Saturday, 20 June 2015

रावण कितना महान, कितना मूर्ख, आयें देखें

1) रावण को राक्षस तो मानते ही हैं पर बहुत सम्मान भी देते हैं, दशहरे पे तो मैंने अक्सर देखा ही लोग जलते रावण की एक लकड़ी घर ले जाना पसंद करते हैं......घर में ले जा के कहीं ठूंस के रखते हैं साल भर.....बहुत शुभ मानते हैं ऐसा करना......कहीं कहीं तो रावण की पूजा भी होती है .....दस सर जितनी बुद्धि मानी जाती है रावण में .......एक अकेला, दस जितना बुद्धिमान ......

2) कहा जाता है कि रावण जैसा महान भाई सब को मिले जो अपनी बहन शूर्पनखा के सम्मान के लिए सब कुछ कुर्बान कर गया......तो मित्रो, आपको बता दूं यही रावण ने शूर्पनखा को विधवा किया था.....शक्ति के मद में चूर रावण युद्ध में अपने जीजा को पहचान न सका और गर्दन काट दी उसकी (उत्तर कांड/ सर्ग 23-24)

3) अगली बात, रावण महाराज एक बलात्कारी व्यक्ति है ....वो बलात्कार करता है बहुत सी स्त्रियों का .....उसके फलस्वरूप उन्हें एक श्राप मिला होता है कि उसकी मृत्यु का कारण कोई स्त्री ही बनेगी ....और वो रम्भा का भी बलात्कार करता है जिसके फलस्वरूप उसे श्राप मिला होता है कि वो किसी भी स्त्री यदि भविष्य में बलात्कार करेगा तो उसके सर के सात टुकड़े हो जायेंगे, इसी लिए वो सीता के साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करता, मनाने की कोशिश करता रहता है.(उत्तर कांड/सर्ग 27)

4) रावण बिना मतलब वाली से जा भिड़ता है, महज युद्ध की खातिर युद्ध, फिर तो वाली उसकी वो गत बनता है कि तौबा तौबा, और उस रावण को महान शक्तिशाली, महान बुद्दिशाली बताया जाता है.(उत्तर कांड/सर्ग 34) 

5) रावण को पता था कि सीता हरण के बाद राम प्रयास करंगे सीता छुड़ाने का, आक्रमण का, बजाये उस आक्रमण को निष्फल करने के, वो देखता रहता है कि राम समुद्र पे पुल बना लें और उस तक पहुँच के आक्रमण कर दें, यह कहाँ की युद्ध विद्या? 

यह सरासर मूर्खता है ....राम खर और दूषण आदि को मार चुके थे.....उसके बाद रावण ने सीता हरण किया था......क्या रावण इतना मूर्ख था कि यह तक न समझ सका कि राम आक्रमण कर सकते हैं? ....क्या उसकी गुप्तचर व्यवस्था इतनी अशक्त थी कि उस तक कोई ख़बर न पंहुचा सकी कि राम क्या कर रहे थे?

यहाँ यह बात बताना चाहता हूँ कि वाली को सर्वप्रथम राम के बारे में अपनी बीवी तारा के मुख से पता लगता है और तारा को अपने पुत्र अंगद के जासूसों से --(वाल्मीकि रामायण/ किष्किन्धा कांड/ सर्ग-15/ 15-21)

6) रावण को पता लग चुका था.....मारीच के ज़रिये...हनुमान के ज़रिये भी ....कि राम कोई साधारण योधा नहीं.....फिर हनुमान भी कत्लेआम मचा चुके थे लंका में

हनुमान कोई दूत की तरह लंका में प्रवेश नहीं हुए थे, दूत होते तो सीधा रावण से मिलते, नहीं, वो पहले जासूस की तरह सीता से मिलते हैं, रावण की अशोक वाटिका उजाड़ते हैं, उसके योधयों को मारते हैं, फिर रावण दरबार में पहुंचाए जाते हैं....इस तरह के उत्पाती जासूस को रावण विभीषण के कहने पे मृत्युदंड देने का विचार त्याग देता है

7) और तो और रावण को पता था कि विभीषण खुले आम शत्रु का पक्ष लेता था, ऐसे में बजाये विभीषण को कैद करने के या उसका वध करने के, खुला छोड़ देता है जो तुरंत ही शत्रु पक्ष से जा मिलता है और रावण की पराजय का एक कारण बनता है 

8 ) रावण को राम की शक्ति के बारे में खर और दूषण के वध से ही पता लग चूका था, उसके बावजूद, वो एक एक करके अपने योधा भेजता है राम से लड़ने और वो एक कर के सब मरते रहते हैं...

उधर से सब लड़ रहे हैं इकठा...क्या हनुमान, क्या राम, क्या लक्ष्मण, क्या बन्दर, क्या भालू, सब...

और यहाँ से एक एक करके आते हैं योधा लड़ने मरने 

और ऐसा तब था जबकि राम वाली को मार चुके थे, उस वाली को जिसने रावण को बड़ी आसानी से धूल चटा दी थी, उस वाली को जो रावण को कांख में ले ऐसे उड़ रहा था जैसे रावण कोई तिनका हो, उस राम से लड़ने को रावण एक एक कर के योधा भेजता रहता है...... इसे अक्ल कहेंगें?..इसे युद्ध विद्या का ज्ञान कहेंगें?

नहीं, सब को टूट पड़ना था एक साथ...फिर शायद कहानी कुछ और होती..फिर शायद आप हम रामायण की जगह रावणयण पढ़ रहे होते ...फिर शायद रावणलीला खेली जाती गली गली.....
"जयमेव सत्य"

9) और क्या महानता है रावण की, अपने अपमान का बदला लेने के लिए लंका की लाखों स्त्रियों, बच्चों को जिंदा जलाया गया उस युद्ध में.....नर मारे गए....जलाये गए......लंका बर्बाद हो गयी.......किसलिए? 

मात्र रावण की बेवकूफियों की वजह से और वो बुद्धिमान है, शक्तिशाली है.....

इतना ही महान था तो सीधा राम को दो दो हाथ करने की, एक के साथ एक लड़ने की चुनौती देता.....

शायद बाकी लोग बच जाते इस तरह .....

जैस आज राजनेतायों की आपसी खींचातान में आम आदमी दंगों का शिकार होता है, आम आदमी सरहदों पे शहीद होता है, आम आदमी के घर बम से उड़ा दिए जाते हैं.....वो ही सब तो हुआ तब भी.....बेचारे आम लोग मारे गए दोनों तरफ से......

आपको बता दूं वानर सेना भी कोई अपने आप न आयी थी लड़ने, वानरों को भी डरा धमका कर, लालच दे कर या फ़िर मार कूट कर इकठा किया गया था....
मृत्यु के भय और आर्थिक लाभ के कारण लड़ी थी वानर सेना, देखें .

See how Vanar Sena was gathered by Sugreev. Sugreev ordering Hanuman, "Oh, Hanuma, you quickly summon all of the topmost speeded vanara-s by employing concessions, conciliations and the like procedures. [4-37-2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9]

"And such of those vanara-s that do not arrive within ten days by my command, those miscreants are eliminable as the abusers of king's decree. [4-37-12]

Sugreev says similar thing to Nal,
"And, the monkey who arrives here after fifteen nights, to him termination of life is the punishment, there is no business for further adjudication. [4-29-32]

On hearing that command of the king of kings of Vanara-s, Sugreeva, who is semblable with the Death-god and Time-god, all of the monkeys have arrived with the terror of Sugreeva haunting them. [4-37-19]


10) 
Ravna Committed a strategic mistake in War against Ram.He sent Meghnada who got killed.
Then he sent KumbhaKaran who also got killed.
Then he himself jumped in the war & got himself killed.

11) रावण को जो हम बड़ा करके दिखाते हैं, वो मात्र राम को बड़ा करने को....


यदि विलेन बड़ा न होगा तो हीरो कैसे बड़ा दिखेगा......

हालाँकि रामायण में हीरो कोई भी नहीं दीखता मुझे...

मैं राम और रावण दोनों की आलोचना करता हूँ....दोनों को अपनी अपनी जगह गलत मनाता हूँ......

एक बात सुनी होगी अक्सर आपने कि सब अपनी जगह ठीक हैं......लेकिन है उल्टा ...सब अपनी जगह ग़लत हैं.......हमारा पूरा समाज गलत है......जो लोग एक दूसरे के कट्टर विरोधी होतें हैं, वो भी गलत होते हैं......अपनी जगह पे सब ग़लत.....जैसे टीवी पे आप बहस सुनते हैं न विरोधी दल के नेतायों की......एक नेता दूसरे पे आरोप लगाता है जब वो स्वयं को सही साबित नहीं कर पाता....हाँ, दूसरे की कमियां ज़रूर गिनवा देता है......जैसे दूसरे के गलत होने से वो सही हो जाएगा.....नहीं....सब गलत हैं अपनी अपनी जगह......समाज का पूरा तानाबाना ही गल चूका.....हम बस लाश ढो रहे हैं.........दाह संस्कार करने की हिम्मत ही नहीं हम में....

12) और जब तक पुराना विदा न करेंगें, नया न ला पायेंगें...इस मुल्क का दुर्भाग्य है कि हम आज भी लाशें ढो रहे हैं और इस वहम में जी रहे हैं कि हम कोई जिंदा कौम हैं ..नहीं... बस वहम है जिंदा होने का...जिंदा कौमें लाशें नहीं ढोती ....यह काम मरी मराई कौमें ही कर सकती हैं.....जिंदा कौमें ज़िंदगी जीती हैं ...सदैव तारो ताज़ा

13) गाली देने वालों की सहूलियत के लिए वाल्मीकि रामायण के शलोक नंबर तक लिख दिए हैं मैंने, कृपया पढ़ लें पहले ..बेहतर हो पूरी वाल्मीकि रामायण पढ़ लें....खुद समझ में आ जाएगा....गाली लिखना आसान है बजाये पढने और समझने के....और तुलसी की राम चरित मानस या और कोई भी रामायण को प्रमाणिक नहीं माना जा सकता, वो सब बाद की कृतियाँ हैं ....वाल्मीकि रामायण ही पहली रामायण है, उसे ही आधार बना कर लिखा है मैंने, पास वाले मंदिर में जाएँ, अव्वल तो आपको वाल्मीकि रामायण मिलेगी नहीं, तुलसी रामायण मिलेगी, यदि वाल्मीकि रामायण मिल जाए तो पढ़ लें उठा कर, फिर जो लिखना हो लिखें, स्वागत है 


सप्रेम नमन..कॉपी राईट मैटर...चुराएं न, समझें

आओ, एक जादू सिखाता हूँ

बुधिया सिंह याद है?
कोई तीन चार साल का लड़का, मीलों दौड़ लेता था ..बिना रुके

गूगल करेंगे तो आप को मिल जाएगा आसानी से

लेकिन जो मैं आपको दिखाना चाहता हूँ वो नहीं मिलेगा आपको कहीं

ये बच्चा एक निहायत गरीब घर में पैदा हुआ, बाप तो शायद था ही नहीं, सुनते हैं माँ ने बेच दिया

फिर किसी जूडो कोच बिरंची दास के पल्ले पड़ गया

अब बिरंची दास इससे गुस्सा हो गया एक दिन किसी बात से

बिरंची ने सजा के तौर पर इस लड़के को मैदान के चक्कर दौड़ कर लगाने को बोल दिया

बिरंची फिर कहीं बाज़ार चला गया, लौटा घंटों बाद.....बच्चा अभी भी दौड़ रहा था....दरयाफ्त किया कि रुका तो नहीं, बैठा तो नहीं......लेकिन नहीं, वो तो बिन रुके ही दौड़ा था

बिरंची हैरान, लड़का है या मशीन

फिर तो कहते हैं बिरंची ने उसे कई बार दौड़ाया ..लड़का मशीन की तरह बिन रुके दौड़ता था....सेना के जवानों के साथ दौड़ाया, लम्बी दूरी तक.......... लेकिन जवान हट गए, वो बच्चा नहीं हटा

फिर न जाने क्या हुआ, बच्चा सरकारी तंत्र के हत्थे चढ़ गया और आज यह बच्चा सरकारी हॉस्टल में रहता है और इसे स्पोर्ट्स ट्रेनिंग दी जा रही है लेकिन वो जादू खो गया, अब यह बच्चा साधारण हो गया है, उससे भी नीचे

आपको कहानी क्यों सुना रहा हूँ?
कुछ पकड़ में आया क्या आपके?

जो मुझे समझ आया वो पेश करता हूँ

मेरी नज़र में हर बच्चा हमारे समाज की मान्यतायों से कहीं ज़्यादा क्षमता रखता है...हर तरह की 

बुधिया सिंह, पहले क्यों दौड़ पाया....वजह यह है कि उसके सर पर माँ, बाप का साया नहीं था......कोई ऐसे लोग नहीं थे जो उसे कहते कि इतना मत दौड़, थक जायेगा, बीमार हो जायेगा, मर जायेगा.....उसे क्या पता कि कितना दौड़ा जा सकता है कितना नहीं...कोई सीमा पता नहीं...उसकी दौड़, उसकी उड़ान की सीमा अभी कहाँ तय करी गयी, उसके मन पर कोई छाप नहीं..किसी को परवा नहीं

लेकिन बाद में सारा सरकारी अमला उसके पीछे पड़ गया, उसके मेडिकल टेस्ट हुए,  कहीं उसे कोई बीमारी तो नहीं हो जायेगी, कहीं उसे ह्रदयाघात तो नहीं हो जाएगा,कहीं मर तो नहीं जायेगा,...मेडिकल बोर्ड की खींची सीमायों को कैसे कोइ लांघ सकता है....अबे, हम जो इतनी मास्टरी करे बैठे हैं, पागल हैं क्या, हमारा विज्ञान गलत है का?

बस फिर तो और खींचा तानी.... अब तो जिस माँ ने उसे बेच दिया था, वो भी दावेदार हो गयी...अब जब यह सब हो गुज़रा तो जादू खतम, लड़का साधारण, उससे भी नीचे

वो आज फिर से ट्रेन किया जा रहा है कि दौड़ पाए, ग्यारह, बारह साल का होगा, लेकिन अब बहुत कम उम्मीद है

एक और मिसाल देता हूँ, एक हैं फौजा सिंह, सिख हैं, इंग्लैंड में रहते हैं, यदि बुधिया सिंह, चार साल की उम्र में दौड़ रहा था तो फौजा सिंह कोई सौ साल के हैं, अपनी उम्र के ग्रुप में मैराथन चैंपियन रहे हैं, आज भी खूब दौड़ते हैं,  Adidas की मॉडलिंग करते देखा है मैंने इनको ..लोग प्यार से टरबंड टॉरनेडो ( पगड़ी वाला तूफान ) कहते हैं.....

पांच साल की उम्र तक चल नहीं पाए..टाँगे बहुत कमज़ोर थी....बच्चे छेड़ते थे.....छेड़ थी "डंडा" 

क्या है यह जलवा, क्या है यह जादू जो बुधिया सिंह में  खो गया और फौजा सिंह में जाग गया?

एक ही है यह जादू

"सीमा रेखा को लाँघ जाना. सीमाओं को तोड़ देना"

बुधिया को पता ही नहीं थी कि सीमा क्या है, वो अनजाने में लांघ गया
फौजा सिंह ने जानते बूझते सीमा रेखा को इनकार कर दिया 

आपको क्या लगता है कि फौजा सिंह ने यह सब बकवास नहीं सुनी होगे कि उम्र के साथ व्यक्ति यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता.कमज़ोर होता जाता है , मौत के करीब आ जाता है......सब सुना होगा, लेकिन इनकार कर दिया

अब क्या आज बुधिया नहीं दौड़ सकता है, बिलकुल दौड़ सकता है ....सिर्फ उसे भी समाज की थोपी सीमा को तोड़ने की ज़रुरत है

और उसे ही नहीं आपको भी इस तरह की सब बकवास सीमाएं लांघने की ज़रुरत है, जो आपकी क्षमतायों को काट-छांट रही हैं

हमारे यहाँ तो लड़कियों का नाम तक "सीमा" होता है, लानत है....

असीम हो जाओ

चार साल के बुधिया हो जाओ, सौ साल के फौजा सिंह हो जाओ, लेकिन ग्यारह साल के बुधिया मत हो जाना कहीं

कभी सोचा है कि लोग बाईस किलोमीटर गोवेर्धन परिक्रमा नंगे पाँव कैसे कर लेते हैं? गोमुख तक कैसे पहाड़ों पे चढ़ जाते हैं, कैसे हरिद्वार से पैदल कांवड़ ले आते हैं?......यह सब सीमा को तोड़ने की वजह से है, वो "जय माता दी" का नारा, वो "राधे राधे" का जाप, वो "हर हर महादेव" की गुंजार....सब यह सीमा को तोड़ने का काम करते हैं ..और जिस व्यक्ति के कदम एक किलोमीटर तक हांफ जाते हैं....वो मीलों  कैसे चल लेता है?..सब थोपी हुई सीमाओं को तोड़ने की वजह से है 

सो अगली बार जूता मारना खेंच (यदि असल में नहीं मार सकते तो मन ही मन मारना ) यदि कोई कहे तुमसे कि तुम यह नहीं कर, वह नहीं कर सकते  चूँकि तुम बच्चे हो, औरत हो, बूढ़े हो ....यदि बच्चा कहे तो उसे कहना "छोटा बच्चा समझ के न डराना रे".....और यदि कहे बूढ़ा तो कहना "बूढ़ा होगा तेरा बाप" और यदि कहे कि लड़की तो कहना "लड़की हूँ पर लडाकी भी हूँ , हालात से लड़ सकती हूँ"   

जय हो !
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DEBUNKED MYTHS OF MARRIAGES

1) They say, marriages are natural and made in the heavens.

I say, marriages are neither natural nor made in the heaven, they are man-made only. People lived without them, many are living without them, and most will live without them.

2) They say, married lives are heavenly.

I say, no, they are not, not at all. If this is the heaven then what the hell will be. Actually people are not given a better option that is why they cannot differentiate between the hell and the heaven. A person living in the desert for the whole life, how can know anything about the beauty of gardens?

3) They say, Wed lock is a sacred lock. 

I say, no lock is sacred. Any relationship which puts us into locks, is dangerous. Locked relationships start rotting and stinking. Hence wed locks are nothing but deadlocks

4) They say, Vasudhev Kutumbkam (the whole earth is a big family) is a wonderful concept.

I say, it is a paradox. Ever wonder, what the barrier is between you and the rest of the world. It is the family. It is the family which separates you from the whole world. You can be of the world and the world can be of yours, easily if you are not in a family.

5) They say, some are love marriages and some are arranged marriages.

I say, all marriages are arranged ones, arranged by the law, by the rules and the regulations of the society. Love and marriages do not co-exist. 

And Love, what is this so-called Love, except mad imaginations of sexually starved people. First they “fool around” each other, then they enjoy “sweet nothings” of each other and thereafter “fall” in love with each other.

6) They say, marriages are necessary for bringing and upbringing our next generations on the earth.

I say, what the point is in robots giving births to the robots, fools giving births to the fools? Fools enough to fight and kill each other in the name of religions, books, languages, countries etc. Ulloo mar jaate hain ,aulaad chhod jaate hain. (Fools die but leave their next generation, which is also foolish). Why we think that children cannot be brought and fostered without marriages in a better way?

7) They say, in the end of the story, Hero and Heroine got married and lived happily ever after.

I say, actually when they got married story had to be ended because there was nothing interesting further in the story after the marriage. Marriage marred the whole excitement, happiness, youthfulness and beauty of their lives.

8 ) They say, marriage is a Laddu, whosoever eats feels sorry and whosoever does not eat also feels sorry.

I say, it is a shame on our wisdom that we are living in a social system that whether we get married or remain unmarried; we are always going to feel sorry. 

9) It is high time to invent a social system in which men and women may live happily. Why to be unhappy?

10 ) Please think-think-think and invent a Laddu which should be tasted, eaten and enjoyed too by everyone.

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KAUTILYA, THE WONDER BOY OR A VICTIM OF THE SOCIETY

This boy is a little kid from Haryana, India, around 10 years of age. 

He is being called a Genius, a human computer, a super kid. He has been awarded Rs. 10 lakhs by Haryana chief minister. And he has appeared on many TV channels too.

Now what I wanna convey by this status? I feel that he is a victim of our society, which confuses memory with intelligence. 

It is necessary to memorize things, but it is also necessary to memorize only the important, meaningful, useful things.

Human mind is a super computer. It does keep the important, useful things at front, throws the other material in its junkyard. It even does not register such things & such things become hard to recover. 

Now we send our kids to the schools for feeding boring and unnecessary data, which they feed with great difficulty somehow into their minds.

And most of this data is washed up as the kid gets outta examination hall. 

And much of this data is never going to be used in the practical life of these kids in the future.

But our schools go on labeling the most efficient feeders of this crap as the most intelligent ones. Such kids are awarded, given good jobs. 

These kids are the most idiotic.

Unreasonable burden on the memory is not a help but a hindrance to the intelligence. 

The thing is, it is the STUPID educational system, which has substituted 'memory' as 'intelligence'.

It is hard to tolerate the real intelligence.

Society wanna avoid it as much as possible.

Hence a hidden conspiracy is played. 

THE VERY CONCEPT OF THE INTELLIGENCE HAS BEEN CHANGED.

Greater a data keeper, more intelligent is the one considered.

Whereas in reality, greater a data keeper, more idiotic the one is.

Intelligence is not compiling data in the mind.

Intelligence is selecting the useful data and using that data, experimenting with data.

You may store all the ingredients of the world in your kitchen, but to invent a great dish, you will have to apply "something" and that something is "intelligence".

Now a dirty game is played with this so-called-wonder guy Kautilya. In the name of intelligence, he has been fed with crap, all the info of the world which is not useful in his day to day life, what to say of his life, which is not useful in the day to day life of any average grown up.

But yeah, Kautilya will be honor, interviewed by TV's, would be given money, why?

So that the society may live in the oblivion, it may go on cheating itself, it may go on avoiding the real intelligence lest its foundation may be dug, lest its structure might fall.

'I have nothing to declare', Oscar Wilde once told an American customs official, 'except my genius'.  

Genius is the only thing which is objectionable to the society.

Society can never face the real intelligence, hence it victimize kids like Kautilya.

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SHARING IS ALLOWED, NOT THE STEALING

जाकिर नायक

!! वो नायक हैं, अपुन नालायक है !!

अबे कोई बताओ जाकिर नायक को कि किसी किताब के चैप्टर नम्बर फलां, पैराग्राफ नंबर फलां, लाइन नंबर फलां में लिखे होने से ही कुछ ठीक गलत साबित नहीं होता

किताबें पढने में कोई बुराई नहीं, पढनी चाहिए...लेकिन किताबों मात्र को ही अक्ल का खजाना मान लेना गलत है , सही गलत का पैमाना मान लेना गलत है,

वैसे यह गलती सदियों से दोहराई जाती रही है, डिबेट के नाम पर "शास्त्रार्थ" होता रहा है, किसी को याद है मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, जिसमें मंडन मिश्र हार गये थे..

शास्त्रार्थ हुआ था, बहस इस बात पर हुई थी कि शास्त्र में जो लिखा है उसका अर्थ क्या है...झगड़ा शास्त्र में लिखे के अर्थ पर था.....सही गलत का पैमाना शास्त्र में जो लिखा है वो

अब इसे कोई डिबेट कहे तो भाई मुझे उससे डिबेट ही नहीं करनी

एक डिबेट कबीर भी करते हैं.....मस कागद छुओ नहीं......पता नहीं काग़ज छूया या नहीं लेकिन उनका कहा आज भी दिल छू रहा है और कागज़ी लोगों के पंजे छक्के छुड़ा रहा है

एक डिबेट नानक साहेब करते हैं......किताबों के हवाले नहीं देते....सीधा जा हरिद्वार गंगा में उतर उल्टी दिशा में पानी देने लगते हैं.......और समझा देते हैं कि तुम्हारा धरम कितना धरम है और कितना भरम......और ऐसा ही वो मक्का में करते हैं

एक बार मैंने कहीं पढ़ा, एक वक्ता कबीर के दोहे फरीद के नाम से सुना रहा था, बुल्ले शाह के रहीम के नाम से....सब गड़बड़ किये दे रहा था......अब पीछे बैठे थे जाकिर नायक साहेब.....उठ खड़े हुए....चिल्ला कर बोले.....ये क्या कर रहे हो,...चैप्टर नंबर.....पैराग्राफ  नंबर......लाइन नंबर ......

वक्ता प्यार से बोला, जाकिर साहेब, आप बनो नायक, हम ठहरे फक्कड़......आप करो पीएचडी......हमें रहने दो फिस्सडी....आप हो नायक...........हम ठहरे नालायक

सो मित्रवर......हम ठहरे नालायक, हमारी बहस थोड़ी जुदा है, यह किताबों की इज्ज़त करती है, पढ़ना ज़रूरी तो मानती है लेकिन किताबों में अटके रहना ज़रूरी नहीं मानती....यह नहीं मानती कि फलां लेखक की फलां किताब के फलां चैप्टर के फलां पैराग्राफ में कुछ लिखा होने से ही कुछ ठीक गलत हो जाता है...चाहे वो किताब आसमानी किताब ही क्यों न हो

और यही वजह है कि  वो नायक हैं, अपुन नालायक है

जाकिर नायक/ नालायक---- श्रीमान जी से किसी ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि मुस्लिम बहुल देशों में मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च आदि नहीं बनाने दिया जाता जबकि बहुत से अन्य मुल्कों में मस्जिद बनाई जा चुकी जहाँ मुस्लिम अल्प संख्यक हैं......

जवाब सुनिए, मज़ा आएगा

साहिब फरमाते हैं," यदि कोई टीचर दो और दो छह बताये या कोई टीचर दो और दो तीन बताये और फिर यदि कोई टीचर दो और दो चार बताये तो आप अपने बच्चे के लिए कौन सा टीचर रखेंगे...ज़ाहिर है दो और दो चार वाला, बाकियों को तो आप आस-पास भी फटकने न देंगे.......ठीक वही है दीन के मामले में...सिर्फ मुस्लिम ही है सही दीन ..दो और दो चार जैसा बताने वाला.....बाकी सब बेकार हैं "

अब भये, यह जो आप कह रहे हैं न यही सब दीन, धर्म, मज़हब वाले बोलते हैं....कभी सुन के देखो, सब के पास अपने अपने तर्क हैं, जो दूसरों को कुतर्क दीखते हैं...............सब को यही लगता है कि वो ही हैं दो और दो चार वाले, बाकी सब दो और दो तीन या फिर छह वाले हैं....


लगभग हरेक को अपना धर्म समन्दर लगता है दूसरे का धर्म कोई कूआँ, और वो भी सूखा हुआ


हम धरम हैं,
तुम भरम हो

पर असल बात यह कि आप सब में से कोई भी दो और दो चार वाला नही है...सब ने मिल कर इंसान का उल्लू खींचा है, इंसानियत को बांटा है, काटा है, दुनिया में जितना गंदा आप लोगों ने किया है किसी ने नहीं, अब वक्त आ गया है कि आप इस धरती से ही विदा हो जाएँ, हम खुद देख लेंगे, कि दो और दो कितने होते हैं, चाहे मामला गणित का हो, चाहे ज़िन्दगी का, चाहे आत्मा का परमात्मा का, चाहे इस जन्म का हो, चाहे मौत का, चाहे मौत के बाद का...हम खुद देख लेंगे....नही चाहिए तुम्हारी सदियों पुरानी किताबें और इनमें लिखे फरमान, हिदायतें और commandment और निर्देश


"महामूर्ख जाकिर नायक"

जाकिर नायक एक बार ओशो  को जज करते हैं....लेकिन कसौटी कुरान को रखते है...........बढ़िया.

मैंने एक से एक बेवकूफ देखें हैं, जाकिर नायक सबसे महान बेवकूफों में से है.

हैरानी है इतनी भीड़ कैसे उनके भाषण सुनती है, शायद अधिकाँश लोग वो हैं जो पहले से ही ठीक गलत का फैसला करे बैठे होते हैं, बस अपने फैसलों के पक्ष में ही सुनने के इच्छुक होते हैं.

खैर, मैं भी जाकिर नायक को जज करता हूँ और मेरी कसौटी भी एक पन्द्रह हज़ार साल पुरानी किताब होगी.....आप मुझे मूर्ख न कहें तो हैरानी होगी........ठीक गलत का फैसला किन्ही किताबों को कसौटी मान कर होता है क्या?

आइंस्टीन के सिधान्तों का फैसला उसकी किताबों में लिखे शब्दों को ही मान कर होगा या उस दिशा में किये गए नए प्रयोगों पर?

ठीक गलत का फैसला कुरान करेगी या फिर कोई भी  आसमानी किताब?

नहीं....... बुद्धि, तर्क, तथ्य और प्रयोग  .........ये हैं कसौटी ..ओशो हों, कुरान हो, कोई भी ज्ञान हो......बुद्धि, तर्क, तथ्य और प्रयोग ......इनसे हम तय करेंगे कि क्या सही है और क्या गलत

घोड़े को गाड़ी के पीछे नहीं, आगे बाँधा जाता है .

उम्मीद है समझ गए होंगे कि मैं जाकिर नायक को नालायक क्यों कहता हूँ, महामूर्ख क्यों कह रहा हूँ


जाकिर नायक/ नालायक----
जाकिर नायक/ नालायक फरमाते हैं कि जानवरों को जिबह करने का इस्लामी तरीका सबसे ज्यादा मानवीय है, वैज्ञानिक है, इससे जानवर को दर्द नही होता, जो वो तड़ -फ़ड़ करता है वो तो बस, उसके मसल खिंच रहे होते हैं खून के निकलने की वजह से......


जाकिर साब, कभी जानवर को भी पूछा है कि उसे दर्द हो रहा है या नही, वो भी अल्लाह के पास जाना चाहता है या नही? या बस अपनी अपनी ही गाये जाओगे ? जरा उसकी भी रज़ामंदी ले लो, फिर मान लेते हैं आपकी बात.

वैसे यदि कोई शक्तिशाली प्राणी, या फिर इंसान ही इसी तरह से मुस्लिमों को इसी तरह से ज़िबह करे और यही सब कहे जो आप बाक़ी जानवरों के बारे में कहते हैं, तो फिर आप उसे गलत कैसे ठहरायेंगे........जस्ट इमेजिन

समझे मिस्टर नायक

वैसे क्यूट बहुत हैं आप

सादर नमन
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काला धन

इस मुद्दे में बहुत सारे पहलु ऐसे हैं जो आज तक, शायद ही किसी ने टच किये हों

वैसा सीधा सीधा काला धन वापिस लाना ही बहुत बड़ा मुद्दा लगता नहीं मुझे

धन क्या होता है........संचित प्रयास, मेहनत...उसे हमने एक कंक्रीट रूप दे दिया है

एक आदमी बीस साल मेहनत करता है, उसकी मेहनत को हमने धन के रूप में कंक्रीट रूप दे दिया

और यदि वो अपना धन सरकार नामक चोर से बचा ले तो वो धन काला हो गया..नहीं?

अब सवाल यह है कि सरकार बड़ी चोर  है या आम आदमी,और जवाब है सरकार, सरकारी आदमी

काले धन की ही बात  करें तो भारत में ही स्विस बैंक से ज्यादा काला धन प्रॉपर्टी मार्किट में लगा है

पूरी की पूरी प्रॉपर्टी मार्किट ही काला धन की है
प्रॉपर्टी जो लाखों से करोड़ों रुपये तक पहुँची है..वो मात्र काले धन की वजह से

भारत का स्थानीय  स्विस बैंक

धन होता क्या है....धन समय का समाजिक परिप्रेक्ष्य में सदुपयोग है
धन समय का सदुपयोग है सामाजिक परिप्रेक्ष्य में
उसका कंक्रीट रूप

और जब हम यह समझ लेते हैं तो आगे यह भी समझना चाहिए कि कोई व्यक्ति या कोई मुल्क कैसे गरीब अमीर होता है

आज अमेरिका भारत से कैसे अमीर है

चूँकि उसके प्रयास भारत के प्रयासों से उसके अपने मुल्क वासियों और बाकी दुनिया के लिए भारत के प्रयासों से ज़्यादा मीनिंगफुल हैं

समय का सदुपयोग......
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में

उसके प्रोग्राम, उसकी नीतियाँ, उसके अन्वेषण, उसके आविष्कार, लोगों को ज्यादा फ़ायदा देते हैं या देते दिखाई देते हैं
सिंपल
यह है धन

अब या तो तुम काला गोरा धन चिल्लाते रहो

या अपने प्रयास, अपने कार्यक्रम, अपने कार्य......इनको ऐसी दिशा दो कि ये धन बन जाएँ या फिर ऐसी दिशा दो कि इनका क्रियाकर्म हो जाए

और भारत यही गलती कर रहा है

जितना प्रयास किया जा रहा है..बाहर से काला धन लाने का......यदि  भारत के बैंकों में पड़े सफ़ेद धन का ...ऐसा धन जिसको लेने वाला कोई नहीं...जिस धन के मालिक मर खप गए....उस धन का सामजिक कार्यों में सदुपयोग कर लिया जाए तो तस्वीर थोड़ी बेहतर हो

जितना प्रयास किया जा रहा है बाहर से काला धन लाने का यदि भारत की प्रॉपर्टी मार्किट में सर्किल रेट असली रेट के बराबर कर दिया जाए तो तस्वीर बेहतर हो और काला धन जो अनाप शनाप धन लगा है, लग रहा है प्रॉपर्टी में वो दफ़ा हो और प्रॉपर्टी की काला बाजारी, जमाखोरी बंद हो, और जिनको घर चाहिए अपने  रहने को, उन्हें आसानी से नसीब हो, जिनको दूकान, ऑफिस चाहिए अपने प्रयोग के लिए, उन्हें वो सब नसीब हो

जितना प्रयास किया जा रहा है बाहर से काला धन लाने का यदि दिलवाडा के जैन मंदिर, खजुराहो के मंदिर और  भारत के नए पुराने पर्यटक स्थलों को दुनिया के पर्यटकों को दिखाने के लिए और उन्हें सुरक्षित सफर प्रदान करने के लिए प्रयास किया जाता तो धन ही धन हो जाता...धनाधन

जितना प्रयास किया जा रहा है बाहर से काला धन लाने का यदि विदेशों में NRI जो धन छूट गया है उसे लाने का प्रयास किया जाता तो धनाधन हो जाता

यह है सामाजिक उर्जा का सदुपयोग जो धन बनता है

कोई एक ही पहलु नहीं है कि चिल्ला चिल्ली करते रहो ..स्विस बैंक से काला धन लाना है
वो सिर्फ एक पहलु है
आ जाए तो बेहतर

न भी आये तो यदि हम अपने खनिज, अपने रिसोर्सेज का इस्तेमाल करें तो धन ही धन हो जाएगा

हमारे वैज्ञानिक जो बेचारे यदि कुछ आविष्कार करते भी हैं तो कोई पूछता नहीं है....
इन सबका सदुपयोग धन बनता है

IPP का एजेंडा क्रियान्वित होगा तो धन बनेगा

यह जो समय और उर्जा कांवड़ यात्रा जैसे बकवास कामों में व्यर्थ होता है वो यदि किसी तरह से कोई आविष्कार करने में लगे तो धन बनता है

व्यक्तिगत उर्जा का सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सदुपयोग ही धन है

और यदि किसी ने टैक्स नहीं दिया तो वो धन काला हो गया यह भी मैं कतई नहीं मानता....

तुम चोरों जैसा टैक्स लगायो और फिर कहो कि जिसने नहीं दिया वो चोर है, उसका धन काला....क्या बकवास है

तुम दिए गए टैक्स को चुरा लो और फिर जिसने टैक्स नहीं दिया और कहो कि वो चोर है, उसका धन काला....क्या बकवास है

तुम दिए गए टैक्स को प्रयोग करना ही न जानते हो  और फिर जिसने टैक्स नहीं दिया और कहो कि वो चोर है, उसका धन काला....क्या बकवास है

नहीं.......स्विस बैंक से काला धन वापिस लाना हमारी इकॉनमी को थोड़ा सम्बल दे सकता है , लेकिन असली सुधार तो होगा यदि हम अपना सारा ताम झाम सुधार पाएं, सामजिक सुधार ही इकनोमिक सुधार लाता है, सामाजिक सुधार ही इकोनोमिक सुधार है

अरे आप एक शराबी, एक बेअक्ल को धन पकड़ा दो क्या होगा.......बन्दर के हाथ में उस्तरा

थोड़ा धन आ भी गया स्विस बैंक से....क्या होगा
आपके प्रोग्राम, आपके सिस्टम ठीक नहीं तो क्या होगा

थोड़ा बहुत फर्क आएगा बस

लेकिन यदि आप अपने सिस्टम ठीक कर लो.....तो धन ही धन है
अमेरिका या किसी भी मुल्क में अमीरी मात्र इसलिए है चूँकि उनके सिस्टम हमारे से बेहतर हैं


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मंदिर कैसे कैसे

"चूतड़ टेका मंदिर"
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के लगभग मध्य में हनुमान का मंदिर है, नाम है "चूतड़ टेका मंदिर". यहाँ पर परिक्रमा करने वालों के लिए अपने चूतड़ टेकना अनिवार्य माना जाता है

"लम्बे लिंग वाले इलोजी के मंदिर " वहीं राजस्थान में इलोजी के मंदिर भी हैं......यह कोई मूछड़ देवता है ...लम्बा लिंग लिए नंग धडंग ....स्त्रियों,पुरुषों दोनों में प्रिय.........पुरुष इसके जैसा लिंग चाहते हैं, काम शक्ति चाहते हैं और बेशक स्त्रियाँ भी.....सुना है इसके गीत गाये जाते हैं, फाग....नवेली दुल्हन को दूल्हा अपने साथ ले जा इसे पेश करता है, वो इसका आलिंगन करती है , असल में पहला हक़ नयी लड़की पर उसी का जो है ....ब्याहता औरतें भी उसके लिंग को आ-आ कर छूती हैं लड़के की प्राप्ति के लिए भी "योनि मंदिर" यह मंदिर है असम में... कामाख्या मंदिर.... यहाँ देवी की योनि की पूजा होती है, अब यह मत कहियेगा कि मात्र शिव लिंग की पूजा होती है, हालंकि वह भी मात्र शिवलिंग नहीं पारवती की योनि भी है.....लेकिन यहाँ मात्र योनि रूप है माता का ...हर साल मेला भी लगता है ...कोई मूर्ती नहीं है..योनि की आकृति को छू कर नमन किया जाता है "वीज़ा वाले हनुमान जी का मंदिर" अहमदाबाद के इस चमत्कारिक हनुमान जी के मंदिर में लोग विदेश जाने के लिए भगवान से वीजा दिलाने की प्रार्थना करते हैं. मान्यताओं में आस्था रखने वाले लोग बड़ी संख्या में यहां आते हैं और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप जाने के लिए भगवान से वीजा मांगते हैं. "कुतिया महारानी मां का मंदिर" बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जनपद में स्थित रेवन और ककवारा गांवों के बीच लिंक रोड पर कुतिया महारानी मां का एक मंदिर है, जिसमें काली कुतिया की मूर्ति स्थापित है. आस्था के केंद्र इस मंदिर में लोग प्रतिदिन पूजा करते हैं. झांसी के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा के बीच लगभग तीन किलोमीटर का फासला है. इन दोनों गांवों को आपस में जोड़ने वाले लिंक रोड के बीच सड़क किनारे एक चबूतरा बना है. इस चबूतरे पर एक छोटा सा मंदिरनुमा मठ बना हुआ है. इस मंदिर में काली कुतिया की मूर्ति स्थापित है. मूर्ति के बाहर लोहे की जालियां लगाई गई हैं, ताकि कोई इस मूर्ति को नुकसान न पहुंचा सके. "बुलेट बाबा का मंदिर" जयपुर, राजस्थान के पाली इलाके में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान नहीं बल्कि बुलेट की पूजा होती है. लड्डुओं की जगह शराब चढ़ाई जाती है. लोगों की मान्यता है की ऐसा करने से एक्सीडेंट नहीं होता है और यहां के बाबा उनकी रक्षा करते हैं. "सती माता के चौरे" वैसे तो पूरे मुल्क में, लेकिन ख़ास राजस्थान में आपको बहुत से मंदिर मिल जायेंगे, सती माता के मंदिर, चौरे....बाकायदा मेले लगते हैं वहां पर...अब वो अलग बात कि सतियाँ हुई लेकिन सता एक भी न हुआ....उनके मंदिर तो नज़र नहीं आते.....सुना तो यही है कि बेचारी औरत को ज़बरदस्ती नशा पिलाया जाता था और फिर भीड़ उसे ठेलती ठालती पति की चिता तक ले जाती थी...उसकी चीखें ढोल नगाड़ों के शोर में दबा दी जाती थी और जिंदा जला दिया जाता था ज़बरन और फिर शुरू होती थी उसकी पूजा...जय हो सती माता तेरी और तेरे मंदिरों की......राजस्थान में झुंझुनू नमक की जगह पर तो बहुत बड़ा मंदिर है सती माता का, मेला भरता है हर साल "डकैत ददुआ का मंदिर" पाठा की सरजमीं में लगभग चार दशक से भी ज्यादा लम्बे समय तक आतंक का पर्याय रहे दस्यु सम्राट ददुआ की मूर्ति का अनावरण अंततः धाता (फतेहपुर) में कर दिया गया। अब वो मरणोपरांत भगवान् की श्रेणी में आ गए हैं, जबकि अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में ददुआ का दूसरा अर्थ दहशत ही था। "राजमंदिर" जयपुर में एक बहुत प्रसिद्ध जगह है "राजमंदिर" ........यहाँ कोई राम, कृष्ण या शिव आदि के दर्शन करने नहीं आते लोग....यहाँ अक्सर आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख़ खान या अमिताभ बच्चन आदि के दर्शन करने आते हैं लोग.......चूँकि यह एक सिनेमा हाल है... वैसे ठीक इसी नाम से दिल्ली में जहाँ मैं रहता हूँ, पश्चिम विहार में एक बहुत बड़ी दूकान है दाल, चावल चीनी आदि की, मतलब डिपार्ट-मेंटल स्टोर "राजामंदिर" वैसे मैंने अपने पिछले राजस्थान के टूर में मंदिर तो राजा का भी देखा था, शायद जोधपुर में, बाकायदा पूजा होती है आज राजा के मरने के दशकों बाद भी, राजतन्त्र खत्म होने के बाद भी "बिरला मंदिर" पहले मंदिर राम, कृष्ण, शिव आदि के हुआ करते थे, लेकिन आज आपको बिरला मंदिर भी मिलते हैं,बिरले ही मिलते हैं, भारत के प्रमुख शहरों में मिलते हैं लेकिन मिलते हैं..अब यह बिरला कोई भगवान नहीं हैं लेकिन भगवान से कम भी नहीं हैं, अरे, वही बड़े व्यपारी, भारत के अम्बानी से पहले के सबसे बड़े अमीर जिन्हें हम भारतीय "टाटा-बिरला" इकट्ठा कहा कर अक्सर याद करते थे और आज भी करते हैं "खजुराहो" खजुराहो और कोणार्क मंदिर आज भी बहुत से नीतिवादी भक्तजनों के लिए सिरदर्द हैं, कमाल की कोशिश करते हैं इन मंदिरों की दीवारों पर खुदे सम्भोग दृश्यों को कोई नीतिवादी जामा पहनाने की.....लेकिन ये मूर्तियाँ हैं कि आज भी नग्न खड़ी हैं "शिवलिंग" भक्तजन अक्सर प्रयास करते हैं कि यह शिव के लिंग का पूजन नहीं है, यह तो प्रकृति के सृजन की पूजा है....यह है....वह है ....लेकिन मेरा तो कहना मात्र इतना ही है कि मित्रगण यह न सिर्फ शिव के लिंग की पूजा है बल्कि पारवती की योनी की भी पूजा है, यह दोनों के सम्भोग की पूजा है .......मात्र इसकी शकल देखिए और नाम पर गौर फरमाएं और कोई ग्रन्थ देखने की ज़रुरत ही नहीं है वैसे लिंग की पूजा तो जापान में भी होती है और रजनीकांत भगवान का एक चलचित्र भी आ गया है "लिंग" "रावण और दुर्योधन मंदिर" लाख समझा-समझाया जाता हो कि रावण और दुर्योधन तो विलन हैं....... बुराई के प्रतीक....आप जलाते रहो हर साल रावण को....लेकिन मंदिर है रावण के, बाकायदा पूजन होता है.....और मंदिर है दुर्योधन का भी "खिलाडियों और एक्टरों के मंदिर" अब मंदिरों की क्या बात साहेबान, सुना है मंदिर तो सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, रजनी कान्त और भी कुछ दक्षिण के फ़िल्मी कलाकारों के बने हैं....मंदिर का क्या है भाई "राजनेताओं के मंदिर" यहाँ तक तो ठीक था लेकिन हैरानी तब है कि नेताओं तक के मंदिर बने हैं भारत में, मायावती तक का मंदिर बना है ..मंदिर का क्या है भाई, जिसका मर्ज़ी बना दो © Copy Right

आईये खबर लें खबरदार खबरिया टीवी चैनलों की

अब कौन बतावे इन खबरिया चैनल वालों कि भई, कुत्ते नहीं पीछे पड़े हैं. याद है क्या आपको दूरदर्शन के ज़माने की खबरें.....कहते हैं कि समय के साथ चीज़ें आगे बढ़ती हैं ...लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा हर मामले में नहीं होता ऐसा. जैसे मुझे आँखों के लेवल से ऊपर लगे, तेज़ रोशनी वाले फ्लैट टीवी समझ नहीं आते वैसे ही मुझे आज के खबरिया चैनल और उनकी खबरें नहीं जमती. आज के टीवी एंकर बहुत मेहनतकश इंसान हैं ....खबर की जब तक चटनी न बना दें, उसे घिस न दें, उसे पिस न दें , इनको मज़ा नहीं आता. खबर को जब तक तड़का न जाए, पब्लिक को थोड़ा सा भड़का न जाए, सुनी सुनी को सनसनी में न बदला जाये, तब तक कोई खबर खबर नहीं होती...खबरदार खबर नहीं होती. "आपको कैसा लग रहा है", अगले ने बता दिया, फिर से एंकर महाशय बतायेंगे कि देखिये इन साहेब को, मोहतरमा को ऐसा-ऐसा-ऐसा लग रहा है. "ये देखिये....ये देखिये",......इतना दिखाते हैं कि बन्दा बिदक ही जाए, देखने से भाग जाए, तौबा ही कर ले. शायद इन खबरदार, होशियार चैनलों को पता नहीं कि एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो मात्र इनके खबर देने के अंदाज़ से चिड़ के इनसे कब का कन्नी काट चुका है ....जो खबर सेकंडों में इन्टरनेट पर देखी जा सकती हैं उसके लिए "ये देखिये, ये देखिये" क्यों देखना? सबसे तेज़ चैनल बनने के चक्कर में.... "यह खबर सबसे पहले हमारे चैनल पर दिखाई गई"..... इस चक्कर में, लोगों का घनचक्कर बना देते हैं. आपको याद है खबर उन लड़कियों की भी है जिन्होंने हरियाणा में कुछ लडके पीटे थे...अब कहते हैं कि लडके बेक़सूर थे.....पता नहीं सच क्या है. खैर, खबरदार चैनलों को क्या? उन्हें कोई होमवर्क, फील्ड वर्क या ऑफिस वर्क थोड़ा ही करना होता है, मतलब थोड़ा तो करना ही होता है लेकिन थोड़ा ही करना होता है.... कोई सबूत वबूत में ज़्यादा नहीं पड़ते, सबूत गया ताबूत में. "हम हैं सबसे तेज़, तेज़ चैनल". एक आरोप यह भी है कि समाचार, आचारविहीन होते हैं, जी नहीं, अचार नहीं, खट्टा मीठा तो इनमें बहुत होता है.....आचारविहीन .....समाचारों में सम-आचार नहीं होता.......यानि आचार में समता नहीं होती......आचार का पलड़ा इक तरफ़ा झुका होता है......मेरे पास कोई ठोस सबूत तो है नहीं .......'सबूत गया ताबूत में'......बाक़ी 'समझदार को इशारा काफी होता है और नासमझ को लात-मुक्का भी कम होता है'. क्या?! ये सब कहावतें नहीं सुनी! चलो, अब तो सुन लीं न. बज़ा फरमाएं...मज़ा फरमाएं. हम बहुत छोटे थे. जी, जी हाँ, हम छोटे भी थे, अब तो ऐसा लगता है कि शायद हम बड़े ही पैदा हुए थे....लेकिन हम छोटे भी थे इसका सबूत है कि हमें याद है टीवी पर एक पिरोग्राम आता था, "कक्का जी कहिन", छुटभैये नेताओं पर छींटा-छांटी थी, ॐ पूरी थे मुख्य भूमिका में.....अब देखिये लिखना ओम पुरी था और लिखावे में ॐ पूरी आ गया, ये गूगल भी कभी कभी खबरिया चैनल हो जाता है. हाँ, तो जी जब हम छोटे थे तब कल्लू पहलवान कहिन,"जैसे अच्छे आदमी पर कोई फिल्म नहीं बन सकती, मतलब बनती है लेकिन बहुते कम बनती है ........अच्छे आदमी पर नावेल नहीं लिखा जाता, मतलब लिखा जाता है, कम्मे ही लिखा जाता है ...ठीक वैसे ही अच्छी खबर कोई खबर नहीं बनती........मतलब बनती है, लेकिन कम ही बनती है." दुल्हन वही जो पिया मन भावे और खबर वही जो बुरी खबर होवे. समाचार का मतलब 'सुसमाचार' भी होता है, लेकिन खबरों की दुनिया में बहुत कम होता है. किसी ने अपने पूरी ज़िंदगी बहुत से पेड़ लगा दिए, अब लगा दिए तो लगा दिए.....क्या खबर बनाएं? हाँ, लेकिन कोई अगर चार दरख्त काटता दिख गया ...तो इसकी निश्चित ही खबर बनाई जा सकती है. किसी ने बिना किसी सरकारी मदद से कोई अन्वेषण कर दिया तो उसकी थोड़ा कोई खबर होती है? खबर का सारा जोर तो एक ही विज्ञान पर है, राजनीति-विज्ञान. कैसे इसके छात्र, जो कि छात्र हैं भी नहीं, कैसे लोगों को इंसान से उल्लू बना रहे हैं? क्या विज्ञान है! इन्सान को उल्लू बना देना! जादूगर सम्राट 'श्री फ़लाने कुमार' आज तक यह करिश्मा नहीं कर पाए, लेकिन राजनीति-वैज्ञानिक, जो कि असल में वैज्ञानिक हैं भी नहीं, वो यह करिश्मा हर रोज़ करते हैं. सारा जोर तो इस विज्ञान को दिखाने पर है. अब कल्लू पहलवान तो यह तक फुसफुसा रहे थे कि जैसे राजनेता कहते हैं, जनता को कि तुम्हारी हर समस्या हल करेंगे और समस्या नहीं होगी तो पैदा करेंगे, वैसे ही कई बार खबरिया चैनल भी खबर नहीं होती तो खबर पैदा कर लेते हैं. और अब एक डिबेट, डिबेटिया पिरोग्रामों पर. मई जून की भरी दुपहरी में भी टाई-कोट पहने दूरदर्शन पर दर्शन देने वाले हमारे एंकर महोदयों को ज़्यादा दूर जाने की ज़रुरत नहीं है. पाकिस्तान के ही कुछ टीवी डिबेट देख लें. पाकिस्तान हज़ार मामलों में हम से पीछे होगा, लेकिन इस मामले में हम पीछे हैं. हमारी टीवी डिबेट कुछ ही समय में सब्ज़ी मंडी बन जाती हैं, हर दुकानदार चिल्ला रहा होता है कि उसका माल बढ़िया, उसका माल सस्ता, लेकिन ग्राहक के पल्ले कुछ नहीं पड़ता. और एंकर महोदय, वाह, वल्लाह, सुभानल्लाह ! ये महाशय ज़रुरत से ज़्यादा आक्रामक अंदाज़ में सवाल पूछते हैं. जैसे सवाल न पूछ रहे हों, जॉर्डन के हवाई जहाज़ ISISI के ठिकानों पर बम बारी कर रहे हों. ये इस लायक ही नहीं कि इनके किसी डिबेट शो में शिरकत की जाए.....सब के सब बदतमीज़......सवाल के जवाब के बीच ही कूद कूद कर सवाल पूछेंगे. इनके पास समय की कमी है...एयरटाइम कीमती है. ऐसी की तैसी. मैं यदि ऐसे किसी शो में प्रकट हुआ कभी तो यकीन जानिये. नियम मेरे होंगे. टीवी एंकर के नहीं. बुलाना हो बुलाओ नहीं तो भाड़ में जाओ. ज़रुरत नहीं तुम्हारी. you-tube तुमसे सौ गुणा बढ़िया है अपनी बात कहने को. सौम्य ढंग से सवाल करते मैंने शायद ही किसी एंकर को देखा हो, इक्का-दुक्का. असल में तो कुल डिबेट ही सौम्य नहीं रहती. न सवाल, न जवाब. एक ज़माना था सलमा सुलतान, शम्मी नारंग का. क्या शालीनता थी! तब खबर सिर्फ खबर हुआ करती थी. आज तो टीवी खबरनवीस... खबरनवीस नहीं, कबरनवीस हैं. खबर को कबर तक पहुंचा कर दम लेते हैं और वक्त-बेवक्त ख़बर को कबर में से फिर-फिर उखाड़ लाते हैं कल्लू पहलवान यह भी बता रहे थे कि ये जो कुछ लोग डिबेट में भाग लेते हैं कुछ लोग डिबेट से भाग लेते हैं कुछ लोग डिबेट में से भाग लेते है, उसकी वजह आक्रामक एंकर जी भी होते हैं. बड़े आसान हल हैं. भाग लेने वालों को बराबर समय आबंटित किया जा सकता है. और इसकी जानकारी उनको पहले से दी जा सकती है. उनका समय खत्म होते ही उनका स्पीकर सिस्टम ऑफ किया जा सकता है. "आपका समय शुरू होता है अब..........और खत्म होता है अब." सिंपल. लेकिन कई बार सिंपल चीज़ें समझना सबसे मुश्किल होता है या फिर शेर्लोक होल्म्स के शब्दों में, "हर चीज़ सिम्पल होती है, यदि सिम्प्लीफाई कर दी जाए." वैसे टीवी की डिबेट से अच्छी तो फेसबुक पर डिबेट होती हैं, गाली देने वाले भी होते हैं, आढ़-टेड़ लिखने वाले 'समझदार' भी होते हैं और विचारगत से व्यक्तिगत आक्रमण करने वाले भी होते हैं. लेकिन कोई झंझट नहीं. बड़े सभ्य और सौम्य ढंग से इनको अमित्र किया जा सकता है, ब्लॉक किया जा सकता है और डिबेट जारी रखी जा सकती है. आज बहुत लोग, टीवी डिबेट से फेसबुक डिबेट में जुड़ने में ज़्यादा यकीन रखते हैं, एक वजह सीधी भागीदारी भी है. मात्र दर्शक नहीं, यहाँ लोग बाकायदा भागीदार होते हैं. टीवी डिबेट करवाने वाले एंकर जी को सीखना चाहिए कुछ फेसबुक पर होने वाली डिबेट से. और और और .......एंकर जी को यह समझाया जा सकता है कि आप एंकर हैं, अपनी राय तो रख सकते हैं लेकिन कोर्ट के जज नहीं हैं. सो कोई फैसला नहीं सुना सकते, फैसला सुनने, देखने वालों पर छोड़ा जाना चाहिए. टीवी के एंकर पढ़े-लिखे समझदार इंसानों को ही बनाया जाता है, ज़ाहिर है, गर्मी में भी टाई-कोट पहन दूरदर्शन पर निकट से दर्शन देने वाले, "गर्मी में सर्दी का अहसास" वाले विज्ञापन के कलाकार समझदार इंसानों को ही एंकर बनाया जाता होगा. ज़ाहिर है. सुना है "मास कम्युनिकेशन" नाम की कोई चीज़ सीख कर आते हैं ये लोग, सो बोल-चाल-ढाल सब बदल जाती है. कभी देखा है टीवी एंकर को आम इंसान की भाषा बोलते? नहीं, भाषा तो वही है, लेकिन अंदाज़, स्पीड सब अलग. बदले-बदले हैं अंदाज़ जनाब के. 'मास कम्युनिकेशन' की ट्रेनिंग का असर है सर. ऊपर से एयरटाइम कीमती है. हाय-हाय ये मज़बूरी. लेकिन काश एयरटाइम की यही मज़बूरी थोड़ा उधर ट्रान्सफर हो जाए, जब आप एक खबर की लस्सी घोलते हैं, घोले चले जाते हैं. खैर, एंकर जी को यह समझाया जा सकता है कि जितना तेज़ दौडेंगे, उतना ही जनता से दूर निकल जायेंगे. वैसे कल्लू पहलवान जी एक और बात भी कह रहे थे,"जैसे एक डायटीशियन का काम मात्र यह बताना है कि क्या नहीं खाना, मसलन पिज़्ज़ा नहीं खाना , बर्गर नहीं खाना, आइस क्रीम आदि नहीं खाना वैसे ही मास कम्युनिकेशन के कोर्से में सिर्फ यही सिखाया जाना चाहिए कि कैसे टीवी एंकर की तरह नहीं बोलना" नेता जी चिल्ला रहे थे स्टेज पर, "हम तुम्हारी 'ये' समस्या हल करेंगे, 'वो' समस्या हल करेंगे." भीड़ में से कोई चिल्लाया. "सबसे बड़ी समस्या तो आप ही हो महाराज, आप ही हल हो जाएँ, बस इससे बड़ी समस्या, इससे बड़ा प्रमेय और कोई नहीं है." एंकर जनाब चिल्लाते हैं, "राजनैतिक सिस्टम, अलां सिस्टम-फलां सिस्टम ठीक होना चाहिए." सब ठीक होना चाहिए...बिलकुल होना चाहिए सर, लेकिन वो एक कहावत है न कि दीपक अक्सर अपने नीचे का अन्धकार नहीं देख पाता. क्या कहा? "नहीं है इस तरह से कोई कहावत." खैर, नहीं है तो जोड़ लीजिये जनाब आज से. सुनते हैं कि जो मीडिया पर कण्ट्रोल करता है, वो दुनिया पर कण्ट्रोल कर लेता है, और यह भी सुनते हैं कि यदि समाज के दिमाग को एक हार्डवेयर मान लिया जाए तो टीवी के प्रोग्राम उस हार्डवेयर का सॉफ्टवेर हैं, टीवी के प्रोग्राम समाज के दिमाग को प्रोग्राम करते हैं, समाज को प्रोग्राम करते हैं. मीडिया का बड़ा हिस्सा टीवी प्रोग्राम हैं, टीवी प्रोग्राम का एक बड़ा हिस्सा आप श्री खबरिया चैनल हैं, तो कृपा करें महाराज, कृपा दृष्टि बनाये रखें, आप साक्षात् प्रभु हैं, समाज की नैया आपके हाथ है. खैर, अपुन ठहरे जनता जनार्दन (और कल्लू पहलवान भी ), जो ठीक लगा दाग दिया दनादन .....ज़्यादा अक्ल है नहीं आजकल (और कल्लू पहलवान तो वैसे ही पहलवान है, मोटा शरीर, मोटी अक्ल ) .....ऊपर से कोई कोर्स भी नहीं किया. 'मास कम्युनिकेशन', 'खास कम्युनिकेशन' छोडिये, 'आम कम्युनिकेशन' तक का नहीं. (और कल्लू पहलवान ने तो मांस यानि मसल बढ़ाने तक का कोई कोर्स नहीं किया बस देसी दंड बैठक पेलता रहता है.) सो कहा सुना माफ़....खत को तार समझिएगा, हमें अपना दोस्त यार समझिएगा, इस लेख को हमारा प्यार समझिएगा. रॉंग या राईट पर है कॉपी राईट नमन..तुषार कॉस्मिक

मुस्लिम आतंक का आसान इलाज़

------  बोको हराम , हरामी लोग -----
नाइजीरिया का मुस्लिम आतंकी संगठन , पीछे स्कूल  में से कोई ढाई सौ लड़कियां अगवा कर ली इन्होने....

पूरी दुनिया में चिल्लपों मचती रही, "BRING BACK OUR GIRLS" लेकिन नतीज़ा हुआ सिफर..अब कल पढ़ रहा था कि बोको हराम के नेता ने कहा है कि उन सारी लड़कियों ने मुस्लिम धर्म अपना लिया है और उनकी शादियाँ कर दी गयी हैं, किन से , बिला शक इन्ही हरामियों के साथ......

क्या कोई मुस्लिम दानिशमंद मुझे बतायेगा कि यह कहाँ तक ठीक है ?

यह भी पढ़ा कि बोको हराम का मतलब है "पश्चिमी शिक्षा हराम है" शायद ऐसा कुछ  , चलो बढ़िया है , फिर शायद इस ग्रुप ने जो शिक्षा ली हो लड़कियां अगवा करने की वो शिक्षा हलाल है, पवित्र हो...कृपया मुझ नासमझ को समझायें 

खैर......मैं उन लड़कियों और उनके मां, बाप सगे सम्बन्धियों के प्रति ह्रदय से संवेदना व्यक्त करता हूँ!!!!!!


--------  हरामी ISIS का हरम  ----- 


कल एक विडियो देखा, मुस्लिम लड़ाके यज़ीदी औरतों को आपस में खरीद बेच रहे थे...............समझ नहीं आया .... क्या हम सभ्य हैं...क्या हम जंगलों से बाहर आ चुके हैं.....क्या  हम कोई सभ्यता हैं....क्या हम कोई समाज हैं......?


क्या वो औरतें सिर्फ शरीर हैं, मांस की बोटियाँ, उनमें दिल नहीं, दिमाग नहीं...वो किसी की माँ नहीं, किसी की बहन नहीं ?


क्या वो इंसान नहीं, कोई चीज़ हैं, खरीद लो, बेच लो?

पढ़ता  हूँ कि अहमद शाह अब्दाली जब यहाँ भारत पर हमला करता था तो यहाँ की औरतों भी को लूट ले जाता था...और वहां अपने मुल्क की गलियों में टके टके बिकवाता था.....सिख लड़ाके  देर रात छुप छुपा कर वार करते थे और इन औरतों को छुडवा उनके घर पहुंचाते थे......सिक्खों का जो मज़ाक उड़ाया जाता है कि बारह  बज गए, वो शर्म की नहीं गर्व की बात है............रात के बारह बजे सिक्ख आक्रमण करते थे और गुलाम, बदनसीब औरतों को छुडवा लेते थे  

अब हैरानी यह है कि आज दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी .....चाँद , मंगल तक हमारी पहुँच हो गयी ......क्या हमारे शक्तिशाली नेता, पूरी दुनिया के नेता इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते?

हमारी यह दुनिया आगे बढी है या पीछे खिसकी है ?

क्या मात्र इसलिए किसी का भी क़त्ल कर दिया जाना चाहिए कि वो आपके दीन/मज़हब को नहीं मानता, क्या इसलिए किसी औरत को गुलाम बना लिया जाना चाहिए कि वो किसी और धर्म को मानती है ?

यदि ISISI इतने ही महान काम कर ही है तो इसके मेम्बर अपने चेहरे क्यों छुपा रखते हैं...........गर्व से करें जो करना है


क्या मज़हब के नाम पर इस तरह की गुंडागर्दी का कोई इलाज़ ,फ़ौरन  इलाज नहीं होना चाहिए  ?

क्या पूरी दुनिया को एकजुट हो, राक्षसों के खात्मे के लिए प्रयासरत नहीं हो जाना चाहिए ?

मित्रगण सुझाव दें, जवाब दें


---------- मुस्लिम आतंक का आसान इलाज़ -----------

जब पंजाब सन अस्सी से चौरासी के दौर में आतंकवाद झेल रहा था तो रोज़ बुद्धिजीवी/ बुद्धुजीवी ये लम्बे आर्टिकल लिखते थे पंजाब समस्या हल करने को......पर आतंकी थे कि सम्भलते ही नहीं थे.


फिर काल चक्र-घूमा, सरकार को ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा, आज आपको पंजाब में आतंकी बस लोगों के ज़ेहन में दफन मिलता है.....कडवी यादें  

ठीक वैसे ही जैसे आज  मुस्लिम आतंकी सम्भल नहीं पा रहे...बोको हराम हो, हमास हो ...तालिबान हो, ISIS हो..........दुनिया का जीना हराम कर रखा है 

एक ही इलाज है इनका ..........छित्तर

छित्तर पंजाबी का लफ्ज़ है...शाब्दिक अर्थ तो जूता है......लेकिन आप यहाँ इससे तोप, मिसाइल, बन्दूक, ड्रोन आदि कोई भी मतलब समझ सकते हैं 

हर जगह बात नहीं चलती ....बहुत जगह लात भी चलानी  होती है..........छितर समेत ......

पुराना जुमला है ..."लातों के भूत बातों से नही मानते"....

संस्कृत में कुछ यूँ कहा जाता है .."शठे शाठ्यम समाचरेत" ....दुष्ट के साथ दुष्टता का आचरण करो.....

अंग्रेज़ी में "TIT FOR TAT" कहा गया है 

जुमले पुराने हैं लेकिन शायद दुनिया को याद दिलाने की ज़रूरत है

"कॉपीराइट"

NOBEL TO MR. KAILASH STYARTHI, A FARCE

He had been awarded Nobel for saving childhood of 80,000 kids.

What message is being conveyed?

Society should award, respect such people who save childhood.
In-fact society should save childhood, save children from being bonded labor, save from slavery, educate them, feed them.

Do you think efforts as that of Mr. Satyarthi are going to be fruitful at gross level?

No, never.

It is a self deception, hypocrisy of our society. This Nobel prize is just a tool to avoid the real problem, to save ourselves from the real issue and the real solution. 

Why? 

Because the real solution is not going to be that easy. Real solution is somewhat tough.

First understand the real problem, the root of the problem.

Why there is childhood slavery? Because there are poor kids, but kids are never poor, every kid is born rich, rich with happiness, rich with wisdom, rich with life itself.

Then why there is childhood slavery? Only because we have devised a stupid society. Because we have created richness and we have created poverty. Because we have created a society that is very much financially imbalanced. Poverty is not Nature-gifted, poverty is man-made. And worse is we have given right to produce children to each and everyone. Because we have given right to produce unlimited number of kids to the everyone.

Now, see if the right to produce a kid is something very much individualistic, why should I or you be concerned? 

Why?

Simple line of logic.

We should not be and we are not generally.

But then we are mean people, if we never think of such unfortunate kids, who will never get education, nutritious food, respect, life full of life.

Then someone like Mr. Satyarthi is worthy of getting Nobel because he helps such unfortunate kids.

Nope, very much a wrong process.

If we really want to help such kids, then we should recognize work of Mr. Satyarthi but as secondary kinda work.

What is primary work then?

Primary work is stopping unlimited right to everyone for giving birth to the kids.

Even 100's of Mr Satyarthi are not going to help and firstly why should they help, someone goes on giving birth to kids and there is Mr. Satyarthi to help those kids, what the rut? What the fuck?

That is not going to help the humanity, you go on giving Nobels, that is not the way.

Just re-organize the society.

Put a hold on right to Child birth.

Make a rule, you cannot give birth to a kid until you are healthy enough, until you are educated enough, until you are earning enough. And if you have all these factors still it does not mean that you can go on producing unlimited number of kids, no, it will be seen that how many number of people a particular geographical area can sustain easily, according to that calculation, you will be allowed to produce the kids. Flash a clear message that society is not going to bear your kids, Mr. Satyarthi is not going to bear your kids. You, yourself are responsible for your kids, hence first be responsible, first be capable enough, then we will allow you to re-produce yourself.

Further, the people should be educated to get better female eggs other than their own, better sperms other than their own for their kids so that they may have kids better than both the mother and the father.

Further, the people should be educated to leave the idea of private kids, as people use the idea of car pooling to save the fuels and decrease the traffic jams, they can have KIDS POOLING, I mean that a certain number of families can have common kids. Why should each family have individual kitchen when you can a common pantry? It is far more economical. It can give you more variety of food, it can save your money and time . Similarly why have a personal kid, why not have common kids? 100 families can have 10 common kids, each family can play with and care for 10 kids, so much fun, so much joy and so much less burden on earth.

And 

Now all the capital of the 100 families may be inherited by 10 kids, so much less poverty.

Like these.
Such are the way outs.

Tougher ones.Society is not gonna accept easily.
Hence go for the easy way-out, the way outs which may be appreciated by the society, give Nobel to ones like MR.SATYARTHI.

Easy Game!!!

COPY RIGHT MATTER


अनाथालय टाइप स्कूल

कुछ मित्र अनाथालय टाइप स्कूल चला रहे हैं, ऐसे बच्चों के लिए जिनके माँ बाप हैं भी लेकिन बेहद गरीब हैं.......... बहुत मित्रगण वाह-वाह  भी करते हैं......चलिए मेरे साथ थोड़ा विचार विमर्श कर लीजिये इस विषय पर 

समाज ने ठेका ले रखा है गरीबों के बच्चे पालने का.....एक तरह से तो नहीं....जब हर बन्दा अपनी फॅमिली के लिए उत्तरदायी है तो फिर हम किसी और के लिए कैसे ज़िम्मेदार हैं......दूसरी तरह से है, समाज के इस हिस्से को यह समझाना ज़रूरी है कि देखो तुम्हारे बच्चों के लिए सिर्फ तुम ही ज़िम्मेदार हो.....तो क्यों बच्चे पैदा करते हो.. जिनकी जिंदगियां सिर्फ ज़लील होनी हैं...........एक निश्चित रकम जो परिवार नहीं कमाता उनके बच्चे हर हाल में समाज पर बोझ बनेंगे और यदि आप सच में इस समाज का कुछ भला करना चाहते हैं तो आपको सामाजिक व्यवस्था बदलनी होगी अन्यथा लाख खोलते रहें इस तरह के स्कूल कुछ नही होगा....

दिल्ली में ट्रैफिक बहुत था....सुधार के लिए पुल बनाये गये.....मेट्रो दी गयी...तो क्या ट्रैफिक कम हो गया..नहीं हुआ....सुविधा देख और लोग आ गये........उम्मीद है मेरी बात समझ में आयेगी.

इस तरह के जितने भी और प्रयास..... या फिर कहें सत्यार्थी जी जैसे प्रयास...यह सब ऊपर से बहुत ही उम्मीद देते लगते हैं.......ठीक है करें इस तरह के प्रयास......लेकिन .....कोई बहुत फ़ायदा नहीं होने वाला.....जिन बच्चों को मदद मिल जायेगी उनको फ़ायदा होगा भी लेकिन गहरे में समाज को बहुत कुछ फ़ायदा नही मिलेगा इस तरह से............असली रूट है समाज के ताने बाने में झांकना और इलाज ढूंढना..........
यह जो काम हैं न सत्यार्थी जी के जैसे .....ये पत्ते काटने जैसे हैं......जितना काटेंगे उससे ज्यादा नए पत्ते आ जायेंगे......समस्या जड़ से न जायेगी....

जोर किस पर होना चाहिए........पैच वर्क पर क्या? 

सड़कों पर भीख मांगते छोटे बच्चे देख ज़रा सा भी दिलो-दिमाग रखने वाला इंसान एक बार तो परेशान होगा 

मुद्दा सिर्फ इतना ही है कि आप कीजिये पैच वर्क , लेकिन पैच-वर्क को ही असली इलाज न समझ जाएँ.......

ये सत्यार्थी जी को नोबेल मिलना,........यह सब आज तक हुआ यही है कि पैच-वर्क glamorize हो गया, असल इलाज का तो ज़िक्र भी बहुत कम होता है...

मेरा ख्याल से बस इंसान की सोच बदलने जितनी देर है.... आज मीडिया का ज़माना है और यदि मीडिया का प्रयोग कर burger/ पिज़्ज़ा/ कोला जैसा कूड़ा करकट लोगों के गले से उतारा जा सकता है तो सामाजिक विचार भी दिमाग में बिठाए जा सकते हैं.

मेरा मानना बस इतना ही है कि कर लीजिये इस तरह के प्रयास, साथ में ध्यान रखें कि इन प्रयासों से असल समस्या का हल नहीं होगा.....तो बेहतर हो पूर्ण इलाज की तरफ कदम बढायें 

मैं उदयन जैसे प्रयासों को सेकेंडरी मानता हूँ .. ...लेकिन प्राइमरी नहीं है यह सब

कुछ बच्चों की, कुछ लोगों की मदद हो सकती है इस तरह से, लेकिन यह कोई तरीका नहीं है.....

दूसरे ढंग से समझें, इस तरह के प्रयास अतार्किक आधार पर खड़े हैं.......करे कोई , भरे कोई......... वो भी तब जब कि इस तरह से समस्या का कोई निदान नहीं होने वाला..........

मान लीजिये कि हम ऐसे प्रयास नहीं भी करते लेकिन जैसा मैं कह रहा हूँ, कुछ उस तरह के प्रयास करते हैं, प्रयोग करते हैं तो निश्चित ही समस्या हल हो सकती है, वैसे यह ज़रूरी नहीं कि जो मैंने सुझाव दिए उसी तरह से हुबहू सामाजिक रद्दो -बदल हों, मेरे सुझाव मात्र एक इशारा हैं, एक दिशा हैं कि इस तरह से सोचा जाना चाहिए, प्रयोग किये जाने चाहियें.....

रामजादे और हरामज़ादे ...क्या है फर्क

मुझे ठीक से नहीं पता, हरामजादे का मतलब क्या होता है, शायद मुस्लिम बादशाहों के हरम में रखी औरतों से पैदा हुए बच्चे ....शायद उन्हें ठीक से सम्मान नहीं मिलता होगा .....इस शब्द हरामजादे के प्रयोग से तो ऐसा ही लगता .....लेकिन जिस तरह कोई बच्चा अवैध नहीं होता, मात्र माँ बाप ही अवैध होते हैं जो ऐसे बच्चे पैदा करते हैं जो बेचारे इस समाज में स्वीकारे ही नहीं जाने, इसी तरह से मेरे ख्याल से तो हरम में पैदा हुए बच्चों को भी इस नफरत से भरे शब्द हरामज़ादे से आप सम्बोधित तो कर सकते हैं लेकिन इस शब्द के साथ जुड़ा गलगलापन अगर दिखाना ही है तो उन बादशाहों के प्रति दिखाईए, जिन्होंने अपने समय में औरतों को भेड़-बकरियों की तरह मात्र सेक्स के लिए रखा था और उनसे पैदा हुए बच्चों को जो सम्मान तक नहीं दिला सके समाज में. उन बादशाहों के लिए शब्द रख लीजिये जैसे कमीने, घटिया या फिर कोई भी और गालीनुमा शब्द. यदि कोई हठधर्मिता से माने ही बैठा है कि नहीं भई, हम तो हरामज़ादे से मतलब वो ही लेंगे जो आम तौर पे माना जाता है......जैसे अपने बाप की औलाद न होकर किसी और की औलाद होना ...तो जानकारी के लिए बता दूं राम अपने पिता श्री दशरथ के बेटे नहीं थे, दशरथ तो बूढ़े हो चुके थे, किसी जवान ऋषि को खोजा गया था जंगले से और फिर उससे पुत्र-प्राप्ति यज्ञ कराया गया था और फिर राम और उसके बाकी भाई पैदा हुए थे ....अब भैया आपने जो मानना हो मान लो, लेकिन मुझे तो एक ही बात समझ आती है कि पुत्र-पुत्री एक ही तरह के यज्ञों से पैदा होते हैं और वो यज्ञ है सम्भोग-यज्ञ. फिर भी बनना है रामजादे तो बनो अब बात कर लेते हैं, कोई साध्वी की, जिसे रामजादे और हरामज़ादे का फर्क समझा दिया जाए. पहले तो यह समझ लीजिये कि ये जो भगवे कपड़े पहने घुमते हैं न या घूमती हैं, ये कोई साधू साध्वियाँ नहीं हैं, मात्र राजनेता-राजनेत्री हैं, जिनके पास कोई नीति नाम की चीज़ है नहीं. वैसे जानकारी के लिए बता दूं कि जो खुद को रामजादा समझते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि जो रामजादे थे उनके साथ राम ने क्या सलूक किया था? छोड़ दिया था जंगले में उनकी माँ को, जब वो पेट में थे माँ के......उनकी माँ ने इसी राम को स्वीकार करने से बेहतर खाई-खन्दक में कूद आत्महत्या करना बेहतर समझा था. फिर भी बनना है रामजादे तो बनो. और बता दूं, रामजादों की माँ को जब रावण से छुड़ा लिया जाता है तो राम कहता है उसे कि मैंने रावण को तेरे लिए नहीं मारा, मैंने तो अपने नाम पर लगे धब्बे को मिटाने के लिए उसे मारा है, अब तुम चाहो तो सुग्रीव, विभीषण आदि के पास चली जाओ या जहाँ मर्जी चली जाओ, सब दिशायें तुम्हारे लिए खुली हैं. फिर भी रामजादा बनना है तो बनो भाई, बनो. वैसे एक और बात बता दूं सन्दर्भ में, इन्ही राम के एक पूर्वज ने अपने ही गुरु की बेटी के साथ बलात्कार किया था और गुरु के श्राप से अपना सब कुछ गवा दिया था, रघुकुल रीत. बनना है रामजादे तो बनो. एक कोई ऋषि, तथा कथित ऋषि, शायद विश्वामित्र ने एक औरत, जिसे राक्षसी बताया गया है, ताड़का के पति को मारा होता है बिना वजह, अब यह औरत ताड़का उस ऋषि को तंग कर रही होती है, ऋषि के बस में नहीं होता उससे लड़ना, ऋषि राम और लक्ष्मण को बुला लाता है और ये श्री राम बिना कुछ जाने ही ताड़का को मार देते हैं......बिना ताड़का से कोई संवाद किये....बस विश्वामित्र की बात पर ही ताड़का को मार देते हैं........एक औरत को. बनना है रामजादे बनो. ऐसा ही कुछ ये श्रीराम वाली के साथ करते हैं, एक तरफ़ा बात सुन कर ही वाली को कायरों की भांति छुप छुपा कर मार देते हैं. ये तो मात्र कुछ नमूने हैं, झड़ी लगा सकता हूँ इस तरह के उद्धरणों के. अबे तुम्हे सच में ही इस समाज की चिंता है तो आंखें खोलो खुद की भी और फिर इस समाज की भी ...बताओ अपने समाज को कि राम कहाँ गलत थे-कहाँ ठीक थे .....बहस आमंत्रित करो.....देखो-दिखाओ कि राम मंदिर में बिठाने के काबिल हैं भी नहीं. इन्हें तो बस इतना ही पता है चूँकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग राम को पूजते हैं इसलिए वो हिन्दू हैं, लेकिन लोग पूजते हैं चूँकि तुम्हारे जैसे पुजारीनुमा सियासी लोगों ने समाज को गुमराह किया है आज तक. इन्होने ही राम के नाम पर देश में अफरा-तफरी मचाई थी...इन को कोई मतलब थोडा है कि देश में तरक्की हो, अमनो-चैन हो, इन को तो बस मतलब है कि इनकी सड़ी-गली ऊट-पटांग फिलोसोफी किसी तरह मुल्क की छाती पर सवार हो जाए. नमन....तुषार कॉस्मिक

Navratre, An Event to brainstorm ourselves

1) They kill the girls in the womb and worship girls in Navratre. Hypocrites!

2) They do not wanna give the fair share in the property to their sisters and worship girls in Navratari. Hypocrites!

3) In every city, every town daughters of the society are forced to live a wretched life, a lifeless life in the brothels and they worship girls in Navratri. Hypocrites! 

4) Girls Name----Seema--सीमा-- (The Limit)/ Boyz Name----Aseem--असीम- (The Limitless). Hypocrites!

5) Remove the fear of law and society and most of the men will rape almost every female of the society and they worship girls in Navratri. Hypocrites!
We have seen all such things in 1947 and every other communal riot.

6) In cities like Mathura, Vrindavan widows of the society, daughters of this holy society are forced to live like dead bodies, just waiting for death and they worship girls in Navratri. Hypocrites!

7) Their dynasty name is carried by the sons of the family only, hence only the sons are the torch bearers of the family name. Hence the daughters are always considered "praya dhan" (पराया धन) to be given in charity as "kanya daan", who will breed sons of the family of her in-laws. And they worship girls in the Navratre, Hypocrites!

8) हमारा समाज एक उलझा समाज है....स्पष्ट जीवन दर्शन नहीं.....

यहीं राम पूजे जाते हैं जो ज़रा सी बात पर एक स्त्री को जीवन भर के लिए कुरूप कर देते हैं.....और फिर अपनी पत्नी को अपमानित करते हैं........ 

कृष्ण कपड़े चोरी करते हैं, नहाती लड़कियों के....कभी कोई लडकी पूजी इस देश ने जो ऐसा करे ........

बुध पूजे जाते हैं .....जो अपनी पत्नी बच्चा छोड़ चल देते हैं .......

और फिर यह भी कहा जाता है ...यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः

9) Dandiya, Garba Dance & CONDOMS & THE MORAL
“These dances are performed during Navratras for celebrating Maa Durga’s Puja but hope you won’t be surprised to know that sales of the CONDOMS gets increased very much during these days. Should not Indian society learn something from this fact?”

10) In the name of Bhagwati Jagrans and Kirtans, we make so loud voices, noises that the lives of the neighbors turn a hell on that particular night.

11) In the name of the religious processions, we choke the whole traffic system almost to the death. In Delhi, these days, people from far and away have started taking "jyot" from Jhandewalan Mandir. These people go on dancing on the roads on loud music, creating sound pollution and traffic jams.

12) We, Indians submerge idols of Durga and Ganesh in the ponds and the rivers on the festival of Durga Puja and Ganesh Puja, forgetting that the poisonous paints and the chemicals used in these Idols will kill fish and other creatures of these ponds and rivers.

13) Bengalies and some other people of India, kill animals in the name of sacrifice to the Devi. Idiots! Hypocrites!! If your goddess becomes happy by these sacrifices, why not slaughter your kids on the altar? But alas! There are some idiots who go to such limits also.

14) Fasting & changing the Food is good in Navratri because the season changes Gear from Hot to Cold or Cold to Hot every six months, so the immune system needs extra strengthening to face this change of gear smoothly, hence special healthier diet & the fasts are recommended during these days.
But it does not mean that on the 10th Day, the people should compensate drastically the restrictions of these 9 days, but alas many do the same & even in the name of the fasts, eat deep-fried potatoes, worse that the ordinary daily food. Fools!

15) Do U know why all Mata Mandir are in deep Mountains, because it is Mother Nature only depicted as Durga, Kali etc.? There is no Kaali or Peeli Mata except Mother Nature.

16) Please come out of the hypocrisy only then we have any right to celebrate such festivals OR perhaps then there will be no Need of such festivals, perhaps we celebrate these festivals just to solace ourselves or to deceive ourselves.

I can support anything what can be explained logically or psychologically but not the illogical ones.
Kindly see here below, what foolish things we have done in the name of women empowerment.

17) (i) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----She can have sex with anyone willingly but can get the male jailed any time just declaring that it was a rape, This is called the real POWER.

Jai Mata Di.....

(ii) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----She can do any stupidity in the family after marriage but if hindered she can get husband and his family jailed under Domestic Violence Act and 498-A, This is called the real POWER.

Jai Mata Di.....

(iii) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----she will not contribute in the finances of the family in which she is going to live, any contribution from her side is DOWRY, which is illegal but immediately as she is married , she will become half the owner of the property of the Groom, This is called the POWER. 

Jai Mata Di.....

(iv) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----The woman is Shakti, Power, Navratri are a reminder, a six monthly reminder. Yeah, of- course, she is Power, powered by BIASED INDIAN LAWS.

Jai Mata Di.....

18) Durga Mata be shown in a new form. The concept of Sheran wali Mata is a creation of the old world. The new Mata should ride a bike more advance than Harley Davidson Motorcycle instead of Lion, wear bullet-bomb-proof, atom bomb proof very decorative helmet, wear high class bullet-bomb-proof jeans jacket instead of Sari, carry AK-56 or even advance super-gun in one hand instead of Sword, in another hand super rocket launcher instead of Bow-Arrow, in another hand Atom Bomb instead of Sudarshan Chakra.

As we progress, our deities too should progress, in fact, they should always be ahead of us. No?

19) एक नयी देवी, मेरा अविष्कार :---

संतोष मात्र से उन्नति में बाधा होती है, सो संतोषी माता जी को आराम करने दें

भोला होना कोई गुण नहीं, हाँ अवगुण अवश्य है, सो भोले बाबा को भी जाने दें

लक्ष्मी की पूजा सहस्त्राब्दियों से करते आये हम, फिर भी अधिकांशत: निर्धन ही रहे, सो इन्हें भी सोने दें 

वैश्वीकरण के समय में भारत माता वैसे ही अलग -थलग पड़ जायेंगी, सो इन को भी छुट्टी दें

AK-56,Rocket launcher के ज़माने में तीर तलवार से रक्षा न हो पाएगी, सो दुर्गा जी को भी विसर्जित कर दें

एक नयी देवी आविष्कृत की है मैंने, अभी-अभी,
"बुद्धि देवी",
इन्हें पूजें मत, वो इन्हें बिलकुल पसंद नहीं,
बस इन के साथ खेलें
और
खूब खेलें 

फिर शायद ही ज़रुरत पड़े किसी और देवी की या देवता की................ जय बुद्धि मां, ओह! गलती हो गयी, इन माता जी को तो जयकारा भी पसंद नहीं, चलिए इन्हें खेल पसंद है, खेल ही शुरू करतें हैं, और जैसे ही हम ये खेल शुरू करेंगे तो जानेंगे कि यदि हम अपनी बेटियों को बेटों के बराबर मानें और हर संभव प्रयास करें कि वो आर्थिक तौर पर सक्षम हों, उनके लिये ज़यादा से ज़यादा रोज़गार के अवसर बनायें तो समाज संतुलित  होता चला जाएगा और असल मानों में हमारी बेटियों का पूजन हो जाएगा और हमारी स्त्रियाँ देवी का दर्ज़ा पा जायेंगी, अन्यथा रहे मनाते  ये बचकाने उत्सव, बनाते रहें उलटे सीधे  कानून, कुछ बेहतर न होगा, उलझे हैं, उलझे रहेंगें.

सप्रेम नमन 
तुषार कॉस्मिक 

कॉपीराइट मैटर, चुराएं न समझें

किस ऑफ लव

किस को "किस ऑफ़ लव" पसंद न होगी. नहीं पसंद तो वो इन्सान का बच्चा/बच्ची हो ही नहीं सकता/सकती. जब सबको लव पसंद है, किस ऑफ़ लव पसंद है तो फिर काहे का लफड़ा, रगड़ा?
लेकिन लफड़ा और रगडा तो है. और वो भी बड़ा वाला. समाज का बड़ा हिस्सा संस्कृति-सभ्यता की परिभाषा अपने हिसाब से किये बैठा है.

इसे भारत की हर सही-गलत मान्यता पर गर्व है लेकिन इसे कोई मतलब ही नहीं कि यही वो पितृ-भूमी है, मात-भूमी, पुण्य-भूमी है जहाँ वात्स्यान ने काम-सूत्र गढा और उन्हे ऋषि की उपाधि दी गयी, महर्षि माना गया. यहीं काम यानि सेक्स को देव यानि देवता माना गया है, “काम देव”. यहीं शिव और पारवती की सम्भोग अवस्था को पूजनीय माना गया और मंदिर में स्थापित किया गया है. यहीं खजुराहो के मन्दिरों में काम क्रीड़ा को उकेरा गया. काम और भगवान को करीब माना गया. न सिर्फ स्त्री-पुरुष की काम-क्रीड़ा को उकेरा गया है, बल्कि पुरुष और पुरुष की काम-क्रीड़ा को भी दर्शाया गया है. बल्कि पुरुष और पशु की काम क्रीड़ा को भी दिखाया गया है. मुख-मैथुन दर्शाया है और समूह-मैथुन भी दिखाया गया है और असम्भव किस्म के सम्भोग आसन दिखाए गए हैं. और ऐसा ही कुछ कोणार्क के मंदिर में है. यहीं पंडित कोक ने "रति रह्स्य/ कोक शास्त्र " की रचना की है. यहीं राजा भर्तृहरि ने श्रृंगार शतक लिखा है. यहीं महाकवि कालिदास अपने काव्य "कुमार सम्भवम" में शिव और पार्वती के सम्भोग का बहुत बारीकी से वर्णन करते हैं, मैंने सुना है कि संघी मित्रगण कहते हैं शेक्सपियर को मत पढ़ो, कालिदास पढ़ो, हमारे स्थानीय महाकवि. ठीक है, पढ़ लेते हैं, मस्तराम को मात करते हैं आपके महाकवि, पढ़ कर देख लीजिये. और यहीं लड़कियों के नाम 'रति' रखे जाते हैं, रति अग्निहोत्री फिल्म एक्ट्रेस याद हों आपको. तो रति क्रिया में संलग्न हो, यह आसानी से स्वीकार्य नहीं है. यहीं #वैलेंटाइन डे से सदियों पहले वसंत-उत्सव मनाया जाता था, जिसमें स्त्री पुरुष एक-दूजे के प्रति स्वतन्त्रता से प्रेम प्रस्ताव रखते रहे हैं. और यहीं पर कृष्ण और गोपियों की प्रेमलीला गायी जाती है. और यहीं 'गीत गोविन्द' के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत किया है और मैंने अभी पढ़ा कि जयदेव को भगत माना गया है, गुरु ग्रन्थ साहेब तक में उनका ज़िक्र है. और यहीं के पवित्र ग्रन्थ 'वाल्मीकि रामायण' के अनुसार 'अशोक वाटिका' में बैठी सीता को राम की पहचान बताते हुए हनुमान राम के लिंग और अंडकोष तक की रूप-रेखा बताते हैं. यहीं लिखे महान ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण के रचयिता जब भी माँ सीता का ज़िक्र करते हैं तो उन्हें पतली कमर वाली, भारी नितंभ वाली, सुडौल वक्ष वाली बताते हैं...तब भी जब सीता-हरण के बाद राम उन्हें ढूंढते फिरते हैं. और यहीं पर यदि पति बच्चा पैदा करने में अक्षम होता था तो किसी अन्य पुरुष से अपनी पत्नी का सम्भोग करा सन्तान पा लेता था. राम और उनके भाई इसी तरह पैदा हुए थे और कौरव भी और पांडव भी. आपने पढ़ा होगा संस्कृत ग्रन्थों में राजा लोग "अन्तः पुर" में विश्राम करते थे.....वो सिवा हरम के कुछ और नहीं थे....इस वहम में मत रहें कि हरम कोई मुस्लिम शासकों के ही थे. और यहीं पर रामायण काल की 'गणिका' से, बुद्ध के समय की 'नगरवधू' और आज के कोठे की 'वेश्या' मौजूद है. और यहीं पर विधवा और वेश्या दोनों के लिए “रंडी” शब्द प्रयोग होता रहा है. अब समाज का बड़ा हिस्सा यह सब कहाँ सुनने को तैयार है? संस्कृति की इनकी अपनी परिभाषा है, अपने हिसाब से जो चुनना था चुन लिया, जो छोड़ना था छोड़ दिया. अक्सर बहुत से मित्रवर "चूतिया, चूतिया" करते हैं, "फुद्दू फुद्दू" गाते हैं. नई गालियाँ आविष्कृत हो गईं हैं. "मोदड़ी के" और "अरविन्द भोसड़ीवाल". लेकिन तनिक विचार करें असल में हम सब "चूतिया" हैं और "फुद्दू" है, सब योनि के रास्ते से ही इस पृथ्वी पर आये हैं, तो हुए न सब चूतिया, सब के सब फुद्दू? और हमारे यहाँ तो योनि को बहुत सम्मान दिया गया है, पूजा गया है. जो आप शिवलिंग देखते हैं न, वो शिवलिंग तो मात्र पुरुष प्रधान नज़रिए का उत्पादन है, असल में तो वह पार्वती की योनि भी है, और पूजा मात्र शिवलिंग की नहीं है, "पार्वती योनि" की भी है. हमारे यहीं आसाम में कामाख्या माता का मंदिर है, जानते हैं किस का दर्शन कराया जाता है? माँ की योनि का, दिखा कर नहीं छूया कर. वैष्णो देवी की यात्रा अधिकांश हिन्दू करते हैं. कटरा से भवन तक की यात्रा के बीच एक स्थल है, "गर्भ जून". यह एक छोटी सी संकरी गुफ़ा है. इसमें से होकर आगे की यात्रा करनी होती है. काफ़ी मुश्किल से निकला जाता है इसमें से. लेकिन लगभग सभी निकल जाते हैं. यह बहुत ही कीमती स्थल है. इसके गहरे मायने हैं. यह गर्भ जून है. जून शब्द योनि से बना है. तो यह गर्भ योनि है. वो जो गुफ़ा का संकीर्ण मार्ग है, वो योनि मार्ग है. आप जन्म लेते ही बच्चे के दर्शन करो, उसके गाल, नाक सब लाल-लाल होते हैं, छिले-छिले से. संकीर्ण मार्ग की यात्रा करके जो बाहर आता है वो. कुछ ऐसा ही हाल होता है, जब यात्रीगण गर्भ-जून गुफ़ा से बाहर निकलते हैं. अब जैसे ही बच्चा माँ की योनि से बाहर आता है, माँ और बच्चे का मिलन होता है, मां उसे चूमती है, चाटती है, प्यार करती है, ठीक वैसे ही गर्भ जून से निकल यात्री वैष्णो माँ से जा मिलते हैं. यह है योनि का महत्व. और हमारे यहाँ तो प्राणियों की अलग-अलग प्रजातियों को 'योनियाँ' माना गया है, चौरासी लाख योनियाँ, इनमें सबसे उत्तम मनुष्य योनि मानी गयी है. योनि मित्रवर, योनि. यह है योनि का महत्व. और यहाँ मित्र 'चूतिया चूतिया' करते रहते हैं. चलिए अब थोड़ी चूतड़ की बात भी कर लेता हूँ. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के लगभग मध्य में हनुमान का मंदिर है, नाम है "चूतड़ टेका मंदिर". यहाँ पर परिक्रमा करने वालों के लिए अपने चूतड़ टेकना अनिवार्य माना जाता है. राजस्थान में इलोजी के मंदिर हैं. यह कोई मूछड़ देवता है. लम्बा लिंग लिए नंग-धडंग. स्त्रियों,पुरुषों दोनों में प्रिय. पुरुष इसके जैसा लिंग चाहते हैं, काम शक्ति चाहते हैं और बेशक स्त्रियाँ भी. सुना है इसके गीत गाये जाते हैं, फाग. नवेली दुल्हन को दूल्हा अपने साथ ले जा इसे पेश करता है, वो इसका आलिंगन करती है, असल में पहला हक़ नयी लड़की पर उसी का जो है. ब्याहता औरतें भी उसके लिंग को आ-आ कर छूती हैं पुत्र की प्राप्ति के लिए भी. वैसे शिवलिंग पूजन और कुआंरी लड़कियों का सोमवार व्रत भी यही माने लिए है. आप शब्द समूह देखते हैं “काम-क्रीड़ा”, यानी सेक्स को खेल माना गया लेकिन यहाँ चुम्बन तक के लिए बवाल मचा है असल में दुनिया की सब पुरानी व्यवस्थाएं विवाह पर आधारित हैं........विवाह बंधन है, विवाह आयोजन है...प्रेम स्वछंदता है......स्वतंत्रता है......बगावत है.... विवाह मतलब एक स्त्री-एक पुरुष, फिर इनके बच्चे, फिर आगे इनकी शादियाँ, फिर बच्चे.......... अब कहाँ ज़रूरी है कि प्रेम इस तरह से ही सोचे? सोच भी सकता है और नहीं भी. प्रेम आग है, जो इन सारी तरह की व्यवस्थाओं को जला कर राख कर सकता है प्रेम अपने आप में स्वर्ग है, किसे पड़ी है मौत के बाद की जन्नत की, स्वर्ग की प्रेम अपने आप में परमात्मा है, किसे पड़ी है मंदिरों में रखे परमात्मा की प्रेम अपने आप में नमाज़ है, किसे पड़ी है अनदेखे अल्लाह को मनाने की प्रेम सब उथल पुथल कर देगा इसलिए प्रेम की आज़ादी जितनी हो सके, छीनी जाती है. कहीं पत्थरों से मारा जाता है प्रेम करने वालों को, कहीं फांसी लगा दी जाती है. लेकिन नहीं, बगावत शुरू हो चुकी है, वहां पश्चिम में FEMEN नाम से स्त्रियों ने नग्न विरोध शुरू कर दिया है, विरोध लगभग सारी पुरातन, समय बाह्य मान्यताओं का. अब यहाँ के युवाओं ने भी साहसिक कदम उठाया है, यह कदम स्वागत योग्य है, जितना समर्थन हो सके देना चाहिए.....अरे, वो युवा क्या चोरी कर रहे हैं, क़त्ल कर रहे हैं, वो कोई डकैत हैं, वो कोई राजनेता हैं ..कौन हैं ..साधारण लडके, साधारण लड़कियां .....लेकिन आसाधारण कदम. जिस से नहीं देखा जाता न देखे, अपनी आँखे घुमा ले........बदतमीज़ सरकारी कर्मचारी देखे जाते हैं......रिश्वतखोर नेता देखे जाते हैं.........एक दूजे को धोखा देते लोग देखे जाते हैं....प्रेम करते हुए जोड़े नहीं देखे जाते..लानत है! एक बात समझ लीजिये सब साहिबान, यह जो एक स्त्री-एक पुरुष आधारित सामाजिक व्यवस्था बनाई गयी है न, यह स्त्री पुरुष सम्बन्धों का “एक” विकल्प रहने वाली है, न कि “एक मात्र विकल्प”. भारत में ही आदिवासी लोगों में एक सिस्टम है,"घोटुल". यह घोटुल बड़ा क्रांतिकारी व्यवहार है, पीछे Aldous Huxley की रचना पर आधारित फिल्म देख रहा था.... Brave New World. घोटुल और इस फिल्म में कुछ समानताएं हैं. घोटुल गाँव के बीच में एक तरह का बड़ी सी झोंपड़ी है.......यहाँ नौजवान लड़के लड़कियों की ट्रेनिंग होती है, आगामी जीवन के लिए...सिखलाई. यह विद्यालय है, लेकिन यहाँ कुछ ऐसा है जिसे हमारा तथा-कथित सभ्य समाज तो शायद ही स्वीकार कर पाए. यहाँ की लड़कियां और लडके आपस में सम्भोग करते हैं......कुछ नियम हैं कि कोई भी लड़का /लडकी एक ही व्यक्ति के साथ ही सम्भोग करता/करती नहीं रह सकता/सकती. और कहते हैं कि बहुत ही कामयाब सिस्टम है. बहुत ही शांत व्यवस्था. अब हमारे तथा-कथित समाज सुधारक चले हैं इनका विरोध करने .... खैर ठीक से देख लीजिये, हम आदिवासी हैं या घोटुल व्यवस्था वाले लोग. कल तक आपके पवित्र समाज में प्रेम-विवाह की चर्चा महीनों तक होती थी, मोहल्ले भर होती थी, प्रेम-विवाह बड़ा क्रांतिकारी कदम माना जाता था, आज कोई कान तक नहीं धरता कि किसका विवाह कैसे हुआ. कल तक आप कल्पना नहीं कर सकते थे कि स्त्री-पुरुष बिन विवाह के कानूनी रूप से साथ रह पायेंगे, लेकिन आज रहते हैं. आज जो आप कल्पना नहीं कर सकते वो होने वाला है आगे, यहाँ लिव-इन तो है ही, यहाँ "ग्रुप-लिव-इन" भी आने वाला है. यहाँ पारम्परिक शादी भी रहेगी, अभी तो रहेगी, यहाँ लिव-इन भी रहेगा और यहाँ “ग्रुप-लिव-इन” भी आयेगा. यह जो "किस ऑफ़ लव" का विरोध है, वैलेंटाइन डे का विरोध है, वो सिर्फ पारम्परिक शादी व्यवस्था का खुद को बचाने का जोर है, पुराने समाज का खुद को बचाने का प्रयास है. और सब धर्मनेता, राजनेता की शक्ति पुरानी, पारम्परिक शादी व्यवस्था से आती है, यह व्यवस्था क्षीण हुयी तो सारा सामजिक ढांचा उथल-पुथल हो जाएगा. नयी व्यवस्था में कौन परवा करने वाला है इनकी? बच्चे पता नहीं कैसी व्यवस्था में पलेंगे? हिन्दू का बच्चा पता नहीं हिन्दू रहे न रहे? और फिर जब जीवन ही मन्दिर हो जाए तो पता नहीं कोई राम मंदिर की परवाह करे न करे, जब ज़िंदगी पाक़ हो तो किसे परवाह पाकिस्तान की-हिंदुस्तान की? इसलिए लफड़ा है और रगडा है...और वो भी बड़ा वाला. लेकिन होता रहे यह लफड़ा, रगड़ा, अब बहुत लम्बी देर नहीं टिकने वाला....पूरी दुनिया के ढाँचे टूट रहे हैं.....बगावतें हो रही हैं.....भविष्य...भविष्य उम्मीद से ज़्यादा निकट है...'भविष्य वर्तमान है'. लाख गाली देते रहें संघी सैनिक, लाख कहते रहें कि ये लड़कियां रंडियां है, ये लड़के रंडपना कर रहे हैं, अपने माँ-बाप के सामने यह सब करें, लाख कहते रहें कि जो समर्थक हों इस मुहिम के अपनी बेटियों, बहनों को भी यह छूट दें..... कुछ नहीं होने वाला. और लगाते रहें लेबल कि यह तो कम्युनिस्ट का षड्यंत्र है, यह तो पश्चिम का अंध-अनुकरण है......नहीं है, यदि षड्यंत्र है तो फेसबुक का है, whatsapp का है, इन्टरनेट का है, कंप्यूटर का है, मोबाइल फ़ोन का है ....विचार बिजली की गति से यात्रा करता है.....आप रोक नहीं पायेंगे. और कहते रहे कि यह वामपंथ है.....खुद ही टैग लगा दिया कि हम दक्षिणपंथी हैं और जो विरोध में वो वामपंथी......राईट इस ऑलवेज राईट एंड लेफ्ट इज़ रॉंग. सुना है कि जब पहली बार हवाई जहाज उड़ा तो बस थोड़ा ही उड़ पाया, चंद मीटर और फिर गिर गया.......जब पहली बार कार बनाई गयी तो उसमें बेक गियर नहीं लगाया जा पाया.....आज हवाई जहाज उड़ता है मीलों और अन्तरिक्ष यान भी......और तो और कार भी उड़ने की तैयारी में है. यदि पारम्परिक विवाह से हट के कोई सामाजिक व्यवस्था ठीक से स्थापित नहीं हो पायी तो यह कैसे मान लिया गया कि आगे भी न हो पायेगी? कार में बैक गियर लगा न.....हवाई जहाज उड़ा न ..और कार हवाई जहाज बनने को है न और हवाही जहाज कार बनने को है न ...है न? मूर्ख यह नहीं समझते कि आप लोगों के सख्त विरोध की वजह से ही लड़के-लड़कियां सडकों पर उतर आते हैं .....काश कि आपने प्यार से उन्हें समझाया होता कि प्रेम करने में, चुम्बन में कोई अपराध नहीं.......लेकिन बेहतर हो इसे तमाशा न बनाया जाए....हजार तरह से समझाया जा सकता है....लेकिन नेगेटिव रवैये ने सारा मामला सड़क पर उतर आता है. इसी तरह के सख्त विरोध की वजह से पीछे लड़के-लड़कियों ने "किस ऑफ़ लव" नाम से जेहाद छेड़ दी थी. मूर्ख तो यह तक कह रहे थे कि "किस ऑफ़ लव" क्यों कहा गया, क्या कोई बिना लव के भी किस होती है....... होती है बंधुवर, होती है, किस तो एक बलात्कारी भी कर सकता है, लेकिन यह किस "किस ऑफ़ लव" तो कदापि नहीं होती. और मूर्ख तो यह कह रहे हैं कि सड़क पर प्रेम तो कुत्ते बिल्ली करते हैं, हम इंसान हैं, हमें शोभा देता है क्या? देता है शोभा, बिलकुल शोभा देता है.......यदि आप समझते हैं कि यह कुछ अशोभनीय है तो आप कुत्ते बिल्लियों से ऊपर नहीं उठ गए हैं, नीचे गिर गए हैं........समझते ही नहीं मित्रवर, भाई जी, बहिन जी, सेक्स को हमारे यहाँ पूजनीय माना गया है, मन्दिरों में रखा गया है, भगवान माना गया है और आप कहते हैं कि सार्वजनिक स्थलों पर चुम्बन तक न करो, आलिंगन न करो....मंदिर सार्वजनिक स्थल नहीं हैं क्या? इनसे ज्यादा पवित्र, सार्वजनिक स्थल क्या होंगे? नहीं? हाँ, लेकिन बधुगण की तकलीफ दूसरी है, इन्हें चाहिए ऐसा समाज जो बस आँख बंद करके, शीश नवा के चलने वाला हो, दिमाग मत लगाए, जो ऐसे भगवानों को पूजे जो खुल के काम-क्रीड़ा में सलग्न हों लेकिन उनसे प्रेरित हो भक्तगण खुद कभी वैसा करने की सोचें भी न. इन्हें चाहिए ऐसा समाज जो रोज़ शिवलिंग पर जल चढ़ाता रहे लेकिन शिवलिंग है क्या यह न सोचे, यह न सोचे कि वो शिवलिंग ही है या पार्वती कि योनी भी है, यह न सोचे कि क्या वो शिव लिंग पार्वती की योनी में स्थित है, कि क्या वो शिव पार्वती का मैथुन है, कि क्या मैथुन पूजनीय है, कि यदि शिव पार्वती का मैथुन पूजनीय है तो उनका मैथुन भी क्यों पूजनीय नहीं है. बड़ी चुनौती है सेक्स इन्सान के लिए ....सेक्स कुदरत की सबसे बड़ी नियामत है इन्सान को..लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है...इंसान अपने सेक्स से छुप रहा है...छुपा रहा है...सेक्स गाली बन चुका है......देखते हैं सब गालियाँ सेक्स से जुड़ी हैं ..हमने संस्कृति की जगह विकृति पैदा की है.. कोई समाज शांत नहीं जी सकता जब तक सेक्स का समाधान न कर ले.....सो बहुत ज़रूरी है कि स्त्री पुरुष की दूरी हटा दी जाए.....समाज की आँख इन सम्बन्धों की चिंता न ले.......सबको सेक्स और स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाए....सार्वजानिक जगह उपलब्ध कराई जाएँ. देवालय से ज़्यादा ज़रुरत है समाज को सम्भोगालय की.पत्थर के लिंग और योनि पूजन से बेहतर है असली लिंग और योनि का पूजन. सम्भोगालय. पवित्र स्थल. जहाँ डॉक्टर मौजूद हों. सब तरह की सम्भोग सामग्री. कंडोम सहित. और भविष्य खोज ही लेगा कि स्त्री पुरुष रोग रहित हैं कि नहीं. सम्भोग के काबिल हैं हैं कि नहीं. और यदि हों काबिल तो सारी व्यवस्था उनको सहयोग करेगी. मजाल है कोई पागल हो जाए. आज जब कोई पागल होता है तो ज़िम्मेदार आपकी व्यवस्था होती है, जब कोई बलात्कार करता है तो ज़िम्मेदार आपका समाजिक ढांचा होता है...लेकिन आप अपने गिरेबान में झाँकने की बजाये दूसरों को सज़ा देकर खुद को भरमा लेते हैं. समझ लीजिये जिस समाज में सबको सहज सेक्स न मिले, वो समाज पागल होगा ही. और आपका समाज पागल है. आपकी संस्कृति विकृति है. आपकी सभ्यता असभ्य है. सन्दर्भ के लिए बता दूं, जापान का एक त्योहार अपनी खास वजह से खासा लोकप्रिय है, और ये खास वजह है, कि इस त्योहार में लिंग की पूजा होती है। जी हां जापान में यह अनोखा त्योहार कनामरा मसुरी के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव में लिंग की शक्ति का जश्न मनाया जाता है। चाहें बूढ़े हों, जवान हों या बच्चे हों सब इस उत्सव को बहुत धूमधाम से और बिना किसी झिझक के मनाते हैं। हर तरफ लिंग के आकार के खिलौने, मास्क, खाने की हर चीजों से दुकानें सजी होती हैं. चीन में Guangzhou Sex Culture Festival का आयोजन किया जाता है. इस दौरान सेक्स चाहने वालों के लिए एक बड़ी exhibition लगायी जाती है. इस एग्जीबिशन में छोटे कपड़े पहनकर महिलाएं सेक्स का मजा लेने पहुंचे दर्शकों के मुंह पर दूध की बौछार करती है. यहीं नहीं फेस्टिवल के ऑर्गेनाइजर लोगों का ध्यान खींचने के लिए नए सेक्स डॉल की प्रदर्शनी लगाते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग यहां पहुंचें. यह फेस्टिवल हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसका लुफ्त उठाने के लिए दुनियाभर से पहुंचते है. कोयल कुहू-कुहू गा कर अपने प्रियतम को पुकारती है और मोर नाच कर रिझाता है अपनी प्रियतमा को. पेड़ों में भी मेल-फीमेल होते हैं. यिन यान का पसारा है पूरी कायनात में. नकारना घातक है. नकारना जीवन को ज़हरीला कर चुका है. तो मैं हूँ समर्थक प्रेम का और यदि मेरी बहन, मेरी बेटी प्रेम करेगी, जिससे करेगी यदि उसे चूम रही होगी तो मुझे कतई ग्लानि-शर्मिन्दगी नहीं होगी चूँकि यह बेहतर होगा किसी को लूटने, खसूटने और कत्ल करने से......यह पूरी दुनिया में प्यार की सुगंध फैलाएगा. नमन...तुषार कॉस्मिक