाये बहुत मानों में पीछे सरक गए हैं......लेकिन हो सकता है मेरी सोच ही बासी हो, उन बासी रोटियों की तरह......जैसे बच्चे हर त्योहार पर उल्लसित होते हैं लेकिन घिसे लोगों को लगता है, "अब दिवाली पहले जैसे नहीं रही." "अब लोग होली वैसे जोश-खरोश से नहीं मनाते."

सरकता सरकारी अमला

एक बदतमीज़-नाकारा से सरकारी क्लर्क की तनख्वाह पचास हज़ार रूपया महीना हो सकती है. शायद ज़्यादा भी.  आपको नहीं लगता कि सरकार सरकारी नौकरों को जितनी तनख्वाहें, भत्ते, सुविधाएं दे रही है उस पर  'अँधा बांटे रेवड़ी, मुड़-मुड़ अपनों को दे' वाली कहावत चरितार्थ है?  खुली मंडी में इस तरह के लोगों को कोई दस हज़ार रुपये महीने की सैलरी न दे. असल में तो नौकरी ही न दे, ऐसे लोगों को कोई.    कहते हैं  कि गोरे अँगरेज़  चले गए, काले अँगरेज़ आ गए. ये हैं वो काले अँगरेज़. इन सरकारी लोगों का क्या व्यवहार है जनता के प्रति? ये कोई जनता के नौकर हैं? जनता इन की नौकर है.  "साहेब मीटिंग में है. साहेब, सिगरेट फूंक रहे हैं. साहेब, मूतने गए हैं. तुम खड़े रहो. लाइन सीधी होनी चाहिए."  मौज ही मौज. रोज़ ही रोज़. एक बार नौकरी मिल जाए तो व्यक्ति सरकार का जंवाई बन जाता है. निकाल कोई सकता नहीं. जीरो एकाउंटेबिलिटी. कौन नहीं चाहेगा ऐसी नौकरी? बहुत लोग तो घर ही बैठे रहते हैं, बस तनख्वाह लेने जाते हैं. पता नहीं कैसे करते हैं मैनेज? पर करते हैं. बहुत जो पचास-साठ हज़ा...

मोदी का विकल्प

मोदी विदा होना चाहिए लेकिन फिर क्या राहुल आना चाहिए? राहुल गाँधी (?) भारत को दिशा देगा? उसे आँखों पे पट्टी बांध के खेत में खड़ा कर दो और तीन बार गोल घुमा दो, वापिस आँख खोलने पे उसे खुद पता न लगे कि कौन सी दिशा में खड़ा है. पीछे वंश न हो और धन न हो तो पंचायत का चुनाव न जीत पाए. तो मितरो, आपका अगला प्रधान-मंत्री फिर कौन होना चाहिए. जवाब है---मैं यानि तुषार कॉस्मिक. या फिर आप खुद. हमारा मुल्क है. जनतंत्र की परिभाषा के मुताबिक हम में से कोई भी प्रधान-मंत्री, मुख्य-मंत्री, MP, MLA कुछ भी बन सकता है. तो जब कोई पूछे कि मोदी का, राहुल का विकल्प कौन है तो कहिये, "मैं हूँ".

भारतीय संस्कृति -- एक लाश

जब तक यह तथा-कथित भारतीय संस्कृति जो सिर्फ एक लाश भर है, इसे विदा नहीं करेंगे, भारत की आत्मा मुक्त न होगी. यह विदा हो ही जाती, लेकिन आरएसएस ने इस लाश को भारतीय मनस पर जबरन लाद रखा है. आरएसएस को डर है कि कहीं कोई और लाशें भारत की आत्मा पर सवार न हो जायें. कहीं इस्लाम हावी न हो जाये, कहीं ईसाइयत हावी न हो जाये. सो अपनी लाश को सजाते-संवारते रहो. स्वीकार ही मत करो कि यह लाश है. पंजाब में एक बाबा गुज़र चुके हैं, दिव्य-जाग्रति वाले आशुतोष जी महाराज, लेकिन उनके चेले-चांटे स्वीकार ही नहीं कर रहे कि वो मर चुके हैं. लाश को डीप-फ्रीज़र में रख रखा है. "मेरे करण-अर्जुन आयेंगे." बाबा जी शीत-निद्रा में हैं. उनकी आत्मा विचरण कर रही है. किसी भी वक्त वापिस शरीर में प्रवेश करेगी और वो उठ खड़े होंगे. वाह! नमन है, ऐसी भक्ति को. मिश्र में लाशों का ममी-करण क्या है? लाशों के प्रति मोह. अब जब कोई न मानने को तैयार हो तो बहुत मुश्किल है उसे कुछ भी मनाना. मुझे याद है, कॉलेज का ज़माना था. मेरा एक दोस्त था. जसविंदर सिंह. जट फॅमिली से था. बड़ा घर था उसका. हमारे लिए एक अलग ही कमरा था, हम लोग वहीं जमते ...

पद्मावती फिल्म का विरोध

मैं तो नहीं, लेकिन मेरे इर्द-गिर्द घर-परिवार-समाज हिन्दू है और सब कह रहे हैं कि यह पद्मावती फिल्म का विरोध करने वाले बावले हैं. हमारी बला से. वो कथा है या इतिहास यह भी नहीं पता...और अगर इतिहास है भी, तो उसमें कितना इतिहास है, यह भी नहीं पता.....और इतिहास से भंसाली की कहानी कितनी अलग है, यह भी नहीं पता....कव्वा कान ले गया वाली मसल है यह.....असल मुद्दों से... असल समस्या गरीबी, भुखमरी, बेकारी, बेकार न्याय-व्यवस्था, सरक-सरक कर चलती हर सरकारी बे-वस्था से ध्यान हटा कर बकवास मुद्दों में उलझाने की साज़िश. कौन जाने सात सौ साल पहले क्या हुआ था? यहाँ कल का पता नहीं लगता, जितना मुंह, उतनी बातें होती हैं. अगर कत्ल हो जाये तो कोर्ट को बीस साल लग जायेंगे फैसला देने में कि कातिल कौन था और फिर अगले बीस साल बाद हो सकता है कि कोई साबित कर दे कि कोर्ट का फैसला गलत था. None killed Jessica. None killed Arushi. और ये चले हैं सदियों पहले के मुद्दों पर लड़ाई करने. इतिहास-मिथिहास के लिए वर्तमान खराब करने वाले पागल होते हैं. भूतकाल की लड़ाई भूत लड़ते हैं. मुर्दा लोग. जिंदा लाशें. भूतकाल की लड़ाई वो ही लड़ते हैं, ज...

भाई कन्हैया

देखिये, मैं इस्लाम के खिलाफ हूँ..लेकिन ऐसे तो फिर मैं हिंदुत्व के भी खिलाफ हूँ और दुनिया के हर दीन-धर्म-मज़हब के खिलाफ हूँ जो माँ के दूध के साथ पिला दिया जाता है तो इसका मतलब क्या यह है कि मैं दुनिया के हर शख्स के खिलाफ हूँ चूँकि अधिकांश तो किसी न किसी दीन-धर्म को मानने वाले ही हैं. नहीं. मैं एक मुसलमान  के हित लिए भी उतना ही भिड़ जाऊँगा, जितना कि किसी हिन्दू के लिए. असल में मैं हिन्दू-मुस्लिम देखूँगा ही नहीं. आपको भाई कन्हैया याद दिलाता हूँ. गुरु गोबिंद सिंह को शिकायत की कुछ लोगों ने कि भाई कन्हैया युद्ध में घायल सिपाहियों को पानी पिलाता है तो दुश्मन के घायल सिपाहियों को भी पिलाता है. सही शिकायत थी. एक तरफ़ सिक्ख योद्धा जी-जान से लड़ रहे थी, दूजी तरफ भाई कन्हैया दुश्मनों को पानी पिला रहा था. गुरु साहेब ने क्या कहा? गुरु साहेब ने कहा कि भाई कन्हैया सही कर रहा है. मुझे ठीक-ठीक शब्द पता नहीं है. लेकिन मतलब शायद यही था कि सब में एक ही नूर है. हम सब एक ही हैं. मारना गुरु साहेब के लिए कोई शौक नहीं था. मज़बूरी थी, अन्यथा तो वो दुश्मन में भी वही "नूर" देख रहे थे और वही नूर...
कहते हैं कि शिक्षार्थी तो सीखता ही है, सिखाते हुए शिक्षक भी सीखता है. यह मैंने सोशल मीडिया पर लिखते हुए बहुत महसूस किया. मैंने अपने विचार, अपनी ओपिनियन, अपने जीवन की घटनाएं लिखी हैं. बहुत कुछ ज़ेहन में था तो सही, लेकिन वो उतना क्लियर नहीं था जितना लिखते-लिखते हो गया और फिर आप मित्रों के कमेंट ने उस सोच को और निखार दिया. धन्यवाद सोशल मीडिया का और आप सब मित्रों का जो पढ़ते हैं और अपने विचार भी लिखते हैं.
बड़ा ही प्यारा जानवर था, मालिक भी उसे बहुत प्यार करता था, उसे भी मालिक पर पूरा विश्वास था. मालिक कभी उसे चोट नहीं पहुँचने देता था. खूब खिलाता-पिलाता था. फिर कुलदेवता का उत्सव दिवस आया. मालिक ने उसे बलि चढ़ा दिया और उसका मांस मालिक के परिवार ने चाव से खाया. असल में जानवर 'जनता' है, कुलदेवता का उत्सव दिवस 'वोटिंग दिवस' है और मालिक 'नेता' है.
दिल्ली वालों को समझ ही नहीं आया कि उन्हें केजरीवाल को चुनने की सजा दी जा रही है. मूर्खों ने फिर से MCD में भाजपा को चुन लिया. पहले ही कूड़ेदान थी दिल्ली अब कूड़ाघर बना गई और ऊपर से गैस चैम्बर भी....वैसे भी संघ हिटलर में यकीन रखता है. न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिंदुस्तान वालो, तुम्हारी बरबादियों के चर्चे हैं हवाओं में. धुयें से भरी हवाओं में.
जब आप धिन्चक पूजा, राधे माँ, स्वामी ॐ का कोई एपिसोड देखते हैं तो एक किताब आत्म-हत्या कर लेती है और जब भी आप बिग-बॉस का एक एपिसोड देखते हैं तो एक लाइब्रेरी आत्म-हत्या कर लेती है.
नाना पाटेकर अग्निसाक्षी फिल्म में जैकी श्राफ को, "आप बड़े हैं, बहुत बड़े हैं साहेब. लेकिन आपके बड़े होने से हम छोटे नहीं हो जाते." "आप बहुत बड़े वकील हैं सर , बहुत सीनियर आप की चालीस साल की प्रैक्टिस है...लेकिन आपके सीनियर से हम जूनियर नहीं हो जाते...हम हम हैं." एक नया वकील