Tuesday, 29 June 2021

चोर को मत मारो, चोर की माँ को मारो.

"चोर को मत मारो, चोर की माँ को मारो." कहावत है

एक कहानी मेरे पिता सुनाते थे

एक बार एक चोर पकड़ा गया चोरी करते हुए, हुक्म हुआ राजा का कि चोर के हाथ काट दिए जाएँ. जिन हाथों से चोरी करता है, वो हाथ काट दिए जाएँ.

चोर ने सर झुका के बोला, "जनाब लेकिन गुनाहगार मेरे हाथ नहीं हैं."

"तो फिर कौन है?"

चोर ने कहा, "मेरी माँ को बुला दीजिए, पता लग जायेगा."

माँ को बुला दिया गया.

जैसे ही चोर की माँ चोर के सामने आई, चोर ने माँ के मुंह पे थूक दिया और बोला, "जनाब मेरी माँ है असल गुनाहगार. सजा इसे दीजिये. "

"कैसे?

"ऐसे चूँकि जब मैं पहली बार चोरी कर के आया तो मेरी माँ ने मेरे मुँह अपर थूका नहीं, बल्कि इस ने हसंते हुए मुझे सपोर्ट किया. वो जो थूक मैंने फेंकी, वो यदि मेरी माँ ने मेरी चोरी पर फेंकी होती तो आज मैं इस कटघरे में न खड़ा होता. असल गुनाहगार माँ है"

राजा ने चोर को छोड़ दिया और माँ को सजा दी

असल गुनाहगार माँ है

माँ कौन है.

कुरान

हदीस

इन पर तर्क से , एक एक आयत, एक एक घटना को तर्कपूर्ण छीन-भिन्न कर देना चाहिए पूरी दुनिया में.

इतना कि इन को जवाब न सूझे.

वो सूझेगा भी नहीं. बस जरा तर्क की ज़रूरत है

और सही जगह चोट की ज़रूरत है

चोट जड़ पे करने की ज़रूरत है. वरना पत्ते काटते रहो, कुछ न होगा.

रोहिंग्या पत्ते हैं, बच्चे हैं.

माँ, कुरान है, हदीस है

चोट चोर की माँ पर करो

जड़ कुरान है, हदीस है.

चोट जड़ पे करो.

और दुनिया के हर कोने से करो.

और बोले सो निहाल, सत श्री अकाल.


तुषार कॉस्मिक 

Monday, 28 June 2021

जायेगा तो मोदी ही

हालाँकि मैं इस लोकतंत्र से बनी सरकारों को जनता कई प्रतिनिधि ही नहीं मानता. वैकल्पिक व्यवस्था मैंने दे रखी है. जिसे बहुत कम लोगों ने देखा, सुना.

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खैर, वर्तमान व्यवस्था में मैने जो समझा वो यह कि इस्लाम के अंधेरों से बचाने के लिए मोदी सरकार ही सही है. लेकिन यह सरकार बाकी सब मुद्दों पर फेल है. इनको कुछ नहीं पता क्या काम करना है, कैसे करना है. कोई ट्रेनिंग नहीं. आरएसएस की शाखाओं में भी नहीं. बस मौज मार रहे हैं इडियट्स.

और सबसे बड़ी बात, मोदी सरकार आज वैसे ही घमण्ड में दिखती है जैसे एक समय कांग्रेस दिखती थी.

हो सकता है कृषि कानून सही हों, लेकिन विरोध में बैठे किसानों को भी कोई हल देना बनता था, बनता है कि नहीं?

इन कानूनों को राज्य सरकारों के ऊपर क्यों नहीं छोड़ दिया गया?

और इन कानूनों का जब विरोध शुरू हुआ तो जन-जन में जा कर, गली-गली जा कर इन कानूनों के विरोध में उठते पॉइंट्स को क्लियर क्यों नहीं किया गया?

और फिर इन कानूनों पर ही जनता का वोट क्यों नहीं ले लिया गया?

यदि किसी राज्य विशेष के लोग नहीं चाहते कि इन कानूनों से जो विकास मिलना है वो मिले तो क्यों जबरन उस तथा-कथित विकास को थोपना?

याद रखना मेरी बात, वरना जायेगा तो मोदी ही.

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और
सब से बड़ी बात!

दुनिया-जहां में कोरोना को नकली बताया जा रहा है. भारत में भी अनेक लोग इसे बीमारी मान ही नहीं रहे. डॉक्टर भी. लेकिन मोदी सरकार है कि इडियट की तरह वैक्सीन लगाने पर जोर दिए जा रही है. मतलब जो एजेंडा WHO ने पकड़ा दिया, बस वही पेले जा रही है-धकेले जा रही है.

अबे, विरोध में उठते स्वरों को सुन तो लो. जन-जन को सुनने तो दो. फिर देखो, जनता खुद ही तय कर लेगी कि अफवाह क्या है और सच्चाई क्या है. या बस यही सीखा है कि प्रचार से, लगातार प्रचार से, धुआंधार प्रचार से कुछ भी बेचा जा सकता है.

इडियट्स!

याद रखना, सब लोग रोबोट नहीं होते, कुछ प्रचार की मोटी दीवारों को भेद कर सच्चाई देखने की क्षमता भी रखते हैं. सबको अपने जैसा चूतिया मत समझो. बल्कि उन की सुनो, ताकि कुछ अक्ल तुम्हारे भेजों में भी भेजी जा सके.

वरना
याद रखना मेरी बात, "जायेगा तो मोदी ही."

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और इस फर्ज़ी बीमारी, महा-मारी को असली मान कर, मनवा कर मोदी सरकार ने असली हाहा-कारी मचाई है. लॉक-डाउन लगा-लगा कर जन-जन को बेरोजगार किया है. ऐसे `में महान मोदी सरकार घर-घर खुल्ला राशन- पानी, मुफ्त बिजली -पानी और हर सुविधा देती तो फिर कहने के हकदार थी, "घर में रहो, सुरक्षित रहो." लेकिन मोदी सरकार ने उल्टा किया. महंगाई को बढने दिया. इतना की खाने के लाले पड़ रहे हैं. "घर-घर मोदी, चर गया मोदी."

सम्भल जाओ
वरना
"जायेगा तो मोदी ही."

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यदि मेरी बात न समझी गयी तो जल्द ही "जायेगा तो मोदी ही"

तब्दील हो जायेगा, "मोदी तो गीयो में."

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नमन
तुषार कॉस्मिक

Sunday, 20 June 2021

Holy-shit

 ईसाई रविवार को छुट्टी रखते थे और चर्च जाते थे. सो इन्होने इस दिन को Holiday कहना शुरू कर दिया. लेकिन जैसे-जैसे ईसाईयों में धर्म के प्रति मोह घटना शुरू हुआ तो वहां Holy-crap यानि पवित्र कचरा और Holy-shit यानि पवित्र टट्टी जैसे शब्द भी चलन में आ गए. .... हमारे यहाँ पता नहीं ऐसा कब होगा?

Thursday, 17 June 2021

जन्नत की हकीकत

 "जानते हैं जन्नत की हकीकत हम भी ए ग़ालिब.

मगर दिल के बहलाने को ख्याल अच्छा है."

इस्लाम अमन-पसंद है?

1450 सालों से तीर-तलवार, बम-बनूक से मुस्लिम दुनिया को समझा रहे हैं कि इस्लाम अमन का दीन है, लेकिन अभी भी दुनिया के बहुत से ढीठ लोग मान ही नहीं रहे. बिला शक 50 से ज़्यादा मुल्क तो मान गयें है.

वाह!
वल्लाह!!
सुभान-अल्लाह!!
माशा-अल्लाह!!!
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
बाकी भी मान जाएंगे.
इंशा-अल्लाह!!!!
तुषार कॉस्मिक

मैं कौन

 हे पार्थ, मैं हरामियों में महा-हरामी हूँ और शरीफों में महा-शरीफ हूँ. मैं तुषार हूँ. तुषार कॉस्मिक.

एक और फ्रॉड

 बहुत से फ्रॉड चलते हैं दुनिया में. एक रोज़ होता है तुम्हारे साथ.

तुम से कहा गया कि मसाले ज़्यादा मत खाओ, अचार मत खाओ. असल में ये दोनों दवा है.
लहसुन, अदरक, साबुत नीबूं, किस चूतिया ने कहा कि ये नुकसान करते हैं?
सौंठ, काला नमक, सेंधा नमक, काली मिर्च, दाल चीनी, जीरा, धनिया, पुदीना ये किस ओवर-स्मार्ट इडियट ने समझाया कि हानिकारक हैं?
असल में अंग्रेज़ी दवा-अंग्रेज़ी डाक्टर चलाने के लिए तुम्हारी रसोई में रखी दवाओं के प्रति तुम्हें शंकालु बना दिया गया.
और फ़िर
"In search of Gold, you lost the Diamonds."

मैं भी कबीर

"कंकण्ड पत्थर जोड़ के मस्ज़िद लियो बनाये

ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय"


अब इस पे भाई-जान कहते कि ये खुदा नहीं, मुसलमान को बुलाने को बांग दी जाती है, तो भी मैं कहना चाहता हूँ


"कंकण्ड पत्थर जोड़ के मस्ज़िद लियो बनाये

sms के ज़माने में, ऊँची-ऊंची बांग दे, मोहल्ला दियो जगाए"


कैसी रही?

रेस्पेक्ट

यदि देश-विदेश में community-wise सर्वेक्षण किया जाए कि कौन सी भारतीय कम्युनिटी की कितनी रेस्पेक्ट है तो मेरे हिसांब से नीचे दी गई तालिका फिट बैठेगी. तालिका में नम्बर 1 पर सबसे ज़्यादा रेस्पेक्ट पाए जाने वाली कम्युनिटी को रखा है मैंने. फिर नम्बर 2 पर उससे कम और नम्बर 3 पर उससे कम. ऐसे चल रही है यह तालिका. 

1.सिक्ख

2.जैन

3.बौद्ध

4.पारसी

5.हिंदू

6.मुस्लिम

बाकी आप बताएं.

तालिका गलत भी हो सकती है, आप अपनी राय दें.

Tuesday, 15 June 2021

Religion is Fraud

Religion
is
Fraud.


Focus
on
Reason. 

लिखो तो ऐसे लिखो

मूंछे हों तो नत्थू लाला जैसी वरना न हों. 

लिखो तो जबरस्त, वरना न लिखो. 

ज़बरदस्त. 

जिसे पढ़ने लग जाएँ दस्त. 

उड़ा जाए डस्ट. 

कर दे बे-वस्था को पस्त, अस्त-व्यस्त.

कौन हैं ये चूतिये, जिन्हें प्रोफेशनल कहा जाता है ?

तुम्हें पता है डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट को प्रोफेशनल कहा जाता है. मतलब उनका प्रोफेशन ही प्रोफेशन है, वही प्रोफेशनल हैं बस.  बस. बकवास बात है. मेरी नज़र में  तो किसी भी काम  सही ढंग से करने वाला प्रोफेशनल है. चाहे जूते गांठने वाला हो, चाहे बाल काटने वाला हो, चाहे नाली साफ़ करने वाला हो

जिस दिन समाज  में एक गटर साफ़ करने वाले जमादार और एक दांत साफ़ करने वाले डॉक्टर को बराबर सम्मान और बराबर इज्ज़त मिलने लगेगी, समझना समाज सही दिशा में है.

तुम्हें पता है वकील, डॉक्टर, चार्टर्ड-अकाउंटेंट को प्रोफेशनल कहा जाता है. मतलब अपने-अपने  प्रोफेशन के परफेक्ट  लोग. लेकिन असल में ऐसा बिलकुल नहीं  है. सबूत यह है कि ये अपने काम को 'प्रैक्टिस' करना बोलते हैं. यानि अपने काम की प्रैक्टिस कर रहे हैं. सही से सीखे नहीं है, प्रैक्टिस कर-कर के उसे ठीक से सीखने का प्रयास कर रहे हैं. वो प्रैक्टिस किस पर की जा रही है? आप पर

वर्तमान राजनीति पर एक दृष्टि

गॉडफादर फ़िल्म में डॉन कोर्लेओनी कहता है, " नजदीक के छोटे फायदे से दूर का बड़ा नुकसान भी होता हो तो भी ज्यादातर लोग नजदीक का फायदा चुनते हैं। क्योंकि लोग दूर-दृष्टि के रोग से पीड़ित होते हैं। क्योंकि लोग मूर्ख होते हैं।"

मैं सहमत हूँ, ये जो दिल्ली के लोग केजरीवाल को इसलिये वोट देते हैं कि वो ये चीज फ्री दे रहा है-वो चीज फ्री दे रहा है, वो लोग क्युटिये हैं। केजरीवाल मूर्ख है, जो गाँधी के 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' के दर्शन को पकड़े है, बिना अल्लाह वालों से पूछे कि क्या वो भी यही मानते हैं या 'अल्लाह -हु-अकबर' मानते हैं।

इस्लाम किसी और दीन-धर्म को जगह नहीं देता. अल्लाह-हु-अकबर. अल्लाह है सबसे बड़ा. ला-इल्लाह-लिल्लाह. नहीं कोई पूजनीय अल्लाह के सिवा. बात खत्म. 

मेरी समझ यह है कि मुस्लिम कभी भी भाजपा को वोट नहीं देगा. उसे क्लियर है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी है.  वो मोदी सरकार से मिले फायदे तो उठा लेगा लेकिन वोट फिर भी नहीं देगा बल्कि भाजपा को हराने के लिए हर सम्भव प्रयास करेगा लेकिन गैर-मुस्लिम बुद्धू है, वो केजरीवाल जैसे लोगों से मिल रहे फायदे में बह जाते हैं और उसे जिता देते हैं. वो इस्लाम के सामाजिक, वैचारिक, आर्थिक  खतरों को नहीं समझते. वो इडियट  हैं. वो दूर तक नहीं देख पाते.

जैसा मैंने लिखा ही है कि मुस्लिम कभी भाजपा को वोट नहीं देगा और मेरे मुताबिक दुनिया को इस्लाम की अंधेरी, गैर-वैज्ञानिक, अतार्किक व्यवस्था से बचाने का हर सम्भव प्रयास  किया जाना  चाहिये तो फिर फिलहाल गैर-मुस्लिम के पास सिवा भाजपा के कोई और विकल्प नहीं बचता.

 भाजपा सिवा मुस्लिम विरोध के मुद्दे के कहीं सही नहीं होती. फिर किया क्या जाए? फिलहाल वोट इन्हें ही दीजिये लेकिन वोट देने के बाद ज़िम्मेदारी खत्म मत समझिए. अपने इलाके के Councilor, MLA, MP को छित्तर मार-मार समझाएँ कि क्या काम करना है, कैसे करना है. इनको e-mail करें, फ़ोन करें, लेटर भेजें. वोट दे के सो मत जाएं. न इनको सोने दें. ये इडियट हैं, इडियट से जूते मार-मार काम लीजिए ~

Thursday, 10 June 2021

https://www.jihadwatch.org/

https://www.jihadwatch.org/

इस वेबसाइट को खोलिए. इसके पहले पेज पर ही आपको एक बॉक्स दिखेगा राईट साइड में थोडा सा नीचे जा कर. 39226 Deadly attacks किये गए इस्लामिक टेररिस्ट ने 9/11 आक्रमण के बाद. इस बॉक्स को जब आप  क्लिक करेंगे तो यह आपको बतायेगा कि मई 2021 में 13 मुल्कों में 34 अटैक किये गये हैं जिनमें 149 लोग मारे गए हैं और 84 लोग घायल हुए हैं. आप कहेंगे कि हम कैसे मान लें कि यह वेबसाइट सही जानकारी दे सकती है? तो जवाब यह है कि यह एक खुली वेबसाइट है. अगर झूठ बोलती है तो अब तक भाई लोग इसे कब का बंद करवा चुके होते. आखिरकार 50 के आस-पास मुल्क हैं उनके. नहीं?

सफलता क्या है - मेरा नज़रिया

तुम्हारा सपना क्या होता है? सफलता क्या है तुम्हारी नजर में? खूब सारा पैसा. या फिर शोहरत. यही न. काफी है. इडियट हो तुम! सुशिल कुमार ने दो बार ओलिंपिक मैडल जीता. सब मिल गया था उसे. फिर भी एक लाख रुपये का इनामी भगोड़ा घोषित होने के बाद क़त्ल के केस में बंद है. ज़िंदगी में हार बर्दाश्त करना बहुत ज़रूरी है लेकिन उससे भी ज़रूरी जीत बर्दाश्त करना है. सुशील कुमार जीत हज़म नहीं कर पाया. उलटी कर दी. मेरी नज़र में सफलता हालात के मुताबिक विवेक से जीना है. चाहे हालात जैसे भी हों.

इन्सान उसकी प्रोपर्टी मात्र नहीं है

देखता हूँ, लोग आपस में मिलते हैं तो उनकी बातचीत घूम-फिर के अक्सर पैसे-प्रॉपर्टी पर केंद्रित हो जाती है. फिर वो एक दूसरे को पैसे-प्रॉपर्टी से ही तौलते हैं. 

क्या आपको पता है मैंने सैकड़ों लेख लिखे हैं, बीसियों कहानियां लिखी हैं, कुछ कविताएं और कुछ यात्रा संस्मरण भी? सब है वेब पे. अब यह सब ऐसे ही तो नहीं लिख मारा होगा. बहुत कुछ पढा, बहुत कुछ गढ़ा और घड़ा, बहुत कुछ जीया, बहुत कुछ सीखा तभी तो कुछ लिखा. लेकिन जब कोई मुझे पैसे-प्रॉपर्टी से आँकना चाहता है तो मुझे वो सिर्फ चूतिया लगता है.

एक इन्सान सिर्फ उसका धँधा या उसकी प्रॉपर्टी ही नहीं होता, उससे कहीं ज़्यादा, कहीं इतर भी होता है, हो सकता है. वो वैज्ञानिक, साहित्यकार, खिलाड़ी, पेंटर, मूर्तिकार या फिर कुछ और भी हो सकता है ~~ तुषार कॉस्मिक

क्या जीना डरे-डरे और मरे-मरे

घण्टा!!!

हम न बजाते मन्दर में.

और 

न ही मुँह छुपाते फिरते. 

खुल्ला जीते. 

मौत की आँखों में आँखें डाल.

आ जा, जब आना हो लेकिन जब तक जीएंगे खुल के जीएंगे.

फर्क किताब और ग्रन्थ का

क़िताब दुनिया की बड़ी नेमत हैं, सौगात हैं. 

इन्हें पढ़ो.


लेकिन ग्रँथ,आसमानी किताबें  खतरनाक हैं. 

इनसे बचो.


फर्क पढ़े-लिखे और पढ़ते-लिखते होने का

यदि तुम पढ़े-लिखे हो,

तो तुम निश्चित ही चूतिये हो 

और 

यदि पढ़ते लिखते हो, 

तो तुम सयाने हो भी सकते हो.

विज्ञान कैसे पैदा होगा

कहीं पढ़ा कि हिन्दू-मुस्लिम बस अपने शास्त्रों का अर्थ-अनर्थ ही करते रहे और ईसाई और यहूदी विज्ञान पैदा करते में लगे रहे. सच है कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान में ईसाई और यहूदी समाज का बहुत योगदान है. 

लेकिन ये ज्ञान-विज्ञान ईसाईयत और यहूदियत की वजह से पैदा नहीं हुआ बल्कि ईसाइयत और यहूदियत के बावजूद पैदा हुआ. इसलिये पैदा हुआ चूंकि ईसाईयत और यहूदियत का मकड़-जाल, जकड़-जाल कहीं ढीला था. वो सोच को आज़ाद सांस लेने देता था, दे रहा है. 

बाकी आप भजते रहो-- हरे रामा हरे कृष्णा. और करते रहो --अल्लाह-हु-अकबर.

जनसंख्या और वोटिंग का अधिकार

रामदेव कहते हैं तीसरा बच्चा होते ही छिन जाये वोटिंग का अधिकार।

मैं कहता हूँ जिनके पहले से ही ज़्यादा बच्चे हों, उन परिवारों को भी वोट देने का हक नहीं होना चाहिए क्योंकि एक ख़ास मज़हब बच्चे ज्यादा एक रणनीति के तहत पैदा करता है.... ताकि तख्त पलट सके।

पशु और इन्सान का फर्क

पशु शब्द का मतलब समझते हैं? जो पाश में बंधा है. पाश यानि जाल. जानवर शब्द का मतलब है जान-वर. जिसमें जान है. लेकिन इन्सान को पशु या जानवर क्यों नहीं माना जाता है? जान है उसमें लेकिन फिर उसे जानवरों से अलग क्यों माना जाता है? चूँकि वो मनुष्य है. मानुस. मनस. यानि मनन करने वाला. मतलब यह कि स्वयंभू ने इन्सान तक आते-आते दो चीज़ों की इजाद की. एक फ्री-विल और दूसरी इंटेलिजेंस. इन दोनों के मेल से ही मनन होता है. लेकिन इन्सान क्युटिया निकला. उसने यह गिफ्ट मन्दिर, मस्जिद , गिरजे को गिरवी रख दी और आज तक छुड़ा नहीं पाया. वो फिर से पाश में बंध गया. वो पशु हो गया. वो जानवर हो गया. ..

मुस्लिम का एजेंडा

मुस्लिम का एक ही एजेंडा है मोदी सरकार गिराओ. मतलब मोदी से नहीं है और न ही हिन्दू से. मतलब एक ही है. किसी काफिर की सरकार क्यों? मुस्लिम को जितनी मर्ज़ी सुविधा दे दो, वो काफ़िर सरकार से कभी खुश नहीं होगा. वो एक जुट हो कर वोट देता है काफिर के ख़िलाफ़. लेकिन काफिर क्युटिया है, वो समझता ही नहीं कि मुस्लिम काफ़िर को बेलने के लिए ही काफ़िर का इस्तेमाल करता है. सावधान! मुस्लिम पावर में आते ही सब गैर-मुस्लिम को बेलेगा. इतिहास गवाह है. वो सिवा अल्लाह-रसूल-क़ुरान के कुछ नहीं मानते, सब फलसफा धरा रह जाएगा, सब "फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन" घुस जाएगी.

सोशल मीडिया के पैंतरे

भारत में जब आप सामाजिक या राजनीतिक पोस्ट करते हैं तो ज़्यादातर लोगों की राय तर्क या तथ्य पर आधारित नहीं होती.

जैसे खालिस्तानी को हिन्दू सरकार नागवार गुज़र रही है तो उसकी पोस्ट और कमेंट अक्सर हिन्दू के खिलाफ और मुस्लिम के पक्ष में होते हैं.
तथाकथित वामपंथी खुलकर इस्लामपरस्त हैं।
ऐसा ही आरक्षण भोगी तथाकथित "वे" करते हैं. वो आरक्षण के फायदे भी लेते हैं और हिन्दू समाज को गाली भी देते हैं.
ऐसे ही कांग्रेस से जुड़े अधिकांश लोग करते हैं.
इनको कोई पोस्ट/कोई विचार मुस्लिम के खिलाफ समझ नहीं आएगा.
वैसे तथाकथित हिन्दू भी कम नहीं, उनको लाख तर्क बता दो उनकी मान्यताओं के खिलाफ, मानते वो भी नहीं जल्दी. बस एग्रेसिव नहीं हैं मुस्लिम जितने. कहीं कम.
सो तर्क देने वाला क्यों तर्क दे रहा है, वो भी मायने रखता है.
घोड़ा गाड़ी के आगे नहीं, गाड़ी के पीछे बाँधने वालों के तर्क मात्र राजनीति हैं, न कि कोई बढ़िया "समाजनीति" ।
ऐसों के साथ मगज़-मारी करने का कोई फायदा नहीं.
बकने दीजिए. लिखने दीजिए .इग्नोर करिए. कम से कम कमेन्ट संख्या तो बढ़ाते हैं. वो भी ज़रूरी है. सो बने रहने दीजिये .

सर गंगा राम की मूर्ति

सर गंगा राम की एक संगमरमर की मूर्ति लाहौर में माल रोड पर एक सार्वजनिक चौक में खड़ी थी। प्रसिद्ध उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो ने उन लोगों पर एक व्यंग्य लिखा जो विभाजन के दंगों के दौरान लाहौर में किसी भी हिंदू की किसी भी स्मृति को मिटाने की कोशिश कर रहे थे। 1947 के धार्मिक दंगों के दौरान लिखी गई उनकी व्यंग्य कहानी "द गारलैंड" में....लाहौर में एक उग्र भीड़ ने एक आवासीय क्षेत्र पर हमला करने के बाद, लाहौर के महान लाहौरी हिंदू परोपकारी सर गंगा राम की प्रतिमा पर हमला किया। उन्होंने पहले पथराव किया। पत्थर से मूर्ति; फिर उसके चेहरे को कोयले के तार से दबा दिया। फिर एक आदमी ने पुराने जूतों की माला बनाई और मूर्ति के गले में डालने के लिए ऊपर चढ़ गया। पुलिस पहुंची और गोली चलाई। घायलों में माला वाला साथी था जैसे ही वह गिर गया, भीड़ चिल्लाई: "चलो उसे सर गंगा राम अस्पताल ले जाएं"....

विडंबना यह है कि वे उसी व्यक्ति की स्मृति को मिटाने की कोशिश कर रहे थे जिसने उस अस्पताल की स्थापना की थी जहां उस व्यक्ति को ले जाया जाना था। जो उसकी जान बचा रहा है। कंटेंट मेरा लिखा नहीं है, विकिपीडिया से लिया है. और मैंने सुना है कि इन्हीं सर गंगा राम के नाम पर दिल्ली में गंगा राम अस्पताल है.

कब्जा

सब देश जमीन कब्जा कर बनते हैं, जितना कब्जा उतना बड़ा देश. यह कब्जा घटता-बढ़ता रहता है. एक-दूसरे पर हमला करते रहते हैं. जमीन की छीना-झपटी करते रहते हैं. सीमा-विवाद चलते रहते हैं.

लेकिन हाँ, आपको जमीन खरीद के ही मिलेगी. बाकायदा रजिस्ट्री होगी तभी जमीन आपको मिलेगी. वही जमीन जो हो सकता है, आपकी सरकार ने, मुल्क ने, समाज ने छीनी हो किसी और से.
इस सब के चलते धरती माता हैरान है कि उसे लोग माता भी कहते हैं और उसकी बेच-खरीद भी करते रहते हैं! बेचारी माता!!

Belief System

धर्म को अंग्रेज़ी में Belief System भी कहते हैं.

Belief System यानि विश्वास व्यवस्था. कुछ विश्वासों पर टिकी व्यवस्था.
विचार नहीं, ज्ञान नहीं, विज्ञान नहीं बस विश्वास. कुछ विश्वासों का टोकरा. "कोई" दुनिया बनाने वाला है, चलाने वाला है, बिगाड़ने वाला है. अब यह "कोई" सब का अलग है, अलग ढँग से काम करता है.
कभी सोचते हैं, ये विश्वास व्यवस्थाएं विश्वासों पर नहीं अंध-विश्वासों पर टिकी हैं और इन व्यवस्थाओं ने पूरी दुनिया को अव्यवस्थित कर रखा है.
सोचते हैं कभी?

वैक्सीन के फ्रंट-बेक-साइड इफ़ेक्ट

ये क्या बकवास है? जिस ने वैक्सीन नहीं लगवाई वो ऑफिस नहीं जाएगा, फ्लाइट नहीं ले पायेगा, दुकान नहीं खोल पायेगा?

मतलब सवाल भी तुम, जवाब भी तुम.

बीमारी भी तुम ने तय कर दी और इलाज भी तुम ने थोप दिया. अच्छे भले लोगों पर वैक्सीन को थोप दिया. वो वैक्सीन जिसके लगवाने से फ्रंट-बेक-साइड इफ़ेक्ट की, काले-पीले फंगस की ज़िम्मेदारी वैक्सीन बनाने वाले भी नहीं ले रहे.
क्या है बे ये?

UPSC

UPSC. ये कोई इम्तिहान होता है. पार करते ही बनते हैं भारत में सबसे बड़ा अफ़सर. IAS. IPS. और ये बनते ही गाड़ी-घोड़ा, कार-कोठी, रौब-रुतबा सब हाज़िर.

चलिए बता दूं. मेरी नज़र में ज़्यादातर सरकारी नौकर मंद-बुद्धि और बंद-बुद्धि होते हैं जिन को फाइल में क्या है वो तब तक नहीं दिखता जब तक उन की जेब गर्म न की जाए. ज़्यादातर ये बदतहजीब और रिश्वत-खोर होते हैं. आज तक IAS हो IPS हो या कोई भी और, इन्होने प्रशासनिक सेवाओं में कुछ भी सुधार नहीं किया है. ये लकीर के फकीर रहे हैं. रट्टू-तोते.निरे बुद्धू,अविष्कार करने वाली बुद्धि ही कुछ और होती है.

गोडसे द्वारा गाँधी वध

मुझ से भाईजान बहस रहे थे.

उन्होंने कहा, "इस्लाम शांति का मज़हब है."

मैंने कहा, "तो फिर जगह-जगह बम बने क्यों फटते फिरते हैं मुस्लिम?"
"ऐसा बिलकुल नहीं है. वो तो उनको बदनाम किया जाता है. असल आतंकी तो संघी हैं, इन्होने गाँधी को मार दिया."
"लेकिन दोनों में फर्क है भाई. मुस्लिम कत्ल इसलिए करते फिरते हैं चूँकि इस्लाम फॉलो नहीं हो रहा. और गांधी इसलिए मारे गए चूँकि मुल्क बंटा चूँकि हिन्दू-मुस्लिम साथ नहीं रह सकते थे, लेकिन फिर भी मुस्लिम को भारत में बने रहने दिए गए. जिस वजह से मुल्क बंटा उन्होंने वो वजह भी बनी रहने दी और मुल्क के टुकड़े भी करा दिए. सिर्फ इतना ही नहीं हुआ लाखों लोग बेघर हुए, दर-बदर हुए. कितने ही बलात्कार हुए, कत्ल हुए. गाँधी और उन का 'इश्वर-अल्लाह तेरों नाम' का गलत फलसफा इस का ज़िम्मेदार था. तो भाई जी ज़रूरी नहीं कि आप कत्ल गन से ही करते हों. आप कत्ल किताब से भी करते है. ज़रूरी नहीं आप वार तलवार से करते हो, आप वार विचार से भी करते हो. और यही था गाँधी का वार. विचार का वार. गलत विचार का वार. अहिंसा के पुजारी की हिंसा. अब बदले में हिंसा मिली, हत्या मिली तो उसका ज़िम्मेदार कौन है? गाँधी खुद. वो सिर्फ अपनी ही नहीं, लाखों हिन्दू-मुस्लिम की हत्या के ज़िम्मेदार हैं और नाथू राम गोडसे की फांसी के भी ज़िम्मेदार हैं. तो यह है फर्क. ध्यान से देखिये. कौन आतंकी है. मुस्लिम का आतंकी बन जाना, यूरोप, अमेरिका, भारत में बम-बारूद बन जाना और गोडसे का गांधी को मारना दोनों ही अलग हैं. ठीक से देखना सीखो, ठीक से दिखना शुरू हो जायेगा."

तुषार कॉस्मिक

Monday, 31 May 2021

को.रो.ना. -- कोई षड्यंत्र है क्या?

नमस्कार, मैं  तुषार कॉस्मिक

कोरोना असल में है या फर्ज़ी है, इसे तय करने के दो तरीके बता रहा हूँ. 

अंग्रेज़ी दवाओं के, वैक्सीन के वर्षों तक ट्रायल होते हैं, फिर बाजार में उनको उतारा जाता है. मैं और मेरे अलावा दुनिया के बहुत से लोग, अलग-अलग मुल्कों के लोग, डॉक्टर, पैथोलोजिस्ट कोरोना को फ़र्ज़ी बता चुके हैं  या इस सारी कोरोना कथा में छेद देख रहे हैं. एक तरीका है हम जैसों को संतुष्ट करने का. एक एक्सपेरिमेंट. मेरे जैसे लोगों में से 1000-2000 लोग लिए जाएं, जो न मास्क लगाएंगे, न वैक्सीन लेंगे. बस योग-व्ययाम  करेंगे,  प्राणायाम करेंगे, फल सब्ज़ियां मेवे खायेंगे, दिन में पेड़ों के नीचे खुली हवा लेंगे, सुबह की धूप लेंगे. इस के अलावा इन को प्रेरणादायक, उत्साहवर्धक किस्से, कहानियां, भाषण सुनाए जाएंगे.  देखिये तो उनमे कितने बीमार होते हैं? मरते हैं? वालंटियर मिल जाएंगे, विश्वास है मुझे. कर के तो देखिए एक तज़ुर्बा. पता लगेगा कोरोना है भी या बस डर का खेल ही है?

कोरोना वाकई कुछ है या नहीं, इस बात की तह तक जाने का एक और आसान तरीका है. वो यह कि जिन भी लोगों पर मेरे जैसे तथाकथित Conspiracy  Theorist शंका कर रहे हैं, उनका lie detector Test, Narco Test  करवाया जाए. विभिन्न देशों के प्र्धानमंत्रों, राष्ट्रपतियों और बिल गेट्स  और अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर Fauci  और एलन Musk  आदि के Lie detector Test, Narco Test करवाए जाएँ. इनसे उन टेस्ट में यह भी पूछा जाये कि  इन्होने अपने परिवारों को, अपने बच्चों को, खुद को कोरोना से बचाने के लिए कौन सी वैक्सीन लगवाई है. 

क्या सोच रहे हैं? यह नहीं हो सकता. हो सकता है. जब आधी दुनिया पर RT-PCR   टेस्ट किया जा सकता है तो इन लोगों पर lie detector Test, Narco Test  भी किये जा सकते हैं. पता तो लगे , माजरा क्या है. पूरी इंसानियत का सवाल है आखिर. 

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बड़ा सवाल है कोरोना है और कोरोना से लोग मर रहे हैं. लेकिन मेरा मानना कुछ और है. 

ओशो ने एक कहानी सुनाई है, सुनाता हूँ बात क्लियर हो जायेगी.  

बर्नार्ड शॉ जब कोई साठ  साल के आस-पास के हुए  लंदन छोड़ दिया और दूर कहीं गाँव में जा बसे. क्यों? चूँकि उस गाँव के कब्रिस्तान से गुजरते हुए उन्होंने कब्र के एक पत्थर पर पढ़ा, "यहाँ सौ साल की कम उम्र में गुज़र जाने वाला  व्यक्ति सो रहा है." 

वो वहीं रुक गए. जहाँ सौ साल की उम्र में गुज़रे व्यक्ति को भी कम उम्र का समझा जा रहा हो, ऐसा गाँव निश्चित ही रहें लायक है. और वो वहीं बस गए और तकरीबन सौ साल ज़िंदा भी रहे. इतना ज़्यादा असर पड़ता है समाजिक मान्यताओं का इंसान की सेहत, उम्र और मौत पर. कलेक्टिव सम्मोहन. जिस समाज, जिस व्यक्ति  ने मान लिया कि बीमारी है, बीमारी है तो वो बीमार हो ही जायेगा. इसे NOCEBO  Effect  भी कहते हैं. जिस समाज ने, जिस व्यक्ति ने मान लिया कि  वो स्वस्थ है, स्वस्थ रहेगा तो वो स्वस्थ रहेगा. इसे Placebo  Effect  कहते हैं. अभी आपने देखा नकली Remidisivir  से भी ९० प्रतिशत लोग ठीक हो गए. मुझे लगता है कि कोरोना का डर, यह डर  कहीं घातक साबित हुआ है. 

मेरा एक लेख है, "आओ जादू सिखाता हूँ", इसमें मैंने दो मिसाल दीं हैं. पहली मिसाल बुधिया सिंह है.  एक छोटा बच्चा।  दूसरी मिसाल फौजा सिंह हैं. फौजा सिंह १०० साल से ज़्यादा  के हैं और मैराथन चैंपियन रहे हैं अपने ऐज  ग्रुप में.  ऐसे लोग किसी तरह से समाज ने जो लकीरें थोप रखीं होती हैं उन से बच गए और वो कर गए जो आम तौर पे लोग नहीं कर पाते. 

मेरी समझ यह है कि इंसान की सेहत, उसकी उम्र, उसकी मौत पर उसकी मानसिकता और उसकी मनोस्थिति  बहुत ही ज़्यादा असर डालती है. 

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या कोरोना के डर से हुईं? यह भी सवाल है.  

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या वैसे ही होनी होतीं औसतन, वही हुईं? यह भी सवाल है. आंकडें हैं क्या हमारे पास? ध्यान दीजिये महा-मारी में भी यदि जनसंख्या बढ़ रही हो तो महा-मारी को महामारी कहा जाए या नहीं? सवाल तो है. गूगल कीजिये  Worldometers.info  जनसंख्या बढ़ती हुई दिखा रहा है. लेकिन हो सकता है मौत का आंकड़ा कुछ बढ़ा भी हो. आईये थोड़ा आगे देखिये. 

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या बाकी बीमारियों का  इलाज न मिलने से हुई या अफरा-तफरी  से हुईं  या बद -इन्तेज़ामी से हुईं, यह भी सवाल है.  ध्यान कीजिये भारत में सरकारी अस्पताल कोई बहुत अच्छे नहीं हैं, एक ही बेड  पर दो-दो लोग देखें हैं मैंने.  

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या कोरोना के इलाज में गलत-शलत इलाज  देने से हुईं यह भी सवाल है. याद कीजिये  कोरोना के बहुत से तथाकथित इलाज सरकार खुद बंद कर चुकी है.  पिछले साल Hydroxychloroquine कोरोना की दवा बताई जा रही थी,  फिर प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा था, फिर Remdesivir दी जा रही थी. अब ये सब दवा कोरोना की दवा नहीं मानी जा रहीं.  इन दवाओं ने कितना नुक्सान किया, किसे पता है? 

यहाँ एक पॉइंट और क्लियर करना चाहता हूँ, जो लोग डॉक्टरों की मौतों का हवाला दे कर कोरोना का अस्तित्व साबित करना चाहते हैं, उन्हें बता दूं कि डॉक्टर भी उन्ही सब भ्रमों का शिकार हैं, जिनका आम इन्सान शिकार है. मेरे पास खबर है, डॉक्टर की आंत में फंगस हो गया चूँकि गलत दवा दी गयी उन को.  हमारे यहाँ पढाई किस तरह से होती है सब को पता है. पढ़ाई कोई अनुसन्धान करने के लिए, कोई विश्लेष्ण करने के लिए, कुछ discover करने के लिए, कोई इन्वेंशन करने के लिए नहीं होती. पढ़ाई का एक मात्र उद्देश्य डिग्री हासिल कर के पैसा कमाना होता है. हमारे डॉक्टरों ने कोरोना के अस्तित्व को समझने के लिए कोई अलग से एक्सपेरिमेंट नहीं किये हैं. वो सिर्फ सरकार का कहा मान कर काम रहे हैं और सरकार WHO का कहा मान कर काम कर रही है. 

एक और पॉइंट है, यदि कोरोना कुछ नहीं है तो लोग ऑक्सीजन के लिए एका-एक क्यों चीख-पुकार लगाये हुए थे. मेरा मानना यह है कि लोगों ने ऑक्सीजन अपने से नहीं माँगी होगी. आम-जन को कैसे पता कि उसे ऑक्सीजन चाहिए. हाँ, उसे साँस लेने में दिक्कत ज़रूर महसूस हुई होगी. Breathlessness महसूस हुई होगी. इस की फौरी राहत ऑक्सीजन सुझाई गयी डॉक्टर्स द्वारा. लेकिन सवाल यह है कि Breathlessness क्यों महसूस हुई लोगों को. उसका जवाब मेरी तरफ से यह है कि खांसी-नज़ला-ज़ुकाम पहले भी होता था लोगों को और ऐसा अक्सर होता था कि नाक बंद हो और बंद नाक की वजह से ठीक से साँस न आ पा रही हो. या खांसते-खांसते इन्सान बदहवास सा हो जाये और उसे Breathlessness महसूस हो. लेकिन चूँकि अब कोरोना का डर है तो इस डर ने इस Breathlessness को कहीं ज़्यादा गुणित कर दिया, multiply कर दिया.   

अभी विवाद चल रहा है एलॉपथी और आयुर्वेद का.......यहाँ मुझे राम देव  ज़्यादा सही लगते हैं. सब जगह सही नहीं लगे  लेकिन यहाँ सही है. एलॉपथी बिलकुल इस्लाम की तरह है. इनकी नज़र में आयुर्वेद, हिकमत, नेचुरोपैथी, होमियोपैथी , हिप्नोथेरपी कोई ख़ास माने नहीं रखती. .........और ये तन से शुरू करती है ......मन के प्रभाव  को इग्नोर कर देती है...जबकि अभी मैंने आपको बताया कि  इंसान के  जीवन-मरण में उसकी मानसिकता का बहुत बड़ा प्रभाव  होता है. 

डॉक्टर बस प्रिस्क्रिप्शन लिखता है और हजार रुपये ले लेता है. यह कंसल्टेशन नहीं है. कंसल्टेशन  मतलब सलाह, वो कोई सलाह थोडा न देता है, वो बस दवा क्या लेनी है, कैसे लेनी है यह बताता  है.........थोडा बहुत कुछ और बस. 

आयुर्वेद  सब बताता है क्या खाओ, क्या न खाओ, क्या पीयो, पीयो,  कैसे जीओ. आयुर्वेद, आयु का वेद है.  

प्राणयाम साँस द्वारा ली जाने वाली हवा को सिर्फ हवा नहीं मानता, वो इसे प्राण मानता है, तो प्राण को विभिन्न आयाम देने की विधियों को प्राणायाम कहा  है हमने. प्राणायाम मात्र साँस के प्रयोगों से आपके प्राणों में  प्राण डालता है, जान डालता है. 

सम्मोहन, यह भी अपने आप में एक शक्तिशाली विधा है. नकली दवा से भी लोग ठीक हो गए, बताया ही है मैंने. यह सम्मोहन है.  

नेचुरोपैथी कहती है कि आप हवा, पानी, मिटटी, सूरज की रौशनी अदि से ही बीमारियों का इलाज कर सकते है. और बिलकुल ठीक कहती है. असल में हम मिटटी, हवा, पानी, आकाश , अग्नि से ही तो बने हैं. यही तो कुदरत है. मिटटी में लौटना, खुली हवा में साँस लेना, साफ़ पानी पीना, नरम धुप लेना यह सब नेचुरोपैथी है. स्वस्थ शब्द का मतलब ही है स्वयं में स्थित होना. और कुदरत के साथ रहना स्वयं में स्थित होना ही होता है इसलिए तो आप घरों में धुआं उगलती हुई फैक्ट्री के चित्र नहीं लगाते, आप पेड़, पौधों, नदी, पहाड़ के चित्र लगाते हैं. यही नेचुरोपैथी है.  

क्या कोरोना का अस्तित्व तय करने में और कोरोना के इलाज में सरकार ने एलॉपथी से हट के जो भी प्रमुख इलाज की विधियाँ हैं,  उन विधियों के विशेषज्ञों से सलाह ली, उन विधियों का प्रयोग किया? नहीं किया. 

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यहाँ एक और मुद्दा गौर-तलब है. जो भी लोग कोरोना को फ़र्ज़ी बता रहे हैं उनको Conspiracy  Theorist  बताया रहा है. Conspiracy  Theorist  कौन हैं?

हर मुद्दे को  बेवजह साज़िश समझने वाले, साज़िश देखने वाले लोग. यह बढ़िया है. गुड. बस किसी संज्ञा विशिष्ठ का ठप्पा मार के सवाल खड़े करने वाले का चरित्र-हनन  कर दो. उसकी बात की अहमियत ही खत्म कर दो. कुछ मिसाल देना चाहता हूँ. जिस वक्त सुकरात को ज़हर  दिया गया तो उन पर आरोप यही था कि  वो युवाओं को भड़का रहे हैं, भ्र्ष्ट कार रहे थे.  व्यवस्था खराब कर रहे थे. वो उस वक्त के Conspiracy  Theorist थे. जीसस भी वही थे Conspiracy  Theorist. जॉन  ऑफ़ आर्क भी वहीं थीं Conspiracy  Theorist. गैलेलिओ  भी वही थे Conspiracy  Theorist. तभी तो ऐसे लोगों को या तो मार दिया गया या कष्ट दिया गया. क्या कुछ भी मान लेने वाले लोग ही सही होते हैं? असल बात यह है कि जो लोग सोचते हैं, तर्क करते हैं, सवाल उठाते हैं वो हमेशा ही Conspiracy  Theorist नजर आयेंगे। मेरी गुज़ारिश है,  ठप्पा मत मारें, सवाल उठाने वालों का मुंह बंद न करें। उनके सवालों का सामना करें और जवाब दें.  

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जवाब दीजिये कि  कोरोना कथा Contagious  फिल्म से क्यों इतना मिलती है कि  ऐसे लग रहा है जैसे फिल्म को असल ज़िंदगी में फिट कर दिया गया हो. 

जवाब दीजिये कि  वर्ल्ड बैंक वेबसाइट पे यह क्यों मेंशन है कि 2018  में ही 382200 कोरोना टेस्ट किट दुनिया के विभिन्न मुल्कों में पहुंचा दी गईं थी. 

जवाब दीजिये कि October 2019 में बिल गेट्स फाउंडेशन और जॉन हॉपकिंस सेंटर  द्वारा जो इवेंट 201 आयोजित किया गया था, वो कोरोना महामारी की एक दम  रिहेर्सल जैसा क्यों था?  और इसके ठीक बाद दिसम्बर 2019 में ही कोरोना का पहला केस कैसे मिल गया? इतना संयोग कैसे?

जवाब दीजिये कि आपने WHO  के कथन को ब्रह्म वाक्य कैसे मान लिया? WHO  द्वारा बताई बीमारी को बीमारी मान लिया, उसके बताये इलाज को इलाज मान लिया, अंतिम क्रिया तक को लिफ़ाफाबंद क्यों कर दिया WHO  के कहे अनुसार? आपने लोगों को अपने हिसाब से इलाज क्यों चुनने नहीं दिया? आपने दुनिया जहां की जो इलाज पधतियों को लोगों के इलाज का मौका क्यों नहीं दिया? 

डॉक्टर बिसरूप चौधरी शुरू से बता रहे हैं कि तथाकथित  कोरोना मरीज़ों का इलाज बिना दवा के कर सकते हैं, सिर्फ खान-पान बदल कर. उनको खुल कर मौका क्यों नहीं दिया गया? 

बाबा रामदेव कह रहे हैं कि  वो पूरा कोरोना मैनेजमेंट अपने हाथ में लेने को तैयार हैं, उनको एक्सपेरिमेंट के तौर पे ही सही, कुछ मौका शुरू क्यों नहीं दिया गया?

दक्षिण भारत के एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर है  BM Hegde जी. कोरोना पर, इम्युनिटी पर उनकी सलाह ली क्या सरकार ने? या आम-जन को उनकी सलाह लेने की सलाह सराकर ने दी क्या? जवाब दीजिये

जवाब दीजिये डॉक्टर विलास जगदाले को, डॉक्टर tarun कोठारी को  जो कोरोना को पूरी तरह षड्यंत्र बता रहे हैं, वो गलत हैं क्या? 

उठते सवालों पे मौन मत रहिये, जवाब दीजिये. 

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एक  सवाल  मैं पूछता हूँ ..... आपको कोई दिक्क्त-तकलीफ होगी तो आप ही तो डॉक्टर से सम्पर्क करोगे और उसे बताओगे कि  आप सही फील नहीं कर रहे? या कोई भी डॉक्टर आप के  घर आएगा और आपको बताएगा कि  आप बीमार हैं  और आप मान जाएंगे कि  हाँ, यार मैं बीमार हूँ? सोचिये. बड़ा ही सिंपल सा सवाल है. 

जवाब यह है,  अगर दिक्क्त परेशानी आपको है तो आप ही डॉक्टर के पास जाते हैं, आप ही बताते हैं डॉक्टर को कि  आपको कोई दिक्क्त है. राइट?

अब याद कीजिये कोरोना की शुरुआत को.  भारत को कैसे पता लगा कि  कोरोना भी कोई बीमारी है? भारत को खुद से पता लगा कि  कोरोना कोई बीमारी है या उसे बताया गया? याद कीजिये. भाई जी, भारत, वो भारत जहाँ दुनिया की लगभग २०% आबादी रहती है, उसे कुछ पता नहीं था कि  कोरोना किस चिड़िया का नाम है जब कोरोना  को बीमारी नहीं, महामारी नहीं, वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया WHO  द्वारा. वैश्विक महामारी, जबकि २०% विश्व को कुछ पता ही नहीं था ऐसी किसी महामारी का, क्योंकि यहाँ कोई महा-मारी हुई ही नहीं थी.  लेकिन डॉक्टर ने, यानि WHO ने  बताया कि  महामारी है तो एक भले चंगे इंसान यानि भारत जी ने मान लिया कि  बीमारी है. 

क्या हमारे प्रधान मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री का यह फ़र्ज़ नहीं बनता था कि  वो पूछते कि  किस आधार पर मान लें कि  कोरोना कोई घातक वायरस है. ठीक है, आपका टेस्ट RT -PCR  बता रहा है कि  कोरोना है तो मान लेते हैं कि  है लेकिन उस वायरस से क्या नुक्सान हो रहा है इसके आंकड़े कहाँ है?मौतें? मौत तो हज़ार वजह से हो सकती है. आपका टेस्ट कोरोना बता भी दे तब भी. कैसे  पता कि  मौत किसी और वजह से नहीं हुईं और सिर्फ और सिर्फ कोरोना से ही हुईं हैं?   

एक कमरे में प्रोफेसर मोरीआरटी की मौजूदगी मात्र से ही शर्लाक होल्म्स मान लेगा क्या कि  कत्ल मोरीआरटी  ने ही किया है जबकि वहां सैकड़ों लोग और मौजूद  थे और कत्ल किसी ने भी किया हो सकता था? 

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क्या हमारी सरकार को WHO  की बात  मानने से पहले यह नहीं पूछना चाहिए था कि  ठीक है हम देखना चाहते हैं कुछ लाशें चीर-फाड़ के. देखें तो सही, समझें तो सही कोरोना कैसे काम करता है?

क्या हमारी सरकार को पूछना नहीं चाहिए था कि  वायरस का साइज क्या है? जब  वो हवा के साथ साँस में जा सकता है तो हवा तो इंसान मास्क लगाने के बाद भी अंदर खींच रहा है साँस द्वारा, फिर वायरस  मास्क होने के बाअवज़ूद शरीर के अंदर जायेगा या नहीं? वायरस का साइज  कितना है? क्या वो कपड़े को पार कर के आती हवा या मास्क के दाएं-बाएं से आती हवा के साथ शरीर में आएगा या नहीं?

नहीं हमारी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया. 

जैसा  मुझे पता है, वो यह कि  WHO  ने  RT-PCR   टेस्ट, और फिर कोरोना का इलाज, और फिर कोरोना से मौत के बाद संस्कार तक का प्रोटोकॉल दे दिया और हमारी सरकार ने उस प्रोटोकॉल को आंख बंद कर के फॉलो किया. अगर यह सही है तो  बस यही  है क्या सरकार का दाइत्व? सरकार अपनी जनता के प्रति जवाबदेय नहीं है क्या , वो WHO  के प्रति जवाबदेय है क्या? सरकार को सरकार भारत की जनता ने बनाया था या WHO  ने? 

सरकार ने WHO  की हर बात को फॉलो किया और अपनी जनता से करवाया. 

WHO  ने कहा, जिनके कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आ रहे हाँ, वो बीमार  हैं, सरकार ने अपने लोगों से मनवा दिया कि  वो बीमार हैं, 

WHO  ने बताया कि  प्लाज्मा इलाज है सरकार ने मान लिया कि  प्लाज्मा इलाज है. WHO  ने बोला  प्लाज्मा इलाज नहीं है, हज़ारों, लाखों लोगों को प्लाज्मा दिए जाने के बाद सरकार ने बोला  प्लाज्मा इलाज नहीं है. 

WHO  ने बोला Remdisivir  इलाज है, सरकार ने हज़ारों लाखों लोगों को Remdisivir  दे दी. फिर WHO  ने बोला  नहीं, नहीं  Remdisivir इलाज नहीं है, सरकार ने बोला, ठीक है Remdisivir इलाज नहीं है. 

स्टेरिओड्स  दवा के रूप में प्रयोग हुए लेकिन अब कहा  जा रहा है की ब्लैक फंगस पैदा ही स्टेरॉइड्स की वजह से हुई है.  इस सबके चलते एक बड़ी हैरानी की बात यह हुई कि  कुछ लोगों ने कहीं नकली Remdisivir की सप्लाई कर दी लेकिन उस नकली दवा से भी अधिकांश लोग ठीक ही गए. 

पहले कहा  गया कि  कोरोना वायरस वाले सरफेस को छूने से फ़ैल सकता है, बाद में बताया गया की सरफेस टचिंग से कोई नुक्सान नहीं होता. 

पहले कहा जा रहा था कि दो गज दूरी,  है ज़रूरी, अभी बताया जा रहा है कि  कम से काम ११ गज कि दूरी होनी चाहिए दो लोगों में यदि कोरोना से बचना है तो.  

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इतनी विसंगतियां. इतनी कॉन्ट्रडिक्शन्स. सोचना बनता कि नहीं?

हो सकता है, मेरी हर बात गलत हो, बकवास हो? मैं कह भी नहीं रहा कि  मैंने ही कोई सब सही-सही बोलने का ठेका लिया है. मैं सिर्फ  यही गुज़ारिश कर रहा हूँ कि  थोड़ सोच -विचार कर के देखिये.   पहले मुर्गी आई या  पहले अंडा आया, यह तो शायद समझ न भी आये लेकिन पहले बीमारी आई या पहले बीमारी का डर, यह शायद समझ आये. सोच के देखिये.  

शुरू से दुनिया भर में शंकाएं ज़ाहिर की  जा रही हैं कि कोरोना फ़र्ज़ी महामारी  है,  जलसे-जूल्स निकल रहे हैं कि कोरोना, lockdown , वैक्सीन सब बकवास है. आप यूट्यूब  पर प्रोटेस्ट अगेंस्ट कोरोना टाइप कीजिये आपको दुनिया भर के लोग सड़कों पर कोरोना कथा का विरोध करते हुए मिल जायेंगे.  

शुरू से कहा जा रहा है कि  कोरोना-कथा  में बिल गेट्स का भी हाथ है. अभी पीछे गेट्स ने भारत में बनी वैक्सीन का विरोध किया. 

अब सुना है कि WHO  भी भारतीय वैक्सीन को मान्यता नहीं दे रहा. अब IMF  कह रहा है भारत एक अरब  वैक्सीन का आर्डर दे. IMF, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, वो यह कह रहा है कि  भारत को एक अरब  वैक्सीन का आर्डर देना चाहिए. IMF? मतलब ऐसी सस्थां  जिसका  मेडिकल वर्ल्ड से सीधे से कोई मतलब नहीं। वो तय करना चाहती है कि  भारत को कितनी वैक्सीन खरीदनी चाहिए. मतलब वैक्सीन लेनी है या नहीं, लेनी है तो कितनी लेनी है  यह भारत तय नहीं करेगा, IMF  तय करेगी. और वैक्सीन भी उन कंपनियों की जो कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं लेना चाहतीं कि उनकी वैक्सीन से कोई मरेगा या बचेगा. क्या है ये सब. पिक्चर साफ़ है. यह सारे फसाद में वैक्सीन बेचने का एजेंडा भी है. थोड़ी सी अक्ल लगाएंगे बात समझ आ जाएगी.  

मैं आम आदमी, मैंने थोड़ी रिसर्च की थी पिछले साल और मुझे कोरोना कथा में तमाम छेड़ दिखाई दे रहे थे. बहुत से देशी-विदेशी लोग कोरोना कथा पर अपनी शंकाएं ज़ाहिर कर रहे थे. Dr. Andrews  Kaufmaan, Dr.Rashid Buttar, David Icke,  डॉ. विलास  जगदाले, डॉ बिसवरूप चौधरी,  जैसे लोगों के कई-कई वीडियो इंटरनेट पर तैर रहे थे. लेकिन भारत ने अपनी तरफ से कोई क्रॉस चेकिंग नहीं की. 

सब उल्ट-फेर सामने दिख रहे हैं.

WHO  ने बोला तीसरी लहर में बच्चे मर सकते हैं, हम  ने मान लिया. अबे, दुश्मन कभी बता के आता है कि  वो कहाँ अटैक करेगा, वो भी वायरस! मतलब वायरस न हुआ कोई दोस्त हुआ जो सारा प्लान बता कर आएगा कि  उसका अगला कदम क्या होगा. हैरानी है. 

अब कहा जा रहा है कि  ऐसी कितनी ही लहरें और आ सकती हैं. पीढ़ियों तक कोरोना रहेगा. लेकिन  पीढ़ियां बचेंगी तब न. लोग तो बेरोज़गारी से, घबराहट से,गरीबी से, भूखमरी से ही मर जाएंगे यदि यही सब चलता रहा था. आगे आने वाली लहरें किसे मारेंगी? लाशों को?  

और  कहा यह जा रहा है कि वैक्सीन ही कोरोना को रोक सकती है. गुड. लेकिन हो तो यह रहा है कि  जिन लोगों ने दो-दो वैक्सीन ले ली, वो भी मर रहे हैं. और वैक्सीन के नतीजे ज़रूरी थोड़ा न है तुरंत आ जाएँ, वर्षों लग सकते हैं, कैसे इतना पक्का हुआ जा सकता है वैक्सीन के प्रति? 

भारत ने डेढ़ साल में यह भी नहीं देखा कि  कहीं ऐसा तो नहीं कि  कोरोना के आंकड़ें जान-बूझ के बढ़ाये जा रहे हों? मैंने पढ़ा पीछे कि  अल्लाहाबाद  हाई कोर्ट ने बोला कि  जो सर्दी-ज़ुकाम से मरे हैं उनका अगर टेस्ट का रिजल्ट नहीं भी आया तो भी उनको कोरोना लिस्ट में डाला जाये. और  ऐसा किया गया लगता भी  है चूँकि अब बाकी बीमारियों से जो लोग मरते थे, वो आंकड़ें किधर गए. कोई स्पष्टीकरण है इस पॉइंट का?. 

अब मैं  पढ़ रहा था, अखबार तो लिखा था  कि  ऐसी वैक्सीन इम्पोर्ट की जाने वाली है जो बिना ट्रायल के ही, सीधे ही भारतियों को लगवाई जाएगी. गुड. लेकिन  मैंने तो यह पढ़ा था कि १०-१५ साल लगते हैं किसी वैक्सीन को बज़्ज़ार में उतारने में  चूँकि बड़ी minutely  स्टडी किया जाता है, कहीं वैक्सीन के कोई एडवर्स इफ़ेक्ट  तो नहीं. मैंने तो यह भी पढ़ा था कि  फाईज़र कम्पनी का भारत सरकार से जो अनुबंध होने जा रहा था वैक्सीन के लिए, उसमें पेच बस इन्डेम्निटी क्लॉज़ पे अटका था. इन्डेम्निटी क्लॉज़..मतलब अगर वैक्सीन  से कोई मर जाए, बीमार हो जाये तो फ़ायज़र क्या हर्ज़ा खर्चा देगी. देगी भी या नहीं. शायद ऐसा ही कोई मामला था. लेकिन हो सकता है मैने गलत पढ़ा हो, आप चेक कर लीजियेगा.  

मैंने तो यह भी पढ़ा कि को-वैक्सीन  बनाने वाले अदार  पूनावाला लंदन चले गए, और उनके पिता भी वहीं चले गए. हो सकता है वैसे ही गए हों, लेकिन मुझे शंका है. वो इसलिए भी गए हो सकते हैं कि वैक्सीन से कोई अनिष्ट हो तो सीधे ही एक दम से पकड़ में न आ जाएं. शंका है मुझे, ज़रूरी नहीं मेरी शंका सही हो. मेरी असेसमेंट गलत भी हो सकती है. 

आज आपके बहुत से सिविल राइट खत्म हैं. आप  ठीक से कमा नहीं सकते, साँस नहीं ले सकते, यार-दोस्त-रिश्तेदार से मिल नहीं सकते, खुल कर शादी-ब्याह नहीं कर सकते, ऐसे में  भी अगर आप नहीं सोचते तो कब सोचेंगे? सोचिये.....मेरी किसी  भी बात का विश्वास मत कीजिये ...सब बकवास हो सकती हैं  .....लेकिन सोचिये तो सही।

सोचिये जैसे जेम्स वाट ने भाप से पतीली के ढक्कन को उठते देख स्टीम इंजन बना दिया, जैसे newton ने गिरते हुए सेब को देख ग्रेविटी को discover किया. सोचिये तर्कशीलता से. सोचिये फैक्ट्स और आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए. सोचिये क्रिटिकल ढंग से. 5-D Stereogram एक ख़ास तरह के चित्र होते हैं. चित्र में चित्र छिपा होता है. बड़े ध्यान से देखने पट छिपा चित्र दिखने लगता है. छिपा चित्र देखने का प्रयास कीजिये. 

बचपन में आप ने छोटे-छोटे  डॉट्स को जोड़ा होगा और जोड़ते ही एक चित्र उभर आया होगा, याद कीजिये, हम सब ने यह खेल खेला होगा. अब फिर जोड़िये.  अलग अलग सूचनाओं को जोड़ के देखिये चित्र उभरने शुरू हो जायेंगे. इसे ही connecting  the dots कहते हैं. 

सोचने के तरीके हैं. सोच के देखिये तो. 

इसी लेख का वीडियो देखना चाहें तो लिंक दिया जा रहा है, देख सकते हैं:--

https://www.facebook.com/tushar.cosmic/posts/10218920599387423

नमस्कार