आज तक हमें यही समझाया गया है कि सीता को जंगल भेज देने के बाद राम जब उसे वापिस बुलाते हैं और अपनी पवित्रता फिर से सबके सामने साबित करने को कहते हैं तो सीता पृथ्वी माता में समा जाती हैं......
बात तो साफ़ है लेकिन ठीक से इसे समझाया नहीं गया......असल बात यह है कि सीता को समझ आ चुका था कि वो राम और समाज को कभी अपनी शुचिता समझा नहीं पायेगी, वो जैसी मर्ज़ी परीक्षा दे ले......वो कभी सम्मानित नहीं हो पायेगी.....राम के साथ रहने, वैसे समाज के साथ रहने के बजाए उसे आत्म-हत्या करना उचित जान पड़ा.......किसी खाई, खंदक में कूद गयीं होंगीं......बस
अक्सर मित्र ज़िक्र करते हैं कि दुश्मनों ने हमारे ग्रन्थों के साथ छेड़ छाड़ कर दी.......
और बताता हूँ कि ग्रन्थों को तोड़ना क्या होता है...पढ़ लीजिये वाल्मीकि रामायण और फिर तुलसी कृत रामायण ..........तुलसी बाबा ने अपनी तरफ से सब कड़वा कड़वा थू करने का प्रयास किया...वो तो क्या पता उनको कि समय के साथ जिसे वो मीठा समझ रहे हैं उसमें से भी लोग बहुत कुछ कड़वा मानने लगेंगे
वाल्मीकि रामायण में न तो शबरी के जूठे बेर का किस्सा है...न ही अंगद को रावण के पास दूत बना कर भेजने का किस्सा.......और भी बहुत कुछ तुलसी बाबा ने जोड़ा और तोडा...लेकिन इस पर कभी हिन्दू समाज को एतराज़ नहीं हुआ...क्यों...क्योंकि राम के चरित्र को और उभारा गया था, पोलिश किया गया था...जहाँ जहाँ एतराज़ उठ रहे थे ..उन उन हिस्सों को काँटा छांटा गया था
जो लोग स्वयं को शुद्र समझते हैं उनमें से कुछ स्वयम को वाल्किमी समाज भी मानते हैं,...उनकी जानकारी के लिए बता देता हूँ श्री राम वाल्मीकि की सीता के बारे में गवाही देते हैं राम दरबार में की सीता पवित्र हैं..........लेकिन राम को वो गवाही कतई मंज़ूर नही होती.......तभी तो सीता को अंत में धरती माता की गोद में आत्महत्या करनी पड़ती है ....अब अगर कोई वाल्मीकि समाज/तथा कथित शूद्र राम को बहुत प्यारा समझना चाहता है तो उनकी मर्ज़ी
वाल्मीकि--- जैसे मसाला फिल्मों में आइटम सोंग डालना ज़रूरी समझा जाने लगा है , वैसे ही दृश्य चाहे कोई भी हो, जब जब स्त्री का ज़िक्र आता है, वाल्मीकि उसके भारी वक्ष स्थल, पतली कमर, भारी कूल्हों का ज़िक्र करते हैं
यदि श्रृंगार रस का स्थल हो तो शायद यह सब जम भी जाए, लेकिन वाल्मीकि ने तो कहीं भी स्त्री सौन्दर्य को नही बख्शा.....चाहे सीता हो, चाहे कोई भी वाल्मीकि इनका उल्लेख ऐसे ही करते है...भारी वक्ष स्थल वाली, पतली कमर वाली, भारी कूल्हों वाली.......
लगता है भारत के मन में सेक्स बहुत गहरे दफन था और वाल्मीकि भी इसी के शिकार थे
पूरी रामायण स्त्रियों की दुर्दशा दिखाती है...लगभग सब शिकार हैं पुरुष की, ताड़का, सीता, शूर्पनखा....उर्मिला.
शूर्पनखा ---उस के पति का वध रावण ने किया था..बिना किसी दोष के
ताड़का--- उस का वध राम से इसलिए करवाया गया चूँकि वो अपने निर्दोष पति के हत्यारे को परेशान करती थी
सीता ---रावण मारे जाने के बाद राम सीता को बहुत अपमान जनक शब्द कहते हैं. कहते हैं, कि मैं नही स्वीकार सकता, लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि जिसके साथ मर्ज़ी चली जाओ, रावण मैंने आप के लिए नही अपने नाम पर लगे बट्टे को धोने के लिए मारा है.......और जो अक्सर कहा जाता है न कि राजधर्म निभाने को पत्नी को जंगल में छोड़ दिया.... यदि ऐसा था तो पिता का बेतुका हुक्म मान जंगल नही जाते, प्रजा की सेवा करते ....पत्नी ठुकरा दी, पिता को ठुकराते.......राज धर्म ही निभाना था तो..प्रजा ही ज्यादा प्यारी थी तो
उर्मिला----लक्ष्मण को भ्राता धर्म निभाना था, राम के साथ चले गए...पीछे पति धर्म कौन निभाएगा , यह सोचा ही नहीं.........
कौशल्या, कैकयी, मन्दोदरी, तारा आदि----- दशरथ, रावण, वाली, सुग्रीव आदि एक से ज्यादा पत्नी रख सकता था, इनके अंत:पुर और कुछ नहीं हरम थे, क्या इन स्त्रिओं को हक़ था कि वो भी एक से ज्यादा पुरुषों के सम्पर्क में आ सके? नहीं....समाज निहायत पुरुष प्रधान था
इस मुल्क को रावण से नही दशहरे और राम लीला जैसे बचकाने कामों से छुटकारा पाने की ज़रुरत है...
अब यह मत बक बकाना कि दशहरा बुराई के अंत का प्रतीक है, अगर ऐसा होता तो तुम्हें हर साल रावण मारना और जलाना नहीं पड़ता....यह मूर्खों वाले तर्क अपने पास रखो
असल में तो तुम्हारी बचकाना बुद्धि ही ज़िम्मेदार है , इस रावण के फिर फिर उठ खड़े होने के लिए
वही बुद्धि जो धर्म के नाम पे होने वाली उल-जुलूल हरकतों में लिप्त है, इस बुद्धि से करोगे साइंस में तरक्की?
इस बुद्धि से सिर्फ तुम रावण के पुतले जला कर प्रदूषण करोगे
इस बुद्धि से तुम सिर्फ रावण जला गन्दगी करोगे
इस बुद्धि से तुम्हारा रावण कभी नही मरेगा, देख लेना तुम्हें फिर से मारना और जलाना पड़ेगा अगले साल, फिर अगले साल , साल दर साल
छोड़ो ये किस्से, कहानियां......तुम्हें कुदरत ने सब दिया है, तुम कोई कम हो किसी राम से, अगर कुदरत को राम पर ही रुकना होता तो तुमको पैदा ही नही करती, कुदरत को तुम पर यकीन है, तुम्हें क्यों खुद पर यकीन नहीं, तुमको क्यों दूर दराज़ के तथा कथित भगवानों पे यकीन है
खुद पे यकीन करो.....अगले साल रामलीला नहीं...अपनी जीत, अपनी हार का जश्न मनायेंगे....अगले साल अपने जीवन के किस्से कहानियां सुनायेंगे.....अगले साल लीला यदि होगी तो मेरी और तेरी..जय हो.
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RAMAYAN- A CRITICAL EYEVIEW