Monday 28 October 2024

तुम ने इस्लाम कबूला है या कोई जुर्म?

क्या तुम ने डाकुओं की फिल्में देखी हैं? दगड़-दगड़ घोड़े दौड़ रहे हैं. पीठ पर डाकू बैठे हैं. लेकिन मुंह पर कपड़ा भी बाँधे हैं. क्यों? ताकि पहचान में न आ सकें.

इस्लाम गिरोह की तरह काम करता है. इस में पर्दे का बहुत रिवाज़ है.

औरतों के मुंह छुपाये जाते हैं. बस आँखें छोड़ सब ढक दो. वो भी देखने के लिए खुली रहनी ज़रूरी हैं, नहीं तो वो भी ढक देते.

ISIS याद है. सीरिया तहस-नहस हुआ था. फोटो देखे होंगे. उन्ही दिनों ये लोग कत्ले-आम मचाये हुए थे. लोगों को पिंजरे में डाल जिंदा जला दिए थे, यज़ीदी लड़कियों के लगातार बलात्कार हुए थे. कईयों की गर्दनें उतार दीं थी, कईओं को लाइन से गोलियों से भून दिया गया था. याद होगा, वीडियो मिल जाएंगे यूट्यूब पर देख लेना. नोट करने की बात यह थी कि जो लोग यह सब कर रहे थे, उन्होंने अपने चेहरे छुपा रखे थे. भई, इतना ही शुभ काम कर रहे हो तो, पर्दे के पीछे काहे छुप रहे हो?

मुस्लिम सिर्फ कपड़े के पीछे ही नहीं छुपते, नाम भी छुपाते हैं. दिलीप कुमार, मधु बाला, अजीत और न जाने कितने ही एक्टर रहे हैं हिंदी फिल्मों में जो असल में मुस्लिम थे लेकिन हिन्दू नामों के पीछे छुप गए.

आज भी योगी ने जब अपने व्यापार की नाम प्लेट लगाने का आदेश दिया तो हाहाकार मच गयी. क्यों? चूँकि मुस्लिम हिन्दू नामों के पीछे छुप कर व्यापार कर रहा है.

और ये जो "लव जिहाद" का आरोप लगाते हैं न भगवा ब्रिगेड वाले, ये कोई कोरा झूठ हो ऐसा मुझे लगता नहीं चूँकि मेरे इर्द-गिर्द बहुत से मर्द देखे हैं मैंने जिन की बीवियाँ हिन्दू घरों से हैं लेकिन उल्टा नहीं है. तो मुस्लिम आदमी, गैर मुस्लिम औरतों को इस तरीके से भी इस्लाम में लाते हैं यह तो पक्का है. अब वो अपनी पहचान छुपाते हैं, नाम गलत बताते हैं शुरू में, इस की भी बहुत ज़्यादा संभावना है. ऐसे कई केस पकड़े भी गये हैं.

एक वाक़या याद आता है, कोई लगभग डेढ़ दशक पुरानी बात है. मैं फेसबुक पर आया ही था. मुझे फेसबुक ठीक से चलना आता ही नहीं था. कोई SAM नाम से मित्र बनी. कुछ बात-चीत बढ़ी तो पता लगा वो शाज़िया मीर थीं. कश्मीर में पहलगाम या अनंतनाग के पास किसी गाँव में रहती थी. तब तक मुझे इस्लाम की "खूबियां" कुछ खास नहीं पता थी. मैं सब धर्मों को एक जैसा समझता था. एक जैसा "व्यर्थ". वो तो सोशल मीडिया पर आने के बाद ही मुझे इस्लाम पर ढेरों वीडियो और लेख मिले तो मेरे ज्ञान चक्षु खुलने लगे. और फिर जब मैं इस्लाम के खिलाफ पोस्ट डालने लगा तो शाज़िया ने मुझे एक-दो बार समझाने का प्रयास किया. उस के कहने से मैंने वो पोस्ट हटा भी दीं. लेकिन मेरा सच ज़ोर मारने लगा और मैं यदा-कदा इस्लाम पर पोस्ट डालने लगा. फिर शाज़िया गायब हो गईं. हो सकता है, वो आज भी पढ़तीं हो मेरा लिखा कभी छुप कर चूँकि हम लोग जिन से अलग होते हैं, उन को भी कभी-कभी बीच में देखना चाहते हैं.

आज मुझे समझ आता है कि शाज़िया SAM नाम से अपनी ID क्यों चला रहीं थी? चूँकि शाज़िया को पता था कि मुस्लिम नाम से शायद कोई लोग उसे रिजेक्ट कर सकते हैं शुरू में ही. हालाँकि उस वक्त तक मुझे शाज़िया और SAM, दोनों में न तो कोई फर्क पता था और न ही कोई परहेज़ था.

X-मुस्लिम देखे हैं. ज़्यादातर ने अपने मुँह छुपा रखे हैं. क्यों? चूँकि पहचान लिए गए तो मार दिए जाएंगे. किसी और धर्म को कतई फर्क नहीं पड़ता, छोड़ दो , छोड़ दो. कोई मरने मारने नहीं आएगा. लेकिन इस्लाम..? यह तो है गिरोह. कोई यह गिरोह कैसे छोड़ के जा सकता है. यह One-way ट्रैफिक है. जहाँ एंट्री तो है एग्जिट कोई नहीं.

इस्लाम में रहते हुए तो मुँह छुपाते ही हैं मुस्लिम, इस्लाम छोड़ दिया तब भी मुँह छुपाते हैं. मैंने सुना है, मारे जाने का, सामाजिक बहिष्कार का डर न हो तो आधे मुस्लिम X-मुस्लिम हो जाएंगे. X-मुस्लिम की बाढ़ आ जाये, सुनामी आ जाये.

और एक पर्दा है जो मुसलमान कर रहे हैं, वो शायद बहुत कम लोगों को दिख रहा हो. इस्लामिक ग्रंथों से निकाल यदि कोई रिफरेन्स दे दे, जो आज के ज़माने के हिसाब से कुछ फिट सा न बैठता दिखाई पड़ता हो तो मुस्लिम हो-हल्ला करने लगे हैं. सर तन से जुदा का आह्वान करने लगे हैं. नूपुर शर्मा मामले में यही हुआ था. उस ने जो भी कहा था, वो एक डिबेट में कहा था. मिस्टर रहमानी ने हिन्दू मान्यताओं पर कुछ नेगेटिव टिपण्णी की थी तो बदले में नूपुर ने जो कहा था वो इस्लामिक ग्रंथों का रिफरेन्स देते हुए कहा था. जो उस ने कहा, वो इस्लामिक स्कॉलर कई बार कह चुके हैं. लेकिन सर तन से जुदा का नारा सिर्फ नूपुर के लिए. फिर मैंने देखा X-मुस्लिम साहिल को एक डिबेट में. वो कुछ इस्लामिक ग्रंथों में से रिफरेन्स के साथ quote करने जा रहा था, लेकिन मौलाना लगा चीखने-चिल्लाने, "तू मुरतद है, तू कुछ नहीं बोल सकता, तू मुरतद है .... " और डिबेट खत्म. मेरे साथी हैं एक मोहमद क़ासिम (नाम थोड़ा सा बदल दिया है). प्रॉपर्टी की कई डील हम ने मिल-जुल कर की हैं. शरीफ व्यक्ति हैं. कब्बी-कभार इन से इस्लाम पर भिड़ंत हुई है. जब भी कभी मैंने क़ुरान का हवाला दे कर कहा कि क़ुरान में काफिर/गैर-मुस्लिम के खिलाफ बहुत हिँसा है तो ये जनाब बुरी तरह से भड़क गए. मैंने आयतों का रिफरेन्स देने की बात की तो भी इन की Sanity लौटी नहीं. ये भड़के ही रहे. मुझ से कहा, "आप आयतों के मतलब ठीक से नहीं समझते. उस आयत के आगे की आयत पढ़ो, पीछे की आयत पढ़ो. उस का संदर्भ समझो. उस का अनुवाद सही नहीं है." और भी पता नहीं क्या-क्या.
कुल मिला कर नतीजा यह है कि मुस्लिम अपने ही ग्रंथों को पर्दे में रखने लगे हैं.


यहाँ मैं इस्लामिक कांसेप्ट "अल-तकिया" का ज़िक्र भी करूंगा. इस का शाब्दिक अर्थ जो मुझे मिला वह है: "किसी खतरे के समय, चाहे अभी हो या बाद में, खुद को शारीरिक और/या मानसिक चोट से बचाने के लिए अपने विश्वासों, मान्यताओं, विचारों, भावनाओं, राय और/या रणनीतियों को छिपाना या छिपाना।" लेकिन गैर-मुस्लिमों में इस का प्रैक्टिकल अर्थ समझा जा रहा है कि मुस्लिम इस्लाम फ़ैलाने के लिए कैसा भी झूठा और छद्द्म रूप अख़्तियार कर सकते हैं. गैर-मुस्लिम ग़लत हो सकते हैं, अल-तकिया के अर्थ समझने में. लेकिन मुस्लिम इस्लाम फ़ैलाने के लिए साम-दाम दंड-भेद सब तरह की नीति-कूटनीति का प्रयोग करते हैं इस में मुझे कोई शंका नहीं है.

मेरा सवाल है मुस्लिम से, आत्म-निरीक्षण करो. तुम अपने नाम छुपाते हो, अपनी पहचान छुपाते हो, अपनी औरतों को सात पर्दों में छुपाते हो, तुम में से ही जो लोग हिंसक गतिविधियाँ करते हैं तो अपने चेहरे छुपाते हैं, अपने ग्रंथों के रिफरेन्स तक को छुपाने लगे हो, तुम्हारा दीन जो लोग छोड़ जाते हैं वो तक अपने आप को छुपाते हैं. क्यों?

तुम ने इस्लाम कबूला है या कोई जुर्म?

अपने इर्द-गिर्द के जमाने को देखों, कहीं तुम चौदह सौ साल पीछे तो नहीं छूट गए?

Tushar Cosmic

Tuesday 22 October 2024

क्या भारत कोई राष्ट्र था? क्या हिन्दू/सनातन कोई धर्म है?

यहाँ इस भूमि पर, जिसे अब "भारत" कहा जाता है, अनेक राजा थे. वे लड़ते रहते थे. यह कहना गलगट है कि वे "आपस" में लड़ रहे थे चूँकि आपस वाली कोई बात नहीं थी. हर राज्य अपने आप में देश था. यही उनकी दुनिया थी.

मिसाल के लिए देखिए. एक राष्ट्र रहा होगा. छोटा. फिर उस से कुछ बड़ा कोई राज्य बना होगा जो "महाराष्ट्र" बन गया. महाराष्ट्र जो आज भारत का सिर्फ एक स्टेट है. आज भारत को हम राष्ट्र कहते हैं. राष्ट्र में महाराष्ट्र. छोटे डब्बे में बड़ा डब्बा. है न हैरानी की बात! मतलब यह है कि किसी जमाने में कोई छोटा सा नगर ही अपने आप में राष्ट्र माना जाता रहा होगा.

महाराष्ट्र का नाम यदि "म्हार राष्ट्र" से बना मान भी लिया जाये तो भी मेरा क्लेम पुख्ता होता है. कैसे? म्हार राष्ट्र ही म्हार लोगों के लिए एक राष्ट्र था. और यही तो मैंने कहा है कि भारत नाम से कोई राष्ट्र कभी नहीं रहा.

और यह "भारत" नाम राजा "भरत" के नाम पर है, यह भी एक भ्रान्ति है. प्रत्येक राज्य/रियासत का अपना नाम होता था....अपना राजकुमार/राजा।

जितना इतिहास हम जानते हैं, उसमें केवल अशोक के पास ही बहुत बड़ा राज्य था, और उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह के पास। अन्यथा मुगलों के पास बड़े राज्य थे और फिर अंग्रेजों के पास सबसे बड़ा राज्य था....भारत...जिसमें पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश और शायद कई अन्य पड़ोसी क्षेत्र शामिल थे। यह ब्रिटिश India था, जो 1947 में दो भागों में विभाजित हो गया, अन्यथा ब्रिटिश राज से पहले जैसा भारत आज हम देखते हैं ऐसा कुछ भी नहीं था. सैंकड़ों राज्य थे. अलग-अलग. आज का भारत 1947 में विभक्त नहीं हुआ था, पैदा हुआ था. आशा है मैं स्पष्ट हूं.... दिल्ली-पंजाब में मज़दूरी करने वाला मज़दूर जब बिहार/उत्तर प्रदेश जाता है तो अक्सर मैंने उसे कहते सुना है, "हम अपने मुलुक जा रहा हूँ." यानि उस के लिए बिहार/यू पी उस का मुल्क है. और वो दिल्ली या पंजाब में "परदेसी" है. "देस" उस का बिहार या उत्तर प्रदेश है. "प्रदेश" शब्द देखिये. परदेस शब्द इसी से आया होगा। निश्चित ही. यानि "प्रदेश", यह शब्द जिसे आज हम स्टेट के लिए प्रयोग करते हैं, किसी समय यह भी गाँव-देहात में रहने वाले लोगों के लिए दूसरे देश जैसी ही अवधारणा रही होगा. तभी तो "प्रदेश". "परदेस". आई बात समझ में? एक और बड़े मजे का तर्क दिया जाता है कि यदि भारत नहीं था तो फिर "महाभारत" कैसे लिखी गयी? कहाँ से आ गयी? पहली तो बात यह है कि महाभारत को आज तक कोई ऑथेंटिक इतिहास नहीं माना जाता. यह मिथिहास है. मिथ्या इतिहास. मिथिहास. जिस का यह नहीं पता कि सच कितना है और कल्पना कितनी. चलिए बहस के लिए मान लेते हैं कि यह इतिहास है तो फिर महाभारत में भी भारत जैसा आज एक देश है ऐसे, इतने बड़े देश का कहाँ ज़िक्र है? दिल्ली और इस के इर्द-गिर्द के किसी इलाके को हस्तिना-पुर कहा गया. दिल्ली के पुराने नामों में इंद्रप्रस्थ भी कहा जाता है. बस इसी इलाके की तो लड़ाई थी. बाकी तो सब आस-पास के राजा थे. जरासंध शायद मथुरा-वृंदावन का राजा था. गांधारी शायद कंधार/अफगानिस्तान से थी. कौन सा राजा था उस समय भी जिस के पास आज जितना बड़ा कोई राज्य था जिसे "भारत" कहा जाता था? कोई भी नहीं. एक और तर्क दिया जाता है की विष्णु पुराण में कहीं लिखा है, "उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् | वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||" इसका मतलब है कि समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं और वहां रहने वाले लोगों को भारतीय कहते हैं. लिखा होगा लेकिन उस से साबित ही क्या होता है? पहली तो बात है कि पुराण कोई ऑथेंटिक ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं हैं. ये सब तथा-कथित धार्मिक किस्म की किताब हैं, जिन पर तर्क बिठाने लगते हैं तो सब रायता बिखर जाता है. दूसरी बात यह है कि जिन को भारती कहा जा रहा है उन में सन सैंतालीस से पहले कौन खुद को भारती कहता था. मैंने ऊपर ही लिखा न राष्ट्र की कोई धारणा ही नहीं थी जैसी आज है. हर राजा का राज्य अपने आप में ही एक राष्ट्र था. बस. और जिस भूमि को भारत कहा जा रहा है विष्णु पुराण में वहाँ पता नहीं कितने ही राष्ट्र थे सन सैंतालीस से पहले. जो बनते-बिगड़ते रहते थे, घटते-बढ़ते रहते थे. यह सिर्फ तथा कथित हिन्दुओं द्वारा फैलायी गयी एक मिथ्या धारणा है कि भारत के 1947 में दो टुकड़े हो गए. हो गए लेकिन ब्रिटिश राज वाले "इंडिया" के. असलियत यह है. अगर भारत एक ही था तो फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल कौन सी रियासतों को एकीकृत किये थे? एक को क्या एकीकृत करना? और असलियत यह है कि हिन्दू या सनातन धर्म नाम से भी कुछ नहीं है. धरती का यह हिस्सा जिसे आज भारत कहा जा रहा है, यहाँ न तो हिन्दू/सनातन धर्म नाम से कोई धर्म रहा है और न ही भारत नाम से कोई राष्ट्र. हिन्दू शब्द कहाँ से आया इस पर भी भिन्न-भिन्न धारणाएं हैं. एक धारणा यह है कि यह शब्द "सिंधु" से बना है. सिंधु दरिया के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा जाने लगा. लेकिन दूसरी धारणा यह है कि यह शब्द पुरातन स्थानीय ग्रंथों में भी है कहीं-कहीं. संस्कृत ग्रंथों में. लेकिन तथा-कथित हिन्दुओं के मुख्य ग्रंथों में "हिन्दू" शब्द कहीं भी नहीं है. न रामायण में, न महाभारत में. न राम ने कभी खुद को हिन्दू कहा, न कृष्ण ने और न ही हिन्दुओं के किसी और बड़े अवतार, देवी-देवता ने. यहाँ जैसे छोटे-छोटे राज्य रहे हैं, वैसे ही हर इलाके के अपने देवी-देवता. आज लॉरेंस बिश्नोई को सभी जानते हैं. बिश्नोई समाज पंजाब और हरियाणा के बॉर्डर एरिया में रहता है. यह समाज जम्भेश्वर नाथ को मानते हैं. क्या बाहर किसी को पता है कि कौन थे ये जम्भेश्वर नाथ? आज भी यहाँ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर देवी-देवता बदल जाते हैं. यहाँ शिव लिंग की पूजा होती है तो यहाँ आसाम में कामाख्या मंदिर में योनि की पूजा भी होती है. यहाँ मृत्यु के बाद शरीर जलाये जाते हैं तो लिंगायत लोगों के शरीर दफनाए जाते हैं. माता दुर्गा! ऐसा लगता है जैसे किसी दुर्ग (किले) की रक्षा के लिए हों. बंगाली लोग श्रद्धा से मूर्ती पूजा करते हैं. दुर्गा पूजा और विसर्जन उन के धार्मिक क्रिया कलापों में सब से प्रमुख है, वहीं आर्य समाजी मूर्ती पूजा का सख्त विरोध करते हैं. यहाँ आस्तिक हैं तो नास्तिक भी हैं. गुरु नानक के उद्घोष "एक औंकार सत नाम" में न तो मूर्ती पूजा है और न ही किसी भगवान का ज़िक्र. जितना मुझे पता है, सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है. वैसे आरएसएस खुद यह कहता है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है. मैंने योगी आदित्यनाथ को भी ऐसा ही कुछ कहते हुए सुना है. और अब सनातन. क्या है भाई यह? जितना मुझे पता है, इस्लाम भी खुद को सनातन ही कहता है. आदम-हव्वा से चलता हुआ. सदैव के लिए. हर समय के लिए और हरेक के लिए. बात हिन्दुओं वाले "सनातन" की. भाई, दशरथ से पहले तो राम नहीं थे. यशोदा मैया से पहले तो कृष्ण नहीं थे. राम और कृष्ण तो तुम्हारे प्रिय भगवान हैं. एक समय ये नहीं थे. ऐसे ही कितने और देवी-देवता जन्में और मरे. सवाल यह है कि इन के समय से पहले सनातन था या नहीं? जो लोग किसी और भगवान, किसी और देवी-देवता को पूजते थे, वो सनातनी थे या नहीं? और रामायण और महाभारत काल से पहले के लोग किन्ही और ग्रंथों को पढ़ते होंगे, पूजनीय मानते होंगे, तो वो सनातनी थे या नहीं? ठीक-ठीक डिफाइन करो यार पहले तो सनातनी से तुम्हारा मतलब क्या है? कौन सा देवी-देवता, कौन सी किताब, कौन सी मान्यता? क्या है सनातन? सनातन का मतलब जितना मैं समझता हूँ, ऐसा कुछ जो सदैव था, सदैव रहेगा और हरेक के लिए है और हरेक के लिए रहेगा. तो भाई, क्या है आप लोगों की मान्यताओं में जो सनातन हैं? मैंने ऊपर ही लिखा कि जिन को सनातनी कहा जा रहा है, उन की मान्यताएं एक-दूसरे के विरोध में खड़ी हैं. अनेकता में एकता? तो फिर कर लो मुस्लिम से, ईसाई से एकता. होगी? नहीं न. सनातन की कोई परिभाषा मुझे नहीं मिली, आप को मिलती हो तो ज़रूर लिखना. धर्म-स्थलों में "विश्व में शांति हो", "सर्वस्व का भला हो" बोलने से कुछ साबित नहीं होता. जो लोग तुम्हारे धर्मों को, तुम्हारे धर्म-स्थलों को ही नहीं मानते, जो लोग तुम्हारे धर्म-स्थलों को ही अशांति का बुराई का केंद्र मानते हैं, उन को क्या जवाब दोगे? वो सनातनी हैं या नहीं? यहाँ मैं मुस्लिम या अन्य रिलिजन को मानने वालों की बात नहीं कर रहा. यहाँ मैं उन्ही लोगों की बात कर रहा हूँ जिन को सनातनी ही समझा जाता है. मिसाल के लिए आर्य समाजी भी सनातनी ही माने जाते हैं लेकिन वो तो मूर्ती पूजा के सख्त विरोधी है जब कि तथा कथित हिंदू अधिकांश मूर्ती पूजक हैं. तो ऐसे में ये मूर्ती पूजक सनातनी आर्य समाजियों को सनातनी कहेंगे या नहीं? सवाल हैं. कह सकते हैं. कहते भी हैं. लेकिन यह सब बहुत ही अंतर्-विरोधी है. बहुत ही अतार्किक. बहुत ही उलझा हुआ. निरर्थक. सनातनी कौन है इस के अर्थ खोजने जाते हैं तो बस तनातनी ही मिलती है. असल में परिभाषित करने की कोई ज़रूरत है भी नहीं. यह ज़रूरत सिर्फ इसलिए पड़ रही है चूँकि हिंदुत्व और सनातन शब्दों पर बहुत जोर दिया जा रहा है. अन्यथा एक परिभाषा विहीन समाज मेरी नज़र में बेहतर है परिभाषा में बंधे हुए समाज से. वहाँ सोच की फ्रीडम है. इसी का नतीजा है कि आज तथा-कथित हिन्दू समाज से निकले लोग दुनिया के शीर्ष स्थलों पर पहुँच रहे हैं. सिर्फ इस्लाम, इसाईयत और बाकी बाहरी विचारधारों के प्रभाव से बचने के लिए भारत राष्ट्र/ हिन्दू राष्ट्र या हिंदुत्व/सनातन जैसे नैरेटिव घड़े गए और समाज में पोषित किये गए. खास कर के आरएसएस द्वारा. आरएसएस की तो प्रार्थना में ही हिन्दू भूमि का ज़िक्र है. असल में इस तथा कथित भारत भूमि पर बिखरी हुई मान्यताओं की वजह से समाज एक जुट नहीं हो पाया और यह भी एक वजह रही कि यहाँ के लोग लगभग हर आक्रमणकारी से हारते चले गए. इन में अधिकाँश आक्रमणकारी अपने अपने रिलिजन, होली बुक, सामाजिक कोड, राजनीतिक कोड से बंधे थे. इसलिए इन में एकता थी, जो कि स्थानीय समाज में नहीं थी. यह आक्रमण आज भी जारी है. इस्लाम और ईसाइयत द्ववारा आज भी प्रयास किये जा रहे हैं कि यहाँ के लोगों को कन्वर्ट कर लिया जाये. इस्लाम इस में सब से ज़्यादा प्रयासशील है. साम, दाम, दंड, भेद सब तरह की नीति अपनाई जाती है कि काफ़िर को किसी तरह से मुस्लिम कर दिया जाये. इसी लिए हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र घड़ा गया है. इस में बड़ा योगदान वीर विनायक दामोदर सावरकर की किताब "हिंदुत्व" का है और जिसे धरातल पर उतारा डॉक्टर बलि राम सदाशिव राव हेडगेवार ने. अब बड़े मजे की बात है कोई भूमि कभी हिन्दू या मुस्लिम होती है? भूमि को खुद नहीं पता होगा कि वो हिन्दू या मुस्लिम हो चुकी. कैसी मूर्खताएं हैं? भूमि ने कभी कोई रजिस्टरी की क्या हिन्दुओं के नाम? या किसी भी और के नाम? लेकिन इंसानी मूर्खताओं की वजह से यह सब भी तार्किक लगने लगा है. सब के पास अपने तर्क हैं. कुतर्कों पर टिके तर्क.

प्याज के छिलके उतारते जाओ तो अंत में कुछ भी नहीं बचेगा. ऐसे ही हिंदुत्व है. जैसे-जैसे खोजते जाओगे वैसे-वैसे पाओगे कि अंत में कुछ भी हासिल नहीं हुआ. और यह शुभ है. यह समाज किसी ख़ास कोड से, बहुत कस के, बहुत ज़ोरों से कतई बंधा हुआ है ही नहीं. जो-२ समाज बंधे हैं वो अन्ततः पूरी दुनिया के लिए अशुभ साबित होंगें. जो समाज किसी किताब से कस के बंध जाये, टस से मस होने को राज़ी न हो, वो सभ्य हो ही नहीं सकता, वो अशुभ साबित होगा ही.

यहाँ मैं दुनिया के दो मसलों का ज़िक्र करूंगा. कश्मीर और फिलस्तीन/इजराइल. मुस्लिम दोनों जगह अपना हक़ जताते हैं. फिलस्तीन/इजराइल पर उन का तर्क है कि वो ज़मीन यहूदियों ने उन से छीन ली. लेकिन यही तर्क वो कश्मीर पर नहीं लगाते. यहाँ भी तो हिन्दू रहते थे पहले. जिन्हें मार-मार कर भगा दिया गया. आज भी रोज़ हिन्दू मज़दूर कत्ल किये जाते हैं. ताकि वहाँ सिर्फ मुस्लिम ही रह सके. ज़मीन के किस टुकड़े पर, बल्कि पूरी ज़मीन, पूरी धरती पर ही कोई सभ्यता, कोई समाज जो मार-काट में यकीन रखता हो, उसे रहना ही नहीं चाहिए. जो दूसरे को जीने का हक़ ही नहीं देना चाहता, उसे जड़ से खत्म कर देना चाहिए.

खत्म करने से यहाँ मेरा मतलब किसी को मारने-काटने से नहीं है. मेरा मतलब है, दूसरों के प्रति जिस भी समाज में वैमन्सयता का भाव आता हो, वो भाव, वो तर्क, मान्यताएं छिन्न-भिन्न कर देनी चाहियें. और यह आज आसान है. सोशल मीडिया बड़ा रोल अदा कर सकता है, कर रहा है. आप इस पोस्ट को भी उसी दिशा में एक कदम मान सकते हैं.

कुछ और सवाल-जवाब India के अस्तित्व पर:-
India(?) में कोई एक संस्कृति (?) कभी भी नहीं थी. आज भी नहीं है.
सिक्ख खुद को हिन्दू मानते ही नहीं और न बौद्ध और न जैन और न लिंगायत. सिख सरे आम कहते हैं हम हिन्दू नहीं. बौद्ध भी खुद को हिन्दू नहीं मानते. लिंगायत ने भी पीछे कहा कि वो हिन्दू नहीं हैं. बाकी आरएसएस या आरएसएस के समर्थक कहते रहें, जो कहना है.
वैसे भी पूरी दुनिया में कोई संस्कृति है ही नहीं और न रही है. संस्कृति का अर्थ है ऐसे कृति जिस में कोई संतुलन हो. यहाँ कोई एक दम भिखारी है तो कोई Super Rich. ऐसा हमेशा रहा है. इसे संस्कृति कैसे कहा जा सकता है? यह बस एक मिसाल है.
कुछ सनातन परम्परा नहीं है. कुछ सनातन ही नहीं है. अगर कुछ सनातन है तो वो है परिवर्तन. Change is the only Constant.
इंसान जंगलो से गाँव और फिर शहरों तक पहुंचा है. उसे एक गाँव से दुसरे गाँव तक तो खबर नहीं थी. जम्बुद्वीब, आर्यवर्त, भारत वर्ष था शुरू से? कैसी बात है सर?
As I know… एशिया का एक हिस्सा है. साउथ एशिया. अंग्रेजों के समय में इसे Indian Subcontinent कहा जाने लगा था. जिस में आज के भारत के अलावा इर्द-गिर्द के पड़ोसी मुल्क भी थे. वो अंग्रेजों की अपनी समझ के लिए था. जिस में अलग-अलग Province थे. Bengal Province, Punjab Province, Bombay Province etc.....बात है एक राजनितिक इकाई की, जैसी आज है. ऐसा भारत सैंतालीस से पहले (except English Raj ) कभी नहीं रहा, तथा-कथित हिन्दुओं के पास तो कभी भी नहीं.


Tushar Cosmic

Sunday 22 September 2024

इस्लाम पर कुछ सीधी-सपाट टिपण्णियाँ

1. सब धर्म खराब हैं, लेकिन सब धर्म एक जैसे खराब नहीं हैं. सब गुंडे हैं लेकिन एक जैसे गुंडे नहीं है. कोई माफिया है. सब ज़हर हैं, लेकिन सब एक जैसे नहीं हैं. कोई पोटासियम साइनाइड है.मैं सब को नापसंद करता हूँ लेकिन एक जैसा नापसंद नहीं करता हूँ.जो आलोचना सुन सकते हैं, सुधार भी ला सकते हैं उन को लकीर के फ़कीर के बराबर कैसे रख सकते हैं?

2. इस्लाम को नकारना हिंदुत्व को स्वीकारना है, यह न समझें. मैंने कहीं हिंदुत्व का पक्ष इस तरह लिया नहीं.

3. आज जो आप को हिंदुत्व का उग्र रूप दिख रहा है, वो इस्लाम की ही प्रतिक्रिया है. हिंदुत्व नामक तो कोई चीज़ भी शायद न हो.

4. इस्लाम के लिए जो मुस्लिम नहीं वो काफिर. ठीक. सो पहले काफिर को इस्लाम से निबटना है.आपस में भी निपटते रहिये. कोई दिक्कत नहीं.

5. यह नफरत नफरत क्या लिखते हैं सब? "नफरती चिंटू" भी लिखते अक्सर लोग. खैर, मुझे किसी से नफरत नहीं है. मुझे इस्लाम की आइडियोलॉजी नहीं जमती. तार्किक तौर पे. मैं इसे इस आधार पर रिजेक्ट करता हूँ.

6. और जो यह कहते हैं कि इस्लाम से दूर बना लीजिये बेशक लेकिन मुस्लिम को रिजेक्ट मत कीजिये, उन के लिए. जहाँ मिलेगा मुस्लिम मिलेगा, इस्लाम थोड़ा न मिलेगा. तो जब हम कहते हैं कि हमें इस्लाम पसंद नहीं, हमें इस्लाम नहीं जमता, इस का दूसरा अर्थ यही होता है कि हमें मुस्लिम नहीं जमता, हमें मुस्लिम नहीं पसंद. कड़वी बात है, लेकिन सत्य यही है. क्या हम मुस्लिम से इस्लाम को अलग कर सकते हैं? नहीं. जब अलग होगा तो वो मुस्लिम होगा ही नहीं.

7. इस्लाम को पसंद करना, इस्लाम के मानने वालों को पसंद करना ज़रूरी है क्या? मर्ज़ी हमारी. हमें नहीं पसंद तो नहीं पसंद. इस से ही कटटरपंथी हो गए हम? नफरती हो गए? समझ लीजिये, यदि कोई इस्लाम को नकार रहा है तो ज़रूरी नहीं कि अपने धर्म या राजनितिक झुकाव की वजह से नकार रहा है. इस्लाम को नकारना सिर्फ इस्लाम नकारना भी हो सकता है. और न ही यह कोई नफरत है. उस के लिए इस्लाम खुद ज़िम्मेदार है. हमारे मामले में, इस्लाम की नकार के पीछे हमारी इस्लाम की समझ है न कि नफ़रत, न कि कोई और धार्मिक या राजनीतीक कारण.

8. मैंने कुछ X- मुस्लिम या कहिये X-मुस्लिम टाइप व्यक्ति देखे हैं, जो इस्लाम की आलोचना तो करते हैं लेकिन मुस्लिम का बहिष्कार उन को भी स्वीकार्य नहीं. क्यों? चूँकि वो भी आते तो मुस्लिम समाज से ही हैं. उन का लगाव कहीं न कहीं अपने दोस्त, अपने परिवार, अपने रिश्तेदारों से तो हो ही सकता है. यह मैं समझ सकता हूँ. लेकिन उन को भी समझना ही होगा कि मुस्लिम को बहुधा झेला जाता है न कि स्वीकारा जाता है. कोई खुल्ले में कह देता है, कोई नहीं.

9. यदि आप इस्लाम को पसंद नहीं करते तो साफ़-साफ़ कहना और लिखना-बोलना शुरू कीजिये. कल ही ब्लड सैंपल लेने आना था किसी कंपनी से बिटिया का. कोई मुस्लिम ने आना था, हम ने साफ़ मना कर दिया. कोई और बंदा भेजो यदि भेजना हो. भेजा उन्होंने. हमने पहचान पत्र देख कर ही एंट्री दी. काफिर है भाई हम, काफिर से ही डील करेंगे. मर्ज़ी हमारी. तुम को हमें हमारे किसी उत्सव की शुभ-कामनाएं देनी हो-न देनी हों, हम को ईद मुबारक नहीं कहना तो नहीं कहना.
क्या कहा? "हम सेक्युलर नहीं हैं."
"नहीं हैं. बस. आप के लिए तो बिलकुल नहीं हैं. पहले खुद तो बनो सेक्युलर, फिर हम भी बन लेंगे. पक्का. पक्का."

10. प्रॉपर्टी डीलर हूँ. ज़्यादातर लोग मुख्य इलाकों में मुस्लिम को किराए पर घर देने से मना कर देते हैं. प्रॉपर्टी डीलर, जिन को दलाल कहा जाता है, जिन की कोई औकात नहीं समझी जाती, तुच्छ दलाल. वो तक मुस्लिम से डील करना नहीं चाहते. इस्लाम को जाना ही होगा. जाना तो सभी धर्म को होगा, लेकिन सब से जल्दी इस्लाम को जाना होगा.

Tushar Cosmic

Monday 9 September 2024

विनेश फोगट

 क्या बला है भाई ये विनेश फोगाट?

ओलंपिक्स हार कर आई है न.
जिस केटेगरी में फाइट कर रही थी, उस में ओवर-वेट थी. नहीं मिला कोई मैडल. बस. जिस ओलिंपिक कमिटी ने उसे सिल्वर दिया था, उसी ने छीन लिया. इस में क्या तीर मार लिया इस ने?
यह सब मोदी ने करवाया? भाजपा ने? नहीं. नहीं आरएसएस ने. इडियट! है कोई सबूत किसी के पास?
बस एवीं भाजपा के खिलाफ नैरेटिव गढ़ने लग रखे हैं.
सड़क पे घसीटा गया न. तो सड़क पे बैठी ही क्यों थी? सड़क घेरने के लिए थोड़ा न है. जाओ, बैठो जंतर-मंतर या जो भी जगह निश्चित है बैठने के लिए. बैठी रहती. जनजीवन अस्त-व्यस्त करोगे तो क्या फूल माला डाली जाएगी गले में?
अब सुना है कांग्रेस से चुनाव लड़ेगी. एक तो यह पूरे मुल्क में बीमारी है, कोई यदि पहलवान है, तीरंदाज है, एक्टर है तो वो राजनीती का भी पहलवान और तीरन्दाज मान लिया जाता है, राजनीती का भी कलाकार मान लिया जाता है. यह बीमारी सब पार्टियों में है.
खैर, अभी बात सिर्फ फोगट की. तो क्या उपलब्धि है भाई तुम्हारी? उपलब्धि तो तुम्हारे उस राहुल गन्दी की भी कोई नहीं सिवा गाँधी परिवार का वंशज होने के. तुम्हारी क्या होगी?
बकवास! निरी बकवास!! यह मुल्क बकवास मुद्दों और बकवास शख्सियतों से घिरा है.
Tushar Cosmic

नैरेटिव का मुक़ाबला

आपने वो डायलॉग सुना होगा, "सरकार उनकी है तो क्या हुआ, सिस्टम तो हमारा है।" "कश्मीर फाइल्स" फिल्म में था। क्या मतलब है "सिस्टम" का? दो मतलब समझे मैने इस "सिस्टम" के. नंबर एक...इको-सिस्टम..."नैरेटिव" सेट करने का सिस्टम। मतलब लोगो तक अपने मतलब की सूचनाएँ, तर्क, संदर्भ पहुंचा दो. ज्यादा गहराई में जाने का किसी के पास समय होता नहीं, और न ही बुद्धि होती है, इसलिए बस "नैरेटिव" सेट करो और समाज में पेल दो, ढकेल दो। नंबर दूसरा, कुछ भी अपनी मर्जी का करवाना हो तो सड़क पर आ जाओ। भारत बंद करवा दो. ट्रेन रोक दो. जबरन. पूरी गुंडागर्दी.

"नैरेटिव" का असल मतलब तो पता नहीं क्या है. लेकिन मैं समझता हूँ नैरेटिव का मतलब है, "झूठ पर आधारित कोई धारणा".
जैसे "भक्त"/"अंध-भक्त"/"गोबर-भक्त/"मोदी भक्त" -- ये शब्द घड़े गए भाजपा समर्थकों के लिए. यह नैरेटिव है.
कैसे?
नूपुर शर्मा ने टीवी डिबेट में वही कहा जो इस्लामिक ग्रंथों में है, फिर भी उस को जान के लाले पड़ गए, आज भी पड़े हुए हैं, किसी ने नहीं कहा कि उसे धमकाने वाले, "सर तन से जुदा" के नारे लगाने वाले अंध-भक्त हैं. न.
कन्हैया लाल नाम के टेलर की गर्दन काट दी गयी, उसी दौर में. किसी ने नहीं कहा कि गर्दन काटने वाले भी किसी के भक्त हैं. न.
भिंडरा वाले ने गोल्डन टेम्पल में पूरा किला बना लिया, गोला बारूद भर लिया, फ़ौज खड़ी कर ली, आज भी कई लोग उसे हीरो मानते हैं, किसी ने उन लोगों को "अंध-भक्त" नहीं कहा.
ईसाई पादरियों के वीडियो आते रहते हैं, जिस में वो किसी लूले-लंगड़े को हाथ से स्पर्श से ठीक कर देते हैं और लोग नाचते फिरते हैं.. ज़रा बुद्धि लगाओ तो समझ जाओगे नौटंकी है. लेकिन कोई इन को "अंध-भक्त" नहीं बोलता.
लेकिन भाजपा का समर्थन करने वाले "भक्त" हैं, "अंध-भक्त" हैं, "मोदी भक्त" हैं, "गोबर-भक्त" हैं. इसे ही कहते हैं नैरेटिव सेट करना.
खैर, दूसरों को "अंध-भक्त" कहने वालों को मेरा इतना ही संदेश है कि पहले अपने गिरेबान झाँको। दूसरों पर पत्थर फेंकने से पहले देख लो, कहीं अपना घर शीशे का न बना हो. और पापी को पत्थर तभी मारो जब खुद कोई पाप न किया हो.
यह है नैरेटिव का मुक़ाबला. मुद्दों की गहराई में जाएँ, और इस तरह के नैरेटिव, बकवास नैरेटिव की धज्जीयां उड़ा दें चाहे, वो भाजपा की तरफ से ही क्यों न आया हो.
ऐसा ही नैरेटिव भाजपा ने भी गढ़ा। राहुल गाँधी के खिलाफ. राहुल ने कभी नहीं कहा था कि ऐसे मशीन बनाऊंगा, एक तरफ आलू, डालो, सोना निकालो. वो यह कहते हुए यह कह रहे थे कि ऐसा मोदी ने कहा है. लेकिन एडिट कर के ऐसे दिखा दिया जैसे राहुल ने ऐसा कहा है. यह था नैरेटिव. झूठा नैरेटिव भाजपा द्वारा चलाया गया.
एक और नैरेटिव आरएसएस चलाती है कि भारत ने, हिन्दुओं ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया. बकवास बात है. अशोक ने कलिंग की धरती लाल कर दी थी, बिना किसी वजह के. राम और रावण दोनों शिव के भक्त थे, फिर युद्ध कैसे हो गया ? किसी ने तो किसी पर आक्रमण किया होगा न. महाभारत कैसे हो गयी? एक ही परिवार के लोग थे. किसी ने तो किसी पर आक्रमण किया न. पृथ्वीराज चौहान और जयचंद में भी तो युद्ध हुआ ही था. क्या राजे-रजवाड़े आपस में अपनी सीमाएं बढ़ाने के लिए लड़ते नहीं रहते थे? सो यह कहना कि हिन्दू बड़े शांतिप्रिय थे, एक नैरेटिव मात्र है, झूठा नैरेटिव.
सवाल भाजपा का नहीं है, न कांग्रेस का ही है, सवाल नैरेटिव का है. नैरेटिव खतरनाक हैं और इन का मुक़ाबला तर्क और फैक्ट से ही किया जा सकता है.
Tushar Cosmic

सिक्खी और इस्लाम में कुछ-कुछ समानताएँ


हालाँकि बहुत से हिन्दू मानते हैं कि सिक्ख हिन्दू ही हैं. उन को सिक्खी में हिंन्दू झलक दीखती हैं. लेकिन मुझे सिक्खी में मुस्लिम झलक भी दिखती हैं.


मिसाल के लिए हिन्दू की कोई ठीक-ठीक पहचान नहीं है लेकिन सिक्ख की पहचान है. केश, पगड़ी. ऐसे ही मुस्लिम भी ज़्यादातर पहचाने जाते हैं. औरतें चाहे भीख मांग रही हों, उन का सर ढका होगा और काले कपड़े से अक्सर ढका होगा. ऐसे ही मुस्लिम जीन्स भी पहने होंगे तो टखनों से ऊपर. दाढ़ी होगी, तो मूंछ नहीं होगी. दाढ़ी में भी खत लगे होंगे. या फिर गोल टोपी. कुछ न कुछ पहचान होगी.

मुस्लिम इस्लाम, क़ुरआन और "रसूल-अल्लाह नबी हज़रत मोहम्मद साहेब जी" की शान में गुस्ताख़ी बर्दाश्त नहीं करते, कुछ-कुछ वैसा ही कांसेप्ट सिक्खी में आ गया है. "बेअदबी" का. और कुछ लोग क़त्ल भी कर दिए गए हैं इस तथा-कथित "बेअदबी" की वजह से.

जब कि तथा-कथित हिन्दू समाज में "ईश-निंदा" सिर्फ एक शब्द है, यथार्थ में "ईश-निंदा" का कोई कांसेप्ट नहीं है. हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां कूड़े में फेंकी हुई मिलेंगी. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. हिन्दू अपनी मान्यताओं को जीने-मरने का सवाल मानते ही नहीं. यह कांसेप्ट इस्लाम में है. ब्लासफेमी. और इस की सजा "सर तन से जुदा". वही सिक्खी ने सीख लिया. बेअदबी. कत्ल.

जैसे इस्लाम की एक किताब है- क़ुरआन शरीफ़. ऐसे ही सिक्खी की एक किताब है- श्री गुरु ग्रंथ साहेब. क़ुरआन को अल्लाह का संदेश माना जाता है. अल्लाह के ही शब्द माने जाते हैं ऐसे ही गुरु बाणी को भी "धुर की बाणी" (The Voice of the Ultimate) माना जाता है.

ये कुछ समानताएं मुझे नज़र आ रही हैं. बाकी आप बताओ या फिर मैं गलत कहाँ हूँ, वो बताओ.
खालिस्तान के पीछे इस्लाम है:-
कई सिखों की मानसिकता खालिस्तानी है। मुझे लगता है, इस सबके पीछे भी इस्लाम है.
भिंडरावाले और उससे पहले के दौर में खालिस्तानियों को एके-47, रॉकेट लॉन्चर, बम कौन दे रहा था?
पाकिस्तान.
पंजाब भारत का सीमावर्ती राज्य है। इन सभी चीजों को पाकिस्तान से भारत में तस्करी करना बहुत आसान था।
और
पाकिस्तान के पीछे कौन था?
बेशक "इस्लाम".
खालिस्तान के पीछे इस्लाम है.
डिप्रेशन जहर है. चिंता चिता बराबर है. डिप्रेशन हत्यारा है. यह खुद को बीमारियों के पीछे छिपा लेता है। और लोग यह मानने लगते हैं कि वे दिल का दौरा, मस्तिष्क क्षति, पक्षाघात, मधुमेह आदि से मारे जा रहे हैं। नहीं, आप इन बीमारियों से नहीं मर रहे हैं। लेकिन इन बीमारियों के Creator द्वारा मर रहे हैं.
और वह है "डिप्रेशन".
और यही इस्लाम कर रहा है.
इस्लाम बहुत चालाक है. इसे जहां जगह मिलती है, वहीं छिप जाता है।
खालिस्तान, संविधान, रवीश कुमार, ध्रुव राठी, कांग्रेस, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, कांग्रेस, राहुल गाँधी, केजरीवाल... इस्लाम किसी भी विचारधारा, किसी भी नाम के पीछे छिप सकता है।
सावधान!
Tushar Cosmic

पैंट-शर्ट


मुझे पैंट-शर्ट पसंद ही नहीं. है ही नहीं मेरे पास कोई. ऐसा नहीं कि कभी पहनी नहीं, लेकिन अब बरसों से नहीं पहनी.

गर्मी-सर्दी जीन्स या जीन्स टाइप ट्रॉउज़र. ऊपर टी-शर्ट या टी-शर्ट टाइप स्वेटर. मरे-मरे रंग भी मुझे पसंद नहीं. मैं ब्राइट कलर ही पहनता हूँ ज़्यादातर.
एक और बात बताता हूँ. मेरी ज़्यादातर टी-शर्ट फुटपाथ से खरीदी हुई हैं. और ट्रॉउज़र भी लोकल मार्किट से. हमारे घर से कोई तीन चार किलोमीटर दूरी पे जीन्स बनाने की बहुत से फैक्ट्री हैं, वहीँ बहुत सी दुकाने भी हैं जीन्स की. होल सेल मार्किट. वहाँ से सस्ती मिल जाती हैं जीन्स. अपना काम चला जाता है.
वैसे भी मेरे कुछ जूते कपडे 15-20 साल तक पुराने हैं, कोई दिक्क्त नहीं.
और एक बात, मेरे पास कोई भी अलग से बढ़िया कपड़े नहीं है. बाहर-अंदर जाने वाले "स्पेशल कपडे". न. ऐसे कोई कपड़े मेरे पास नहीं हैं. जो हैं, वहीँ हैं जो मैं रोज़-मर्रा की ज़िन्दगी में पहनता हूँ.
वैसे मैंने खूब ब्रांडेड कपड़े भी लिए हैं और पहने हैं. हर छह महीने बाद ऑफ-सीजन सेल लगा करती हैं, तब हम ढेरों कपड़े लिया करते थे. उन्हीं में से बचे-खुचे आज भी पहनता हूँ. लेकिन मुझे फुटपाथ के कपड़ों से भी कभी भी परहेज़ नहीं रहा.
बहुत पहले, "लॉन्ग-लॉन्ग एगो", मैंने जामा मस्जिद के बाहर फुटपाथ से एक शर्ट खरीदी थी. शायद सेकंड हैंड थी. इतनी पसंद थी मुझे यह शर्ट कि मैंने वर्षों-वर्षों पहनी होगी.
शादी बयाह में भारी-भरकम कपडे पहनना दूर, पहने हुए लोगों को देखना तक अच्छा नहीं लगता. मैं जो रोज़ पहनता हूँ, उन्ही कपड़ों में कहीं भी पहुँच जाता हूँ. मेरे बच्चे मुझे कहते हैं कि उन को मेरा ढँग के कपड़े न पहनना, शादी आदि में, अखरता है, लेकिन मैं ढ़ीठ हूँ.
अब सोच रहा हूँ कि सब छोड़ धोती-कुरता धारण करने लग जाऊं. या फिर गर्मियों में सिर्फ धोती. कुरता भी सिर्फ सर्दिओं में. तब तो शायद मुझे "घर-निकाला" ही दे दिया जाए. खैर, देखा जायेगा.
Tushar Cosmic

ऑनलाइन है ज़माना. लेकिन क्या है सावधानियाँ?

1. यदि कोई घरेलू, सीक्रेट बात करते हैं तो इंटरनेट बंद करें. सब कुछ सुना जा रहा है. अभी सुन कर आप की बात-चीत के मुताबिक सिर्फ Advertisement दिखाई जा रही हैं. कभी यह लीकेज भयंकर नुकसान-दाई भी साबित हो सकती है. ध्यान रहे.

2. इंटरनेट पर यदि अपनी Internet सर्फिंग की Leakage बचाना चाहते हैं तो मेरे ख्याल से DuckDuckGo/ Tor Browser प्रयोग करें.
3. ईमेल की लीकेज बचने के लिए प्रोटोन मेल (Proton mail) प्रयोग करें.
4. जिस अकाउंट में ज़्यादा पैसा रखते हैं, उस में कोई ऑनलाइन सुविधा न लें. कार्ड तक न लें. ऐसे बैंक में यह अकाउंट रखें, जिस में यह सुविधा हो ही न. ऑनलाइन सुविधा के लिए अलग अकाउंट रखें, जहाँ ज़्यादा धन जमा हो ही न.
5. पीछे मैंने नोट किया कि मेरे लैपटॉप का कैमरा अपने आप ON हुआ जा रहा था. मैंने अपने एक मित्र से ज़िक्र किया. उस ने बताया कि वो तो अपने लैपटॉप के कैमरा पर बिंदी लगा के रखता है. क्या कैमरा से भी हमें देखने का प्रयास किया जा रहा है? यह अभी रिसर्च का विषय है. हो सकता ऐसा कुछ न भी हो. लेकिन फिलहाल इत्ती ही सलाह है क़ि सीक्रेट मैटर्स के वक्त फ़ोन, लैपटॉप पूरी तरह बंद कर दें, इंटरनेट OFF कर दें.
6. हमारे फोन का GPS भी अक्सर ON होता है. यकीन जानिये, जहाँ-जहाँ भी हम जाते हैं. सब लोकेशन भी ट्रेस होती चली जाती है. उस का डाटा भी गूगल कलेक्ट करता रहता है. हालाँकि अभी यह सब किया सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि हमारा बेहेवियर पैटर्न कलेक्ट कर के हमें उस के मुताबिक प्रोडक्ट और सर्विस बेचीं जा सके. लेकिन जानकारी की यह लीकेज यदि रोकना हो तो फिर आप को अपना GPS भी ज़रूरत के मुताबिक ही खोलना चाहिए अन्यथा नहीं.
7. जब से AI का बोलबाला बढ़ा है, तब से यह खतरा भी पैदा हो गया है कि कोई आप को फ़ोन करे और आवाज़ आप के ही घर के मेंबर जैसी हो. यदि कभी कोई सीक्रेट जानकारी फ़ोन पर शेयर करनी हो तो यह सुनिश्चित कैसे करेंगे कि फोन के दूसरी तरफ वही व्यक्ति है, जिसे आप घर का मेंबर या मित्र समझ रही हैं? ऐसे में हम ने तो एक फॅमिली कोड बना रखा है, जिसे सिर्फ हमें ही पता है. हम अक्सर फॅमिली कोड मांगते हैं एक-दूसरे से फ़ोन पर. और यह कोड बदलते भी रहते हैं. टारगेट प्रैक्टिस है अभी. काम की हो सकती है लेकिन कभी. आप भी try करें.
8. इंटरनेट के ज़रिये हमें अपार जानकारी उपलब्ध है. मुफ्त. लेकिन If you're not paying for it, you are the product (जहाँ आप को कुछ भी मुफ्त दिया जा रहा है, वहाँ प्रोडक्ट आप खुद हैं). यह कहावत है. शायद सच है.

Saturday 17 August 2024

सब से आगे होंगे हिंदुस्तानी! लेकिन कैसे? #independenceday #shortsfeed #shorts #trending



सब से आगे होंगे हिंदुस्तानी! लेकिन कैसे? #independenceday #shortsfeed #shorts #trending #tusharcosmic #तुषारकॉस्मिक

"झंडा ऊंचा रहे हमारा ...... विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ..." "सुनो गौर से दुनिया वालो बुरी नज़र न हम पे डालो चाहे जितना जोर लगा लो सब से आगे होंगें हिन्दुस्तानी" बड़े अच्छे लगते हैं ऐसे गीत हर 15 अगस्त को. झूठे हैं ये सब गीत. ओलंपिक्स में 71 नम्बर हैं हम 84 में से ......120 नम्बर पर हैं Per Capita Income में हम. हम से छोटे-छोटे मुल्क हम से कहीं आगे हैं. सच का सामना करें. हम वो हैं जिन को गली का कूड़ा तक उठवाना नहीं आया. हम सब से आगे हैं? नहीं हैं और नहीं होंगे, जिस तरह के हम हैं. इडियट!

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Sunday 11 August 2024

क्या मंदिर तोड़ कर बनवाई गई थी कुतुब मीनार?

 

Qutab Minar Controversy: क्या मंदिर तोड़ कर बनवाई गई थी कुतुब मीनार? Kya Mandir tod kar banwayee thee Qutab Minar? #qutabminar

I have explained from various angles, whether Qutab Minar is a Hindu or a Mughal Structure. Just view, review..... मैंने विभिन्न कोणों से चर्चा की है कि क्या कुतुब मीनार एक हिंदू या मुगल संरचना है। देखें, समीक्षा करें

"QUERIES ADDRESSED IN THIS VIDEO": ----

What is the controversy of Quwwat-ul-Islam?

What is the controversy of Qutub Minar Temple?

Were 27 temples destroyed for Qutub Minar?

Which Hindu gods are in Qutub Minar?

What is the significance of Quwwat-ul-Islam?

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कुतुब मीनार: मस्जिद के बाहर प्रवेश द्वार, मूर्तियों के अवशेष, सबूतों को लेकर क्या कहते हैं इतिहासकार?

कुतुब मीनार का इतिहास है सदियों पुराना, जानिए इससे जुड़े विवादों के बारे में. नई दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार को लेकर भी विवाद गहराता जा रहा है। कुछ दिनों पहले कुतुब मीनार परिसर में खुदाई किए जाने की खबरें आईं थीं।

Qutab Minar Controversy: All things that you should know about one of the tallest buildings in the world.

Explained | Qutub Minar Or Vishnu Stambh? The Controversy Over Construction Of The Monument.

Deity at Qutub Minar survived for 800 years without worship, let that continue: Judge on Hindu plea

Qutb Minar row: No evidence mosque was built on demolished structure, says ASI in court.

Qutub Minar Controversy: 27 Hindu & Jain Temples Were Demolished To Build Mosque? Court To Hear Plea.

Qutub Minar Controversy: Qutab Minar not a place of worship, existing status cannot be altered: ASI to Delhi Court.

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