Tuesday, 5 October 2021

इस्लाम-मुसलमान-हिन्दू-तुम-मैं-हम सब

मुस्लिम से कोई संवाद न करें इस्लाम पर. आलोचना बरदाश्त ही नहीं इस्लाम में फिर क्यों सवाल उठाने मुस्लिम के आगे?

इस्लाम, कुरान, मोहम्मद आलोचना से परे हैं एक मुस्लिम के लिए.

कुरान इन के लिए इलाही किताब है, आसमानी फरमान, डायरेक्ट अल्लाह से उतरा हुआ.

मोहम्मद अल्लाह के आखिरी मैसेंजर हैं, इन के बाद कोई और दूजा मैसेंजर अब आ ही नहीं सकता. अल्लाह ने मैसेंजर भेजने बंद कर दिए इन के बाद.

और अल्लाह का मेसेज क्या है? वो है कुरान, जिस के इतर आप बोलना दूर, सोच तक नहीं सकते.

गुड. लेकिन इसी वजह से मैं मुस्लिम से बहस करने को मना करता हूँ. कोई फायदा ही नहीं. जो भी विचार, जो भी व्यक्ति आलोचना से परे हो, वो मेरी नजर में इंसानियत के लिए खतरनाक है, नुक्सानदायक है. बहस होगी तो असहमति भी होगी, आलोचना भी होगी, निंदा भी होगी. स्वीकार है इस्लाम को, मुस्लिम को यह सब?

नहीं है स्वीकार.

तो फिर ठीक है भैया, हमें भी तुम से बहस करना स्वीकार नहीं.

हम सिर्फ गैर-मुस्लिम को आगाह कर सकते हैं.

दुनिया के हर गैर-मुस्लिम को इस्लाम के प्रति आगाह कीजिये. शिद्दत से कीजिये. बिना गाली-गलौच के कीजिये. तर्क से कीजिये. फैक्ट से कीजिये.

मुस्लिम सिर्फ दुनिया भर में हिंसा ही नहीं करते फिरते. बम-बनूक ही प्रयोग नहीं करते सिर्फ. वो और भी तरीकों से दूसरे समाजों को हानि पहुंचाते हैं. वो व्यापार गैर-मुस्लिम से ले तो लेंगे लेकिन देंगे नहीं. देंगे तो मजबूरी में.

हलाल मांस एक खास ढंग से काटा जाता है. आप को क्या लगता है कि गैर-मुस्लिम अगर वैसे ही कटेगा तो मुसलमान उस से खरीद लेगा? नहीं खरीदेगा. वो मुसलमान से ही खरीदेगा. वो हलवाई, नाई, कसाई सब मुस्लिम ही ढूँढेगा.

मेरे एक जानकार हैं मुस्लिम. प्रॉपर्टी डीलर. दफ्तर का नाम रखा है "हिन्द प्रॉपर्टीज़". लेकिन असल बात यह है कि मुस्लिम का हिन्द से कोई लेना-देना ही नहीं है. वो तो आयुर्वेद की जगह यूनानी दवाखाना ढूँढता है. वो मंदिर, गुरूद्वारे मुफ्त का इलाज लेने चला जाएगा लेकिन कोई भी फ़ायदा किसी गैर मुस्लिम को मुफ्त दे कर राज़ी नहीं. मुस्लिम की पहली कोशिश यही है कि फायदा हो तो मुस्लिम को हो.

मुस्लिम दूसरे समाज की लड़की से शादी कर लेगा और उसे मुसलमान बना लेगा लेकिन अपने समाज की लड़की दूसरे समाज में नहीं देगा. उस के समाज से कोई बाहर चला जाए, गैर-मुस्लिम बन जाये, यह उसे बरदाश्त ही नहीं.

तमाम अंतर-विरोधों के बावजूद बाकी समाज आपस में फिर भी रोटी-बेटी का रिश्ता रखते हैं. प्यार-व्यापार भी कर लेते हैं. सम्भावनाएँ हैं. लेकिन मुस्लिम समाज अलग ही है. इस में अंतर-निहीत है कि यदा-कदा-सर्वदा दुनिया को मुस्लिम करना है. जानते हुए भी कि जहाँ इस्लाम है वहां मुसलमान ही मुसलमान को मारते रहते हैं. वहां कोई विज्ञान पैदा नहीं हुआ. इस्लामी मुल्कों में रहना मुसलमान की पहली पसन्द नहीं है. उस की पहली पसंद गोरों के मुल्कों में रहना है. भारत में रहना है. काफिरों के मुल्कों में रहना है. बावजूद इस के उसे होड़ है कि बस किसी तरह सब मुसलमान बन जाएँ.

तुम ने मुसलमान बन के क्या कद्दू में तीर मार लिया? यह नहीं देखते. सिवा तादाद बढाने के और क्या किया? दुनिया को सिवा मार-काट के क्या दिया? यह नहीं देखते. बस सब को मुसलमान करना है.

प्रॉपर्टी डीलर हूँ. यकीन जानिये, अधिकांश लोग मुसलमान को किराए पर मकान देना भी सही नहीं समझते. जिस गली में चार घर मुसलमान के बस जाएँ तो पड़ोसियों में दहशत फैलनी शुरू हो जाती है. लोग घर बदलने की सोचने लगते हैं. यह है मुसलमान की इमेज!

अक्सर लोग कहते हैं, "हजार गैर-मुस्लिम में एक मुस्लिम बड़े आराम से रह लेगा लेकिन ३०-४० परसेंट भी मुस्लिम आबादी हो गयी तो गैर-मुस्लिम का रहना मुश्किल हो जाएगा." यह है मुसलमान की इमेज!

विभिन्न आंकड़ों /आकलन के अनुसार भारत में मुस्लिम आबादी 15% के करीब होगी, हालाँकि मुझे शँका है इस आकलन पर. यह आबादी इस से कहीं ज़्यादा होगी, लेकिन फिर भी मुस्लिम Minority है. यह है मुस्लिम की इमेज!

आप को भारतीय समाज में से कुछ लोग अब बड़ी-बड़ी कम्पनी के सीईओ बने दीखते हैं, कुछ ओलिंपिक मैडल लिए दीखते हैं. कुछ इक्का-दुक्का वैज्ञानिक भी दीखते हैं लेकिन इन में मुस्लिम कहाँ हैं? मुस्लिम खुद को अफज़ल समझते हैं, अव्वल समझते हैं. कितने गोल्ड मैडल लेते हो भाई ओलंपिक्स में? तुम्हारा तो खाना-पीना अब अल्लाह ने तय किया है. डायरेक्ट अल्लाह ने. फिर भी काफिरों से हार जाते हो.

कुछ सोच ही लो.

लेकिन यह 'सोचने' का आह्वान मैंने मुस्लिम को नहीं किया. उस ने इस्लाम, कुरान, मोहम्मद के बाहर नहीं सोचना. मोहम्मद उन के रोल मॉडल हैं. मुस्लिम अपने रोल मॉडल के खिलाफ खुद कैसे सोच सकता है, वो तो दूसरे को भी सोचने नहीं देता. सो मेरा आह्वान गैर-मुस्लिम को है. गैर-मुस्लिम इस्लाम को पहले तो खुद समझे. आज सब कुछ ऑनलाइन है. इस्लाम को, कुरान को, हदीस को समझने के लिए तमाम ऑडियो-विडियो-किताब मौजूद हैं. देखें, पढ़ें, सुनें. और फिर तर्क से, फैक्ट से, किताबी रिफरेन्स से अपने इर्द-गिर्द लोगों को ऑफलाइन/ऑनलाइन सब ढंग से समझायें.

लेकिन हाँ, एक बात ध्यान रखें कि जब मैं इस्लाम के खतरे से आप को आगाह करता हूँ तो इसका यह मतलब कतई नहीं कि आप अपने समाजों, अपने सम्प्रदायों, अपने धर्मों की सड़ी-गली मान्यताओं को ढकते रहो. नहीं. इस्लाम का विरोध अपने समाज की गन्दगी ढकने के लिए प्रयोग न करें जैसा कि आज भाजपा कर रही है.

भाजपा के पॉवर में आने का एक बड़ा कारण है ही यही कि हिन्दू समाज इस्लाम के खतरे से बचना चाहता है. इसीलिए वो भाजपा के हजार खून माफ़ करे जा रहा है. विकास के नाम पर महँगाई पकड़ाई जा रही है वो बर्दाश्त करे जा रहा है. गंदगी पहले जितनी ही है या शायद पहले से भी ज़्यादा फिर भी "स्वच्छ भारत अभियान" को बर्दाश्त करे जा रहा है. अंदर-खाते महसूस कर रहा है कि को.रो.ना नकली है. लॉक-डाउन, मास्क, टीका गैर-ज़रूरी है, फिर भी बर्दाश्त किये जा रहा है.

आरएसएस में हिन्दू समाज को ऐसा बताया जाता है जैसे बस इस से बढ़िया कुछ इस धरती पर घटित हुआ ही नहीं.

जात-पात आज भी है इस हिन्दू समाज में. नाली-गटर आज भी कोई बामण नहीं करता.

बन्दर हवा में उड़ता है. पहाड़ उठाता है. मैल से बच्चा बन सकता है. इंसानी बच्चे की गर्दन काट कर उस पर हाथी की गर्दन फिट हो सकती है. गणेश बन सकते हैं. गणेश जी.

यह सब सनातन है.
सनातन मूर्खता!

इस्लाम हिंसक है. ठीक बात है. लेकिन बाकी समाजों में भी मूर्खताएं और अंध-विश्वास भरे पड़े हैं. गन्दगी भरी है. इस्लाम को अपने समाज के लिए ढक्कन की तरह प्रयोग न करें, ढाल की तरह प्रयोग न करें. जिस तलवार से इस्लाम को काटना है, वही तलवार अपने समाज की मूर्खाताओं को काटने के लिए भी चलायें.

इस्लाम का विरोध करें लेकिन अपने समाज की गन्दगी का भी विरोध करें. सामाजिक और राजनितिक दोनों फ्रंट पर. भाजपा विकल्प नहीं है, यह अच्छे से समझ लें. ये लोग मात्र पोंगा-पंथी हैं. यह सच है कि आरएसएस की शाखा में कोई हिंसा नहीं सिखाई जाती, अनुशासन सिखाया जाता है, परस्पर रेस्पेक्ट सिखाई जाती है, लेकिन कोई वैज्ञानिक सोच नहीं सिखाई जाती यह भी सच है. कोई नवीनता नहीं सिखाई जाती. सिखाई जाती है पोंगापंथी और पुरातनपंथी. मैं रहा हूँ आरएसएस में वर्षों तक..

खैर, थोडा लिखा, ज़्यादा समझें.
चिट्ठी को तार समझें.
चिट्ठी का जवाब ज़रूर दें.
छाहे जैसा भी जवाब हो लेकिन दें ज़रूर.

छोटों को नमस्ते, बड़ों को मार.
कॉस्मिक तुषार

Monday, 13 September 2021

इस्लाम और सर्वधर्म समभाव

मुस्लिम दोस्त(?) कह रहा था कि सब लोग बराबर हैं और मैं हँस रहा था चूंकि इस्लाम के मुताबिक मुस्लिम अफ़ज़ल (सर्वश्रेष्ठ) हैं.

पाकिस्तान में तो एक व्यक्ति पर मात्र इस लिए कोर्ट केस हो गया चूंकि इस ने यह कह दिया कि सब धर्म बराबर हैं.

और यहां भाईजान हमें मूर्ख बना रहे हैं.

इस्लाम और औरत-मर्द की मोहब्बत

 जितना मुझे पता है इस्लाम औरत-मर्द के इश्क को स्वीकार नहीं करता.

मोहब्बत नबी से और इबादत अल्लाह की.
बस.
इसीलिए मजनू का मज़ाक उड़ाया जाता था कि लैला तो काली है, उस में क्या रखा है.
इसीलिए मजनू को पत्थर मारे जाते थे.

जय सिया राम?

रावण को मारने के बाद राम के पास जब सीता लाई जाती हैं तो राम कितने सम्मानजनक शब्द उसे बोलते है. खुद देख लीजिए.

"रावण को मैंने अपने कुल पर लगे धब्बे को मिटाने की लिए मारा है. तुम अब चाहो तो भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सुग्रीव या विभीषण के पास चली जाओ चूंकि तुम रावण के पास रह कर आई हो सो मैं तुम्हे स्वीकार नहीं कर सकता."
वाल्मीकि रामायण से उध्दरण भी दे रहा हूँ.....
तदर्थं निर्जिता मे त्वं यशः प्रत्याहृतं मया |
नास्थ् मे त्वय्यभिष्वङ्गो यथेष्टं गम्यतामितः || ६-११५-२१
"You were won by me with that end in view (viz. the retrieval of my lost honour). The honour has been restored by me. For me, there is no intense attachment in you. You may go wherever you like from here."
तदद्य व्याहृतं भद्रे मयैतत् कृतबुद्धिना |
लक्ष्मणे वाथ भरते कुरु बुद्धिं यथासुखम् || ६-११५-२२
"O gracious lady! Therefore, this has been spoken by me today, with a resolved mind. Set you mind on Lakshmana or Bharata, as per your ease."
शत्रुघ्ने वाथ सुग्रीवे राक्षसे वा विभीषणे |
निवेशय मनः सीते यथा वा सुखमात्मनः || ६-११५-२३
"O Seetha! Otherwise, set your mind either on Shatrughna or on Sugreeva or on Vibhishana the demon; or according to your own comfort."

सबसे बड़ा युद्ध

सबसे बड़ा युद्ध जानते हैं क्या होता है? विचार-युद्ध. यह आपको दूसरों से तो बाद में करना होता है, पहले खुद से करना होता है. मैं किशोर था और मैं नोट-बुक के एक पन्ने पे लिखता था--"भगवान है" और सामने वाले पन्ने पे लिखता था "भगवान नहीं है". फिर दोनों के पक्ष में नीचे तर्क लिखता था. मेरा पास आज भी एक किताब है "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं" और दूसरी है "शर्म से कहो हम हिन्दू हैं". मेरे पास "वाल्मीकि रामायण" है और रंगनायकम्मा रचित "रामायण एक विष-वृक्ष "भी है. विचार-युद्ध इत्ता मुश्किल जानते हैं क्यों है? चूँकि इसमें खुद को ही खुद के खिलाफ लड़ना होता है. खुद को ही गलत साबित होने का रिस्क होता है. सो इससे बचता है इन्सान.

मानो आप 40 साल से मन्दिर में घंटा बजा रहे हैं, अब कैसे खुद ही साबित करोगे कि नहीं, घंटा बजाना बेकार है? मूर्ती से धन-धान्य मांगते आए हो, कैसे खुद ही साबित करोगे कि मूर्ती किसी को कुछ नहीं दे सकती? सब ने अपने जीवन का आधार गलत-सही मान्यताओं पर खड़ा किया होता है, अब इन मान्यताओं को चैलेंज करने की हिम्मत आप खुद नहीं कर पाते. कोई और चैलेंज करता है तो आप विरोध करते हैं, लड़ते हैं, बिना देखे कि चैलेंज करने वाला सही है या गलत.

बस इसी से निकलना है आपने. खुद की मूर्ती खुद ही तराशनी है आपने. तर्क-युद्ध करना है खुद से....यही सबसे बड़ा तप है.......यही वैज्ञानिकता की तरफ ले जा सकता है आप को , समाज को... यह दुनिया सीख जाये तो चंद दिनों में यहीं जन्नत है. हमें किसी ख्याली जन्नतों की कभी ज़रूरत ही न होगी....

तुषार कॉस्मिक.

Tuesday, 17 August 2021

इस्लाम की ताकत घटाने का एक और नायाब तरीका

जो भी मुस्लिम इस्लाम छोड़ना चाहते हों, उन के लिए गैर-मुस्लिम सरकारों को आश्रय-स्थल बनाने चाहियें. हालाँकि इस्लाम छोड़ने वाले मुस्लिम को पॉलीग्राफ और नार्को जैसे से गुज़ार कर पक्का कर लेना ज़रूरी है कि वो वाकई इस्लाम छोड़ रहे हैं, अपनी समझ से और अपनी मर्ज़ी से इस्लाम छोड़ रहे हैं. मुझे लगता है कि मुस्लिम की एक बड़ी तादाद जो इस्लामी समाजों में फंसी है, वो बाहर आयेगी और इस तरह इस्लाम के पास जो तादाद की ताकत है वो घटेगी. दुनिया में शांति बहाली की तरफ यह एक बड़ा कदम होगा. अमनो-चैन बढ़ेगा, ज्ञान-विज्ञान बढ़ेगा.

देसी

ये जो तुम विदेशी नस्ल के रंग-बिरंग-बदरंग कुत्ते रखते हो, तुम इडियट हो. देसी कुत्ते रखो, रखने हैं तो.लोकल. ये यहाँ के जलवायु के हिसाब से कुदरत ने घड़े हैं.

ये जो तुम चौड़े हो के महँगे-महँगे विदेशी फल,सब्ज़ियाँ और सुपर-फ़ूड खाते हो, तुम मूर्ख हो. लोकल फल-सब्ज़ियाँ-अनाज खाया करो. कुदरत हर जगह के हिसाब से बेस्ट पैदावार देती है.
ये जो तुम "देसी" शब्द से ग्रामीण या गंवार, कम पढ़ा-लिखा समझते हो, तुम मूढ़ हो. देसी मतलब देस का, मतलब लोकल. और जो लोकल है, वो ज़रूरी नहीं घटिया हो, बेकार हो. वो बेस्ट suitable हो सकता है, होता है.
नज़रिया बदलो. देसी की इज़्ज़त करना सीखो.
~ तुषार कॉस्मिक ~

असीमित धन खतरनाक है दुनिया के लिए

लोहा ज़्यादा काम आता है या सोना? सोना एक पिलपिल्ली सी धातु है. शुद्ध रूप में जिसका गहना तक नहीं बनता. लेकिन सबसे कीमती मान रखा है मूढ़ इन्सान ने इसे. यह सिर्फ मान्यता है और कुछ नहीं. वरना गहने तो लक्कड़, पत्थर, लोहा, स्टील किसी के भी बनाये जा सकते हैं, पहने जा सकते हैं. आप देखते हो आदिवासी, वो ऐसे ही गहने पहनते हैं. हिप्पी किस्म के लोग भी ऐसे ही पहन लेते हैं. मैं खुद ऐसे गहने पहनता रहा हूँ. अब भी चांदी पहनता हूँ.


यही समाज ने इंसानों के साथ किया है. एक गटर साफ़ करने वाले की कीमत एक IAS ऑफिसर से कम कैसे हो गयी? ठीक है IAS का काम गटर साफ़ करने वाला नहीं कर सकता, लेकिन गटर साफ़ करने का काम भी तो IAS नहीं कर सकता? फिर समाज को सब की ज़रूरत है.

और हो न हो, समाज की जिम्मेवारी है कि इस तरह से चले कि सब को अहमियत मिले. समाज ने यदि किसी इन्सान को इस धरती पर आने दिया है तो अब समाज की ज़िम्मेदारी बन गयी. या तो आने ही न देता समाज में ऐसे व्यक्तियों को जिन को वो कोई अहमियत नहीं देता, या बहुत कम अहमियत देता है. जैसे बहुत लोग भीख मांग रहे हैं, अपराध कर रहे हैं, सडकों पर बेकार पड़े हैं, या निहायत गरीबी की ज़िंदगी जी रहे हैं. क्या ज़रूरत थी इन की? लेकिन समाज ने इन को आने दिया धरती पर. ठीक है इन के माँ-बाप ने आने दिया, नहीं आने देना चाहिए था फिर भी आने दिया, लेकिन समाज ने भी आने दिया. गलती की लेकिन आने दिया. अब समाज की भी ज़िम्मेदारी बन गयी. यदि इन को सही शिक्षा, सही भोजन, सही रहन-सहन नहीं मिलता तो समाज की भी ज़िम्मेदारी है.

सो मैं कह रहा था कि लोहे और सोने का फर्क सिर्फ इन्सान ने पैदा किया है. एक IAS अफसर और गटर साफ़ करने वाले का, एक मोची का फर्क सिर्फ इन्सान ने पैदा किया है. अन्यथा कोई फर्क होना ही नहीं चाहिए. अमीर गरीब का फर्क इन्सान ने पैदा किया है. आप देखते हो, धरती पर सिवा इन्सान के कोई और जानवर अमीर-गरीब नहीं होता. सब को सब कुछ मिलता है. यह धरती, यह कायनात, यह कुदरत सब को सब कुछ देती है. गर्मी में तरबूज-खरबूज देती है. रेगिस्तान में खजूर देती है. वो पागल नहीं है, वो सब को जगह-मौसम के हिसाब से सब कुछ देती है.

कोई ज़रूरत नहीं थी कि समाज को ऐसा बनाया जाये कि कोई बहुत गरीब हो जाये और कोई बहुत अमीर. एक झटके से हम इस फर्क को खत्म कर सकते हैं. यह हम आज भी कर सकते हैं. आप देखते हो राजाओं की अनगिनत बीवीयाँ होती थीं. कृष्ण की १६००० रानियाँ थीं, मोहम्मद की दस बढ़ बीवीयाँ थी और शायद बहुत सी दासियाँ भी. पटियाला के राजा की अनेक बीवीयाँ थी अभी कुछ दशक पीछे की बात है. लेकिन हम ने कानून बनाया न और बीवीयों की गिनती सीमित कर दी.

हम यह अमीर की अमीरी सीमित कर सकते हैं. यह बहुत ज़रूरी है. धन सिर्फ धन नहीं है. यह शक्ति भी है. इसे चंद हाथों में देना खतरनाक है. आप देखते हो, हम हर किसी को हथियार नहीं रखने देते. लाइसेंस लेना होता है. फिर पता नहीं हम ने असीमित धन क्यों रखने दिया है लोगों को? वो कोई हथियार से कम है क्या?

धन से अति धनी लोग इस दुनिया को गलत दिशाओं में ले जा सकते हैं. ले जा रहे हैं. आप देखते हैं राजनीति में क्या हो रहा है? प्रजातंत्र कहने को हैं. सब धन तन्त्र हैं. सब तरफ कॉर्पोरेट धन का बोलबाला है. जनता को लगता है कि वो सरकार चुनते हैं. ऐसा बिलकुल भी नहीं है. वो सिर्फ उन लोगों में से चुनते हैं, जो जिन में से उन को चुनने दिया जाता है. जो विकल्प दिए जाते हैं. और वो विकल्प कॉर्पोरेट धन की मदद से परोसे जाते हैं जनता के सामने. अनपढ़, जाहिल, गुंडे, मवाली किस्म के लोग, भाषणबाज लोग. बक-बके लोग. और जनता खुश हो जाती है कि वो सरकार चुन रही है , कि वो प्रजातंत्र में है. असल में उसे पता ही नहीं, इस Pseudo प्रजा तन्त्र के बहाने उस से असल प्रजातन्त्र छीन लिया जा रहा है. और इस प्रक्रिया में अथाह धन प्रयोग किया जा रहा है. सो इस धन, इस धन के जमावड़े को खत्म करना होगा.

क्या आप हवा की जमाखोरी करेंगे? आप ने ज़मीन की जमाखोरी की. पानी तक की करने लगे. पानी इन्सान ने बनाया क्या? ज़मीन इन्सान के बनाई क्या? लेकिन इन्सान इसे बेचता है, खरीदता है, इस की जमाखोरी करता है. लोग सडक पे सड़ते हैं और उधर कोठी खाली पड़ी रहती हैं. यह सब क्या है? संस्कृति के नाम पर सर्कस. सब कुछ गड्ड-मड्ड. संस्कृति का मतलब समझते हैं. ऐसी कृति जिस में कुछ संतुलन है, सौन्दर्य है, सामंजस्य हो. क्या आप को यह समाज देख कर ऐसा कुछ लगता है? यह विकृति है.

बड़ी वजह है धन. धन का असंतुलित वितरण. धन का असीमित संग्रहण.

यदि हम ने यह न बदला तो दुनिया एक बड़ी झोपड़-पट्टी में बदल जाएगी, लगभग बदल ही चुकी है.

इस तरह की जरा सी बात करो तो मार्क्सवादी होने का, वामपंथी होने का ठप्पा लगा दिया जाता है. लेकिन मेरा कहना यह है कि ठप्पे मत लगायें.

बने-बनाये फ्रेम में से मत झांके. बात को सीधा समझिये, तर्क को समझिये. जहाँ मैं रहता हूँ. वहीं एक ४०० गज की कोठी के किनारे नीचे ज़मीन पर एक मोची बैठता है. सदियों से बैठता है. क्यों? ऐसा फर्क क्यों है? क्यों होना चाहिए, यह मुझे बिलकुल नहीं जमता. यदि मैं उस मोची का जीवन स्तर बेहतर करने की सोचता हूँ तो मैं वामपंथी हूँ, मैं मार्क्सवादी हूँ, मैं समाज-तोड़क हूं. ठीक है. यदि ऐसा है तो फिर ऐसा ही है.

धन का असीमित वितरण और संग्रहण यह दुनिया से असल प्रजातंत्र छीन रहा है, यह मन-मर्जी की सरकारें लाद रहा है, यह अधिकांश दुनिया को गरीब किये हुए है, यह दुनिया तक असल शिक्षा नहीं पहुंचने दे रहा. शिक्षा के नाम पर कचरा पढ़ाया जा रहा है. उड़ेला जा रहा है. और तो और कोरोना जैसी नकली बीमारियां भी थोपी जा रही हैं. सब के पीछे असीमित धन की ताकत है.

इसे तोड़ना होगा.

नमन
तुषार कॉस्मिक

"ईद मुबारक"

मुझे कोई महान आत्मा ने दर्शन दे कर बताया कि बकरीद हिन्दुओं से प्रेरित है चूँकि बकरी को संस्कृत में अजा कहते हैं और बकरीद को ईद-उल-अजहा कहा जाता है.

एक और महान आत्मा ने बताया कि उसे मुस्लिम का कुर्बानी देनें का ढंग बहुत पसंद है.कैसे बकरे को प्यार से पालते पोसते हैं और फिर कुर्बान कर देते हैं. वाह! कैसे अपनी प्यारी चीज़ को कुर्बान कर देते हैं!
मैंने कहा, "कहाँ कुर्बान कर देते हैं. काट कर खुद ही खाना है तो कुर्बानी कहाँ हुई?
और
प्यारी चीज़ तो इंसान के अपनी जान होती है, बाल बच्चे होते हैं. अल्लाह पर भरोसा रखें और अपने बच्चे कुर्बान कर दें. बेचारे बकरे के बच्चे को क्यों कुर्बान करते हैं? बकरे को तो अल्लाह पे भरोसा भी न होगा. पूछ के देख लीजिये. सब से ज़्यादा वो ही कटा है अल्लाह के नाम पे, वो कैसे भरोसा करेगा अल्लाह पे?
भरोसा तो मुस्लिम को है अल्लाह पे तो उसे कुर्बान करना ही है तो खुद को कुर्बान करना चाहिए या खुद के परिवार को. बकरे और उस के परिवार को बीच में नहीं लाना चाहिए.
अल्लाह मेहरबान है. बेशक वो सब जानता है. जैसे ही मुस्लिम अपने आप को या अपने बच्चों को कुर्बान करने लगेगा अल्लाह उसे और उस के बच्चों को बचा लेगा. अल्लाह इंसानों को हटा कर बकरों में बदल देगा. जो-जो मुस्लिम अल्लाह ने हटा लिए और उन की जगह बकरे खड़े कर दिए, वो वो सच्चे-यकीनी-दीनी मुस्लिम, जो-जो मुस्लिम खुद ही कट गए, वो सब नकली मुस्लिम. नहीं? Try करना चाहिए, Try करने में क्या हर्ज़ है? फिर प्रयोग कर के ही तो पता लगता है कोई बात हकीकी है या नहीं.
और यदि मेरी ऊपर लिखी बात समझ न आती हो तो फिर समझो सीधी बात.
वैसे तो मांस खाना नहीं चाहिए लेकिन फिर भी खाना ही हो तो खा लिया करो, इस में बेचारे अल्लाह को लाने की क्या ज़रूरत है?"
Tushar Cosmic

ईशनिंदा (Blasphemy) क़ानून और इस्लाम

8 साल के हिन्दू बच्चे को ईशनिंदा (Blasphemy) क़ानून में धर लिया गया है. सर धड़ से अलग कर देने तक का कानून है. मतलब आप मोहम्मद, इस्लाम और कुरान के खिलाफ बोल नहीं सकते, आप को कुछ गलत दिख रहा हो, गलत महसूस हो रहा हो, तब भी नहीं. यह सोच को जंजीरों में बांधना नहीं तो क्या है? मेरा इस्लाम के विरोध का एक बड़ा कारण यह भी है. इस्लाम वैचारिक घेरा-बंदी कर देता है, जो मुझे हरगिज़ गवारा नहीं. ...तुषार कॉस्मिक

बाबरी विध्वंस- मुस्लिम का चुनिन्दा दुःख

 भोंग, रहीम यार खान, पाकिस्तान .....दिन दिहाड़े हिन्दू मंदिर तोड़ दिया गया. मुसलामानों द्वारा चंद दिन पीछे. क्या कोई हाय-तौबा मची दुनिया में? लेकिन बाबरी मस्जिद, जो सिर्फ एक बचा-खुचा ढांचा भर था मस्जिद का, उसे तोड़ दिया गया तो आज तक मुस्लिम को दर्द है. अफगनिस्तान में बामियान नामक बुद्ध की मूर्तियाँ डायनामाइट लगा कर उड़ा दी मुस्लिम ने , लेकिन बाबरी तोड़े का दर्द है मुस्लिम को. कुतुबमीनार की मस्जिद कोई साठ-सत्तर जैन मंदिर तोड़ बनाई गयी, लेकिन बाबरी तोड़े जाने का मलाल है मुस्लिम को. अजमेर में अढाई दिन का झोंपड़ा नामक की अधूरी मस्जिद भी मंदिर तोड़ कर बनाई गयी, लेकिन बाबरी तोड़े जाने का दुःख है मुस्लिम को. गुड.. वैरी गुड.....

इस्लाम का मुकाबला कैसे करें

 इस्लाम को उखाड़ने के लिए कुरान और हदीस उखाड़ो....मुस्लिम जम नहीं पायेंगे ...और लिब्रांडू किस्म के लोगों से बहस मत करो ....मुस्लिम पर भी मेहनत न करो...बाकी गैर-मुस्लिम तक संदेश पहुँचाओ...उसे समझाओ कि इस्लाम क्या है...बिना गैर-मुस्लिम की सपोर्ट के इस्लाम जम नहीं पायेगा भारत में और यह भी ध्यान रखो कि मुस्लिम हर सम्भव कोशिश करता है कि वो बिज़नस मुस्लिम को ही दे...वो कमाता गैर-मुस्लिम से है खर्च मुस्लिम समाज में करता है ताकि उस का अपना समाज समृद्ध हो......वो जान-बूझ बच्चे पैदा करता है ताकि उसे सियासत में ताकत मिले.....वो हलाल मटन इसलिए नहीं खाता कि उसे अलग ढंग से काटा गया होता है, वैसा गैर-मुस्लिम भी काटेगा तो भी वो गैर-मुस्लिम से नहीं खरीदेगा.....वो रोटी-बेटी का रिश्ता सिर्फ मुस्लिम से रखता है...समझाओ, यह सब समझाओ गैर-मुस्लिम को.जितना जल्दी समझाओ उतना अच्छा.

लीला और लीलाधर

 मेरा कोई यकीन नहीं कि इस कायनात को बनाने-चलाने वाला कायनात से अलग कुछ है. नर्तक नृत्य में है, एक्टर एक्टिंग में है. खिलाड़ी खेल में ही मौजूद है. लीलाधर लीला में ही है. लीलाधर और लीला अलग नहीं है...... लीलाधर ने हमें freewill और intelligence की गिफ्ट दे कर पशु से अलग किया है. अब हम पाश में बंधे नहीं हैं. हम स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं. लीलाधर हमारे निर्णय और उन निर्णयों से उपजे फलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता. सो सब प्रार्थना, अरदास, नमाज़ व्यर्थ है. लेकिन मैं जूता ठीक करवाता हूँ तो मोची को नमन करता हूँ, खाना खाता हूँ तो खाने को हाथ जोड़ता हूँ, राह चलते किसी माता को कोई छोटे-मोटे पैसे देता हूँ तो हाथ जोड़ नमन भी करता हूँ, डिस्ट्रिक्ट पार्क में Workout करने जाता हूँ, तो आते-जाते पार्क को झुक के नमन करता हूँ. गाली-गलौच लिखता हूँ, लेकिन फिर भी आप सब को नमन करता हूँ.....तुषार कॉस्मिक

सब से आगे होंगें हिन्दुस्तानी-- सच में क्या?

 "झंडा ऊंचा रहे हमारा ......

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ..."
"सुनो गौर से दुनिया वालो
बुरी नज़र न हम पे डालो
चाहे जितना जोर लगा लो
सब से आगे होंगें हिन्दुस्तानी"
बड़े अच्छे लगते हैं ऐसे गीत हर 15 अगस्त को. झूठे हैं ये सब गीत.
ओलंपिक्स में 48 नम्बर हैं हम......122 नम्बर पर हैं Per Capita Income में हम.
हम से छोटे-छोटे मुल्क हम से कहीं आगे हैं. सच का सामना करें. हम वो हैं जिन को गली का कूड़ा तक उठवाना नहीं आया. हम सब से आगे हैं? नहीं हैं और नहीं होंगे, जिस तरह के हम हैं. इडियट.

धर्म/रिलिजन/पन्थ ये सब शब्द विदा करने योग्य हैं.

 मैं अक्सर लिखता हूँ कि सब धर्म बकवास हैं, बस इस्लाम सब से बड़ी बकवास है तो जवाब में ज्ञानीजन समझाते हैं मुझे कि नहीं, नहीं, मुझे धर्म शब्द प्रयोग नहीं करना चाहिए. मुझे रिलिजन शब्द प्रयोग करना चाहिए, मुझे मज़हब शब्द प्रयोग करना चाहिए. धर्म अलग है, रिलिजन, मज़हब, पन्थ अलग है. धर्म जीवन पद्धति है, रिलिजन, पन्थ, मज़हब बस पूजा पद्दति हैं.

असल में इन महाशय चाहते यह है कि ये कह सकें कि धर्म सनातन है और सनातन ही धर्म है ताकि घुमा-फिरा के फिर वही सड़ी-गली हिन्दू मान्यताएं बचाई जा सकें.
नहीं, मेरी नजर में धर्म/रिलिजन/पन्थ ये सब शब्द विदा करने योग्य हैं.

Sunday, 25 July 2021

इस्लाम की दावत और इस्लाम को कबूल लेना

 वो इस्लाम कबूल करने की दावत देते फिरते हैं. हुंह. थोडा सा कंफ्यूज हूँ. इस्लाम कोई खाने की चीज़ है, जिसकी दावत दी जा रही है? या इस्लाम कोई गुनाह जिसे कबूल करने को कहा जा रहा है? आप बताईयेगा

भारतीय मनीषा और इस्लामिक सोच का फर्क

 एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति. Truth is one, the wise perceive it differently. सत्य एक ही है लेकिन ज्ञानीजन अलग-अलग ढंग से कहते हैं ......यह भारतीय मनीषा है. और "एको अहं, द्वितीयो नास्ति" यानि मैं ही मैं हूँ, दूसरा कोई नहीं, यह इस्लामिक सोच है

Wednesday, 14 July 2021

मास्क गुलामी की निशानी

 कहीं सुना मैंने, "मास्क लगवाना ऐसे ही जैसे मुस्लिम युद्ध में जीती हुई औरतों को अलग से पहचान के लिए नत्थ पहना दी जाती थी."

हिन्दू समाज बुनियादी तौर पे अवैज्ञानिक है

 मैंने लिखा, हिन्दू समाज बुनियादी तौर पे अवैज्ञानिक है, इस के कुछ सबूत देता हूँ. 

आप लोगों की फेसबुक/व्हाट्सएप्प फ़ोटो देखो, लोग गुरु, देवी-देवता या  धार्मिक चिन्ह चिपकाए होंगे. कोई किसी वैज्ञानिक का फोटो न लगाता कभी. 

आप स्कूल-कॉलेज के नाम देखो, शायद ही कोई किसी वैज्ञानिक के नाम पर हो. 

लोग कथा-कीर्तन करवाते नज़र आएंगे लेकिन वैज्ञानिक संगोष्टी शायद ही कोई गली/मोहल्ले में करवाए.

हम एक बौड़म समाज हैं. जिस का साहित्य, कला, विज्ञान से बस दूर-दराज के ही नाता है. वैसे हम विश्वगुरु हैं 

मोदी सरकार आगे बहुमत में न आ पाए, इस का प्रयास करें..क्यों? देखिये ...

 चूंकि मोदी ने WHO का एजेंडा भर्तियों पर थोपा. भारतीयों को उस एजेंडा का पालन न करने पे दण्डित किया, घरों में बंद किया, कारोबार बंद किये, जबरन वैक्सीन थोपी.

विचार ही नहीं करने दिया कि कोरोना असली है या नकली.

कोरोना के खिलाफ खुला प्रदर्शन तक नहीं करने दिए.

सिर्फ इन्ही वजहों से मोदी सरकार आगे बहुमत में न आ पाए, इस का प्रयास करें.

वोट उसे दें जो कोरोना  फरोना न थोपने का वायदा करे.

इस्लाम का पहला शिकार मुसलमान है

मैंने हमेशा कहा है, "इस्लाम का पहला शिकार मुसलमान है."

नहीं समझ आया?

आज का अफगानिस्तान देख लो. 

इस्लाम नाफ़िज़ हुआ जा रहा है और मुसलमान भाग रहा है. 


Online Versus Offline Business

 क्या आप ने कभी दिल्ली में ऑटो रिक्शा लिया है, लेने का प्रयास किया है? 

ये लोग अक्सर मीटर से ज़्यादा पैसे मांगते हैं. 

क्या आप ने किसी दूकानदार  से लिए सामान को वापिस देने की कोशिश की है? या एक्सचेंज करवाने की कोशिश ही की है? 

इन की नानी मर जाती है. तमाम बहस करेंगे आप के साथ. पूरी कोशिश करेंगे कि आप की गलती साबित कर दें. 

ओला उबेर आपको आज ऑटो जितने खर्चे पे कार मुहैया करवा रहा है. 

अमेज़न से ली अधिकांश चीज़ें आप एक समय तक वापिस कर सकते हैं, कोई सवाल नहीं.

फिर भी लोग कहते हैं कि बड़ी कम्पनियां हमारा बिज़नेस खा रही हैं. इडियट्स. 

Oldness is deep-rooted in our culture.

 We are a bunch of Idiots.

Whether an individual is 8 or 18 or 80 years of age.

We call him old. 8 years old, 18 years old, 80 years old.

Oldness is deep-rooted in our culture.

No childhood, no youth. Only oldness.

We are idiots.

Intelligence and Free-will

Intelligence and Free-will 

are 

2 Great Gifts given by the Nature to the human beings 

which separate them from the animals.

So Use both. 

Use freely and use intelligently.

Sunday, 4 July 2021

2 Great Gifts to the human beings

Intelligence and Free-will are 2 Great Gifts given by the Nature to the human beings which separate them from the animals.

So Use both. 

Use freely and use intelligently.

~ Tushar Cosmic ~