Monday, 8 June 2015

संघ यानि आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

भारत ने बहुत सी विचार धारायों को जनम दिया..........विज्ञान तो न दिया...लेकिन जीवन दर्शन बहुत दे दिए...सब एक से एक बकवास.....संघ भी उनमें से एक है....मैंने समय समय पर कई आर्टिकल लिखे और छापे...उनको जोड़ प्रस्तुत कर रहा हूँ....आशय विचार विमर्श के लिए प्रेरित करना है ...स्वागत है आप सबका

(1)  मैंने संघ क्यों छोड़ा------

संघ मतलब आरएसएस, मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. 
मुस्लिम या इसाई आदि को छोड़ शायद ही कोई लड़का हो जो अपने लड़कपन में एक भी बार संघ की शाखा में न गया हो....शायद मैं आठवीं में था.....ऐसे ही मित्रगण जाते होंगे शाखा...सो उनके संग शुरू हो गया जाना.....अब उनके खेल पसंद आने लगे...फिर शुरू का वार्मअप और बहुत सी व्यायाम, सूर्य नमस्कार, दंड (लट्ठ) संचालन बहुत कुछ सीखा वहां........जल्द ही शाखा का मुख्य शिक्षक हो गया..वहीं थोड़ा दूर कार्यालय था ...वहां बहुत सी किताबें रहती थी.......पढ़ी भी कुछ......संघ की शाखा का सफर जो व्यायाम और खेल से शुरू हुआ वो संघ की विचारधारा को समझने की तरफ मुड़ गया..........

लेकिन दूसरों में और मुझमें थोड़ा फर्क यह था कि मैं सिर्फ संघ की ही किताबें नही पढ़ता था, उसके साथ ही वहां बठिंडा की दो लाइब्रेरी और रोटरी रीडिंग सेंटर में बंद होने के समय तक पड़ा रहता था.......बहुत दिशायों के विचार मुझ तक आने लगे......

बस यहीं आते आते मुझे लगने लगा कि संघ की विचारधारा में खोट है....

मैं अक्सर सोचता, यह राष्ट्रवाद , यह अपने राष्ट्र पर गौरव करना, दूसरे राष्ट्रों से बेहतर समझना, यह तो सरासर घमंड है, ऐसा ही कोई जापानी भी समझ सकता है, ऐसा ही कोई भी अन्य मुल्क का वासी भी समझ सकता है लेकिन यह तो गलत है.....और फिर भारत तो मुझे कोई महान लगता भी न था...सब जानते थे कि अमरीका, इंग्लैंड और कितने ही मुल्क हम से आगे थे....फिर काहे की महानता..किस्से कहानियों की, इतिहास की.....पहली बात तो इतिहास का सही गलत कुछ पता नही लगता..फिर लग भी जाए तो वो सिर्फ इतिहास है..वर्तमान नही.....मुझे संघ की अपने पूर्वजों पर, अपनी पुरातनता पर गर्व करने वाली बात भी कभी न जमती थी...मुझे हमेशा लगता कि यदि हम इतने ही महान थे तो फिर अंग्रेजों के गुलाम ही क्योंकर हुए.......मुझे लगता था कि खुद पर खोखला मान करने से बेहतर है अपनी कमियों को स्वीकार करना, बल्कि खोजना ताकि हम खुद को सुधार सकें.

और फिर मुझे लगता था कि संघ सिर्फ हिन्दुओं को जैन, बौध, सिख आदि पर थोपना चाहता है......मेरा परिवार हिन्दू सिख है.........तो संघ तो सिक्ख को भी हिन्दू कहता था जबकि बाबा नानक तो जनेऊ को इनकार कर चुके थे अपने बचपन में.....लगा नहीं, यह ज्यादती है ...यह गलत है.....जो लोग बिलकुल हिन्दू मान्यताओं के विरोध में थे, उनको भी हिन्दू कहा जा रहा था......और फिर साफ़ समझ आया कि संघ भारत की हर पुरातन रीत, हर रिवाज़ का पोषक है.......संघ समाज में कोई वैज्ञानिक विचारधारा का पोषक नही है, यह तो बस चाहता है कि समाज पर हिन्दू पुरातनपंथी हावी रहे....

संघ बाबा नानक को भी महान कहता था और हिन्दू मान्यताओं को भी...अरे भाये, किसी एक तरफ तो आओ, या तो कहो कि जनेऊ बकवास है, या तो कहो कि सूरज को पानी देना गलत है या फिर कहो कि बाबा नानक गलत हैं...न, दोनों ठीक हैं, दोनों महान हैं और यही है हिंदुत्व.....जिसका न मुंह, न सर, न पैर

जल्द ही समझ आ गया कि यह हिंदुत्व की धारणा संघ की बकवासबाजी से ज्यादा कुछ नही....."जो इस भारत भूमी को अपनी पुण्य भूमी मानता हो, यहाँ के पूर्वजों को अपने पूर्वज मानता हो , यहाँ कि संस्कृति को अपनी संस्कृति मानता हो वो हिन्दू है"....क्या बकवास है, अरे भाई, हम तो इस धरती को अपनी भूमी मानते हैं, हम तो पूरी इंसानियत को अपने पूर्वज मानते हैं, कौन कहाँ से आया था, कहाँ चला गया, किसे पता है........और यहाँ कि संस्कृति को ही अपना मानते होने से क्या मतलब....शेक्सपियर हमारी लिए क्यों अपना नहीं हो और कालिदास क्यों हो? मात्र इसलिए कि शेक्सपियर भारत का नही था.............

"हर आविष्कार पहले ही भारत में हो चुका था, हमारे ग्रन्थों में लिखा था".....मैं अक्सर सोचता कि विज्ञान कोई रुक थोड़ा ही गया है.....जहाँ तक हो चुका हो चुका, अब कर लो दुनिया को अचम्भित, अपने ग्रन्थ उठाओ और ताबड़ तोड़ आविष्कार कर दो....और दिनों में ही भारत को अमरीका से भी आगे बना दो....चलो और कोई नही तो संघ के लोग तो संस्कृत समझने वाले लोग थे, वो तो ऐसा आसानी से कर ही सकते थे......

और भी बहुत सी बातें

जल्द ही समझ आया कि संघ सिर्फ व्यायाम कराने के लिए, खेल खिलाने के लिए नही बनाया गया और न ही सिर्फ ट्रेन दुर्घटना में लोगों को बचाने के लिए और न सिर्फ बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए...नही...संघ की अपनी एक थ्योरी है, वो भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को अच्छी लगेगी लेकिन असल में वो थ्योरी उसी समाज के खिलाफ है, उसके नुक्सान में है.......

किसी भी समाज का सही खैर-ख्वाह वो व्यक्ति या वो संस्था होती है जो उस समाज की कमियां बताने की हिम्मत कर सके...जो उसके अंध-विश्वास दूर करें का प्रयास करे....जो उस समाज में वैज्ञानिक सोच कैसे बढ़े इसकी चिंता लेता हो.........लेकिन यह सब करने के लिए तो समाज की नाराज़गी झेलने पड़ती है, समाज गुस्सा होता है उसे जगाया क्यों जा रहा है...... संघ ही हिन्दू समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है क्योंकि संघ हिन्दू समाज को अंध-विश्वासों का पोषक है, क्योंकि संघ हिन्दू समाज में वैज्ञानिकता आने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है.....

यह सब दसवीं, ग्यारवीं क्लास तक आते समझ आ गया था...

सो तभी संघ छोड़ दिया....

कभी कभी याद आ जाता है शरद पूर्णिमा की रात को शाखाओं का इकठा होकर खीर खाना.......संघ कार्यालय में मुफ्त ट्यूशन पढ़ाया जाना......वहीं पर सहभोज का आयोजन., जिसमें सब अपने घर से खाना लाते थे और मिल बाँट खाते थे........वो कसरतें, वो खेल.........सब बढ़िया.....लेकिन वो तो सतही था......भीतरी तो थी संघ की विचारधारा जो बिलकुल ही सतही दिखी मुझे....

और आज सालों बाद, मेरा वो संघ को छोड़ने का कदम मुझे और भी ठीक प्रतीत होता है 

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सादर नमन

(2) !!!! संघ कहाँ गलत है, आईये, देखते हैं !!!!

संघ की प्रार्थना है....नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे.....त्वया हिन्दुभूमे सुखम्वार्धितोहम...(हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;) संघ को शुरू से ही एक वहम रहा है कि कोई भूमि हिन्दू -अहिंदू होती है......

मज़ा तो इस बात का है कि इस प्यारी धरती माँ को भी नहीं पता होगा कि उसका कोई भाग हिन्दू है और कोई अहिंदू.....लेकिन हाँ, वीर सावरकर को पता था, गुरु गोलवलकर को पता था, संघ को पता है,.....है न कमाल......अरे भाई कैसी बचकानी बात करते हो, भूमी कोई हिन्दू-अहिंदू हो सकती है क्या........भूमी कोई टुकड़ों में बंटी है क्या........?

बात करेंगे वसुधैव कुटुम्बकम की...लेकिन प्रार्थना कुल जमा हिन्दू भूमी, हिन्दू राष्ट्र की समृधी की करते हैं रोज़.......क्या मतलब है?.....धरती को माता कहते हैं लेकिन अपनी प्रार्थना के अंत में जय बुलाते हैं भारत माता की.....क्यों भई धरती माता का हिस्सा नेपाल माता नही है क्या .......श्री लंका माता नही है क्या? सारी कायनात जुडी है...कुछ अलग नही है........ज़र्रा ज़र्रा........फिर यह क्या हिन्दू हिन्दू भूमी रटते रहते हैं....?

इस धरती के टुकड़े पर...जिसे भारत कहा जाए......सिर्फ एक ही तरह के लोगों का झंडा नही रहा.....

धरती का यह टुकड़ा किसी की ज़रख़रीद नही थी

यहाँ......राम को मानने वाले रहते रहे हैं....

और यहाँ सिख भी रहे हैं.....

और मुस्लिम भी और अंग्रेज़ भी

आज हिन्दू का यह कहना कि मुस्लिम ले उड़े हमारा टुकड़ा ..वो गलत है
तुम्हारा था कहाँ? इकलौता तुम्हारा कहाँ था.?

रहा कभी एक अशोक के समय...लेकिन अशोक भी तुम्हारा कहाँ था....वो हिन्दू ही नहीं रहा था......और हिन्दू ने तो बौधों को दफ़ा कर दिया मार मार कर

अब उससे पहले देखें तो आज भी बहुत लोग यह मानते हैं कि आर्य बाहर से आये.....यहाँ के मूल निवासी नहीं थे

असल में यह भी एक व्यर्थ सी बात है.......किसे पता है कि इंसान कहाँ से आया पृथ्वी पर.......कोई कहते हैं अफ्रीका से आया......यदि अफ्रीका से आया तो फिर यहाँ का मूल निवासी तो कोई भी न हुआ.......और फिर कोई पहले आया इससे ही यह भू-भाग उसका कैसे हो गया.......बुद्ध से पहले का तो इतिहास ही ठीक ठीक पता नही है...बात करते हैं मूल निवासी होने की

आर्य-अनार्य का झगड़ा है
हिन्दू -बौध का झगड़ा रहा है
हिन्दू-मुस्लिम का झगड़ा रहा है
सिख-हिन्दू का झगड़ा रहा है

ये जो कुछ हिन्दू बंधू "जम्बू द्वीपे...भरत खंडे" किसी किताब में लिखे होने से ऐसे बात करते हैं जैसे इस धरती माता ने खुद इनके नाम रजिस्ट्री कर दी हो

एक अशोक के समय...वो भी जबकि वो हिन्दू नही रहा....यह भू-भाग हिन्दू भूमि हो गया.?

जो मुस्लिम राज करते रहे, उनका कैसे नही हुआ?
फिर अंग्रेज़ राज करते रहे, उनका कैसे नही हुआ?
फिर जो सिक्ख हरी सिंह नलुआ या रंजीत सिंह की हुकूमत रही, उनका कैसे न हुआ?

और मुझे यह मत बताना कि बौध, सिक्ख आदि तो हिन्दू हैं.......खुद उनसे पूछ लो, कितना हिन्दू मानते हैं खुद को या फिर बेहतर हो बुद्ध को पढ़ें, बाबा नानक को पढ़ें, पता लग जाएगा कहाँ उन्होंने खुद को हिन्दू घोषित किया है

कुल मिल कर कहना यह बन्धुवर कि यह भू-भाग कोई हिन्दुओं की ज़ागीर नहीं था, जिसे गांधी ने बटवा दिया....जिसे मुस्लिमों ने बाँट लिया...........ज़मीन बंटी........हकीकत है 

संघ की विचारधारा का आधारस्तम्भ है राष्ट्रवाद....आ जाईये, मेरा नुक्ता -नज़र देख लीजिये इस मुद्दे पर....वैसे मैं सिरे से नकारता हूँ राष्ट्रवाद को

सबसे बुनियादी है कॉस्मिक समझ होना, अब इसका मतलब यह नहीं है कि देश का हित न सोचें, इसका मतलब मात्र यह है कि देश, प्रदेश को मात्र राजनीतिक इकाई मानें, मैनेजमेंट के लिए, जैसे किसी काम को अलग अलग एरिया के हिसाब से काम बांटा जाता है, कुछ उस तरह से...

आज यदि हम मात्र पृथ्वी को टुकड़ा टुकड़ा करके ही ...देश-प्रदेश तक की सोच से समस्याओं का हल सोचेंगे तो कुछ हल नहीं होगा....असल में समस्या पैदा ही इस लिए हुई हैं कि इंसान बड़ी छोटी सोच का है, वो बस खुद तक सोचता है, सीमित सोचता है......ओजोन लेयर में छेड़खानी कोई भी करे भुगतना सबको पड़ेगा !!!

यदि किसी भी धर्म-विशेष के लोग हत्या, बलात्कार , आतकवाद में ज्यादा शामिल होते दिख रहे हैं तो भुगतना सबको, सारी दुनिया को पड़ेगा.......और बिना चाहे सारी दुनिया की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि हर मज़हब के ज़हर को उतारे..............

आज यदि आप बहुत गहरा नहीं सोचते......यदि कॉस्मिक स्तर पर नहीं सोच सकते तो कम से कम वसुधा स्तर पर तो सोचें.....उससे ही देश, आपके प्रदेश, आपके शहर, आपके मोहल्ले की समस्या जुडी हैं.....

भूकंप, सूनामी, बाढ़ और कितनी ही प्राकृतिक आपदाएं जो कहीं भी प्रकट हो जाती हैं....आप सोचते रहे देश, प्रदेश स्तर पर......वो हो सकता है किसी और देश की बेवकूफी की वजह से हो

इसलिए ज़रूरी है वसुधा, कॉस्मिक स्तर पर सोचना....!!!
इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि यह सोच देश के हित के विपरीत है..इसका मतलब है कि यह सोच सारी वसुधा, सारी पृथ्वी, सारी कायनात के पक्ष में है.....उसमें हमारे आसपास का हित अपने आप शामिल हो जाता है|

यह है अपनी समझ...जो मैंने सीखी ...अब कहाँ संघ का सीमित राष्ट्रवाद, हिन्दू-भूमी वाद, कहाँ कॉस्मिक होना....मेल कैसे रहता...सो नही रहा... संघ से नाता टूट गया, छूट गया .....बिलकुल वैचारिक स्तर पर हुआ, जो भी हुआ...कहीं जमा ही नहीं संघ?

और अब बाद में जब मैं दिल्ली आ चुका था पंजाब छोड़........राम मंदिर का मुद्दा उठा दिया गया.....कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेंगे... क्या नाटक...खतरनाक नाटक खेला गया.......कभी वाल्मीकि रामायण पढवाई संघ ने....ठीक से, खुली बुद्धी से , तर्क से कोई रामायण पढ़ ले तो कसम खा ले की राम को कभी मंदिर में नहीं बिठाएँगे.......लेकिन संघ को क्या लेना देना...क्या मतलब कि समाज की दृष्टि साफ़ हो, दिमाग तेज़ हो...न , इसे तो पोंगापंथी, पुरातनपंथी से समाज के बड़े हिस्से को बांधे रखना था...तुम बस हिन्दू बने रहो, सोचना मत कि तुम्हारे ग्रन्थ, तुम्हारे पूर्वज कहीं गलत तो नही थे..न, न, वे सब तो बहुत महान थे.....सब बकवास

वैसे प्रंसग वश बताये देता हूँ कि राम के एक पूर्वज अपने गुरु की बेटी के साथ बलात्कार करते हैं...रघुकुल रीत.......इडियट

ऐसा नही कि समाज में संघ की ब्क्लौलबाज़ी का कोई विरोध नही हुआ.....सरिता, मुक्ता मैगज़ीन छपती हैं , यहीं दिल्ली झंडे-वालान से......उनके रीप्रिंट ले लीजिये....पढ़िए.....ये जो संघी सोच है न इसे धो धो कर पीटा है, तर्क से.....और ओशो पढ़ लीजिये संघ छोड़ो आप कहीं के भी न रहेंगे.......और अब केजरीवाल....आपको एक बात बता दूं..ये जो मोदी की पतंग उड़ रही हैं न...यह हवा चलाई ही अन्ना और केजरीवाल ने थी........संघ तो राजनीति में कब से है.....क्या उखाड़ लिया था.....

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सप्रेम नमन

(3)  !!!! जाओ जाकर पहले साइन लेकर आओ !!!!

सीधी तरह कहो न कि सिख की, जैन की, बौद्ध की छाती पर सवार होना है.......लगे हो सबको हिन्दू साबित करने ...यह मात्र तुम्हारा अहंकार है, हिन्दू अहंकार, जो दूसरों को अपने नाम तले दबाना चाहता है...

कहते होंगे पुराने लोग यहाँ के रहने वालों को हिन्दू....लिखा होगा देशी विदेशी ग्रन्थों में यहाँ के लोगों को हिन्दू, कहा होगा इकबाल ने यहाँ के लोगों को हिंदी, कहा होगा हिन्दोस्तान.....
लेकिन...लेकिन....लेकिन क्या ज़रूरी है कि इतिहास को वर्तमान अपनी छाती पर ढोए
तुम्हारे पुरखे तो कंप्यूटर प्रयोग नहीं करते थे फिर तुम काहे करते हो....छोड़ो, उठाओ, फेंको इसे बाहर.......हर काम पुरखों और पुरखों जैसी किताबों के हिसाब से जो करनी है तुम्हें...अगली बार जब शौच भी जाओ तो डब्बा लेकर सामने पार्क में बैठ जाना ...तुम्हारे पुरखे तो शायद ही सिटींग टॉयलेट जानते हों, जेट से निकलते तेज़ धार पानी से गुदा धोना तो शायद ही उनको आता हो...फिर तुम भी ऐसा कैसे कर सकते हो ?

शायद तुम्हारी आँखें कुदरत ने आगे न देकर पीछे दी हैं, शायद तुम्हारी कार की हेड लाइट छोटी हैं और टेल लाइट बड़ी हैं क्योंकि कार तो तुम बेक गियर में ही चलाते होगे न?
तुम्हें समझ नहीं आता की इस धरती माता ने कोई इस भूभाग की रजिस्ट्री नहीं लिखी है तुम्हारे नाम....लिखी है तो दिखा दो मुझे...यह तो माँ है.....इसके लिए तो सब बच्चे बराबर हैं......कोई भी इसके आँचल के किसी भी कोने में दुबक सकता है, सो सकता है , खेल सकता है...लेकिन तुम्हें कौन समझाये यह सब?

और तुम्हें यह भी समझ नहीं आता कि मां के शरीर का हर हिस्सा पवित्र है, प्यारा है, पूजनीय है...तुम्हें तो लगता है कि बस माँ का जो अंग तुम्हारे हाथ लग गया बस वो ही सबसे पवित्र...कैसी मूर्ख औलाद हो तुम?

तुम्हे समझ नहीं आती कि इस पृथ्वी पर, इसके हर कोने पर, हर आदमी औरत का हक़ होना चाहिए और तुम अड़े हो कि नहीं इस भूभाग को हिन्दुस्थान ही कहो

तुम अड़े हो कि यहाँ रहने वालों के लिए सबसे बढ़िया नाम, पुकार हिन्दू शब्द ही है, तुम्हें समझ नहीं आता कि जिसका नाम रखा जाता है उसे भी वह नाम पसंद आना ज़रूरी है

यदि यहाँ रहने वाले लोग, लगभग सब लोग स्वयम को हिन्दू कहलाने को राज़ी हैं तो तुम कह लो इनको हिन्दू....लेकिन मुझे लगता नहीं कि सब लोग राज़ी हैं...और न राज़ी लोगों में सबसे पहले मेरा नाम लिख लेना.....मैंने अपने नाम के साथ Cosmic जानते हो क्यों लिखा, बहुत सी वजहों में से एक वजह यह भी थी कि मैं खुद को तुषार शब्द से हिन्दू पहचाना जाना नहीं चाहता था और मुझे लगता है कि मेरे जैसे बहुत लोग हैं इस देश में जो अलग अलग वजहों से खुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं करेंगे....

वो डायलाग सुना होगा एक फिल्म का...जाओ जाकर पहले उनके साइन लेकर आओ....जाओ तुम भी जाकर पहले सबके साइन लेकर आओ, क्या सब खुद को हिन्दू कहलाना पसंद करते है.....जब ले आओ तो कह लेना हिन्दू....उससे पहले यह निरर्थक बकवास बंद करो

चोरी न करें, चाहे कितना ही बकवास लिखता होवूं, शेयर कर सकते हैं

(4) आरएसएस जैसे संगठन क्यों खतरनाक हैं----------

आरएसएस की कट्टर और आढी टेढ़ी सोच शर्मा, मिश्र, त्रिवेदी , त्रिपाठी जी आदि को तो स्वीकार हो सकती है लेकिन पूरे भारत को कभी भी नहीं 

अभी भी जो वोट मिले हैं वो सुशासन के लिए मिले हैं, 

कांग्रेस को हराना था इसलिए मिले हैं, 

केजरीवाल दिल्ली छोड़ने की बेवकूफी कर चुके थे  इस लिए मिले हैं 

और बीजेपी के पीछे बेंतेहा पैसा लगाने वाले थे इसलिए मिले हैं, 

बहुतेरे नकली वोट थे  इसलिए मिले हैं 

और वोट मशीनों तक में हेरफेर हुआ है इसलिए मिले हैं.....

आरएसएस की खोटी सोच की मिसाल दता हूँ

बाबरी ढांचा गिराया....
गोधरा हुआ, हिन्दू मरे
फिर गुजरात में मुस्लिम मारे गए
शायद पता न हो, बंगला देश में हिन्दू मारे गए

आरएसएस को बस एक पिछलग्गू भीड़ चाहिए , यदि हिन्दू हितों के इतने ही हितेषी थे तो बजाए राम के नाम पर अफरा तफरी फ़ैलाने के राम की रामायण पर खुली चर्चा करते और देखते कि राम को मंदिर में बैठाने लायक कितनी खूबी हैं, खूबी हैं भी या नही......न....न. इन्हें तो बस भीड़ की मानसिकता का राजनीतिक फायदा चाहिए था 

मुर्दा इमारतों के लिए जिंदा इंसानों का सौदा आरएसएस  जैसे इंसानियत के ठेकेदार ही कर सकते हैं

अत्यचार को जब आप मुस्लिम अत्याचार या हिन्दू अत्याचार की नज़र से देख कर लामबंदी करने की कोशिश करेंगे तो सिवाए नफरत के कुछ नहीं फैलेगा

आरएसएस हो, तालिबान हो या कोई भी धर्म के नाम पर इस तरह का संगठन सब इंसानियत के लिए ज़हर हैं 

यदि सच में इंसानियत के मित्र हैं तो सदियों से जो सड़ी गली मान्यताएं इंसान ढोता आ रहा है उन्हें हटाने में मदद करें 

आसान काम नहीं है क्योंकि इंसान इन बेड़ियों को अपने आभूषण समझता है

इंसान आपको फूलों के हार से नहीं फांसी के हार पहना सकता है

आपको राजगद्दी पर नहीं सूली पर चढ़ाया जा सकता है 

सौदा महंगा तो है, फिर भी कोशिश करें जितनी कर सकते हैं, जैसी कर सकते हैं 

"वन्स अ स्वयंसेवक, ऑलवेज अ स्वयंसेवक, जिसने एक बार ध्वज प्रणाम कर लिया, बस हमेशा के लिए संघ का हो गया"..........कुछ ऐसा भी कहा-सुना जाता है आरएसएस में ...........मैंने तो सुना है कि इस्लाम में इस्लाम को छोड़ने वाले के लिए मौत की सज़ा है....... हर झुण्ड चाहता है कि उसकी भीड़ जुटी रहे....हर झुण्ड चाहता है कि जो एक बार फंदे में आ जाए, छूट न जाए....लेकिन एक इन्सान जिस मर्ज़ी संस्था और विचारधारा को जब मर्ज़ी छोड़ और पकड़ ले यही आज़ादी है....और ये आज़ादी गवारा नही न आरएसएस को और न ही इस्लाम को.....

जब तक यह दुनिया आरएसएस या इसके जैसे संगठनो से निजात नहीं पाती शांत नहीं होगी, संगठन जो किसी ख़ास भू भाग को ही सर्वश्रेष्ट मानते हो, संगठन जो अपने पूर्वजों को ही सर्वश्रेष्ट मानते हों, संगठन जो किसी ख़ास भू-भाग की मान्यतायों को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हों, संगठन जो अपनी मान्यतायों को दूसरों पर थोपने में, गुंडागर्दी करने में यकीन रखते हों, संगठन जो उपरी तौर पर तो सात्विक दीखते हों लेकिन ज़रा सा खरोंच उतारते ही तामसिक दिखाई दें

बहुत पहले जब संघ में था तो एक नारा चलता था, शायद आज भी चलता हो
"हाथी घोडा पालकी
जय शिवा प्रताप की"
आज सोचता हूँ कि ये संघ वाले हाथी घोड़ा पालकी तक ही क्यों सोच रहे थे
शायद कार, हवाई जहाज, अन्तरिक्ष यान तो कल्पना तक में नहीं आते होंगे
बात करो तो इनके पूर्वज सब पहले ही इजाद कर चुके थे
फिर वो इजाद गयी कहाँ?
मुझे तो माकूल जवाब नहीं मिला
इजाद हमारे पास थीं तो फिर टुच्चे मुच्चों के गुलाम क्यों हो गए हम?
मुझे तो जवाब नहीं मिला
खैर
हाथी घोडा पालकी
जय शिवा प्रताप की

नमन


(5) आरएसएस कुछ और पहलु-----आरएसएस जो राष्ट्रवाद का तो दम भरता है लेकिन जब बाल ठाकरे और उनके वंशज उत्तर भारतीयों को मुंबई में पीटते है, उनके साथ गुंडागर्दी करते हैं तो कभी विरोध नहीं करता..बल्कि उनके साथ हमेशा राजनीतिक गांठ जोड़ में रहता है

आरएसएस अपनी शाखायों में व्यक्ति निर्माण का दम भरता है लेकिन जिसकी offshoot राजनीतिक पार्टी भाजपा के प्रधान बंगारू लक्ष्मण कैमरा में करेंसी नोट रिश्वत में लेते पकडे जाते हैं, जिनके दुसरे बड़े नेता गडकरी पता नहीं कैसी कैसी असली नकली कंपनी चलाते पकडे जाते हैं..जिनके तीसरे बड़े नेता अपने नौकर के साथ यौन क्रियायों में लिप्त पाए जाते हैं

आरएसएस वो है जो पार्क में बैठे प्रेमी जोड़ों की पिटाई करवाता रहा है, उनके साथ गुंडई करता रहा.....बिना यह समझे कि भारतीय संस्कृति में लिंग का पूजन होता है, खजुराहो के मर्दिरों में मैथुन मूर्तियाँ गढ़ी गयी हैं, भारत में Valentine डे जैसा ही वसंत उत्सव मनाया जाता था, इसे आसानी से समझने के लिए शूद्रक द्वारा लिखित संस्कृत नाटक "मृच्छकटीकम" आधारित हिंदी फिल्म उत्सव देखी जा सकती है , बिना यह समझे कि भारत में ही वात्सयान ने काम सूत्र रचा था , जिसे पूरी दुनिया में पढ़ा जाता है, बिना यह समझे कि यहीं पर पंडित कोक ने कोक शास्त्र रचा था, यहीं पर राजा भर्तृहरी ने शृंगारशतक लिखा था, बिना यह समझे कि भारत में वैश्य/गणिका/नगरवधू रामायण काल में भी होती थी और बुद्ध के काल में भी


आरएसएस को तो बस अपनी ही गलत सलत धारणायों का पोषण करना है, उसे गहराई में तो जाना नहीं है...उसे क्या मतलब कि राम कहाँ गलत है कहाँ सही इसका विवेचन किया जाए...उसे तो मतलब बस यह कि राम पूरे भारत में पूजे जाते हैं....राम के नाम पर हिन्दू को जोड़ा जा सकता है, राम के नामपर राजनीती की जा सकती है....सो कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेंगे...जैसे मंदिर बनने से ही हर गरीब अमीर हो जायेगा, भारत सुपर पॉवर बन जाएगा, भारत में ज्ञान विज्ञान पसर जाएगा....बिना यह समझे कि राम के अपने समय में भी भिखारी थे.....खैर वाल्मीकि रामायण यदि पढ़ भर लें एक बार तो बहुत कुछ अनदेखा सामने आ जाएगा ....ध्यान रहे मैं वाल्मीकि रामायण कह रहा हूँ पढने को, तुलसी का मानस नहीं


(6) !!! हिन्दू का दुश्मन मोदी, मुस्लिम का ओवेसी, सावधान !!!

कोई आपको कहे आप मूर्ख हो, उल्लू के पट्ठे हो, आप मान लोगे क्या? गले से लगा घूमोगे इन तमगों को?

लड़ पड़ोगे क्या, यदि किसी ने आपको सयाना, बुद्धिमान कह दिया?....... आपकी भावनाएं आहत हो जायेंगी क्या....पवित्र, धार्मिक भावनाएं? आप मरने, मारने पर उतारू हो जायोगे क्या?

नहीं न...फिर काहे हिन्दू, मुस्लिम, इसाई बने घूम रहे हो..... वह भी सिर्फ कहा गया है आपके कानों में ..कहा गया है कि आप हिन्दू हो या सिख या मुस्लिम आदि ....और हज़ार बार कहा गया है, बारम्बार कहा गया है कि आपका धर्म सर्वश्रेष्ठ है..कहा गया है कि आपके धर्म से जुड़ी भाषा, साहित्य, लिपि, गीत-संगीत सब सर्वश्रेष्ठ है ..और आप माने बैठे हो.......

कहीं पढ़ा मैंने कि बार बार बोला गया झूठ सच हो जाता है...असल में इंसान समझता ही नहीं आम तौर पे सच क्या है, झूठ क्या है...वो बड़ी जल्दी सम्मोहित हो जाता है.....उसकी चेतन बुद्धि बहुत थोड़ी देर ही अनर्गल बातों का विरोध करती है...यदि बोलने वाला ढीठ हो, धूर्त हो, शब्द जाल बुन सकता हो तो वो फंसा ही लेगा लोगों को ...और यही वजह तो है कि पैदा होते बच्चे को पता है पेप्सी कोक क्या है, फिर भी पेप्सी कोक दिन रात चिल्लाये जाती हैं, टीवी पे, अखबारों में, रेडियो पे .....सबके दिमागों में भरे चले जाती हैं कि पेप्सी पीओ, कोक पीओ वरना आपका जीवन असफल हो जाएगा, आपका पृथ्वी पे आना निष्फल हो जाएगा...ये कंपनियां जानती हैं बार बार बोलते चले जाने का फ़ायदा 

मेरी माँ अक्सर कहती हैं कि व्यक्ति को दूसरों के कहने पे नहीं चलना चाहिए, अपनी अक्ल लगानी चाहिए.

एक अमेरिकन कंपनी है "लैंडमार्क वर्ल्डवाइड" ...इनका एक शैक्षणिक प्रोग्राम है "लैंडमार्क फोरम" नाम से ...जो कुछ भी सिखाया जाता है इस प्रोग्राम में उसका निष्कर्ष यह है कि आप को किसी ने कह दिया जीवन में कभी कि आप मूर्ख हो, सयाने हो, मज़बूत हो, कमज़ोर हो, ये हो , वो हो ..... और यदि उस परिस्थिति की वजह से, उस व्यक्ति के प्रभाव की वजह से, या किसी भी और वजह से आप ने हृदयंगम कर ली वो बात....तो आपका जीवन चल पड़ेगा उस व्यक्तिगत टिपण्णी को सच करने की दिशा में......सारा का सारा जीवन मात्र किसी और की कोई कही बात मान लेने का नतीजा ....यह है सम्मोहन....और उसका नतीजा 

और सारी मानव जाति इसी तरह के अलग-अलग सम्मोहनों से ग्रस्त है ..और सबसे बड़ा सम्मोहन है धर्म का, मज़हब का....व्यक्ति कोई और आड़ी-टेड़ी बात सुन भी लेगा लेकिन उसके धर्म के बारे में कह भर दो कुछ, चाहे कितना ही तर्कयुक्त हो, चाहे कितना ही वास्तविक हो, कितना ही उचित हो, कोई फर्क नहीं..व्यक्ति रिश्ते ख़राब कर लेगा.....मरने मारने पे उतारू हो जाएगा. ...इतना ज़्यादा जकड़ा है धर्मों के सम्मोहन ने इंसानियत को....इंसान की आत्मा को...असल में इस तरह की मान्यतायें इंसान की आत्मा ही बन चुकी हैं 

मैंने कहीं पढ़ा था कि ईश्वर इंसान के पिछवाड़े पे लात मार के जब उसे पृथ्वी पे भेजता है तो उससे पहले एक मज़ाक करता है उसके साथ...वो हरेक के कान में कहता है कि मैंने तुझ से बेहतर इंसान नहीं बनाया आज तक...तू सर्वश्रेष्ठ कृति है मेरी..बाकी सब निम्न....गधे..उल्लू के पट्ठे.....अब होता यह है कि बहुत कम लोग उम्र भर के सफ़र में समझ पाते हैं कि उस खुदा ने, ईश्वर ने यह सब मज़ाक में कहा था......ज्यादातर इंसान उस मज़ाक को सीने से लगा घूमते हैं सारी उम्र ...और उम्र गवां देते है अपने आप को दूसरों से बड़ा, बेहतर साबित करने में......इतना धन दौलत इकठा करेंगे जिस का कभी उपयोग नहीं कर सकते...सुना नहीं एक नेता सुखराम के घर छापे पड़े तो गद्दों में करेंसी मिली ...एक और नेत्री जय ललिता के यहाँ से जूते चप्पल का अम्बार मिला... ..और बाकी सब लोग भी यही करते रहते है सारी उम्र, मिलता जुलता .....

ईश्वर मज़ाक करता है या नहीं, वो तो पता नहीं लेकिन वैसा ही मज़ाक हम सब के साथ हमारे माँ बाप, रिश्तेदार, परिवार के लोग, शिक्षक, नेता गण, सब करते हैं.. सब फूंकते जाते हैं शुरू से ही बच्चे के कानों में.....तुम अमुक धर्म के हो, अमुक जाति के, अमुक प्रदेश के, अमुक शहर के..... और तुम्हारा धर्म, जाति, प्रदेश, शहर सबसे महान हैं ....

अब कोई बोल भर दे इस सम्मोहन के खिलाफ़......आपकी धार्मिक, पवित्र भावनाएं आहत हो गयी......आप समझ ही नहीं रहे.....आपको आगाह किया रहा है कि आप मूर्ख बनाये गए हो, गधे बनाये गए हो... उल्लू के पट्ठे बनाये गए हो 

एक कहानी सुनी होगी बचपन में आपने भी...एक लकडहारे ने नेवला पाल रखा था.....वो गया बाहर...पीछे पालने में उसका बच्चा सो रहा था.....और एक सांप आया उस बच्चे की ताक में .....लेकिन नेवले ने देख लिया उसे......घमासान युद्ध हुआ....नेवले ने काट दिया सांप को..सांप खतम......अब थोड़ी देर में वापिस आया लकडहारा.....नेवला भाग के गया अपने मालिक का स्वागत करने.....लकडहारे ने नेवले के मुंह पे खून लगा देखा तो समझा कि नेवला खा गया उसके बच्चे को......आव देखा न ताव, नेवले को काट दिया कुल्हाड़ी से....जब अन्दर गया तो हँसते खेलते बच्चे को देख और पास पड़े मरे सांप को देख सब माजरा समझ गया ...लगा मत्था पकड़ के रोने..जिसे दुश्मन समझा वो मित्र निकला....अपनी जान पे खेल के उसके बच्चे की रक्षा करने वाला निकला 

अब बात यह है कि जिसे आप दुश्मन समझते हैं ..वो ही सबसे बड़ा मित्र हो सकता है...वो ही सब से बड़ा खैरख्वाह हो सकता है ...लेकिन आप उस नेवले की तरह उसे मारने को दौड़ते हैं....उसे दुश्मन समझते हैं....और जिसे आप अपना दोस्त, शुभचिंतक समझते हैं वो ही आपका सबसे बड़ा दुश्मन हो सकता है.....

अब आज आरएसएस हिन्दुओं की, तालिबान मुसलमानों की, पोप लीला ईसाओं की सबसे बड़ी दुश्मन है ...ये चाहते हैं कि आप लोग हिन्दू, मुस्लिम, इसाई वगैहरा बने रहें....आप उल्लू के पट्ठे बने रहें...ये आपके हर तरह के अंधविश्वासों को पोषित करते रहेंगें.....आपको धर्म के नाम पे लड़वाते, मरवाते रहेंगें...धर्म के नाम पे आप से वोट लेते रहेंगें...धर्म के नाम पे आपकी जनसंख्या बढ़वाते रहेंगें.....

और यदि खुद को हिन्दू मानते हैं तो आपको मुस्लिम का डर दिखाते रहेंगें और यदि मुस्लिम मानते हैं तो हिन्दू का डर दिखाते रहेंगें .......

और आप भी सोचते हैं कि बात तो ठीक है, इनके सिवा कौन है जो हिन्दुओं की रक्षा करेगा, हिन्दुओं का हित सोचेगा और ऐसा ही कुछ मुस्लिम भी सोचते हैं या कहें कि उनसे सोचवाया जाता है ......हिन्दू, मुस्लिम, इसाई सबसे ऐसा ही कुछ सोचवाया जाता है .......

आप यह सोच ही नहीं पाते कि आप हिन्दू, मुस्लिम आदि हैं ही नहीं 

याद है वो मशहूर डायलाग नाना पाटेकर का, जिसमें वो बताता है कि यदि हिन्दू का खून और मुस्लिम का खून निकाल लिया जाए तो दुनिया की कोई ताकत नहीं बता सकती कि हिन्दू का खून कौन सा है, मुस्लिम का कौन सा ........

बच्चा क्या हिन्दू, मुस्लिम की तरह पैदा होता है, हिन्दू घर में जन्मा बच्चा यदि मुस्लिम घर में पाला जाए तो वो निश्चित ही मुस्लिम होगा...मतलब आपका हिन्दू, मुस्लिम होना बस सिखावन है, ऊपर से थोपी गयी चीज़ है .......

ध्यान रहे मुस्लिमों के सबसे बड़े दुश्मन हैं ओवेसी जैसे लोग और तालिबान, हिन्दुओं के सब से बड़े दुश्मन हैं मोदी जैसे लोग और इसाईओं के सबसे बड़े दुश्मन हैं पोप जैसे लोग 

ये आपको सिखाते रहेंगें कि गर्व से कहो आप हिन्दू हैं, ये हैं, वो हैं ...इनका असल मकसद है आपकी लगाम अपने हाथों में थामे रखना ....सो ये तमाम कोशिश करेंगें कि आप में बुद्धि का कोई अंश जागृत न हो पाए.....चूँकि यदि ऐसा हो गया तो इनका सब मायाजाल ख़त्म हो जाएगा....इनका सम्मोहन आप पे से टूट जाएगा......और आप रोबोट से असल इंसान बन जायेंगें......और तब आप गर्व नहीं, शर्म करेंगें कि आप अब तक हिन्दू, मुस्लिम, सिख वगैहरा बने रहे ..

और आपके दोस्त हैं ..तसलीमा नसरीन जैसे, मलाला युसुफजई जैसे...नरेंदर दाभोलकर जैसे लोग..लेकिन आप इन्हें सम्मान कहाँ देंगें?....वो याद है न नेवले सांप वाली कहानी...इन्हें तो आप गाली देंगें या गोली 

चाहे ओवेसी हो, चाहे नरेंदर मोदी, चाहे तालिबान, चाहे चर्च, इनके हाथ में कभी कोई सत्ता नहीं आनी चाहिए.....

एक समय था सारी शक्ति मंदिर, चर्च के पास थी..सियासी, क़ानूनी, मज़हबी...सब....धीरे धीरे सब अलग अलग हुआ.....न्याय पालिका अलग हुयी, सियासत अलग, मज़हब अलग...

लेकिन पूरी तरह से अलग कुछ भी नहीं हुआ.. ..मज़हब सब पहलुओं पे हावी है.....

और मज़ा यह है कि मज़हब बस पीढी दर पीढी चलने वाला सम्मोहन है....चालाक, धूर्त लोगों द्वारा पोषित किया जाने वाला सम्मोहन, और कुछ भी नहीं 

आज ज़रुरत है इस सम्मोहन को तोड़ने की..
हिन्दू, मुस्लिम के केंचुल को छोड़ने की.....
और शक्ति में ऐसे लोगों को लाने की जो अच्छे प्रबंधक हों, जो कुछ काबिलियत रखते हों....आविष्कारक बुद्धि रखते हों..

सप्रेम नमन /कॉपी राईट मैटर/ चुराएं न, समझें

(7) !!! वाम मार्ग/ आरएसएस/ कम्युनिज्म/ भविष्य !!! 

वाम मार्ग, या वाम पंथ नामक कुछ नहीं होता......समाज पर हावी विचारधारा ने खुद को दक्षिण पंथी कहा और विपरीत विचार वालों को वामपंथी कहा  है  हमेशा
Right is right and left is wrong.

भारत में ब्राह्मणवाद के जो भी खिलाफ पड़ता है उसे वाम मार्गी कहा जाता रहा है
जाबाली, चार्वाक, बुध, मार्क्स सब

भारत में राम के जमाने से वेद्पन्थी, हवन करने वालों का बोलबाला रहा है...इनके विरुद्ध जो था सब वाम मार्गी और ये दक्षिणमार्गी

आरएसएस  उसी का तामझाम है
यानि तथा कथित दक्षिण पंथी
स्वयंसिद्ध
स्वनामधारी

बाकी सब इनकी नज़र में वाममार्गी हैं
बुध, रावण, मार्क्स, ओशो सब

आरएसएस का एजेंडा पुरातनपंथी है...
एक नावेल है----दो लहरों के टक्कर 
गुरुदत्त हैं लेखक 

मैंने पढ़ा नहीं है

लेकिन जहाँ तक मुझे ध्यान है इसमें  आरएसएस और कम्युनिस्ट विचारधारा की टक्कर वर्णित है 

दुनिया में जब तक आरएसएस जैसे संस्थान रहेंगे दुनिया आगे नहीं बढ़ पायेगी
तालिबान का सॉफ्ट वर्शन है
खैर

कम्युनिस्ट विचारधारा  में से बहुत कुछ लिया जा सकता है.......जैसे हम पुराने टाइपराइटर से कंप्यूटर बना पाए वैसे ही

दुनिया से परिवार विदा होंगे...लोग कम्यून यानि ग्रुप में रहेंगे...लेकिन यह कोई मार्क्स के ही बताये मुताबिक हुबहू नही होगा

कोई विचार कई बार तब कामयाब होते हैं जब उसके साथ की बहुत ज़रूरी इजाद हो चुकी हों

जैसे यदि बिजली न हो तो आप कंप्यूटर शायद ही  इजाद कर पायें और कर  भी लें....वो कामयाब न होगा

मुझे लगता है कि कम्युनिज्म के साथ ऐसा ही कुछ हुआ

और फिर मानो  कंप्यूटर इजाद हो गया, चल भी गया  लेकिन जब तक इन्टरनेट न आये आप उसका सही फायदा न उठा पायेंगे ...सीमित रहेगा इस्तेमाल

सो कहना यह है कि समाजिक विज्ञान की इजाद भी प्रैक्टिकल तब हो पाती है कई बार, जब उसके लिए ज़रूरी भौतिक विज्ञान की इजाद हो जाएँ
जैसे कम्यून जीवन तब तक सही नहीं है जब तक गर्भ निरोधक न हो

जैसे आप प्राइवेट सम्पति छीन लें और सारी ताकत चंद हाथों में दे दें.......यह गलत है जब तक कि आप शासनिक और प्रशासनिक व्यवस्था इतनी सुदृढ़ न कर लें कि जनता अपने लीडरों की हर मूवमेंट, या लगभग हर ज़रूरी मूवमेंट देख पाए.यह सब अब विज्ञान की मदद से काफी  कुछ बदलना सम्भव है.

पहले सीमित अधिकार  ही बेकाबू कर रहे हों तो आप पूर्ण अधिकार कैसे दे सकते हैं?
इसकी एक मिसाल ओशो का अमेरिका ऑरेगोन स्थित कम्यून है, उनकी महानतम गलती जिसे उन्होंने कभी अपनी गलती स्वीकार नहीं किया.....कम्यून बनाया, लेकिन सब अधिकार माँ शीला को दे खुद अलग थलग हो गए.......नतीजा यह हुआ कि वहां कम्यून और कम्यून के इर्द गिर्द का इलाका शीला और उसके साथियों के क्राइम का शिकार हो गया.

समूह जीवन का कुछ कुछ  नमूना है गुरुद्वारों का लंगर, आज हम परिवार को यूनिट मानते हैं, सो हर परिवार की अलग रसोई है, हर गृहणी की आधी ज़िंदगी रसोई में खप जाती है, कम्युनिटी किचन इसका एक आसान हल है.......लंगर को आप एक मिसाल समझ सकते हैं

और कम्युनिज्म को कोई हक़ नहीं कि वो यह थोपे  कि कोई भगवान है या नहीं....धर्म अफीम है, अफीम क्या ज़हर है .........लेकिन दुनिया के लिए विकल्प खुला छोड़ना ज़रूरी है, हाँ  परिवर्तन कर सकते  हैं कुछ , नियम बना सकते हैं  कि एक निश्चित उम्र से पहले बच्चे  को किसी भी धर्म में संस्कारित न किया जाए. इसाइयत में तो नामकरण संस्कार को कहते ही क्रिश्चनिंग हैं ..यानि नाम करण के साथ ही ईसाईकरण .....बच्चा पैदा होते ही इर्द गिर्द का समाज उसकी आत्मा पर हावी हो जाना चाहता है, कहीं बागी न हो जाए, कहीं कुछ इतर न सोच ले, समाज ने आज तक बच्चों को अपनी प्रॉपर्टी समझा है, यह सब बदलना होगा, लेकिन सामाजिक ज़मीन तैयार करनी होगी , वैचारिक ज़मीन  

कम्युनिज्म भविष्य है लेकिन बहुत से परिवर्तनों के साथ और इसे मार्क्स का कम्युनिज्म कहना उतना ही गलत  होगा जैसे कंप्यूटर को टाइप राइटर के आविष्कारकों की इजाद कहना

कॉपी राईट

(8) !!! ओशो प्रेमी ध्यान दें !!!

विलास तुपे नाम के एक कट्टर हिन्दू ने 22/5/1980 को पूना में प्रवचन के बीच में ज़हर बुझी कतार फेंक कर ओशो की गर्दन की सीध में मारा था लेकिन जाती कटार ने एक दम टर्न ली और फर्श से जा टकराई.

मैंने पढ़ा था यह सब बहुत पहले, लेकिन फिर स्वामी अगेहानन्द जी से कन्फर्म किया

और मुझे तो यह भी पता है कि ओशो कभी भी आरएसएस के समर्थन में नहीं थे, लेकिन अभी सन्दर्भ न दे पाऊँगा मित्रो, उसके लिए माफ़ी....

जो ओशो प्रेमी  नरेंदर मोदी के साथ फोटो खिंचाते फिर रहे हैं, शायद उनके काम की हो यह बात. और जो खुद को ओशो प्रेमी भी कहते हैं और संघ से भी जुड़े हैं शायद इनके तो और भी काम की हो यह बात.  

(9) "Is Hinduism  not a way of worshipping, is it a way of life, is it a culture, is it a civilization as RSS says ? Let us re-think."

First there is no culture...it is only  an un-civilization, which we call civilization... 

A junglee society, just living under the garb of culture, 

Vulture people living under the garb of culture...

Just scratch little a bit and all culture is gone and underneath there is a junglee person.

And to tell you the truth Hindu is no way of life.....it was just a word used for the people living in a particular geographical area.........it had nothing to do with any worshipping or religion or sect or any particular way of life. 

Actually the people who were called Hindus, they had no particular way of life, ..here people were eating flesh, even cow then some people were vegetarian, some worshipped idols, charvak mocked at them.

Here the society admires marriage and you will find brothels everywhere in the history  and in the present times.

Here you will see Ram insulting women in Valmiki Ramayan and female worshipping him in the temples.

Here you will see people like Nanak, Kabir, Cahrvak, Budh, Mahaveer and many more who never said that they were Hindus or propagating Hinduism but still you will find people calling Jains, Sikhs, Buddhist as Hindus. Just an old Brahman backed sect, just trying to overload their theory of Hinduism.

Here you can see so many kinda bullshit.

There was/is no particular set of life,which can be defined as Hindu way of life, nothing. This word Hindu is meaningless.

But it has a general, particular meaning. This word "Hindu" denotes a particular sect of society who goes to temples, who worship Ram, Krishan, Shiv, Durga etc,who celebrates Diwali, Dussehra etc, a particular sect. 

This word cannot be used for all the people living here in Bharat.  The word HINDU denotes a very old, rotten un-civilization. So this word must be discarded as a word for describing almost the whole population of Bharat. 

The word, Bhartiya, bhartawasi is far better, easily acceptable.


(10) !!! RSS (Rashtriya Swyam Sevak Sangh) !!!

It is a wrong socio-religious-political Ideology. It was established in the year of 1925, a faulty socio-religious-political ideology. It declares that all the people living in India, whoever accept Indian traditions and who tie themselves with the Indian culture only, who accept Indian history, Indian mythology as their own heritage, are Hindus. Muslim and Christians cannot be called Hindus because they follow the traditions which came from the land which cannot be called Akhtar Hindustani​an. And Sikhs, Jains, Buddhist, all are Hindus and Hindutava is not a methodology of worshiping but a methodology of living a life. Vinayak Savarkar has written exhaustively in his book ‘Hindutava’ all this. And this land, this piece of land called Bharat is something special, every other part of the earth is under privileged. Only this land could give birth to the great sages, great warriors, great artists and scientists. In fact, everything belonging to this land is superior to the rest of the world and Bharat was a world Guru and is a world Guru. And only the people accepting this philosophy are entitled to live here in India, all the others should either leave or be thrown out.

Now I see, there are serious flaws in this bundle of theories--- 
If India/ Bharat was the best, why it got defeated by the foreign invaders?

Why it remained slave to the foreign cultures for centuries?
If it is the best and all the others are inferior, why the bulb, TV, fridge, computer used in every household, were not invented in India only?

Why Buddhists, Jains, Sikhs are not ready to call themselves Hindus?
Why the players of India did not win Gold medals in Olympics, especially the players from the states led by the BJP (Bhartiya Janta Party), an offspring of the RSS?

And if the Indians can utilize easily the inventions coming from the other parts of the earth, why cannot the great literature, great paintings, sculptures, music, dance, saintly teachings be adopted as ours own?

Why not claim the whole earth’s heritage, why not love the whole world, why not accept all the genius of whole world as ours, why this miserliness?

Why this adamancy of being Hindus, why not expand and call ourselves Earthen, why not further expand and call ourselves Cosmic?

Why not? Why not?”

(11) !!! RSS/ BJP philosophy is Wrong !!!

RSS (mother of BJP), philosophize that all are Hindus, Sikhs, Bodh, Jain etc.... provided they accept themselves products of this piece of land called Bharat and accept its sanskriti also, Foolish, India had no fix sanskriti, Bodh philosophy is against Brahman philosophy, Jain against Bodh, Sikhs left a lot many bullshits of Hindus and RSS is hellbent on proving them all Hindus. Ask Sikhs are they Hindus, ask Bodh are they Hindus, ask others are they Hindus, None will accept themselves as Hindus. And there is no Hindu sanskriti at all, carrying old ideas just because they came through ancestors is no sanskriti, Sankriti means accepting good things like electricity, TV, fridge etc. in our lives, no matter they come from which part of the Earth.

I have read a few books by "Veer Vinayak Damodar Savarkar".I have seen many short sighted people, he is one of the top most.
Pitra Bhoomi, Matri Bhoomi, Punya Bhoomi, Bhaarat Bhoomi. This whole Cosmos is ours and we are of the Cosmos, Cosmic people. The man was deluded and so are RSS (Rashtriya Swayam Sevak Sangh) and BJP people, his followers.

If India is to progress, she should get rid of Idiotic RSS Govt, these are just idiotic bunch of Hindu fanatics, why waste 5 years, come forward young guys and young gals, constitution is man made, made by us , for us, ask for your vote back, let us bring down this Government.


RSS is just a stupid ideology, has come into power because

of political vacuum.

Government is meant for Governance, good Governance, the people who belong to temples, Mosques, they should never be allowed to fight the elections. Any association with any religion, and the party or the person be disqualified from contesting a political election.

Come forward, let us cut short this present stupid Govt and have Govt that indulges in Good Governance only.



NAMSAKAAR
COPY RIGHT MATTER, DO NO STEAL, COMMENTS WELCOME

Saturday, 6 June 2015

मोदी सरकार की साल भर की उपलब्धियां

किसी  ने आर टी आई से मोदी   साहेब  की एक साल   की उपलब्धियां   प्राइम मिनिस्टर ऑफिस  से पूछी हैं, जवाब नदारद.मैंने  कुछ  ही दिन पहले यह आर्टिकल लिखा था, कृपया जिन्होंने  न पढ़ा हो पढ़ लें और जिन्होंने पढ़ा हो दुबारा पढ़ लें, शायद अब और भी संदर्भित लगे. सुस्वागतम.  

 "सूटनीति, बूटनीति, कूटनीति"

जिसे समाजनीति पता नहीं, जिसे घर सम्भालना आता नहीं....वो विदेश नीति समझा रहे हैं, वो कूट नीति समझा रहे हैं.....अबे, वो सिर्फ दुनिया घूम रहा है, मौज मार रहा है, उसे पता है दुबारा मौका मिले न मिले .....

और यह कूटनीति होती क्या है?....कोई coded नीति. मतलब ऐसी छुपी हुई नीति जिसे सामने वाला न समझ सके. मूर्ख है न सामने वाला? तुम जो अपना मुल्क सम्भाल नहीं पा रहे....जहाँ आधे से ज़्यादा लोग गरीब हैं.....तुम ज़्यादा अक्ल वाले हो? अगले जो तुम्हारे मुल्क से मीलों आगे हैं, वो गधे हैं, अक्ल के अंधे हैं, घोंचू हैं?

या इसे आम भाषा में कहा जाए, "सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे"......"तेरी भी जय, मेरी भी जय"......"You Win, I Win", a "Win Win Game". 

चलो ठीक है, लेकिन रुपैया तुम्हारा दम तोड़ रहा है, GDP हांफ रही है.......गरीब आत्महत्या कर रहा है, मध्यम वर्ग महंगाई से त्रस्त है, उच्च वर्ग को वैसे ही कोई फर्क नहीं पड़ता, "कोई हो नृप हमें क्या हान".....

खैर कूटनीति है भाई, coded नीति..... आसानी से पल्ले थोड़ा न पड़ जायेगी, दुनिया के महानतम कोड ब्रेकर बुलवाने पडेंगे

यह कूट नीति मात्र अच्छा समय कूटने की नीति है....तुम्हारा नहीं, अपना

अच्छे दिन, तुम्हारे नहीं, अपने 

तुम्हारे तो पहले भी दिन कच्चे थे और कच्चे ही रहेंगे
तुम पहले भी कच्छे में थे ...कच्छे में ही रहोगे
सूट बूट, बढ़िया चश्मा न तुम्हारे हिस्से में पहले था, न आगे रहेगा

और तुम्हें तो अगले की सीधी सीधी नीति समझ न आ रही होगी.... सूटनीति, बूटनीति न समझ आ रही होगी, कूट नीति कैसे समझ आयेगी? 

मुल्क चाहे आधा भूखा नंगा हो, लेकिन विदेशों में प्रधानमंत्री चमकता दमकता दिखना चाहिए, बेइज़्ज़ती थोड़ा करवानी है दूसरों के सामने, आखिर इतनी भी ग़रीबी नहीं कि मुल्क एक दर्शनीय प्रधानमंत्री अफ्फोर्ड न कर सके ....समझे सूटनीति ....या बूट नीति से समझाया जाए फिर? 

अबे, सीधी नीति ही इतनी कूट है, कूट नीति तो और ज़्यादा कूट है, क्या खा कर समझोगे?

यह सब समझने के लिए फ्रांस का पानी पीना पड़ता है, अमरीका का पिज़्ज़ा खाना पड़ता है, कनाडा का टोस्ट खाना पड़ता है....चीन की चीनी खानी पड़ती है ..आया कुछ समझ में? ..इडियट!

तुम साले दाल रोटी खाने वाले, नमक प्याज़ से रोटी खाने वाले, हैण्ड पंप का पानी पीने वाले तुम समझोगे कूट नीति?

अभी तो वैसे भी नहीं समझोगे, लगेंगे तकरीबन चार साल समझने में, चुनाव के आस पास तुम्हें स्पेशल क्लासें लगा आकर समझाया जायेगा .....तुम्हें चाय पर भी बुलाया जायेगा...चाय पर चर्चा होगी....तुम्हें सूट बूट और कूट नीति विस्तार से समझाई जायेगी

तब तुम्हें समझ आएगा कि कूटनीति क्या होती है? नहीं समझोगे तो टीवी पर समझाया जायेगा, रेडियो से बतिया जायेगा, अख़बार ससे पढवाया जाएगा, कैसे नहीं समझोगे, तुम्हें समझना ही होगा....हर दीवार, हर खम्बा तुम्हें समझाएगा......खैर, अभी फ़ालतू बातों के लिए वैसे ही समय नहीं है.

अभी तो जहाँ कूटे जा रहे हो वहां मलहम लगाने की नीति पर अमल करो, तुम्हारे लिए कूट नीति का बस इतना ही मतलब है 

नमन.....कॉपी राईट मैटर......चुराएं न.....शेयर करें

भिंडरावाला

आज भी  कई सिख भिंडरावाले को हीरो समझते हैं. अभी फिर से उसके नाम की अलख जगी है. मैंने विभिन्न समयों पर कुछ आर्टिकल लिखे थे. उनको जोड़ कर पेश कर रहा हूँ. उम्मीद है, मित्रगण  कुछ सोचने के लिए प्रेरित होंगे.

!!!मेरा नज़रिया, कुछ पंजाबियत पर, सिखों पर, धर्मों पर!!!!!!

मेरी नज़र में सब organised धर्म मनुष्यता के लिए हानिकारक हैं
ऐसा नहीं की गीता, गुरु ग्रन्थ, उपनिषद आदि में कोई भी काम की बात नहीं होगी......लेकिन सवाल सिर्फ इतना है कि धर्म के नाम पर ग्रुप, गिरोह बन जाते हैं...........और बन ही जाते हैं....बस वहीं सब गड़बड़
सिख 84 याद करते हैं
उससे पहले जो भिंडरावाला और अन्य सिख उग्रवादी हिन्दू सिख दोनों को मारते रहे उसके खिलाफ नहीं बोलते
मैं तब पंजाब में था...स्कूल में...फिर कॉलेज में
सब देखा है मैंने अपने सामने
रोज़ पंजाब केसरी भरा होता था...खालिस्तान के नाम पर कत्ले-गारत से
हिन्दू चुन कर मारे जाते थे
बसों से निकाल कर, कतार बना कर.....उड़ा दिए जाते थे AK-47 से
उस दौर में जो सिख भी विरोध करते थे ..उनको भी मार दिया गया
एक पुलिस अधिकारी था... अटवाल...सिख था
वो गया हरमंदर साब ....मत्था टेका...प्रसाद लिया...
बाहर आ रहा था....सीढ़ियों में उसे गोलियों भून दिया गया
उसकी लाश पड़ी रही वहां पर
पुलिस का बड़ा ऑफिसर
मुख्य मंत्री ने मिन्नत की भिंडरावाले से कि लाश दे दो
संस्कार करना है
घंटो बाद लाश दी गयी थी
किसी की हिम्मत नहीं हुई
जब भिंडरावाले माना, तभी लाश मिली थी
और गुरूद्वारे गुरूद्वारे नहीं आतंकवादीयों का छुपने का अड्डा बन गया था
क़त्ल करते थे गुरूद्वारे में छुप जाते थे
यह है ..जिसके लिए मैं रोता हूँ.....
आप गूगल करो आपको अटवाल की मौत वाली कहानी तथा और भी बहुत कुछ जो मैं लिख रहा हूँ मिल जाएगा
लेकिन आज आपको शायद ही कोई मिले जो यह सब कहे
सिख तो शायद बिलकुल नहीं मिलेगा
उल्टा आज भी हैं लोग, सिख जो भिंडरावाले को अपना आदर्श मानते हैं
उसकी फोटो लगाते हैं अपनी बाइक, अपनी कार के पीछे
सिख कहते है...Never forget 84
पीछे क्या हुआ..वो याद तक नहीं करना चाहते
जबकि सब जुड़ा था
सब चैन रिएक्शन था
और सबके पीछे कांग्रेस, इंदिरा गांधी थी
और वो ही कांग्रेस के तलवे चाटू.....वो ही गांधी परिवार का नौकर, मनमोहन इस देश का PM बना रहा
यह कभी नहीं दिखा सिखों को
बकवास, जितना देखना है बस उतना ही देखना है
सच से कोई मतलब नहीं
अक्ल के अंधे
धर्म के अंधे
धर्मान्ध
मेरा आधा परिवार सिख है...आधा मौना
माँ सिख परिवार से, पिता हिन्दू परिवार से
दिल्ली में मेरे एक सिख मामा को जला कर मार दिया गया था
पंजाब में थे हम.....
दिल्ली आने की एक वजह पंजाब की अशांति भी थी
यह जो लिखा है मैंने...सब देखा है
ज़िन्दगी है मेरी
जब तक स्कूल कॉलेज में थे वहां तक कभी ख्याल तक न था हिन्दू सिख का, कोई फर्क न था
लेकिन आतंकवाद ..तौबा........सब गुड़ गोबर कर दिया
मेरी माँ...पिता जी...गुरुद्वारा..मंदिर...और दरगाह सब जगह जाते थे.
वहां बठिंडा में एक हाजी रतन करके दरगाह है
वहां आज भी सब जाते हैं
लेकिन यह सब बारूद है , बारूद का ढेर कब इन्सान को उड़ा दे कुछ पता नहीं
इन्सान को अँधा कर देता है, धर्मान्ध
बस ज़रा सी चिंगारी की ज़रूरत
और क़त्ल-ए-आम शुरू
मेरी क्या माननी है, इतिहास देखें.
और जो इतिहास से सबक नहीं लेते, उन्ही के लिए कहा जाता है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है, उन्ही मूर्खों के लिए कहा जाता है
वरना इन्सान समझदार हों तो काहे गलती दोहरायेंगे..काहे मज़हब के नाम पर एक दूसरे को काटेंगे ...लेकिन इन्सान समझदार हो तब न....इन्सान इन्सान हो तब न.......यहाँ तो सब हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं, सिख हैं......यह हैं...वो हैं

!!!! पंजाब का आतंकवाद, एक और नज़र !!!!!!

एक फिल्म बनी थी माचिस, गाना याद होगा आपको "चप्पा चप्पा चरखा चले", पंजाब में आतंकवाद पर आधारित, इस फिल्म को निर्देशित किया था गुलज़ार ने.......

बहुत अच्छी चली थी यह फिल्म.......

लेकिन इस फिल्म ने सच बिलकुल भी नहीं दिखाया, उल्टा झूठ फैलाया

दिखाया यह गया कि सिख जो उग्रवादी बने, वो इसलिए कि पुलिस ने, प्रशासन ने उन पर ज़ुल्म किये.....एक दम झूठ बात है

ज़ुल्म शुरू ही सिख उग्रवादियों ने किये थे.......भिंडरावाला शुरू से इस सब के पीछे था और कांग्रेस शुरू से उसके पीछे थी

लेकिन आज तक शायद ही किसी फिल्म ने, पूरी तस्वीर दिखाई हो..........

खालिस्तान की डिमांड पर हिन्दुओं को पंजाब से खदेड़ने के लिए ही उनको चुन चुन कर, कतार बना कर गोलियों से भून दिया जाता था.

पंजाब केसरी अखबार इसके विरुद्ध आवाज़ उठाता था, उनके बन्दे मार दिए गए

जो सिख इस के खिलाफ आवाज़ उठाता था, उसे भी मार दिया गया

और पंजाब में बिलकुल भी हिन्दू सिख का कोई फर्क नहीं था, हिन्दू को विशेष अधिकार न थे, ऐसे जो सिख को नहीं थे....न...न..

लेकिन फिर भी खालिस्तान का कांसेप्ट खड़ा किया गया, दिखाया गया कि चूँकि सिख अलग हैं सो उनका अलग मुल्क होना चाहिए.......मानस की जात सबे एको पहचानबो....सब भुला दिया गया...

भुला दिया गया कि गुरुओं ने तो मज़लूम की रक्षा के लिए अपने वंश तक कुर्बान कर दिए थे......

फिर एक आम आदमी को मार कर कौन सा आदर्श घड़ा जा रहा था?

गुरुद्वारों को आतंकवादियों ने अपनी पनाहगाह बना लिया था......आज अक्सर सिख कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने हरमंदर साब की बेअदबी की, वहां अन्दर फ़ौज भेज दी...... अरे भाई, ठीक है वहां पुलिस, फ़ौज नहीं जानी चाहिए, लेकिन इसी बात का फ़ायदा उठा कर तो गुरूद्वारे को एक सेफ-हाउस की तरह प्रयोग किया जाता था आतंकवादियों द्वारा, क़त्ल करते थे गुरुद्वारों में छुप जाते थे, गुरुद्वारा इन कामों के लिए बनाया जाता है क्या, बेअदबी तो आतंकवादियों ने की गुरुद्वारों की ...लेकिन वो शायद ही किसी सिख को नज़र आता हो

गुलज़ार जैसे कलाकार को नज़र नहीं आयी पूरी तस्वीर, और ये हमारे बुद्धीजीवी हैं, अरे जब तक नज़र साफ़ न हो, कुछ साफ़ नहीं दिखता, चाहे गुलज़ार हो चाहे कोई भी हो

उम्मीद है कि कोई फिल्म, कोई नाटक बनेगा, जो पंजाब की हिन्दू सिखों के कत्लों से लेकर दिल्ली में सिखों के कत्ले-आम की पूरी तस्वीर सही से दिखायेगा, और दिखायेगा कि सब कड़ियाँ जुड़ी थीं, और दिखायेगा कि कैसे जुड़ी थीं

!!!!! इंदिरा गांधी, भारतीय इतिहास की एक लानत !!!!

आज इंदिरा गांधी से जुड़ा कोई दिन है शायद.....जनम या मरण या फिर कोई और दिन......damn it.........क्या किसी को पता है कि इंदिरा जो मारी गयी वो उसके अपने पापों का फल था........पंजाब में सन अस्सी के आस पास से चौरासी तक धड़ा धड़ खालिस्तानियों द्वारा हिन्दुओं को मारा जाता रहा.....AK-47 इन आतंकियों का ख़ास पसंदीदा खिलौना था........कतार बना एक ही बारी में बहुत से लोग जो मारे जा सकते थे, आसानी से .........रोज़ अख़बार के पहले पन्ने लाल होते थे,,,,,,,,,,अख़बार बस मृत्यु समाचार की दूत बन चुकी थी......हिन्दू निरीह जानवर की तरह थरथराते थे.....

मैं स्कूल में था.,.....बठिंडा में.........घर में अखबार नहीं आती थी...लेकिन मुझे जमाने की सब खबर थी......सारा दिन पुस्तकालयों में पड़ा रहता था

अक्सर सोचता कि क्या इन लोगों को रोका नहीं जा सकता.......पंजाब समस्या से अख़बार भरे रहते ....अलग अलग सुझाव.....

फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार, फिर इंदिरा की हत्या, फिर दिल्ली में सिक्खों की हत्या ....धीरे धीरे पंजाब में आतंकवाद खत्म

हजारों लोग मारे गये, हिन्दू, सिक्ख, फ़ौजी, पुलिस वाले........दोषी, निर्दोष

आज जब पीछे मुड़ देखता हूँ तो इस सब का सबसे बड़ी मुजरिम अगर कोई पाता हूँ तो वो है इंदिरा गांधी

वो चाहती तो इस उग्रवाद को बहुत पहले ही, जड़ में ही खत्म कर सकती थी.....लेकिन नहीं किया...जो काम ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की मौत के बाद हो सकता था वो शुरू में तो बहुत आसानी से हो सकता था

न, लेकिन इंदिरा ने ऐसा नहीं किया, अपनी लगाई आग में पंजाब को जलाया, खुद को जलाया और दिल्ली को जलाया

आग से खेला इंदिरा गांधी ने, शायद उसे लगा आग उसे तो जला ही नहीं सकती, जैसे किसी मूर्ख बिजली वाले को यह गुमान हो जाए कि बिजली उसे तो झटक ही नहीं सकती

ऐसे नेताओं की मूर्तियाँ नहीं बनाई जाने चाहिए बल्कि चौराहों पर इनके पुतले दहन करने चाहियें

एक क़त्ल के लिए फांसी तक दी जा सकती है, अनेक कत्लों के दोषियों को सम्मान देंगे , नहीं, कतई नहीं

!!!किसी वहम में न रहें!!!

सन सैंतालीस का बटवारा. यदि मुस्लिमों ने मारे हिन्दू और सिख तो इधर से ऐसा ही मुस्लिमों के साथ भी किया गया .... और करने वाले हिन्दू और सिख थे
और चौरासी के दौर में सिक्ख आतंकियों ने हजारों हिन्दू मार गिराए खालिस्तान के नाम पर

फिर बाबरी मस्जिद, हिन्दू आतंकी, मरी इमारतों की लडाई में जिंदा इंसानों की बली , जिसमें हिन्दू मुस्लिम दोनों मारे गए

किसी वहम में न रहें कोई भी, चाहे हिन्दू हो, मुस्लिम हो, चाहे सिख हो

बात सिर्फ इतनी सी है कि जिस धर्म में पले बढे हैं, वो कैसे गलत हो सकता है, यह समझ आने के लिए अपने माँ बाप, परिवार द्वारा दी गयी मानसिक गुलामियों से बाहर आना पड़ता है.

1) ON 30TH ANNIVERSARY OF OPERATION BLUE STAR, KILLINGS OF HINDUS IN PUNJAB DURING 80-84, DEMAND OF KHALISTAN, SIKH MASSACRE IN DELHI 84, A REVISIT ON 30TH ANNIVERSARY OF OPERATION BLUE STAR--------

Today, a brawl happened in Golden Temple, Amritsar between two groups of Sikhs on the 30th anniversary of Operation Blue Star.

I wanna express my views regarding operation Blue star and a few things related to this mis-happening. Why, how, all these accidents took place?

Sikhs are aggrieved very much for the massacre of 1984 in Delhi, yeah me too, but they never even mention the killings of Hindus in Punjab.

I am born brought in Hindu-Sikh family, my mom from Sikh family, father a Hindu, though I do not subscribe to any religion in the world, I was in Bathinda, in school those days, I have experienced whatever happened there in Punjab those days.

From 80 to 84 almost everyday Hindus were killed. They were taken outta buses and queued up and then shot with AK-47 and the KILLERS were none-else but SIKHS, they were demanding Khalistan, a sacred land for the sikhs, hence Hindus were being frightened so that they might leave Punjab and it may remain only a land for the Sikhs.

This is a TRUTH, which is being hidden, not brought in lime-light. Sikhs only talk of massacre of 1984, right, it should be condemned as much as possible but the killings of Hindus be also talked.

And the Govt, Indira Gandhi, she was the master player of this whole dirty game.

If she would have been an honest one, there should have been no killings of Hindus, then no attack on Golden temple, then no massacre of Sikhs in Delhi....everything connected, chained, action-reaction.

I would not call Bhindrawle a mastermind, no, mastermind was Indira Gandhi and Congress party.

Why? Because as I said, she could have controlled everything in the beginning, if she had wished.

And Khalistan was not demanded after 1984, it was demanded long before that and not even Hindus but even some Sikhs, whosoever were opposing this violence, were killed during that period.

Moreover, though Bhindrawale was having the biggest group, there were so many other Groups too, who indulged in violence.

Khushwant Singh, he was the one, who bravely opposed Bhindrawale during those days.

Moreover news papers of those days may be seen.

Wish that all this had not happened!

Wish that all such things may never happen!!

Amen!!!

2) ON 30TH ANNIVERSARY OF OPERATION BLUE STAR--------

Sikhs are aggrieved very much for the massacre of 1984 in Delhi, yeah me too, but they never even mention the killings of Hindus in Punjab.

Hindus are aggrieved of killings and migration of Kashmiri Brahmans, yeah me too, but they never mention the killings of the Muslims in Gujarat.

Muslims are aggrieved of demolition of Babri Masjid but not much for the attack of Kasab and and company on Mumbai.

Until this attitude, finishes, no peace can be expected and this can happen only if humans stop becoming Hindus, Sikhs, Muslims etc. The very being of Hindus or Muslims or a Sikh does not allow them to empathize with the people of the sects. In fact, this sectoral being is the seed of such hostility, such massacre.

3) ON 30TH ANNIVERSARY OF OPERATION BLUE STAR--------

Avtar Singh Atwal (23 February 1943 – 25 April 1983) was a senior Indian police officer. He was an IPS, which he joined after serving five years as an Emergency Commissioned Officer in the Regiment of Artillery. He was serving as Deputy Inspector General of Police of Jalandhar District in Punjab. He was shot from behind and killed on 25 April 1983 by militants when he was coming out of Golden Temple after paying obeisance and with Karah Prasaad in his hands. He was unarmed. His dead body was left in open on the stairs of the temple for more than two hours. Finally the Chief Mnister of Punjab Darbara Singh requested Bhindranwale to let the police take the dead body.

He was awarded President Police Medal for Gallantry posthumously.[4] He was survived by his wife and son. His wife Amrita Atwal later joined the Punjab Civil Services and thereafter was seconded to the IAS before her retirement. His son, Harbir Atwal also joined the Punjab Police as an Inspector, and was awarded the "Sword of Honour" during the Passing Out Parade.
(Courtesy Wikipedia)

4) ON 30TH ANNIVERSARY OF OPERATION BLUE STAR-------- Read if you can spare time, read if you are interested in knowing about terrorism in Punjab.

"Punjab: The Knights of Falsehood -- Psalms of Terror"

These are the words of KPS Gill, former DIG of Punjab, honored as annihilator of terrorism in Punjab also alleged as 'butcher of Punjab'.

KEEP CALM, JUST DISCUSS FRIENDS. WELCOME.
COPY RIGHT MATTER

शयाणे

सयाना और शयाणा होने में उतना ही फर्क है  जितना आसमान और ज़मीन में,  जितना मीठे और नमकीन में, भद्दे और हसीन में, जितना बेवकूफ़ और ज़हीन में

पंजाबी में बूढों के लिए 'सयाणा' शब्द भी प्रयोग कर लिया जाता है, आशय यही है कि एक उम्र तक पहुँचते -2 व्यक्ति समझदार हो जाता है

लेकिन मैं तो  देखता हूँ, उम्र के साथ साथ व्यक्ति सयाना नहीं, शयाणा हो जाता है

चाल बिगड़ जाती है, पर चालें आ जाती हैं
समझदानी नादानी में बदल जाती है

कुछ न सीखा इन्होने, बस सीखी होशियारी
झूठी इनकी यारी, झूठी रिश्तेदारी

बचपन में प्यासे कव्वे की समझदारी की कहानी सबने पढी है, लेकिन एक कहावत भी सुनी होगी ज़रूर "सयाना कव्वा गूं खाता है"

राधे चरण  तकरीबन चार सौ गज के प्लाट में रहते हैं, दिल्ली पश्चिम विहार में. कोई तीन साल पहले मुलाकात हुई. उस वक्त उस प्लाट की कीमत तकरीबन दस करोड़ आंकी.

उनकी डील आयी नए सिरे से बिल्डिंग बनवाने के लिए, वो न होनी थी न हुई. चूँकि उसमें उनके भाई का आधा हिस्सा था जिसे वो देना नहीं चाहते थे. बड़ी जल्दी हाई कोर्ट में केस चला गया.

और आज तक चल रहा है, उन्हें समझाया कि प्रॉपर्टी में भाई का नाम है, सो हिस्सा भाई को देना ही पड़गे.  और समझाया कि बीवी आपकी अच्छी नौकरी कर रही है, बेटी की शादी हो चुकी है, दूसरी बेटी भी सेटल हो चुकी है, छोड़ो यह झंझट, लेकिन वो कहाँ मानने वाले. चार गज को आधा कट कल्पना तक उन्हें गवारा नहीं थी.

कोर्ट केस इस उम्मीद में खींच रहे हैं कि शायद भाई को मना लें बीच में ही, लेकिन मामला भाई के बच्चों के हाथ में है, सो कुछ नहीं होना उनकी उम्मीद के मुताबिक.

इस बीच दिल्ली में प्रॉपर्टी के रेट तेज़ी से गिर चुके हैं. अब आज  बड़ी मुश्किल कोई छ करोड़राह गयी  उस प्लाट की कीमत. सयाना बनने के चक्कर में वो अपना समय, शांति, भाई से रिश्ता और तकरीबन दो करोड़ रूपया गंवा चुके हैं.

हरकेश कोई पचास साल के थे. अकेले रहते थे. अपना फ्लैट था. लेकिन कमाते धमाते नहीं थे. कागज़ बड़े भाई के घर पड़े थे. भाई सब दुःख सुख देख रहा  था, उनकी दवा दारू, रोटी तक का खर्च दे रहा था, वर्षों से दे रहा था.  इन सज्जन को होशियारी सूझी, भाई से मकान के कागज़ात मांगे. भाई ने आनाकानी की. जब सब हर्जा- खर्चा वो करे तो उसे यह गणना करना कि  मरने के बाद हरकेश वाला फ्लैट उनके परिवार  को मिल जाए कोई गलत न था. सो टाल मटोल की. लेकिन इन सज्जन को जोश चढ़ा. मेरी चीज़, वो कैसे रख ले? थाणे जा पहुंचे. भाई की हाजिरी लग गई. भाई ने कागज़ात दे दिए. लेकिन फिर तौबा कर ली. पीठ फेर ली. अब हरकेश फिर से हाय, हाय करता फिरता रहा, खाने तक के लाले पड़ गए. फ्लैट बेच अलटा पलटा करने की हिम्मत न हुई, कोई हेरा फेरी न कर जाए. कहता फिरे कि भाई नहीं पूछता. मैंने फ़ोन किया भाई को, उसने कहा, "इसे कहो, कागजों को चाट कर खा ले." भाई नहीं आया. दवा समय से न मिलने की वजह से फ्लैट में अंदर ही मर गया हरकेश. लोगों ने भाई को फ़ोन किया, भाई दौड़ा आया. मकान का कब्जा और कागज़ फिर उसी के पास. ज़्यादा सयाना मारा गया.

रमाकांत अपनी फैक्ट्री में अधिकतर लड़कों को ही रखते थे.  पुराना जानकार, कोई पचपन साल का, वीर सिंह, आ पहुंचा उनके पास, काम नहीं मिल रहा था. खाने तक के लाले पड़े थे. मिन्नत की, काम के लिए. वो देना नहीं चाहते थे, मैंने कारण पूछा, बोले उम्रदराज़ लोग काम नहीं कर के देते, एक तो शरीर साथ नहीं दे रहा होता, ऊपर से हरामी हो जाते हैं और चोट वोट खा जाएं तो और मुसीबत. फिर भी मेरे कहने पर रमाकांत ने वीर सिंह को रख लिया. दो साल तक काम करता रहा. फिर जो माल रमाकांत  बना रहे थे, एकाएक उसकी डिमांड घट गई. उन्होंने कहा वीर सिंह से  कि अभी रेगुलर मासिक वेतन पर नहीं रख सकते, दिहाड़ी के हिसाब से रख लेंगे. जब काम होगा तो ही बुलायेंगे. अब ये साहेब तो बिदक गए. ये कोई तरीका है काम करवाने का? ऐसे कौन काम करता है. रमाकांत ने कहा ठीक है, हिसाब ले जाओ. ये सज्जन अब लेबर चौक पर बैठते हैं, वहां भी कभी काम मिलता है, कभी नहीं. और पहले से कहीं सख्त. रमाकांत का काम फिर चल रहा है और उन्होंने रेगुलर लड़के रख लिए हैं. इनका ज़िक्र आते ही उनका ज़ायका कसैला हो जाता है. शयाणा.

प्रेस वाली को एक फैक्ट्री से रोज़  दो सौ कमीज़ प्रेस पैक करने को मिलती थी. वो ढंग से भी करती थी और बेढंग से भी. एक बार माल मालिक ने देख लिया बारीकी से. कोई दो हज़ार रुपैया काट लिए मालिक ने. अब यह बिफर गई, हमारी मेहनत  के कमाई है, कोयला लगा है, दिन रात एक की है. लड़ झगड़ दो हज़ार ले आयी और हमेशा के लिए अपना काम गवा आई...शयाणी.

अमित फ्रिज मकैनिक, सर्टिफाइड है.. वोल्टास में नौकरी कर रहा था.. लेकिन जहाँ जाए  कंपनी की तरफ से काल पर, वहीं अपना नंबर टिका दें. अगली बार ग्राहक उसे डायरेक्ट फ़ोन करके आधे रेट पर सीधा बुला ले. कम्पनी  को शंका हुई...अपना ही बन्दा फिट किया और  काल पर अमित को उसके भेजा गया, अमित रंगे हाथों पकड़ा गया. नौकरी से गया, और आगे के किये कैरिअर पर धब्बा लग गया.....शयाणा.

कितनी मिसालें दूं मैं आपको?......भरा है संसार... मारामार..हाहाकार

पुराने किरायेदार को मकान मालकिन ने सिक्यूरिटी के पैसे वापिस नहीं किये. बहाना बना दिया कि वो तय समय से पहले खाली कर रहा है, सो पैसे नहीं मिलेंगे.......किरायेदार अनपढ़ था, उसे पता भी नहीं था कि अग्रीमेंट में लिखा क्या है, न उसे पढ़ कर सुनाया किसी ने, बेचारा पैसे गवा बैठा.......फिर कहीं नए किरायेदार को कहीं मिल गया पुराना किरायेदार, आप बीती सुना दी. नए किरायेदार ने किराया बंद कर दिया, यह कह कर कि वो खाली कर रहा है, सिक्यूरिटी मनी किराए में खत्म कर दी, फिर भी खाली नहीं किया. बोला दो महीने और रहेगा और किराया मालकिन को नहीं पुराने किरायेदार को देगा. और दिया. लेकिन दो के चार महीने रह कर गया और उस चार महीने का एक पैसा किराया नहीं देकर गया. मालकिन को पता था कोर्ट केस से मामला और लटक जाएगा, सो सहना पड़ा. शयाणी.

'मैं शराबी, मैं शराबी' गाने की तर्ज़ पर हर तरफ  'मैं शयाणा, मैं शयाणी' गाते फिर रहे हैं लोग

सयाने और शयाणे के फर्क को समझाने के लिए एक वार्तालाप पेश  करता हूँ, उम्मीद है मेरी बात समझ आयगी.

श्रीमान अवस्थी जी, "सेठ जी, आपको पता है, राधे चरण समय खराब करता है, पैसों में भी थोड़ी बहुत हेराफेरी कर जाता है, फिर भी आप उसे कुछ कहते नहीं, क्या बात है?"

सेठ," क्या लगता है आपको, मुझे नहीं पता यह सब? भाई जी, मैंने इंसान रखें हैं काम पर, रोबोट नहीं...इंसान यह सब गड़बड़ करते ही हैं......जानते बूझते हुए मक्खी निगलते हैं हम......"

अवस्थी जी ,"फिर भी सेठ जी, कुछ तो आप करते ही होंगें?"

सेठ,"नहीं, कुछ नहीं करते, आपको हज़म इसलिए नहीं ही रहा चूँकि आप नौकरी करते हो, कभी आगे कर्मचारी रखे नहीं हैं आपने......भाई, कभी कम समझदारी रखना, ज़्यादा समझदारी होती है....It is wiser to be unwise sometimes."

शयाणे और सयाने का फर्क इतना है कि अक्ल पर ताला है और दूजे की  अक्ल आला है.

एक को अभी का फायदा दीखता है, दूजे की नज़र दूर तक जाती है. एक छोटे फायदे के लिए बड़ा फायदा गवा देता है और एक बड़े फायदे के लिए छोटा नुक्सान करवा लेता है. एक लड़ाईयां जीतने को युद्ध हार जाता है, दूजा युद्ध जीतने को लडाइयां हार जाता है. एक दूसरों को बेवकूफ समझता है और बनाता है, दूजा  खुद को समझदार समझता है और समझदारी बढाने की कोशिश करता है

सयाने बनो यारो, शयाणे मत बनो, इस आर्टिकल को शेयर करो, चुराओ मत, सादर नमन

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Thursday, 4 June 2015

"बेटियां"


बहुत सुना होगा आपने कि शादी के बाद ससुराल वालों की वजह से बेटियां परेशान होती हैं.  अधूरी तस्वीर है. बहुत बार ससुराल में बेटियों को हो रही दिक्कतों की वजह मायके वाले भी होते हैं.

मेरी बात काबिले-यकीन न लगे शायद.

मेरे मित्र कि बिटिया सीमा का प्रेम सम्बन्ध था एक लड़के के साथ.  कहा ज़रूर जाता है कि लड़का लड़की दोनों राज़ी तो क्या करेगा काज़ी लेकिन बहुत बार काज़ी ही सब करता है. यहाँ काज़ी से मतलब हर उस पाज़ी से है जो अपनी मर्ज़ी दूसरों पर थोपता है.

अस्तु, सीमा के पिता जी को उसका प्रेमी बहुत पसंद नहीं था. लड़के कि आर्थिक स्थिति उनको समझ नहीं आई. वैसे वो अच्छा ख़ासा कमाता था लेकिन सीमा के पिता जी चूँकि खुद कारों, कोठियों वाले थे सो उनको फ्लैट में रहने वाला, मोटर साइकिल पर चलने वाला, बीस हज़ार रुपये माह कमाने वाला लड़का कतई पसंद न था.

सीमा ठहरी सीमा में रहने वाली लड़की. न इतनी समझ, न हिम्मत कि बगावत कर दे और सो उसकी शादी पिता के तय किये परिवार में हो गई. करोल बाग में ये बड़ी खुद की साड़ियों की दूकान. अपना घर. और क्या चाहिए?

आज शादी के तकरीबन बीस साल बाद मैं मिला सीमा से.  सीमा के दो बेटे हैं, एक लगभग अठारह साल का है, दूसरा सोलह का.  ऐसी लड़की का तो हर दिन खुशी से सराबोर होगा, ऐसे रिश्ते से कौन भला बोर होगा.

लेकिन सीमा मानसिक रूप से भयंकर बीमार है. उसे पति कभी भी पसंद नहीं रहा. वो उम्र में उससे आठ साल बड़ा है. और आज उससे कहीं उम्र में बड़ा लगता है. धन होते हुए, जायदाद होते हुए उसे खर्च करना नहीं आता. आप समझते हैं कि कमाना मुश्किल है,लेकिन खर्च करना भी मुश्किल है, सबके लिए न हो लेकिन बहुतेरों के लिए है.

यहाँ दिल्ली में कोठियों में झुग्गीवासियों जैसी जिंदगियां जीते कितने ही लोग मिल जायेंगे आपको. कोठियों की कीमत आंको तो करोड़ों में, इनकी ज़िंदगी का स्तर आंको तो कोड़ियों में.

खैर, सीमा जायदाद को देख देख खुश होते नहीं रहना चाहती, वो उसे भोगना चाहती है.....वो नहीं चाहती कि  "कमाए कोई, खाए कोई"....."रब दिया लापरवाहियां, कुत्ते खाएं मलाइयां" जैसी कहावतें उसके मामले में सच साबित हों ...लेकिन पति की मर्ज़ी के बिना कैसे सम्भव हो?

पति योग चाहता है, पत्नी सम्भोग चाहती है. पति को टैक्स की चिंता है, पत्नी को सेक्स की. पति  इस मामले में लगभग चुक चुका है.
अब पत्नी किस से कहे, कैसे कहे? बेहद बीमार.

सीमा की माँ को पता था कि मैं किताबें में सर दिए रखता हूँ, शायद कुछ समझता होवूं. पत्नी के जरिये संदेश मिला. मैं पत्नी संग मिले तब यह सब पता लगा.  और यह भी पता लगा कि वो कभी वहां अपने रिश्ते से खुश थी ही नहीं. उसने बताया कि वो जैसे ही उस घर में गई तो हैरान हो गई सब रहन सहन देख कर कि वो आ कहाँ गई है, किस तबेले में, किस मेले में, किस झमेले में. वापिस आ पिता को बताया लकिन पिता ने समझाया कि अब तेरा वही घर है. शादी के बाद लड़की का असल घर उसका ससुराल होता है, मायका नहीं. डोली में गयी हो, अर्थी में ही विदा होनी चाहिए वहां से.

सीमा क्या करती? उसे यह भी समझाया गया कि वापिस आने पर  उसकी दूसरी शादी कर दी जायेगी और वो हो सकता है कि पहले  से भी निम्नतर घर में हो चूँकि समाज में तलाकशुदा लड़की को वैसे ही सेकंड नहीं, थर्ड क्लास माल समझा जाता है. और यदि वो शादी नहीं भी करेगी तो पिता के घर में भाभियों के साथ, भाइयों के साथ उसे कभी बराबर का सम्मान नहीं मिलेगा.

सीमा को समझ आ गई. वो जैसे तैसे जी गई, लेकिन क्या जी गई? अब पता लग रहा है कि वो मानसिक रोग से पिच्छले अठारह  वर्षों से पीड़ित है. वो एक मरी मरी मरी ज़िंदगी जी गई और जी रही है. उसे महंगे मानसिक चिकित्सक से दवा दिलवाई जा रही है, लेकिन कोई असर होगा, मुझे शंका है

नज़र घुमाएं आप, शायद बहुत सीमा आपको दिख जायें, इस सीमा से कहीं बदतर हालात में.

'सावधान इंडिया' नाम का टीवी प्रोग्राम देख रहा था मैं पीछे. लड़की को ससुराल में जला के मार देते हैं. वो बीच में आ माँ बाप को ऐसी आशंका ज़ाहिर भी करती है लेकिन माँ बाप नज़र अंदाज़ करते हैं. जब लड़की जला दी गई, तो दहाड़ें मार रहे होते हैं.

लाख कहते रहे  माँ बाप कि वो अपनी बेटियों से बहुत प्यार करते हैं लेकिन असल में वो उनको शादी कर के जैसे तैसे निपटा देना चाहते हैं. पराया धन. अमानत. जितनी जल्दी सौंप दी जाए असली मालिक को उतना बढ़िया. आज भी बहुत लोग अठारह तक नहीं पहुँचने देते बेटी को. ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं. कन्या को दान कर देना चाहते हैं.

जो माँ बाप बेटी को पराया धन समझते हों, अमानत समझते हों, दान करने की वस्तु समझते हों, यदि वो ससुरालियों द्वारा अपनी बेटियों से दुर्व्यवहार पर टसुये बहाएं तो ससुराल को बाद में झाड़ना चाहिए, ताड़ना चाहिए, पहले मायके को झंझोड़ना चाहिए, भभोड़ना चाहिए

और ये भाई, यदि  बहन जायदाद में हिसा मांग ले तो इनकी माँ, जिंदा भी हो तब भी मर जाए. हिस्सा मांगते ही  जो बहन से राखी का रिश्ता तोड़ दें ऐसों को भाई कहलाने का हक़ नहीं है

मायका बेटियों से शादी करके पल्ला झाड़ लेता है. शादी की गंगा नहाये. जान छूटी.

मेरी समझ से इस तरह की  मायके ससुराल की दीवारें तोड़  देनी चाहिए. शादी हुई हो न हुई हो बेटी को मायके में हर वक्त जगह मिलनी चाहिए, न सिर्फ उसे बल्कि जामाता को भी मिलनी चाहिए. पहले आपके पास एक बेटी थी, अब आपके पास एक बेटा भी है. यदि पति पत्नी में जमे तो बढ़िया, बहुत बढ़िया और यदि न जमे तो  बेटी को सीमा की तरह ज़बरदस्ती सीमा में नहीं रखना चाहिए, यदि रखेंगे   तो या तो बेटी मर जायगी और यदि नहीं  मरी तो मरी मरी रहेगी



सादर नमन....कॉपी राईट.....चुराएं न....साझा करें

Monday, 1 June 2015

"वहम"

वहम का इलाज़ हकीम लुकमान के पास भी नहीं था....हो सकता है न हो...लेकिन मेरे पास है और भी बहुत लोगों के पास है और सदियों से रहा है

वहम का एक ही इलाज़ है और वो है "वहम"
जैसे कहते हैं न कि  ज़हर का इलाज़ ज़हर होता है.... कांटे को निकालने के लिए दूसरा काँटा चाहिए होता है .....लोहे को लोहा काटता है.

अजी दफा कीजिये, लानत भेजिए, लकड़ी को लकड़ी चाहे न काटती हो लेकिन वहम को  वहम काटता है

आधुनिक दौर में इसे 'प्लेसबो' भी कहा जाता है, दवा के नाम पर पानी के टीके लगाए जाते हैं, मीठी गोलियां दी जाती है और उनका उतना ही असर होता है जितना किसी भी असल दवा का....

होमियोपैथी में तो दी ही मीठी गोलियां दी जाती हैं और बहुत दुनिया है जो यह मानती है कि 'होमियोपैथी' मात्र प्लेसबो है. मेरा वास्ता होमियोपैथी से पहली बार तब पड़ा जब उगती जवानी के कील कांटे चेहरे पर उगने लगे.......वहां बठिंडा में दवा लेता रहा, छोटी मीठी गोलियां...मुझे तो कोई असर होता कभी दिखा नहीं......फिर यहाँ दिल्ली में भी एक दो बार होमियोपैथी की दवा और वजहों से ली, मुझे कभी कोई फायदा नुक्सान नहीं हुआ हालाँकि आज भी होमियोपैथी के मुरीद  बहुत लोग हैं

मेरे एक मित्र, बड़े दबंग, सुविधा के लिए इनका नाम रख लेते हैं, "शेर सिंह शेर"..आगे भी शेर, पीछे भी शेर, बीच में शेर.....तो बड़े ही दबंग......हमने आपने कभी जितने लोगों को थप्पड़ मारने का ख्व़ाब भी न लिया हो  उतने लोगों मार कूट चुके, कईयों पर छुरियां चला चुके.......

एक बार लेकिन कुछ लड़कों के हत्थे चढ़ गये........ज़्यादा कुछ नहीं उन लोगों ने घेर कर कुछ गाली-वाली दे दी.........फिर अगले दिन उनमें से ही कोई इनके घर की खिड़की का शीशा तोड़ गया.....अब इनको झटका लग गया......हैरान, परेशान.......बीमार हो गए.....मैं पहुंचा, बोले किसी ने कुछ घोट के पिला दिया है......भूत चिपक गए हैं....खाना हज़म नहीं होता.........खून के साथ उलट जाता है, भभूत बाहर गिरती है.......फिर कुछ किताबें भी पढ़ चुके थे, ऊर्जा कभी मरती नहीं, रूप बदलती है......आत्मा अजर है, अमर है.....भूत भी बन सकती है......

समझाने का प्रयत्न किया कि आपको मानसिक आघात है, आप अपनी ज़रा सी हार बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं....आप भूत प्रेत का मात्र भ्रम पाले हैं...खुद को धोखा दे रहे हैं.......वहम से खुद को बहला रहे हैं.......लेकिन वो कहाँ मानने वाले? 'शेर सिंह शेर'.

दो साल तक वो घर छोड़ बहन के घर रहते रहे......फिर एक डेरा जाना शुरू हो गए, हर माह, धीरे धीरे काफी ठीक हो गए हैं...... लौट आये हैं ...इलाज़ डेरे के बाबा जी की मेहर से होता जा रहा है.......कौन समझाए इनको दुबारा कि आपकी बीमारी भी नकली थी और इलाज़ भी नकली है?.....आप मात्र आघात खा गए थे, जो समय के साथ और बड़े ड्रामों में उलझने की वजह से, हर माह उलझने की वजह से ओझल होता गया है? मुझसे कुछ पूछते भी बीच में तो मैं कहता था मेरा क्षेत्र ही नहीं है, शायद  आप जो भूत , प्रेत की बात कह रहे थे, वो ही ठीक हो, आप ठीक हो रहे हैं, अच्छी बात है


तो मित्र गण, आपने गौर फरमाया, वहम का इलाज़ दूसरा वहम है...

इस बीमारी के बीमार तो हर जगह हैं, हर गली में होते हैं.....हकीम साहेब के वक्त में भी होंगें......लेकिन इस बीमारी की तीमारदारी उनसे न हो पाती होगी, जभी तो कहावत मशहूर हुई. पता नहीं हकीम लुकमान के पास कैसे नहीं था यह वाला इलाज़? शायद सीधा सीधा इलाज़ करने की कोशिश करते होंगे जैसे मैंने अपने मित्र 'शेर सिंह शेर' के साथ शुरू में करने का प्रयास किया.

नीम हकीम खतरा-ए-जान. इस कहावत का मतलब शायद यही होता होगा कि जो हकीम हर बीमारी का इलाज़ नीम से करे या नीम जैसी जड़ी, बूटी से करे उससे जान को खतरा हो सकता है.....हो सकता है यह मतलब हो, हो सकता है न हो..लेकिन मेरे जैसे हकीमों के सीधे इलाज़ से तो खतरा है ही

पता नहीं हकीम लुकमान साहेब की इतनी शोहरत कैसे फ़ैल गई? वहम का सही इलाज़ तो आपकी गली के नुक्कड़ पर रहने वाले मौलवी साहेब तक को पता है......जोहड़ वाले मंदिर के पंडित जी को भी पता है........फेसबुक पर भी मौजूद कई ओझा , बाबा, देवियों तक को पता है...पता नहीं हकीम साहेब को क्यों नहीं पता था?

नमन-----कॉपी राईट----चुराएं  न ---साझा करें

पप्पू क्यों पप्पू बना रहे?

एक दोस्त है मेरा, पप्पू. पप्पू को जब मैं जानने लगा तब वो सुबह अखबार बांटता था और दिन में बिजली की फिटिंग आदि का काम करता था...दोनों काम बहुत मेहनत से करता था.....हम दोनों की उम्र रही होगी कोई उनीस बीस साल.  

पिता उसके शराबी, नकारा. माँ एक गुरुद्वारे की डिस्पेंसरी में छोटी मोटी कोई नौकरी करती थी. एक जवान बहन थी उससे बड़ी और दो भाई. भाई निकम्मे. घर खर्च सारा माँ और पप्पू चलाते.

फिर माँ  की नौकरी छूट गई. माँ को लकवा मार गया....सारा खर्च पप्पू चलाता रहा. बहन की शादी भी उसी ने की. 

पप्पू चाहता था कि उसकी शादी हो. लेकिन कैसे हो? घर में न तो रहने की जगह अलग से और न ही उसकी कमाई इतनी कि वो अपने बीवी बच्चे भी पाल सके और माँ बाप और भाई भी. 

ऊपर से उसके माँ बाप कोई दिलचस्पी न लें उसकी शादी में...लें भी तो कैसे? हालात सब सामने थे.

फिर जाने क्या हुआ पप्पू ने हिम्मत कर के खुद ही एक लड़की ढूंढी और अपना रिश्ता पक्का किया. हम भी गए उसकी सगाई पर.

बस हालात यहीं से एक दम बदल गए......जैसे ही उसने रिश्ता पक्का किया...उसके एक दो दिन में ही माँ को हार्ट अटैक हुआ और वो गुज़र गईं....उसके ठीक तीन चार दिन बाद पिता भी गुज़र गए.

पप्पू का दिमाग एक दम चल गया, उसे वो लड़की ख़ास पसंद नहीं थी, उससे शादी करने को तो राज़ी वो मात्र इसलिए हुआ था कि उसे कोई और मिल ही नहीं रही थी ...बहाना  बना दिया कि उस लड़की से रिश्ते की  वजह से माँ बाप दोनों गुज़र गए हैं सो वो मनहूस है, रिश्ता छोड़ दिया.

असल बात यह  थी कि उसे अब अपना भविष्य कुछ बेहतर नज़र आने लगा था.......माँ बाप गुज़र गए, सो घर में जगह बन गई रहने को और ऊपर से घर खर्च भी घट जाना था ......अब वो ऐसी लड़की से शादी क्यों करे जो उसे पसंद नहीं थी?

अब पप्पू बिलकुल बदल गया है. वो जितना सीधा था. श्रवन पुत्तर. उतना ही टेढ़ा हो गया है. शातिर. कोई लड़की भगा लाया....पहले वाली से तो कहीं सुंदर......जिस मकान में किराए पर रहा रहा था उस पर कब्जा कर लिया......एक नेता के साथ लग जाता है. ख़ास कर चुनाव में. दारु आदि बांटने का ज़िम्मा उसका होता है.....बेटी को जुगाड़ बिठा पब्लिक स्कूल में करवा लिया है, फीस माफ़ करवा ली है.

मैं हैरान होता हूँ कभी कभी, क्या यह वो ही पप्पू है, जो कभी कोई नशा नहीं करता था, जो चुटकले सुना सुना हँसता हंसाता रहता था...जिसे छोटी छोटी चीज़ों में ही ख़ुशी हासिल हो जाती थी!

हो सकता है कि आपको पप्पू हरामी लगे....कसूरवार दिखे.......मुझे वो हमारे समाज का आइना लगता है.....आपको अपने इर्द गिर्द बहुत से लड़के- लड़कियां दिख जायेंगी जो परिवार का पूरा बोझा उठाये होते हैं और उनके माँ बाप उनकी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे होते. कारण होता दुधारू गाय का, कोल्हू के बैल का  खूंटे से छूट जाने का डर.

बहुत से माँ बाप ने अपने बच्चों को पैदा ही जैसे मात्र अपने लिए किया होता है. बच्चे का शुरू से दिमाग खराब किया होता है, बड़ों की इज्ज़त करो, बड़ों का कहा मानो, बड़ों का सहारा बनो. अब पप्पू जैसे बहुत लोगों को देर -सबेर समझ आ जाता है कि यह तो मात्र बुद्धू बनाए रखने के मन्त्र हैं.

और उनको समझ आ जाता है कि माँ बाप तक ने अपने लिए उन्हें हांका है , फांसा है, झांसा है . दुनिया की हकीक़त खुल के सामने आ जाती है. ऐसे में पप्पू की तरह वो गियर बदल ले तो काहे कि हैरानी?

एक स्कूल है, पश्चिम विहार दिल्ली में, जहाँ मैं रहता हूँ, इसका पुराना नाम संत ज़ेवियर स्कूल है, अब नाम बदल गया है, स्कूल भी बहुत ऊंचे दर्जे का माना जाता है.

इसके गेट के बाहर एक तरफ श्रवण की मूर्ती लगी थी, जैसी आपने देखी होगी माँ बाप को कंधों पर उठाए. और दूसरी तरफ एकलव्य की मूर्ती थी अंगूठा काट के गुरु को देते हुए. अभी भी टूटी फूटी श्रवण वाली मूर्ती लगी है बाहर...स्कूल पूरा टूट के दुबारा बन गया, वो मूर्ती अभी भी बाहर है......यह मूर्तियाँ सारी कहानी कह देती हैं... समाज को बच्चे चाहियें श्रवण जैसे,  एकलव्य जैसे.. जो माँ-बाप-गुरु के कहने पर कुर्बान हो जाएँ.

अब पप्पू जैसे बच्चों का कब दिमाग घूम जाए, कब वो पप्पू बने रहने से इनकार कर दें, कब उनको लगने लगे कि हमें बस इस्तेमाल किया जा रहा है और कब वो भी समाज को इस्तेमाल करने पर उतारू हो जाएँ, किसे पता है?

जब आप देखते हैं कि हर तरफ आपको लूटा जा रहा है, तो आपके पास भी जिंदा रहने के लिए सिवा अपने इर्द गिर्द दूसरों को लूटने के, हेराफेरियां करने के क्या चारा रह जाता है?

बदलाव "सदा इमानदार रहो", "सच बोलो", ऐसी बकवासबाजी से न आया है न आएगा. यह सिखाना ही इसीलिए पड़ता है कि हमारे समाज का ढांचा ऐसा है कि इस में सच्चा, इमानदार रहना अव्यवहारिक है....इसलिए थोपना पड़ता है ऊपर से...यदि सहज हो तो आपको सिखाना नहीं पड़ेगा...रटाना नहीं पड़ेगा....संसद की इमारत पर  लिखना नहीं पड़ेगा "सत्यमेव जयते".

सदियों से तो हमने देख लिया कि हमारे धर्म ग्रन्थ, हमारा साहित्य, हमारा कानून आदमी को ईमानदार नहीं बना पाया फिर भी हम मानते नहीं. यदि आपका एक ढंग एक बार असफल हो जाए, दो बार असफ़ल हो जाए...दस बार असफल हो जाए और आप उसी ढंग को प्रयोग करते रहे, करते ही रहें  तो आप मूर्ख हैं.

वो किंग ब्रूस और मकड़ी की कहानी हम सब ने पढ़ी सुनी है, प्रयास करते रहना चाहिए. अब अगली कहानी पढ़िए. दो मक्खियाँ एक बार एक ठंडे कमरे में फंस गई, कमरा बंद सिर्फ एक शीशे की खिड़की ज़रा सी खुली थी. ठंड इतनी कि सुबह तक दोनों का मरना तय था. एक शीशे पर एक जगह जा बैठी और अब बार बार वहीं टक्करें मारने लगी.......दूसरी ने एक जगह शीशे को छू के देखा, फिर दूसरी जगह, फिर तीसरी जगह.......सुबह तक जानते हैं क्या हुआ? पहले वाली मक्खी वहीं मरी पड़ी थी और दूसरी वाली कमरे से बाहर हो चुकी थी. दूसरी वाली जानती थी कि प्रयास करते रहना चाहिए और ज़रुरत के मुताबिक नतीजे न आयें तो अलग तरह से प्रयास करें, एक ही तरह का प्रयास नहीं करते रहना चाहिए.

लेकिन हम मानते ही नहीं, दिल है कि मानता नहीं.........हम सदियों से वोही पुराने राग अलापते हैं...हमारे मंदिर अलापते हैं, हमारे गुरुद्वारे अलापते हैं, हमारी मस्जिदें अलापते हैं, हमारे धर्म ग्रन्थ अलापते हैं, स्कूली किताबें अलापती हैं, सुबह से शाम तक अलापती हैं. हमें समझ ही नहीं आता कि व्यक्ति अच्छा हो ही नहीं सकता जिस तरह की सामाजिक व्यवस्था है. उसे खुला छोड़ दो, वो हर तरह की बेईमानी करेगा......चोरी करेगा.....क्योंकि अभाव ग्रस्त है.....असुरक्षित है.

पप्पू के जीवन का जो अंश प्रस्तुत किया उसे यदि ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि पप्पू जो कुछ गलत  कर भी रहा है तो भी गहरे में वो खुद इस सब का ज़िम्मेवार नहीं है.  वो सर्वाइवल के लिए जो ज़रूरी है वो ही कर रहा है......उसे क्यों हक़ नहीं था कि वो शादी करे, उसके भी बच्चे हों, अच्छे स्कूल में पढ़ें..उसके पास भी एक  गुज़ारे लायक ही सही, रहने को घर हो? वो  बहन की मदद करने को आज भी तैयार रहता है, करता भी है लेकिन अपनी कुर्बानी पर नहीं, अपने परिवार की कुर्बानी पर नहीं

सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि पप्पू जैसे व्यक्तियों को जैसे ही लगता है कि उन्हें मात्र पप्पू बनाया जा रहा है तो वो दूसरों को पप्पू बनाने पर उतारू हो जाते हैं  और इस तरह से समाज में एक दूसरे के साथ बेईमानी का ईविल सर्किल चलता रहता है. 

मित्रवर, यदि हमें एक सुथरा समाज चाहिए तो समाज का पुनर्गठन करना होगा, सब नए सिरे से सोचना होगा......गन्ने की मशीन में सड़े गन्ने डाल डाल कब तक स्वास्थ्यकर रस की उम्मीद करते रहेंगे? ऐसे न हुआ है, न होगा. न भूतो, न भविष्यति.

सादर नमन....कॉपी राईट....चुराएं न....साँझा करें.