Saturday 27 January 2024

मैं बीमार होना नहीं चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,

मैं बीमार होना नहीं चाहता,

मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,
मुझे दवा, टीकों और डॉक्टरों से बहुत डर लगता है,
मुझे लाखों रुपये के खर्च से डर लगता है,
मुझे अस्पतालों से, दवाखानों से बहुत डर लगता है
मुझे घिसटती-सिसकती ज़िंदगी से डर लगता है

मैं बीमार नहीं होना चाहता.
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
मैंने देखे हैं हैरान-परेशान रिश्तेदार,
बेचारे अपना भार नहीं ढो पा रहे होते,
ऊपर से घर में कोई बीमार इंसान.
पूरा घर बीमार-बीमार सा हो जाता है.
हवा बीमार, पानी बीमार, सब बीमार

मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
मैनें पढ़े हैं चेहरे अनमने से सेवा करते हुए,
बीमार की मौत का इंतज़ार करते हुए,
ज़बरन दुनियादारी निभाते हुए,
बीमार के साथ बीमारी झेलते हुए

मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
ज़िंदगी जितनी भी हो, बस ठीक-ठाक हो,
चलती-फिरती हो, मुस्कराती, हंसती हो,
ज़िंदगी ज़िंदा हो,
मैं मरी-मरी सी ज़िंदगी नहीं चाहता,

मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
तेरा तुझ को अर्पण, क्या लागे मेरा.

Tushar Cosmic

Thursday 25 January 2024

धर्म - मेरी आपत्तियां

1. हम इतिहास का केवल कुछ अंश ही जानते हैं। बुद्ध और महावीर से परे मानव इतिहास स्पष्ट नहीं है। बुद्ध और महावीर से पहले, इतिहास पौराणिक कथाओं के साथ मिश्रित है।

संभावनाओं के आधार पर, निश्चित रूप से हम कुछ हद तक भविष्यवाणी कर सकते हैं लेकिन हम एक निश्चित समय से अधिक की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं इसलिए अनंत काल के बारे में क्या कहा जाए?
इसलिए कैसे कहें कि कुछ भी सनातन है?
लेकिन हिंदू अपने आप को सनातनी कह रहे हैं। यह बस तनातनी है. क्या वे वास्तव में सनातन का अर्थ जानते हैं? सनातन कुछ भी नहीं है. परिवर्तन ही सनातन है प्रिय मित्रों। 2. सभी धर्म आदिम हैं, बचकाने हैं। बैटमैन, सुपरमैन जैसे किरदारों से भरपूर। परिकथाएं। और सब्सक्राइबर्स इतने मूर्ख हैं कि उनसे तार्किक बहस करना नामुमकिन है. दरअसल, उन्होंने प्रारंभ में ही तर्क को त्याग कर धर्म को अपना लिया था। उनसे किसी तार्किकता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? 3. आमतौर पर लोग छोटी-छोटी चीज़ों पर अच्छा शोध करते हैं। वे एक अंडरवियर खरीदना चाहते हैं, वे बहुत सारे ब्रांड, आकार, फिटिंग आदि के बारे में सोचते हैं, लेकिन मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि धर्म अपनाते समय वे कोई शोध नहीं करते हैं। वे अपने माता-पिता, अपने समाज का आँख बंद करके अनुसरण करते हैं। बेवकूफ. इस क्षेत्र को गहनतम अध्ययन, व्यापकतम शोध की आवश्यकता है। यह मूल मूल्यों, जीवन मूल्यों, आधार मूल्यों की बात है। 4. धर्म को प्रायः कर्तव्य भी कहा जाता है। तो सबसे बड़ा कर्तव्य क्या है? सबसे बड़ा कर्तव्य अपने मस्तिष्क का उपयोग करना है, जो प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है। और इन तथाकथित धर्मों ने आपके प्रकृति के उपहार को अपनी बासी बकवास से बदल दिया है। ये धर्म अपराधी हैं. ये धर्म अधार्मिक हैं.
5. यह बहुत कम संभावना है कि मेरे जैसे लोगों का दाह संस्कार हमारी पसंद के अनुसार किया जाएगा। क्योंकि एक बार जो मर गया, वह मर गया। और दाह संस्कार समाज के लोगों और परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। वे अपनी पसंद के अनुसार काम करते हैं। क्या आप विडंबना देख सकते हैं? शायद मेरा अंतिम संस्कार भी मेरी पसंद, मेरे विचारों, मेरी इच्छाओं के अनुसार नहीं किया जाएगा। हा! संभवतः, मेरा अंतिम संस्कार उन रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाएगा जिनके खिलाफ मैंने अपना पूरा जीवन संघर्ष किया है। *पसंद के अनुसार दाह संस्कार का अधिकार* मेरी मांग है। जो चले आ रहे किसी धर्म को नहीं मानता, उसे यह हक़ होना चाहिए कि वो अपनी मर्ज़ी से अपना अंतिम क्रिया-कर्म चुन सके.

6. जब कोई इस्लाम-परस्त व्यक्ति मुझे कांवड़ियों का कोई फसाद दिखाता है या फिर किसी दलित के साथ दबंगों द्वारा दुर्व्यवहार दिखाता है ऐसा लगता है जैसे माफिया के जबर को नज़रअंदाज़ कर के किसी छुटभैये गुण्डे की बदमाशियाँ को दिखाया जा रहा हो.

श्री राम और उन का मंदिर - मेरी कुछ आपत्तियां

स्त्रियों को चाहिए कि वो राम को नकार दें। क्या वो राम जैसा पति चाहेगी, जिसके साथ वो तो जंगल-जंगल भटकें लेकिन पति उन्हें जंगल में छोड़ दे? वो भी तब, जब वो प्रेग्नेंट हो. हालाँकि मैं "जय श्री राम" के नारे का विरोध करता हूँ क्योंकि यह राम की विजय की घोषणा करता है और राम अब नहीं रहे, इसलिए ऐसे नारे लगाने का कोई मतलब नहीं है लेकिन मैं एक अन्य आधार पर "जय सिया राम" के नारे का विरोध करता हूँ। सीता को राम के साथ जोड़ना तथ्यात्मक नहीं है। राम ने स्वयं सीता को जंगल में छोड़ दिया था। उसके बाद वह जंगल में रहती है, जंगल में ही उन की मृत्यु हो जाती है। और यहां हिंदू सीता को राम से जोड़ रहे हैं?

राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था, सीता को नहीं। फिर भी वह राम के साथ जंगल की ओर प्रस्थान कर गई। लेकिन यदि अयोध्यावासियों को सीता के आचरण पर किसी तरह का संदेह था तो राम सीता के साथ जंगल क्यों नहीं चले गये? नहीं, इस बार उन्होंने गर्भवती सीता को जंगलों में मरने के लिए छोड़ दिया। मर्यादा पुरूषोत्तम राम. पुरुषों में महान, राम।
रावण के मारने के बाद राम ने जो शब्द सीता को कहे थे, वो बहुत अपमान जनक थे, आप भी देखिए और फिर कहिएगा, "जय सिया राम":---
"आपको बता दें कि युद्ध के रूप में यह प्रयास, जो मेरे दोस्तों की ताकत के कारण सफलतापूर्वक किया गया है, आपके लिए नहीं किया गया था। आपकी समृद्धि हो! यह मेरे द्वारा किया गया था मैं अपने अच्छे आचरण को बनाए रखूं और हर तरफ से बुराई-बोलने के साथ-साथ अपने गौरवशाली वंश पर लगे कलंक को भी मिटा दूं।''
"तुम अपने चरित्र पर संदेह करके मेरे सामने खड़ी हो, मेरे लिए अत्यंत अप्रिय हो, यहां तक ​​कि किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रकाश के समान हो जो कम दृष्टि से पीड़ित हो।"
"हे सीता! इसीलिए, मैं अब तुम्हें अनुमति दे रहा हूं। तुम जहां चाहो जाओ। ये सभी दस दिशाएं तुम्हारे लिए खुली हैं, मेरी प्रिय महिला! तुमसे मुझे कोई काम नहीं करना है।"
"कौन महान व्यक्ति, जो एक प्रतिष्ठित कुल में पैदा हुआ था, उत्सुक मन से, दूसरे के घर में रहने वाली महिला को वापस ले जाएगा?
"अपने वंश के बारे में बहुत कुछ बताते हुए, मैं आपको फिर से कैसे स्वीकार कर सकता हूं, जो रावण की गोद में (उसके द्वारा उठाए जाने के दौरान) परेशान थे और जिन्हें (उसने) बुरी नजर से देखा था?"
"तुम्हें मैंने इसी उद्देश्य से जीता था (अर्थात अपने खोए हुए सम्मान की पुनः प्राप्ति)। मेरे द्वारा सम्मान वापस दिलाया गया है। मेरे लिए, तुममें कोई गहन लगाव नहीं है। तुम यहाँ से जहाँ चाहो जा सकते हो."
"हे Gracious महिला! इसलिए, यह बात आज मैंने संकल्पित मन से कही है। आप अपनी सहजता के अनुसार लक्ष्मण या भरत पर ध्यान दें।"
"हे सीता! अन्यथा, अपना मन या तो शत्रुघ्न पर या सुग्रीव पर या राक्षस विभीषण पर लगाओ; या अपनी सुविधा के अनुसार।"
"सुंदर रूप से संपन्न और इंद्रियों से आकर्षक आपको अपने निवास में लंबे समय तक हिरासत में देखकर, रावण आपका वियोग सहन नहीं कर सका होगा।"
Book VI : Yuddha Kanda - Book Of War
Chapter [Sarga] 115
Verses converted to UTF-8, Nov 09
Valimiki Ramayan
यह "प्राण प्रतिष्ठा" समारोह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि मनुष्य ही भगवान को जन्म देते हैं, न कि भगवान मनुष्य को जन्म देते हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A के मुताबिक भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा--वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद तथा जांच एवं सुधार की भावना का विकास करना;
क्या "प्राण प्रतिष्ठा" का कार्य तार्किकता फैलाने का कार्य था या अंधविश्वास फैलाने का? अंधविश्वास. बिल्कुल. इस तरह से किसी भी मूर्ति को जीवंत नहीं बनाया जा सकता. रामलला की मूर्ति को भी नहीं? वह ज्यों का त्यों खड़ी रहेगी।
श्री मोदी ने राम मंदिर का उद्घाटन किया है।
अच्छा?
क्या यह धर्मनिरपेक्ष राज्य है या नहीं?
हाँ है।
क्या इसका मतलब यह नहीं है कि इस राज्य के राजनेताओं का official व्यवहार धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए?
हाँ होना चाहिए।
तो क्या श्री मोदी द्वारा officially राम मंदिर का उद्घाटन एक धर्मनिरपेक्ष कार्य था?
नहीं था।
बीजेपी ने संविधान के खिलाफ काम किया है.

श्री मोदी ने कहा कि राम भारत का विचार है। नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। यहां आस्तिक हैं, नास्तिक भी हैं। यहां कबीरपंथी भी हैं। यहां ओशो को समझने वाले भी हैं। यहां राम दवारा सीता को दिए गए वनवास का विरोध करने वाले भी हैं। यहां तो रावण को पूजने वाले भी हैं। केवल राम ही राम नहीं है भारत का विचार। यहाँ हम भी हैं। और हमारे जैसे और भी बहुतेरे हैं।

राम मंदिर

मैं राम का घोर विरोधी हूँ, इस के बावजूद मैं इस पक्ष में हूँ कि राम मंदिर बनाया जाना चाहिए था और मुसलमानों को बहुत पहले माफी के साथ यह जगह तथाकथित हिन्दुओं को दे देनी चाहिए थी. न सिर्फ यह बल्कि "कृष्ण जन्म भूमि" और "काशी ज्ञानवापी" वाली जगह भी दे देनी चाहिए थी.


लेकिन मुसलमानों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया. राम मंदिर वो हार चुके हैं. बाकी भी हार जाएंगे. चूँकि यह जग-विदित है कि मुसलमान मूर्ती-भंजक है. ताजा बड़ा उदाहरण तालिबान द्वारा बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ना था. ये मूर्तियां असल में पहाड़ों में ही खुदी हुई थीं. डायनामाइट लगा कर इन को उड़ाया गया. वैसे अक्सर खबर आती रहती है कि मुस्लिम ने दूसरे धर्मों के धार्मिक स्थल ढेर कर दिए.

मुझे कोई संदेह नहीं कि भारत में भी मुसलमानों ने मंदिर नहीं तोड़ें होंगे. कुतब मीनार पे जो मस्जिद बनी है, "क़ुव्वते-इस्लाम" वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनी है. ऐसे वहां Introductory पत्थर पर लिखा था. "क़ुव्वते-इस्लाम" यानि इस्लाम की कुव्वत. ताकत. यह थी इस्लाम की ताकत. दूसरों की इबादत-गाहों को तोडना. ऐसा ही कुछ अजमेर की "अढ़ाई दिन का झोपड़ा" नामक आधी-अधूरी मस्जिद के बाहर लगे पत्थर पर भी लिखा था कि यह मस्ज़िद मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी, वहाँ तो प्राँगण में मंदिर के भग्न अवशेष भी रखे हुए थे. बुत-परस्ती के ख़िलाफ़ है मुसलमान.

खैर, मेरा मानना है कि समाज ऐसा होना चाहिए कि जहाँ सब को अपने हिसाब से सोचने, बोलने और मानने की आज़ादी होनी चाहिए। और ज़ोर ज़बरदस्ती कतई नहीं होनी चाहिए.

मुस्लिम की ज़बरदस्ती का ही जवाब था कि बाबरी मस्जिद/ढाँचा गिराया गया और उस पर फिर से मंदिर बनाया गया. ज़बरदस्ती का जवाब ज़बरदस्ती ही हो सकता है. ताकत का जवाब ताकत ही हो सकता है.

अब रही बात मेरे जैसे लोगों की, तो हम इस्लाम का, मुस्लिम ज़बरदस्ती का विरोध करते हैं और राम का भी विरोध करते हैं. तार्किक आधार पर. बस. कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है. जिस को राम को मानना है, मानता रहे. हम को विरोध करना है तो हम करते रहेंगे. हम सोचने-विचारने और बोलने की आज़ादी का समर्थन करते हैं.

मेरी नज़र में राम पूजनीय नहीं हैं, लेकिन बहुत लोगों के लिए हैं. मेरी नज़र में ऐसे लोग गलत हैं, लेकिन फिर उन को गलत होने की भी आज़ादी होनी चाहिए। यह बात कंट्राडिक्ट्री लग सकती है लेकिन सीधी सपाट है. कौन जाने मैं ही गलत साबित हो जाऊं कभी. आई समझ में? इस लिए सब को अपने ढंग से भगवान मानने न मानने की आज़ादी. यही सच्चा सेकुलरिज्म है. और मेरा इसी सेकुलरिज्म में विश्वास है. इसीलिए मैंने लिखा कि राम मंदिर बनना चाहिए था. बावज़ूद इस के कि मैं सब धर्मों का विरोध करता हूँ और इन धर्मों के धर्म स्थलों का भी. और ultimately सब धर्मों के स्थलों को विदा होना चाहिए ही. लेकिन मैं नहीं चाहता कि इन धर्म स्थलों की विदाई ऐसे होनी चाहिए जैसे इस्लाम ने प्रयास किये दूसरे धर्मों के स्थलों पर प्रहार कर कर के. अपना रास्ता तर्क का है.

मैं कतई नहीं चाहूँगा कि भारत हिन्दू राष्ट्र बने. असल में कोई भी मुल्क, कोई भी समाज किसी भी एक तरह की मान्यता में जकड़ा होना ही नहीं चाहिए. यह जकड़न समाज की सोच की उड़ान को थाम लेती है, पकड़ लेती है. इस जकड़न-पकड़न से आज़ादी के लिए ज़रूरी है कि न कोई समाज, न मुल्क हिन्दू होना चाहिए और न ही इस्लामी और न ही ईसाई। और न ही पाकिस्तानी और न ही खालिस्तान. वैसे पाकिस्तानी आज रो रहे हैं कि मज़हब के नाम पर उन का मुल्क बनाया ही क्यों गया.

आशा है मैं अपनी बात समझाने में सफल हुआ होऊंगा

Tushar Cosmic

Friday 5 January 2024

Sarkar Chor hai, सरकार षड्यंत्र-कारी है, सरकार दुश्मन है


(The above photo is created by Devendra Makkar)

सरकार ने न सिर्फ जान-बूझ कर जनता को कानून नहीं पढ़ाया बल्कि कानून की भाषा भी जटिल रखी:-


सरकार-निज़ाम ऐसा मान कर चलता है कि हर इंसान को हर कानून पता है. और यदि आप को कोई कानून नहीं पता, तो वो आप की गलती है न कि निज़ाम की. यह सरासर धोखा है. Sarkar Chor hai, दुश्मन है, sarkar shadyantrakari hai. मेरा सवाल है इस निज़ाम से, "आप ने आम आदमी को कानून कब पढ़ाया? आप का कानून तो ऐसे अगड़म-शगड़म भाषा में लिखा है कि किसी को समझ ही न आये."

ओशो ने तो यहाँ तक कहा है, "The priests and the politicians have always been in a conspiracy against humanity."

इस के अलावा आप के कानूनों के मतलब तो सुप्रीम कोर्ट तक तय नहीं हो पाते। आज एक कोर्ट कुछ मतलब निकालता है, कल कोई और कोर्ट कुछ और मतलब निकालता है। एक मुद्दे पर एक कोर्ट कुछ जजमेंट देता है, कल उसी मुद्दे पर कोई और कोर्ट कोई और जजमेंट दे देता है। और आम आदमी से यह तवक्को रखी जाती है कि उसे हर कानून पता होगा। चाहे खुद कानून के विद्वानों को पता न हो, कौन सा कानून क्या मतलब रखता है।


यकीन मानिये, मैं अंग्रेज़ी का कोई विद्वान् तो नहीं लेकिन फिर भी ठीक-ठाक अंग्रेजी लिख, पढ़ लेता हूँ, बोल भी लेता हूँ लेकिन मज़ाल कि मुझे कोई Bare Act आसानी से समझ आ जाए. डिक्शनरी खोल-खोल देख लुं, तब भी ठीक-ठीक पल्ले न पड़े, ऐसी तो भाषा है. आम-जन जिसे हिंदी या फिर अपनी क्षेत्रीय भाषा का ही ज्ञान उस बेचारे को क्या समझ आना है?

क्यों नहीं सरकार ने कानूनी भाषा को सुगम बनाया? क्यों नहीं सरकार ने, निज़ाम ने कानून की बेसिक जानकारी को स्कूलों में ही जरूरी विषय की तरह पढ़ाया?

कारण यह है कि यदि आम-जन कानून को समझेगा तो पुलिस, कोर्ट और बाकी की नौकर-शाही उस पर अपना डण्डा कैसे रखेगी?


कानून न समझने का नतीजा है कि आम-जन इन्साफ से कोसों दूर है
:- 


इसी का नतीजा है कि जरा सड़क पर, मोहल्ले में झगड़ा हो जाए, और पुलिस बुला ली जाए तो सही व्यक्ति के भी हाथ-पांव फूल जाते हैं। क्यों? क्यों कि उसकी कानून की जानकारी लगभग शून्य होती है. वो अब झगड़े से ज़्यादा पुलिस से डर रहा होता है. वो जानता है, पुलिस कैसी है.


आप लाख सही होते रहो, पुलिस आप को ही धमका के पैसे ऐंठ ही लेगी.

और थाने में तो पुलिस का एकछत्र राज ही चल रहा है. आप बतायेंगे कुछ, पुलिस सुनेगी कुछ और लिखेगी कुछ. मैंने तो यहां तक ​​देखा है कि थाने में मेन गेट ही बंद कर देते हैं, यार-रिश्तेदार को घुसने तक नहीं देते।

आप थाने में अपने साथ वकील ले जाओ, पुलिस वाले खफा हो जाएंगे. क्यों? चूँकि अब वो आप को आसानी से बरगला न पाएंगे.

कई दफ्तरों में-थाने में लिख कर लगा दिया गया कि अंदर मोबाइल फोन लाना मना है. क्यों? ताकि आप रिकॉर्डिंग न कर लें, जो इन अफसरों की बदतमीजियों की पोल खोल दे.

थाना-कोर्ट, ये सब कोई इंसाफ के लिए थोड़ा न बने हैं. इंसाफ लेने के लिए तो आप को सात जन्म लेने पड़ेंगें. कोई झगड़ा-झंझट हो जाये, पुलिस का पहला काम होता है दोनों तरफ से पैसे ऐंठ कर "मेडिएशन" करवाना. कोर्ट भी मेडिएशन को बढ़ावा देता है. ख्वाहमख़ाह मेडिएशन में केस भेज देते हैं. ज़बरदस्ती. मेरे साथ हुआ ऐसा एक बार, बिना मेरी मर्ज़ी पूछे आनन-फानन मेरा केस मेडिएशन में भेज दिया गया.

ऐसा लगता है पूरा निज़ाम इंसाफ का मरकज़ नहीं, "मेडिएशन सेंटर" है.

इसीलिये लिखता हूँ, तुम्हारी sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai. 

Sarkar Chor hai. राहत इन्दोरी का एक वीडियो है. पसंद तो नहीं मुझे यह बंदा फिर भी सुन लीजिये..

 Also Read my relevant articles:--

सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं. काले अंग्रेज़.


सरकारी नौकरियाँ जितनी घटाई जा सकें, घटानी चाहियें.

क्या कभी कोई ऑडिट हुआ है कि पुलिस ने कितने ऐसे केस बनाये जो बाद में कोर्ट में जा कर झूठे साबित हुए? और फिर  उन पुलिस वालों पर क्या कार्रवाई हुई?  क्या कोई ऑडिट हुआ कि जब पुलिस वाले सही व्यक्ति को भी पैसे के लालच में या किसी और वजह से धमका देते हैं, डांट-डपट देते हैं, या उस से रिश्वत लेते हैं या जबरन उस का किसी दोषी व्यक्ति से समझौता करवा देते हैं तो उस का उस व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर होता है? जब कोई पुलिस वाला या पुलिस अफसर कोई मिस-कंडक्ट करता हुआ पकड़ा जाता है तो उस का तबादला क्यों किया जाता है, उसे हमेशा के लिए बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता?

होना तो यह चाहिए की सरकारी कर्मचारियों, यहां तक कि न्यायाधीशों की भी उनकी नौकरी के प्रति पवित्रता की वैज्ञानिक जांच हो. मेरा मतलब है, उन्हें पॉलीग्राफ, ब्रेन मैपिंग, हस्तलेखन विश्लेषण, नार्को इत्यादि जैसे विभिन्न परीक्षणों से गुजरना चाहिए और यदि संदिग्ध पाया जाता है, तो तुरंत निकाल दिया जाना चाहिए। और यदि उन के पास आवश्यकता से अधिक धन/संपत्ति/परिसंपत्ति पाई जाती है, तो उस धन और संपत्ति आदि को छीन लिया जाना चाहिए. सरकारी नौकरी का अर्थ है सार्वजनिक नौकरी का अर्थ है सार्वजनिक धन से वित्त पोषित नौकरियां।  सरकारी सेवकों को जनता का सेवक होना चाहिए।

लेकिन अभी तो सरकार 
sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai. 

Saturday 16 December 2023

The difference of Liking and loving

Do you believe that Loving is a higher, upper stage of liking? First, we like someone, and then, if we go deeper, we may start loving someone. But it is not always like that. Sometimes it may be the opposite. For example, you may love one of your children but not like her. Your love for her is the love of a father. But her erratic behavior, her irresponsible conduct, her egoistic and insulting body language.......You might not like it, You might even hate it. So that is the difference. Love, it is there, but liking her...no. Not all. That is the difference. Just an example.

Thursday 14 December 2023

Cease-fire

हमास फिलिस्तीन है. फिलिस्तीन इस्लामिक है. इस्लाम हर गैर-मुस्लिम के खिलाफ है चाहे वह यहूदी हो, हिंदू हो या कोई और। हम इन सबके ख़िलाफ़ हैं. हम इजराइल के साथ हैं. हम भारतीय हैं. हम गैर मुस्लिम भारतीय हैं.


संघर्ष विराम. लेकिन इज़रायली बंधकों की वापसी की गारंटी कौन लेता है? इजराइल पर दोबारा हमला न हो इसकी गारंटी कौन लेता है?

Hamas is Palestine. Palestine is Islamic. Islam is against every Non-Muslim be it Jews, Hindus, or anyone else. We are against all this. We are with Israel. We are Indians. We are Non-Musim Indians.

Cease-fire. But who takes the guarantee of the return of the Israeli hostages? Who takes the guarantee of no attack on Israel again?

Sunday 10 December 2023

नेकी कर और जूते खा

हम ने किताबों में पढ़ा, फिल्मों से सीखा कि दूसरों की मदद करो. इंसान ही इंसान के काम आता है, काम आना चाहिए.

मैंने भी ११०० से ज़्यादा लेख लिखे हैं. क्यों लिखे हैं? इंसान की, इंसानियत की बेहतरी के लिए. वैसे भी जीवन में कोशिश की है हमेशा कि जितनी भी मेरी तरफ से किसी की मदद हो सकती हो, हो जाए.

अक्सर कहते भी हैं हम कि इंसानियत ही सब से बड़ा धर्म है. लेकिन पीछे कुछ समय से मेरी राय बदलती जा रही है.

हमारी सभ्यता सिर्फ दिखावा है. ज़रा सी परत खुरचो तो नीचे जंगली जानवर निकलता है. हमारे शहर सिर्फ कंक्रीट के जंगल हैं. इंसान सिर्फ अपना स्वार्थ समझता है, अपनी वक्ती ज़रूरत समझता है, अपनी भूख समझता है, अपनी प्यास समझता है. नाक से आगे देखने, सोचने की उस की क्षमता बहुत कम होती है. अपने और अपने परिवार से आगे उस की आँख बहुत कम देख पाती है. बड़ी-बड़ी मीठी-मीठी बातें सिर्फ ढकोसला है, छलावा है, मुखौटा है, उस की गंदगी, उस का मतलबी चेहरा छुपाने को.

अक्सर सुनता था, पढता था कि कोई किसी को छुरा मारता रहा, जनता देखती रही, किसी ने रोका नहीं, लुटेरा लूट कर रहा था सरे-राह, लोग अपने रस्ते चलते रहे. कोई बलात्कार हुआ, लोगों ने देखा लेकिन कोर्ट तक कोई गया नहीं गवाही देने. बड़ा अजीब लगता था. लानते भेजने को मन करता था ऐसे लोगों को. लेकिन अब लगता है कि जनता सही है, समझदार है. मेरे जैसे लोग मूर्ख हैं.

मैं प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ. डीलर बदनाम हैं कि हेरफेर करते हैं. लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि हमारे ग्राहक ही सब से बड़े हेर-फेरी मास्टर होते हैं. महीनों किसी एक डीलर से बंधे रहेंगे, उस से दिन-रात एक करवा लेंगें और फिर बिना किसी वजह से उसे ड्राप कर देंगे और उस की दिखाई हुई डील किसी और के ज़रिये ले लेंगे या डायरेक्ट ले लेंगे ताकि डीलर को कमीशन न देनी पड़े.

अभी मोहल्ले में दो परिवारों का झगड़ा हो रहा था. दुनिया देख रही थी. जिस परिवार की गलती थी, मैंने सब के सामने खुले-आम विरोध किया. मेरे कहने पर मोहल्ले के बीसियों लोगों ने लिखित गवाही दी. बाद में जानते हैं क्या हुआ? जिस परिवार ने बिना गलती के जूते खाये थे, उस ने खुद माफी मांग ली और हर्ज़ाना भी दे दिया. और हम सब को बना दिया झूठा, बेवकूफ और दोषी परिवार की नज़र में दुश्मन. यह हुआ मदद का नतीजा, इंसानियत का नतीजा.

इंसानियत किस के लिए दिखाओ? इंसान के लिए? जो खुद एक नंबर का जानवर है. नहीं, नहीं, जानवर से भी गया बीता है. न बाबा न. अब तो यही सीखा है कि कभी किसी की मदद न करो, खुद को तो ज़रा सा भी खतरे में डाल कर न करो. या करो तो फिर यह समझ कर करो की जिस की मदद कर रहे हो, वो तुम्हारी मदद तो क्या करेगा बल्कि तुम्हें छोड़ अपने दुश्मन से संधि कर के तुम्हें चूतिया बना देगा, तुम्हें मरवा देगा.

Moral of the Story :-

उड़ता तीर मत पकड़ो.
लंगड़े घोड़े पर दांव मत लगाओ.
किसी के फ़टे में टांग न अड़ाओ.
अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता.

तुषार कॉस्मिक

Saturday 9 December 2023

सही परवरिश

सही परवरिश यह है कि बच्चों को मज़बूत बनाएं.

उन को जीत और हार दोनों पचाना सिखाएं.
उन को जीवन के छित्तर खाना सिखाएं, झेलना सिखाएं.
यदि आप ने अपने बच्चों को मज़बूत बनाना है तो उन्हें सुविधा-भोगी मत बनाएं.
यदि आप की कार ले कर देने की हैसियत है तो उन को साइकिल ले कर दें.
उन को धूप, ठंढ झेलना सिखाएं. उन को समझाएं कि वो बर्फ़ के नहीं बनें हैं जो बारिश में-धूप में पिघल जाएंगे, वो तिनकों के नहीं बने हैं जो आँधी में उड़ जाएंगे।
कभी मत सोचें कि जो कष्ट मैंने झेले हैं, वो मेरे बच्चे न झेलें. बिना कष्ट झेले वो कष्ट झेलने की ताकत ही पैदा न कर पायेंगे.
उन्हें अस्पताल, श्मशान, कोर्ट कचहरी, पुलिस थाना सब दिखाएं. वहाँ क्या होता है, एक आम इंसान की इन जगहों में क्या औकात है, यह समझाएं.
देखा है अमीरों के बच्चे कैसे लुंज-पुंज होते हैं? एक दम धरती पर बोझ. गरीबी मार देती है, अमीरी भी मार देती है. अथाह पैसा भी बच्चों को बर्बाद कर देता है. बच्चों को नशेड़ी, उछृंकल बना देता है, गैर-ज़िम्मेदार बना देता, बद-तमीज बना देता है, उन को अच्छे-बुरे की समझ भुला देता है.
मेरे परिवार में दो बच्चे इसलिए मर चुके हैं चूँकि पैसा ज़रूरत से ज़्यादा था, समझ थी नहीं. उन के माँ-बाप ज़िंदा हैं. वो मारे गए. गलत परवरिश ने उन्हें मार दिया. आप के बच्चों के साथ ऐसा न हो, इसी लिए यह सब लिखा है.
उन्हें बंद चार-दीवारी के पौधे की बजाए खुली हवा धूप में रहने वाला पेड़ बनाएं.
उन्हें पेड़ों पर चढ़ना, शाखों से लटकना, घास में लौटना, बारिश में नहाना सिखाएं. उन्हें घंटों दौड़ना सिखाएं, उन्हें तैरना, रस्सी कूदना, योगासन, बॉक्सिंग सिखाएं. उन्हें फौजी ट्रेनिंग दें, उन्हें मैराथन दौड़ाक की ट्रेनिंग दें. उन्हें सेल्फ डिफेन्स सिखाएं, उन्हें कमाना सिखाएं बचपन से ही.
उन के बचपन को मज़बूत बनाएं , उन की जड़ों को, नींव को मज़बूत बनाएं, तो ही उन का आगे का जीवन, उन की बिल्डिंग मज़बूत बनेगी. एक बार मेरी माँ ने कपड़े धोने वाली लकड़ी की थापी से मुझे कूटा था. उस कुटाई में कितना प्यार होगा, चोट मुझे लगी होगी तो मुझ से ज़्यादा मेरी माँ को भी लगी होगी. आज तो हम ऐसे समझते हैं, जैसे बच्चों ने हमारे घर पैदा हो कर हम पर अहसान कर दिया है.

मैं अक्सर कहता हूँ, "औलाद और शरीर छित्तर मार कर के पालो तो ही सही रहेंगे."

तुषार कॉस्मिक

Friday 8 December 2023

What is this bullshit?

Left, Right.

Far right, far left.
Mid right, mid left.
Idiotic.
Either someone is idiotic or wise. Right or Wrong. That is it. This right-wing-left-wing theory is idiotic

जन्नत और दोजख

 इस्लाम में जन्नत और दोजख की स्पष्ट अवधारणा है।

"सबूत क्या है? क्या आपको जन्नत या जहन्नुम से कोई एसएमएस, व्हाट्सएप, ईमेल या फोन कॉल प्राप्त हुआ है? क्या आपके पास जन्नत या जहन्नुम के अस्तित्व को साबित करने के लिए कोई वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग है? या क्या आपके पास कोई अन्य सबूत है?" मैं मुसलमानों से पूछना चाहता हूं.
There is a clear concept of Jannat and Dojakh in Islam.
"What is the Evidence? Have you received any SMS, WhatsApp, email or phone call from Jannat or Jahannum? Do you have any video or audio recordings to prove the existence of Jannat or Jahannum? Or do you have any other proof to prove your belief?" I wanna ask Muslims friends.

गज़वा-ए-हिन्द' ~~ Gazwa-E- Hind

यह वर्णन किया गया था कि अल्लाह के दूत (ﷺ) के मुक्त गुलाम थावबन ने कहा:

"अल्लाह के दूत (ﷺ) ने कहा: 'मेरी उम्मत के दो समूह हैं जिन्हें अल्लाह आग से मुक्त करेगा: वह समूह जो भारत पर आक्रमण करेगा, और वह समूह जो 'ईसा बिन मरियम' के साथ होगा, शांति उस पर हो।' "
Sunan an-Nasa'i » The Book of Jihad - كتاب الجهاد » Hadith 3175/ 25 The Book of Jihad/ (41)Chapter: The Battle Expedition of India..
It was narrated that Thawban, the freed slave of the Messenger of Allah (ﷺ), said:
"The Messenger of Allah (ﷺ) said: 'There are two groups of my Ummah whom Allah will free from the Fire: The group that invades India, and the group that will be with 'Isa bin Maryam, peace be upon him.'"

नुपुर शर्मा

यह मुद्दा इन दिनों फिर से महत्वपूर्ण इसलिए है चूँकि "गर्ट विल्डर" ने नेदरलॅंड्स का चुनाव जीत लिया है. तो क्या? उस से क्या सम्बन्ध? संबंध है. यह एकमात्र ऐसा राजनेता था जिसने नूपुर शर्मा का साथ दिया था, उस वक्त साथ दिया था जब कि नूपुर शर्मा की अपनी पार्टी ने उसे निकासित कर दिया था.
खैर.

जो भी नुपुर ने कहा था, वो रहमानी के जवाब में कहा था.
और
जो कहा था वो कुछ भी मन-घडंत नहीं था. पैगम्बर साहेब की निंदा तो तब होती जब नुपुर ने कुछ ऐसा बोला होता जो इस्लाम मानता न होता. इस्लामिक ग्रन्थों में लिखा है कि पैगम्बर साहेब ने हज़रत आईशा से जब शादी की तो वो 6 साल की थीं. जब जिस्मानी रिश्ता बनाया तब वो 9 साल की थी. इसी बात को श्रीमान जाकिर नायक ने भी तसदीक किया है.

लेकिन नुपुर शर्मा ने बोल दिया तो उसे मार दिया जाना चाहिए!
क्यों?
नुपुर शर्मा ने नेगेटिव सेंस में बोला शायद इसलिए. ठीक है, तो आप इसी मुद्दे को पॉजिटिव कर के बता दें. बता दीजिये कि नुपुर कहाँ ग़लत है. और पैगम्बर साहेब ने जो किया वो कैसे सही है, किन विशिष्ट हालात में ऐसा किया और वो कैसे अनुकरणीय है.
बस, नुपुर को टांग दो.
टांग भी दिया उस के पुतले को.
नुपुर को मार दो.
मार भी दिया नुपुर नाम की एक बेगुनाह औरत को बांगला देश में. पहले बलात्कार किया, फिर मार के, लाश खेत में फेंक दी. मात्र इसलिए चूँकि उस का नाम नुपुर था.

होना क्या चाहिए था?
होना यह चाहिए था कि यदि नुपुर की बात गलत लगी तो सब से पहले यह देखना था कि वो ग़लत है भी कि नहीं. तथ्यात्मक तौर पर.

लेकिन जैसा कि अब पता पड़ रहा है कि बात तथ्यात्मक रूप में गलत नहीं थी.
तो फिर नुपुर ने जैसे कहा, वो देखना था कि किन हालात में कहा, वो गलत था या सही. तो वो भी गलत प्रतीत होता नहीं. चूँकि बहस में शिवलिंग को भी कोई सम्मान नहीं दिया जा रहा था, तो तैश में आकर जवाब में नुपुर की तरफ से यह कथन आया.

फिर यह देखना चाहिए था कि उस कथन को चाहे नुपुर ने नेगेटिव ढंग से कहा लेकिन पैगम्बर साहेब की वो शादी पॉजिटिव काम है क्या, अनुकरणीय है क्या? जैसा मैंने ऊपर लिखा है, इस का जवाब भी मुस्लिम' को ही देना था. लेकिन मुस्लिम ने ऐसा नहीं किया. मुस्लिम ने टिपण्णी कर ने वाली के खिलाफ़ झंडा-डंडा बुलंद कर दिया.

इस से क्या प्रतीत होता है?
ऐसा लगता है कि मुस्लिम हज़म ही नहीं कर पाए कि यह बात Out हो गयी. मुस्लिम इस बात को झुठलाते हुए प्रतीत होते हैं.

मुस्लिम इस शादी का औचित्य साबित करने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हैं.
और फिर दुनिया के किसी भी विषय पर, व्यक्ति पर तार्किक रूप से क्यों सोचा नहीं जाना चाहिए? पैगम्बर साहेब थे तो इंसान ही न. क्यों उन के जीवन की घटनाओं का बौद्धिक रूप से विश्लेष्ण नहीं होना चाहिए? क्यों मुस्लिम इस बुरी तरह से उखड़ जाते हैं? क्या इस लिए कि मुस्लिम जवाब देने में असमर्थ समझते हैं खुद को?

मैंने सुना जाकिर नायक को, ये श्रीमान बता रहे थे कि लड़की का जब मासिक धर्म शुरू हो जाता है तो उस से शादी की जा सकती है. और मासिक धर्म 9-10 साल की उम्र में शुरू हो जाता है और इसी उम्र में हज़रत आएशा से पैगम्बर साहेब ने शादी की थी. और मैंने यह भी सुना है कई बार कि मुस्लिम को पैगम्बर मोहम्मद के जीवन की यथा-सम्भव नकल करनी होती है जीवन में. इसे शायद सुन्नत कहते हैं. क्या यह सवाल नहीं उठता कि मासिक धर्म का शुरू हो जाना ही काफी है क्या यह तय करने को कि लड़की शादी के काबिल हो गयी? एक 10 साल की बच्ची जब pregnant हो जाएगी तो क्या उस का शरीर इस pregnancy को सम्भाल पायेगा? प्रसव को झेल पायेगा? क्या एक दस साल की बच्ची ने इतना जीवन देख लिया होता है कि वो अपने बच्चे को सम्भाल पाए? क्या नौ साल की बच्ची की शादी कर के उस का बचपन तो नही छीना जा रहा? ऐसी शादी में बच्ची की मर्ज़ी को उस की मर्ज़ी माना जा सकता है क्या? फिर यदि उस का पति बड़ी उम्र का हुआ और जवानी में ही यदि वो विधवा हो गयी तो क्या यह शादी एक सही फैसला माना जा सकता है? क्या पैगम्बर साहेब की यह शादी अनुकरणीय है? ऐसे ढेर से सवाल खड़े होते हैं.

शायद मुस्लिम समाज इस मुद्दे के अंतर-निहित सवालों को समझता है. और इन सवालों से बचने के लिए ही बवाल किया गया है.

यदि इस्लाम वैज्ञानिक मज़हब है तो इस्लाम को तो हाथ पसार सवाल उठाने वालों का स्वागत करना चाहिए कि आओ, जो भी शंका हो, जवाब हम देंगे.
लेकिन ज़मीनी हकीक़त तो बिलकुल उलट है. तर्क तो दूर की बात, टिपण्णी ही क्यों की?

मेरे ख्याल है कि इस दुनिया के हर इंसान को किसी भी विषय-व्यक्ति पर सोचने का, टीका टिपण्णी करने का हक़ है. हमें खुद की सोच को ही दुरुस्त नहीं करना होता बल्कि दूसरों की सोच दुरुस्त हो इस का भी ख्याल रखना होता है. एक सड़क जिस पर सब ग़लत- शलत कारें चला रहे हों, आप ड्राइव करना पसंद करेंगे? पता नहीं कब कौन ठोक दे. सड़क पर चलना तभी सुरक्षित है यदि सिर्फ आप ही नहीं, दूसरे लोग भी गाड़ी सही-सही चलायें. यह सिर्फ़ मिसाल है. समझाने के लिए. किसी धर्म पर कोई टिपण्णी नहीं है.

यह तर्क भी सही नहीं है कि तुम्हें क्या हक़ है हमारे नबी, हमारे अवतार, हमारे भगवान, हमारे गुरु के बारे में कुछ भी कहने का. हक़ हमें बुनियादी है. कुदरती है. संवैधानिक है. फ्री थिंकिंग और फ्री एक्सप्रेशन एक फ्री समाज की बुनियादी ज़रूरत है.

एक व्यंग्य अक्सर पढ़ता हूँ. एक कुत्ते को गली से उठा कर राज महल में ले जाया गया. वो कुछ समय राज महल में रहा लेकिन फ़िर वापिस गली में आ गया. अब उस के साथी कुत्तों ने पूछा कि क्या हुआ? वापिस क्यों आ गया? तो उस कुत्ते ने जवाब दिया, " वहां राज महल में सब सुविधा थी. खाना पीना, सब बढ़िया. चिंता फिकिर नाहीं. बस दिक्कत एक ही थी. वहां भौंकने की आज़ादी नहीं थी.
यह व्यंग्य साधा गया है उन पर जो फ्री एक्सप्रेशन की डिमांड करते हैं, इस का समर्थन करते हैं.

लेकिन मैं इस कथ्य को दूसरे ढंग से लेता हूँ. मेरा मानना है कि यदि फ्री एक्सप्रेशन की आज़ादी नहीं तो सब सहूलतें बेकार हैं. मैं उस कुत्ते की कद्र करता हूँ जिस ने फ्री एक्सप्रेशन न मिलने पर राज महल को लात मार दी. जिस समाज में फ्री एक्सप्रेशन की आज़ादी नहीं, वहाँ फ्री थिंकिंग भी रुक जाएगी, वैज्ञानिकता थम जाएगी. फ्री एक्सप्रेशन से फ्री थिंकिंग stimulate होती है.

लेकिन यहाँ तो हर कोई दूसरे को कोर्ट कचहरी में खींच रहा है. ऐसे ही गेलीलिओ को खींचा गया था, ऐसे ही ब्रूनो को.....समय-चक्र ने इन को सही साबित किया. समय-चक्र ने इन को इंसानियत के हीरो साबित किया.

"मेरी भावना आहत हो गयी."
तो क्या करें भाई? आप अपनी भावनाओं को मजबूत बनाओ न.
आप Newton के काम के खिलाफ़, शेक्सपियर के नाटकों के खिलाफ़, मुंशी प्रेम चंद के लेखन के खिलाफ़, शिव कुमार बटालवी की कविताओं के खिलाफ़ जितना मर्जी बोलो, जितना मर्जी लिखो कोई तलवारें नहीं खींचेगी. लेकिन आप किसी भी तथा-कथित धार्मिक किताब, व्यक्ति के खिलाफ़ कुछ बोल दो, लिख दो तो मार-काट मच जायेगी. क्यों? सोचिये.

यह जो ईश निंदा, ब्लासफेमी कानून हैं, यह वैज्ञानिक सोच की राह में रोड़ा हैं. ईश की निंदा हो गयी. कैसे साबित करोगे? पहले साबित तो करो कि ईश है भी कि नहीं. ठीक वैसे ही जैसे तुम आलू, गोभी कोर्ट में दिखा सकते हो, छुआ सकते हो, वैसे ही.

ईश सिर्फ एक मान्यता है. मान्यता तो फिर ईश पर सवाल उठाने वालों की भी है. इन को क्यों मार देना? इसलिए चूँकि यह गिनती में कम हैं. भीड़ का गणित. सही हो न हो, सही ही माना जाता है चूँकि भीड़ मानती है.

नुपुर वाला मुद्दा, इस का एक दूसरा पहलू भी है. ऐसा भी लगता है कि जान-बूझ कर भी उछाला जा रहा है. भाजपा को वोट से मुस्लिम समर्थक दल हरा नहीं पा रहे. तो अब मुस्लिम और मुस्लिम समर्थक दल, भाजपा विरोधी दल गाहे-बगाहे सड़क पर उतर रहे हैं. यह सिलसिला शाहीन बाग़ से शुरू हुआ तो चलता ही जा रहा है. दिल्ली ने हिन्दू-मुस्लिम दंगे देखे. अब कानपुर ने. और कितने ही और शहरों ने भी. मुस्लिम हर हाल में भाजपा सरकार पर अपना दबाव बनाये रखना चाह रहे हैं. नुपुर वाला मुद्दा भी उसी सिलसिले की एक कड़ी प्रतीत हो रहा है. सही गलत से कोई मतलब नहीं. बस मुद्दा बनाये रखो.

लेकिन मैं अपने मुस्लिम भाईओं और बहनों से यह कहना चाहता हूँ कि आप को गैर मुस्लिम देख रहा है, नोटिस कर रहा है, उस का मुस्लिम के प्रति डर बढ़ता जा रहा है जो उसे मजबूर करता है मोदी की हजार गलतियाँ माफ़ कर के उसे ही सत्ता सौपने को.

तो मेरा संदेश है मुस्लिम मित्रो को और गैर-मुस्लिम मित्रों को भी, आज ज़माना इन्टरनेट का है. सब पलों में चेक हो जाता है. दीन- धर्मों को सब से बड़ा चैलेंज किसी व्यक्ति-विशेष से नहीं है बल्कि इन्टरनेट से है, सोशल मीडिया से है. अब चीज़ें छुपाई न जा सकेंगीं.

सो यह मरने-मारने की भाषा छोड़ दें. अपनी सोच में वैज्ञानिकता लायें. तार्किकता लाएं. ध्यान लाएं. समाधान लाएं.

और जो भी लिखा, यदि कहीं कुछ गलत लिखा हो तो ज़रूर बताएँ.

नमन
तुषार कॉस्मिक

Saturday 2 December 2023

वेज बिरयानी ???

यह एक मिथ्या नाम है. ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे वेज बिरयानी कहा जा सके। हम हिंदी में इसे पुलाव कहते हैं. पुलाव का मतलब मिश्रित सब्जियों के साथ पकाया गया चावल है। तो फिर इसे वेज बिरयानी क्यों कहा जा रहा है? इस्लामिक प्रभाव के कारण. मुस्लिम लोगों को चावल और मांस का मिश्रण बिरयानी बहुत पसंद होती है. उन्हीं के प्रभाव से पुलाव भी वेज बिरयानी बन गया है। इस तरह संस्कृति पर आक्रमण होता है। छोटे कदम। बड़े प्रभाव. 

आप कैसे जानते हैं, "अल्लाह हू अकबर"?

आप कैसे जानते हैं कि अल्लाह महान है, या अल्लाह महान है?

सबूत क्या हैं? अल्लाह ने कौन सी प्रतियोगिता लड़ी है? और किसके साथ? कैसी तुलना? किसके साथ? और उस तुलना के प्रमाण क्या हैं? कोई वीडियो? कोई ऑडियो?