Friday, 3 July 2015

तुम इडियट हो क्या

1) तुम इडियट हो क्या, जिसे कूड़े की टोकरी में फेंकना चाहिए उसे सम्मान देते हो, औरंगजेब जो एक कातिल था, उसके नाम पर दिल्ली में सड़क का नाम रखा है......ठीक है यदि यही बात है तो फिर गुरु गोविन्द और शिवाजी को ही विलन घोषित कर दो न....शाबासी मिलेगी....सरदार खुस होगा....

इडियट!!!



2) तुम इडियट हो क्या, उस द्रोणाचार्य को सम्मान देते हो जो सिर्फ राजकुमारों का शिक्षक था, जिसे आम जनता के होनहारों को शिक्षा देना स्वीकार ही नहीं था, स्वीकार छोड़ो जो आम आदमी को शिक्षा से शक्तिशाली होना ही स्वीकार न था......उसे सम्मान देते हो ?
द्रोण गुरु नहीं, गुरु घंटाल था.....कल्पना करें...बाबा नानक से.......

बाबा नानक शाह फ़कीर......
हिन्दू का गुर........मुस्लिम का पीर....

यह होतें हैं असली गुरु ...न कि द्रोण जैसे खोते ...खोटे...जो बिना कुछ शिक्षा दिए ही गुरु दक्षिणा मांग लें और वो भी कैसी...लानत!

इडियट!!!


3) तुम इडियट हो क्या, जिसे कूड़े की टोकरी में फेंकना चाहिए उसे सम्मान देते हो, मंगोल जो कातिल थे, लुटेरे थे, हम पर हमलावर थे, उनके नाम पर दिल्ली की एक बड़ी कॉलोनी का नाम "मंगोल पुरी" धर रखा है?

ठीक है यदि यही बात है तो फिर गुरु गोविन्द और शिवाजी को ही विलन घोषित कर दो न....शाबासी मिलेगी....सरदार खुस होगा....

इडियट!!!


4) तुम इडियट हो क्या जो भिंडरावाला, खालिस्तान के नाम पर निर्दोष हिदुओं और सिखों के क़त्ल में शामिल था, उसे आदर्श मान रखा है, उसे गुरु गोबिंद के समकक्ष रखा है, कब किसी निर्दोष की हत्या में कोई गुरु शामिल थे, बताना तो ज़रा?

इडियट!!!!

लंगर

लंगरों जैसे प्रयासों से कोई स्थाई हल नहीं होते भाई जी...चाहे वो कोई भी धर्म के लोग चलायें..बेहतर है सामाजिक व्यवस्था के भीतर तक उतरना...यह समझना कि गरीब गरीब क्यों है.....और अमीर अमीर क्यों है.....समाजिक व्यवस्था में तो कोई खराबी नहीं.....और खराबी है तो कहाँ है...और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है........गरीब गरीब समाजिक व्यवस्था से है...और अमीर भी एक स्वीकृत समाजिक व्यवस्था की वजह से है......यह लंगर आदि बचकाने प्रयास हैं.......
हमारा जो तबका बहुत नीचे है...उसे कैसे ऊपर लायें......मुल्क की ज़रुरत उसे है....अमीर तो वैसे ही सब खरीद लेगा......उसे क्या फर्क पड़ता है...उनके तो आधे परिवार वैसे ही भारत छोड़ चुके हैं

दिल्ली में शायद ही कोई अमीर परिवार ऐसा हो जिसके नाते रिश्तेदार इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि में न रहते हों

सत्य यह कि आज तक...आज तक अधिकांश इंसानियत गरीब ही पैदा हुई है, गरीब ही जीती रही है और गरीब ही मरती रही है.......और सारी व्यवस्था इसी तरह के निजाम को समर्थन देती रही है.... हमारी जो अधिकांश जनसंख्या जीती है और मरती है गरीबी में ..वो है नियम.....बन गया इक्का दुक्का आदमी अमीर गरीबी से...यह है अपवाद.....और अपवाद सिर्फ नियम को साबित करते हैं न कि उसके खिलाफ जाते हैं.......इसकी गहराए में जाएँ और उसे बदलने का प्रयास करें...यह गरीब अमीर साथ साथ बैठ लंगर खा सकते हैं......लंगर से कोई भूखों का पेट भर सकता है?......कुछ नहीं होना भाई जी, इन सब से...और न हुआ है

बुलेट ट्रेन

"बुलेट ट्रेन"


सादर निवेदन यह है कि किसी मुल्क की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए.......यह मुद्दा है.......कोई व्यक्ति मानो हड्डी तुडाये बैठा है टांग की..... तो क्या होगी उसकी प्राथमिकता....लेकिन वो तो अड़ गया कि नहीं, पहले बाइक खरीदने जाना है, फिर कार, फिर बुलेट ट्रेन...उम्मीद है मैं अपनी बात समझा पाया होऊंगा.


बुलेट ट्रेन लाना ठीक वैसे ही है जैसे किसी भूखे नंगे को खाना, कपड़ा न देना लेकिन उसके क्नॉट प्लेस घुमाने का इंतज़ाम कर देना 



बुलेट ट्रेन से विदेशों तक में India Shining जैसी तस्वीर पेश कर सकते हैं लेकिन नीचे की असलियत उससे बिलकुल उलट होगी...

मेरी नज़र में अभी इस बुलेट ट्रेन जैसे शिगूफे की बजाए हजारों लाखों काम हैं जो हमारी सारी सामाजिक व्यवस्था, राजनितिक व्यवस्था और कानूनी व्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था को सुधार सकती हैं.....

बेहतर है ज़मीनी लेवल पर अभी जो बहुत कुछ किया जाना है ...वो सब किया जाए......

एक मुल्क अपना समय और अपनी उर्जा और अपना पैसा कहाँ लगाता है और कब लगाता है ...यह है देखने की बात...

ग्लैमर ठीक नहीं...वो गलत तस्वीर पेश करता है विकास कि ठीक वैसे ही जैसा कांग्रेस ने India Shining दिखया दुनिया को

चलिए..दिल्ली की मेट्रो को ले लेते हैं.......दिल्ली की यातायात व्यवस्था इतनी ख़राब थी और है कि सडक पर गाड़ियाँ रेंगती हैं......

मेट्रो आने से क्या सडकों पर यातायात कम हो गया.....प्रदूषण घटा गया...? नहीं बल्कि बढ़ गया हो शायद

यहाँ पर ही मैं कहता हूँ कि जब आप बड़े लेवल पर प्रयास नहीं करेंगे...तस्वीर पूरी सामने नहीं रखेंगे तो कुछ होगा नहीं.....

ऐसा होता ही क्यों है कि चंद शहरों में ही विकास है...रोटी है......तभी तो भागते हैं लोग दिल्ली मुंबई......क्योंकि उल्लू के पट्ठे नेताओं ने चंद शहरों को छोड़ बाकी जगह विकास दिया ही नहीं.......यह मेट्रो आदि शिगूफा ही है.......बेहतर होता कुछ यूनिफार्म विकास करते भारत का...क्यों जाए बन्दा बिहार से दिल्ली मुंबई....क्यों छोड़े अपना गाँव?

क्यों हो बेतहाशा भीड़ चंद शहरों में ही......उस तरफ तो कुछ कर नहीं सके...दिल्ली. मुंबई, बंगलोर को मेट्रो दे रहे हैं....बकवास है यह सब

बेशक इस मुल्क...में अमीर भी हैं और गरीब भी हैं.........लेकिन देखना यह चाहिए कि आपके कितने लोग हैं जो गरीब हैं और गरीब भी हैं तो किस तरह के गरीब हैं........और देखना यह चाहिए कि आप किस तरह से उन गरीब लोगों को, उन अनपढ़, उन बेचारे लोगों के जीवन स्तर ऊपर उठा सकते हैं.....

कोई गरीब है ,,,कोई अमीर है...कुदरत कोई बच्चा गरीब अमीर पैदा नहीं करती....हम तय करते हैं कि नहीं, यह बच्चा गरीब है, यह अमीर है......क्या कसूर किसी बच्चे का कि वो गरीब की तरह जीए......?

प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?.......यह कि आप सब जगह माल बना दो, सब जगह फाइव स्टार होटल बना दो, सब जगह फाइव स्टार जैसी ट्रेन दे दो..........और दूसरी तरफ आपकी आबादी का एक बड़ा तबका कीड़ों जैसी ज़िंदगी रेंग रेंग कर जीता रहे

मुद्दे तो एक क्या अनेक हैं, जो बुलेट ट्रेन जैसे बकवास कांसेप्ट से बेहतर है.......जो करने लायक हैं.........

मेरी नज़र में बुलेट ट्रेन एक फिलहाल के लिए गैर-ज़रूरी कदम है.....बे-अक्ला कदम है

एक बार एक विदेशी खड़ा था नयी दिल्ली स्टेशन पर...और एक ट्रेन जो 6 बजे आनी थी वो 5.50 पर ही प्लेटफार्म पर लग गयी.....विदेशी बड़ा खुश...वाह भाई, यह तो कमाल है...भारतीय रेल समय से पहले ....वो तो बाद में पता लगा कि यह ट्रेन जो बीते कल आनी थी छे बजे , वो वाली थी, खैर विदेशी को यह कदापि नहीं बताया गया....सन्दर्भ ---बुलेट ट्रेन

!!!!! हिंदी दिवस, एक बेमानी प्रयास !!!!!

किसी भी भाषा के लिए दिवस विशष मनाया जाना एक खतरे की निशानी है। उस भाषा के लिए और उस भाषा भाषियों के लिए भी। आखिरकार ज़रुरत ही क्यों पड़े कि लोगों को अपनी भाषा के प्रसार के लिए दिवस विशेष मानाने पड़ें ..?

अगर आप अपने इर्दगिर्द नज़र घुमायेंगे तो पायेंगे कि जो भी आविष्कार हैं उनमें शायद ही कोई हों जो हिंदी भाषियों ने आविष्कृत किये हों, और जो हैं भी वो शताब्दियों पहले के हैं, और जो भी हैं वो नाम मात्र को हैं। हमारा तथाकथित वैज्ञानिक भी नकलची भर है। जैसे जीवन नहीं रुकता वैसे ही ज्ञान-विज्ञान भी नहीं रुकता। आप लाख गर्व करें कि ज़ीरो भारत ने दिया लेकिन असलियत ये है कि हम ज्ञान-विज्ञान के प्रसार को बरकरार नहीं रख पाए।

और भाषाएं कोई जोर ज़बरदस्ती से विकसित नहीं होती। भाषाएं कोई दिवस मनाने से विकसित नहीं होती। भाषाएं विकसित होती हैं अगर वो जीवन को गति देती हों, अगर वो जीवन को कुछ दान देती हों, अगर उनसे रोज़गार मिलता हो। भाषाएं विकसित होती है अगर उनसे विकास मिलता हो।

लगभग आधी दुनिया अंग्रेज़ों के प्रभाव में रही है। लगभग सारा विज्ञान पश्चिम की देन है। लगभग सारा का कंप्यूटर-इन्टरनेट अंग्रेजी भाषा में है और विज्ञान से व्यापार, व्यवहार, सब आन जुड़ता है। अंग्रेजी आज निश्चित ही वैश्विक भाषा का दर्जा रखती है। आज अंग्रेजी न सीखना जीवन की गति को निश्चित ही बाधित करेगा।

और भारत में, उत्तर भारत की भाषाएं तो हिंदी से मिलती-जुलती हैं। यहां तो हिंदी आसानी से समझी बोली जाती है लेकिन दक्षिण भारत और कई अन्य हिस्सों की भाषायों का हिंदी से कोई मेल नहीं, हिंदी तो पूरे भारत भर में भी संचार का माध्यम नहीं है।

यदि मंगल गृह का विज्ञान हम से ज्यादा विकसित हो तो क्या उनकी भाषा सीखना हमारे लिए ज़रूरी न हो जाएगा। सीधा-सा सूत्र है भाषा वही बच पायेगी जिसकी ज्यादा ज़रुरत महसूस होगी और जैसे सभ्यताएं मरती हैं वैसे ही उनकी भाषाएं भी। जोकि अधिकांशतः मानव विकास के लिए अच्छा है।

निष्कर्ष ये है कि हिंदी दिवस मनाने से न कुछ हुआ है न होगा, हिंदी बचानी है तो दुनिया को इस भाषा में बढ़िया साहित्य दें, ज्ञान विज्ञान दें, दुनिया को इतना दान दें इस भाषा में कि हिंदी सीखना उसकी मजबूरी हो जाए और ये बात मात्र हिंदी पर नहीं दुनिया की हर उस भाषा पर लागू होती है।

वैसे यदि हम सच में विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को ठीक से समझते हों तो हमें बिल्कुल फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि हिंदी मरी या बची। हमें मात्र मानव विकास पर ध्यान देना चाहिए न कि किसी भाषा विशेष के प्रसार पर, भाषाएं अपना रास्ता खुद-ब-ख़ुद बना लेंगी।

वित्त व्यवस्था

आप घी के कनस्तर जमा कर लीजिये......यह काला बाज़ारी है चूँकि आप तो खा नही सकेंगे यह सब, लेकिन दूसरे लोग जो लोग खा सकते हैं , उनको मरहूम कर देंगे इनको खाने से

आप गेहूं के बोरे जमा कर लीजिये ..........यह काला बाज़ारी है कि आप तो खा नही सकेंगे यह सब, लेकिन दूसरे लोग जो लोग खा सकते हैं , उनको मरहूम कर देंगे इनको खाने से

आप मकान जमा कर लीजिये..........यह काला बाज़ारी नही है, नहीं, कतई नहीं, यह तो है "निवेश, इन्वेस्टमेंट", साफ़ सुथरा काम.....वैसे आप इन सब मकानों में भी कभी नही रह सकते, हाँ, लेकिन दूसरे लोग जो रह सकते हैं , उनको मरहूम कर देंगे इनमें रहने से

बेशक इस मुल्क...में अमीर भी हैं और गरीब भी हैं.........लेकिन देखना यह चाहिए कि आपके कितने लोग हैं जो गरीब हैं और गरीब भी हैं तो किस तरह के गरीब हैं........और देखना यह चाहिए कि आप किस तरह से उन गरीब लोगों को, उन अनपढ़, उन बेचारे लोगों के जीवन स्तर ऊपर उठा सकते हैं.....

कोई गरीब है ,,,कोई अमीर है...कुदरत कोई बच्चा गरीब अमीर पैदा नहीं करती....हम तय करते हैं कि नहीं, यह बच्चा गरीब है, यह अमीर है......क्या कसूर किसी बच्चे का कि वो गरीब की तरह जीए......?

प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?.......यह कि आप सब जगह माल बना दो, सब जगह फाइव स्टार होटल बना दो, सब जगह फाइव स्टार जैसी ट्रेन दे दो..........और दूसरी तरफ आपकी आबादी का एक बड़ा तबका कीड़ों जैसी ज़िंदगी रेंग रेंग कर जीता रहे

पब्लिक कम्पनी पब्लिक की हो जानी चाहिए
बन्दा मर गया
कहानी खत्म

उसकी अगली पीढी क्योंकर मालिक?

एक पब्लिक कम्पनी मालिक मरने के बाद , उसका बेटा पोता ही कम्पनी चलाए.....यह काहे की पब्लिक कम्पनी?

वो कोई भी होना चाहिए ..जो भी काबिल हो

थोड़े समझदार लोग जानते हैं कि
यह बहु राष्ट्रीय कंपनीयां क्या चीज़ हैं
सब चोर हैं
व्यापार के नाम पर बड़ी चोरी
आम लोगों को बना रहे हैं बस उल्लू
अमेरिका में रोज़ बड़ी कंपनी पकड़ी जाती है चोरी करते


The Govt should impose "Sex tax" also, why, because it needs money for development....................No?

Thursday, 2 July 2015

रामायण

आज तक हमें यही समझाया गया है कि सीता को जंगल भेज देने के बाद राम जब उसे वापिस बुलाते हैं और अपनी पवित्रता फिर से सबके सामने साबित करने को कहते हैं तो सीता पृथ्वी माता में समा जाती हैं......

बात तो साफ़ है लेकिन ठीक से इसे समझाया नहीं गया......असल बात यह है कि सीता को समझ आ चुका था कि वो राम और समाज को कभी अपनी शुचिता समझा नहीं पायेगी, वो जैसी मर्ज़ी परीक्षा दे ले......वो कभी सम्मानित नहीं हो पायेगी.....राम के साथ रहने, वैसे समाज के साथ रहने के बजाए उसे आत्म-हत्या करना उचित जान पड़ा.......किसी खाई, खंदक में कूद गयीं होंगीं......बस

अक्सर मित्र ज़िक्र करते हैं कि दुश्मनों ने हमारे ग्रन्थों के साथ छेड़ छाड़ कर दी.......

और बताता हूँ कि ग्रन्थों को तोड़ना क्या होता है...पढ़ लीजिये वाल्मीकि रामायण और फिर तुलसी कृत रामायण ..........तुलसी बाबा ने अपनी तरफ से सब कड़वा कड़वा थू करने का प्रयास किया...वो तो क्या पता उनको कि समय के साथ जिसे वो मीठा समझ रहे हैं उसमें से भी लोग बहुत कुछ कड़वा मानने लगेंगे

वाल्मीकि रामायण में न तो शबरी के जूठे बेर का किस्सा है...न ही अंगद को रावण के पास दूत बना कर भेजने का किस्सा.......और भी बहुत कुछ तुलसी बाबा ने जोड़ा और तोडा...लेकिन इस पर कभी हिन्दू समाज को एतराज़ नहीं हुआ...क्यों...क्योंकि राम के चरित्र को और उभारा गया था, पोलिश किया गया था...जहाँ जहाँ एतराज़ उठ रहे थे ..उन उन हिस्सों को काँटा छांटा गया था

जो लोग स्वयं को शुद्र समझते हैं उनमें से कुछ स्वयम को वाल्किमी समाज भी मानते हैं,...उनकी जानकारी के लिए बता देता हूँ श्री राम वाल्मीकि की सीता के बारे में गवाही देते हैं राम दरबार में की सीता पवित्र हैं..........लेकिन राम को वो गवाही कतई मंज़ूर नही होती.......तभी तो सीता को अंत में धरती माता की गोद में आत्महत्या करनी पड़ती है ....अब अगर कोई वाल्मीकि समाज/तथा कथित शूद्र राम को बहुत प्यारा समझना चाहता है तो उनकी मर्ज़ी

वाल्मीकि--- जैसे मसाला फिल्मों में आइटम सोंग डालना ज़रूरी समझा जाने लगा है , वैसे ही दृश्य चाहे कोई भी हो, जब जब स्त्री का ज़िक्र आता है, वाल्मीकि उसके भारी वक्ष स्थल, पतली कमर, भारी कूल्हों का ज़िक्र करते हैं

यदि श्रृंगार रस का स्थल हो तो शायद यह सब जम भी जाए, लेकिन वाल्मीकि ने तो कहीं भी स्त्री सौन्दर्य को नही बख्शा.....चाहे सीता हो, चाहे कोई भी वाल्मीकि इनका उल्लेख ऐसे ही करते है...भारी वक्ष स्थल वाली, पतली कमर वाली, भारी कूल्हों वाली.......

लगता है भारत के मन में सेक्स बहुत गहरे दफन था और वाल्मीकि भी इसी के शिकार थे

पूरी रामायण स्त्रियों की दुर्दशा दिखाती है...लगभग सब शिकार हैं पुरुष की, ताड़का, सीता, शूर्पनखा....उर्मिला.

शूर्पनखा ---उस के पति का वध रावण ने किया था..बिना किसी दोष के

ताड़का--- उस का वध राम से इसलिए करवाया गया चूँकि वो अपने निर्दोष पति के हत्यारे को परेशान करती थी

सीता ---रावण मारे जाने के बाद राम सीता को बहुत अपमान जनक शब्द कहते हैं. कहते हैं, कि मैं नही स्वीकार सकता, लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि जिसके साथ मर्ज़ी चली जाओ, रावण मैंने आप के लिए नही अपने नाम पर लगे बट्टे को धोने के लिए मारा है.......और जो अक्सर कहा जाता है न कि राजधर्म निभाने को पत्नी को जंगल में छोड़ दिया.... यदि ऐसा था तो पिता का बेतुका हुक्म मान जंगल नही जाते, प्रजा की सेवा करते ....पत्नी ठुकरा दी, पिता को ठुकराते.......राज धर्म ही निभाना था तो..प्रजा ही ज्यादा प्यारी थी तो

उर्मिला----लक्ष्मण को भ्राता धर्म निभाना था, राम के साथ चले गए...पीछे पति धर्म कौन निभाएगा , यह सोचा ही नहीं.........

कौशल्या, कैकयी, मन्दोदरी, तारा आदि----- दशरथ, रावण, वाली, सुग्रीव आदि एक से ज्यादा पत्नी रख सकता था, इनके अंत:पुर और कुछ नहीं हरम थे, क्या इन स्त्रिओं को हक़ था कि वो भी एक से ज्यादा पुरुषों के सम्पर्क में आ सके? नहीं....समाज निहायत पुरुष प्रधान था

इस मुल्क को रावण से नही दशहरे और राम लीला जैसे बचकाने कामों से छुटकारा पाने की ज़रुरत है...

अब यह मत बक बकाना कि दशहरा बुराई के अंत का प्रतीक है, अगर ऐसा होता तो तुम्हें हर साल रावण मारना और जलाना नहीं पड़ता....यह मूर्खों वाले तर्क अपने पास रखो

असल में तो तुम्हारी बचकाना बुद्धि ही ज़िम्मेदार है , इस रावण के फिर फिर उठ खड़े होने के लिए

वही बुद्धि जो धर्म के नाम पे होने वाली उल-जुलूल हरकतों में लिप्त है, इस बुद्धि से करोगे साइंस में तरक्की?

इस बुद्धि से सिर्फ तुम रावण के पुतले जला कर प्रदूषण करोगे

इस बुद्धि से तुम सिर्फ रावण जला गन्दगी करोगे

इस बुद्धि से तुम्हारा रावण कभी नही मरेगा, देख लेना तुम्हें फिर से मारना और जलाना पड़ेगा अगले साल, फिर अगले साल , साल दर साल

छोड़ो ये किस्से, कहानियां......तुम्हें कुदरत ने सब दिया है, तुम कोई कम हो किसी राम से, अगर कुदरत को राम पर ही रुकना होता तो तुमको पैदा ही नही करती, कुदरत को तुम पर यकीन है, तुम्हें क्यों खुद पर यकीन नहीं, तुमको क्यों दूर दराज़ के तथा कथित भगवानों पे यकीन है

खुद पे यकीन करो.....अगले साल रामलीला नहीं...अपनी जीत, अपनी हार का जश्न मनायेंगे....अगले साल अपने जीवन के किस्से कहानियां सुनायेंगे.....अगले साल लीला यदि होगी तो मेरी और तेरी..जय हो.

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RAMAYAN- A CRITICAL EYEVIEW

!!!!!गांधी पर एक नज़र!!!!!!

आज़ादी की लडाई के वक्त बहुत सी विचारधारा वाले लोग थे. जैसे आज मान लो AAP और IPP या कोई और अम्बेडकर, आरएसएस, गांधी, सुभाष बोस आदि ...इनकी बहुत मुद्दों पर नहीं पटती थी. अम्बेडकरको दलित हित देखने थे और जिन्नाह को मुस्लिम हित देखने थे. असल में भारत उस दिन आजाद नहीं हुआ और न ही कोई भारत का पार्टीशन हुआ...भारत पैदा हुआ था उस दिन. उससे पहले कभी भी भारत इतना बड़ा था ही नहीं, जो था वो अंग्रेजों की बदौलत था. आज हमें लगता है कि जिन्ना, गांधी, अंग्रेजों ने मिल कर हमारे देश के टुकड़े कर दिए. नहीं. असल में आज जितना भारत है, इतना बड़ा भारत कभी भी एक झंडे के तले था ही नहीं. और उस दिन एक अलग तरह के भारत का जन्म हुआ था. अंग्रेजों को तो भगाना था, लेकिन पीछे कोई तैयारी नहीं थी. और आज तक नहीं है, आज भी उसी बाद-इन्तेज़ामी का खामियाजा भुगत रहे हैं हम. गांधी की अम्बेडकर, सुभाष, जिन्नाह किसी से बहुत नहीं बनती थी. और हालत ऐसे थे कि अंग्रेजों को विश्व-युद्ध की वजह से तथा और वजहों से भारत छोड़ना ही था धन्धा मुनाफे का नहीं था. टोटल हालत ये थे कि अंग्रेजों को जाना ही था....पीछे बटवारा होना ही था......अब इन सबने यह सोचा ही नहीं कि जनसंख्या का तबादला शांति से कैसे हो. हिन्दू मुस्लिम कभी एक हो नहीं सकते, न कल-न आज. एक गाय खाता है, एक पूजता है. लाख कहते रहो, "हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई." और मैं कोई बहुत इज्ज़त नहीं करता गांधी की और न ही बेईज्ज़ती. हालात पर शायद और बेहतर काबू पाया जा सकता था. आरएसएस कभी भी गांधी के पक्ष में नहीं था. बहुत अलग धाराएं थी. गांधी को मारने वाला संघी सोच का था. शायद हिन्दू महा-सभा का था. यह सब संघ के ही अलग-अलग रूप हैं. VHP, बीजेपी, ABVP आदि. आरएसएस ने हर उस सोच का विरोध किया है जो इनकी थ्योरी के खिलाफ थी.....कम्युनिज्म, ओशो, कांग्रेस, केजरीवाल. हरेक का. गांधी भी उसमें एक थे. 1947 से पहले कोई भारत नहीं था...कम-से-कम भारतीयों का बिलकुल नहीं, अंग्रेजों के झंडे के नीचे अंग्रेजों का भारत था. और जब था ही नहीं तो गांधी ने कहाँ से दे दिया? ये जो आज हमें इतना बड़ा भारत का नक्शा दीखता है न.....जो एक झंडे के नीचे.....इतना बड़ा भी कभी भारतीयों के पास भारत नहीं था. राजा थे छोटे छोटे. आपस में लड़ते थे. जो कहते हैं कि हिन्दू ने कभी हमला नहीं किया, शांतिप्रिय हैं, बकवास है बात. अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर, धरती खून से लाल कर दी. कौन था अशोक? रामायण में लिखा है कि रावण मारने के बाद राम ने अपने पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण सिर्फ इसलिए किये, क्योंकि उनको अपना साम्राज्य बढ़ाना था. पृथ्वीराज चौहान भरे दरबार से लड़ते-भिड़ते हुए अपनी भतीजी को उठा लाता है, शादी करता है. आज यह कहना बिलकुल गलत है कि भारत का विभाजन हुआ, भारत का जनम हुआ था 1947 में, विभाजन नहीं. विभाजन हुआ था अंग्रेजों के हुकूमत वाले भारत का. यह जो आरएसएस वाले बोलते हैं कि गांधी ने दे दिया पाकिस्तान, बकवास. उनके पास था कहाँ, जो दे देता? वो कौन थे देने वाले, न देने वाले. जिन्नाह ने माँगा था. पाकिस्तान-हिंदुस्तान न जिन्नाह के पास था, न गांधी के पास, वो सारा हिस्सा अंग्रेजों के पास था, वो उनकी हुकूमत थी. ऐसे तो मुस्लिम भी कह सकते हैं कि जिन्नाह ने उनके मुल्क का टुकड़ा कर दिया और छोटा हिस्सा उनको मिला जबकि मुग़ल-काल में ज्यादा बड़ा हिस्सा होता था उनके पास. इसी में एक बात जोड़ना चाहता हूँ कि भारत जो कश्मीर को अपने नक्शे में दिखाता आ रहा है, उस में कोई सच्चाई नज़र नहीं आती मुझे. कानून पढ़ता हूँ मैं अक्सर. झगड़े-झंझट की प्रॉपर्टी का धंधा है मेरा इसलिए. जितना मैंने पढ़ा, भारत के सब एक्ट की शुरुआत में ही लिखा रहता है कि वो भारत के सब राज्यों पर लागू है, सिवा जम्मू और कश्मीर के. यह सबूत है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अंग नहीं है. जिस मुल्क का कायदा-कानून ही किसी इलाके पर लागू नहीं तो फिर कैसे वो इलाका उस मुल्क का राज्य हो गया? कैसे स्कूली बच्चों को पढ़ा रहो हो कि वो तुम्हारे मुल्क का ही एक राज्य है? यह बे-ईमानी है. क्या किसी को पता है सैंतालीस के बरसों बाद तक कश्मीर का अपना प्रधान-मंत्री होता था? जिसे आज आप कश्मीर का मुख्य-मंत्री कहते हैं, वो पहले वहां का प्रधान-मंत्री कहलाता था. और अरुंधती रॉय और प्रशांत भूषण ने जो कहा था, वो शायद ग़लत नहीं था. इनको भी गलत ढंग से पेश किया है संघी सोच ने. अगर हिम्मत है तो फिर अब हटा लें धारा 370 वगैहरा. मुझे लगता है कि हमारा मुल्क-समाज जिसके काबिल था, वो ही मिला. आज भी जहालत भरी है लेकिन फेसबुक आदि से थोड़ी चेतना फ़ैल रही है. आजादी माँगी गयी.... मिली. अंग्रेजों ने ठेका नहीं लिया था पीछे. नेता लोग अनाड़ी थे..... भविष्य का कोई नक्शा था नहीं. लोग भी अनपढ़. लोग कांग्रेस को वोट इसलिए करते रहे क्योंकि वो पीढी-दर-पीढी कांग्रेस को वोट करते आये थे. और एक बात, भगत सिंह की फांसी के लिए भी गांधी को दोषी माना जाता है. सवाल यह है कि गांधी ने कहा था क्या उन्हें बम आदि फेंकने को? नहीं न. वो भगत की समझ थी. अब उसका जो भी नतीजा आया, उसके लिए गांधी कैसे दोषी? क्या ज़रूरी है कि गांधी भगत से या भगत गांधी से सहमत हों? नहीं....नर्म दल-गर्म दल अलग-अलग थे..... बिल्कुल. उन्हें फांसी होनी थी तो उसमें गांधी का क्या दोष? गांधी के हाथ में क्या था? वो कोई अँगरेज़ सरकार थे ? गांधी कभी गर्म दल से सहमत नहीं थे, किसी से भी नहीं. जिसने जो किया, सोच-समझ कर किया. जिसकी जैसी समझ थी. मुझे जो लगता है कि गांधी तथा-कथित विभाजन के लिए या भगत की फांसी के लिए ज़िम्मेदार नहीं. अगर गाँधी नहीं मानते इस Two-Nation-Theory को, तो भी क्या ज़रूरी कि जिन्नाह मान जाता? हाँ, अहिंसा गांधी की एक ट्रिक थी. चूँकि शायद उन्हें लगता था शायद कि हिंसा कामयाब हो ही नहीं सकती थी. दुश्मन बहुत ताकतवर था और समाज ऐसा नहीं था जो एक दम बगावत कर देता. या खुद में हिम्मत ही नहीं थी लड़ने-मरने की. बटवारा हुआ, हिन्दू मुस्लिम दोनों मारे गए थे. दोनों तरफ. पिता जी पाकिस्तान से आये थे. उन्होंने बताया था कि ट्रेन लाशों से पटी होती थी. जो निकल आये, निकल आये. रह गए, रह गए. मुझे लगता है कि गाँधी का भारतीय इतिहास में कोई इतना बड़ा रोल है ही नहीं, जितना बड़ा उनका नाम है. हर नोट पे छाप दिया. देश का बाप बना दिया. #महात्मा बना दिया. जैसे भगत, सूर्यसेन, चन्द्र-शेखर, सी वी रमण, रामानुजन, ओशो जैसे लोगों में कोई छोटी, कोई क्षुद्र आत्मा हो. उनके बाद नेहरु परिवार ने दशकों 'गाँधी' शब्द का फायदा उठाया, भुनाया. गाँधी के किये से कुछ भी नहीं हुआ. अँगरेज़ कोई उनके कुछ किये से नहीं गए थे. जब उनको जाना था, वो तब गए थे. आपको पता है KFC, WIMPY आदि आये थे भारत कोई नब्बे के दशक में. चले नहीं थे. फिर नज़र नहीं आये सालों तक. फिर नज़र आने लगे. कल फिर वापिस जा सकते हैं. सब मामला व्यापार का है. फायदे-नुक्सान का है. और गाँधी से अँगरेज़ कोई नुक्सान था, मुझे नहीं लगता, वरना कब का निपटा चुके होते. गाँधी तो इस्लाम को भी नहीं समझे. गाते रहे, "ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम", लेकिन समझे ही नहीं कि अल्लाह को मानने वाले नहीं मानते कि अल्लाह और ईश्वर एक ही बात है. अगर ऐसा होता तो जिन्नाह Two-Nation-Theory को समर्थन कैसे देता? पाकिस्तान कैसे बनता? जो गांधी नहीं समझे, वो आज भी भारत के बहुत से विचारक नहीं समझते. लेकिन मुझे नहीं लगता कि किसी को भी मार देना चाहिए. हाँ, वैचारिक विरोध करना चाहिए, जबरस्त ढंग से करना चाहिए. और गांधी से लेकर गौरी लंकेश तक, सब विचारकों को यह भी समझना चाहिए कि सिलेक्टिव नज़रिया रखेंगे तो अपने खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देंगे लेकिन अगर वृहद नज़रिया रखेंगे तो भी हिंसा नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. जर्ज़र समाज की नींव हिलायेंगे तो यह आपका दुश्मन हो जाएगा और जान लेने पर उतारू हो जायेगा. यह इश्क नहीं आसां, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है. Cosmic Tushar ©®

Navratre, An Event to brainstorm ourselves

1) They kill the girls in the womb and worship girls in Navratre. Hypocrites!

2) They do not wanna give the fair share in the property to their sisters and worship girls in Navratari. Hypocrites!

3) In every city, every town daughters of the society are forced to live a wretched life, a lifeless life in the brothels and they worship girls in Navratri. Hypocrites!

4) Girls Name----Seema--सीमा-- (The Limit)/ Boyz Name----Aseem--असीम- (The Limitless). Hypocrites!

5) Remove the fear of law and society and most of the men will rape almost every female of the society and they worship girls in Navratri. Hypocrites!
We have seen all such things in 1947 and every other communal riot.

6) In cities like Mathura, Vrindavan widows of the society, daughters of this holy society are forced to live like dead bodies, just waiting for death and they worship girls in Navratri. Hypocrites!

7) Their dynasty name is carried by the sons of the family only, hence only the sons are the torch bearers of the family name. Hence the daughters are always considered "praya dhan" (पराया धन) to be given in charity as "kanya daan", who will breed sons of the family of her in-laws. And they worship girls in the Navratre, Hypocrites!

8) हमारा समाज एक उलझा समाज है....स्पष्ट जीवन दर्शन नहीं.....

यहीं राम पूजे जाते हैं जो ज़रा सी बात पर एक स्त्री को जीवन भर के लिए कुरूप कर देते हैं.....और फिर अपनी पत्नी को अपमानित करते हैं........

कृष्ण कपड़े चोरी करते हैं, नहाती लड़कियों के....कभी कोई लडकी पूजी इस देश ने जो ऐसा करे ........

बुध पूजे जाते हैं .....जो अपनी पत्नी बच्चा छोड़ चल देते हैं .......

और फिर यह भी कहा जाता है ...यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः

9) Dandiya, Garba Dance & CONDOMS & THE MORAL
“These dances are performed during Navratras for celebrating Maa Durga’s Puja but hope you won’t be surprised to know that sales of the CONDOMS gets increased very much during these days. Should not Indian society learn something from this fact?”

10) In the name of Bhagwati Jagrans and Kirtans, we make so loud voices, noises that the lives of the neighbors turn a hell on that particular night.

11) In the name of the religious processions, we choke the whole traffic system almost to the death. In Delhi, these days, people from far and away have started taking "jyot" from Jhandewalan Mandir. These people go on dancing on the roads on loud music, creating sound pollution and traffic jams.

12) We, Indians submerge idols of Durga and Ganesh in the ponds and the rivers on the festival of Durga Puja and Ganesh Puja, forgetting that the poisonous paints and the chemicals used in these Idols will kill fish and other creatures of these ponds and rivers.

13) Bengalies and some other people of India, kill animals in the name of sacrifice to the Devi. Idiots! Hypocrites!! If your goddess becomes happy by these sacrifices, why not slaughter your kids on the altar? But alas! There are some idiots who go to such limits also.

14) Fasting & changing the Food is good in Navratri because the season changes Gear from Hot to Cold or Cold to Hot every six months, so the immune system needs extra strengthening to face this change of gear smoothly, hence special healthier diet & the fasts are recommended during these days.
But it does not mean that on the 10th Day, the people should compensate drastically the restrictions of these 9 days, but alas many do the same & even in the name of the fasts, eat deep-fried potatoes, worse that the ordinary daily food. Fools!

15) Do U know why all Mata Mandir are in deep Mountains, because it is Mother Nature only depicted as Durga, Kali etc.? There is no Kaali or Peeli Mata except Mother Nature.

16) Please come out of the hypocrisy only then we have any right to celebrate such festivals OR perhaps then there will be no Need of such festivals, perhaps we celebrate these festivals just to solace ourselves or to deceive ourselves.

I can support anything what can be explained logically or psychologically but not the illogical ones.
Kindly see here below, what foolish things we have done in the name of women empowerment.

17) (i) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----She can have sex with anyone willingly but can get the male jailed any time just declaring that it was a rape, This is called the real POWER.

Jai Mata Di.....

(ii) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----She can do any stupidity in the family after marriage but if hindered she can get husband and his family jailed under Domestic Violence Act and 498-A, This is called the real POWER.

Jai Mata Di.....

(iii) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----she will not contribute in the finances of the family in which she is going to live, any contribution from her side is DOWRY, which is illegal but immediately as she is married , she will become half the owner of the property of the Groom, This is called the POWER.

Jai Mata Di.....

(iv) Navratri/ Reminder of Women Empowerment----The woman is Shakti, Power, Navratri are a reminder, a six monthly reminder. Yeah, of- course, she is Power, powered by BIASED INDIAN LAWS.

Jai Mata Di.....

18) Durga Mata be shown in a new form. The concept of Sheran wali Mata is a creation of the old world. The new Mata should ride a bike more advance than Harley Davidson Motorcycle instead of Lion, wear bullet-bomb-proof, atom bomb proof very decorative helmet, wear high class bullet-bomb-proof jeans jacket instead of Sari, carry AK-56 or even advance super-gun in one hand instead of Sword, in another hand super rocket launcher instead of Bow-Arrow, in another hand Atom Bomb instead of Sudarshan Chakra.

As we progress, our deities too should progress, in fact, they should always be ahead of us. No?

19) एक नयी देवी, मेरा अविष्कार :---

संतोष मात्र से उन्नति में बाधा होती है, सो संतोषी माता जी को आराम करने दें

भोला होना कोई गुण नहीं, हाँ अवगुण अवश्य है, सो भोले बाबा को भी जाने दें

लक्ष्मी की पूजा सहस्त्राब्दियों से करते आये हम, फिर भी अधिकांशत: निर्धन ही रहे, सो इन्हें भी सोने दें

वैश्वीकरण के समय में भारत माता वैसे ही अलग -थलग पड़ जायेंगी, सो इन को भी छुट्टी दें

AK-56,Rocket launcher के ज़माने में तीर तलवार से रक्षा न हो पाएगी, सो दुर्गा जी को भी विसर्जित कर दें

एक नयी देवी आविष्कृत की है मैंने, अभी-अभी,
"बुद्धि देवी",
इन्हें पूजें मत, वो इन्हें बिलकुल पसंद नहीं,
बस इन के साथ खेलें
और
खूब खेलें

फिर शायद ही ज़रुरत पड़े किसी और देवी की या देवता की................ जय बुद्धि मां, ओह! गलती हो गयी, इन माता जी को तो जयकारा भी पसंद नहीं, चलिए इन्हें खेल पसंद है, खेल ही शुरू करतें हैं, और जैसे ही हम ये खेल शुरू करेंगे तो जानेंगे कि यदि हम अपनी बेटियों को बेटों के बराबर मानें और हर संभव प्रयास करें कि वो आर्थिक तौर पर सक्षम हों, उनके लिये ज़यादा से ज़यादा रोज़गार के अवसर बनायें तो समाज संतुलित होता चला जाएगा और असल मानों में हमारी बेटियों का पूजन हो जाएगा और हमारी स्त्रियाँ देवी का दर्ज़ा पा जायेंगी, अन्यथा रहे मनाते ये बचकाने उत्सव, बनाते रहें उलटे सीधे कानून, कुछ बेहतर न होगा, उलझे हैं, उलझे रहेंगें.

सप्रेम नमन
तुषार कॉस्मिक

कॉपीराइट मैटर, चुराएं न समझें

KARVA CHAUTH, A RECONSIDERATION

Just an outcome of a male dominant society, in which if a wife dies, it is easier for a husband to manage the family, as compared to a wife whose husband dies. In fact, life of a widow becomes just a hell generally.

A lot many examples can be seen of male domination in our society.

There were Satis (women who were burnt alive with the dead bodies of their husbands) but not a single Sata is there in the whole history.

Men seek girls for marriage Who are shorter in height, younger in age, lesser in education & experience as compared to themselves, only to keep an upper hand on their wives.

After marriage name of the girl is changed but never of the boy. She will be called Mrs husband's name or Mrs husband's surname but He retains his original name and surname.

Even actresses prefer to call themselves actors but no actor calls himself an actress.

These days word GUY means GAL too.

Women remain thirsty hungry on karva chauth for the long life of their husbands but no such fast is kept by men for their wives.

So I discard this “Karva Chauth” which is an obvious symbol of male domination.

And I promote the concept of a society in which there is no male, no female Dominance. And there would be no need of fasting for the long lives of the husbands only. Instead we may keep a special day for wishing long lives to all, whom we like or love as our brothers, sisters, friends, mother, father, pets etc.

A new kind of “Karva Chauth.”

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TUSHAR COSMIC

ध्यान रखें, असली दुश्मन कौन है

सुना है भारत -पाक सीमा पर तनाव बढ़ गया है, दोनों तरफ से मूंछों पर ताव दिया जा रहा है, जवान मारे जा रहे हैं, कोई मित्र कह रहे हैं कि टमाटर के बढे भाव की शिकायत मत करो, मोदी को बस पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगाने दो.......टमाटर के भाव की शिकायत करने वाली कौमें क्या जवाब देंगी जंगी हमलों का..........


एक दम बकवास निरथर्क तर्क हैं, आपने डिफेन्स मिनिस्ट्री सुनी होंगी, कभी अटैक मिनिस्ट्री सुनी हैं...अब सब यदि डिफेन्स ही करते हैं तो अटैक क्या इनके भूत करते हैं?


असल बात यह है कि झगड़ा आम पब्लिक का तो होता ही नही कोई.......
आम पब्लिक तो बेचारी अपने दाल रोटी से ही नहीं निबट पाती, 

जालंधर में रिक्शा चलाने वाला बेचारा क्यों मारेगा, लाहौर में ठेले वाले को
कराची के दिहाड़ी मज़दूर का असल दुश्मन उसकी गरीबी है न कि पंजाब का खेत मजदूर

झगड़ा किसका है फिर?

झगड़ा तो इन बड़े लोगों का है भाई, बड़ी मूंछ वालों का, बड़े पेट वालों का, बड़ी तिजोरी वालों का...  

सिर्फ अपने वर्चस्व को बढ़ाने की हवस है......पब्लिक का ध्यान बटाने का टूल है....... जंग इनके लिए.........


सावधान!! 

पाकिस्तान का सियासती चाहता है कि वहां की जनता असल मुद्दे कभी न सुलटे, सुलट गए तो वो खुद भी सुलट जाएगा....और जंग ताकत देती है मौजूदा सियासती को, वो दुश्मन का डर दिखा पूरी ताकत हथिया लेता है....

सो यह जो पाकिस्तान को फ़ौजी जवाब दिया जा रहा है , वो तो ठीक है...लेकिन ज्यादा ज़रूरी यह है कि जंग को ही जवाब दे दिया जाए.....पाकिस्तान के आवाम को मेसेज दिया जाए कि जंग नही होनी चाहिए, वहां के नेता इमरान खान, कादरी और हस्सन नासिर, इन साहेबान को मेसेज दिया जाए कि वहां की सरकार पर दबाव बनाएं, पब्लिक ओपिनियन बनाएं, जंग नही होनी चाहिए.......पूरी दुनिया में ओपिनियन बनाई जाए कि जंग नही होनी चाहिए....किसी भी तरह का कत्ल-ए-आम नही होना चाहिए........लगातार कोशिश करें..

लेकिन करेगा कौन?.....सरकारों से उम्मीद कम है , सो हम, हम जो बेचारी जनता हैं, हमें प्रयास करना होगा......लेकिन यहाँ तो देखता हूँ, लगभग सब शिकार हैं नकली देशभक्ती के, शिकार हैं राजनेता के......तो मित्रवर जागें, और पहचाने असली दुश्मन कौन है, उससे लड़ें न कि बेवकूफ बनें

कितने जवान अमीरों के, बड़े राजनेताओं के बच्चे होते हैं, कितने प्रतिशत, जो फ़ौज में भर्ती होते हों, जंग में सरहद पर लड़ते हों...शहीद होते हैं?


नगण्य

यदि शहीद होना इतने ही गौरव की बात है तो क्यों नही आपको अम्बानी, अदानी, टाटा, बिरला आदि के बच्चे फ़ौजी बन सरहद पर जंग लड़ते, मरते दीखते?

यदि शहीद होना इतने ही गौरव की बात है तो क्यों नही आपको गांधी परिवार के बच्चे, भाजपा के बड़े नेताओं के बच्चे या किसी भी और दल के बड़े नेताओं के बच्चे फ़ौजी बन सरहद पर जंग लड़ते, मरते दीखते?

नहीं, इस तरह से शहीद होना कोई गौरव की बात नहीं है

असल में यदि सब लोग फ़ौज में भर्ती होने से ही इनकार कर दें तो सब सरहदें अपने खत्म हो जायेंगी

सारी दुनिया एक हो जायेगी

लेकिन चालाक लोग, ये अमीर, ये नेता कभी ऐसा होने नहीं देंगे, ये शहीद को glorify करते रहेंगे, उनकी लाशों को फूलों से ढांपते रहेंगे, उनकी मूर्तियाँ बनवाते रहेंगे और खुद को और अपने परिवार को और बच्चों को ac कमरों में सुरक्षित रखेंगे

समझ लें, असली दुश्मन कौन है, असली दुश्मन सरहद पार नहीं है, असली दुश्मन आपका अपना अमीर है, आपका अपना सियासतदान है

वो कभी आपको गरीबी से उठने ही नही देगा, वरना आप अपने बच्चे कैसे जाने देंगे फ़ौज में मरने को

वो कभी आपको असल मुद्दे समझ आने नही देगा, वरना आप अपने बच्चे कैसे जाने देंगे फ़ौज में मरने को

लेकिन यहाँ सब असल मुद्दे गौण हो जाते हैं,

बकवास मुद्दों से भरा पड़ा सारा अखबार, सारा संसार और यह भी साज़िश है , साज़िश है इन्ही लोगों की है

अभी अभी एक अंग्रेज़ी फिल्म देखी थी हंगर गेम्स, उसमें टीचर अपनी शिष्या को समझाता है कि हर दम ध्यान रखो, असली दुश्मन कौन है क्योंकि असली दुश्मन बहुत से नकली दुश्मन पेश करता है और खुद पीछे छुप जाता है इनके .

मेरा भी आपसे यही कहना है कि ध्यान रखें असली दुश्मन कौन है

इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें

गरीब ही रहें, तभी तो कमअक्ल रहेंगे
गरीब ही रहें, तभी तो गटर साफ़ करेंगे
गरीब ही रहें, तभी तो फ़ौजी बन मरेंगे
गरीब ही रहें, तभी तो जेहादी बनेंगे

इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें

और सब शामिल हैं
सियासत शामिल है
कारोबार शामिल है
तालीम शामिल है
मन्दिर शामिल है
मस्जिद शामिल है

इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें

कब कोई बच्चा गरीब पैदा होता है
कब कोई कुदरती फर्क होता है
इक सारी उम्र एश करे
दूजा घुटने रगड़ रगड़ मरे
इक सवार, दूजा सवारी
इक मजदूर, दूजा व्योपारी

इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें

बाक़ी आयें और दोस्तों को भी लायें IPP में, मैं सिर्फ बातें करने में यकीन नही करता, ज़मीनी काम करने में भी यकीन है.......समाज में बेहतरी कैसे हो, बदलाव होना चाहिए, लेकिन क्या बदलाव होना चाहिए....बहुत कुछ लिखा है IPP के एजेंडा में ....पढ़ें, समझें, समझायें, खुद जुडें, औरों को जोडें...स्वागत है

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STEALING IS AN OFFENCE

--- संस्कृति -----

????? यह सभ्यता है या जंगल राज ?????


जो भी कमज़ोर रहा, वो समाज का शिकार हो गया...स्त्री को कोठे पर बिठाल दिया गया......


मित्रवर अक्सर शुद्र को मंदिर न घुसने देने की बात कहते हैं...........स्त्री मंदिर में घुस कर भी पुरुष की गुलाम ही रही है......मंदिर में भी बिठाया गया तो देवदासी बना दिया गया


और वो चाहे किसी भी वर्ण की हो तुलसी बाबा ने उसे शुद्र के साथ ही खड़ा किया है, पसु के साथ ...ढोर गवार सूद्र पसु नारी......ताडन के अधिकारी


सूद्र के साथ अन्याय हुआ, कोई दो राय नहीं है.......लेकिन थोड़ा और देखें क्या सूद्र के साथ ही ऐसा हुआ, क्या किसी और के साथ नहीं हुआ....समाज कहने को सभ्य है, यहाँ जंगल राज रहा है...जो कमज़ोर पड़ गया , वो कुचला गया......



सूद्र का जीवन सूद्र कर दिया गया मानता हूँ, समाज की साज़िश, लेकिन जो भी व्यक्ति शिक्षा में छूट गया, पूंजी में पीछे छूट गया, उसने फिर समाज की गुलामी ही झेली है


यह नहीं कह रहा कि सूद्र के साथ शुद्र्ता नहीं की गयी....यह नहीं कह रहा कि शुद्र के साथ साज़िश नहीं की गयी....बस यही कहना चाहता हूँ कि साज़िश और गहरी है....साज़िश आर्थिक भी है........जो पीछे छूटा वो गुलाम, वो शूद्र

और जब हम यह समझते हैं तो हम इलाज भी गहरा सोच सकते हैं.......इलाज भी ऐसा कि हर गरीब बेहतर जीवन जी सके, शुद्र कहा जाने वाला भी और शुद्र न कहा जाने वाला भी


शुद्र तो गरीब रहा ही है ज्यादतर.......बिलकुल.....लेकिन जो भी गरीब हो गया, नॉन-शुद्र भी वो भी शुद्र ही हो गया...बस इतना ही कहना है........जो भी कमज़ोर हो गया, नॉन-शुद्र भी, वो भी शुद्र ही हो गया...बस इतना ही कहना है....


आज भी मान लीजिये किसी भी व्यक्ति के पास , चाहे वो शुद्र न भी हो.......मान लीजिये उसके पास शिक्षा नहीं है, उसके पास पूंजी नहीं है तो वो क्या करेगा सिवा समाज की गुलामी के......

समाज उसका जीवन शुद्र कर देगा चाहे वो किसी भी जात का हो

साज़िश सिर्फ एक नहीं है

साज़िश पूंजीवाद, अंध-पूंजीवाद का होना भी है

साज़िश शारीरक तौर पर कमज़ोर के प्रति अन्याय भी है, इसे भी समझना ज़रूरी है

स्त्री शिकार है, शुद्र शिकार है, गरीब शिकार है.........कई तरह की साज़िश हैं

इलाज दिया है मैंने सबका, आप बस IPP का एजेंडा पढ़ लीजिये, पहली पोस्ट है वहां पर.......


आज कल गीता, सीता, राधा घरों में झाड़ू पोचा, बर्तन मांजती हैं
और मोना, सोना, मोनिका, सोनिका टेलीमार्केटिंग करती हैं 

अक्सर
ताजमहल में कुछ दम नहीं है ....बस ऐसे ही मशहूर कर दिया गया है…है क्या सीधे सीधे संगमरमर के पत्थर लगे हैं …… कभी माउंट आबू में दिलवाड़ा के जैन मंदिर देखें हों … संगमरमर के हैं.... क्या कलाकारी है.……संगमरमर की ये बड़ी चट्टानों को तराश कर, बहुत महीन नक़्क़ाशी की है.... क्या कला है, वाह
लानत !! 
इस देश में द्रोण जैसे व्यक्ति के नाम पर द्रोण अवार्ड रखा गया है शायद गुरु दक्षिणा में बिन सिखाये ही शिष्यों के अंग भंग करना भारतीय सभ्यता के लिए आदर्श है













संस्कृति का अर्थ होता है ऐसी कृति जिसमें कोई समता हो....संतुलन हो.......बैलेंस हो


अंधे हो के अभिमान करते रहो..देते रहो खुद को तस्स्लियाँ कि हम महान, हमारे पूर्वज महान, हमारी संस्कृति महान...इस मुल्क में सिर्फ संस्कृत पैदा हुई है...संस्कृति नही

यहाँ जुए में बीवी और अपने भाई और अपना राज्य हार जाने वाले को धर्मराज कहा जाता है..यह है हमारी संस्कृति

यहाँ पति के मरने पर बीवी को जिन्दा जलाया जाता रहा है ...यह है हमारी संस्कृति

यहाँ विधवा विवाह पर एतराज़ होता रहा है , यह है हमारी संस्कृति

यहाँ समाज के बड़े हिस्से को शूद्र कर दिया गया, यह है हमारी संस्कृति

यहाँ विज्ञानं के नाम पर आर्यभट के जीरो आदि का गुणगान किया जाता है, यह है हमारी संस्कृति

यहाँ हर, लगभग हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे से पराजय मिलती रही , यह है हमारी संस्कृति

ठीक है, हमारा गायन, हमारी पाककला, हमारी नृत्यकला, हमारा वात्स्यान काम सूत्र, हमारी योग विद्या, हमारा आयुर्वेद, हमारे अध्यात्मिक गुरु...बहुत कुछ हमारे पास था/है जो काबिले तारीफ़ है ........बिलकुल...लेकिन बावजूद इस सबके हमारे पतीले में बड़े बड़े छेद हैं ...जो हमें संस्कृति तो कतई साबित नही करते...वजह संस्कृति का अर्थ होता है ऐसी कृति जिसमें कोई समता हो....संतुलन हो.......बैलेंस हो


और बैलेंस न था, न है ....संस्कृति एक कल्पना है अभी.......कभी लाई जा सकती है...लेकिन तभी जब आप समझें कि अभी आयी नहीं है, कभी आई नहीं है और फिर कोशिश करें सुधार लाने की, या फिर नवनिर्माण की





एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी भारत की महान सभ्यता संस्कृति में यकीन है.


एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी भारत के विश्व गुरु बनने की क्षमता में यकीन है.

एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी मोदी जी के "अच्छे दिन" वाले नारे में यकीन है.
There is no culture...it is only an un-civilization, which we call civilization... 

A junglee society, just living under the garb of culture, 

Vulture people living under the garb of culture...

Just scratch little a bit and all culture is gone and underneath there is a junglee person.

--- मुहर्रम --

मुसलमानों का मुहर्रम पर खुद को लहू लुहान करना बेतुका है, इंसानी अक्ल के खिलाफ है.

मुर्दों के साथ मरा नहीं जाता, उनकी जिंदगियों से, उनकी मौतों से सीखा जाता है.....

इतिहास से सीखा जाता है बस.......इतिहास को कन्धों पे सवार नहीं किया जाता वरना ज़िंदगी इतनी भारी हो जायेगी कि आगे नहीं बढ़ेगी, आगे बढ़ती लग सकती है लेकिन असल में बस रेंगेगी....

जिस तरह से आत्म-हत्या ज़ुर्म माना जाता है, वैसे ही आत्म -हिंसा भी ज़ुर्म माना जाना चाहिए...आप दुसरे को मारो या खुद को मारो है तो हिंसा ही

और सडकों पर रफ्तार को ताजिये वगैहरा निकाल रोकना भी ज़ुर्म होना चाहिए, आप अपनी सोच की रफ्तार को तो रोक ही रहे हैं, जो लोग आपके तथा-कथित दीन में शामिल नहीं उनकी ज़िंदगी की रफ्तार में भी खलल डाल रहे हैं

नहीं, यह सब कोई धर्म आदि नहीं है, धर्म/ दीन/ मज़हब के नाम चले आ रहे अंध-विश्वास हैं

और मुस्लिम नेता, सियासी हो या मजहबी, कभी नहीं चाहेगा कि उसके लोग इन बेवकूफियों से बाहर आयें

वो नहीं चाहेगा कि सोच में खुलापन आये, क्योंकि सोच यदि खुली तो .....तो.....तो.....तो....

फिर तो ये लोग उसकी पकड़ से बाहर हो जायेंगे
फिर तो वो किसी के काबू नहीं आयेंगे,
फिर तो उनको धोखा न दिया जा पायेगा,
फिर तो वो असल में रोबोट से इंसान बन जायेंगे ,
फिर तो मज़हब नाम के रिमोट से कण्ट्रोल न किया जा सकेगा

इसलिए धर्म के नाम पर साल दर साल इस तरह की बेवकूफियां चलती आयी हैं और शायद अभी आगे भी चलती रहेंगे

उम्मीद रखें, कहते हैं न उम्मीद पर ज़माना कायम है

चूतिया

अक्सर बहुत से मित्रवर "चूतिया, चूतिया" करते हैं, "फुद्दू फुद्दू" गाते हैं....गाली भई.....

लेकिन तनिक विचार करें असल में हम सब "चूतिया" हैं और "फुद्दू" है, सब योनि के रास्ते से ही इस पृथ्वी पर आये हैं, तो हुए न सब चूतिया, सब के सब फुद्दू.....

और हमारे यहाँ तो योनि को बहुत सम्मान दिया गया है, पूजा गया है.....जो आप शिवलिंग देखते हैं न, वो शिव लिंग तो मात्र पुरुष प्रधान नज़रिए का उत्पादन है, असल में तो वह पार्वती की योनि भी है, और पूजा मात्र शिवलिंग की नहीं है, "पार्वती योनि" की भी है

हमारे यहीं असम में कामाख्या माता का मंदिर है, जानते हैं किस का दर्शन कराया जाता है, माँ की योनि का, दिखा कर नहीं छूया कर...

और हमारे यान तो प्राणियों की अलग अलग प्रजातियों को योनियाँ माना गया है, चौरासी लाख योनियाँ, इनमें सबसे उत्तम मनुष्य योनि मानी गयी है.....योनि मित्रवर, योनि

और यहाँ मित्र चूतिया चूतिया करते रहते हैं

कुछ मान्यताओं में रद्दो-बदल

"कुछ मान्यताओं में रद्दो-बदल" 1) हमारे यहाँ आज तक पढ़ाया जाता है कि सिकंदर जीता और पोरस हारा...लेकिन लगता नहीं मुझे कि ऐसा हुआ होगा........मेरी बुद्धि मानती ही नहीं........लगता यही है कि वो यहाँ हार चुका था.......उसका प्यारा घोड़ा मारा जा चुका था....उसके सैनिक हताश निराश हो चुके थे......उसे मजबूरन वापिस होना पड़ा...वापिसी में फिर से उसे युद्ध झेलने पड़े.......जल्द ही मृत्यु हो गयी उसकी. हॉलीवुड की फिल्म तक में उसे पोरस से जीतता नहीं दिखाया गया...और हम हैं कि मानते नहीं 2) आज तक हमें यही समझाया गया है कि द्रोणाचार्य ने अंगूठा माँगा और एकलव्य ने दे दिया...गुरु दक्षिणा...................लेकिन लगता नहीं कि ऐसा हुआ होगा........द्रोण एकलव्य को शिक्षित करने से मना कर चुके थे..........एकलव्य ने अपने प्रयासों से, अपनी एक-निष्ठता से धनुर्विद्या हासिल की होगी........और जब द्रोण को पता लगा होगा....एकलव्य को पकड़ उसका अंगूठा काट लिया होगा...........ठीक वैसे ही जैसे शम्बूक को विद्या हासिल करते उसकी गर्दन काट दी गयी थी जो एकलव्य अपनी प्रयासों से धुरंधर धनुर्धारी बन सकता था...ऐसा कि अर्जुन को भी मात दे दे...वो इतना निर्बुधि हो कि अपना अंगूठा काट कर दे दे ...गुरु दक्षिणा के तौर पर.....उस व्यक्ति को जो उसका कभी गुरु था ही नहीं, जिसने उसका गुरु बनने से साफ़ इनकार कर दिया था......ऐसा लगता तो नहीं 3) आज तक हमें यही समझाया गया है कि सीता को जंगल भेज देने के बाद राम जब उसे वापिस बुलाते हैं और अपनी पवित्रता फिर से सबके सामने साबित करने को कहते हैं तो सीता पृथ्वी माता में समा जाती हैं...... बात तो साफ़ है लेकिन ठीक से इसे समझाया नहीं गया......असल बात यह है कि सीता को समझ आ चुका था कि वो राम और समाज को कभी अपनी शुचिता समझा नहीं पायेगी, वो जैसी मर्ज़ी परीक्षा दे ले......वो कभी सम्मानित नहीं हो पायेगी.....राम के साथ रहने, वैसे समाज के साथ रहने के बजाए उसे आत्म-हत्या करना उचित जान पड़ा.......किसी खाई, खंदक में कूद गयीं होंगीं......बस 4) !!!!पत्थर भी जीवित है !!!! इस अस्तित्व में सब कुछ चेतन है...... जर्रा जर्रा. कल तक यह साबित नही था कि पेड़ पौधे जीवित हैं, लेकिन आज मानना पड़ता है, साइंस ने साबित कर दिया है. आज आपको कोई कहे कि पत्थर भी जीवित है तो शायद आप अचम्भा करें, लेकिन सब्र रखें...साइंस साबित करने ही वाली है कि इस दुनिया में सिवा इंसान की खोटी अक्ल के कुछ भी मुर्दा नही, सब जिंदा है 5) !!चूतिया!! अक्सर बहुत से मित्रवर "चूतिया, चूतिया" करते हैं, "फुद्दू फुद्दू" गाते हैं....गाली भई..... लेकिन तनिक विचार करें असल में हम सब "चूतिया" हैं और "फुद्दू" है, सब योनि के रास्ते से ही इस पृथ्वी पर आये हैं, तो हुए न सब चूतिया, सब के सब फुद्दू..... और हमारे यहाँ तो योनि को बहुत सम्मान दिया गया है, पूजा गया है.....जो आप शिवलिंग देखते हैं न, वो शिव लिंग तो मात्र पुरुष प्रधान नज़रिए का उत्पादन है, असल में तो वह पार्वती की योनि भी है, और पूजा मात्र शिवलिंग की नहीं है, "पार्वती योनि" की भी है हमारे यहीं असम में कामाख्या माता का मंदिर है, जानते हैं किस का दर्शन कराया जाता है, माँ की योनि का, दिखा कर नहीं छूया कर... और हमारे यान तो प्राणियों की अलग अलग प्रजातियों को योनियाँ माना गया है, चौरासी लाख योनियाँ, इनमें सबसे उत्तम मनुष्य योनि मानी गयी है.....योनि मित्रवर, योनि और यहाँ मित्र चूतिया चूतिया करते रहते हैं 6) !!! पुरानी कहावत, नया अर्थ!!!

"आपकी कथनी और करनी में फर्क हैं, इसलिए बेदम है आपकी कथनी

और करनी" 


सुना होगा आपने इस तरह का जुमला अक्सर

अब बात यह है कि हम अक्सर सुनी सुनायी बातों पर बहुत जल्द यकीन

कर लेते हैं.


यह उसी तरह की एक बात है

क्या व्यक्ति जिस तरह का जीवन जीना चाहता है, जिस तरह के जीवन

मूल्य जीना चाहता है, वैसा जी पाता है, आसानी से जी पाता है, जी सकता

है?

क्या ज़रूरी है कि हर व्यक्ति सुकरात हो जाए?

और जो सुकरात नहीं होते या नहीं होना चाहते क्या उनको विचार का,

विमर्श का कोई हक़ नहीं?

तो हज़रात मेरा मानना यह है कि जिस तरह का सामाजिक ताना बाना

हमने बनाया है,


उसमें यह कतई ज़रूरी नहीं कि व्यक्ति की सोचनी और कथनी एक हो,


कोई ज़रूरी नहीं कि कथनी और करनी एक हो,

कोई ज़रूरी नहीं कि सोचनी और कथनी और करनी एक हो.

असल में तो समाज का भला करने के लिए भी व्यक्ति वही कामयाब हो

पायेगा,


जिसकी सोचनी कुछ और हो,


कथनी कुछ और हो

और करनी कुछ और



समाज से चार रत्ती ज़्यादा चालबाज़ होना होगा

आमीन!!!
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Politics

If you can not get elected in a country for Prime-Minister-ship without spending money, you are not living in a Democracy.



I have seen Bilawal Bhutto speaking, a rare breed, most idiotic.

A writer paints with the words
A painter writes with the brush

voilà

A politician spoils the writing with his tongue 
and the painting with his dung.



War is just politics, you know, nothing else.

During last elections democracy was not celebrated, it was hijacked by money lenders

BEWARE OF KHALISTAN OR ANY OTHER 'STAN

Khalistan, Hindustan, Pakistan all these concepts are Bullshits.
This earth belongs to each and every one, every piece of this earth.

And Secularism is the best concept under which all kinda people live in state.

All fools who support Khalistan, Hindustan or Pakistan have created just blood shed.

You kill Hindus in Punjab, Sikhs will be killed in Delhi.

You kill Muslims in Gujarat, Hindus will be killed in Bangla Desh.

You kill Hindus in Kashmir, Muslims will be killed in Gujarat.

So people of all faiths should understand concepts of their sacred land is foolish.

And it is impractical also.

For example, all the Sikhs living in Canada, America or any where else in the world except Punjab would never be ready to leave their places for Khalistan.

Similarly Muslims who do not even allow equal rights to people of other faiths in some of their countries, will not be ready to leave  their citizenships of America or England or Germany or Canada.

And the fools who consider that Punjab is sacred land of Sikhs alone and there should be only one Takht, "Akaal Takht", should understand that Punjab is not a land of Sikhs alone. Punjab is the motherland of many Hindus, Muslims, Jains and Christians etc. also. 

I would repeat myself "This earth belongs to each and every one, every piece of this earth."

How could anyone consider that Punjab is a land of Sikhs alone? 

So stupid. Just Hooliganism in the name of Sikhism.

You cannot make a world distributed religion-wise.

So unwise. Impractical.

Beware of the people who just throw slogans of Khalistan or Hindustan or Pakistan or any Stan.

These people will just make this earth red with blood shed.

Nothing positive will happen.

BE AWARE!

Wednesday, 1 July 2015

"सब धर्म ज़हर हैं"

एक मित्र ने लिखा था,"जो हिंदुत्व के मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहते हैं, वो मुझसे संपर्क करें" मेरा जवाब था," और जो इस तरह की मूर्खताओं का विरोध करना चाहते हैं मुझे से सम्पर्क करें...." एक और मित्र ने लिखा था," क्या आपको हिन्दू होने का गर्व हैं? ": मेरा जवाब था,"Idiotic question..only an idiot can be proud of being Hindu, Muslim or Christian....being human...being Label-less is enough." तथा कथित धर्म पीढी दर पीढ़ी चलती गुलामी है. हर पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी पर खुद को थोपती है. हर तथा कथित धर्म जबरन थोपा जाता है ... बच्चों पर .........सबसे बड़ा अधर्म. माँ बाप से ज्यादा नुक्सान बच्चों का कोई भी नहीं करता....सारी दुनिया में जितने फसाद हैं, जितने भेद भाव हैं, वो माँ बाप के अपने बच्चों के प्रति किये गए कुकर्मों का नतीज़ा हैं.....इसलिए आने वाले समाज में न तो बच्चे इस तरह से पैदा होने चाहिए, न ही इस तरह से पाले जाने चाहिए.......सारे समाज को दुबारा से व्यवस्थित करने की ज़रुरत है.... बच्चे के तर्क को विकसित ही नहीं होने दिया जाता, उसके तर्क को मजहबी, धार्मिक किस्से कहानियों, मान्यताओं के तले दबा दिया जाता है....फिर वो हर तरह से माँ बाप और समाज पर निर्भर होता है.....सो उसका तर्क जल्दी ही सरेंडर कर देता है और वो यदि हिन्दू समाज में पैदा हुआ तो हिन्दू बन जाता है, यदि मुस्लिम समाज में तो मुस्लिम. आप दो जुड़वाँ भाईओं को अलग अलग समाज में पाल लीजिये...सम्भावना यह है कि जो जिस समाज में पला होगा उसी धर्म का हो जाएगा............यह है ज़बरदस्ती, बच्चे के प्रति किया गया गुनाह, जो हर समाज करता है बजाये कि बच्चा अपनी बुद्धि से सवाल उठाये और जवाब भी ढूंढें, बच्चे से उसके सवाल छीन लिए जाते और फिर सीधे जवाब थोप दिए जाते हैं मिसाल के लिए जब बच्चे को कोई लेना देना नहीं कि परमात्मा कौन है, क्या है, उसे परमात्मा की प्रार्थना में खड़ा कर दिया जाता है...यह गुनाह माँ बाप, स्कूल समाज सब करते हैं. बच्चे के ज़ेहन में जब सवाल आता, जब वो खुद-ब-खुद सोचता कि यार, यह दुनिया का गड़बड़ झाला है क्या..किसने बनाया, क्यों बनाया......तब ये सब सवाल असली होते, तब उसका कोई मतलब होता....उसने अभी पूछा ही नहीं कि परमात्मा है नहीं है, है तो कैसा है, नहीं है तो क्यों नहीं है....लेकिन जवाब थमा दिया, प्रार्थना करो, एक परिकल्पना थमा दी, एक किताब थमा दी...यह है ज़हर जो लगभग सारी इंसानियत पीढी दर पीढी अपने बच्चों के ज़ेहन में उड़ेलती है....... जिज्ञासा, प्यास ही हर ली..........यह है गुनाह फिर उसके बाद के भी इंतेज़ाम हैं कि कहीं तर्क न उठाने लगे कोई. सब तथा कथित धर्म "ईश निंदा" में यकीन रखते हैं...यह कोई सिर्फ इस्लामी दुनिया तक ही सीमित नहीं है........ आप पीछे जाओ, गैलिलियो को चर्च में जबरन माफी मंगवा दी गयी....क्यों ...क्योंकि उसकी खोज बाइबिल में लिखे के खिलाफ जाती थी......"ईश निंदा" जॉन ऑफ़ आर्क को जिंदा जला दिया, उसके समय की राजनीति और ईसाइयत ने, सहारा लिया कोई ईसाई कानूनों का......"ईश निंदा" वो बात जुदा है कि बाद में उसी लडकी को सदियों बाद संत की उपाधि दे दी, पढ़ा तो मैंने यह भी है कि चर्च ने गैलिलियो से भी माफी माँगी है, सदियों बाद अभी यहाँ भारत में पुणे में नरेंदर दाभोलकर को क्यों क़त्ल किया गया, वो अंध-विश्वास के खिलाफ लड़ रहे थे, भाई लोगों को लगा "ईश निंदा" और आप सिक्खी पर, ग्रन्थ साब पर खुली चर्चा करने की बात तक कर देखो, चर्चा मतलब अगर कुछ ठीक न लगे तो उसे गलत कहने का हक़ .........करके देखो, पता लग जाएगा कितना उदार है सिक्ख धर्म? मारने को दौड़ेंगे...."ईश निंदा" सब धर्म, तथाकथित धर्म जाल हैं, जंजाल हैं.........इंसानियत के खिलाफ हैं. हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई होना अपने आप में कैंसर है, शरीर के कैंसर से ज्यादा खतरनाक......पूरी इंसानियत को खा चुका है....इतिहास लाल कर चुका है...वर्तमान की खाल उतार रहा है दीन/ मज़हब/ धरम सबकी छुट्टी होनी चाहिए...बहुत हो गया....इन्सान को अपना रास्ता खुद अख्तियार करना चाहिए न कि किसी की सदियों पुरानी हिदायतों/हुक्मनामों/ कमांडमेंट के हिसाब से ये धर्म ऐसी सामाजिक व्यवस्था हैं, सड़ी गली सामाजिक व्यवस्था जो ज्ञान, विज्ञान और बुद्धि से तालमेल नहीं रख पातीं, जो समय के साथ पीछे छूट जातीं हैं लेकिन फिर भी इंसानियत की छाती पर चढी रहतीं है इन्सनियात लम्बी अंधेरी गुफा से निकल रही है.........यह जो फेसबुक और whatsapp हैं न.....इसकी अहमियत भविष्य ही आंकेगा....यही है जो दुनिया बदलेगा अंत में तो जो भी तर्कयुक्त है, मानवता को उसे अपनाना ही होगा, अब मानवता के पास कोई चारा नहीं, या तो वैज्ञानिकता अपनायेगी, या मर जायेगी. ये धर्म और राजनीति तो आज तक तरक्की की राह में रोड़े ही अटकाती रहे हैं.....फिर भी दुनिया यहाँ तक आयी है......अब चूँकि संचार माध्यम बेहतर हैं तो सम्भावनाएं भी बेहतर हैं....आमीन! सादर नमन कॉपी राईट