Monday, 22 October 2018

उत्सव-धर्मिता

आपको पता है हम उत्सव क्यों मनाते हैं......? चूँकि हमने जीवन में उत्सवधर्मिता खो दी. चूँकि हमने दुनिया नरक कर दी कभी बच्चे देखें हैं.......उत्सवधर्मिता समझनी है तो बच्चों को देखो.... हर पल नये...हर पल उछलते कूदते.....हर पल उत्सव मनाते क्या लगता है आपको बच्चे होली दिवाली ही खुश होते हैं.......? वो बिलकुल खुश होते हैं....इन दिनों में.......लेकिन क्या बाक़ी दिन बच्चे खुश नही होते? कल ही देख लेना ....यदि बच्चों को छूट देंगे तो आज जितने ही खेलते कूदते नज़र आयेंगे यह है उत्सवधर्मिता जिसे इंसान खो चुका है और उसकी भरपाई करने के लिए उसने इजाद किये उत्सव ...होली...दीवाली...... खुद को भुलावा देने के लिए ये चंद उत्सव इजाद किये हैं........खुद को धोखा देने के लिए...कि नहीं जीवन में बहुत ख़ुशी है ..बहुत पुलक है......बहुत उत्सव है. नहीं, बाहर आयें ..इस भरम से बाहर आयें...समझें कि दुनिया लगभग नरक हो चुकी है......हमने ..इंसानों ने दुनिया की ऐसी तैसी कर रखी है कुछ नया सोचना होगा...कुछ नया करना होगा ताकि हम इन नकली उत्सवों को छोड़ उत्सवधर्मिता की और बढ़ सकें वैसे तो जीवन ही उत्सवमय होना चाहिए, उत्सवधर्मी होना चाहिए, लेकिन विशेष उत्सव जो भी मनाये जाएँ, वो मात्र इसलिए नहीं कि हमारे पूर्वज मनाते थे या हम मनाते आ रहे हैं....मनाते आ रहे हैं...... मिस्टर वाटसन एक रेस्तरां में इसलिए खाना खाते आ रहे हैं पिछले तीस साल से चूँकि उनके पिता उसी रेस्तरां में खाना खाते थे चूँकि उनके पिता के पिता उसी रेस्तरां में खाना खाते थे. क्या कहेंगे आप? बहुत बुद्धि का काम कर रहे हैं मिस्टर वाटसन? लोग कांग्रेस को इसलिए वोट देते रहे चूँकि वो कांग्रेस को ही वोट देते आ रहे थे? ऐसे तर्कों को आप कितना तार्किक कहेंगे? है न मूर्खता! लेकिन आप भी तो वही करते हैं. उत्सव इसलिए मनाते हैं चूँकि बस आप मनाते आ रहे हैं...आपके बाप मनाते आ रहे हैं. न.न. उत्सव मनाएं लेकिन थोड़ा जागिये. थोड़ा विचार कीजिये. पुराने किस्से-कहानियों को संस्कृति के नाम पर मत ढोते चलिए. उत्सव मनाने हैं तो नई वजह खोज लीजिये. क्या दीवाली पर एडिसन या निकोला टेस्ला को याद नहीं किया जा सकता जिन्होंने इस दुनिया को रोशन करने में योगदान दिया? कल ही मैं पढ़ रहा था कि गूगल ने लच्छू महाराज को याद किया. वाह! क्या तबला बजाते थे! मैं उनको देख-सुन कर दंग! ऐसे लोगों की याद में उत्सव मना सकते हैं. गणित में रूचि हने वाले रामानुजन की जयंती का उत्सव मना सकते हैं. गायन में रूचि रखने वाले नुसरत फतेह अली की याद में गा सकते हैं. नृत्य में रूचि रखने वाले मित्र 'वैजयन्ती माला' की जन्म-जयंती मना सकती हैं. हम अपने कलाकारों, वैज्ञानिकों की याद में रोज़ उत्सव मना सकते हैं. हम हर पल उत्सव मना सकते हैं. हम बिना वजह के उत्सव मना सकते हैं. बस उत्सव के नाम पर मूर्खताएं न करते जाएँ और ये मूर्खताएं मात्र इसलिए न करते जायें कि आप करते आये हैं, आपके बाप करते आये हैं. नमन...तुषार कॉस्मिक

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