Monday, 6 July 2015

सेकुलरिज्म और कॉमन सिविल कोड

जब मैं यह कहता हूँ कि खालिस्तान, हिंदुस्तान, पाकिस्तान जैसी धारणाएं खतरनाक हैं, बकवास हैं और दुनिया को धर्मों के आधार पर बांटना गलत है और दुनिया को सेकुलरिज्म के तले ही जीना चाहिए जिसमें सब तरह की मान्यताओं के हिसाब से लोग जी सकें तो मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि दुनिया को एक ही तरह के कॉमन सिविल कोड के नीचे जीना चाहिए.

शरियत हो या कोई भी अन्य तरह के धार्मिक आधार वाले कानून किसी के लिए नहीं दिए जा सकते.

आज मुस्लिम इस बात पर तो राज़ी हैं कि उन्हें भारत में रहना है, भारत उनका मुल्क है....सेकुलरिज्म सही है तो क्या वो कॉमन सिविल कोड पर राज़ी हैं?..मुझे तो नहीं लगता.

लेकिन तर्क समझना चाहिए....जब हम मज़हबी मुल्क सही नहीं मानते तो फिर सब तरह के धर्मों के लोग रहेंगे सब जगह तो फिर साझे कानून बनाने ही होंगे और मानने ही होंगे...सिंपल 

धार्मिक मर्यादा अक्सर कॉमन सिविल कोड के बीच अडंगा लगाती हैं, लेकिन हल निकाले जा सकते हैं...जैसे सिक्ख हथियार रखते हैं अपने धर्म के हिसाब से.....तो उन्हें कृपाण रखने की अनुमति दी गई लेकिन छोटी ...सिंबॉलिक

हल निकाले जा सकते हैं, लेकिन अंततः सेकुलरिज्म को मानने वाले लोगों को  कॉमन सिविल कोड मानना ही होगा

सो मेरा  मानना है  कि  मुस्लिम शरिया चाहे कुछ  भी कहती हो लेकिन मुस्लिम  को कॉमन सिविल कोड में  आना ही चाहिए. 

दुनिया  हर पल आगे बढ़ती है..नई स्थितियां बनती हैं ...नए कायदे कानून बनाने पड़ते हैं.....जैसे पहले स्कूटर था ही नहीं तो हेलमेट के कानून भी नहीं थे....इसी तरह पहले  आबादी की समस्या नहीं थी तो आबादी के कानून नहीं थे लेकिन आज है तो कानून बनाने पड़ सकते हैं आपका धर्म या उसका कायदा कुछ भी कहता हो.

अभी दिल्ली में दस साल पुरानी डीज़ल और पन्द्रह साल पुरानी पेट्रोल की गाड़ियों को विदा करने का कानून बना है....बिलकुल सही है....पोल्यूशन लेवल बहुत बढ़ा है...लोग पोल्यूशन वाले को पचास रुपये फ़ालतू दे सर्टिफिकेट ले लेते थे...सब मामला फेल था.....लोग बीस पचास हज़ार दे कर कार ले आते थे.....यहाँ बन्दों के खड़े होने की जगह नहीं बची....इतना बुरा हाल....पार्किंग के लिए कत्ल होने लगे...सरकार ने सही कदम उठाया...कारों की संख्या कम करो.

यही इंसानों के मामले में भी होना चाहिए.....मैं लगभग तेरह साल का था.....बठिंडा में मोर्निंग शो में अंग्रेज़ी फिल्में लगती थी..एक फिल्म देखी ...कोई चीनी या जापानी लोग.....वो अपने बुजुर्गों को निर्जन पहाडी पर छोड़ आते थे....वहां वो बुज़ुर्ग पत्थर से अपने बचे खुचे दांत तोड़ते हैं...फिर उनको चील कव्वे खा जाते हैं.....यहाँ भारत में भी ...दक्षिण में लोग अपने बुजुर्गों को कत्ल कर देते रहे हैं....मैंने पाया था  एक आर्टिकल, कमेंट बॉक्स में दूंगा लिंक.....

अब जो दिल्ली की कारों के साथ  किया जा रहा है, जो मेरी बताई फिल्म में किया जा रहा था या जो दक्षिण में किया जाता रहा है अपने बुजुर्गों के साथ, वो तो हम नहीं कर सकते..मैं तो अपनी वृद्ध, बीमार माँ को गर्म हवा न लगने दूं.....आज हम अपने बुजुर्गों के साथ गलत करेंगे तो कल हमारे बच्चे जिनको आज हम हृदय से लगाये घूमते हैं, वो हमारे साथ उससे भी ज़्यादा गलत करेंगे....और वो जो भी करें बुजुर्गों की सेवा हर हाल में हमें ही करनी चाहिए, हमारे जीवन  का हिस्सा हैं वो, हमारा जीवन है वो

अस्तु, जनसंख्या के मामले में दूसरा रस्ता अख्तियार किया जा सकता है, बच्चे  के आने पर रोक लगाई जा सकती है....हत्या वहां भी हो सकती है लेकिन वो अविकसित जीवन है, बुज़ुर्ग कत्ल करने से वो ही बेहतर है .... अब किसी  का धर्म-धार्मिक कानून चाहे कुछ  भी कहता रहे, जनसंख्या नियंत्रण के नियम मानने  ही चाहियें  

कल शायद  दुनिया इस बात पर भी सहमत होने लगे  कि निजी बच्चा  नहीं होगा.....माँ  बाप की  निजी सम्पति जैसा नहीं होगा...वो सार्वजनिक होगा.....जब आपको स्कूल सार्वजानिक चाहिए, अस्पताल सार्वजानिक चाहिए तो फिर बच्चा  ही सार्वजानिक क्यों न हो....आगे धर्म  जो मर्ज़ी कहता रहे, मानना होगा.....सेकुलरिज्म के साथ कॉमन सिविल कोड को मानना होगा.....यह मात्र इतना मामला नहीं कि आज आरएसएस से धमक कर कोई कहे, हमें तो सेकुलरिज्म सही लगता है.....नहीं, सेकुलरिस्म को थोड़ा गहराई में समझ लीजिये....उसके  साथ  कॉमन सिविल  कोड  भी  खड़ा  है.....जैसे   हक़   के  साथ   फर्ज़

और कॉमन सिविल कोड मतलब.....कॉमन मतलब कॉमन.........वो मात्र मुस्लिम की बात नही है... 

सिक्ख स्त्रियों ने हेलमेट पहनने से मना किया, धर्म की वजह से....और यह मान भी लिया गया....लेकिन यह गलत है.....आज अगर गुरु साहेब होते तो शायद खुद अपने हाथ स्त्रियों को हेलमेट पहना देते...इसमें क्या बुरा है....सर की हिफाज़त होगी, ज़िंदगी बचेगी......लेकिन यही जड़ता नुक्सान करती है....अब कोई कहे कि हमारी मर्ज़ी किसी का क्या नुक्सान...लेकिन आप भी तो मुल्क की सम्पत्ति हो.....खामख्वाह बर्बादी होगी.....और कोई और बेचारा कानून के लपेटे में आ जायेगा चूँकि आपने हेलमेट नहीं पहना सो नुक्सान आपका हुआ लेकिन पचड़े में वो भी पड़ गया...सो यह तो कोई मानने वाला तर्क नहीं था लेकिन मान लिया गया.....illogical बात को legal बना दिया गया.....

और यही बात अंतिम संस्कार पर भी लागू की जा सकती है.... वृक्ष बहुत कीमती हैं और एक इंसान के साथ कितने ही वृक्ष मरें यह कहाँ की समझ है? प्रदूषण किया जाए , यह कहाँ की समझ है?

सीधे तर्क हैं.....किसी का धर्म चाहे जो मर्ज़ी कहता हो......जो समय की ज़रुरत हो उसके हिसाब से कायदे कानून बनाए जाने चाहिए और माने जाने चाहिए...बस यही कहना है मुझे

नमन.....कॉपी राईट......चुराएं न.......शेयर करें

Sunday, 5 July 2015

!!!!"सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा"? क्या बकवास है!!!!

पृथ्वी एक है.......यह देश भक्ति, मेरा मुल्क महान है, विश्व गुरु है, यह सब बकवास ज़्यादा देर नहीं चलेगी.......हम सब एक है......बस एक अन्तरिक्ष यात्री की नज़र चाहिए......उसे पृथ्वी टुकड़ा टुकड़ा दिखेगी क्या?

अगर कोई बाहरी ग्रह का प्राणी हमला कर दे तो क्या सारे देश मिल कर एक न होंगे....तब क्या यह गीत गायेंगे, "सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा"?

"सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा"? क्या बकवास है, सिर्फ इसलिए कि कोई हिंदुस्तान में पैदा हो गया तो वो गा रहा है सारे जहाँ से अच्छा.....अहँकार का ही फैलाव है इस तरह का देश प्रेम.....और जीजान से लगा है भारतीय साबित करने में कि नहीं, भारत ही विश्वगुरु है, सर्वोतम है...

हमने विश्व को जीरो दिया
लेकिन यह कभी न सोचेगा कि जीरो देकर जीरो हो गया
जीरो देना ही काफी नहीं था, बुनियाद डालना ही काफी नहीं होता , इमारत आगे भी खड़ी करनी होती है

Friday, 3 July 2015

Health

Never let "COCONUT" Disappear from your kitchen, can be consumed raw or cooked in sweet or salty dishes, in natural or Milk form. 

Very very tasty tasty healthy healthy.


Just increase consumption of seeds, beans, sprouts, nuts, fruits, dry fruits, salads, nicely cooked vegs, whole Grains. 

Just decrease consumption of Roties, chawal, fried items, sweets, over cooked veg in heavy Ghee, Milk & Milk products.

And Lo, Healthier you are.

!!!!!निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाए----बकवास!!!!!!

निंदक सिर्फ निंदा ही करता रहेगा, जोंक की तरह व्यक्ति के उत्साह को चूस जाएगा, ऐसे व्यक्ति को ब्लाक कर देना चाहिए..चाहे फेसबुक हो चाहे जीवन

हाँ, आलोचक का स्वागत होना चाहिए, आलोचक, जिसके पास लोचन, यानि बुद्धि की आँखें हैं...जो अच्छा बुरा देख समझ सकता है .....और जो अच्छे पर उत्साह बढाता भी है, ताली भी बजाता है और गलत दिखने पर गलती भी समझाता है...

इसे समझने के लिए आसान मिसाल हाज़िर है, क्या आप हमेशा अपनी माँ, या बीवी के हाथ के बने खाने में कमियां ही निकालते हैं या अच्छा बना हो तो प्रशंसा भी करते हैं?

उम्मीद है समझ गए होंगे, इससे आसान मिसाल अभी तो मुझे नहीं मिल रही

"आओ प्यारे सर टकरायें"

1) हलवाई यदि सिर्फ हलवा ही नहीं बनाता तो उसे हलवाई कहना कहाँ तक उचित है ...?

2) कोई ग्लास पीतल या स्टील का कैसे हो सकता है जब ग्लास का मतलब ही कांच होता है?

3) स्याही को तो स्याह (काली) ही होना था, फिर नीली स्याही, लाल स्याही क्योंकर हुयी?

4) सब गंदगी पानी से साफ़ करते हैं, लेकिन जब पानी ही गन्दा कर देंगे तो किस को किस से साफ़ करेंगे?

5) जल जब जल ही नहीं सकता तो इसे जल कहना कहाँ तक ठीक है?

6) जब कोई मुझे कहता है ,"आ जा "तो मुझे कभी समझ नहीं आता कि वो मुझे आने को कह रहा है, या जाने को या आकर जाने को, क्या ख्याल है आपका?

7) जित्ती भी आये, लगता है कम आई...तभी तो कहते हैं इसे कमाई....मुझे नहीं अम्बानी से पूछ लो भाई.... क्या ख्याल है आपका?

8) जब हम राजतन्त्र से प्रजातंत्र में तब्दील हो गए हैं तो क्या राजस्थान का नाम प्रजास्थान न कर देना चाहिए. नहीं?

9) वेस्ट बंगाल भारत के ईस्ट में है , फिर भी इसे वेस्ट बंगाल क्यों कहते हैं..?

10) गुजरात में शायद सिर्फ गूजर तो नहीं रहते अब फिर भी इसे गुजरात क्यों कहते हैं?

11) छोटे डब्बे में बड़ा डिब्बा तो नहीं समाता, फिर राष्ट्र में महाराष्ट्र कैसे है?

12) सिंध तो भारत में नहीं है अब, फिर भी वो जो राष्ट्र गान है न,,,,,,,,उसमें पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा ...ऐसा कुछ क्यों कहते हैं?

13) आम तो एक ख़ास फ़ल है फिर भी इसे आम क्यों कहते हैं?

14) If the right is right, then is the left wrong?

शेयर करना जायज़ है, चुराना नाजायज़ है, नमन

!!!! How to win friends and influence people, WTF !!!!!


Dale Carnegie was another shallow writer from the west. What he is teaching is just cunning-ness, shallow worldly tactics.

The most famous book by him, How to win friends and influence people, see the title, is friendship a battle to be won and are you to defeat your friends and are you to win your friends, the choice of words shows one's mentality.

All salesman kinda tricks.

Go on polishing, supporting other's ego, if the friends is going to commit suicide, do not criticize......

What is criticisms...criticism is creativity, it is not devastation........criticism means seeing what is wrong , what is right...........and expressing so.

Dale Carnegie is shallow, cheap, salesman...not a real friend, a real friend does not care much about winning friends, a real friend makes foes......Jesus, Socrates, Osho, Galileo, Joan of Arch and many others, these were real friends of humanity and what happened, were they here to win friends?

No, they just do not care, they express as they feel, understand and eventually succeed in making more foes than friends.....that is the way of real friends, not as this retard Dale Carnegie tells.

!!!!!!!तेज़ाब हमला-!!!!!!!!!


जिस तरह गन और गोली का पूरा हिसाब किताब बेचने और खरीदने वाले को रखना होता है, ठीक वैसे ही तेज़ाब के लिए सख्त कानून बनने चाहिए........किस ने कहाँ से कितना लिया, किस मकसद से लिया, किसको बेचा.......सबके identity कार्ड भी सरकार को रखने चाहिए......फ़ोन नंबर एड्रेस..........दो गवाह......और प्राइवेट बिक्री ही बंद कर देनी चाहिए........तेज़ाब को दुर्लभ बना देने से कुछ हद तक मामला हल हो सकता है....

वैसे भीतरी मुद्दा तो दबा सेक्स है...एक मुल्क जहाँ सेक्स किसी दूसरे ग्रह की चीज़ जितना मुश्किल मामला बना दिया जाएगा, वहां इस तरह के अपराध सामने आते रहेंगे........सड़ांध है यह हमारे तथा कथित समाजिक सिस्टम की...........

सेक्स वर्कर को लाइसेंस नहीं देंगे........सेक्स का सामना ही नहीं करेंगे......जैसे गुनाह हो.....पाप हो.....वैसे कुछ समय पहले तक तो सेक्स की बात ही गंदी बात होती थी.....वैसे अभी भी है.....हमारी सब गालियाँ सेक्स से जुड़ी हैं.....हमने सेक्स को ही गाली बना दिया है....

ऐसे समाज में, जो शुतुरमुर्ग का रवैया अपनाएगा मानव की सबसे बड़ी शक्ति, सबसे बड़े आकर्षण और सबसे बड़े आनंद के प्रति.....जो इसे ज़हरीला कर देगा......तेज़ाबी कर देगा......वहां तेज़ाबी हमले न होंगे तो और क्या होगा?

!!!!!!! THE SAD STORY BEHIND THE WORD "RATION" !!!!!!!

Do you know what is the meaning of Ration, it does not mean Groceries, it does not mean Sugar, Lentils, Flour etc.

It means,"a fixed amount of a commodity officially allowed to each person during a time of shortage".

Do you understand, what I mean to convey? In India life essential groceries were never enough for general people, these had been rationed.

What a great country! Where Lentils, Flour, Sugar, Lentils, Flour is equal to "ration".

The supply of these life essential kitchen eatables has been so much rationed, limited that the word ration had become equal to these eatables.

What a pity!

!!!बड़े नामों की गुलामी ढोती मनुष्यता!!!

अक्सर लोग एक तरह की नामों की गुलामी में ही जी रहे होते हैं...बड़े नामों की गुलामी...चाहे वो नाम किसी किताब का हो या किसी व्यक्ति का......

मेरे जैसे हकीर आदमी की हिमाकत ही कैसे हो गयी?
किसी महान किताब / शख्सियत पर कोई ऐसी टिप्पणी करने की, ऐसी टिप्पणी जो जमी जमाई जन-अवधारणा को ललकारती हो...

मानसिक गुलामी

मुझसे अक्सर कहा जाता है, मैं कौन हूँ जो फलां विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में या उसके किसी कथन के बारे में टिप्पणी करूं, मेरी औकात क्या है, मुझे क्या हक़ है

मैं बताना चाहता हूँ कि ऐसा करने का सर्टिफिकेट मुझे जनम से ही कुदरत ने दे दिया था, सारी कायनात मेरी है और मैं इस कायनात का...

और मेरा हक़ है, कुदरती हक़, दुनिया के हर विषय के पर, हर व्यक्ति पर बोलने का, लिखने का

और यह हक़ आपको भी है, सिर्फ इस भारी भरकम नामों की गुलामी से बाहर आने की ज़रुरत है

और एक बात और जोड़ना चाहता हूँ, कोई भी व्यक्ति चाहे कितना ही महान हो, कितना ही बड़ा नाम हो उसका....कहीं भी गलत हो सकता है

और कोई भी मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति कहीं भी सही हो सकता है

वेशभूषा के अंध-विश्वास

रवीश कुमार को मैं काफी संजीदा टीवी एंकर मानता हूँ...पर जनाब तपती गर्मी में कोट पहने टाई लगाये समाचारों पर समीक्षा प्रस्तुत कर रहे थे............कहीं तो सोच में गड़बड़ है

कपड़े तक पहनने में लोग अंध-विश्वासी हैं...न सिर्फ अनपढ़, कम पढ़े लिखे बल्कि ठीक ठाक पढ़े लिखे लोग भी.

अब कोट, टाई पहना व्यक्ति ही संजीदा लगेगा, सभ्य लगेगा, यह अंध विश्वास नहीं तो क्या है

मेरा धंधा है कपड़े का, कौन सा कपड़ा Casual है, कौन सा Formal, सब अंध विश्वास है

आदमी मरे मरे रंग पहने, औरत चटकीले रंग, यह अंध विश्वास है

बुजुर्ग हैं तो मरे मरे रंग पहने, यह अंध विश्वास है

ऊँची एड़ी वाली स्त्री अच्छी दिखती हैं, यह अन्धविश्वास है....चीन में तो स्त्री के छोटे पैर सुन्दर दीखते हैं, इसका इतना जबरदस्त अंध विश्वास था कि बच्चियों को इतनी छोटे लोहे के जूते पहनाये जाते थे कि उनका बाकी शरीर तो बढ़ जाता था लेकिन पैर छोटे रह जाते थे, इतने छोटे कि वो अपाहिज हो जातीं थी.....हमेशा के लिए....अभी भी शायद एक आध औरत उन बदकिस्मत औरतों में से जीवित हो

कभी आपने भारतीय वकीलों की वेश भूषा देखी है.....काला कोट, टाई, गर्मी हो तो भी...यह तर्क करने वाले लोग अपनी पोशाक के विरुद्ध तर्क न पेश कर पाए अब तक

मैं  बरसों  से लम्बे बाल रखता हूँ,  और यकीन  जानिये   मेरी बीवी तक  को यह पसंद नहीं.....अक्सर लोग बेतुके  सवाल करते हैं,"बाल लम्बे क्यों हैं? मैं  कोई कलाकार हूँ? गायक हूँ?"

बोलता  हूँ , " मैं कुछ नहीं  हूँ भाई"

"कुछ  नहीं  तो फिर बाल क्यों लम्बे हैं?"

तौबा! बाल क्यों लम्बे हैं? बाल क्यों लम्बे हैं?

अबे तुम्हारे  बाल क्यों छोटे हैं, मैंने पूछा क्या तुम्हें? या टीमने खुद से पूछा क्या कभी?  मूर्खों, तुम्हारे बाल छोटे इसलिए हैं चूँकि तुम्हारे पिता  के छोटे थे और उनके पिता जी के भी ....और इसलिए हैं कि तुम्हारे इर्दगिर्द सभी के बाल छोटे हैं...बस

और मेरे लम्बे इसलिए हैं कि मैंने अपने समझ, अपनी मर्ज़ी का प्रयोग किया है

इडियट

!!!!गंगा ने बुलाया है!!!!!

मूढ़.......गंगा की सफाई की चिंता है.........अरे, सारा माहौल जहरीला कर दिया तुम्हारी अकलों ने....

क्या ज़मीन, क्या दरिया...क्या समन्दर......क्या हवा....
क्या इंसानियत.....क्या मासूमियत.....

सब कुछ

और
और तुम्हें चिंता हो रही है कि गंगा मैली हो गयी है.

जैसे सिर्फ गंगा ही मैली हुई है

सब ..सब कुछ मैला है

ज़्यादा अक्ल है न ...ज्यादा अक्ल है न तुम सब में

और तुम्हें चिंता है कि गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए, जैसे सिर्फ गाय ही पवित्र हो बाक़ी सब अपवित्र........

जैसे बाकी जानवर मार देने के काबिल हों...जैसे मुर्गा....बकरा कोई कम पवित्र हो.......

मूढ़ ज़्यादा अक्ल है न तुममें....

बस तुम्हारी किसी किताब ने बता दिया कि गंगा और गाय बचनी चाहिए और तुम चल पड़े इनको बचाने..... ....

तुम इनको भी इसलिए नहीं बचाने निकले कि तुम्हें कोई समझ है कि पर्यावरण के लिए इनको बचाना ज़रूरी है......

तुम इनको इसलिए नहीं बचाने निकले कि इस पृथ्वी के प्राण सूखते जा रहे हैं..,,कि हवा, पानी, ज़मीन सब ज़हरीला होता जा रहा है....

तुम इसलिए इनको बचाने निकले हो क्योंकि यही तुम्हारे कानों में बचपन से आज तक फूँका गया है........क्योंकि यह तुम्हारा मज़हब है....

मूढ़

ज्योतिषी

ज्योतिषी सीधा सीधा मनोवैज्ञानिक है......आपके बहुत से रुके, बिगड़े काम वैसे भी बनने होते हैं यदि आप समस्या पर कम ध्यान दें और समस्या निवारण पर ज़्यादा 

ज्योतिषी आपको टोने टोटके और झूठ मूठ के उपायों में उलझाये रखता है...आपकी उम्मीद को बंधाये रखता है.......

और चूँकि आप उम्मीदवार हो जाते हैं.......सो आप अपने अपने हालातों को सुधारने में भी प्रयासरत रहते हैं..

नतीज़ा....हालात बहुत बार सुधर जाते हैं.

नतीज़ा......ज्योतिषी महाराज जी की जय हो

आप भी खुश और वो भी खुश

Concept of Gurudom, a passe:-----

Never make anyone your Guru, never, it is just like pledging your wisdom to someone else, a mortgage which will never be released.

It is just like seeing with the eyes of someone else, walking with the legs of someone else.

Had the nature wanted this, it had never given separate pairs of your own.

There is a saying in Punjabi ," Shah bina patt nahi, Gur bina gatt nahi." it simply means that none can save one's honor in society without the upper-hand of a moneylender and none can move ahead without the help of Guru.

Both faulty concepts, disordered social values, why should someone borrow and why should someone lend, why should be the need of a professional moneylender, only because society is deeply dis-harmonized financially.

And why should some particular one be a Guru, why not the emphasis be laid on developing a learning mindset instead of the need and importance of a Guru? What will a Guru do, if the one does not wanna learn anything?

In my view, the whole emphasis should be laid on becoming a good student, as the disciples of Gobind Singh ji are called Sikhs, a Sikh is someone who wanna learn, ready to learn.

It is better said , "Waho waho Gobind Singh, aape gur aape chela", which means Gobind Singh was awesome, own Guru, own disciple.

I feel that greatness, awesomeness be expanded more, expanded to the Cosmic level, everyone should be disciple of the Cosmos and a Guru too of the Cosmos.

I find that the whole cosmos is a Guru, a teacher, the one who knows how to learn can learn even from the stupid most individual, the one can learn not to be a stupid like that one. Hence it depends upon the learner, what he learns, how he learns.

Instead of accepting any single individual or single thing as your Guru, be open to the Cosmos, be open to every moment, everything, everyone. All can be a Guru.

And accepting single one as a Guru is harmful, it closes one's eyes to the others, turns one's eye-view prejudiced, intelligence paralyzed.

My humble suggestion to all of you my friends is, walk with your own legs, see with your own eyes, think with your own brains and never get bedazzled with any name, be it the most lustrous, no matter. A borrowed wisdom is no wisdom.

You can learn from anywhere, anything, anyone and anyone can learn from you, it is mutual learning. None Guru, none disciple or everyone a Guru, everyone a disciple, some bigger, some smaller.

Keep yourself open to the Cosmos, to the whole, never close yourself in the cage of someone else, not even of yours own, be open, be cosmic, ready to learn from every direction, every moment, everyone, every thing, including yourself.

Don't be a guru, nor a disciple, be cosmic, be friends, and indulge in sharing, friendly sharing, mutual learning.

IDEA इज़ उल्लू बनावींग!

IDEA इज़ उल्लू बनावींग! 
व्हाट एन आईडिया सर जी!!

आप ले लो बस इसकी सर्विस, दिन में तीन बार यह कंपनी आपको computerized कॉल करेगी अपनी बकवास सुनाने को..

फिर आप यदि किसी को कॉल मिलायेंगे तो किसी बाला की मधुर आवाज़ में यह सुनना होगा कि रिचार्ज कराने के लिए बेस्ट ऑफर आप कैसे ले सकते हैं

फिर जैसे ही कॉल मिलेगा तो सामने वाले ने जो रिंग टोन लगा रखी है, वो आप कैसे ले सकते हैं, यह तफसील से बताया जाएगा

इसे कहते हैं, उल्लू बनावींग

मैंने यह सर्विस फ़ोन ये सब ऑफर्स सुनने को ही तो ली है, मुझे कोई और काम थोड़ा ही है, या मेरे समय की कोई कीमत थोड़ा ही है.

यहाँ "मैं" में तमाम मित्र जिनको IDEA इज़ उल्लू बनावींग, जिनका अरबों रूपए का समय IDEA इस खावींग, सब शामिल हैं

व्हाट एन आईडिया सर जी!!!

बलात्कार, समस्या और इलाज---

बलात्कार, समस्या और इलाज---

बलात्कारी को सजा देना ऐसे है जैसे किसी को भूखा रखो और वो बेचारा खाना चोरी करे तो उसे सज़ा दो

बलात्कारी को सजा देना ऐसे ही है जैसे अपनी गलती की सजा किसी और को दे कर अपने सही होने की खुद को तस्सली देना 

आप किसी को बे-इन्तेहा भूखा रखोगे .....तो वो खाना देख कर .......खाने का और अपना, दोनों का खाना ख़राब कर लेगा

चोर चोरी करते हैं और जाते जाते घर जला जाते हैं
लगता है कितना अमानवीय कृत्य है
लेकिन ऐसा वो करते हैं सजा के डर से
आप सज़ा मत दो....वो घर न जलाएंगे
आप भूखा मत रखो ...वो चोरी न करेंगे

थोडा सोच कर देखो न.....यदि समाज ऐसा हो कि स्त्री पुरुष को इस तरह से न रखा गया हो जैसे दो अलग ग्रह के वासी हों ..तो शायद पागल ही ऐसा करें ......और पागलपन का इलाज़ होना चाहिए...सज़ा नहीं

बलात्कार न घटेगा जब तक सेक्स पिंजरे में रहेगा.... न बलात्कार, न वेश्यालय, न भौंडे आइटम गाने, न अश्लील चित्र, न चलचित्र ......कुछ भी नहीं

बीमारियाँ हैं, इलाज होना चाहिए, लेकिन न तो डायग्नोज़ सही कर रहा है समाज, न इलाज़........

इलाज ये नहीं कि कानून बनायो....

मित्रवर, बार बार होते अपराध तो निशानी हैं कि बीमारी है कहीं समाजिक व्यवस्था में, समाज में, लेकिन समाज क्यों मानेगा, वो कैसे माने कि वो गलत है,

बलात्कार में जो लड़की पर बलात्कार होता है वो तो शिकार है ही, जो करता है वो भी शिकार है सामाजिक अव्यवस्था का, वरना कौन बेवकूफ थोड़ी देर के मज़े के लिए अपनी सारी ज़िन्दगी दांव पे लगाएगा.....

आप कह सकते हैं, यदि सेक्स की अवहेलना ही बलात्कार की वजह है तो स्त्रियाँ क्यों नहीं करती, हर कोई क्यों नहीं करता, कुछेक लोग ही क्यों करते हैं बलात्कार ......

पुरुष का बलात्कार नहीं हो सकता.....कुदरती तौर पर संभव नहीं है ज़बरदस्ती सेक्स करना पुरुष से........स्त्री से किया जा सकता है

और बलात्कार जो पुरुष नहीं करते , ऐसा न माने वो नहीं करते हैं.....असल में मौके की कमी है, या हिम्मत की, या डर समाज का, परिवार का, कानून का, या कोई और वजह.......

ज़रा सा दंगे भड़कते हैं.....शिकार औरत बनती है.....सन सैंतालिस के बटवारे में या फिर दुनिया के किसी भी युद्ध में, स्त्री पर सब से पहले बलात्कार होता है......

कौन हैं ये लोग जो ऐसा करते हैं?

ये शरीफ लोग हैं ....समाज के ठेकेदार.....

जब स्थिती यह है तो फिर इलाज क्या है, इलाज़ पहले संभव न था....

वो याद है फ़िल्मी डायलाग.....मैं तेरे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ........या फिर कलमुहीं किस का पाप पाल रही है पेट में, तू मर क्यों नहीं गयी ऐसा करने से पहले ......तूने मेरी इज्ज़त लुटी है, मैं किसी को मुहं दिखने के काबिल नहीं रही....वगैहरा .......

अब बेमानी हैं ये डायलाग....बस समाज को समझने की ज़रुरत है.....नजरिया बदलने की ज़रुरत ......सेक्स के साथ बच्चा आये न आये, ये इंसान पर निर्भर है अब ......तो फिर क्यों न सेक्स पे लगी लगामें ढीली छोड़ दें....क्यों न समाज को सेक्स के प्रति जागरूक करें......आप देखेंगे ......बलात्कार घटेंगे.....अपराध घटेंगे और रोग भी, सब तरह के मानसिक भी और शारीरिक भी

कहें क्या कहते हैं ?

Crimes, Rape-n murder

All Crimes are indicators that underneath the 
cover of Civilization, we have created something poisonous.
Crimes come from faulty social structure mostly, hence punishing the so-called-criminals is just like punishing someone who is not responsible at all, punishing the so-called criminals is just like breaking the mirror for showing the ugliness, punishing the so-called-criminals is just like punishing the Victim.


Neither things nor humans be owned by anyone, ownership is the basic reason of theft.

Private property and family is the root cause of poverty and richness, a system which is helping only 5-10% population of Earth affluent is the reason of crime.

Humans developed unnatural system based on ownership and keep the dis-satisfied ones, the deprived ones tamed by Morality and Law but every second we are getting the hint that underneath something wrong is brewing, only go on ignoring, only go on finding stricter laws, no, that is not the way.


No crime can be annihilated until concept of ownership is annihilated.

No crime can be annihilated until private property and family is evaporated.

Once marriage removed, once private property removed, you will find no thefts, no murders, no rapes.

Only rare cases, very rare, will be found.


When I say about annihilation of private property that means privately owned property be distributed to the society not to some particular individual, not to you, not to me.

And this system can be started by the people who start living in groups, no family, no private kids, money pooling by the group for group live-in and no money transfer to any special kid of the group but to the whole group, after the death of the group members.

Something like that. People are outraged to see the nude pics of that unfortunate sister, raped and murdered brutally. 

Do you know why they do not wanna see her pics, why they are requesting to remove those pics?

Only because it is becoming hard to face own brutality, nudity.

Remember, we are all naked under the clothes.

And until we understand this, nothing is gonna change.

Sooner we understand, sooner we see ours ugliness, sooner we be able to change ourselves, our social order for betterment.

So do not run away, see those pics, see the real face of our society, see the real failure of our social order and seek for a better one, not a battered one.

Legal Notes

I HAVE FAITH IN LAW, BUT WITH A DOUBT

Joan of Arch was ordered to burnt alive, you know why? For cross dressing. Being a girl & wearing men's clothes. A pretext. Court and law just misused. She was to be murdered anyhow and Court of law was just a façade.

Galileo Galilei, he was very old and brought into the court of law, forced to apologize. You know why? Because he declared that earth revolves around the Sun. His views went against popular views established by Bible.

Socrates, he was ordered to drink poison. Not by some criminals but by the Court of Law of that time.

Jesus Christ, he was ordered to get crucified, by whom? Certainly by Court of Law.

Bhagat Singh, he was ordered to be hanged till death, by whom? Certainly by Court of Law.


If you go through history , you will easily see that law has not served justice, law has served people in power, rich and sometimes public demand.

Law should be logical. Law should be above all these pressures.

But it is not. Many a times.
So I have faith in law but with a doubt.

Supreme Court has negated the mandatory use of AADHAR Card.
Now this is really something ridiculous.
AADHAR is the only "pakki" identity of an individual.
Instead of instructing the officials to provide these cards to each and everyone immediately, SC diluted its value.
WRONG!


I understand only one thing, footpaths are neither for driving vehicles nor for sleeping on, if anything happens wrong, both parties are culprit.
And in such cases if a vehicle driver is at fault, social system which gives birth to paupers who are forced to sleep and live on roads is culprit.
Hence of anyone is suggesting that only vehicle drivers like Salman are culprit is just finding scapegoats, is evading the real issue, is evading the solutions of our ill balanced society.
hope you get what I am saying.
Hope you get that I am not saying to save people like Salman.
Hope you get I am not talking Law, I am talking Logic.
I am not talking legally, I am talking socially.
I am not talking about Salman's case particularity, that is the duty of court to see the case exclusively.





"INTELLECTUAL PROPERTY LAWS, WHAT IS IT, WHEN HURT AND WHEN NOT"

Whatever you write, as you write you get the copy right.
Whatever you steal, as you steal, you are noway right.

The ones, who do not respect my copy right, I m NOT SORRY to say that I can not respect them, on this particular issue.

Simply I do not support copying other's writings or any thing, it is a theft on one's intellectual property.

You learn something from someone's writing, if it is somehow useful for you, that is great, all writing are for that purpose but it does not mean that U are allowed to copy paste other's words....

U can do it differently, use your wisdom, experience and re-write according to your understanding, that is okay.

Now, how much has been just copied or how much is re-used like a re-use of wheel in a car, that is a different story and that is why in the whole world court cases are fought over this issue.

And I am amazed, how difficult it is to make clear to my friends!

Patents, copy rights and trade marks are protected under intellectual property rights.

As a theft of any kinda physical property is considered a crime so is considered theft of intellectual property.

A few vital things are to be understood regarding these laws.

There is saying, "There is nothing new under the sun", which is right and but partially only.

Just take an example of a motor cycle, the technique of cycle, motor, wheel & iron casting etc is used in it, all already invented, still the appropriate use, aggregate of all these already invented things gives birth to a new thing, motor cycle, an invention.

Similarly, if you just copy paste something, without adding any value to the original text, you are infringing intellectual property law but if you give a twist to the original meaning, it is not a theft. An example, there is saying, beauty lies in the eyes of the beholder, then someone changed it as beauty lies in the eyes of the beer holder, see, the one, who twisted the first statement can not be called a thief, as the one has changed the whole concept.

Indian Flag and Flag of Congress party of India has much similarity but still as the central emblem is different, it is not considered intellectual property infringement.

So next time, my dear friends, if you steal or allege someone for stealing, kindly keep my words in mind.

Statutory Warning---- I am no advocate, kindly cross check my words.

Intellectual Property Rights--- 


Simply I do not support copying other's writings or any thing, it is a theft on one's intellectual property.

You learn something from someone's writing, if it is somehow useful for you, that is great, all writing are for that purpose but it does not mean that U are allowed to copy paste other's words....

U can do it differently, use your wisdom, experience and re-write according to your understanding, that is okay.

Now, how much has been just copied or how much is re-used like a re-use of wheel in a car, that is a different story and that is why in the whole world court cases are fought over this issue.

And I am amazed, how difficult it is to make clear to my friends!

What is originality, it is not re-inventing the wheel......it is making a new use of the wheel....fitting it in a cycle, car, aero-plane.....

Computer was an invention, of-course, but was it altogether something new, were not previous inventions used in inventing it?

Hope my dear friends will understand.....





Society is imbalanced and to keep that imbalance maintained all the law and all the police and all the jail houses have been created.





Best Fee pattern Offer to advocates ----


If a client wanna win a court case--what is the best fee pattern which should be offered to the advocate by him ?

If the client will pay the whole settled amount in advance to the advocate, the advocate may become careless and during the case period if the client wanna change advocate the excess payment gone may be a waste.

If the client will pay date wise,the advocate might be interested in getting more and more dates only ,the advocate might have no interest in getting the case concluded timely and he might also have no interest in winning that case.

If the client agrees to pay to the advocate a certain amount in certain installments for the whole case,that settlement also does not help much in keeping the advocate motivated for winning a case.Because advocate might take the installments on certain point of time and there is nothing which could drive hi motivation for winning that case.

What is the best fee pattern offer to keep an advocate motivated till the goal of winning the court case is achieved?

Please DISCUSS.



LEGAL SHIT----

The court room peons call the names of litigants on their dates in such a bad way that most of the times even the person standing closest to the peon fails to understand his own name being called

or

Else on every CALL visitors have to pay too much attention unnecessarily.

I wonder why not they start using digital LED display on the doors of the court rooms as are being used in restaurants to call their customers turn by turn ?

Installing digital LED display on the doors of the court rooms would make court visits of litigants somewhat less troublesome,methinks.

Plz. contribute.



Mine Tips to be Good Advocate----

1) Be acquainted with Sherelock Holmes of Sir Arthue Connan Doayle
And Hercule Poirot and Miss Marple of Agatha Christie
And Feluda of Satyajiy Ray
And Sunil of Surinder Mohan Pathak etc.etc.

Read them Watch them

2) Watch movies like Kasoor,Right yaa Wrong,CID (TV show) etc.--showing legal proceedings.

3) Watch feature films/documentary films showing legal proceedings.

4) Use secret camers, other videos-audio recording in your cases and RTI applications as much as possible.

5) Have long discussions with your clients,clients know the situation more than you,you know the law more than clients,hence discussions give way to winning,ask them to pay separately for long meetings as I pay my advocates for meeting apart from the fees settled for each date.

6) A calculator with recheck button is better that one which lack it,generally human beings don't use their recheck button given by default by the mother nature.Hence see every word of your opponent,they might have made so many mistakes which can be beneficial for you AND always make rechecks and rechecks and rechecks to correct your mistakes.

7) Use Yahoo Answers,rediff QnA,LCI,caclubindia.com,youtube,blogs etc. as frequently as possible.

One more point--

Devote half day in a week in rendering free legal advice to General people--you will be never short of business.

MY LEGAL TIPS----

If you can not convince someone then confuse him--this is a trick used by advocates so many times.

Advocates use this trick not only on Judges,opponent advocates but on their clients also.MY LEGAL TIPS----Mr Vijay m lawyer is doing wonders on "yahoo answers".Most of his answers are selected as the best ones.I am sure he is generating a good business also through yahoo answers AND I am amazed that such a giant legal personality is no where on "Lawyersclubindia".The answers given by him on yahoo answers could guide not only questioners,general people but practicing advocates also.

सरकारी नौकर-2

सरकारी अमला सर्विस के मामले में पीछे है...क्योंकि सरकारी है...सरक सरक कर चलता है....सरकारी अमला बकवास है.....रिश्वतखोर है, हराम खोर है... बिलकुल व्यवस्था की कहानी है बस......यदि कर्मचारी पक्का होगा.....साल में आधे दिन छुटी पायेगा और सैलरी मोटी पायेगा तो यही सब होगा, जो हर सरकारी उपक्रम में होता है, बेडा गर्क यूनियन कुछ नहीं कर सकती....आप आज कानून बदल दो.....उससे आधी सैलरी पर उससे बेहतर कर्मचारी मिल जायेंगे...वो भी तुरत

सेक्स

!!चूतिया!!
अक्सर बहुत से मित्रवर "चूतिया, चूतिया" करते हैं, "फुद्दू फुद्दू" गाते हैं....गाली भई.....
लेकिन तनिक विचार करें असल में हम सब "चूतिया" हैं और "फुद्दू" है, सब योनि के रास्ते से ही इस पृथ्वी पर आये हैं, तो हुए न सब चूतिया, सब के सब फुद्दू.....
और हमारे यहाँ तो योनि को बहुत सम्मान दिया गया है, पूजा गया है.....जो आप शिवलिंग देखते हैं न, वो शिव लिंग तो मात्र पुरुष प्रधान नज़रिए का उत्पादन है, असल में तो वह पार्वती की योनि भी है, और पूजा मात्र शिवलिंग की नहीं है, "पार्वती योनि" की भी है
हमारे यहीं असम में कामाख्या माता का मंदिर है, जानते हैं किस का दर्शन कराया जाता है, माँ की योनि का, दिखा कर नहीं छूया कर...
और हमारे यहाँ तो प्राणियों की अलग अलग प्रजातियों को योनियाँ माना गया है, चौरासी लाख योनियाँ, इनमें सबसे उत्तम मनुष्य योनि मानी गयी है.....योनि मित्रवर, योनि
और यहाँ मित्र चूतिया चूतिया करते रहते हैं



जब वैराग्य होने लगे तो वियाग्रा प्रयोग कर सकते हैं, व्यग्र हो जायेंगे.

RAKSHA BANDHAN--RAKHI--SIGN OF A SICK SOCIETY

I feel that festival of raksha Bandhan(Rakhi) is a symbol of sick Indian society. 

Today Indians feel that it is a festival which shows the love, the bondage of brother and sister. But when we look into the mythological and historical factors related to this festival, when we look into the deeper meanings of this festival, it becomes clear that this festival is a generation of a sick society where women were not safe (are not safe). THEY WERE/ARE A SOFT TARGET. THEY COULD/CAN BE VERY EASILY VICTIMIZED. They needed to be protected. Hence on the day of Rakha Bandhan they tie their brother into a vow that they will always protect them, save them. Symbolically they tie a thread or a Rakhi on the wrist of their brothers to tie them into this vow.

I simply don't like this festival because this is just a patch work.

First we gave birth to a society where our female members are always unsafe, then we give birth to a festival like Rakhi, through which we promise to protect them.

I want that we should change the structure of our society into such a way that there should be no extra need of protecting our females.

THEY SHOULD BE ALWAYS SAFE, EVERYWHERE SAFE BY DEFAULT.

And there should be no need of a festival like Raksha Bandhan.

If brothers and sisters decide a day to celebrate their relation, their love-- I do not have any objection. But looking into the deeper meanings of Raksha Bandhan, I have strong objections if this festival is celebrated.

!!! Hindu is not a way of worshiping, it is way of life, it is a culture, it is civilization !!!

Let us re-think.

First there is no culture...it is only an un-civilization, which we call civilization... 

A junglee society, just living under the garb of culture, 

Vulture people living under the garb of culture...

Just scratch little a bit and all culture is gone and underneath there is a junglee person.

And to tell you the truth Hindu is no way of life.....it was just a word used for the people living in a particular geographical area.........it had nothing to do with any worshiping or religion or sect or any particular way of life.

Actually the people who were called Hindus, they had no particular way of life, ..here people were eating flesh, even cow then some people were vegetarian, some worshiped idols, charvak mocked at them.

Here the society admires marriage and you will find brothels everywhere in the history and in the present times.

Here you will see Ram insulting women in Valmiki Ramayan and female worshiping him in the temples.

Here you will see people like Nanak, Kabir, Cahrvak, Budh, Mahaveer and many more who never said that they were Hindus or propagating Hinduism but still you will find people calling Jains, Sikhs, Buddhist as Hindus. Just an old Brahman backed sect, just trying to overload their theory of Hinduism.

Here you can see so many kinda bullshit.

There was/is no particular set of life,which can be defined as Hindu way of life, nothing. This word Hindu is meaningless.

But it has a general, particular meaning. This word "Hindu" denotes a particular sect of society who goes to temples, who worship Ram, Krishan, Shiv, Durga etc,who celebrates Diwali, Dussehra etc, a particular sect.

This word cannot be used for all the people living here in Bharat. The word HINDU denotes a very old, rotten un-civilization. So this word must be discarded as a word for describing almost the whole population of Bharat.

The word, Bhartiya, bhartawasi is far better, easily acceptable.