2. इस्लाम को नकारना हिंदुत्व को स्वीकारना है, यह न समझें. मैंने कहीं हिंदुत्व का पक्ष इस तरह लिया नहीं.
3. आज जो आप को हिंदुत्व का उग्र रूप दिख रहा है, वो इस्लाम की ही प्रतिक्रिया है. हिंदुत्व नामक तो कोई चीज़ भी शायद न हो.
4. इस्लाम के लिए जो मुस्लिम नहीं वो काफिर. ठीक. सो पहले काफिर को इस्लाम से निबटना है.आपस में भी निपटते रहिये. कोई दिक्कत नहीं.
5. यह नफरत नफरत क्या लिखते हैं सब? "नफरती चिंटू" भी लिखते अक्सर लोग. खैर, मुझे किसी से नफरत नहीं है. मुझे इस्लाम की आइडियोलॉजी नहीं जमती. तार्किक तौर पे. मैं इसे इस आधार पर रिजेक्ट करता हूँ.
6. और जो यह कहते हैं कि इस्लाम से दूर बना लीजिये बेशक लेकिन मुस्लिम को रिजेक्ट मत कीजिये, उन के लिए. जहाँ मिलेगा मुस्लिम मिलेगा, इस्लाम थोड़ा न मिलेगा. तो जब हम कहते हैं कि हमें इस्लाम पसंद नहीं, हमें इस्लाम नहीं जमता, इस का दूसरा अर्थ यही होता है कि हमें मुस्लिम नहीं जमता, हमें मुस्लिम नहीं पसंद. कड़वी बात है, लेकिन सत्य यही है. क्या हम मुस्लिम से इस्लाम को अलग कर सकते हैं? नहीं. जब अलग होगा तो वो मुस्लिम होगा ही नहीं.
7. इस्लाम को पसंद करना, इस्लाम के मानने वालों को पसंद करना ज़रूरी है क्या? मर्ज़ी हमारी. हमें नहीं पसंद तो नहीं पसंद. इस से ही कटटरपंथी हो गए हम? नफरती हो गए? समझ लीजिये, यदि कोई इस्लाम को नकार रहा है तो ज़रूरी नहीं कि अपने धर्म या राजनितिक झुकाव की वजह से नकार रहा है. इस्लाम को नकारना सिर्फ इस्लाम नकारना भी हो सकता है. और न ही यह कोई नफरत है. उस के लिए इस्लाम खुद ज़िम्मेदार है. हमारे मामले में, इस्लाम की नकार के पीछे हमारी इस्लाम की समझ है न कि नफ़रत, न कि कोई और धार्मिक या राजनीतीक कारण.
8. मैंने कुछ X- मुस्लिम या कहिये X-मुस्लिम टाइप व्यक्ति देखे हैं, जो इस्लाम की आलोचना तो करते हैं लेकिन मुस्लिम का बहिष्कार उन को भी स्वीकार्य नहीं. क्यों? चूँकि वो भी आते तो मुस्लिम समाज से ही हैं. उन का लगाव कहीं न कहीं अपने दोस्त, अपने परिवार, अपने रिश्तेदारों से तो हो ही सकता है. यह मैं समझ सकता हूँ. लेकिन उन को भी समझना ही होगा कि मुस्लिम को बहुधा झेला जाता है न कि स्वीकारा जाता है. कोई खुल्ले में कह देता है, कोई नहीं.
9. यदि आप इस्लाम को पसंद नहीं करते तो साफ़-साफ़ कहना और लिखना-बोलना शुरू कीजिये. कल ही ब्लड सैंपल लेने आना था किसी कंपनी से बिटिया का. कोई मुस्लिम ने आना था, हम ने साफ़ मना कर दिया. कोई और बंदा भेजो यदि भेजना हो. भेजा उन्होंने. हमने पहचान पत्र देख कर ही एंट्री दी. काफिर है भाई हम, काफिर से ही डील करेंगे. मर्ज़ी हमारी. तुम को हमें हमारे किसी उत्सव की शुभ-कामनाएं देनी हो-न देनी हों, हम को ईद मुबारक नहीं कहना तो नहीं कहना.
क्या कहा? "हम सेक्युलर नहीं हैं."
"नहीं हैं. बस. आप के लिए तो बिलकुल नहीं हैं. पहले खुद तो बनो सेक्युलर, फिर हम भी बन लेंगे. पक्का. पक्का."
10. प्रॉपर्टी डीलर हूँ. ज़्यादातर लोग मुख्य इलाकों में मुस्लिम को किराए पर घर देने से मना कर देते हैं. प्रॉपर्टी डीलर, जिन को दलाल कहा जाता है, जिन की कोई औकात नहीं समझी जाती, तुच्छ दलाल. वो तक मुस्लिम से डील करना नहीं चाहते. इस्लाम को जाना ही होगा. जाना तो सभी धर्म को होगा, लेकिन सब से जल्दी इस्लाम को जाना होगा.
Tushar Cosmic