Sunday 10 May 2020

मादर चोद की गालियों से मदर डे की बधाइयों तक


मदर डे स्पेशल- -भविष्य में  माँ-बाप का रोल नगण्य होगा- कैसे? देखें.

मादर चोद यह तकिया कलाम है हमारा.  

लेकिन आप फिर भी  मदर-डे की बधाई लीजिये. अब आगे चलते हैं. मेरा मानना है कि भविष्य में माँ-बाप का रोल जैसा आज है वैसा बिलकुल नहीं होना चाहिए.

औलाद पैदा करने का हक़ जन्म-सिद्ध (birth राईट, पैदईशी हक़)  न हो के, earned  राईट होना चाहिए. आज हर किसी  को हमने औलाद पैदा करने का अधिकार दे रखा है. और  जितनी मर्जी औलाद पैदा करने का हक़  दे रखा है. कई बार तो साफ़ दिख रहा होता है कि यह बच्चा स्वस्थ जीवन  नहीं जी पायेगा फिर भी माँ बाप की जिद्द पर उसे इस दुनिया में लाया जाता है और वो बेचारा सारी उम्र नरक भोगता रहता है. दिख रहा होता है कि पैरेंट अभी आर्थिक रूप से खुद का वज़न नहीं झेल सकते, लेकिन उनको बच्चे पैदा करने देते हैं हम. फूटपाथ पर जीवन घसीटने वाले को औलाद पैदा करने देते हैं हम.  

न, न यह सब नही चलेगा आगे. अब डिटेल में सुनिए 

पहली बात. आपने जैसे किसी पशु की नस्ल सुधारनी हो तो बेस्ट मेल फेमेल लिए जाते हैं. उनका संगम होता है और उनके बच्चे होते हैं. सेम हियर. स्वस्थ तीव्र-बुद्धि बच्चे होने चाहियें  बस. उसके लिए  हरेक को बच्चा पैदा करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. पेरेंट्स  की मेंडिकल कुंडली मिलाई जानी चाहिए, देखना चाहिए कि इनके बच्चे  स्वस्थ  होंगे भी नहीं। आज काफी-कुछ  पता किया जा सकता है।  कई मेल-फीमेल के बच्चे कभी स्वस्थ नहीं हो सकते, वो चाहे  खुद स्वस्थ हों तब भी, इनसे  बच्चे पैदा नहीं होने चाहिए । बहन-भाई और  मा-बेटे बाप-बेटी में बच्चे नाजायज क्यों है सारी दुनिया में. चूँकि बच्चे स्वस्थ नहीं होते उनके. ठीक  वैसे ही. 

दूसरी बात. जब तक एक लेवल तक कमाने न लगे कोई पेरेंट्स, तब तक उनको बच्चा पैदा करने का हक़ ही नहीं होना चाहिए। कुछ तो  निश्चित हो बच्चे का आर्थिक वज़न समाज पर नहीं पड़ेगा। 

तीसरी बात और सबसे खतरनाक बात. वो बात जिससे बहुत लोगों की नाक को खतरा हो जायेगा अभी का अभी. . बच्चा माँ-बाप से कैसी भी सामाजिक बेड़ियाँ  विरासत में नहीं  लेगा। कौन सी हैं वो बेड़ियाँ? वो बेड़ियाँ  हैं जिन्हें तुम हीरे-जवाहरात समझते हो. कीमती आभूषण समझते हो. वो हैं तुम्हारे संस्कार, तुम्हारा धर्म। तुम्हारा दीन-मज़हब, पंथ. 

देखते हो आप एक बच्चा  हिन्दू  घर में पैदा हुआ तो वो हिन्दू  है, सिक्ख घर में पैदा हुआ तो सिक्ख है, मुस्लिम का बीटा  मुस्लिम है. देखते हैं आप?

 फिर वो उसी ढंग से सोचता है सारी उम्र। 

क्या  समझते हो आप कि वोट देने का अधिकार बालिग़ होने पर मिलता है, इसलिए ताकि इंसान  सही से सोच समझ सके. यही न. सरासर झूठ बात है यह. वोट कौन कैसे देगा, यह पैदा होते ही तय कर दिया जाता है. अरे भाई उसकी राजनितिक, सामजिक सोच तो आपने उसके पैदा होते ही तय कर दी.  वोट भी वो उसी सोच से देता है. यह क्राइम है. जो माँ बाप ने किया बच्चे  के खिलाफ । 

हर धर्म के लोग बकवास करते हैं कि वो ज़बरन धरम  के खिलाफ हैं. कानून भी हैं कि जबरन किसी का धर्म नहीं बदला जायेगा। लेकिन कैसा लगेगा आपको यदि मैं कहूं कि हर इन्सान पर धर्म-दीन जबरन  ही लादा जाता है, उसके पैदा होते ही जबरन लादा जात है.  माँ  दूध के साथ धर्म का ज़हर भी पिला देती है , बाप ने चेचक के टीके के साथ मज़हब का टीका भी लगवा देता है , दादा ने प्यार-प्यार में ज़ेहन में मज़हब की ख़ाज-दाद डाल  देता है,  नाना ने अक्ल के प्रयोग को ना-ना करना सिखा देता है,  लकड़ी की काठी के घोड़े दौड़ाना तो सिखाया जाता है लेकिन अक्ल के घोड़े दौड़ाने पर रोक लगा दी जाती है.   

इसके इलाज के लिए ज़रूरी है कि स्कूलों में ही रहे बच्चा बालिग़ होने तक। माँ-बाप को बस सीमित समय तक ही बच्चे से मिलने का समय दिया जाना चाहिए । या फिर माँ-बाप खुद को धर्म-मज़हब के विषाणु से मुक्त करें तभी बच्चे को अपने साथ रखें। वो भी उनका पाली-ग्राफ टेस्ट होना चाहिए बार बार। झूठ बोले  तो सजा होनी चाहिए और बच्चा वापिस स्कूल में जाना चाहिए। यह मुश्किल है लेकिन कोरोना काल में आपने देखा मुश्किल फैसले भी लेने पड़े इन्सान को. धर्म-मज़हब का वायरस अगली पीढ़ी तक न जाए इसके लिए उनको पिछली पीढ़ी से बचाना ही होगा। वरना यह चैन कभी न टूटेगी। 

इससे तमाम  और तरह की समाजिक-वैचारिक बीमारियाँ भी छटेंगी। मेरा मानना है कि बीमारी, उम्र की सीमा (Longevity)  यह सब भी समाज की सामूहिक सोच से प्रभावित होती है, तय होती है. 

एक समाज जिसने सोच रखा है कि पचास साल का आदमी बूढा होता है उस समाज  में पचास साल का आदमी जवान हो ही नहीं सकता। एक समाज ने सोच रखा है कि साठ साल के बाद आदमी बस मौत के करीब चला जाता है तो वहां आदमी आपको नब्बे  साल-सौ साल के स्वस्थ, जवान आदमी  मिल ही नहीं सकते । वहां आपको फौज सिंह, बर्नार्ड शॉ  कैसे मिलेंगे, जो शतक लगाते ऐन उम्र के भी और क्रिएटिविटी के भी. 

तो सिर्फ धर्म की ही नहीं, और भी सामाजिक बीमारियां हैं जो हर पिछली पीढ़ी, अगली पीढ़ी पर थोपती चली जाती है. शिक्षा के नाम, संस्कृति के नाम पर. किसी बीमारी को आप बढ़िया नाम दे दो, लेकिन रहेगी तो वो बीमारी ही. 

आखिरी बात.   कोरोना काल ने सिद्ध किया है  सिजेरियन से ज्यादा नार्मल डिलीवरी हो रही हैं. तो भैया वो कुदरत कोई पागल नहीं है. उसने बच्चे के आने का रास्ता बनाया है उसके लिए हर मा का पेट काटा जाए यह  मेडिकल वर्ल्ड का एक फ्रॉड लगता है मुझे। इस पर और रिसर्च होनी चाहिए । मुझे  लगता कि कोई इक्का दुक्का ही डिलीवरी होनी चाहिए  जो नार्मल न हो, बाकी माँ यदि ढंग से जीएगी तो बच्चा कुदरती ढंग से ही हो जायेगा.  


मुझे पता है इसमें बहुत कुछ हज़म नहीं होगा मेरे मित्रों को, लेकिन सोच कर देखिये. वीडियो देखने के लिए शुक्रिया. साथी हाथ बढ़ाएं, वीडियो शेयर करते जाना.

नमस्कार 


Thursday 30 April 2020

हिन्दू फल की दूकान लिखने पर FIR -सही है क्या?



बिहार और झारखण्ड से खबरें हैं कि फल की दुकान पर भगवा झंडे लगने पर या हिन्दू शब्द का बैनर लगाने पर FIR लिख दी गईं. चूंकि इससे समाज में शांति भंग हो सकती ही। समाज के विभीन्न  हिस्सों में दुशमनी बढ़ सकती है। धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती हैं। और पता नहीं क्या क्या? 


कमाल है भाई! धन्य हैं कंप्लेंट देने वाले और धन्य-धन्य हैं कंप्लेंट लिखने वाले. मैं  हैरान हूँ सामान्य बुद्धि का इस्तेमाल भी नहीं किया गया. किसी ने झंडा लगाया अपने ठेले पे, या बैनर लगाया अपने ठेले पे या अपनी दुकान पे हिन्दू फल की दुकान लिख दिया तो उससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहात हो रही हैं या दंगा बलवा होने का खतरा है. वाह! शाबाश कल यह भी तय कर देना कि कौन से रंग की शर्ट कब पहननी है चूंकि उससे भी तो भार्मिक भावनाएं हर्ट हो सकती हैं. 

यदि कोई मुस्लिम से सब्ज़ी फल नहीं नहीं ले रहा तो वो वो अफसरान से मिल रहा है, ज्ञापन दे रहा है. देखिये ..... 

मतलब मजबूर करोगे कि तुम से सब्ज़ी फल लिया ही जाए? 

और मुस्लिम जो सिर्फ हलाल प्रोडक्ट ही प्रयोग कर रहे हैं, तो किसी जैन, किसी बौध, किसी सिक्ख ने रिपोर्ट कराई क्या कि हमारे प्रोडक्ट प्रयोग क्यों नहीं कर रहे? क्या किसी गैर-मुस्लिम ने  डिमांड की  कि मुस्लिम हलाल प्रोडक्ट बंद कर दें चूँकि उनके ऐसा करने से गैर-मुस्लिम भावनाएं हर्ट हो रही हैं. क्या किसी सिक्ख ने FIR करवाई कि उसकी झटका खाने वाली भावना हर्ट हो रही है? या जैन ने कहा कि चूँकि वो मांस खाने का विरोध करते हैं तो उनकी धार्मिक भावना हर्ट हो रही है?  

मुस्लिम बड़े शान से हलाल सर्टिफिकेशन  कर रहे हैं. आपको लगता होगा हलाल सिर्फ मीट-मुर्गे  पर ल्गू होता है। गलत लगता है हलला सर्टिफिकेशन आटा, दाल, चावल चीनी पर भी होता है। हलाल सर्टिफिकेशन तो रेस्त्रौरेंट  को भी दिया जा रहा है और टौरिस्म  को भी और मेडिकल टौरिस्म को भी दिया जाता है ।  लेकिन गैर-मुस्लिम ने जरा सा सब्ज़ी-फल पर अपनी मर्ज़ी दिखानी शुरू की तो FIR करवाने लगे. यह तब है जब भारत एक गैर-मुस्लिम प्रधान मुल्क है. 

Facebook के एक लेखक हैं।  मुझे किसी ने tag किया उनके लेख पर। वो लिखते हैं कि “मुस्लिम ढाबा” इसलिए लिखा जाता है ताकि गैर-मुस्लिम ने यदि मीट-मुर्गा नहीं खाना तो कहीं उसका धर्म भ्रष्ट न हो। वो आगे लिखते हैं कि हलाल सर्टिफिकेशन इसलिए है कि चूंकि मुस्लिम को उसकी मान्यताओं के मुताबिक product और सर्विस मिल सके। मुझे यही समझ आया उनके लेखन से। और वो हिन्दू फल की दुकान लिखने वालों को सख्त सजा देने की भी हिमायत करते हैं चूंकि यह सिर्फ नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है। उनका कहना यह था कि फल थोड़ा न हिन्दू-मुस्लिम होते हैं, जो हिन्दू फल की दुकान लिखा जा रहा है, मुझे यह तर्क बिलकुल समझ नहीं आया, जब दाल-चावल-चीनी हलाल हो सकता है तो फिर फल की दुकान पर हिन्दू क्यों नहीं लिखा जा सकता? जब मीट-मुर्गा हलाल हो सकता है, झटका हो सकता है तो फल-सब्ज़ी भी हिन्दू क्यों नहीं हो सकती? जब रेस्त्रौरेंट, होटल,  टौरिस्म  हलाल certified हो सकता है  फल सब्जी की दुकान विश्व हिन्दू परिषद द्वारा अनुमोदित क्यों नहीं हो सकती? ठीक है मुस्लिम को अपनी मान्यताओं के हिसाब से जीने का हक है तो गैर-मुस्लिम को भी तो वो आज़ादी हासिल होनी चाहिए कि नहीं? 

असल में यह सब बहस ही बचकानी है। बस चली आ रही मान्यताओं के खिलाफ खड़े होने का नतीजा है आप गली में कुत्ते की टांग तोड़ दो आप पर मुक़द्दमा हो सकता है, आप सरे आम मुर्गा कटवा लो कोई मुक़द्दमा नहीं। लेकिन कुछ मुल्कों में  कुत्ते साँप भी बड़े आराम से खाये जा रहे हैं, कोई दिक्कत नहीं। हलाल चला आ रहा है तो चला आ रहा है हिन्दू फल की दुकान  नया नया आया है तो घबराहट पैदा हो रही है। मैंने तो इंटरनेट पर “100% हराम” के बोर्ड भी देखे। आपको क्या चुनना है आपकी मर्ज़ी। मैं विश्व बंधुत्व और वसुधेव कुटुंबकम में यकीन रखता हूँ और इस तरह से लगे बंधे दीन-धर्मों में कोई यकीन  नहीं रखता। यह सारी बहस मात्र इसलिए थी कि फिलहाल जैसा समाज है उसमें किसी के साथ भी undue भेदभाव न हो जाए, न मुस्लिम के साथ और न ही गैर- मुस्लिम के साथ ।

विडियो अगर पसंद आय तो LIKE ज़रूर कीजिएगा, कमेंट कीजिएगा और अपनी राय के साथ  share कीजिएगा 



Wednesday 29 April 2020

जीवन क्या है, कुदरत का खेल

मेरा पंजाबी पॉडकास्ट है. महान एक्टर इरफ़ान खान की मृत्यु पर यह और भी प्रासंगिक हो गया है. ज़रूर देखिये, सुनिए. और पूरा सुनिए. अपनी राय कमेंट में ज़रूर लिखिए और विडियो शेयर कीजिये और अगर बात पसंद आती हो तो LIKE भी कीजिये.

Saturday 25 April 2020

भक्त कौन है?



भक्त गोबर-भक्त अंध-भक्त  अँड-भक्त, मोदी-भक्त ... बहुत से शब्द है जो भाजपा  को, मोदी को  सपोर्ट करने वालों के  खिलाफ प्रयोग होते  हैं।  कहा जाता है कि भक्ति-काल चल रहा है.

हर हर महादेव सुना था लेकिन हर-हर मोदी, घर-घर मोदी भी सुना फिर। 


भक्त मतलब जड़बुद्धि. जिसे तर्क से नहीं समझाया जा सकता. जो तर्क समझता ही नहीं.

और  कौन कहता है इनको भक्त?

मुस्लिम....... तथाकथित सेक्युलर. लिबरल.  विरोधी पोलिटिकल दल. और कोई भी जिसका मन करे। 

गुड. वैरी गुड.

तो सज्जन और सज्जननियो।  आईये खुर्दबीनी कर लें.

सबसे पहले मुस्लिम को देख लेते हैं. भाई आप से बड़ा भक्त कौन है दुनिया में?  आप तो क़ुरआन, इस्लाम और  मोहम्मद श्रीमान  के खिलाफ  कुछ सोच के, सुन के राज़ी ही नहीं होते. मार-काट हो जाती है. बवाल हो जाता है. दंगा हो जाता है.  पाकिसतन में ब्लासफेमी कानून है.  इस्लाम, क़ुरान, मोहम्मद श्रीमान के खिलाफ बोलने, लिखने पर मृत्यु दंड  है. आप किस मुंह से यह भक्त भक्त चिल्ल पों मचाये रहते हो भाई?

और बाकी धर्म-पंथ को मानने वाले भी भक्त ही होते हैं. ज़्यादातर. कोई नहीं सुन के राज़ी अपने देवी, देवता, गुरु, ग्रंथ के खिलाफ. बचपन से दिमाग में जो जड़ दिया गया सो जड़ दिया गया. माँ ने दूध के साथ धर्म का ज़हर भी पिला दिया, बाप ने चेचक के टीके के साथ मज़हब का टीका भी लगवा दिया ? दादा ने प्यार-प्यार में ज़ेहन में मज़हब की ख़ाज-दाद डाल दी ? नाना ने अक्ल के प्रयोग को ना-ना करना सिखा दिया? बड़ों ने लकड़ी की काठी के घोड़े दौड़ाना तो सिखाया लेकिन अक्ल के घोड़े दौड़ाने पर रोक लगा दी? 

अब सब भक्त हैं, सब तरफ भक्त हैं, कोई छोटा, कोई बड़ा और कोई सबसे बड़ा.

भक्त सिर्फ मोदी के ही नहीं है. भक्ति असल में खून में है लोगों के. आज तो सचिन तेंदुलकर को ही भगवान मानने लगे. अमिताभ बच्चन, रजनी कान्त और पता नहीं किस-किस के मंदिर बन चुके. 

 सो सवाल मोदी-भक्ति नहीं है, सवाल 'भक्ति' है. सवाल यह है कि व्यक्ति अपनी निजता को इतनी आसानी से खोने को उतावला क्यूँ है? 

जवाब है कि इन्सान को आज-तक अपने पैरों पर खड़ा होना ही नहीं आया, बचपन से ही उसके पैर कुछ दशक पहले की चीन की औरतों की तरह लोहे के जूतों में बांध जो दिये। 

खैर, भक्त कैसा भी हो. आज़ाद सोच खिलाफ है. और जो भी ज्ञान-विज्ञान आज तक पैदा हुआ है, वो भक्तों की वजह से पैदा नहीं हुआ है, भक्तों के बावजूद पैदा हुआ है.

भक्त होना सच में ही गलत है लेकिन दूसरों पर ऊँगली उठाने से पहले देख लीजिये चार उंगल आपकी तरफ भी उठती हैं.
राइट?

थैंक्यू.

#भक्त, #गोबरभक्त, #अंधभक्त, #अँडभक्त, #मोदीभक्त,  #भक्तिकाल

Thursday 23 April 2020

फल सब्ज़ी बेचने वालों की ID मांगना सही है क्या?




कल से खबर  तैर रही है  वो यह है कि इंग्लैंड में कोई रेस्टॉरेंट था, जिसके खाने में मानव मल पाया गया और इसे खा कर  कई लोग बीमार हो गए. मूल बात इस रेस्त्रां के मालिक दो मुस्लिम थे, पकड़े गए और इनको सज़ा भी मिली. मैंने  देखा  बीबीसी की साइट पर है. खबर पुराणी है. २०१५ की. अभी क्यों ऊपर आई. सिम्पल चूँकि भारत में कई वीडियो आए जिनमें मुस्लिम सब्ज़ी-फल पर थूकते दिख रहे हैं. कुछ विडियो सच्चे कहे जा रहे हैं, कुछ झूठे.


अब आप इस वीडियो देखें.

देखा आपने?  मुस्लिम सब्ज़ी विक्रेता डेप्युटी CM को ज्ञापन दे रहे हैं कि लोग उनके मुस्लिम होने की वजह से उनसे सब्ज़ी  नहीं खरीद रहे.

मैं  कुछ पॉइंट रख रहा हूँ, आप सोचें, विचारें कि बात कहाँ तक सही है.

जिस ने पैसे खर्च करने है, क्या उसका कानूनी अधिकार नहीं कि वो जाने कि  उसने कहाँ खर्च करने हैं कहाँ नहीं?

क्या उसका अधिकार नहीं कि वो जाने कि उसने किसे बिज़नेस देना है किसे नहीं?

क्या आपको पता नहीं होना चाहिए  कि किस से डील करना है किस से नहीं?


क्या होटल में रुकने से पहले हमारी ID  नहीं मांगी जाती?

मैं प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ. किराए पर अपना घर देने से पहले मालिक सब पूछते हैं, किरायेदार जाट है, सिक्ख है, मुस्लिम है, पुलिस वाला है, वकील है कौन है? फिर तय करते हैं कि  मकान दिखाना भी है कि नहीं. फिर किरायेदार की बाकायदा पुलिस वेरिफिकेशन होती है. यह बहुत पहले नहीं होता था. लेकिन जब कुछ अपराध हुए, आतंकवादी घटनाएं हुईं तो mandatory कर दिया गया.


यहाँ दिल्ली में जो सोसाइटी फ्लैट हैं, वहां हरेक को थोडा न घुसने दिया जाता है अंदर। गेट-कीपर रजिस्टर में हमारी जन्म कुंडली लिखवाता है. फोन नम्बर लिखवाता है. कौन आ रहा  है अंदर। क्या गलत करता है?

तो अब अगर सब्ज़ी-फल बेचने वाले की ID  माँगी जा रही है तो क्या गलत है? वो तो हिन्दू-मुस्लिम एंगल से न भी किया जाए, तो भी करना चाहिए ताकि कल यदि कोई और तरह का क्राइम हो जाए तो पूछ-ताछ करने में मदद मिले। हर रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के पास रेहड़ी पटड़ी वालों का नाम पता ठिकाना होना ही चाहिए। क्या बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार किया जायेगा?

क्या खाने की आइटम पर हरा और लाल निशान नहीं लगाया जाता ताकि खाने वाले को पता रहे कि खाना वेज है या नहीं?  क्या दुनिया भर में हलाल का निशान खाने पर नहीं होता?

क्या मुस्लिम ऐसा मीट खा लेगा जो हलाल न हो? झटका मीट खा लेगा क्या मुस्लिम? नहीं खायेगा। तो जब वो झटका खाने से इनकार करता है तो क्या हम यह कहें कि वो नफरत फैला रहा है? तो  गैर-मुस्लिम को भी हक़ नहीं कि  वो तय कर सके कि उसे किससे  फल-सब्ज़ी-मीट-भोजन खरीदना है नहीं खरीदना?  यह नफरत फैलाना कैसे हो सकता है?

जैसे मांस न खाने वालों के लिए पैक्ड आइटम पर हरा गोल चिन्ह लगा होता है ऐसे ही जिनको हलाल आइटम न प्रयोग करना हो तो उनके लिए भी कोई निशान होना चाहिए, जिससे पता लगे कि आइटम हलाल नहीं है.  इसके लिए तमाम गैर-मुस्लिम समाज को मिल कर प्रयास करना चाहिए

मैं नहीं कह रहा कि आप किस से सब्ज़ी लें न लें. किसे किराए पर घर दें न दें. कौन सी आइटम खाएं न खाएं. वो सब आपका अपना फैसला होना चाहिए. मैं बस आइडेंटिफिकेशन हो न हो इस पर विचार पेश कर रहा हूँ.

बाकी आप मुद्दे के तमाम पहलु कानूनी, सामाजिक, व्यवहारिक  पहलु  सोचें, विचारें. कमेंट करें, अगर विडियो पसंद आया तो LIKE करें और  शेयर करें, अपनी व्यक्तिगत राय के साथ शेयर करें.  और मेरा प्रयास है कि हर विडियो में कुछ विचार करने के लिए दिया जाए. सो मेरी फेसबुक टाइम लाइन पर आते रहिये। बाकी विडियो भी देखते रहिये।

नमस्कार 

Tuesday 21 April 2020

धर्म क्या है




धर्म का हिन्दू-मुसलमान से क्या मतलब? 
धर्म का ईशान-सुलेमान से क्या मतलब?
धर्म का कुरआन -पुराण से क्या मतलब? 

धर्म है विज्ञान ... 
धर्म है प्रेम..... 
धर्म है नृत्य..... 
धर्म है गायन ..... 
धर्म है नदी का बहना.... 
धर्म है बादल का टिप टिप बरसना... 
धर्म है पहाड़ों का  झर-झर झरना.... 
धर्म है बच्चों का हँसना...... 
धर्म है बछिया का टापना..... 
धर्म है प्रेम-रत युगल...... 
धर्म है चिड़िया का कलरव...... 

धर्म है खुद की खुदाई
धर्म है खुद की सिंचाई
धर्म है दूसरे का सुख दुःख समझना..... 
धर्म है दूसरे में खुद को समझना.... 
धर्म है कुदरत से संवाद
धर्म है कायनात को धन्यवाद... 

धर्म का मोहम्मद से, राम से क्या मतलब? 
धर्म का मुर्दा इमारतों, मुर्दा बुतों से क्या मतलब? 

धर्म है अभी.... 
धर्म है यहीं.... 
धर्म है ज़िंदा होना... 
धर्म है सच में जिंदा होना....

धर्म का हिन्दू-मुसलमान से क्या मतलब? 
धर्म का ईशान-सुलेमान से क्या मतलब?
धर्म का कुरआन-पुराण से क्या मतलब?

नमस्कार 

Thursday 16 April 2020

आत्मा क्या है? परमात्मा क्या है? आत्मा परमात्मा में क्या अंतर है? क्या आत्मा परमात्मा एक हैं?

आत्मा का अस्तित्व है क्या कुछ? आत्मा परमात्मा में कोई फर्क है क्या? मेरे ख्याल से नहीं। क्यों कह रहा हूँ मैं ऐसा? यदि आत्मा अपने आप में कुछ भी नहीं तो फिर हम और आप कौन हैं? #आत्मा #परमात्मा

अफगानिस्तान.... गुरुद्वारे पर अटैक..कौन ज़िम्मेदार?

अफगानिस्तान.... गुरुद्वारे पर अटैक... कोइ तीस  सिख मार दिए गए..     

कौन है ज़िम्मेदार.    कोई इस्लामिक संग़ठन ? 

मैं आपको बिना किसी लाग-लपेट के कहना चाहता हूँ कोई इस्लामिक संगठन ज़िम्मेदार नहीं है.  सीधा-सीधा इस्लाम ज़िम्मेदार है .     

ये जो अटैक हुआ गुरूद्वारे पर, ये कोई पहला  है? ऐसे कई अटैक पहले किये जा चुके हैं. फिर भी बहुत कम लोगों की हिम्मत होती है  कि  साफ़-साफ़ इस्लाम को ज़िम्मेदार ठहरा सकें। इस्लाम में बाकी किसी भी तरह की आइडियोलॉजी के लिए कोई जगह ही नहीं है. अल्लाह-हू-अकबर. अल्लाह सबसे ऊपर है. और वो अल्लाह वही नहीं है, जिसे आप भगवान या इश्वर कहते हैं. वो अल्लाह बिलकुल अलग है. उस अल्लाह के पैगम्बर हैं, श्रीमान मोहम्मद. और उनके ज़रिये अल्लाह ने अपना पैगाम भेजा है, जिसे क़ुरआन कहा जाता है. जो यह सब मानता है, वो मुसलमान है, जो नहीं मानता, वो काफिर है और काफिर के खिलाफ है क़ुरआन. एक से ज़्यादा आयते हैं क़ुरआन में काफिर के खिलाफ. इसीलिए दुनिया भर में मुस्लिम अटैक करते फिरते हैं. 

इनको सारी दुनिया में इस्लाम फैलाना है, चाहे जैसे मर्ज़ी फैले. सीधी-सीधी बात है. 

एक्शन बाद में होता है, पहले विचार आता है.  फल-फूल बाद में आते हैं, पहले ज़मीन में बीज पड़ते हैं. बिल्डिंग  बाद में बनती है, पहले नक्शा तैयार होता है. ये विचार, ये बीज, ये नक्शा क़ुरआन से आता है. आपको समझना है, गूगल कीजिये सब मिल जायेगा. मिनटों का काम है. 

अगर इस दुनिया को इस तरह के अटैक से आज़ाद करना है तो क़ुरआन को पढ़ें, क़ुरआन के एक शब्द को वैचारिक स्तर पर चैलेंज करें.  गाली-गलौच न करें. तर्क दें. फैक्ट्स दें. आंकड़े दें. 

यह सब भी करना  इस्लामिक मुल्कों में संभव नहीं है. पाकिस्तान में ही ब्लासफेमी कानून है. आप इस्लाम के खिलाफ, क़ुरान के खिलाफ,  श्रीमान मोहम्मद के खिलाफ बोल तक नहीं सकते. 

भारत जैसे मुल्क में यह सब फिर संभव है. लेकिन यहाँ भी ग्रुप बन गए हैं. कुछ लोग दिन-रात मुस्लिम के खिलाफ लिखते-बोलते हैं, कुछ सिर्फ हिन्दू के खिलाफ. Marvel  Vs  DC. 

मेरा संदेश यह है कि यदि आपको दुनिया को बेहतर बनाना है तो आपको क़ुरआन को तर्क पे लाना होगा लेकिन पुराण को भी तर्क पे लाना होगा और गुरूद्वारे के केंद्र बिंदु पर रखे  ग्रंथ को भी। 

क़ुरआन को, इस्लाम को चैलेंज करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसलिये है चूँकि इस्लाम आक्रामक है. अग्रेसिव है. इस्लाम में वैचारिक आज़ादी की कोई गुंजाइश नहीं है.  बाकी समाजों में फिर क्रिटिकल थिंकिंग पैदा हो सकती है. लेकिन इस्लाम क्रिटिकल थिंकिंग की कत्लगाह है. बाकी समाज में फिर खिड़की, रोशन दान हैं, इस्लाम एक बंद घुटा हुआ सा अँधेरा  कमरा है. बाकी समाजों में सामजिक व्यवस्था के लिए कोई बहुत जिद्द नहीं है कि  किसी ख़ास धर्म-ग्रंथ से ही बंधी होनी चाहिए, लेकिन इस्लाम में ऐसा ही है, इसलिए मुस्लिम अपने हिसाब से कानून तक बनवा लेते हैं. भारत में ही मुस्लिम पर्सनल लॉ अलग हैं.  मुस्लिम जहाँ संख्या में थोड़े ज़्यादा होते हैं तो उस मुल्क के कायदा-कानून बदलने के लिए जलसे जुलुस करने लगते हैं. 

इस्लाम को चैलेंज करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसलिए है चूँकि इस्लाम की वजह से ही रोज़ दुनिया के अलग-अलग कोने में गैर-मुस्लिम पर इस तरह के अटैक होते रहते हैं, जैसा ये पीछे गुरूद्वारे पर हुआ.   

मेरा संदेश सीधा-सीधा यह है कि सब तथाकथित धर्म ज़हर हैं, लेकिन इस्लाम पोटासियम साइनाइड है. 

तो हल क्या है? हल सीधा है.  क्रिटिकल थिंकिंग का प्रसार. क्रिटिकल  थिंकिंग एंटी-डॉट  है. एंटी-डॉट फैलाएं. 


शुक्रिया  ...   धन्यवाद..   थैंक्यू

Wednesday 15 April 2020

लॉकडाउन बढ़ते ही मुंबई बांद्रा में इकट्ठे हुये मज़दूर. आख़िर प्र्वासी मज़दूर जाए तो जाए कहाँ?

सुबह मंगलवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की और शाम को बांद्रा में प्रवासी मज़दूरों की भीड़ इकट्ठा हो गई. कुछ दिन पहले इसी तरह के सीन दिल्ली के आनंद विहार में देखने को मिले थे. कोरोना वायरस के दौर में ये भीड़ कितनी ख़तरनाक हो सकती है, देखने का है। मज़दूर जाए तो जाए कहाँ? कोरोना से मरे या फिर भूख से, बस यही सवाल है? लॉक डाउन ज़रूरी है , बहुत ज़रूरी है. ठीक है सरकार जी, रखिये, रखिये,   हमें क्या है? साल भर रखिये,
लेकिन  हमें खाना-दाना देते रहिये, 
दवा दारु का खर्च देते रखिये, 
हमारे बच्चों की फीस देते रखिये. 
बिजली पानी के बिल, फोन इंटरनेट का बिल देते रखिये. 
हमारे तमाम खर्चे भरते रहिये  बस. हम आम लोग हैं बई. 
अमीर का क्या है? उसे दस साल लॉक-डाउन में रोक लो.

ठीक है सरकार जी, तो मान रहे हैं न आप?

ठीक है ओये  सरकार जी मान जाएंगी . अब तुम मत इकट्ठ  जमा करना न आनदं  विहार, दिल्ली में और न बांद्रा मुंबई में. और न ही कहीं और।  
ठीक? राइट? 


जी सरकार जी, आम आदमी राइट बोल रिया है।  सुन लीजिये बस.

Thursday 9 April 2020

भक्ति

भक्ति अगर गलत है तो मुस्लिम होना भी गलत है। चूंकि मुस्लिम होना ही कट्टर होना है सो उसके मुक़ाबले में भक्त हो गए हिन्दू लोग। बिना क्रिया समझे आप प्र्तिक्रिया नहीं समझ सकतीं। कल कोई अफगानिस्तान में मुस्लिम के खिलाफ खड़ा हो जाए अगर तो आप को वो भी भक्ति लगेगी लेकिन आप समझेंगे नहीं कि वो भक्ति क्यों पैदा हुई? नहीं होनी चाहिए, लेकिन मोहम्मद के प्रति भी नहीं होनी चाहिए।

Wednesday 1 April 2020

कोरोना है करुणा ..... सामाजिक विकृतियों का इलाज है



कोरोना है करुणा। सामाजिक विकृतियों का इलाज है। Corona is a Bliss. Corona is Cure of social Disbalance......

लॉकडाउन (Lockdown/ Quarantine) तो ठीक है. चला लीजिये छह महीने. लेकिन  गरीब और मध्यम वर्गीय तबके का क्या होगा? उनको खाना-दाना कौन देगा?  उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी? वीडियो देखिये और समझिये वो, जो कोई नहीं बोल रहा, हल जिसे कोई नहीं सुझा रहा.   

प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन के आदेश  दिया. लेकिन उस आदेश के साथ उनको बहुत कुछ और आदेश नहीं दिए जो की उनको देने चाहिए थे. 

मैं आपको एक-एक कर के  बता रहा हूँ और वो आदेश उनको क्यों देने चाहिए  थे यह भी बताऊंगा. 

कोरोना का शोर शराबा  जब तक है तब तक यदि किसी के घर या दूकान का किराया पंद्रह  हज़ार रुपये तक है तो उसे वो किराया देने से छूट  मिलनी चाहिए थी. 

बस ट्रैन का किराया माफ़ करना चाहिए था. 

स्कूल कॉलेज की फीस माफ़ होनी चाहियें. 

जितना आपका एवरेज बिल आता है, कम से कम उतना बिजली पानी का बिल माफ़ होना चाहिए.  

जिस किसी ने कैसे भी पैसा उधार लिया हो, चाहे सोना रखकर चाहे घर रख कर, अगर उसका ब्याज पंद्रह  हज़ार रुपये  माह तक का है तो वो ब्याज माफ़ होना चाहिए  था. 

गाड़ी, घर की EMI  पोस्टपोन कर देनी चाहिए  थी, जब तक कोरोना का हो हल्ला शांत नहीं होता. . 
और 
जिन लोगों ने व्यक्तिगत  प्रयोग हेतु कार रखी हैं, उनको छोड़ कर बाकी सब को प्रति व्यक्ति गृह खर्चे के लिए कम से कम सात हज़ार रुपये  महीना देना  चाहिए थे. 

यह सब मैं सिर्फ उनके लिए कह रहा हूँ जिनकी आमदनी इस लॉक-डाउन में लॉक हो गयी है. 

जिनको इस समय में भी कहीं से सैलरी मिल रही है या ब्याज आ रहा है या फिर कोई और आमदनी आ रही है, उनके लिए यह सब बिलकुल नहीं दिया जाना चाहिए. 

और यह सब उस क्ष्रेणी के लिए तो बिलकुल नहीं है जो अमीर है, सुपर रिच है. न...न. वो तो यह सब खर्चा वहां करेंगे. 


सीधा सा सवाल है कि  यह सब देगा कौन? तो यही अमीर वर्ग देगा. 

जो रिच है, जो सुपर रिच है उससे छीना  जायेगा. आप कहेंगे कि  यह कैसे संभव है?

तो मेरा जवाब है कि  यह सब बहुत आसानी से संभव है. सिर्फ आपको समझ आ जाये कि  यह संभव है तो यह संभव है. 

मैं एक  मिसाल से समझाता हूँ. 
सोना ज़्यादा कीमती है या लोहा? 
सोना. जवाब होगा. 
लेकिन काम क्या ज़्यादा आता है. लोहा. 
तो फिर जो चीज़ कुछ ख़ास काम ही नहीं आती उसे क्यों इतना कीमती माना है?
वो सिर्फ इसलिए चूँकि हमने ऐसा माना है.  
यदि इंसान सोने को कीमती मानना छोड़ दे तो फिर सोना कीमती रहेगा क्या लोहे के मुकाबले में? 
नहीं न?

तो यह है ताकत मानने की. 

तुमने मान रखा है कि  एक आदमी अमीर रखा जा सकता है, बहुत अमीर और दूजे को भिखारी रखा जा सकता है. 

तुमने मान रखा है बस. वरना  कुदरत थोड़ा न किसी को अमीर गरीब पैदा करती है. 

कोई बच्चा गरीब पैदा नहीं होता. सब एक जैसे  पैदा होते हैं. 
सबको दो हाथ, दो पैर, दो कान मिलते हैं.  

ठीक है दो कानों के बीच दिमाग सबके अलग हैं लेकिन यह भी तो समझिये कि  जो भी इस धरती पर आता है उसे खाने, पीने, रहने का हक़ है.
कौन जानवर किराया देता है इंसान के अलावा? अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम. 

मतलब पागलों की तरह कौन चाकरी करता है? सिर्फ काम ही काम कौन करता है? सुबह से शाम तक काम ही काम कौन करता है?

ऐसा सिर्फ इडियट  इंसान करता है. 

असल में जो कुछ भी जीवन के लिए बहुत ज़रूरी हैं, वो सब लगभग मुफ्त होना चाहिए या फिर बहुत थोड़े प्रयास से मिलना चाहिए. यह सब संभव है. बिलकुल संभव है.  

हमने कानून बनाया न कि कोई कितना ही अमीर हो उसे एक से ज़्यादा बीवी या  एक से ज़्यादा पति नहीं मिल सकते. बनाया न कानून? 

इसी तरह से हम कानून बना सकते हैं कि  एक सीमा के बाद पैसा पब्लिक डोमेन में आ जायेगा, चाहे किसी का भी हो. 

एस करते ही आपको सुपर रिच नहीं दिखेंगे. और आपको अथाह गरीब नहीं दिखेंगे. 

मैं हैरान होता हूँ कि गरीबी रेखा से नीचे भी कोई होता है. तो फिर वो होता ही क्यों है भाई?
कत्ल कर दो न उसे. 

यह तुम्हे अमानवीय लगता है?
 तो फिर उसे इत्ता गरीब क्यों रखा है?

तो यह मौका है अमीर, बेइंतेहा अमीर से पैसा छीनने का और ज़रूरतमंद को देने का. 

मौका है और दस्तूर न भी तो बनाया जा सकता है  ......   

यह मौका है यह सोचने का कि  क्या हमने जो संस्कृति बनाई है, वो संस्कृति है?

 तीन शब्द  हैं. प्रकृति..संस्कृति...विकृति

इंसान को फ्रीडम है. 

वो प्रकृति से ऊपर उठ सकता है. वो प्रकृति से नीचे भी गिर सकता है. 

ऊपर उठा तो संस्कृति... 
नीच गिरा तो विकृति. 

तो जो समाज बनाया है हमने, जिसमें गरीब बड़े शहर छोड़ हज़ारों किलोमीटर पैदल ही चल पड़े, भूखे-प्यासे चल पड़े हों, इस समाज को संस्कृति कह सकते हैं? 

यह सिर्फ और सिर्फ विकृति है. 

संस्कृति तो ऐसी कृति को कहते हैं जिसमें कुछ बैलेंस हो, कुछ सौंदर्य हो. कुछ समन्वयता हो. 

जो कृति टेडी-मेढ़ी हो उसे संस्कृति कैसे कहेंगे? 

जिस संस्कृति में कोई बहुत अमीर और कोई बहुत बहुत गरीब हो, उसे संस्कृति कैसे कहेंगे?

यह मौका है कि समझने का कि समाज के बड़े हिस्से को अथाह गरीब रखने का दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़  सकता है. 
यह मौका है गहन अध्ययन करने का, ब्रेन स्टॉर्मिंग का कि  गरीबी अमीरी के बड़े फासले को काम कैसे किया जा सकता है?
यह मौका है यह सोचने का कि अथाह अमीरी को, अथाह गरीबी को  कैसे सीमित किया जाए.
यह मौका है यह सोचने का कि अथाह आबादी को कैसे सीमित किया जाए. 

यह मौका है सोचने का कि सामजिक फासलों  कैसे कम किया जाये?

वकती दिक्क्तें, इमीडियेट खड़ी समस्याएं आपको मौका दे रही हैं, सदा सदा से मौजूद समस्यायों को हल करने का. 
कोरोना ने इंसान के  दूषित किये नदी नाले, हवा पानी ही साफ़ नहीं किया, समाजिक डिस-बैलेंस, विकृत समाज को भी सही  करने का मौका दिया है.  

आप भी सोच कर देखिये. 

वीडियो देखने के धन्यवाद, जहा भी देख रहे हों, जिस भी प्लाटफॉर्म पर कमेंट ज़रूर कीजिये शेयर ज़रूर कीजिये और अपनी राय के साथ शेयर  कीजिये.,

नमस्कार

Tuesday 24 March 2020

कोरोना से मानव को भविष्य के लिए क्या सीखना चाहिए? कोरोना- करुणा अवतार॥


कोरोना .... देर सबेर चल ही जायेगा. लेकिन इस से मानव को क्या सीखना है?

पहली बात.      तुम्हारे बनाये हुए राजनितिक अखाड़े जिन्हे तुम बड़े फख्र से मुल्क कहते हो. वतन कहते हो. बकवास है. और वतनपरस्ती को बहुत ही इज़्ज़त देते हो, राष्ट्रवाद को पूजते हो, बकवास है.

देखा तुमने एक नन्हे वायरस ने सारी दुनिया को एक धरातल पर ला पटका. तुम्हें लगता है कि तुम्हारा मुल्क कोई अलग ही दुनिया है तो तुम मूर्ख हो.

कभी चादर बिछाई है बेड  पर. एक कोना खींचोगे तो  खिंच जायेगा. ठीक वैसे ही है दुनिया. वायरस चीन में था तो क्या हुआ, पूरी दुनिया हो गयी न आड़ी-टेढ़ी? 

तो आज समझने की ज़रुरत है की भारत माता से बड़ी धरती माता है. चीन माता, रूस माता से बड़ी धरती माता है. आज समस्या जो लोकल नज़र आती हैं, वो लोकल नहीं हैं, ग्लोबल हैं. उनके हल भी ग्लोबल ही होने चाहियें.

जैसे आज पूरी दुनिया लगी है कोरोना से लड़ने. ठीक वैसे. स्वास्थ्य , शिक्षा, वैज्ञानिकता सारी दुनिया में फैलनी चाहिए, ऐसा नहीं चलेगा कि  कहीं बहुत स्वस्थ, साफ़-सुथरे  लोग हों और कहीं बदबू-गंदगी से बिदबिदाते हुए घर, गलियां, बस्तियां हों.  कहीं बहुत बहुत पढ़े-लिखे लोग हों  और कहीं निपट अनपढ़  लोग. ऐसा कैसे चलेगा?

पूरी दुनिया को खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा. आपने देखा लोग गन उठा के बेक़सूर लोगों को भून देते हैं. बम बांध कर खुद भी मरते हैं और कई बेक़सूर लोगों को अपने साथ ले मरते हैं.

क्यों हैं ऐसा?

चूँकि ऐसे लोगों को  कहीं यह सब करना सिखाया गया है. अब कौन इन्हे सिखाएगा कि  यह नहीं करना है?

कल कोई मूर्ख एटम बम फोड़ देगा. कौन है ज़िम्मेदार?

पूरी दुनिया की ज़िम्मेदारी है.

आपको पता है, दिल्ली में हर साल पड़ोस के राज्यों की किसानी की वजह से एयर-पोलुशन बढ़ जाता है.

मतलब यह है भाई कि  हवा पानी  कोई एक राज्य, कोई एक मुल्क बरबाद करेगा और नतीजा पड़ोस को,  पड़ोसी मुल्क को भुगतना पडेगा, सारी दुनिया को भुगतना पड़ सकता है.

सो पूरी दुनिया को एक प्लेटफार्म पर आने की बहुत ज़रूरत है.

आबादी, कितनी होनी चाहिए, शिक्षा कैसी होनी चाहिए, स्वास्थ्य  प्रबंधन कैसा होना चाहिए, न्याय व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, सफाई व्यवस्था क्या हो .... यह सब अब पूरी दुनिया को कलेक्टिवेली देखनी होगी. ये सब अब ग्लोबल इशू हैं. सारी दुनिया को मिल के संभालने होंगे.

कोरोना के मामले में देखा आपने अगर एक मुल्क की भी मेडिकल व्यवस्था कमज़ोर है तो उसका नुक्सान बाकी दुनिया को भुगतना पड़  सकता है. एक कोई अरब का आदमी अमेरिका जाके बम फोड़ आता है. चीन का वायरस दुनिया बर्बाद कर देता है.

यह राइट टाइम है, दुनिया समझे कि दुनिया में एक वर्ल्ड आर्डर लाना बहुत ज़रूरी है.

ठीक वैसे ही जैसे भारत के सब राज्य एक  संविधान के तले हैं,  ऐसे ही पूरी दुनिया का एक "विश्व संविधान" के तले होना ज़रूरी है.


दूसरी बात........ आपने देखा लगभग सभी धार्मिक, मज़हबी स्थल बंद कर दिए गए. क्यों भई? तुम्हारे अल्लाह, गुरु, भगवान, गॉड की मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता,  सब करने-कराने वाला तो वही है.  सब दुःख-तकलीफ हरने वाला वही है न?

ॐ जय जगदीश हरे, दुःख तकलीफ हरे.

अल्लाह-ताला, लगा दे हर परेशानी पर ताला.

जीसस, इश्वर के पुत्र. ये तो हमारे लिए आपके लिए आज भी सूली पर लटके हैं.

नहीं ?

तो फिर आज क्यों बंद कर रहे हो इनकी मुकद्द्स जगहें?


चूँकि तुम्हे पता है कोई मदद नहीं आने वाली वहां से.  मदद अगर आएगी तो अस्पताल से आएगी. डॉक्टर से आएगी. वैज्ञानिक से आएगी.

तो तुम्हें क्या सबक लेना चाहिए?

समझ जाओ भाई, ये जो दिन रात तुम मत्थे रगड़ते फिरते हो, बेकार है. ये जो तुमने अपना सारा जीवन, जन्म से लेकर मरण तक मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारे के गिर्द लपेट रखा है बेकार है. तुम्हें मौलवी, पंडित की नहीं सुननी, तुम्हे वैज्ञानिक की सुननी है. वैज्ञानिक कोई लेबोरेटरी में परख नली पकड़े बैठा व्यक्ति ही नहीं होता, समाज शास्त्री, सोशल साइंटिस्ट भी वैज्ञानिक  भी होता है. जो तुम्हें बताता है कब तुम्हारा समाज किस ढंग से चलना चाहिए. लेकिन ऐसे में तुम उसकी न सुन कर अपने धार्मिक ग्रंथ निकाल लेते हो. इडियट हो.

खैर, यह मौका है सीखो. सीखो, अगर सीख सकते  हो तो सीखो. इंसान बनो. बिना ठप्पे के, बिना ब्रांड के, बिना लेबल के इंसान बनो. बाकी अगर तुम हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ही बने रहना चाहते हो तो तुम्हारी मर्ज़ी.


तीसरी बात ...     विज्ञान के प्रयोग में भी वैज्ञानिकता होनी चाहिए.

मिसाल से समझिये, विज्ञान ने प्लास्टिक पैदा किया तो उसका मतलब यह नहीं कि  हर तरफ प्लास्टिक ही प्लास्टिक कर दें. विज्ञान ने एटम बम बना दिए तो उसका मतलब यह नहीं कि  हर मुल्क एटम बनाने की दौड़ में शामिल हो जाए. यह समझ है वैज्ञानिकता.

विज्ञान की पैदा की हर चीज़ का उत्पादन नहीं करना.  विज्ञान की पैदा की हर चीज़ प्रयोग नहीं करनी. विज्ञान रोज़ नई चीज़ें ईजाद करता है.  लेकिन हर चीज़ इंसानी जीवन में उतारी ही जाए, यह ज़रूरी नहीं है. यह समझ वैज्ञानिकता है.

आज यह देखने का है कि कहीं इंसानी ईजाद धरती ही न खा जाए. मोटर वाहन, हवाई जहाज, समंदरी जहाज, क्या ये सब जो धरती की छाती रौंद रहे हैं, धरती को बर्दाश्त हैं क्या? धुआं उगलती फैक्टरियां कुदरत को बर्दाश्त हैं क्या?

अपने ड्राइंग रूम  में आप गंदे नालों की, फैक्टरियों की तस्वीरें लगाते हैं क्या? नहीं .. आप साफ़-सुथरे नदी-तालाब, फूल, बाग़-बगीचों की तस्वीर लगाते हैं.

तो सोचिये धरती माता को अपने घर में क्या पसंद होगा? उसे भी फैक्ट्री  पसंद नहीं है.  ज़हरीला धुआं उगलती, ज़हरीले केमिकल उगलती फैक्ट्री उसे भी नहीं पसंद.

तो आज पूरी दुनिया को यह समझना है कि इंसानी  जीवन में विज्ञान की खोज और फिर उस खोज का  प्रयोग ऐसा न हो कि  प्रकृति को  विकृति कर दे. तभी इंसानी सभ्यता  संस्कृति कही जा सकती है.

आज सारी दुनिया की चिंता बस एक है कि  किसी तरह से कोरोना  छूट जाए. लेकिन यह तीन बिंदु जो मैंने दिए इन  पर पूरी दुनिया को सोचने-समझने की ज़रूरत है.  राम रावण युद्ध ध्यान कीजिये. आप खरदूषण मार देंगे तो मेघनाद आ जायेगा. मेघनाद मार देंगे तो कुम्भकरण  आ जायेगा. मिसाल के लिए समझाया है.  मतलब  कि कोरोना  से पिंड छुड़ा लेंगे और सुधरेंगे नहीं तो तबाही की कोई और वजह आ जाएगी, उससे छुड़वा लेंगे तो उससे भी बड़ी कोई और वजह आ जाएगी.  कब तक बचोगे ऐसे?  नहीं बदलोगे  तो कुदरत बदला लेगी, कुदरत सब बदल देगी. हो सकता है उसे इंसान का सफाया ही करना पड़े.

मैंने कहीं पढ़ा है. "Human Beings are the virus for mother Earth and Corona is the Vaccine." इंसान है वायरस और कोरोना है वैक्सीन. वैक्सीन जो कुदरत ने अपने लिए तैयार की है. ताकि इंसान से पिंड  छुड़ा सके.

उम्मीद है समझोगे.

जनाब इकबाल का शेर पेश है, थोड़ी तबदीली के  साथ

"दुनिया की फ़िक्र कर ऐ नादाँ, मुसीबत आने वाली है
तेरी  बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में

न समझोगे तो मिट जाओगे ए  दुनिया वालों,
तुम्हारी दास्ताँ  भी न होगी दास्तानों में."

आप लगे रहते हैं भविष्य पीढ़ी का जीवन सुधारने में. और पैसा कमा लूँ, और कमा लूँ . गुड. आपको पता है अम्बानी की अगली पीढ़ी अनिल अम्बानी दीवालिया हो चूका है. नेहरू, इंदिरा की अगली पीढ़ी राहुल गांधी तक आते आते उनकी राजनीतिक  विरासत लगभग खतम हो चुकी है.

देखने के लिए थैंक्यू, शुक्रिया, धन्यवाद. कमेंट  करके अपने विचार ज़रूर लिखयेगा. मिल जुल कर काम आगे बढ़ाएंगे. और बाकी कोरोना पर यह चौथा वीडियो है, बाकी भी मेरी फेसबुक टाइम लाइन पर मिल  जाएंगे. सबके लिए खुला अकाउंट है. और हाँ, शेयर ज़रूर कीजियेगा, तभी तो बात आगे जायेगी, बात आगे जायेगी तभी तो बात बनेगी.

नमस्कार.

Sunday 26 January 2020

दिल्ली वालो मत दो वोट केजरीवाल को

मैसेज है मेरा दिल्ली वालों को.  मत दो वोट केजरीवाल  को. 

निश्चित ही सवाल पूछेंगे आप कि  क्यों नहीं देना चाहिए वोट केजरीवाल को उसने बहुत कुछ सस्ता किया और बहुत फ्री किया.  फिर क्यों कह रहा हूँ मैं कि उसे वोट नहीं देना चाहिए?

जवाब लीजिये. 

पहला पॉइंट  है. केजरीवाल  इस्लामिक थ्रेट, जिसे लगभग सारी  गैर-इस्लामिक दुनिया समझ रही है, महसूस कर रही है, उसे नहीं समझता. उसे लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम कि बात करना फ़िज़ूल है. गलत है वो. सौ प्रतिशत गलत है. मूर्ख है वो.

मुस्लिम नारे लगाते फिरते हैं.
"तेरा मेरा रिश्ता क्या? ला-इलाहा-लिलल्लाह".
"रोहिंग्या से रिश्ता क्या? ला-इलाहा-लिलल्लाह"


कलमा जानते हैं क्या है?
"ला-इलाहा-लिलल्लाह. मोहम्मदुर्रसूल अल्लाह."

भगवान सिर्फ एक है और वो है अल्लाह. और Muhammad is the messenger of Allah.  बात खतम. और क़ुरान है वो मैसेज जो अल्लाह ने भेजा. जो माने वो ईमानदार. जो न माने बे-ईमान. काफिर.

क़ुरआन पढ़िए सब समझ आ जायेगा. गूगल पर है. अंग्रेजी तरजुमे के साथ. भरी पड़ी  हैं आयतें गैर-मुस्लिम के खिलाफ.  और उन आयतों का नतीजा पूरी  दुनिया भुगत  रही है.  अगर ऐसा नहीं होता तो खालसा का सृजन ही नहीं होता? अगर ऐसा न होता तो चीन में इस्लाम पर अनेकों पाबंदियां न होती. अगर ऐसा न होता तो सन   सैतालीस में मुल्क न बंटता. लाखों लोग न मारे जाते. कश्मीर से हिन्दू न भगाये जाते. 

लेकिन  केजरीवाल कहता है कि  हिन्दू-मुस्लिम कुछ  नहीं होता. धर्म की राजनीति नहीं करनी चाहिए. ठीक बात है. धर्म की राजनीति बिलकुल नहीं करनी चाहिए. फिर क्यों तीर्थ-यात्रा करवा रहे हो भाई? क्यों मुफ्त तीर्थ यात्रा करवा रहे हो?


दिल्ली वालो, आज सस्ते बिजली पानी पर अगर वोट देते हो तो याद रखो कि  महाराणा  प्रताप जंगल जंगल भटके लेकिन लड़ते रहे. घास की रोटी खाते रहे लेकिन लड़ते रहे. गुरु गोबिंद ने, उनके सारे परिवार ने  और अनेक सिंहों ने शहीदियाँ दी, किसलिए? कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी. न. बस आइडियोलॉजी की लड़ाई थी.  

तुम्हें क्या लगता है कि मुस्लिम नहीं समझता आइडियोलॉजी की लड़ाई? आप जितनी मर्ज़ी सुविधा दे दो, सहूलियत बढ़ा दो, वो फिर भी गैर-मुस्लिम सरकार से अंदर-अंदर लड़ता रहेगा. उसे अल्लाह का निज़ाम स्थापित करना होता है. 

आइडियोलॉजी की लड़ाई में भाजपा का साथ दो दिल्ली वालो. भाजपा हिंदुत्व की बात करती है. हिंदुत्व अपने आप में कोई धर्म नहीं है. इसमें  कुछ भी लगा-बंधा नहीं है. आप आस्तिक-नास्तिक, कुछ भी हो सकते हैं. आप राम कृष्ण की आलोचना कर सकते हैं. आज भी राम ने सीता छोड़ी जंगल में तो लोग सवाल उठाते हैं. यहाँ कोई ईश-निंदा blasphemy जैसा कानून नहीं है कि  आपने राम-कृष्ण के खिलाफ कुछ लिख दिया कह दिया तो फांसी चढ़ा दिए जाओगे. यहाँ सोच पर पहरे नहीं बिठाये गए. यहाँ बहुत सी विरोधी विचार-धारा  वाले लोग रहते हैं. और ऐसे ही समाज में सोच-विचार पैदा हो सकता है. जहाँ आपकी सोच को एक किताब के दायरे में बांध  दिया जाए वहां आप सिर्फ गुलाम हो  जाएंगे.   

कौन सी आइडियोलॉजी को चुनना है आपने? यदि आपको ऐसी सोच वाला  समाज चाहिए जहाँ वैचारिक गुलामी हो तो आप वोट दीजिये केजरीवाल को, हिन्दू मुस्लिम को कोई मुद्दा ही न समझने वालों को अन्यथा आपके पास भाजपा का विकल्प है. उसे वोट कीजिये.    

 दूसरा  पॉइंट  ...  चीज़ें सस्ती होनी चाहिए.... मुफ्त भी होनी चाहिए लेकिन उसका यह तरीका नहीं है. इंसान का क्या है. उसे सब कुछ चाहिए. सबको सब कुछ चाहिए. मुफ्त चाहिए. और यह काफी कुछ संभव है. लेकिन वो तभी संभव है जब इंसान  वैज्ञानिकों से, समाज-वैज्ञानिकों (सोशल साइंटिस्ट) से अपनी समाजिक और व्यक्तिगत मान्यताएं लें न कि किन्ही आसमानी कही जाने वाली किताबों से. इस धरती पर इंसान का वज़न, उसी मूर्खताओं का वज़न पूरे प्लेनेट को खतरे में डाले हुए हैं, अब प्लेनेट तभी बच सकता है यदि इंसान विज्ञान  के मुताबिक जीने को राज़ी हो, समाज विज्ञान के मुताबिक जीने को राज़ी हो. और  जो इंसान विज्ञान के साथ नहीं चलना चाहता, जो इंसान अपनी तथा-कथित धार्मिक-मज़हबी किताबों से, इलाही किताबों से टस से मस  नहीं होना चाहता, उसको कुछ मुफ्त नहीं मिलना चाहिए. कुछ सस्ता नहीं मिलना चाहिए. यह कोई तरीका नहीं कि मूर्ख भीड़ पैदा किये जाओ. सब कुछ मुफ्त पाओ और अँधा-धुंध इस धरती को निचोड़ दो. न यह कोई तरीका नहीं  है. 

केजरीवाल उथला व्यक्ति है. यह "मुफ्त मुफ्त स्कीमें " गहरी समस्याओं के उथले हल हैं.   

जैसे उसकी ओड-इवन स्कीम. दिल्ली में पॉलुशन  है तो वो ओड इवन से थोड़ा न हल होगा?  कुत्ते ज़्यादा होते हैं तो क्या करते हो? नसबंदी. इंसान ज़्यादा न हों तो क्या करते हो? नसबंदी. कार-स्कूटर-ट्रक  ज़्यादा हों तो क्या करना चाहिए. गाड़ी बंदी. नयी मोटर व्हीकल पर पाबंदी. यह होते हैं हल. अगर है हिम्मत तो टकराओ  समस्या से सीधा.   यह उथले हल मत दो. 

तीसरा  पॉइंट   ... साढ़े चार साल केजरीवाल कहता रहा कि  भाजपा उसे काम नहीं करने दे रही और आखिरी छह महीने में, जब चुनाव करीब आ गए तो भाजपा ने उसे काम करने दिया? किसलिए? ताकि वोट केजरीवाल की तरफ खिसक जाए. इतनी मूर्ख है न भाजपा? वैरी गुड. किसे मूर्ख समझता है केजरीवाल? सब बकवास था. केजरीवाल खुद निकम्मा था. न-तज़ुर्बेकार था. अन्यथा जो नियामतें-रिआयतें वो चुनाव के ठीक पहले दे रहा था, वो पांच साल पहले से देना शुरू कर सकता था. मूर्ख बना रहा है जनता को, अब जनता को चाहिए  उसे मूर्ख बनाये. रिआयतें जो दीं, ले भी लीं तो भी वोट भाजपा को दे. केजरीवाल तो खुद कहता था कि  जो भी तुम्हार वोट खरीदने आये उससे पैसे ले लो, मन मत करो  लेकिन वोट उसे मत दो. अब केजरीवाल तुम्हारा वोट खरीदने आया है. तुम्हें मुफ्त की चीज़ें देकर  तुम्हारा वोट खरीदने आया है, उसे वोट मत देना. वो तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी समाजिक मान्यतों की लड़ाई लड़ने नहीं आया,  उसे वोट मत देना. 

चौथा  पॉइंट ...  जिनको  केजरीवाल बहुत पढ़ा-लिख, बहुत समझदार लगता है, बता दूँ वो जब नया-नया आया  था  तो मुद्दा एक ही था लोकपाल. लोकपाल. बड़ी धीर-गंभीर शक्ल बना कर लोकपाल को प्रायोजित करते थे श्रीमान. सुना आपने दुबारा लोकपाल उसके मुंह से? हो गया करप्शन खत्म दिल्ली में? असल बात यह है कि समाज में न तो भ्र्ष्टाचार  कोई एक मात्र  मुद्दा है और न ही लोकपाल कोई एक रामबाण समाधान. वो बात ही उथली थी. उथला आदमी. उथली बात.  

पांचवा पॉइंट   ... जब वो आया  था तो उसके साथ बहुत गण्य-मान्य लोग थे. अन्ना  हज़ारे. किरण बेदी. कुमार बिस्वास. प्रशांत भूषण. योगेन्द्र यादव. कहाँ गए वो लोग? शुरू में ये सब लोग साथ थे केजरीवाल के. क्यों अलग-थलग हो गए ये लोग? चूँकि यह श्रीमान उनको साथ लेकर चल ही नहीं पाए. कोई एक-आध बंदा गया होता तो मैं इस मुद्दे को तूल नहीं देता, लेकिन इतने सारे  लोग छोड़-छोड़, प्रमुख लोग साथ छोड़ जाएं तो  ज़रूर कोई मसला है. और मसला यह है कि केजरीवाल को लोगों को अपने साथ लेकर चलना ही नहीं आता. जो चंद लोगों को अपने साथ नहीं लेकर चल पाया, वो इस भारत को, जहाँ रंग-बिरंगे लोग हैं, एक दम  भिन्न-भिन्न मान्यताओं के लोग हैं, विपरीत मान्यताओं  के लोग हैं,  साथ लेकर चल पायेगा? कदापि नहीं. उसे वोट मत देना. 

और आखिरी में बता दूँ तुषार कॉस्मिक नाम है मेरा. गूगल करेंगे मिल जाएगा. मैं कोई भाजपा का बंदा नहीं और न ही मोदी भक्त हूँ और न आरएसएस का स्वयं सेवक. मैं  स्वतंत्र हूँ. आलोचक हूँ. मैं तो इस लोकतंत्र से भी आगे के तंत्र की रूप-रेखा दे चूका हूँ. मेरे ब्लॉग है. पढ़ सकते हैं. लेकिन फिलहाल जैसी व्यवस्था है उसके मुताबिक भाजपा को वोट देने के लिए कह रहा हूँ और  कल अगर ये काम नहीं करेंगे, अपेक्षा के अनुसार काम नहीं करेंगे या कोई मूर्खता करेंगे तो इनके भी खिलाफ बोलूँगा, पुरज़ोर बोलूँगा. 

सो यह  मुफ्त  का लालच छोड़ों, वैसे भी मुफ्त कुछ नहीं होता. किसी न किसी को कीमत अदा करनी ही पड़ती है. 


तो अपील है मेरी, पुरजोर अपील है,  वोट दो, भाजपा को वोट दो. 

नमस्कार.  

Saturday 18 January 2020

Islam is not a religion

John Bennett, a Republican state legislator in Oklahoma, said in 2014, “Islam is not even a religion; it is a political system that uses a deity to advance its agenda of global conquest.”

In 2015, a former assistant United States attorney, Andrew C. McCarthy, 
wrote in National Review that Islam “should be understood as conveying a belief system that is not merely, or even primarily, religious.”

In 2016, Michael Flynn, who the next year was briefly President Trump’s national security adviser, 
told an ACT for America conference in Dallas that “Islam is a political ideology” that “hides behind the notion of it being a religion.”

In a January 2018 news release, Neal Tapio of South Dakota, a Republican state senator who was planning to run for the United States House of Representatives, 
questioned whether the First Amendment applies to Muslims.


https://www.nytimes.com/2018/09/26/opinion/islamophobia-muslim-religion-politics.html

Saturday 4 January 2020

बहुत ज़्यादा आरामपसंदगी हरामपसंदगी है.

आप सोचते हैं कि जो कष्ट आपने सहे हैं वो आपके बच्चे न सहें. बिलकुल ठीक बात है. लेकिन इस चक्कर में आपके बच्चे पिलपिले हो जाते हैं-थुलथुले  हैं.

बहुत ज़्यादा आरामपसंदगी हरामपसंदगी है.

आपके बच्चे हों , आपका शरीर हो, इन्हें ज़्यादा पुचकारें न. इन्हें  थोड़ा सख्त मिज़ाज़ से पालें.

मैं प्रॉपर्टी डीलिंग करता हूँ, देखता हूँ लोग ऊपर के फ्लोर खरीद के राज़ी नहीं. लिफ्ट चाहिए सब को. न. लिफ्ट हो तो भी सीढ़ी चढ़ें. सीढ़ी उतरें. Gym में आपको स्टेप ऊपर चढ़ने और नीचे उतरने को बोला जाता है. क्यों? चूँकि आप सीढ़ी  चढ़ना ही नहीं चाहते असल जीवन में.

पैदल चलें, जहाँ तक हो सके. वहां Gym में वो आपको ट्रेडमिल पर चलवाते हैं. वो इसलिए चूँकि आप असल जीवन में पैदल चलना नहीं चाहते. आप एस्क्लेटर पर खड़े होकर राज़ी है. बस आप खड़े रहें. एस्क्लेटर चलता रहे. ट्रेडमिल ठीक उससे उल्टा है. ट्रेडमिल खड़ा रहता है और आपको चलना होता है उसके ऊपर.

 सख्त मिजाज़ बनिए.

 अपने प्रति अपने बच्चों के प्रति

आराम हराम है

भारतीय रसोई दवाखाना है

एक  सम्मोहन है जो हमारे दिमागों में TV के ज़रिये बिठाया गया है. टीवी की Advertisement कोई मशहूरी मात्र नहीं है. सम्मोहन है. इसीलिए वो बार-बार बार-बार दिखाते हैं. उन्होंने बताया की पिज़्ज़ा बर्गर कोई अमृतनुमा चीज़ है. मैक्डोनाल्ड और पिज़्ज़ा-हट नहीं गए, डोमिनो का पिज़्ज़ा नहीं खाया तो जीवन अधूरा है. निरा मैदा है. आपको पता है मक्डोनल्ड को कितनी ही बार जुर्माना लगता है. खाने में गड़बड़ की वजह से.

भारतीय खाना खाएं. हमारी रसोई दवाख़ाना है. हमारे मसाले सब दवा हैं. हल्दी, अजवाइन, काला  नमक, सेंधा नमक, काली मिर्च, दाल चीनी...सब दवा हैं. वो वहां वेस्ट में इनको दवा के नाम से पेटेंट करवा रहे हैं. TV के सम्मोहन से बाहर आएं.

बुड्ढा होगा तेरा बाप

INTRODUCTION & BENEFITS:--

"इंक़ेलाब ज़िंदाबाद" 


3 idiots फिल्म किस किस ने देखी  है? उसमें आमिर खान था, याद है? क्या नाम था उसका उस फिल्म में?

"रेंचो". 


.  

.

इंक़ेलाब का मतलब क्या है? क्रांति. मतलब बदलाव. मतलब उथल-पुथल. लेकिन पॉजिटिव. कुछ बेहतरी के लिए. तो मेरी रिक्वेस्ट है आप सब से की अगले पंद्रह मिनट आप पूरी तरह से अटेंटिव हो कर मेरी बात सुनें. आधे-अधूरे मन से नहीं, पूरे मन से सुनें. अपने फोन बंद करके सुनें. बिना पड़ोसी से बात किये सुनें. बिना यह सोचें सुनें कि  मैं कौन हूँ? बस इस बात पर ध्यान दें कि मैं क्या कह रहा हूँ. 


क्या पॉजिटिव इंक़ेलाब हो सकता है मेरी बात पंद्रह मिनट भर सुनने से, एक ऐसे ज़माने में जब आप सब के पास दुनिया भर की इनफार्मेशन मुट्ठी में है?

इंक़ेलाब यह हो सकता है कि आपकी उम्र कोई दस-बीस-तीस साल बढ़ जाए. इंक़ेलाब यह हो सकता है कि  आपकी हेल्थ में इज़ाफ़ा हो जाए, रोग से लड़ने की ताकत बढ़ जाए. 

तो शुरू करता हूँ STORIES:--

1. FIRST STORY:--जॉर्ज बर्नार्ड शॉ.अंग्रेज़ी के साहित्यकार थे. जाने -माने. स्कूलों में इनके लेख पढ़ाये जाते हैं. ये लंदन रहते थे. जब ये कोई साठ साल की उम्र के आस-पास पहुंचे तो इन्होने अपना बोरिया-बिस्तर लंदन से समेट  लिया. बोले अब नहीं रहना यहाँ. दोस्त-रिश्तेदार सब परेशान. क्यों नहीं रहना लंदन में? बोले नहीं, अब कतई नहीं रहना और सच में लंदन छोड़ दिया. और निकल पड़े नया ठिकाना खोजने  .... भटकते रहे गाँव-गाँव शहर-शहर. फिर एक कब्रिस्तान से गुज़र रहे थे तो एक कब्र पर लिखी इबारत पढ़ ठिठक गए. लिखा था, "यहाँ वो शख़्स  दफन  है जो सौ साल की कम उम्र में मर गया." बस. अब उन्होंने आगे कहीं न जाने की ठान ली और उसी गाँव में रहना स्वीकार  किया, जिस गाँव का वो कब्रिस्तान था. उनसे पूछा गया कि पूरी दुनिया छोड़, लन्दन छोड़ आप ने यहाँ क्यों ठिकाना बनाया? "

उनका जवाब था, "अगर मैं लन्दन रहता तो मैं जल्द ही बीमार पड़ जाता-मर जाता.. चूँकि मेरे इर्द-गिर्द मेरी उम्र के लोग लोग बीमार रहने लगे थे... मरते जा रहे  थे. दिन में दस बार मुझे यह याद दिलाया जाता था कि  मैं बूढ़ा  हो चुका हूँ, कमज़ोर हो चुका  हूँ. मुझे यह नहीं करना चाहिए, मुझे वह नहीं करना चाहिए. ऐसे माहौल में मैं कितने दिन स्वस्थ रहता? कितने दिन और ज़िंदा रहता? यहाँ देखो. यहाँ तो सौ साल के आदमी को भी कम उम्र समझा जाता है. यहाँ तो हर कोई मुझे जवान समझता है. मेरी उम्र के लोग नाचते फिरते हैं यहाँ."

और वो वहीं रहे और तकरीबन सौ साल जीए. स्वस्थ जीए. 

2. दूसरी STORY :-- फौजा सिंह. सिख हैं, इंग्लैंड में रहते हैं,  अपनी उम्र के ग्रुप में मैराथन चैंपियन रहे हैं, आज भी खूब दौड़ते हैं,  Adidas की मॉडलिंग करते देखा है मैंने इनको ..लोग प्यार से टरबंड टॉरनेडो ( पगड़ी वाला तूफान ) कहते हैं.....

पांच साल की उम्र तक चल नहीं पाए..टाँगे बहुत कमज़ोर थी....बच्चे छेड़ते थे.....छेड़ थी "डंडा" .  और ये कोई बचपन से ही नहीं दौड़ते थे. कोई पचास की उम्र के बाद ही इन्होने दौड़ना शुरू किया था. 

3. तीसरी STORY:-- MDH  के महाशय जी. इंटरनेट पर अक्सर लोग उनके बुढ़ापे का मज़ाक उड़ाते थे. कहते थे  कि  वो तो यमराज से अमर होने का वरदान लेकर आये हैं. 

मज़ाक उड़ाना चाहिए क्या? प्रेरणा लेनी चाहिए. 

DEDUCTIONS FROM THE STORIES:---- 

क्या साबित करना चाहता हूँ मैं? मैं साबित यह करना चाहता हूँ  फौजा सिंह की कहानी से, जॉर्ज की कहानी से, महाशय जी की कहानी से कि हमारा स्वास्थय, हमारी उम्र  हमारी सोच पर निर्भर करती है.हमारी मौत कब होगी यह तक हमारी सोच पर निर्भर करता है और हमारी सोच सामाजिक सम्मोहन पर निर्भर करती है.  समाज तय कर देता है. आपकी उम्र के साथ आपका  बुढ़ापा. बुढ़ापे के साथ रोग. उसके बाद एक निश्चित उम्र तक पहुँचते-पहुँचते मौत. 

हम अंग्रेजी बोलने में फख्र महसूस करते हैं. करना चाहिए. कोई बुराई नहीं लेकिन उनकी हर बुराई हमने नहीं खरीदनी. अंग्रेजी में  छह साल के बच्चे को भी कहते हैं, He is six years old. ध्यान दीजिये छह साल का बूढ़ा  ....  मतलब छह साल का बच्चा नहीं.....  छह साल का जवान नहीं   ........  छह साल का बूढा. मतलब सोच ही यह है कि  इंसान पैदा होते ही बूढ़ा  होना शुरू हो जाता है. भाड़ में गया बचपना. भाड़ में गयी जवानी. भाड़ में गयी मिडिल ऐज.... सीधा बुढ़ापा. पैदा  डायरेक्ट फ्लाइट बुढ़ापे में लैंड करती है. ऐसी सोच में जीएंगे तो कैसे यौवन आएगा, कैसे स्वस्थ  रहेंगे ?

तो आप क्या करें. जॉर्ज की तरह शहर छोड़ दें? वो प्रैक्टिकल नहीं है. सबके लिए सम्भव नहीं है. और सब ऐसे गाँव पहुँच गए तो उस गाँव को भी अपने जैसा बना देंगे. फिर हो सकता है उस गाँव के लोग इनके सामूहिक सम्मोहन के तले दब जायें.

तो क्या करें? 

CONCLUSIONS:-   आप बस यह जो मैंने कहा इसे जज़्ब कर लें. दिन रात. मेरी बात को दोहराते चले जाएँ. खुद को याद दिलाते चले जाएँ कि नहीं बीमार होना है, नहीं बूढ़े होना है, नहीं मरना है. आपको क्या लगता है कि फौजा सिंह ने, महाशय जी ने  यह सब बकवास नहीं सुनी होगे कि उम्र के साथ व्यक्ति यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता.कमज़ोर होता जाता है, मौत के करीब आ जाता है......सब सुना होगा, लेकिन इनकार कर दिया

आप ढीठ हो जाएँ कि नहीं मरना आप लम्बा जी जाएंगे. आप ढीठ हो जाएँ कि नहीं बीमार होना है  आपके स्वस्थ रहने  की संभावना बढ़ जायेगी.  इसे कहते हैं माइंड  ओवर मैटर.   मन की ताकत. मन का पीछा करता है तन. मन मज़बूत तो तन मज़बूत हो ही जाएगा. 

कोई भी उम्र हो आपकी, खिले-खिले चटक रंग पहनें. खेलें-कूदें.. पार्क  में झूला झूलें....स्टापू खेलें ....गिल्ली डंडा खेलें  .... खुद को कभी इस  विश्वास में मत डालें कि आप बूढ़े हो गए हैं. जिस  दिन आपने सामाजिक सम्मोहन ओढ़ लिया कि  अब आप बूढ़े हो चुके हैं. उस दिन गई भैंस पानी में. उस दिन आप बूढ़े हो गए. आपका  हमारा जीना-मरना सब सामाजिक सम्मोहन का नतीजा है. इस  सम्मोहन को तोड़ दें.  

इस advertisement, इस सम्मोहन, सामाजिक सम्मोहन के फेर में न आएं कि  इंसान कितनी उम्र में बूढ़ा  होता है, कितनी उम्र में  बीमार रहने लगता है. On average कितनी उम्र में मरता है. आप ने बहुत पुरानी  वह मशहूरी शायद  देखी हो, "साठ साल के बुड्ढे या साठ साल के जवान".  तो यह किसी झंडू च्यवनप्राश के सेवन पर बहुत कम निर्भर करता है आपकी सोच पर बहुत ज़्यादा निर्भर करता है तो सोच बदलिए, आपका Life Span  बदल जाएगा. आपका स्वास्थ्य  बदल जाएगा  और अगर कोई आपको बूढ़ा कहे तो उसे कहें, "बुड्ढा  होगा तेरा बाप!" अमिताभ की फिल्म भी है. देख लीजिये. 


और मेरे साथ ज़ोर से एक नारा लगाएं, "बुड्ढा  होगा तेरा बाप." 
स्वस्थ रहें. मस्त रहें. 

नमस्कार. 

Friday 3 January 2020

"टांका"

यह वो धन है जो प्रॉपर्टी डीलर  तयशुदा ब्रोकरेज के अलावा डील में से निकाल लेता है. 
कैसे संभव है यह?

खरीद-दार कभी नहीं चाहता कि  ऐसा हो, फिर भी यह होता है, अक्सर होता है और  अक्सर डील के अंत तक उसे पता लग ही जाता है कि डीलर ने उसकी डील में टांका मारा है. 

यह न हो इसके लिए Seller और Purchaser दोनों को प्रयास करना चाहिए. 

पहली हिदायत:-  यह Purchaser के लिए है. Purchaser को सीधा कहना चाहिए ब्रोकर को, "भाई आपको hire कर रहा हूँ लेकिन आपकी ईमानदारी  जांचने के लिए डील के दौरन मैं आपको किसी भी वक्त  पॉलीग्राफ (Lie Detector) टेस्ट करवाने के लिए बोल सकता हूँ और आपको लिख कर देना होगा कि आप यह टेस्ट करवाएंगे." 

यकीन जानें आपका डीलर बौखला जाएगा यह सुन कर. या तो डील छोड़ देगा या फिर नाक की सीध में चलेगा. 

दूसरी हिदायत:-  यह Seller के लिए है. यदि आप सेलर हैं तो कभी भी डीलर को यह न कहें, "हमें तो हमारी तयशुदा रकम दिलवा दीजिये, बाकी आप ऊपर से जितना मर्ज़ी ले लीजिये."  Seller ऐसा इसलिए कहता है कि  असल में ब्रोकरेज चाहे Seller  पक्ष की हो चाहे Purchaser पक्ष की, वो जाती Purchaser की जेब से ही है. कैसे? सिम्पल. ब्रोकरेज चाहे 10 प्रतिशत हो, Seller को कभी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो ठीक उतना प्रतिशत प्रॉपर्टी का रेट बढ़ा लेता है. 

सो सेलर की तरफ से तो अक्सर सीधा-सीधा ऑफर होता है  कि डीलर चाहे तो डील में टांका लगा ले.  यह सरासर गलत है. कल जब आप  Purchaser होंगे तब यदि आपको पता लगेगा कि आपकी डील में डीलर ने टांका मारा है तो आपको बहुत बुरा लगेगा. सो स्वार्थी मत बनें. लकीर पर चलें. डीलर भी लकीर पर तभी चलेगा. 

तीसरी हिदायत:- यह Seller और Purchaser दोनों के लिए है. डीलर पढ़ा-लिखा hire करें, जिसे प्रॉपर्टी के काम का तज़ुर्बा हो, प्रॉपर्टी से जुड़े कायदे-कानून की जानकारी हो. किसी भी नाई, कसाई, हलवाई को अपना डीलर मत बना लें. लोग तो दूधिये तक के ज़रिये  प्रॉपर्टी का लेन-देन  कर लेते हैं. पीछे पछताते हैं. 

प्रॉपर्टी का खरीदना-बेचना बिस्कुट का पैकेट खरीदने-बेचने जैसा सीधा काम नहीं है. इसमें तमाम तरह की कानूनी और प्रैक्टिकल जानकारियां होना ज़रूरी है, जो किसी प्रोफेशनल डीलर को ही होती हैं. 

भारत में डीलर की शिक्षा और ट्रेनिंग का कोई सिस्टम नहीं है और न ही यहाँ कोई सिस्टम है कि डीलर कितनी ब्रोकरेज लेगा. सिर्फ हरियाणा में एक कानून है, "प्रॉपर्टी डीलर एक्ट", जो एक तरफा है. ऐसा लगता है प्रॉपर्टी डीलर से दुश्मनी निकाली गई  हो. या फिर RERA ACT  है. लेकिन हर कोई High-Rise बिल्डिंग्स में ही तो डील नहीं करता.   

जो ब्रोकरेज डीलर को दी जाती है, वो उसके काम, उसके ऊपर लादी गयी ज़िम्मेदारी की अपेक्षा बहुत ही कम होती है. ऊँट के मुंह में जीरा. करोड़ों रुपये की डील उसके कंधे पर होती हैं और उसे 1  से 1/2 प्रतिशत कमीशन ही दी जाती है. कई बार तो वो भी नहीं दी जाती. ज़रा-ज़रा सी बात पर उसकी कमीशन काट ली जाती है. कमीशन के लिए उसे लड़ना पड़  जाता है. कमज़ोर डीलर को तो लोग छुट-पुट कमीशन दे कर ही भगा देते हैं.  ऐसे में होशियार डीलर चोर रास्ता अख्तियार करते हैं, टांका लगाने का. लेकिन दिक्कत यह है कि  फिर होशियार डीलर सीधी-शरीफ पार्टी को भी टाँका लगाने से नहीं चूकते. असल में शरीफ खरीदार को ही सबसे ज़्यादा टाँका  लगाया जाता है. 

मैं इस सबके खिलाफ हूँ.  

टांका लगाने के सख्त खिलाफ हूँ. लेकिन मैं कम कमीशन देने वालों के भी खिलाफ हूँ. मुझसे किसी खरीद-दार ने तयशुदा कमीशन से कम पैसे लेने के लिए कहा. मैंने कहा, "ठीक है फिर, मैं आपको प्रॉपर्टी के कुछ कागज़ात भी कम ही दूंगा, बोलिये मंज़ूर है?"

पूरे पैसे दीजिये, पूरा काम लीजिये.

तुषार

Wednesday 1 January 2020

नववर्ष

क्या आप  सहमत होंगे मुझे से अगर मैं कहूँ कि  समय नाम की कोई चीज़ नहीं होती? दिन-वार, तिथि, वर्ष, माह....  कुछ नहीं होता.सिवा इंसान के किसी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे को नहीं पता कि आज कोई नववर्ष की शुरुआत है  चूँकि समय का विभाजन सिर्फ इंसान की कल्पना है.असल में समय ही इंसान की कल्पना है. कल्पना है बदलते मौसम को, दिन-दोपहर, रात को समझने के लिए. 

जब समय सिर्फ कल्पना है तो फिर कैसा नव-वर्ष? 
फिर नव वर्ष का सेलिब्रेशन? फिर शुभ कामनाएं? क्या मतलब इस सब का?

असल में तो जीवन ही अपने आप सेलिब्रेशन होना चाहिए. 
हल पल सेलिब्रेशन होना चाहिए. सेलिब्रेशन के लिए बहाने नहीं खोजने पड़ने चाहिएं.  

और

हम सब में विश्व-कल्याण का भाव सदैव होना चाहिए. 
हम सब सदैव एक दूजे के लिए शुभ-भाव से भरे होने चाहिए. शुभ-कामनाओं से भर-पूर होने चाहिए. 

लेकिन यह सब अभी दूर की कौड़ी है.दिल्ली अभी दूर है. बहुत दूर. 

सो फिलहाल हम काम चला रहे हैं नव-वर्ष की शुभ कामनाओं से. स्वीकार करें. 

नमन...तुषार कॉस्मिक.