Thursday, 11 October 2018

धूप-स्वास्थ्य-ज्ञान

ज़ुकाम को मात्र ज़ुकाम न समझें......यह नाक बंद कर सकता है, कान बंद कर सकता है, साँस बंद कर सकता है. पहले वजह समझ लें. थर्मोस्टेट. थर्मोस्टेट सिस्टम खराब होने की वजह से होता है ज़ुकाम. थर्मोस्टेट समझ लीजिये कि क्या होता है. 'थर्मोस्टेट' मतलब हमारा शरीर हमारे वातावरण के बढ़ते-घटते तापमान के प्रति अनुकूलता बनाए रखे. लेकिन जब शरीर की यह क्षमता गड़बड़ाने लगे तो आपको ज़ुकाम हो सकता है और गर्मी में भी ठंडक का अहसास दिला सकता है ज़ुकाम. और सर्दी जितनी न हो उससे कहीं ज्यादा सर्दी महसूस करा सकता है ज़ुकाम. खैर, अंग्रेज़ी की कहावत है, "अगर दवा न लो तो ज़ुकाम सात दिन में चला जाता है और दवा लो तो एक हफ्ते में विदा हो जाता है." दवा हैं बाज़ार में लेकिन कहते हैं कि ज़ुकाम पर लगभग बेअसर रहती हैं. तो ज़ुकाम का इलाज़ क्या है? इलाज बीमारी की वजहों में ही छुपा होता है. इलाज है, खुली हवा और खुली धूप. रोज़ाना पन्द्रह से तीस मिनट नंगे बदन सुबह की धूप ली जाये. मैं पार्क जब भी जाता हूँ तो धूप वाला टुकड़ा अपने लिए तलाश लेता हूँ. और बदन पर मात्र निकर. 'जॉकी' का भाई. ब्रांडेड. और व्यायाम और आसन शुरू. उल्लू के ठप्पे हैं लोग जो 'सूर्य-नमस्कार' भी करते हैं तो छाया में. अबे ओये, तुम्हें पता ही नहीं तुम्हारे पुरखों ने जो सूर्य-भगवान को पानी देने का नियम बनाया था न, वो इसलिए कि सूर्य की किरणें उस बहाने से तुम्हारे बदन पे गिरें. और तुम हो कि डरते रहते हो कि कहीं त्वचा काली न पड़ जाए. कुछ बुरा न होगा रंग गहरा जायेगा तो. बल्कि ज़ुकाम-खांसी से बचोगे. हड्ड-गोडे सिंक जायेगें तो पक्के रहेंगे. ठीक वैसे ही जैसे एक कच्चा घड़ा आँच पर सिंक जाता है तो पक्का हो जाता है. बाकी डाक्टरी भाषा मुझे नहीं आती. विटामिन-प्रोटीन की भाषा में डॉक्टर ही समझा सकता है. मैं तो अनगढ़-अनपढ़ भाषा में ही समझा सकता हूँ. हम जो ज़िंदगी जीते हैं वो ऐसे जैसे सूरज की हमारे साथ कोई दुश्मनी हो. एक कमरे से दूसरे कमरे में. घर से दफ्तर-दूकान और वहां से फिर घर. रास्ते में भी कार. और सब जगह AC. एक करेला ऊपर से नीम चढ़ा. कोढ़ और फिर उसमें खाज. अबे ओये, कल्पना करो. इन्सान कैसे रहता होगा शुरू में? जंगलों में कूदता-फांदता. कभी धूप में, कभी छाया में. कभी गर्मी में, कभी ठंड में. इन्सान कुदरत का हिस्सा है. इन्सान कुदरत है. कुदरत से अलग हो के बीमारी न होगी तो और क्या होगा? उर्दू में कहते हैं कि तबियत 'नासाज़' हो गई. यानि कि कुदरत के साज़ के साथ अब लय-ताल नहीं बैठ रही. 'नासाज़'. अँगरेज़ फिर समझदार हैं जो धूप लेने सैंकड़ों किलोमीटर की दूरियां तय करते हैं. एक हम हैं धूप शरीर पर पड़ न जाये इसका तमाम इन्तेजाम करते हैं. "धूप में निकला न करो रूप की रानी.....गोरा रंग काला न पड़ जाये." महा-नालायक अमिताभ गाते दीखते हैं फिल्म में. खैर, नज़ला तो नहीं है मुझे लेकिन एक आयत नाज़िल हुई है:- "हम ने सर्द दिन बनाये और सर्द रातें बनाई लेकिन तुम्हारे लिए नर्म नर्म धूपें भी खिलाई जाओ, निकलो बाहर मकानों से जंग लड़ो दर्दों से, खांसी से और ज़ुकामों से." जादू याद है. अरे भई, ऋतिक रोशन की फ़िल्म कोई मिल गया वाला जादू. वो 'धूप-धूप' की डिमांड करता है. शायद उसे धूप से एनर्जी मिलती है. आपको भी मिल सकती है और आप में भी जादू जैसी शक्तियाँ आ सकती हैं. धूप का सेवन करें. क्या कहा! आपको यह सब तो पहले से ही मालूम था. गलत. आपको नहीं मालूम था. आपको मालूम था लेकिन फिर भी नहीं मालूम था. नहीं. नहीं. मजाक नहीं कर रहा. जीवन की एक गहन समझ दे रहा हूँ आपको. हमें बहुत सी चीज़ों के बारे में लगता है कि हमें मालूम है. लगता क्या? मालूम हो भी सकता है. बावज़ूद इसके हो सकता है कि हमें उन चीज़ों के बारे में कुछ भी न मालूम हो. कैसे? मिसाल के लिए एक पांचवीं कक्षा के अँगरेज़ बच्चे को अंग्रेज़ी भाषा पढनी आती हो सकती है लेकिन ज़रूरी थोड़े न है कि उसे शेक्सपियर के लेखन का सही मतलब समझ आ जाये. उसे शब्द सब समझ में आते हो सकते हैं, वाक्यों के अर्थ भी समझ आते हो सकते हैं लेकिन शेक्सपियर ने जो लिखा, उस सब का सही-सही मतलब उस बच्चे को समझ आये, यह तो ज़रूरी नहीं. वजह है. वजह यह है कि जितना बड़ा जीवन-दर्शन शेक्सपियर देना चाह रहा है अपने शब्दों में, उतना जीवन ही बच्चे ने नहीं देखा. हो सकता है आपने भी वो सब न देखा हो जो मैं दिखाना चाह रहा हूँ. घमंड नहीं कर रहा, लेकिन क्या आपने आज तक धूप को इलाज की तरह देखा? अगर नहीं तो मैं सही हूँ. नमन...तुषार कॉस्मिक

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