Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Friday, 14 June 2024
बोल कि लब आज़ाद हैं तिरे.. क्या सच में?
Thursday, 13 June 2024
अक्ख लड़ी बदो-बदी-क्या बकवास है यह?
चाहत फ़तेह अली खान--- बड़ो बड़ी फेम. नकली लोग, नकली गायन. फेमस होने के लिए कुछ भी कचरा फेंके जा रहे हैं लोग सोशल मीडिया पर. नूरजहां के क्लासिक गाने की ऐसे-तैसी फेर दी और इस का गायन.. इस का गायन असल में गायन तो है भी नहीं, गायन की इंसल्ट है, गायन की भद्द है, अरे फेमस होना है तो राहत फ़तेह अली खान बनो, नुसरत साहेब के चेले बनो सीखो पहले कुछ. ये क्या था, जो तुम ने फेंका यूट्यूब पर? कूड़ा!
"सेल्फी मैंने ले ली आज" याद भी नहीं होगी आप को तो शायद. ढिंचक पूजा. आई और चली गयी.
"सो ब्यूटीफुल, सो एलिगेंट, लुकिंग लाइक ऎ वाओ" वाली बहन जी भी भूल गए होवोगे आप शायद.
"काचा बादाम, भैया काचा बादाम" वाले भाई साहेब वो भी कितनों को याद होंगे अब?
ऐसे कितने ही लोग आये और गायब हो गए, कितने ही आएंगे ...बुलबुले हैं . .. आएंगे और जाएंगे. १०-१५ दिन की मश्हूरी.
वैसे मशहूर होने के लिए लोग नेताओं को थप्पड़ मार रहे हैं. खैर, वो तो पड़ने भी चाहिए इन को.
लेकिन कुछ भी अंत-शंट कर रहे हैं लोग फेमस होने को. . ज़्यादा दिन चलता नहीं यह सब .. सोशल मीडिया ने पावर दी है आम आदमी को भी .. भाई उस पावर को सही प्रयोग करो, दुनिया को कुछ अच्छा दो तभी तो दुनिया वापिस तुम्हें कुछ देगी. आई बात समझ में.
Tuesday, 11 June 2024
क्या वाकई शेरनी हैं सोनिया गांधी? जानिए सच्चाई
ट्रेंडिंग वीडियो है यूट्यूब पर, किसी ने सोनिआ गांधी को कहा कि आप ने शेर बच्चा पैदा किया है. और वो हँसते हुए कहती हैं क्यों की ,मैं शेरनी हूँ. वह मैडम वाह. क्या हैं आप दोनों? सिवा गांधी परिवार के ठप्पे के आप दोनों क्या हैं? आप कोई समाज वैज्ञानिक, कोई सोशल साइंटिस्ट, कोई राजनीती वैज्ञानिक, साइंटिस्ट हैं? समाज सुधारक हैं आप कोई? क्या योगदान है आप का समाज को? आप कोई महान कलाकार हैं, साहित्यकार हैं, गीतकार हैं, कवी हैं, लेखक हैं, गायक हैं., क्या हैं आप लोग? समाज को क्या दिया है आप ने? विरासत में मिली है राजनितो आप लोगों को. बस. वरना, अपने दम पर तो शायद म्युनिसिपेलिटी का चुनाव भी जीतन भारी हो जाये आप लोगों के लिए. राजनितिक मुद्दों पर एक आम ग्रेजुएट का भी बहस में मुकाबला करना मुश्किल हो जाये शायद आप के लिए. और आप हैं शेरनी और आप के सुपुत्र हैं शेर. वाह. वाह।
डिक्टेटरों चुने हैं कल पांच साल के लिए. कैसे?
मोदी जी ने शपथ ले ली फिर से कल प्रधान मंत्री पद की. डिक्टेटरों चुने हैं कल पांच साल के लिए. कैसे? क्या भारत में सच में डेमोक्रेसी है? क्या भारत सच में दुनिया की बड़ी, सब से बड़ी डेमोक्रेसी है? नहीं. नहीं है. यह जनतंत्र नहीं, धनतंत्र है और डेमोक्रेसी के नाम पर हम पर लाद दिए जाते हैं डिक्टेटर जो एक बार सीट पर बैठने के बाद हमारी कतई नहीं सुनते . म्युनिसिपेलिटी का कौंसिल्लोर तक तो अपनी शकल नहीं दिखाता जीतने के बाद और MLA/MP का तो कहना ही क्या? चुने गए नेता लोग पांच साल तक क्या फैसले लेते हैं, इन फैसलों पर डायरेक्टली जनता का कण्ट्रोल न के बराबर ही रहता है. जनता की राय भी लेना भी सही नहीं समझते ये लोग.और न ही किये गए वायदे न निभाने पर जनता अपना वोट इन से वापिस मांग सकती है. इसलिए कोई भी आये, आप जनता हैं और जनता ही रहेंगे. गरीब जनता, तेरा कुछ नहीं बनता.
Friday, 24 May 2024
जीवन में अच्छे खिलाड़ी के लक्षण
अच्छा मुक्केबाज वह नहीं है जो केवल अच्छे मुक्के मारना जानता है, बल्कि वह है जो प्रतिद्वंद्वी के भारी शक्तिशाली मुक्कों को भी सहन कर सकता है।
एक अच्छा खिलाड़ी वह नहीं है जो खेल जीतना जानता है बल्कि वह है जो हार को सहन कर सके, आत्मसात कर सके।
A good boxer is not one who only knows how to throw good punches, but one who can also withstand heavy powerful punches from the opponent.
A good player is not one who knows how to win the game but one who can tolerate and assimilate defeat.
कोई आत्मा नहीं है.
कोई आत्मा नहीं है. अस्तित्व हमें केवल एक मौका देता है और उसके बाद वह हमसे छुटकारा पा लेता है। वह हमें बार-बार क्यों सहती रहे। यह नए लोगों को मौका क्यों नहीं देता? यह नए लोगों को मौका देता है। इसीलिए तो हर पल नये बच्चे जन्म लेते हैं। इसीलिए, अस्तित्व नये बच्चों के साथ खेलता है। और तो और अस्तित्व तो हमारा है, जीवित रहते हुए भी, न जीते हुए भी हम अलग कैसे हो सकते हैं? नहीं, हम अलग नहीं हैं. हम ही अस्तित्व हैं, सदैव। कुछ भी अलग नहीं, कुछ भी आत्मा नहीं।
आत्मा और परमात्मा दोनों बकवास कांसेप्ट हैं. एनर्जी कभी नहीं मरती. ठीक, बदलती है. यही विज्ञान भी मानता है. एनर्जी सिर्फ रूप बदलती है. और पदार्थ भी एनर्जी का ही रूप है. घना रूप. यह सब विज्ञान मानता है. हम अभी पदार्थ हैं. मर जायेंगे. घनत्व खत्म. एनर्जी जो अभी इस तन और मन की वजह से अस्तित्व से अलग आभासित है, वो आभास खत्म. द्वैत अद्वैत हो जायेगा. अलग दिखने वाली, महसूस होने वाली एनर्जी/घनत्व कॉस्मिक एनर्जी में विलीन हो जाएगी. न तो आत्मा आज है, न कल थी और न ही कल होगी. इसलिए आत्मा कोई वस्त्र नहीं बदलती है. जो लहर एक बार समंदर से उठी, वो विलीन हो गयी, बात खत्म. वो कल भी समंदर थी, आज भी समंदर है, कल फिर समंदर हो जाएगी. लहर को वहम है कि वो अलग है और वो दुबारा उठेगी, दुबारा उठेगी लेकिन वो वही लहर कतई न होगी. वो कोई और लहर होगी, और असल में तो वो भी समंदर ही है. असल में तो हम आज भी समंदर हैं, कल भी समंदर ही होंगे. असल में तो लहर लहर का अलग होना ही भरम है. सब लहर समंदर हैं.
आत्मा बकवास इस लिए चूँकि व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उस का अपना कोई अलग से अस्तित्व है, आत्म, आत्मिक. लेकिन है नहीं ऐसा. अलग से कुछ नहीं है, समग्र ही है जो है. अलग-विलग भरम है. परमात्मा इस लिए बकवास कांसेप्ट है चूँकि जिस तरह से लोग समझते हैं कि वो कोई हमारी सुन रहा है, प्रतिफल दे रहे है, स्वर्ग-नर्क बनाये बैठा है, जैसे मंदर गुरद्वार समझा रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. जो है समग्र है, उसे परमात्मा कहना है तो कह लीजिये. बस वही है. तत सत. That is it.
लेकिन यह सब जो वो धर्मों को पसंद आएगा नहीं चूँकि उन की तो दूकान ही आत्मा-परमात्मा चलती है. आत्मा है, वो एक शरीर से दुसरे शरीर में यात्रा करती है. उस की सद्गति होती है, उस की दुर्गति होती है, अच्छे कर्म, बुरे कर्म, सब का फल-प्रतिफल मिलता है. स्वर्ग-नर्क, जन्नत-जहन्नुम, क्या -क्या. पूरा कर्म- कांड। जन्म से लेकर मौत तक. जब नहीं- परमात्मा नहीं जो फिर कौन पूछेगा, मंदर-मसीत को. कौन मत्थे रगड़ेगा?
सो धर्म तुम्हें समझाये जा रहे हैं, आत्मा है, परमात्मा है. परमात्मा तुम्हारे कर्मों का हिसाब रखता है. गर्र... जैसे उसे कोई और काम ही नहीं है. इतना बड़ा ब्रह्माण्ड और उसे पड़ी है कि राम लाल क्या कर रहा है. क्या मज़ाक है.
मंदिर, मस्जिद आदि से प्यार होता अगर ......................
मंदिर, मस्जिद आदि से प्यार होता अगर वे किसी विशेष धर्म के नहीं होते। वे कितने सुंदर हैं!
धर्म कितने तर्कहीन, अवैज्ञानिक, अंधविश्वासी हैं
क्या सचमुच नेता अपनी जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं?
ईरानी लोगों ने, उनमें से कुछ ने, अपने राष्ट्रपति की मृत्यु का जश्न मनाया।सावधान! क्या सचमुच नेता अपनी जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं? मुझे शक है। उत्तर कोरिया के किम जोंग की मौत पर भी ऐसा ही हो सकता है। वह भी मुझे अपनी जनता, अपने देश का सच्चा प्रतिनिधि नहीं लगता। चीन में भी सिर्फ फर्जी चुनाव होते हैं
Tuesday, 7 May 2024
Your phone is a Bazaar for many.
Your phone is not your phone only.
It is a Bazaar for many.
They go on calling and messaging you. You rebuke them, you block them.
No matter.
They shall come to you via another number.
It is a Bazaar for them.
Hell with your privacy.
Hell with your life, in fact.
Sunday, 24 March 2024
Why anonymous complaints are not taken by the Government?
You cannot lodge a complaint to any of the Government Department anonymously these days.
"पश्चिम बंगाल"-???
क्या आप जानते हैं, भारत के पूर्व में होने के बावजूद इसे "पश्चिमी" बंगाल क्यों कहा जाता है?
स्पैम कॉल और संदेश
स्पैम कॉल और संदेश एक वास्तविक समस्या हैं। और जीनियस सरकार ने एक विनियमन तैयार किया है कि उपभोक्ता ही दूरसंचार विभाग को सूचित करेगा कि वे परेशान नहीं होना चाहते हैं। कितना बेवकूफ़! अगर मैंने किसी को निमंत्रित नहीं किया है तो इसका सीधा सा मतलब है कि मैंने उसे निमंत्रित नहीं किया है. लेकिन यहां मैं बिन बुलाए कॉल करने वालों/संदेशवाहकों को सूचित करना चाहता हूं कि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया है। उल्टी गंगा.
आम आदमी पार्टी दिल्ली की प्रत्येक महिला को 1000 रुपये देगी।
क्यों?
अमेज़न ने बेची गई वस्तुओं को "वापसी योग्य" से "बदली जाने योग्य" में बदल दिया है---BEWARE
इंद्रलोक में साप्ताहिक बाज़ार
दिल्ली के इंद्रलोक में हर गुरुवार को एक साप्ताहिक बाज़ार लगता है और न केवल दिल्ली बल्कि आसपास के शहरों से भी लोग shopping के लिए आते हैं। इस बाज़ार में खतरनाक तरीके से भीड़ होती है। अब इस बाजार को किसी नजदीकी सुरक्षित स्थान पर स्थापित करने के बजाय इस बाजार पर प्रतिबंध लगाने के लिए पुलिस और सशस्त्र बलों को तैनात किया गया है। बेवकूफ़! कोई सरकार कितनी मूर्ख हो सकती है, इसका जीवंत उदाहरण है।
Saturday, 27 January 2024
मैं बीमार होना नहीं चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,
मैं बीमार होना नहीं चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,मुझे दवा, टीकों और डॉक्टरों से बहुत डर लगता है,
मुझे लाखों रुपये के खर्च से डर लगता है,
मुझे अस्पतालों से, दवाखानों से बहुत डर लगता है
मुझे घिसटती-सिसकती ज़िंदगी से डर लगता है
मैं बीमार नहीं होना चाहता.
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
मैंने देखे हैं हैरान-परेशान रिश्तेदार,
बेचारे अपना भार नहीं ढो पा रहे होते,
ऊपर से घर में कोई बीमार इंसान.
पूरा घर बीमार-बीमार सा हो जाता है.
हवा बीमार, पानी बीमार, सब बीमार
मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
मैनें पढ़े हैं चेहरे अनमने से सेवा करते हुए,
बीमार की मौत का इंतज़ार करते हुए,
ज़बरन दुनियादारी निभाते हुए,
बीमार के साथ बीमारी झेलते हुए
मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
ज़िंदगी जितनी भी हो, बस ठीक-ठाक हो,
चलती-फिरती हो, मुस्कराती, हंसती हो,
ज़िंदगी ज़िंदा हो,
मैं मरी-मरी सी ज़िंदगी नहीं चाहता,
मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
तेरा तुझ को अर्पण, क्या लागे मेरा.
Tushar Cosmic
Thursday, 25 January 2024
धर्म - मेरी आपत्तियां
1. हम इतिहास का केवल कुछ अंश ही जानते हैं। बुद्ध और महावीर से परे मानव इतिहास स्पष्ट नहीं है। बुद्ध और महावीर से पहले, इतिहास पौराणिक कथाओं के साथ मिश्रित है।
श्री राम और उन का मंदिर - मेरी कुछ आपत्तियां
स्त्रियों को चाहिए कि वो राम को नकार दें। क्या वो राम जैसा पति चाहेगी, जिसके साथ वो तो जंगल-जंगल भटकें लेकिन पति उन्हें जंगल में छोड़ दे? वो भी तब, जब वो प्रेग्नेंट हो. हालाँकि मैं "जय श्री राम" के नारे का विरोध करता हूँ क्योंकि यह राम की विजय की घोषणा करता है और राम अब नहीं रहे, इसलिए ऐसे नारे लगाने का कोई मतलब नहीं है लेकिन मैं एक अन्य आधार पर "जय सिया राम" के नारे का विरोध करता हूँ। सीता को राम के साथ जोड़ना तथ्यात्मक नहीं है। राम ने स्वयं सीता को जंगल में छोड़ दिया था। उसके बाद वह जंगल में रहती है, जंगल में ही उन की मृत्यु हो जाती है। और यहां हिंदू सीता को राम से जोड़ रहे हैं?
राम मंदिर
मैं राम का घोर विरोधी हूँ, इस के बावजूद मैं इस पक्ष में हूँ कि राम मंदिर बनाया जाना चाहिए था और मुसलमानों को बहुत पहले माफी के साथ यह जगह तथाकथित हिन्दुओं को दे देनी चाहिए थी. न सिर्फ यह बल्कि "कृष्ण जन्म भूमि" और "काशी ज्ञानवापी" वाली जगह भी दे देनी चाहिए थी.
लेकिन मुसलमानों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया. राम मंदिर वो हार चुके हैं. बाकी भी हार जाएंगे. चूँकि यह जग-विदित है कि मुसलमान मूर्ती-भंजक है. ताजा बड़ा उदाहरण तालिबान द्वारा बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ना था. ये मूर्तियां असल में पहाड़ों में ही खुदी हुई थीं. डायनामाइट लगा कर इन को उड़ाया गया. वैसे अक्सर खबर आती रहती है कि मुस्लिम ने दूसरे धर्मों के धार्मिक स्थल ढेर कर दिए.
मुझे कोई संदेह नहीं कि भारत में भी मुसलमानों ने मंदिर नहीं तोड़ें होंगे. कुतब मीनार पे जो मस्जिद बनी है, "क़ुव्वते-इस्लाम" वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनी है. ऐसे वहां Introductory पत्थर पर लिखा था. "क़ुव्वते-इस्लाम" यानि इस्लाम की कुव्वत. ताकत. यह थी इस्लाम की ताकत. दूसरों की इबादत-गाहों को तोडना. ऐसा ही कुछ अजमेर की "अढ़ाई दिन का झोपड़ा" नामक आधी-अधूरी मस्जिद के बाहर लगे पत्थर पर भी लिखा था कि यह मस्ज़िद मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी, वहाँ तो प्राँगण में मंदिर के भग्न अवशेष भी रखे हुए थे. बुत-परस्ती के ख़िलाफ़ है मुसलमान.
खैर, मेरा मानना है कि समाज ऐसा होना चाहिए कि जहाँ सब को अपने हिसाब से सोचने, बोलने और मानने की आज़ादी होनी चाहिए। और ज़ोर ज़बरदस्ती कतई नहीं होनी चाहिए.
मुस्लिम की ज़बरदस्ती का ही जवाब था कि बाबरी मस्जिद/ढाँचा गिराया गया और उस पर फिर से मंदिर बनाया गया. ज़बरदस्ती का जवाब ज़बरदस्ती ही हो सकता है. ताकत का जवाब ताकत ही हो सकता है.
अब रही बात मेरे जैसे लोगों की, तो हम इस्लाम का, मुस्लिम ज़बरदस्ती का विरोध करते हैं और राम का भी विरोध करते हैं. तार्किक आधार पर. बस. कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है. जिस को राम को मानना है, मानता रहे. हम को विरोध करना है तो हम करते रहेंगे. हम सोचने-विचारने और बोलने की आज़ादी का समर्थन करते हैं.
मेरी नज़र में राम पूजनीय नहीं हैं, लेकिन बहुत लोगों के लिए हैं. मेरी नज़र में ऐसे लोग गलत हैं, लेकिन फिर उन को गलत होने की भी आज़ादी होनी चाहिए। यह बात कंट्राडिक्ट्री लग सकती है लेकिन सीधी सपाट है. कौन जाने मैं ही गलत साबित हो जाऊं कभी. आई समझ में? इस लिए सब को अपने ढंग से भगवान मानने न मानने की आज़ादी. यही सच्चा सेकुलरिज्म है. और मेरा इसी सेकुलरिज्म में विश्वास है. इसीलिए मैंने लिखा कि राम मंदिर बनना चाहिए था. बावज़ूद इस के कि मैं सब धर्मों का विरोध करता हूँ और इन धर्मों के धर्म स्थलों का भी. और ultimately सब धर्मों के स्थलों को विदा होना चाहिए ही. लेकिन मैं नहीं चाहता कि इन धर्म स्थलों की विदाई ऐसे होनी चाहिए जैसे इस्लाम ने प्रयास किये दूसरे धर्मों के स्थलों पर प्रहार कर कर के. अपना रास्ता तर्क का है.
मैं कतई नहीं चाहूँगा कि भारत हिन्दू राष्ट्र बने. असल में कोई भी मुल्क, कोई भी समाज किसी भी एक तरह की मान्यता में जकड़ा होना ही नहीं चाहिए. यह जकड़न समाज की सोच की उड़ान को थाम लेती है, पकड़ लेती है. इस जकड़न-पकड़न से आज़ादी के लिए ज़रूरी है कि न कोई समाज, न मुल्क हिन्दू होना चाहिए और न ही इस्लामी और न ही ईसाई। और न ही पाकिस्तानी और न ही खालिस्तान. वैसे पाकिस्तानी आज रो रहे हैं कि मज़हब के नाम पर उन का मुल्क बनाया ही क्यों गया.
आशा है मैं अपनी बात समझाने में सफल हुआ होऊंगा
Tushar Cosmic
Friday, 5 January 2024
Sarkar Chor hai, सरकार षड्यंत्र-कारी है, सरकार दुश्मन है
सरकार ने न सिर्फ जान-बूझ कर जनता को कानून नहीं पढ़ाया बल्कि कानून की भाषा भी जटिल रखी:-
इस के अलावा आप के कानूनों के मतलब तो सुप्रीम कोर्ट तक तय नहीं हो पाते। आज एक कोर्ट कुछ मतलब निकालता है, कल कोई और कोर्ट कुछ और मतलब निकालता है। एक मुद्दे पर एक कोर्ट कुछ जजमेंट देता है, कल उसी मुद्दे पर कोई और कोर्ट कोई और जजमेंट दे देता है। और आम आदमी से यह तवक्को रखी जाती है कि उसे हर कानून पता होगा। चाहे खुद कानून के विद्वानों को पता न हो, कौन सा कानून क्या मतलब रखता है।
यकीन मानिये, मैं अंग्रेज़ी का कोई विद्वान् तो नहीं लेकिन फिर भी ठीक-ठाक अंग्रेजी लिख, पढ़ लेता हूँ, बोल भी लेता हूँ लेकिन मज़ाल कि मुझे कोई Bare Act आसानी से समझ आ जाए. डिक्शनरी खोल-खोल देख लुं, तब भी ठीक-ठीक पल्ले न पड़े, ऐसी तो भाषा है. आम-जन जिसे हिंदी या फिर अपनी क्षेत्रीय भाषा का ही ज्ञान उस बेचारे को क्या समझ आना है?
क्यों नहीं सरकार ने कानूनी भाषा को सुगम बनाया? क्यों नहीं सरकार ने, निज़ाम ने कानून की बेसिक जानकारी को स्कूलों में ही जरूरी विषय की तरह पढ़ाया?
कारण यह है कि यदि आम-जन कानून को समझेगा तो पुलिस, कोर्ट और बाकी की नौकर-शाही उस पर अपना डण्डा कैसे रखेगी?
कानून न समझने का नतीजा है कि आम-जन इन्साफ से कोसों दूर है:-
इसी का नतीजा है कि जरा सड़क पर, मोहल्ले में झगड़ा हो जाए, और पुलिस बुला ली जाए तो सही व्यक्ति के भी हाथ-पांव फूल जाते हैं। क्यों? क्यों कि उसकी कानून की जानकारी लगभग शून्य होती है. वो अब झगड़े से ज़्यादा पुलिस से डर रहा होता है. वो जानता है, पुलिस कैसी है.
आप लाख सही होते रहो, पुलिस आप को ही धमका के पैसे ऐंठ ही लेगी.
और थाने में तो पुलिस का एकछत्र राज ही चल रहा है. आप बतायेंगे कुछ, पुलिस सुनेगी कुछ और लिखेगी कुछ. मैंने तो यहां तक देखा है कि थाने में मेन गेट ही बंद कर देते हैं, यार-रिश्तेदार को घुसने तक नहीं देते।
आप थाने में अपने साथ वकील ले जाओ, पुलिस वाले खफा हो जाएंगे. क्यों? चूँकि अब वो आप को आसानी से बरगला न पाएंगे.
कई दफ्तरों में-थाने में लिख कर लगा दिया गया कि अंदर मोबाइल फोन लाना मना है. क्यों? ताकि आप रिकॉर्डिंग न कर लें, जो इन अफसरों की बदतमीजियों की पोल खोल दे.
थाना-कोर्ट, ये सब कोई इंसाफ के लिए थोड़ा न बने हैं. इंसाफ लेने के लिए तो आप को सात जन्म लेने पड़ेंगें. कोई झगड़ा-झंझट हो जाये, पुलिस का पहला काम होता है दोनों तरफ से पैसे ऐंठ कर "मेडिएशन" करवाना. कोर्ट भी मेडिएशन को बढ़ावा देता है. ख्वाहमख़ाह मेडिएशन में केस भेज देते हैं. ज़बरदस्ती. मेरे साथ हुआ ऐसा एक बार, बिना मेरी मर्ज़ी पूछे आनन-फानन मेरा केस मेडिएशन में भेज दिया गया.
ऐसा लगता है पूरा निज़ाम इंसाफ का मरकज़ नहीं, "मेडिएशन सेंटर" है.
इसीलिये लिखता हूँ, तुम्हारी sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai.
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सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं. काले अंग्रेज़.
सरकारी नौकरियाँ जितनी घटाई जा सकें, घटानी चाहियें.
लेकिन अभी तो सरकार sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai.