Monday, 28 June 2021

जायेगा तो मोदी ही

हालाँकि मैं इस लोकतंत्र से बनी सरकारों को जनता कई प्रतिनिधि ही नहीं मानता. वैकल्पिक व्यवस्था मैंने दे रखी है. जिसे बहुत कम लोगों ने देखा, सुना.

********************************

खैर, वर्तमान व्यवस्था में मैने जो समझा वो यह कि इस्लाम के अंधेरों से बचाने के लिए मोदी सरकार ही सही है. लेकिन यह सरकार बाकी सब मुद्दों पर फेल है. इनको कुछ नहीं पता क्या काम करना है, कैसे करना है. कोई ट्रेनिंग नहीं. आरएसएस की शाखाओं में भी नहीं. बस मौज मार रहे हैं इडियट्स.

और सबसे बड़ी बात, मोदी सरकार आज वैसे ही घमण्ड में दिखती है जैसे एक समय कांग्रेस दिखती थी.

हो सकता है कृषि कानून सही हों, लेकिन विरोध में बैठे किसानों को भी कोई हल देना बनता था, बनता है कि नहीं?

इन कानूनों को राज्य सरकारों के ऊपर क्यों नहीं छोड़ दिया गया?

और इन कानूनों का जब विरोध शुरू हुआ तो जन-जन में जा कर, गली-गली जा कर इन कानूनों के विरोध में उठते पॉइंट्स को क्लियर क्यों नहीं किया गया?

और फिर इन कानूनों पर ही जनता का वोट क्यों नहीं ले लिया गया?

यदि किसी राज्य विशेष के लोग नहीं चाहते कि इन कानूनों से जो विकास मिलना है वो मिले तो क्यों जबरन उस तथा-कथित विकास को थोपना?

याद रखना मेरी बात, वरना जायेगा तो मोदी ही.

********************************

और
सब से बड़ी बात!

दुनिया-जहां में कोरोना को नकली बताया जा रहा है. भारत में भी अनेक लोग इसे बीमारी मान ही नहीं रहे. डॉक्टर भी. लेकिन मोदी सरकार है कि इडियट की तरह वैक्सीन लगाने पर जोर दिए जा रही है. मतलब जो एजेंडा WHO ने पकड़ा दिया, बस वही पेले जा रही है-धकेले जा रही है.

अबे, विरोध में उठते स्वरों को सुन तो लो. जन-जन को सुनने तो दो. फिर देखो, जनता खुद ही तय कर लेगी कि अफवाह क्या है और सच्चाई क्या है. या बस यही सीखा है कि प्रचार से, लगातार प्रचार से, धुआंधार प्रचार से कुछ भी बेचा जा सकता है.

इडियट्स!

याद रखना, सब लोग रोबोट नहीं होते, कुछ प्रचार की मोटी दीवारों को भेद कर सच्चाई देखने की क्षमता भी रखते हैं. सबको अपने जैसा चूतिया मत समझो. बल्कि उन की सुनो, ताकि कुछ अक्ल तुम्हारे भेजों में भी भेजी जा सके.

वरना
याद रखना मेरी बात, "जायेगा तो मोदी ही."

********************************

और इस फर्ज़ी बीमारी, महा-मारी को असली मान कर, मनवा कर मोदी सरकार ने असली हाहा-कारी मचाई है. लॉक-डाउन लगा-लगा कर जन-जन को बेरोजगार किया है. ऐसे `में महान मोदी सरकार घर-घर खुल्ला राशन- पानी, मुफ्त बिजली -पानी और हर सुविधा देती तो फिर कहने के हकदार थी, "घर में रहो, सुरक्षित रहो." लेकिन मोदी सरकार ने उल्टा किया. महंगाई को बढने दिया. इतना की खाने के लाले पड़ रहे हैं. "घर-घर मोदी, चर गया मोदी."

सम्भल जाओ
वरना
"जायेगा तो मोदी ही."

********************************

यदि मेरी बात न समझी गयी तो जल्द ही "जायेगा तो मोदी ही"

तब्दील हो जायेगा, "मोदी तो गीयो में."

********************************
नमन
तुषार कॉस्मिक

Sunday, 20 June 2021

Holy-shit

 ईसाई रविवार को छुट्टी रखते थे और चर्च जाते थे. सो इन्होने इस दिन को Holiday कहना शुरू कर दिया. लेकिन जैसे-जैसे ईसाईयों में धर्म के प्रति मोह घटना शुरू हुआ तो वहां Holy-crap यानि पवित्र कचरा और Holy-shit यानि पवित्र टट्टी जैसे शब्द भी चलन में आ गए. .... हमारे यहाँ पता नहीं ऐसा कब होगा?

Thursday, 17 June 2021

जन्नत की हकीकत

 "जानते हैं जन्नत की हकीकत हम भी ए ग़ालिब.

मगर दिल के बहलाने को ख्याल अच्छा है."

इस्लाम अमन-पसंद है?

1450 सालों से तीर-तलवार, बम-बनूक से मुस्लिम दुनिया को समझा रहे हैं कि इस्लाम अमन का दीन है, लेकिन अभी भी दुनिया के बहुत से ढीठ लोग मान ही नहीं रहे. बिला शक 50 से ज़्यादा मुल्क तो मान गयें है.

वाह!
वल्लाह!!
सुभान-अल्लाह!!
माशा-अल्लाह!!!
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
बाकी भी मान जाएंगे.
इंशा-अल्लाह!!!!
तुषार कॉस्मिक

मैं कौन

 हे पार्थ, मैं हरामियों में महा-हरामी हूँ और शरीफों में महा-शरीफ हूँ. मैं तुषार हूँ. तुषार कॉस्मिक.

एक और फ्रॉड

 बहुत से फ्रॉड चलते हैं दुनिया में. एक रोज़ होता है तुम्हारे साथ.

तुम से कहा गया कि मसाले ज़्यादा मत खाओ, अचार मत खाओ. असल में ये दोनों दवा है.
लहसुन, अदरक, साबुत नीबूं, किस चूतिया ने कहा कि ये नुकसान करते हैं?
सौंठ, काला नमक, सेंधा नमक, काली मिर्च, दाल चीनी, जीरा, धनिया, पुदीना ये किस ओवर-स्मार्ट इडियट ने समझाया कि हानिकारक हैं?
असल में अंग्रेज़ी दवा-अंग्रेज़ी डाक्टर चलाने के लिए तुम्हारी रसोई में रखी दवाओं के प्रति तुम्हें शंकालु बना दिया गया.
और फ़िर
"In search of Gold, you lost the Diamonds."

मैं भी कबीर

"कंकण्ड पत्थर जोड़ के मस्ज़िद लियो बनाये

ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय"


अब इस पे भाई-जान कहते कि ये खुदा नहीं, मुसलमान को बुलाने को बांग दी जाती है, तो भी मैं कहना चाहता हूँ


"कंकण्ड पत्थर जोड़ के मस्ज़िद लियो बनाये

sms के ज़माने में, ऊँची-ऊंची बांग दे, मोहल्ला दियो जगाए"


कैसी रही?

रेस्पेक्ट

यदि देश-विदेश में community-wise सर्वेक्षण किया जाए कि कौन सी भारतीय कम्युनिटी की कितनी रेस्पेक्ट है तो मेरे हिसांब से नीचे दी गई तालिका फिट बैठेगी. तालिका में नम्बर 1 पर सबसे ज़्यादा रेस्पेक्ट पाए जाने वाली कम्युनिटी को रखा है मैंने. फिर नम्बर 2 पर उससे कम और नम्बर 3 पर उससे कम. ऐसे चल रही है यह तालिका. 

1.सिक्ख

2.जैन

3.बौद्ध

4.पारसी

5.हिंदू

6.मुस्लिम

बाकी आप बताएं.

तालिका गलत भी हो सकती है, आप अपनी राय दें.

Tuesday, 15 June 2021

Religion is Fraud

Religion
is
Fraud.


Focus
on
Reason. 

लिखो तो ऐसे लिखो

मूंछे हों तो नत्थू लाला जैसी वरना न हों. 

लिखो तो जबरस्त, वरना न लिखो. 

ज़बरदस्त. 

जिसे पढ़ने लग जाएँ दस्त. 

उड़ा जाए डस्ट. 

कर दे बे-वस्था को पस्त, अस्त-व्यस्त.

कौन हैं ये चूतिये, जिन्हें प्रोफेशनल कहा जाता है ?

तुम्हें पता है डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट को प्रोफेशनल कहा जाता है. मतलब उनका प्रोफेशन ही प्रोफेशन है, वही प्रोफेशनल हैं बस.  बस. बकवास बात है. मेरी नज़र में  तो किसी भी काम  सही ढंग से करने वाला प्रोफेशनल है. चाहे जूते गांठने वाला हो, चाहे बाल काटने वाला हो, चाहे नाली साफ़ करने वाला हो

जिस दिन समाज  में एक गटर साफ़ करने वाले जमादार और एक दांत साफ़ करने वाले डॉक्टर को बराबर सम्मान और बराबर इज्ज़त मिलने लगेगी, समझना समाज सही दिशा में है.

तुम्हें पता है वकील, डॉक्टर, चार्टर्ड-अकाउंटेंट को प्रोफेशनल कहा जाता है. मतलब अपने-अपने  प्रोफेशन के परफेक्ट  लोग. लेकिन असल में ऐसा बिलकुल नहीं  है. सबूत यह है कि ये अपने काम को 'प्रैक्टिस' करना बोलते हैं. यानि अपने काम की प्रैक्टिस कर रहे हैं. सही से सीखे नहीं है, प्रैक्टिस कर-कर के उसे ठीक से सीखने का प्रयास कर रहे हैं. वो प्रैक्टिस किस पर की जा रही है? आप पर

वर्तमान राजनीति पर एक दृष्टि

गॉडफादर फ़िल्म में डॉन कोर्लेओनी कहता है, " नजदीक के छोटे फायदे से दूर का बड़ा नुकसान भी होता हो तो भी ज्यादातर लोग नजदीक का फायदा चुनते हैं। क्योंकि लोग दूर-दृष्टि के रोग से पीड़ित होते हैं। क्योंकि लोग मूर्ख होते हैं।"

मैं सहमत हूँ, ये जो दिल्ली के लोग केजरीवाल को इसलिये वोट देते हैं कि वो ये चीज फ्री दे रहा है-वो चीज फ्री दे रहा है, वो लोग क्युटिये हैं। केजरीवाल मूर्ख है, जो गाँधी के 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' के दर्शन को पकड़े है, बिना अल्लाह वालों से पूछे कि क्या वो भी यही मानते हैं या 'अल्लाह -हु-अकबर' मानते हैं।

इस्लाम किसी और दीन-धर्म को जगह नहीं देता. अल्लाह-हु-अकबर. अल्लाह है सबसे बड़ा. ला-इल्लाह-लिल्लाह. नहीं कोई पूजनीय अल्लाह के सिवा. बात खत्म. 

मेरी समझ यह है कि मुस्लिम कभी भी भाजपा को वोट नहीं देगा. उसे क्लियर है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी है.  वो मोदी सरकार से मिले फायदे तो उठा लेगा लेकिन वोट फिर भी नहीं देगा बल्कि भाजपा को हराने के लिए हर सम्भव प्रयास करेगा लेकिन गैर-मुस्लिम बुद्धू है, वो केजरीवाल जैसे लोगों से मिल रहे फायदे में बह जाते हैं और उसे जिता देते हैं. वो इस्लाम के सामाजिक, वैचारिक, आर्थिक  खतरों को नहीं समझते. वो इडियट  हैं. वो दूर तक नहीं देख पाते.

जैसा मैंने लिखा ही है कि मुस्लिम कभी भाजपा को वोट नहीं देगा और मेरे मुताबिक दुनिया को इस्लाम की अंधेरी, गैर-वैज्ञानिक, अतार्किक व्यवस्था से बचाने का हर सम्भव प्रयास  किया जाना  चाहिये तो फिर फिलहाल गैर-मुस्लिम के पास सिवा भाजपा के कोई और विकल्प नहीं बचता.

 भाजपा सिवा मुस्लिम विरोध के मुद्दे के कहीं सही नहीं होती. फिर किया क्या जाए? फिलहाल वोट इन्हें ही दीजिये लेकिन वोट देने के बाद ज़िम्मेदारी खत्म मत समझिए. अपने इलाके के Councilor, MLA, MP को छित्तर मार-मार समझाएँ कि क्या काम करना है, कैसे करना है. इनको e-mail करें, फ़ोन करें, लेटर भेजें. वोट दे के सो मत जाएं. न इनको सोने दें. ये इडियट हैं, इडियट से जूते मार-मार काम लीजिए ~

Thursday, 10 June 2021

https://www.jihadwatch.org/

https://www.jihadwatch.org/

इस वेबसाइट को खोलिए. इसके पहले पेज पर ही आपको एक बॉक्स दिखेगा राईट साइड में थोडा सा नीचे जा कर. 39226 Deadly attacks किये गए इस्लामिक टेररिस्ट ने 9/11 आक्रमण के बाद. इस बॉक्स को जब आप  क्लिक करेंगे तो यह आपको बतायेगा कि मई 2021 में 13 मुल्कों में 34 अटैक किये गये हैं जिनमें 149 लोग मारे गए हैं और 84 लोग घायल हुए हैं. आप कहेंगे कि हम कैसे मान लें कि यह वेबसाइट सही जानकारी दे सकती है? तो जवाब यह है कि यह एक खुली वेबसाइट है. अगर झूठ बोलती है तो अब तक भाई लोग इसे कब का बंद करवा चुके होते. आखिरकार 50 के आस-पास मुल्क हैं उनके. नहीं?

सफलता क्या है - मेरा नज़रिया

तुम्हारा सपना क्या होता है? सफलता क्या है तुम्हारी नजर में? खूब सारा पैसा. या फिर शोहरत. यही न. काफी है. इडियट हो तुम! सुशिल कुमार ने दो बार ओलिंपिक मैडल जीता. सब मिल गया था उसे. फिर भी एक लाख रुपये का इनामी भगोड़ा घोषित होने के बाद क़त्ल के केस में बंद है. ज़िंदगी में हार बर्दाश्त करना बहुत ज़रूरी है लेकिन उससे भी ज़रूरी जीत बर्दाश्त करना है. सुशील कुमार जीत हज़म नहीं कर पाया. उलटी कर दी. मेरी नज़र में सफलता हालात के मुताबिक विवेक से जीना है. चाहे हालात जैसे भी हों.

इन्सान उसकी प्रोपर्टी मात्र नहीं है

देखता हूँ, लोग आपस में मिलते हैं तो उनकी बातचीत घूम-फिर के अक्सर पैसे-प्रॉपर्टी पर केंद्रित हो जाती है. फिर वो एक दूसरे को पैसे-प्रॉपर्टी से ही तौलते हैं. 

क्या आपको पता है मैंने सैकड़ों लेख लिखे हैं, बीसियों कहानियां लिखी हैं, कुछ कविताएं और कुछ यात्रा संस्मरण भी? सब है वेब पे. अब यह सब ऐसे ही तो नहीं लिख मारा होगा. बहुत कुछ पढा, बहुत कुछ गढ़ा और घड़ा, बहुत कुछ जीया, बहुत कुछ सीखा तभी तो कुछ लिखा. लेकिन जब कोई मुझे पैसे-प्रॉपर्टी से आँकना चाहता है तो मुझे वो सिर्फ चूतिया लगता है.

एक इन्सान सिर्फ उसका धँधा या उसकी प्रॉपर्टी ही नहीं होता, उससे कहीं ज़्यादा, कहीं इतर भी होता है, हो सकता है. वो वैज्ञानिक, साहित्यकार, खिलाड़ी, पेंटर, मूर्तिकार या फिर कुछ और भी हो सकता है ~~ तुषार कॉस्मिक

क्या जीना डरे-डरे और मरे-मरे

घण्टा!!!

हम न बजाते मन्दर में.

और 

न ही मुँह छुपाते फिरते. 

खुल्ला जीते. 

मौत की आँखों में आँखें डाल.

आ जा, जब आना हो लेकिन जब तक जीएंगे खुल के जीएंगे.

फर्क किताब और ग्रन्थ का

क़िताब दुनिया की बड़ी नेमत हैं, सौगात हैं. 

इन्हें पढ़ो.


लेकिन ग्रँथ,आसमानी किताबें  खतरनाक हैं. 

इनसे बचो.


फर्क पढ़े-लिखे और पढ़ते-लिखते होने का

यदि तुम पढ़े-लिखे हो,

तो तुम निश्चित ही चूतिये हो 

और 

यदि पढ़ते लिखते हो, 

तो तुम सयाने हो भी सकते हो.

विज्ञान कैसे पैदा होगा

कहीं पढ़ा कि हिन्दू-मुस्लिम बस अपने शास्त्रों का अर्थ-अनर्थ ही करते रहे और ईसाई और यहूदी विज्ञान पैदा करते में लगे रहे. सच है कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान में ईसाई और यहूदी समाज का बहुत योगदान है. 

लेकिन ये ज्ञान-विज्ञान ईसाईयत और यहूदियत की वजह से पैदा नहीं हुआ बल्कि ईसाइयत और यहूदियत के बावजूद पैदा हुआ. इसलिये पैदा हुआ चूंकि ईसाईयत और यहूदियत का मकड़-जाल, जकड़-जाल कहीं ढीला था. वो सोच को आज़ाद सांस लेने देता था, दे रहा है. 

बाकी आप भजते रहो-- हरे रामा हरे कृष्णा. और करते रहो --अल्लाह-हु-अकबर.

जनसंख्या और वोटिंग का अधिकार

रामदेव कहते हैं तीसरा बच्चा होते ही छिन जाये वोटिंग का अधिकार।

मैं कहता हूँ जिनके पहले से ही ज़्यादा बच्चे हों, उन परिवारों को भी वोट देने का हक नहीं होना चाहिए क्योंकि एक ख़ास मज़हब बच्चे ज्यादा एक रणनीति के तहत पैदा करता है.... ताकि तख्त पलट सके।

पशु और इन्सान का फर्क

पशु शब्द का मतलब समझते हैं? जो पाश में बंधा है. पाश यानि जाल. जानवर शब्द का मतलब है जान-वर. जिसमें जान है. लेकिन इन्सान को पशु या जानवर क्यों नहीं माना जाता है? जान है उसमें लेकिन फिर उसे जानवरों से अलग क्यों माना जाता है? चूँकि वो मनुष्य है. मानुस. मनस. यानि मनन करने वाला. मतलब यह कि स्वयंभू ने इन्सान तक आते-आते दो चीज़ों की इजाद की. एक फ्री-विल और दूसरी इंटेलिजेंस. इन दोनों के मेल से ही मनन होता है. लेकिन इन्सान क्युटिया निकला. उसने यह गिफ्ट मन्दिर, मस्जिद , गिरजे को गिरवी रख दी और आज तक छुड़ा नहीं पाया. वो फिर से पाश में बंध गया. वो पशु हो गया. वो जानवर हो गया. ..

मुस्लिम का एजेंडा

मुस्लिम का एक ही एजेंडा है मोदी सरकार गिराओ. मतलब मोदी से नहीं है और न ही हिन्दू से. मतलब एक ही है. किसी काफिर की सरकार क्यों? मुस्लिम को जितनी मर्ज़ी सुविधा दे दो, वो काफ़िर सरकार से कभी खुश नहीं होगा. वो एक जुट हो कर वोट देता है काफिर के ख़िलाफ़. लेकिन काफिर क्युटिया है, वो समझता ही नहीं कि मुस्लिम काफ़िर को बेलने के लिए ही काफ़िर का इस्तेमाल करता है. सावधान! मुस्लिम पावर में आते ही सब गैर-मुस्लिम को बेलेगा. इतिहास गवाह है. वो सिवा अल्लाह-रसूल-क़ुरान के कुछ नहीं मानते, सब फलसफा धरा रह जाएगा, सब "फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन" घुस जाएगी.

सोशल मीडिया के पैंतरे

भारत में जब आप सामाजिक या राजनीतिक पोस्ट करते हैं तो ज़्यादातर लोगों की राय तर्क या तथ्य पर आधारित नहीं होती.

जैसे खालिस्तानी को हिन्दू सरकार नागवार गुज़र रही है तो उसकी पोस्ट और कमेंट अक्सर हिन्दू के खिलाफ और मुस्लिम के पक्ष में होते हैं.
तथाकथित वामपंथी खुलकर इस्लामपरस्त हैं।
ऐसा ही आरक्षण भोगी तथाकथित "वे" करते हैं. वो आरक्षण के फायदे भी लेते हैं और हिन्दू समाज को गाली भी देते हैं.
ऐसे ही कांग्रेस से जुड़े अधिकांश लोग करते हैं.
इनको कोई पोस्ट/कोई विचार मुस्लिम के खिलाफ समझ नहीं आएगा.
वैसे तथाकथित हिन्दू भी कम नहीं, उनको लाख तर्क बता दो उनकी मान्यताओं के खिलाफ, मानते वो भी नहीं जल्दी. बस एग्रेसिव नहीं हैं मुस्लिम जितने. कहीं कम.
सो तर्क देने वाला क्यों तर्क दे रहा है, वो भी मायने रखता है.
घोड़ा गाड़ी के आगे नहीं, गाड़ी के पीछे बाँधने वालों के तर्क मात्र राजनीति हैं, न कि कोई बढ़िया "समाजनीति" ।
ऐसों के साथ मगज़-मारी करने का कोई फायदा नहीं.
बकने दीजिए. लिखने दीजिए .इग्नोर करिए. कम से कम कमेन्ट संख्या तो बढ़ाते हैं. वो भी ज़रूरी है. सो बने रहने दीजिये .

सर गंगा राम की मूर्ति

सर गंगा राम की एक संगमरमर की मूर्ति लाहौर में माल रोड पर एक सार्वजनिक चौक में खड़ी थी। प्रसिद्ध उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो ने उन लोगों पर एक व्यंग्य लिखा जो विभाजन के दंगों के दौरान लाहौर में किसी भी हिंदू की किसी भी स्मृति को मिटाने की कोशिश कर रहे थे। 1947 के धार्मिक दंगों के दौरान लिखी गई उनकी व्यंग्य कहानी "द गारलैंड" में....लाहौर में एक उग्र भीड़ ने एक आवासीय क्षेत्र पर हमला करने के बाद, लाहौर के महान लाहौरी हिंदू परोपकारी सर गंगा राम की प्रतिमा पर हमला किया। उन्होंने पहले पथराव किया। पत्थर से मूर्ति; फिर उसके चेहरे को कोयले के तार से दबा दिया। फिर एक आदमी ने पुराने जूतों की माला बनाई और मूर्ति के गले में डालने के लिए ऊपर चढ़ गया। पुलिस पहुंची और गोली चलाई। घायलों में माला वाला साथी था जैसे ही वह गिर गया, भीड़ चिल्लाई: "चलो उसे सर गंगा राम अस्पताल ले जाएं"....

विडंबना यह है कि वे उसी व्यक्ति की स्मृति को मिटाने की कोशिश कर रहे थे जिसने उस अस्पताल की स्थापना की थी जहां उस व्यक्ति को ले जाया जाना था। जो उसकी जान बचा रहा है। कंटेंट मेरा लिखा नहीं है, विकिपीडिया से लिया है. और मैंने सुना है कि इन्हीं सर गंगा राम के नाम पर दिल्ली में गंगा राम अस्पताल है.

कब्जा

सब देश जमीन कब्जा कर बनते हैं, जितना कब्जा उतना बड़ा देश. यह कब्जा घटता-बढ़ता रहता है. एक-दूसरे पर हमला करते रहते हैं. जमीन की छीना-झपटी करते रहते हैं. सीमा-विवाद चलते रहते हैं.

लेकिन हाँ, आपको जमीन खरीद के ही मिलेगी. बाकायदा रजिस्ट्री होगी तभी जमीन आपको मिलेगी. वही जमीन जो हो सकता है, आपकी सरकार ने, मुल्क ने, समाज ने छीनी हो किसी और से.
इस सब के चलते धरती माता हैरान है कि उसे लोग माता भी कहते हैं और उसकी बेच-खरीद भी करते रहते हैं! बेचारी माता!!

Belief System

धर्म को अंग्रेज़ी में Belief System भी कहते हैं.

Belief System यानि विश्वास व्यवस्था. कुछ विश्वासों पर टिकी व्यवस्था.
विचार नहीं, ज्ञान नहीं, विज्ञान नहीं बस विश्वास. कुछ विश्वासों का टोकरा. "कोई" दुनिया बनाने वाला है, चलाने वाला है, बिगाड़ने वाला है. अब यह "कोई" सब का अलग है, अलग ढँग से काम करता है.
कभी सोचते हैं, ये विश्वास व्यवस्थाएं विश्वासों पर नहीं अंध-विश्वासों पर टिकी हैं और इन व्यवस्थाओं ने पूरी दुनिया को अव्यवस्थित कर रखा है.
सोचते हैं कभी?

वैक्सीन के फ्रंट-बेक-साइड इफ़ेक्ट

ये क्या बकवास है? जिस ने वैक्सीन नहीं लगवाई वो ऑफिस नहीं जाएगा, फ्लाइट नहीं ले पायेगा, दुकान नहीं खोल पायेगा?

मतलब सवाल भी तुम, जवाब भी तुम.

बीमारी भी तुम ने तय कर दी और इलाज भी तुम ने थोप दिया. अच्छे भले लोगों पर वैक्सीन को थोप दिया. वो वैक्सीन जिसके लगवाने से फ्रंट-बेक-साइड इफ़ेक्ट की, काले-पीले फंगस की ज़िम्मेदारी वैक्सीन बनाने वाले भी नहीं ले रहे.
क्या है बे ये?

UPSC

UPSC. ये कोई इम्तिहान होता है. पार करते ही बनते हैं भारत में सबसे बड़ा अफ़सर. IAS. IPS. और ये बनते ही गाड़ी-घोड़ा, कार-कोठी, रौब-रुतबा सब हाज़िर.

चलिए बता दूं. मेरी नज़र में ज़्यादातर सरकारी नौकर मंद-बुद्धि और बंद-बुद्धि होते हैं जिन को फाइल में क्या है वो तब तक नहीं दिखता जब तक उन की जेब गर्म न की जाए. ज़्यादातर ये बदतहजीब और रिश्वत-खोर होते हैं. आज तक IAS हो IPS हो या कोई भी और, इन्होने प्रशासनिक सेवाओं में कुछ भी सुधार नहीं किया है. ये लकीर के फकीर रहे हैं. रट्टू-तोते.निरे बुद्धू,अविष्कार करने वाली बुद्धि ही कुछ और होती है.

गोडसे द्वारा गाँधी वध

मुझ से भाईजान बहस रहे थे.

उन्होंने कहा, "इस्लाम शांति का मज़हब है."

मैंने कहा, "तो फिर जगह-जगह बम बने क्यों फटते फिरते हैं मुस्लिम?"
"ऐसा बिलकुल नहीं है. वो तो उनको बदनाम किया जाता है. असल आतंकी तो संघी हैं, इन्होने गाँधी को मार दिया."
"लेकिन दोनों में फर्क है भाई. मुस्लिम कत्ल इसलिए करते फिरते हैं चूँकि इस्लाम फॉलो नहीं हो रहा. और गांधी इसलिए मारे गए चूँकि मुल्क बंटा चूँकि हिन्दू-मुस्लिम साथ नहीं रह सकते थे, लेकिन फिर भी मुस्लिम को भारत में बने रहने दिए गए. जिस वजह से मुल्क बंटा उन्होंने वो वजह भी बनी रहने दी और मुल्क के टुकड़े भी करा दिए. सिर्फ इतना ही नहीं हुआ लाखों लोग बेघर हुए, दर-बदर हुए. कितने ही बलात्कार हुए, कत्ल हुए. गाँधी और उन का 'इश्वर-अल्लाह तेरों नाम' का गलत फलसफा इस का ज़िम्मेदार था. तो भाई जी ज़रूरी नहीं कि आप कत्ल गन से ही करते हों. आप कत्ल किताब से भी करते है. ज़रूरी नहीं आप वार तलवार से करते हो, आप वार विचार से भी करते हो. और यही था गाँधी का वार. विचार का वार. गलत विचार का वार. अहिंसा के पुजारी की हिंसा. अब बदले में हिंसा मिली, हत्या मिली तो उसका ज़िम्मेदार कौन है? गाँधी खुद. वो सिर्फ अपनी ही नहीं, लाखों हिन्दू-मुस्लिम की हत्या के ज़िम्मेदार हैं और नाथू राम गोडसे की फांसी के भी ज़िम्मेदार हैं. तो यह है फर्क. ध्यान से देखिये. कौन आतंकी है. मुस्लिम का आतंकी बन जाना, यूरोप, अमेरिका, भारत में बम-बारूद बन जाना और गोडसे का गांधी को मारना दोनों ही अलग हैं. ठीक से देखना सीखो, ठीक से दिखना शुरू हो जायेगा."

तुषार कॉस्मिक

Monday, 31 May 2021

को.रो.ना. -- कोई षड्यंत्र है क्या?

नमस्कार, मैं  तुषार कॉस्मिक

कोरोना असल में है या फर्ज़ी है, इसे तय करने के दो तरीके बता रहा हूँ. 

अंग्रेज़ी दवाओं के, वैक्सीन के वर्षों तक ट्रायल होते हैं, फिर बाजार में उनको उतारा जाता है. मैं और मेरे अलावा दुनिया के बहुत से लोग, अलग-अलग मुल्कों के लोग, डॉक्टर, पैथोलोजिस्ट कोरोना को फ़र्ज़ी बता चुके हैं  या इस सारी कोरोना कथा में छेद देख रहे हैं. एक तरीका है हम जैसों को संतुष्ट करने का. एक एक्सपेरिमेंट. मेरे जैसे लोगों में से 1000-2000 लोग लिए जाएं, जो न मास्क लगाएंगे, न वैक्सीन लेंगे. बस योग-व्ययाम  करेंगे,  प्राणायाम करेंगे, फल सब्ज़ियां मेवे खायेंगे, दिन में पेड़ों के नीचे खुली हवा लेंगे, सुबह की धूप लेंगे. इस के अलावा इन को प्रेरणादायक, उत्साहवर्धक किस्से, कहानियां, भाषण सुनाए जाएंगे.  देखिये तो उनमे कितने बीमार होते हैं? मरते हैं? वालंटियर मिल जाएंगे, विश्वास है मुझे. कर के तो देखिए एक तज़ुर्बा. पता लगेगा कोरोना है भी या बस डर का खेल ही है?

कोरोना वाकई कुछ है या नहीं, इस बात की तह तक जाने का एक और आसान तरीका है. वो यह कि जिन भी लोगों पर मेरे जैसे तथाकथित Conspiracy  Theorist शंका कर रहे हैं, उनका lie detector Test, Narco Test  करवाया जाए. विभिन्न देशों के प्र्धानमंत्रों, राष्ट्रपतियों और बिल गेट्स  और अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर Fauci  और एलन Musk  आदि के Lie detector Test, Narco Test करवाए जाएँ. इनसे उन टेस्ट में यह भी पूछा जाये कि  इन्होने अपने परिवारों को, अपने बच्चों को, खुद को कोरोना से बचाने के लिए कौन सी वैक्सीन लगवाई है. 

क्या सोच रहे हैं? यह नहीं हो सकता. हो सकता है. जब आधी दुनिया पर RT-PCR   टेस्ट किया जा सकता है तो इन लोगों पर lie detector Test, Narco Test  भी किये जा सकते हैं. पता तो लगे , माजरा क्या है. पूरी इंसानियत का सवाल है आखिर. 

----------------------------------------

बड़ा सवाल है कोरोना है और कोरोना से लोग मर रहे हैं. लेकिन मेरा मानना कुछ और है. 

ओशो ने एक कहानी सुनाई है, सुनाता हूँ बात क्लियर हो जायेगी.  

बर्नार्ड शॉ जब कोई साठ  साल के आस-पास के हुए  लंदन छोड़ दिया और दूर कहीं गाँव में जा बसे. क्यों? चूँकि उस गाँव के कब्रिस्तान से गुजरते हुए उन्होंने कब्र के एक पत्थर पर पढ़ा, "यहाँ सौ साल की कम उम्र में गुज़र जाने वाला  व्यक्ति सो रहा है." 

वो वहीं रुक गए. जहाँ सौ साल की उम्र में गुज़रे व्यक्ति को भी कम उम्र का समझा जा रहा हो, ऐसा गाँव निश्चित ही रहें लायक है. और वो वहीं बस गए और तकरीबन सौ साल ज़िंदा भी रहे. इतना ज़्यादा असर पड़ता है समाजिक मान्यताओं का इंसान की सेहत, उम्र और मौत पर. कलेक्टिव सम्मोहन. जिस समाज, जिस व्यक्ति  ने मान लिया कि बीमारी है, बीमारी है तो वो बीमार हो ही जायेगा. इसे NOCEBO  Effect  भी कहते हैं. जिस समाज ने, जिस व्यक्ति ने मान लिया कि  वो स्वस्थ है, स्वस्थ रहेगा तो वो स्वस्थ रहेगा. इसे Placebo  Effect  कहते हैं. अभी आपने देखा नकली Remidisivir  से भी ९० प्रतिशत लोग ठीक हो गए. मुझे लगता है कि कोरोना का डर, यह डर  कहीं घातक साबित हुआ है. 

मेरा एक लेख है, "आओ जादू सिखाता हूँ", इसमें मैंने दो मिसाल दीं हैं. पहली मिसाल बुधिया सिंह है.  एक छोटा बच्चा।  दूसरी मिसाल फौजा सिंह हैं. फौजा सिंह १०० साल से ज़्यादा  के हैं और मैराथन चैंपियन रहे हैं अपने ऐज  ग्रुप में.  ऐसे लोग किसी तरह से समाज ने जो लकीरें थोप रखीं होती हैं उन से बच गए और वो कर गए जो आम तौर पे लोग नहीं कर पाते. 

मेरी समझ यह है कि इंसान की सेहत, उसकी उम्र, उसकी मौत पर उसकी मानसिकता और उसकी मनोस्थिति  बहुत ही ज़्यादा असर डालती है. 

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या कोरोना के डर से हुईं? यह भी सवाल है.  

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या वैसे ही होनी होतीं औसतन, वही हुईं? यह भी सवाल है. आंकडें हैं क्या हमारे पास? ध्यान दीजिये महा-मारी में भी यदि जनसंख्या बढ़ रही हो तो महा-मारी को महामारी कहा जाए या नहीं? सवाल तो है. गूगल कीजिये  Worldometers.info  जनसंख्या बढ़ती हुई दिखा रहा है. लेकिन हो सकता है मौत का आंकड़ा कुछ बढ़ा भी हो. आईये थोड़ा आगे देखिये. 

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या बाकी बीमारियों का  इलाज न मिलने से हुई या अफरा-तफरी  से हुईं  या बद -इन्तेज़ामी से हुईं, यह भी सवाल है.  ध्यान कीजिये भारत में सरकारी अस्पताल कोई बहुत अच्छे नहीं हैं, एक ही बेड  पर दो-दो लोग देखें हैं मैंने.  

ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या कोरोना के इलाज में गलत-शलत इलाज  देने से हुईं यह भी सवाल है. याद कीजिये  कोरोना के बहुत से तथाकथित इलाज सरकार खुद बंद कर चुकी है.  पिछले साल Hydroxychloroquine कोरोना की दवा बताई जा रही थी,  फिर प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा था, फिर Remdesivir दी जा रही थी. अब ये सब दवा कोरोना की दवा नहीं मानी जा रहीं.  इन दवाओं ने कितना नुक्सान किया, किसे पता है? 

यहाँ एक पॉइंट और क्लियर करना चाहता हूँ, जो लोग डॉक्टरों की मौतों का हवाला दे कर कोरोना का अस्तित्व साबित करना चाहते हैं, उन्हें बता दूं कि डॉक्टर भी उन्ही सब भ्रमों का शिकार हैं, जिनका आम इन्सान शिकार है. मेरे पास खबर है, डॉक्टर की आंत में फंगस हो गया चूँकि गलत दवा दी गयी उन को.  हमारे यहाँ पढाई किस तरह से होती है सब को पता है. पढ़ाई कोई अनुसन्धान करने के लिए, कोई विश्लेष्ण करने के लिए, कुछ discover करने के लिए, कोई इन्वेंशन करने के लिए नहीं होती. पढ़ाई का एक मात्र उद्देश्य डिग्री हासिल कर के पैसा कमाना होता है. हमारे डॉक्टरों ने कोरोना के अस्तित्व को समझने के लिए कोई अलग से एक्सपेरिमेंट नहीं किये हैं. वो सिर्फ सरकार का कहा मान कर काम रहे हैं और सरकार WHO का कहा मान कर काम कर रही है. 

एक और पॉइंट है, यदि कोरोना कुछ नहीं है तो लोग ऑक्सीजन के लिए एका-एक क्यों चीख-पुकार लगाये हुए थे. मेरा मानना यह है कि लोगों ने ऑक्सीजन अपने से नहीं माँगी होगी. आम-जन को कैसे पता कि उसे ऑक्सीजन चाहिए. हाँ, उसे साँस लेने में दिक्कत ज़रूर महसूस हुई होगी. Breathlessness महसूस हुई होगी. इस की फौरी राहत ऑक्सीजन सुझाई गयी डॉक्टर्स द्वारा. लेकिन सवाल यह है कि Breathlessness क्यों महसूस हुई लोगों को. उसका जवाब मेरी तरफ से यह है कि खांसी-नज़ला-ज़ुकाम पहले भी होता था लोगों को और ऐसा अक्सर होता था कि नाक बंद हो और बंद नाक की वजह से ठीक से साँस न आ पा रही हो. या खांसते-खांसते इन्सान बदहवास सा हो जाये और उसे Breathlessness महसूस हो. लेकिन चूँकि अब कोरोना का डर है तो इस डर ने इस Breathlessness को कहीं ज़्यादा गुणित कर दिया, multiply कर दिया.   

अभी विवाद चल रहा है एलॉपथी और आयुर्वेद का.......यहाँ मुझे राम देव  ज़्यादा सही लगते हैं. सब जगह सही नहीं लगे  लेकिन यहाँ सही है. एलॉपथी बिलकुल इस्लाम की तरह है. इनकी नज़र में आयुर्वेद, हिकमत, नेचुरोपैथी, होमियोपैथी , हिप्नोथेरपी कोई ख़ास माने नहीं रखती. .........और ये तन से शुरू करती है ......मन के प्रभाव  को इग्नोर कर देती है...जबकि अभी मैंने आपको बताया कि  इंसान के  जीवन-मरण में उसकी मानसिकता का बहुत बड़ा प्रभाव  होता है. 

डॉक्टर बस प्रिस्क्रिप्शन लिखता है और हजार रुपये ले लेता है. यह कंसल्टेशन नहीं है. कंसल्टेशन  मतलब सलाह, वो कोई सलाह थोडा न देता है, वो बस दवा क्या लेनी है, कैसे लेनी है यह बताता  है.........थोडा बहुत कुछ और बस. 

आयुर्वेद  सब बताता है क्या खाओ, क्या न खाओ, क्या पीयो, पीयो,  कैसे जीओ. आयुर्वेद, आयु का वेद है.  

प्राणयाम साँस द्वारा ली जाने वाली हवा को सिर्फ हवा नहीं मानता, वो इसे प्राण मानता है, तो प्राण को विभिन्न आयाम देने की विधियों को प्राणायाम कहा  है हमने. प्राणायाम मात्र साँस के प्रयोगों से आपके प्राणों में  प्राण डालता है, जान डालता है. 

सम्मोहन, यह भी अपने आप में एक शक्तिशाली विधा है. नकली दवा से भी लोग ठीक हो गए, बताया ही है मैंने. यह सम्मोहन है.  

नेचुरोपैथी कहती है कि आप हवा, पानी, मिटटी, सूरज की रौशनी अदि से ही बीमारियों का इलाज कर सकते है. और बिलकुल ठीक कहती है. असल में हम मिटटी, हवा, पानी, आकाश , अग्नि से ही तो बने हैं. यही तो कुदरत है. मिटटी में लौटना, खुली हवा में साँस लेना, साफ़ पानी पीना, नरम धुप लेना यह सब नेचुरोपैथी है. स्वस्थ शब्द का मतलब ही है स्वयं में स्थित होना. और कुदरत के साथ रहना स्वयं में स्थित होना ही होता है इसलिए तो आप घरों में धुआं उगलती हुई फैक्ट्री के चित्र नहीं लगाते, आप पेड़, पौधों, नदी, पहाड़ के चित्र लगाते हैं. यही नेचुरोपैथी है.  

क्या कोरोना का अस्तित्व तय करने में और कोरोना के इलाज में सरकार ने एलॉपथी से हट के जो भी प्रमुख इलाज की विधियाँ हैं,  उन विधियों के विशेषज्ञों से सलाह ली, उन विधियों का प्रयोग किया? नहीं किया. 

----------------------------------------------------

यहाँ एक और मुद्दा गौर-तलब है. जो भी लोग कोरोना को फ़र्ज़ी बता रहे हैं उनको Conspiracy  Theorist  बताया रहा है. Conspiracy  Theorist  कौन हैं?

हर मुद्दे को  बेवजह साज़िश समझने वाले, साज़िश देखने वाले लोग. यह बढ़िया है. गुड. बस किसी संज्ञा विशिष्ठ का ठप्पा मार के सवाल खड़े करने वाले का चरित्र-हनन  कर दो. उसकी बात की अहमियत ही खत्म कर दो. कुछ मिसाल देना चाहता हूँ. जिस वक्त सुकरात को ज़हर  दिया गया तो उन पर आरोप यही था कि  वो युवाओं को भड़का रहे हैं, भ्र्ष्ट कार रहे थे.  व्यवस्था खराब कर रहे थे. वो उस वक्त के Conspiracy  Theorist थे. जीसस भी वही थे Conspiracy  Theorist. जॉन  ऑफ़ आर्क भी वहीं थीं Conspiracy  Theorist. गैलेलिओ  भी वही थे Conspiracy  Theorist. तभी तो ऐसे लोगों को या तो मार दिया गया या कष्ट दिया गया. क्या कुछ भी मान लेने वाले लोग ही सही होते हैं? असल बात यह है कि जो लोग सोचते हैं, तर्क करते हैं, सवाल उठाते हैं वो हमेशा ही Conspiracy  Theorist नजर आयेंगे। मेरी गुज़ारिश है,  ठप्पा मत मारें, सवाल उठाने वालों का मुंह बंद न करें। उनके सवालों का सामना करें और जवाब दें.  

------------------------------------------------------

जवाब दीजिये कि  कोरोना कथा Contagious  फिल्म से क्यों इतना मिलती है कि  ऐसे लग रहा है जैसे फिल्म को असल ज़िंदगी में फिट कर दिया गया हो. 

जवाब दीजिये कि  वर्ल्ड बैंक वेबसाइट पे यह क्यों मेंशन है कि 2018  में ही 382200 कोरोना टेस्ट किट दुनिया के विभिन्न मुल्कों में पहुंचा दी गईं थी. 

जवाब दीजिये कि October 2019 में बिल गेट्स फाउंडेशन और जॉन हॉपकिंस सेंटर  द्वारा जो इवेंट 201 आयोजित किया गया था, वो कोरोना महामारी की एक दम  रिहेर्सल जैसा क्यों था?  और इसके ठीक बाद दिसम्बर 2019 में ही कोरोना का पहला केस कैसे मिल गया? इतना संयोग कैसे?

जवाब दीजिये कि आपने WHO  के कथन को ब्रह्म वाक्य कैसे मान लिया? WHO  द्वारा बताई बीमारी को बीमारी मान लिया, उसके बताये इलाज को इलाज मान लिया, अंतिम क्रिया तक को लिफ़ाफाबंद क्यों कर दिया WHO  के कहे अनुसार? आपने लोगों को अपने हिसाब से इलाज क्यों चुनने नहीं दिया? आपने दुनिया जहां की जो इलाज पधतियों को लोगों के इलाज का मौका क्यों नहीं दिया? 

डॉक्टर बिसरूप चौधरी शुरू से बता रहे हैं कि तथाकथित  कोरोना मरीज़ों का इलाज बिना दवा के कर सकते हैं, सिर्फ खान-पान बदल कर. उनको खुल कर मौका क्यों नहीं दिया गया? 

बाबा रामदेव कह रहे हैं कि  वो पूरा कोरोना मैनेजमेंट अपने हाथ में लेने को तैयार हैं, उनको एक्सपेरिमेंट के तौर पे ही सही, कुछ मौका शुरू क्यों नहीं दिया गया?

दक्षिण भारत के एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर है  BM Hegde जी. कोरोना पर, इम्युनिटी पर उनकी सलाह ली क्या सरकार ने? या आम-जन को उनकी सलाह लेने की सलाह सराकर ने दी क्या? जवाब दीजिये

जवाब दीजिये डॉक्टर विलास जगदाले को, डॉक्टर tarun कोठारी को  जो कोरोना को पूरी तरह षड्यंत्र बता रहे हैं, वो गलत हैं क्या? 

उठते सवालों पे मौन मत रहिये, जवाब दीजिये. 

-------------------------------

एक  सवाल  मैं पूछता हूँ ..... आपको कोई दिक्क्त-तकलीफ होगी तो आप ही तो डॉक्टर से सम्पर्क करोगे और उसे बताओगे कि  आप सही फील नहीं कर रहे? या कोई भी डॉक्टर आप के  घर आएगा और आपको बताएगा कि  आप बीमार हैं  और आप मान जाएंगे कि  हाँ, यार मैं बीमार हूँ? सोचिये. बड़ा ही सिंपल सा सवाल है. 

जवाब यह है,  अगर दिक्क्त परेशानी आपको है तो आप ही डॉक्टर के पास जाते हैं, आप ही बताते हैं डॉक्टर को कि  आपको कोई दिक्क्त है. राइट?

अब याद कीजिये कोरोना की शुरुआत को.  भारत को कैसे पता लगा कि  कोरोना भी कोई बीमारी है? भारत को खुद से पता लगा कि  कोरोना कोई बीमारी है या उसे बताया गया? याद कीजिये. भाई जी, भारत, वो भारत जहाँ दुनिया की लगभग २०% आबादी रहती है, उसे कुछ पता नहीं था कि  कोरोना किस चिड़िया का नाम है जब कोरोना  को बीमारी नहीं, महामारी नहीं, वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया WHO  द्वारा. वैश्विक महामारी, जबकि २०% विश्व को कुछ पता ही नहीं था ऐसी किसी महामारी का, क्योंकि यहाँ कोई महा-मारी हुई ही नहीं थी.  लेकिन डॉक्टर ने, यानि WHO ने  बताया कि  महामारी है तो एक भले चंगे इंसान यानि भारत जी ने मान लिया कि  बीमारी है. 

क्या हमारे प्रधान मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री का यह फ़र्ज़ नहीं बनता था कि  वो पूछते कि  किस आधार पर मान लें कि  कोरोना कोई घातक वायरस है. ठीक है, आपका टेस्ट RT -PCR  बता रहा है कि  कोरोना है तो मान लेते हैं कि  है लेकिन उस वायरस से क्या नुक्सान हो रहा है इसके आंकड़े कहाँ है?मौतें? मौत तो हज़ार वजह से हो सकती है. आपका टेस्ट कोरोना बता भी दे तब भी. कैसे  पता कि  मौत किसी और वजह से नहीं हुईं और सिर्फ और सिर्फ कोरोना से ही हुईं हैं?   

एक कमरे में प्रोफेसर मोरीआरटी की मौजूदगी मात्र से ही शर्लाक होल्म्स मान लेगा क्या कि  कत्ल मोरीआरटी  ने ही किया है जबकि वहां सैकड़ों लोग और मौजूद  थे और कत्ल किसी ने भी किया हो सकता था? 

----------------------------------------------

क्या हमारी सरकार को WHO  की बात  मानने से पहले यह नहीं पूछना चाहिए था कि  ठीक है हम देखना चाहते हैं कुछ लाशें चीर-फाड़ के. देखें तो सही, समझें तो सही कोरोना कैसे काम करता है?

क्या हमारी सरकार को पूछना नहीं चाहिए था कि  वायरस का साइज क्या है? जब  वो हवा के साथ साँस में जा सकता है तो हवा तो इंसान मास्क लगाने के बाद भी अंदर खींच रहा है साँस द्वारा, फिर वायरस  मास्क होने के बाअवज़ूद शरीर के अंदर जायेगा या नहीं? वायरस का साइज  कितना है? क्या वो कपड़े को पार कर के आती हवा या मास्क के दाएं-बाएं से आती हवा के साथ शरीर में आएगा या नहीं?

नहीं हमारी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया. 

जैसा  मुझे पता है, वो यह कि  WHO  ने  RT-PCR   टेस्ट, और फिर कोरोना का इलाज, और फिर कोरोना से मौत के बाद संस्कार तक का प्रोटोकॉल दे दिया और हमारी सरकार ने उस प्रोटोकॉल को आंख बंद कर के फॉलो किया. अगर यह सही है तो  बस यही  है क्या सरकार का दाइत्व? सरकार अपनी जनता के प्रति जवाबदेय नहीं है क्या , वो WHO  के प्रति जवाबदेय है क्या? सरकार को सरकार भारत की जनता ने बनाया था या WHO  ने? 

सरकार ने WHO  की हर बात को फॉलो किया और अपनी जनता से करवाया. 

WHO  ने कहा, जिनके कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आ रहे हाँ, वो बीमार  हैं, सरकार ने अपने लोगों से मनवा दिया कि  वो बीमार हैं, 

WHO  ने बताया कि  प्लाज्मा इलाज है सरकार ने मान लिया कि  प्लाज्मा इलाज है. WHO  ने बोला  प्लाज्मा इलाज नहीं है, हज़ारों, लाखों लोगों को प्लाज्मा दिए जाने के बाद सरकार ने बोला  प्लाज्मा इलाज नहीं है. 

WHO  ने बोला Remdisivir  इलाज है, सरकार ने हज़ारों लाखों लोगों को Remdisivir  दे दी. फिर WHO  ने बोला  नहीं, नहीं  Remdisivir इलाज नहीं है, सरकार ने बोला, ठीक है Remdisivir इलाज नहीं है. 

स्टेरिओड्स  दवा के रूप में प्रयोग हुए लेकिन अब कहा  जा रहा है की ब्लैक फंगस पैदा ही स्टेरॉइड्स की वजह से हुई है.  इस सबके चलते एक बड़ी हैरानी की बात यह हुई कि  कुछ लोगों ने कहीं नकली Remdisivir की सप्लाई कर दी लेकिन उस नकली दवा से भी अधिकांश लोग ठीक ही गए. 

पहले कहा  गया कि  कोरोना वायरस वाले सरफेस को छूने से फ़ैल सकता है, बाद में बताया गया की सरफेस टचिंग से कोई नुक्सान नहीं होता. 

पहले कहा जा रहा था कि दो गज दूरी,  है ज़रूरी, अभी बताया जा रहा है कि  कम से काम ११ गज कि दूरी होनी चाहिए दो लोगों में यदि कोरोना से बचना है तो.  

---------------------------------------

इतनी विसंगतियां. इतनी कॉन्ट्रडिक्शन्स. सोचना बनता कि नहीं?

हो सकता है, मेरी हर बात गलत हो, बकवास हो? मैं कह भी नहीं रहा कि  मैंने ही कोई सब सही-सही बोलने का ठेका लिया है. मैं सिर्फ  यही गुज़ारिश कर रहा हूँ कि  थोड़ सोच -विचार कर के देखिये.   पहले मुर्गी आई या  पहले अंडा आया, यह तो शायद समझ न भी आये लेकिन पहले बीमारी आई या पहले बीमारी का डर, यह शायद समझ आये. सोच के देखिये.  

शुरू से दुनिया भर में शंकाएं ज़ाहिर की  जा रही हैं कि कोरोना फ़र्ज़ी महामारी  है,  जलसे-जूल्स निकल रहे हैं कि कोरोना, lockdown , वैक्सीन सब बकवास है. आप यूट्यूब  पर प्रोटेस्ट अगेंस्ट कोरोना टाइप कीजिये आपको दुनिया भर के लोग सड़कों पर कोरोना कथा का विरोध करते हुए मिल जायेंगे.  

शुरू से कहा जा रहा है कि  कोरोना-कथा  में बिल गेट्स का भी हाथ है. अभी पीछे गेट्स ने भारत में बनी वैक्सीन का विरोध किया. 

अब सुना है कि WHO  भी भारतीय वैक्सीन को मान्यता नहीं दे रहा. अब IMF  कह रहा है भारत एक अरब  वैक्सीन का आर्डर दे. IMF, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, वो यह कह रहा है कि  भारत को एक अरब  वैक्सीन का आर्डर देना चाहिए. IMF? मतलब ऐसी सस्थां  जिसका  मेडिकल वर्ल्ड से सीधे से कोई मतलब नहीं। वो तय करना चाहती है कि  भारत को कितनी वैक्सीन खरीदनी चाहिए. मतलब वैक्सीन लेनी है या नहीं, लेनी है तो कितनी लेनी है  यह भारत तय नहीं करेगा, IMF  तय करेगी. और वैक्सीन भी उन कंपनियों की जो कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं लेना चाहतीं कि उनकी वैक्सीन से कोई मरेगा या बचेगा. क्या है ये सब. पिक्चर साफ़ है. यह सारे फसाद में वैक्सीन बेचने का एजेंडा भी है. थोड़ी सी अक्ल लगाएंगे बात समझ आ जाएगी.  

मैं आम आदमी, मैंने थोड़ी रिसर्च की थी पिछले साल और मुझे कोरोना कथा में तमाम छेड़ दिखाई दे रहे थे. बहुत से देशी-विदेशी लोग कोरोना कथा पर अपनी शंकाएं ज़ाहिर कर रहे थे. Dr. Andrews  Kaufmaan, Dr.Rashid Buttar, David Icke,  डॉ. विलास  जगदाले, डॉ बिसवरूप चौधरी,  जैसे लोगों के कई-कई वीडियो इंटरनेट पर तैर रहे थे. लेकिन भारत ने अपनी तरफ से कोई क्रॉस चेकिंग नहीं की. 

सब उल्ट-फेर सामने दिख रहे हैं.

WHO  ने बोला तीसरी लहर में बच्चे मर सकते हैं, हम  ने मान लिया. अबे, दुश्मन कभी बता के आता है कि  वो कहाँ अटैक करेगा, वो भी वायरस! मतलब वायरस न हुआ कोई दोस्त हुआ जो सारा प्लान बता कर आएगा कि  उसका अगला कदम क्या होगा. हैरानी है. 

अब कहा जा रहा है कि  ऐसी कितनी ही लहरें और आ सकती हैं. पीढ़ियों तक कोरोना रहेगा. लेकिन  पीढ़ियां बचेंगी तब न. लोग तो बेरोज़गारी से, घबराहट से,गरीबी से, भूखमरी से ही मर जाएंगे यदि यही सब चलता रहा था. आगे आने वाली लहरें किसे मारेंगी? लाशों को?  

और  कहा यह जा रहा है कि वैक्सीन ही कोरोना को रोक सकती है. गुड. लेकिन हो तो यह रहा है कि  जिन लोगों ने दो-दो वैक्सीन ले ली, वो भी मर रहे हैं. और वैक्सीन के नतीजे ज़रूरी थोड़ा न है तुरंत आ जाएँ, वर्षों लग सकते हैं, कैसे इतना पक्का हुआ जा सकता है वैक्सीन के प्रति? 

भारत ने डेढ़ साल में यह भी नहीं देखा कि  कहीं ऐसा तो नहीं कि  कोरोना के आंकड़ें जान-बूझ के बढ़ाये जा रहे हों? मैंने पढ़ा पीछे कि  अल्लाहाबाद  हाई कोर्ट ने बोला कि  जो सर्दी-ज़ुकाम से मरे हैं उनका अगर टेस्ट का रिजल्ट नहीं भी आया तो भी उनको कोरोना लिस्ट में डाला जाये. और  ऐसा किया गया लगता भी  है चूँकि अब बाकी बीमारियों से जो लोग मरते थे, वो आंकड़ें किधर गए. कोई स्पष्टीकरण है इस पॉइंट का?. 

अब मैं  पढ़ रहा था, अखबार तो लिखा था  कि  ऐसी वैक्सीन इम्पोर्ट की जाने वाली है जो बिना ट्रायल के ही, सीधे ही भारतियों को लगवाई जाएगी. गुड. लेकिन  मैंने तो यह पढ़ा था कि १०-१५ साल लगते हैं किसी वैक्सीन को बज़्ज़ार में उतारने में  चूँकि बड़ी minutely  स्टडी किया जाता है, कहीं वैक्सीन के कोई एडवर्स इफ़ेक्ट  तो नहीं. मैंने तो यह भी पढ़ा था कि  फाईज़र कम्पनी का भारत सरकार से जो अनुबंध होने जा रहा था वैक्सीन के लिए, उसमें पेच बस इन्डेम्निटी क्लॉज़ पे अटका था. इन्डेम्निटी क्लॉज़..मतलब अगर वैक्सीन  से कोई मर जाए, बीमार हो जाये तो फ़ायज़र क्या हर्ज़ा खर्चा देगी. देगी भी या नहीं. शायद ऐसा ही कोई मामला था. लेकिन हो सकता है मैने गलत पढ़ा हो, आप चेक कर लीजियेगा.  

मैंने तो यह भी पढ़ा कि को-वैक्सीन  बनाने वाले अदार  पूनावाला लंदन चले गए, और उनके पिता भी वहीं चले गए. हो सकता है वैसे ही गए हों, लेकिन मुझे शंका है. वो इसलिए भी गए हो सकते हैं कि वैक्सीन से कोई अनिष्ट हो तो सीधे ही एक दम से पकड़ में न आ जाएं. शंका है मुझे, ज़रूरी नहीं मेरी शंका सही हो. मेरी असेसमेंट गलत भी हो सकती है. 

आज आपके बहुत से सिविल राइट खत्म हैं. आप  ठीक से कमा नहीं सकते, साँस नहीं ले सकते, यार-दोस्त-रिश्तेदार से मिल नहीं सकते, खुल कर शादी-ब्याह नहीं कर सकते, ऐसे में  भी अगर आप नहीं सोचते तो कब सोचेंगे? सोचिये.....मेरी किसी  भी बात का विश्वास मत कीजिये ...सब बकवास हो सकती हैं  .....लेकिन सोचिये तो सही।

सोचिये जैसे जेम्स वाट ने भाप से पतीली के ढक्कन को उठते देख स्टीम इंजन बना दिया, जैसे newton ने गिरते हुए सेब को देख ग्रेविटी को discover किया. सोचिये तर्कशीलता से. सोचिये फैक्ट्स और आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए. सोचिये क्रिटिकल ढंग से. 5-D Stereogram एक ख़ास तरह के चित्र होते हैं. चित्र में चित्र छिपा होता है. बड़े ध्यान से देखने पट छिपा चित्र दिखने लगता है. छिपा चित्र देखने का प्रयास कीजिये. 

बचपन में आप ने छोटे-छोटे  डॉट्स को जोड़ा होगा और जोड़ते ही एक चित्र उभर आया होगा, याद कीजिये, हम सब ने यह खेल खेला होगा. अब फिर जोड़िये.  अलग अलग सूचनाओं को जोड़ के देखिये चित्र उभरने शुरू हो जायेंगे. इसे ही connecting  the dots कहते हैं. 

सोचने के तरीके हैं. सोच के देखिये तो. 

इसी लेख का वीडियो देखना चाहें तो लिंक दिया जा रहा है, देख सकते हैं:--

https://www.facebook.com/tushar.cosmic/posts/10218920599387423

नमस्कार 

Friday, 14 May 2021

कोरोना सच में कुछ है क्या?

एक बार राजा ने ढिंढोरा पीट दिया कि ताले खोलने वाले माहिर लोग आ जाएँ. प्रतियोगिता होगी और इनाम भी मिलेगा.  तक़रीबन कोई सौ लोग आ गए. सबको कमरों में बंद कर दिया गया और बोल दिया गया कि बाहर बड़ा ही जटिल ताला लगा है जो खोल के बाहर आ जायेगा वो जीत जाएगा. रात भर माहिर लोग सोचते रहे. लेकिन एक थोडा अनाडी किस्म का बन्दा भी था वहां जो ताले खोलना तो कुछ ख़ास नहीं जानता था लेकिन इनाम के लालच में आ गया था. ज़्यादा सोच थी ही नहीं उसके पास. उसने सोचा देखूं तो सही ताला लगा भी है कि नहीं।  वो उठा और दरवाज़ा जरा सा धकिया दिया और उसका ऐसे करते ही दरवाज़ा खुल गया. और वो कमरे से बाहर. इनाम जीत गया वो. 

जब मैं स्कूल में था तो हमें सिखाया गया था कि इम्तिहान में घबराना नहीं है. हर सवाल को तीन बार पढना है. सवाल ठीक से समझना है. हल की तरफ बाद में जाना है. हमें समझाया गया कि कई बार तो  सवाल के अंदर ही जवाब छुपा हो सकता है. वो सीख मुझे आज भी याद है. 

और यही सीख, यही समझ मैं आपको देना चाहता हूँ . घबराएं मत. 

आप देखते हैं जेम्स बांड की फिल्में? जेम्स बांड फंसा होता है हर तरफ से और लगता है कि अब मरा कब मरा लेकिन वो घबराता बिलकुल नहीं है बल्कि रास्ता खोजता है और खोज भी लेता है और जाल से निकल बाहर हो जाता है. 

पग्गल मत बनें, किसी ने कह दिया कि कव्वा कान  ले गया और आप भग लिए कव्वे के पीछे। पहले देख तो लीजिये कि कान अपनी जगह मौजूद है भी कि नहीं। शोर मच गया कि कोरोना है कोरोना है पहले देख तो लीजिये कोरोना है भी कि नहीं। तर्क भिड़ाएं. आंकड़ों को analyze कीजिये.  

लकिन आप कहेंगे यमराज हुंकार  रहे हैं, “यम हैं हम....” काले भैंसे पे सवार हैं  और गली-गली घूम रहे है. पकड़ ले जायेंगे साथ. ऐसे में क्या बुद्धि लगायें? सब तरफ तो मौत बरस रही है. इसमें क्या तर्क भिड़ाना? लोग मर रहे है. आंकड़े क्या देखने? लोग ऑक्सीजन ऑक्सीजन चिल्ला रहे हैं. श्मशानों में लाशों के ढेर लगे हैं. 

लेकिन फिर भी मैं आपसे कहूँगा कि थोड़ी सी हिम्मत करो, तर्क भिड़ाओ, आंकड़ों का विश्लेष्ण करो. 

01मई 2021 की नवभारत-टाइम्स के मुख-पृष्ठ पर खबर थी सोली सोराब जी, शूटर दादी हरियाणा की चन्दो देवी और रिपोर्टर रोहित सरदाना कोरोना से मर गए. जैसे ही खबर पढ़ेंगे आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे, हाथ-पैर फूल जायेंगे. कोरोना आया ही आया आपको दबोचने. लेकिन थोडा ध्यान से दुबारा खबर पढ़े तो पता लगेगा कि, चन्दो देवी 89  साल की थी और ब्रेन हेमरेज से मरी, रोहित सरदाना हार्ट अटैक से मरे. और सोली सोराब जी 91 साल के थे, जब मरे. 

थोड़ा तर्क लगायें. दो शख़्स नब्बे-नब्बे साल की उम्र के मर जाते हैं लेकिन इनको कोरोना ने मारा. एक शख्स हार्ट अटैक से मर जाता है लेकिन इसे भी कोरोना ने मार दिया. एक शख्स ब्रेन हेमरेज से मरी लेकिन ये भी कोरोना से मरी. सब को कोरोना ने मारा. आंकड़ों का खेल है. Data Manipulation है कि नहीं ये.

जो भी जायेगा अस्पताल इलाज करवाने सर्द दर्द का, पीठ दर्द का,  दाँत दर्द का; सबका कोरोना टेस्ट होगा और फिर कोई भी किसी भी बीमारी से कोई मर गया तो उसे कोरोना से मरा घोषित किया जायेगा. 

मिसाल के लिए समझिये कि पहले 25  लोग हार्ट अटैक से मरते, 25  ब्रेन हेमरेज से, 25  कैंसर से, 25  किडनी फेल होने से. लोग अब भी 100 ही मर रहे हैं. लेकिन अब ये सब  कोरोना से मर रहे हैं. हार्ट अटैक वाले, कैंसर वाले, किडनी फेल वाले, लीवर फेल वाले सब कोरोना से मर रहे हैं. मौत का आँकड़ा शिफ्ट किया गया है. सब तरह की मौतों को कोरोना की लिस्ट डाल दिया गया है. 

जो कोई भी कोरोना से मरे बताये जा रहे हैं, वो ज्यादातर कोई और बीमारियों से पीड़ित थे, सीरियस बीमारियों से पीड़ित. या फिर वृद्ध थे. वैसे भी उन्होंने मरना ही था औसतन. इसमें नया कुछ भी नहीं है. 

मृत्यु कोई नई चीज़ है क्या? गुरबाणी कहती है,"जो आया सो चलसी, सब कोई आई वारी ए." 

we are all dead, it is the matter of time only. 

एक बार बुद्ध के पास एक औरत आई. रोती बिलखती हुयी. बुद्ध बैठे थे अपने शिष्यों के साथ. वो आई और उसने बुद्ध के चरणों में अपने मृत बेटे का शव रख दिया और कहा कि यह असमय मृत्यु को प्राप्त हुआ है, इसका अभी कोई समय नहीं था जाने का. यह तो बच्चा था, इसने अभी जीवन देखना था. मैं इसकी माँ जिंदा हूँ, इसका बाप जिन्दा है लेकिन यह मर गया. यह अनहोनी हुई है. आप तो सिद्ध-बुद्ध हैं.आप इसे जिन्दा कर दीजिये. बुद्ध ने कहा ठीक है, "मैं जिन्दा कर दूंगा. बस छोटा सा काम करना होगा आपको माते. आप किसी ऐसे घर से एक मुट्ठी मिटटी ला दें जहाँ मृत्यु न हुई हो."  

वो औरत तो बावली सी हो ही चुकी थी. भागी गाँव की ओर. पूरा गाँव घूम गयी. लेकिन एक मुट्ठी मिटटी न ला पाई. सांझ वापिस आई बुद्ध के पास, आँखों में आंसू. लेकिन अब वो बात समझ चुकी थी. मृत्यु अवश्यम्भावी है. बुद्ध को नमन किया और बेटे का शव वापिस ले गयी. 

ग़ालिब का शेर  है, "मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती" 

मौत का एक दिन तय है. मौत सबको आनी है. परेशानी किस बात की? लेकिन  परेशानी  है बहुत. अब सब मौत कोरोना से आ रही हैं जैसे कोरोना न होता तो सब अमर हो जाते. जैसे पहले कभी लोग मरते ही न थे. जैसे मौत का आंकड़ा एक दम से कोई बहुत ज़्यादा बढ़ गया. आप worldometers.info  पर जाएँ,  देखें। सिर्फ वहां जनसंख्या का आंकड़ा देखें, वो हर पल बढ़ रहा है. महा-मारी होती तो जनसंख्या बढ़ क्यों रही होती? 

है क्या कि मौतें चाहे किसी भी कारण से हो रही हैं, उन पर कोरोना का ठप्पा मार के कोरोना का आंकड़ा बड़ा कर के दिखाया जा रहा है. और कोरोना वाले शवों का अंतिम संस्कार कुछ खास श्मशानों में करना तय कर दिया गया है. सो वहां भीड़ बढ़नी ही है. उस बढ़ी हुई भीड़ को दिखाया जा रहा है. 

अब अगर आगे मौत का आंकड़ा थोडा बहुत बढ़ेगा भी तो वो कोरोना के नाम पर फैलाई गयी अफरा-तफरी की वजह से होगा. बद-इन्तेज़ामी और बेरोजगारी और मानसिक तनाव और डर की वजह से होगा. वो इलाज न मिलने की वजह से होगा चूँकि डॉक्टर लोग बाकी किसी रोग वालों को पूरी तवज्जो ही नहीं दे पा रहे. वो आंकड़ा इसलिए बढ़ेगा चूँकि लोगों को ठीक से साँस नहीं लेने दी जा रही.  घर में भी मास्क लगाने को बोला जा  रहा है,  कार में अकेले व्यक्ति को भी मास्क लगाने को बोला, डबल मास्क लगाने को बोला जा रहा है. लोगों को जब कुदरती  साँस लेने ही न दी जाएगी, उनके नाक-मुंह घोंट दिए जाएंगे,  डरा दिया जायेगा तो उनको नकली सांस देनी ही पड़ेगी. किसी को ऑक्सीजन मिलेगी, किसी को नहीं मिलेगी।  मौत का आंकड़ा  अब थोड़ा बढ़ भी सकता है, लेकिन वजह कोरोना बिलकुल  भी नहीं होगा.  

कोरोना के Experts की क्या स्टडी है? कितनी गहरी स्टडी है? देखते जाइयेगा. लगेगा जैसे लाल बुझक्क्ड़ इनसे ज़्यादा जानते हैं।  

अभी तक कह रहे थे कि कोरोना एक दूसरे को छूने से, चीज़ों को छूने से फैलता है अब कह रहे हैं कि नहीं नहीं कोरोना सरफेस छूने से नहीं फैलता. लोग हाथ धो-धो बावले गए, sanitizer  मल-मल पग्गल हो गए, अब कह रहे कि सरफेस छूने से नहीं फैलता कोरोना. 

पहले कह रहे थे कि घर में रहो कोरोना से बचे रहोगे। अब कह रहे हैं कि कोरोना हवा से फैलता है और घर में रहने से ज़्यादा फैलता है. यदि घर में रहने से ज़्यादा फैलता है तो फिर लॉक-डाउन से घटेगा या बढ़ेगा? 

एक खबर थी पीछे कि कोरोना २५००० साल से है. ठीक है. होगा. लेकिन इसका मतलब यह है २५००० साल से कोरोना के होने की बावजूद धरती पर जीवन पनपा है. फिर आज ऐसी क्या नई चीज़ हो गयी? जब २५००० साल से हम कोरोना के साथ जीए हैं, हमारी आबादी २५००० साल से कोरोना के होने के बावजूद बढ़ी है और आज भी बढ़ रही है तो फिर आज भी जी लेंगे न हम कोरोना मैडम के साथ. आज क्यों हाय-तौबा मचाई जा रही है?

बड़े मजे की बात है, जिस समय WHO ने कोरोना को वैश्विक महा-मारी घोषित किया था, तब भारत में तो किसी को कुछ पता ही नहीं था कि कोरोना भी कुछ है. यहाँ तो कोई मारा-मारी नहीं हुई थी. भारत में दुनिया की लगभग 18% आबादी रहती है. अगर सच में ही यह महा-मारी होती तो फिर WHO  को बताना थोड़ा न पड़ता, वो तो वैसे ही पता होता.

क्या आज तक आप ने कोई बीमारी ऐसी देखी  है जिसमें आप कहो कि  आपको कुछ नहीं हुआ लेकिन डॉक्टर कहे कि  नहीं आप बीमार हो? कोरोना ऐसी ही बीमारी है. An Asymptomatic Disease. मतलब बीमार होने के कोई लक्षण नहीं लेकिन फिर भी टेस्ट ने बता दिया कि आप बीमार हो तो हो. 

और इससे उल्टा भी कहा जा रहा है अगर टेस्ट नहीं भी हुआ या हुआ है लेकिन रिजल्ट आया नहीं है  लेकिन कोरोना के लक्षण हैं तो भी आपको कोरोना पॉजिटिव मान लिया जायगा. और कोरोना के लक्षण क्या हैं? वही जो खांसी ज़ुकाम नजले के होते हैं. 

वाह! एक्सपर्ट की Expertise.  

आगे देखिये, एक्सपर्ट्स कह रहे थे कि कोरोना अच्छी इम्युनिटी वालों पर कम असर करता है. गुड. अब ये क्या नई चीज़ बता दी? अच्छी इम्युनिटी वालों पर सभी रोग कम असर करते हैं. असल में आयुर्वेद तो वायरस को मानता ही नहीं. वो तो सीधा कहता है कि यदि आप मज़बूत हो तो रोग आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे यदि आप कमजोर हों तो कोई भी रोग आपको जकड़ लेगा. सिम्पल बात. और अच्छी इम्युनिटी कैसे होगी? घरों में बंद होकर? बेरोजगार होकर? रिश्तेदार-यार-दोस्तों से कट के? आपको याद है मुन्ना भाई MBBS फिल्म  में संजय दत्त की जादू की झप्पी. इम्युनिटी यारों से, रिश्तेदारों से, प्यारों से मिलने-जुलने से बढ़ती है भैया न कि घटती है. सब तो वो किया जा रहा है जिससे इम्युनिटी अच्छी हो तो  भी अच्छी न रहे. होना तो यह चाहिए था कि लोगों को खुले में रहने की सलाह दी जाती. खुली हवा-धूप लेने की सलाह दी जाती. प्राकृतिक खाना खाने की सलाह दी जाती. खुल के साँस लेने की सलाह दी जाती. प्राणयाम की सलाह दी जाती. अष्टांग योग में वायु को वायु मात्र नहीं माना गया. प्राण माना गया है. साँस द्वारा ली और छोड़े जाने वाली वायु को विभिन्न आयाम देने की क्रियाओं को प्राणायाम कहा है योग ने. लेकिन जब आप साँस द्वारा वायु ठीक से न अंदर लोगे और न ठीक से बाहर निकलोगे तो प्राण तो बाधित होगा कि नहीं. सिलिंडर बुक करना पड़ेगा कि नहीं. 

सब काम तो वो किये जा रहे हैं जिससे अच्छे-भले इंसान की इम्युनिटी गिर जाए. 

यह है एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़।  

एक टेस्ट RT-PCR खड़ा  कर दिया गया. टेस्ट बता रहा है कोरोना है तो है.  लेकिन टेस्ट का बताना  फर्जी भी तो हो सकता है. नहीं? चेक कीजिये, कहीं कोई विडियो है किसी के पास वायरस के अस्तित्व का? रियल टाइम में नुक्सान पहुंचाते हुए कोरोना का विडियो है क्या किसी के पास? क्या कोरोना, निपट कोरोना से मरने वाले का कोई पोस्ट मोर्टेम  का विडियो है किसी के पास? सवाल तो यह भी उठता है कि कोरोना जानवरों को नुक्सान क्यों नहीं पहुंचा रहा? वो भी तो जान-वर हैं. जब डॉक्टरी सिखाते हैं तो जान-वर को चीर-फाड़ दिल-गुर्दा-फेफड़ा दिखाते हैं कि नहीं। ज़हर  इंसान को दो, वो मर जायेगा, जानवर  को दो, वो मर जायेगा। लेकिन वायरस  मारता है सिर्फ इन्सान को ! एनाटोमी कहीं मिलती जुलती भी तो है. साँस तो वो भी ले रहे हैं. और जब वायरस हवा से ही फैलता है तो उनको नुक्सान क्यों नहीं पहुंचाता यह वायरस?  

मैंने तो अपनी गली का कोई कुत्ता इस ढेढ़ साल में मरते नहीं देखा. लेकिन अब खबर है कि शेरों में कोरोना पाया गया. एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़ है, सवाल कोई कैसे खड़ा करे? मजाल किसी की कहाँ? 

क्या कोई एक भी सबूत है टेस्ट के अलावा जिसे आम जनता को दिखाया सके  कि कोरोना  किसी भी लिविंग-बीइंग को कैसे और क्या नुक्सान करता है? क्या एक्सपर्ट्स ने साबित  किया कि कोरोना वायरस का साइज  ऐसा  है कि वो मास्क में से नहीं  गुज़र सकता?  अभी थोड़े महीने  पहले ही भारतीय सरकार  ने कहा था N -95 मास्क बेकार हैं. लेकिन कब कहा था? जब करोड़ों  N -95 बिक चुके थे. अब डबल मास्क लगाने को कहा जा रहा है.  कार में अकेले हैं फिर भी मास्क लगाने को कहा जा रहा है. कार में चलता हुआ अकेला व्यक्ति किसी के लिए क्या खतरा बनेगा? 

कोई भी वैक्सीन डेवेलप करने में १०-१५ साल लगते हैं और अब  एक-डेढ़ साल में ही वैक्सीन डेवेलप  भी हो गयी. और सबको लगेगी ही लगेगी. मतलब आप नहीं लगवाओगे तो आप पर पाबंदियां इतनी लगा दी जाएंगी की आप चाहो न चाहो वैक्सीन आपको ठुकवानी ही पड़ जाएगी.  

लेकिन आप सवाल नहीं उठा सकते.  एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़ है.

क्या दुनिया में सिर्फ एलॉपथी ही एक मात्र चिकित्सा विधि है? क्या प्राकृतिक  चिकित्सा, आयुर्वेद, योगिक-चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा, मनो-चिकित्सा  जैसी  कोई और विधि नहीं होती इलाज की? क्या इन विधियों ने वायरस को माना है? यदि नहीं तो फिर कैसे एकदम वायरस के अस्तित्व को आधार बना कर  वैश्विक आपदा घोषित कर दी? WHO के कहने मात्र से? एलॉपथी ने कितनी ही दवा दुनिया भर को खिलाने बाद वापिस नहीं ली क्या, ये कह के कि ये दवाएं घातक हैं? तब कहाँ जाती है, अंग्रेज़ी चिकित्सा की महा-विद्या?

लेकिन एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़ है. क्या बोलें?

इम्युनिटी, बीमारी और मृत्यु का मानसिक पहलु भी तो है. प्राणी सिर्फ शरीर थोड़ा न है. मेडिकल वर्ल्ड में प्लासीबो  इफ़ेक्ट और नोसीबो इफ़ेक्ट, दोनों को प्रभावी माना जाता है. 

ऐसे प्रयोग किये गए हैं कि दवा के नाम पर मीठी गोलियां दी गयी और बीमार ठीक हो गया. इसे प्लेसिबो इफ़ेक्ट कहते हैं. 

इसका उल्टा भी होता है. नोसीबो इफ़ेक्ट. बीमारी हो न लेकिन बीमारी घोषित हो जाये और लोग सच में बीमार होने शुरू हो जाएं. रस्सी को साँप समझाया जाये और लोग सांप ही  समझने लगें. खांसी-ज़ुकाम को कोरोना बताया जाये और लोग समझ जाएं. और अस्पतालों में भर्ती होने लगें. क्या आपको पता है कुत्तों को भी हार्ट अटैक होते हैं? डर इतना खतरनाक होता है कि पंगु कर देता है. ब्रेन हेमरेज हो जाये, हार्ट अटैक हो जाये. मन का तन पर असर है यह. क्वारंटाइन में पड़ा इन्सान तो वैसे ही अधमरा सा हो जायेगा. जिस तरह का माहौल  बनाया जा रहा है इसमें सब पग्गल से हो चुके हैं. क्या आज से पहले किसी ने खांसी ज़ुकाम होने पर ऑक्सीजन चेक की थी?  क्या आज से पहले ज़ुकाम होने पर नाक बंद नहीं होती थी? क्या सूंघेगा आदमी जब नाक बह रही हो? लेकिन आज घबराया हुआ है हर आदमी और यही घबराहट वजह बनेगी महा-मारी की. इससे बचना है तो थोड़ा डुबकी मारनी ही होगी स्थिति की वास्तविकता को समझने के लिए. Important यह नहीं है कि आप पढ़े-लिखे हैं, Important यह है कि आप पढ़ते-लिखते हैं कि नहीं. स्टडी कीजिये. टिक-टोक में टाइम मत गंवाईये. आपकी, आपके बच्चों की जिंदगियों का मामला है स्टडी कीजिये. 

सुनी होगी आपने कहानी। राजा सोया हुआ था,  एकदम नींद खुल गयी, हड़बड़ा कर उठा तो देखा, एक काला साया दिखा।  “कौन?”,  राजा ने पूछा. उसने कहा, “मैं महामारी हूँ. कोई एक हज़ार लोगों को मार दूंगी.”  महामारी अपने रस्ते निकल गयी।  फिर अगली रात राजा को वही साया दिखा. राजा बहुत परेशान था सो नहीं पाया था, कोई 10000 मौत हो चुकीं थी.  वो साया वापिस लौट रहा था। राजा ने पूछा, "तुमने तो 1000 लोग मारने का बोला था,  फिर भी 10000 लोग मार दिए?"  उसने जवाब दिया, "मैंने तो 1000 ही मारे हैं, बाकी 9000 तो डर से मरे हैं." 

कोरोना महामारी नहीं है, लेकिन डर निश्चित ही महा-मारी है और वैश्विक-डर वैश्विक-महामारी है. 

अब मैं  देता हूँ आपको कुछ नाम  एक्सपर्ट्स के. David Icke.  (डेविड आइक) इन के कोई 6 घंटे के  इंटरव्यू देखे मैंने.  कोरोना का पर्दाफाश करने वालों में सबसे बड़ा नाम है इनका. इनको फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब सब जगह बैन किया जा चुका है. davidicke.com यह वेबसाइट है इन की. इनकी वेबसाइट पर आपको कई लेख मिल जाएंगे पढ़ने लायक. विजिट कीजिये, वरना सरकारी मैटिरियल पर ही यकीन करते रहेंगे.

Dr Andrew Kaufmaan, Dr Rashid Buttar, Dr Shiva, ये कुछ एक्सपर्ट्स हैं अमेरिका के जो कोरोना वायरस को इंकार करते हैं. 

भारत के बिस्वरूप चौधरी को ढूँढो हालाँकि ये यूट्यूब, फेसबुक आदि पर बैन हैं. फिर भी ढूँढो. इनको सुनो. चंद लोगों में से हैं जो तुम्हें कोरोना से बचा सकते हैं. दवा नहीं देंगे, दुआ भी नहीं. अक्ल देंगे. ढूँढो कोरोना से बचना है तो.

ये चंद नाम हैं, इनको ढूंढिए और इनके विचार सुनिए. आपको तर्क करने के लिए मटेरियल चाहिए होगा. चाहे वो तर्क खुद से करना हो चाहे किसी और से. ये लोग आपको मटेरियल देंगे सोचने-समझने के लिए. कोरोना को विभिन्न पहलुओं से आपको समझायेंगे।  इन लोगों को आप तक पहुँचने ही नहीं दिया जा रहा. किसी भी निष्पक्ष सरकार का फ़र्ज़ बनता है कि वो विरोधी विचारों को भी प्रवाहित होने दे, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया .

सरकार कह रही है कि अफवाहों से बचें. ठीक है. लेकिन अफवाह क्या है? कैसे साबित होगा? जब सरकार जनता को सोचने तक नहीं देगी तो क्या पता अफवाह क्या है? सच क्या है ? 

आप सवाल उठाते है कि कोरोना यदि घातक नहीं तो  फिर  सारी दुनिया में तहलका क्यों है? जवाब यह है कि इन्सान सिर्फ मानता है, वो सोचता कहाँ है?  

है क्या कि इन्सान को तर्क करना नहीं सिखाया गया. उसे विश्वास करना सिखाया गया है. सारी पेरेंटिंग, स्कूलिंग विश्वास करना सिखाती है. सारा समाज विश्वास करना सिखाता है. तर्क करना कोई नहीं  सिखाता. इसलिए आम इन्सान कुछ भी मान लेता है. 

दूसरी बात, वो तर्क करता भी है तो बड़ी जल्दी सरेंडर कर देता है. जैसा बच्चा पूछता है कि मैं कहाँ से आया. हनुमान जी दे गए थे. सवाल कितना गहरा है. आज तक कोई ठीक से जवाब न दे  पाया कि मैं कहाँ से आया लेकिन हनुमान जी दे  गए थे, बात खत्म. इतने बड़े सवाल का इतना सीधा जवाब, बात खत्म. ऐसे ही आम इन्सान बहुत आगे तक तर्क नहीं करता. बड़ी जल्दी हार जाता है. 

तीसरी  बात, आम इन्सान तर्क को तर्क की गहराई से नहीं नापता, बल्कि तर्क कहाँ से आ रहा है, वहां से आंकता है. वो यह नहीं देखता की तर्क "क्या" है,  वो यह देखता है तर्क "कौन"  दे रहा है. वो “क्या” की बजाए “कौन” से ज़्यादा प्रभावित होता है. अगर कोई डॉक्टर तर्क दे  रहा है, सरकार कोई तर्क दे  रही है तो ठीक ही होगा. आम इन्सान हिम्मत ही नहीं करता, उन तर्कों के खिलाफ सोचने का.

चौथी  बात, आम इन्सान भीड़ से बड़ी जल्दी प्रभावित हो जाता है, यदि भीड़ एक तरफ है तो उसे लगता है कि भीड़ सही ही होगी. वो भीड़ से सम्मोहित हो जाता है. Walter Lippmann के मशहूर शब्द हैं, 'Where all think alike, no one thinks very much.” जब सब एक ही जैसा सोचते हैं तो असल में कोई भी कुछ खास सोचता ही नहीं. भेडचाल में बहे जाते हैं सब. हमारे एक प्रॉपर्टी डीलर को कागज़ात देखने नहीं आते. ज़्यदातर डीलरों को कागज़ात देखने नहीं आते. तो वो बन्धु कागज़ात देखते हुए कहते, “यदि दस बार बिकी है ये प्रॉपर्टी तो कागज़ात ठीक ही होंगे, जिन दस लोगों ने पहले खरीद की है, वो कोई बेवकूफ थोड़ा न होंगे.” आप हंस सकते हैं लेकिन आप भी ऐसे ही तर्क खुद को देते हैं.   

पांचवी बात..... इंसान विचार कर सकता है लेकिन करता नहीं है. वो विश्वास करता है. विचार करने के लिए श्रम लगता है. विश्वास सीधा किया जा सकता है, कोई श्रम की ज़रूरत नहीं. विचार करने के लिए तन-मन-धन सब लगाना पड़ सकता है, विश्वास अंधे हो के किया जा सकता है. कोई किताब-रसाला पढ़ने की ज़रूरत नहीं. कोई यूट्यूब वीडियो देखने की ज़रूरत नहीं. विश्वास आसान रास्ता है, विचार बहुत श्रम मांगता है. तुम आसान रास्ता चुनते हो. मिसाल देता हूँ. तुम्हे कोरोना-कथा सुनाई गई. तुमने उसे सत्य-कथा मान लिया. तुमने कोशिश की क्या कोरोना-कथा के तथ्यों को परखने की? नहीं की. अधिकांश ने कोई कोशिश नहीं की गहरे में जाने की. 

छठवीं बात........आम बंदे को यह लगता है कि यदि कोरोना कुछ नहीं तो सरकार कैसे चुप है? सरकार क्यों कॉलर tune जबरदस्ती सुनवा रही है. असल बात यह है कि लोकतंत्र में जो सरकार चुनी जाती है, उसमें  कोई बहुत बुद्धिशाली लोग होते ही नहीं. हो ही नहीं सकते. इसलिए चूँकि उस सरकार को कोई वैज्ञानिक, कोई कलाकार, कोई इतिहासकार, कोई साहित्यकार नहीं चुनते. वो सरकार आम लोग चुनते हैं. और उस सरकार में कोई एक्सपर्ट नहीं चुने जाते. आम लोग चुने जाते हैं. जो साम-दाम-दंड-भेद जैसे भी सत्ता पर काबिज़ हो जाते हैं. सत्ता में आने के बाद भी इनका ज़्यादा समय सत्ता बचाने में ही लगा रहता है. ये कैसे किसी भी विषय की गहनता में जायेंगे? एक मंत्री राम दास अठावले तो “कोरोना गो, गो कोरोना” ऐसे गा रहे थे जैसे कोई मान्त्रिक भूत भगा रहा हो. एक मिनिस्टर अशोक गहलोत तो भूल ही गए कि उन्होंने लॉक- डाउन लगाया है कि क्या लगाया है. वैसे सरकार जी पर नेशनल/ इंटरनेशनल प्रेशर भी रहता है. एकदम स्वतंत्र निर्णय लेना मुश्किल काम है इनके लिए. कोरोना के मामले में ऐसा ही हुआ है, भारतीय सरकार ने WHO के दावों पर कोई भी स्वतंत्र स्टडी, कोई एक्सपेरिमेंट नहीं किये, बस WHO का कथन ब्रह्म-वाक्य की तरह मान लिया. 

अब चूँकि सरकार कह रही है कोरोना है, बल्कि सब सरकारें कह रही हैं, डॉक्टर कह रहे हैं. हर कोई कह रहा है कोरोना है तो कोरोना है. ऐसे में कौन तर्क भिड़ाये, क्यों तर्क भिड़ाये, क्यों आंकड़ों का विश्लेष्ण करे, कौन मेहनत करे?

फिर भी मैं आपको कह रहा हूँ कि हिम्मत करो. सोचो. 

आपको लगता है कोरोना-मास्क-लॉक-डाउन चंद दिनों का खेल है, जीवन वापिस पटरी पर आ जायेगा. नहीं आएगा. संभावना  यह है कि दुनिया को ऐसे डेड-एन्ड तक ले जाया जाएगा जहाँ से आम ज़िंदगी में कभी वापिसी नहीं हो पाएगी. सब planned  लग रहा है. प्लॉट Contagious फ़िल्म से उठाया गया लग रहा है. ऐसा लगता है जैसे इसमें Computer Programming  का एक्सपीरियंस भी जोड़ा गया है. Human Mind बड़ी आसानी से program किया जा सकता है, कंप्यूटर की तरह. Virus एक प्रोग्राम होता है औऱ Anti-virus  भी. Corona एक प्रोग्राम है और Vaccine भी. लेकिन प्लान वैक्सीन बेचने का ही नहीं है, उससे कहीं आगे का प्रतीत हो रहा है. अफरा-तफरी मचा के सब सिस्टम खत्म कर, New World Order  खड़ा करने का. 

The Johns Hopkins Center  और  Bill and Melinda Gates Foundation ने  Event 201 आयोजित की थी. यह एक एक्सरसाइज थी कि यदि वैश्विक महामारी फैलती है तो दुनिया इसे कैसे झेलेगी, कैसे रियेक्ट करेगी. 

सितम्बर 2019 में इवेंट 201 किया गया था और दिसंबर 2019 में covid -19 घोषित कर दी गयी. इत्तेफ़ाक़ इतना ज़्यादा है कि शक होना लाज़िम है कि रिहर्सल करने के बाद असल खेला शुरू कर  दिया गया. 

असल में यह जो सेकंड वेव कोरोना की बताई गयी है, पहले से ज़्यादा खतरनाक बताई गयी है, वो खतरनाक बताना ही पहले से ज़्यादा खतरा बन रहा है. पहले से ज़्यादा डर. फिर तीसरी वेव और ज़्यादा खतरा बताई जा सकती है. डर,  बद-इन्तेज़ामी, अफरा-तफरी और बेरोज़गारी जितनी बढ़ती जाएगी उतनी मृत्यु दर बढ़ने की सम्भावना है और वजह बताई जायेगी कोरोना. 

Corona  से इस दुनिया की कोई वैक्सीन, कोई डॉक्टर, कोई वैज्ञानिक, कोई सरकार तुम्हें नहीं बचा सकती. एक ही चीज़ बचा सकती है. डर से बाहर आओ. सरकारी आंकड़ों की छानबीन करो. आंकड़ों का विश्लेषण करो. देखो और सोचो, यदि कोरोना वैश्विक महा-मारी है तो विश्व की जनसँख्या बढ़ क्यों रही है जो मौतें हो रही हैं, पहले से बहुत ज़्यादा हो रही हैं क्या? उनमें से कितनी मौत के डर से, इलाज न मिलने की वजह से, बेरोज़गारी से, मानसिक तनाव से,  सामाजिकता न मिलने से, अफरा-तफरी की वजह से, पुलिस-कोर्ट में ठीक से सुनवाई न होने की वजह से हुईं? आँकड़े ढूंढों और विश्लेषण करो यदि बचना है तो.

पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत्त. गुरबाणी में कहा गया है. हवा गुरु है, पानी पिता है और धरती माता है. लेकिन अब पवन जो गुरु हैं वो हमारी दुश्मन है. उसमें ज़हर है, वायरस है. हो सकता है क्या ऐसा? लेकिन आप ज़िंदा अपनी वजह से नहीं हो. आप जिन्दा इसलिए हो क्यूंकि सामूहिक चेतना, Cosmic  Consciousness  ने  चाहा कि आप जिन्दा रहो. उसने सारे इंतज़ाम किये कि आप ज़िंदा रहो. उसने हवा, धुप, पानी सब इस ढंग से बुना कि आप जिन्दा रह सको. उसने गर्मी पैदा की तो तरबूज़ भी पैदा किये, नारियल भी पैदा किये। उसने सर्दी पैदा की तो मूंगफली भी पैदा की,  बादाम भी पैदा किये. उस सामूहिक चेतना का ताना-बाना ही है जो बाकी जानवर जिन्दा हैं. यदि उसने जीवन हवा से ही खत्म करना होता तो फिर जीवन सिर्फ इंसान का ही खत्म थोड़ा न होगा. साँस तो बाकी जानवर भी ले रहे हैं. सो कुदरत सपोर्ट ही नहीं कर सकती कि कोई वायरस इस तरह से जिंदा रहे और मात्र इंसानी जीवन को नुक्सान पहुंचाए.  चूँकि कुदरत का हवा-पानी- धुप-गर्मी-सर्दी का ताना बाना यदि जीवन को नुक्सान पहुंचाएगा तो फिर वो सारे तरह के जीवन को नुक्सान पहुंचाएगा. थोड़ा बुद्धि लगाएं, बात समझ आ जाएगी. 

किसान आंदोलन सबूत है कि कोरोना असल में कुछ नहीं है. किसान महीनों से बैठे हैं सड़क पर. कोई मास्क नहीं, कोई सोशल डिस्टेंसिंग  नहीं. कौन सी महा-मारी फ़ैल गयी वहाँ? जो मौतें हुईं, वो औसतन वैसे भी होनी थी. जब इतने लोग जमा होंगे कहीं तो कोई न कोई तो वैसे भी मर सकता है, इसमें क्या बड़ी बात? बंगाल में रैलिया होती रहीं भीड़ जमा होती रही, कुछ महा-मारी न हुई. अमित शाह और मोदी बिना मास्क के घुमते दीखते  हैं, क्यों? चूँकि उनको पता है कोरोना कुछ नहीं है. 

सवाल तो बनते हैं. उठाओ तो. नहीं उठाया तो कल फिर किसी और नाम से डराया जायेगा और दुनिया उथल पुथल कर दी जाएगी. कल कहा  जा सकता है की एलियन अटैक करने वाले हैं. शहर  छोड़ों, जंगल जाओ. कुछ भी कहा जा सकता है. सो आवाज़ उठाओ. हम अपनी ज़िन्दगी के इतने अहम फैसले क्या किसी सरकार को करने देंगे जो कि किसी भी संस्था के कहने मात्र से सब सिस्टम बदल दे. हमें आंकड़े चाहिए, आंकड़ों का विश्लेषण चाहिए, हमें कोरोना के सबूत चाहिए.

किशोर अवस्था में ओशो की एक किताब पढ़ी थी, "अस्वीकृति में उठा हाथ". आज मेरा हाथ भी कोरोना की जो थ्योरी पूरी दुनिया में चलाई जा रही है उसके खिलाफ अस्वीकृति में उठा है. इसका मेरे  पास प्रैक्टिकल सबूत भी है. जिस कॉलोनी में मैं रहता हूँ, कोई अढ़ाई-तीन हज़ार लोग होंगे यहाँ. पिछले डेढ़ साल में मात्र 5-6  लोग expire हुए हैं मेरी जानकारी में. जिनमें से एक मेरी माँ  भी थीं. वो कोई 85 -90  साल के बीच थीं. और तकरीबन आठ साल से बीमार थीं. दूसरे एक व्यक्ति भी कोई सात साल से बेड  पर थे और तकरीबन सत्तर साल के थे. बाकी लोग 60 -65  साल के थे. ये न तो कोई महामारी  हुई  और न ही कोई हाहा-कारी हुई. 

दूसरी बात, वो यह कि मेरा व्यक्तिगत तजुर्बा है कि नजले-खांसी में रहन-सहन, खान-पान बदलने से तुरत फायदा मिलता है. फ्रूट, सलाद ज़्यादा खाया जाये, अन्न बंद कर दिया जाये या कम कर दिया जाये, खुद बनाया हुआ सब्जियों का सूप और नीबूं पानी पीया जाये, स्टीम  सब्जियों खाई जायें तो फायदा मिलता है. हल्का व्यायाम और प्राणायाम भी फायदा देता है. स्टीम लेने से और गर्म पानी पीने से भी फायदा होता है. कुछ ही दिन में नजला गो, गो नजला हो जाता है. यह कोई बहुत चिंता वाली बात होती नहीं. अगर होती तो अब तक कई बार मर चुका होता मैं .  

आप समझ भी रहे है क्या कि आपके लगभग सब हक़, जिनके लिए इन्सान ने सदियों संघर्ष किया है एक झटके में खत्म किये जा रहे हैं? आज आपका कमाने का हक़, रिश्तेदारों-मित्रों को मिलने-जुलने का हक़, घूमने-फिरने का हक़, अपनी बात खुल कर कहने का हक़, इलाज पाने का हक़,.ठीक से साँस लेने का हक़.... सब हक़ खत्म किये जा रहे हैं.  शक्ल तक दिखाने का हक़ नहीं है आपको आज. आज आप एक शक्ल विहीन प्राणी हैं. आपकी कोई पहचान नहीं है. ...... ये हक़ आपको वापिस पाने होंगे। आपको बुद्धि प्रयोग करनी होगी. करनी ही होगी. 

आपने यहाँ तक मेरी बात को सुना, शुक्रिया. मेरी नजर में कोरोना Pandemic नहीं है, Plandemic है. Scamdemic है. कोरोना मृत्यु के आंकड़ों का गलत प्रेजेंटेशन है, समाज में फैलाया गया डर है, आम-जन को सब तरह के इलाज से विहीन करना है, मास्क लगवा कर कुदरती साँस लेने से दूर करना है, लॉक-डाउन लगवा के खुली हवा-खुली धूप से विहीन करना है, दाल-रोटी कमाने से महरूम करना है, डर के माहौल में मरे-मरे जीना सिखाना है कोरोना. कोरोना इन्सान को लगभग सभी बुनियादी हकों से महरूम करना है. यह मेरा नजरिया है. 

लेकिन मेरी नज़र खराब हो सकती है. नजरिया गलत हो सकता है. सौ प्रतिशत गलत. सो आपको मेरी कोई भी बात बिलकुल भी माननी नहीं है. बस विचार करनी है. नमस्कार. 

~  तुषार कॉस्मिक  ~

इसी लेख का विडियो रूप यहाँ देख सकते हैं.......

https://www.facebook.com/tushar.cosmic/posts/10218774195007405

Tuesday, 6 April 2021

बड़ी फेस-बुक फ्रेंड लिस्ट- एक सर दर्द

 लड़कपन में पैसे होते थे वही जो जेब खर्च मिलते. मिल बाँट कर खाते कई बार. लेकिन सबको लगता कि खाना कम पड़ गया. मन रखने को यार अक्सर कहते, "चाहे थोड़ा खाओ लेकिन अच्छा खाओ."

आज लगता है, कितनी सही बात थी. हम फेसबुक लिस्ट में लोग भरे जाते हैं. फ़िज़ूल. जिनका हम से कोई मतलब नहीं और जिनसे हम को कोई मतलब नहीं. बड़ी मुश्किल कोई 1000 लोग हटाये हैं, अभी अभियान जारी रहेगा. लंबी मेहनत है.
थोड़े लोग रखो लेकिन मतलब के लोग रखो.
मित्रवर, मैं बड़ी तेजी से मित्र-सूची छोटी कर रहा हूँ. हालाँकि बहुत श्रम का काम है लेकिन कर रहा हू. अभी बस 6/700 लोग ही हटा पाया हूँ. कुछ मित्रों ने तो 3-3 id से प्रवेश किया हुआ था. किसी को देखा तो सालों से पड़ा हुआ है लिस्ट में लेकिन न उसने मेरी सुध ली और न मैंने उसकी.
कोई बस नाश्ता-पानी की फ़ोटो ही पोस्ट कर जा रहा है.भुक्खड़. कोई बस पॉर्नहब चला रहा है. कोई भाजपा का एजेंट है तो कोई कांग्रेस का.
असल में हम शुरू में सब लोग भर्ती करे जाते हैं लेकिन फिर फेसबुक ने तो सब की ज़िंदगियाँ दिखानी हैं. न चाहते हुए बहुत कुछ ऐसा देखना पड़ता है जो हमारी ज़िंदगी में कोई value-addition नहीं करता.
सो अब कोई कद्दू में तीर नहीं मार रहा और न ही किसी को मित्र-सूची में लेकर अहसान कर रहा हूँ. लेकिन इनएक्टिव मित्रों को दूर करना चाहता हूँ.
असल में जो लोग मेरे लेखन-वादन में रूचि नहीं रखते, वो अधिकांशत: मेरे लिए काम के नहीं हैं. चुनिन्दा लोग ही बचेंगे और चुनिन्दा ही नए आयेंगे. नए भी जो इनएक्टिव रहेंगे, हटा दिए जायेंगे. कोई अच्छा/बुरा न माने. बस वकत-ज़रूरत और सोच-समझ की बात है. कुछ ही ख़ास किस्म के लोगों की तलाश है बाकी सबको अलविदा. फिर भी किसी को लगता हो कि वापिस आना है तो वापिस लिया जा सकता है.
वैसे मेरा प्रोफाइल खुला रहता है, बिन मित्र सूची भी कोई भी कुछ भी पढ़-सुन सकता है.
और जिनको साइलेंट ही रहना है या फिर पड़े रहना है लिस्ट में तो उनसे गुज़ारिश है कि खुद ही चले जाएँ, बड़ी मेहरबानी होगी.