Monday 18 April 2022

मेरी व्यायाम यात्रा

बठिंडा की बात है. मैं तब शायद आठवीं कक्षा में था जब आरएसएस की शाखा में जाना शुरू हुआ. वहाँ कसरत और कई कसरती खेल खेले जाते थे.

MSD Public School, जहाँ मैं पढ़ता था, उसी के पास में ही एक स्टेडियम हुआ करता था, उसी दौर में वहां जॉगिंग करने जाने लगा. 400 मीटर का ट्रैक था, मैंने एक दिन कोई 25 चक्कर लगा दिए. मैं खुद हैरान! यह 10 किलोमीटर हो गया. कोई 10 किलोमीटर भी दौड़ सकता है लगातार, मुझे पता ही न था. खैर फिर तो मैं कई बार दौड़ा. मुझे दौड़ना बहुत ही आसान लगने लगा.

उसी दौर में वहीं स्टेडियम की बेक साइड में एक सरदार जी बॉक्सिंग सिखाया करते थे. कुछ लडके आया करते थे वहाँ. मैं भी जाने लगा. एक बार तो होशियार पुर उन के साथ गया भी मुकाबले में. मेरे सामने वाला बॉक्सर आया ही नहीं, मुझे वॉक-ओवर मिल गया. शायद  तीसरी जगह आने का इनाम भी मिला.  इकलौता बच्चा था घर का, शायद माँ-बाप ने करने से रोका.  फिर बॉक्सिंग की ही नहीं. लेकिन अभी भी बॉक्सिंग की बेसिक मूवमेंट अच्छे तरीके से कर लेता हूँ.

खैर, उसी दौर में शाम को आरएसएस की शाखा में भी जाना रहता था. स्कूल में एक बार दौड़ में शामिल हुआ तो शायद 800 मीटर दौड़ में तीसरा या दूसरा स्थान आया था. मेरे लिए यह अन-अपेक्षित ही था चूँकि मैं खेलों में कोई बहुत सीरियस था नहीं. किताब पढ़ने  का ज़्यादा शौक था मुझे. लाइब्रेरी में समय बिताना ज़्यादा अच्छा लगता था.

वहीं बठिंडा में राजिंदरा कॉलेज में पढ़ता था मैं, तो वहां भी एक 400 मीटर का ट्रैक था और स्टेडियम बना हुआ था. वहां भी खूब दौड़ता रहा था मैं.  एक दो बार क्रॉस कंट्री दौड़ भी लगाई थी बठिंडा में. यह गाँव देहातों की बीच से दौड़ना होता है. कंट्री मतलब गाँव. 

खैर, फिर जब दिल्ली आ गया तो मैं शुरू में पैदल बहुत चला करता था, ख्वाहमखाह गलियों में. दिल्ली की जिन्दगी देखता रहता था. 

फिर कुछ समय काम-धंधे की तलाश में लगा रहा. 92-93 की बात है, हम लोग पश्चिम विहार शिफ्ट हो चुके थे. यहाँ बहुत ही बड़ा डिस्ट्रिक्ट पार्क था जो आज भी है. इस में अंदर एक ट्रैक बना था, जिस पर लाल पत्थर बिछे थे. यह कोई 1.5 किलोमीटर का ट्रैक है. इस पर मैं रनिंग करता था. कोई 5-6 चक्कर. कभी 7 भी. दस किलोमीटर दौड़ने का टारगेट रहता था डेली, जो मैं बड़ी अच्छी गति से दौड़ भी लेता था. कुछ फ्री-हैण्ड एक्सरसाइज भी करता था. काफी अच्छा फिटनेस लेवल था. खूब लम्बे बाल थे. कुछ लोग पूछते थे कि क्या मैं कोई मॉडल था या फिल्म इंडस्ट्री से कोई तालुक्क रखता था?

शादी हो गयी तो उस के बाद हम लोग मादी पुर, मधुबन एन्क्लेव के फ्लैट में शिफ्ट हो गए.

वहाँ फिर से एक्सरसाइज करने की धुन सवार हुई. यहाँ पंजाबी बाग में एक पार्क थी, इस पार्क में रोजाना जाने लगा. भयंकर धुंआ-धार एक्सरसाइज. फिर से फिटनेस लेवल ठाठें मारने लगा. फिर वहीं बगल में पंजाबी क्लब में 'नत्था सिंह वाटिका' में एक GYM था, उसे ज्वाइन कर लिया. कई महीने वहां जाना होता रहा. 

उन्हीं दिनों एक वीडियो भी बनाया मैंने. विभिन्न एक्सरसाइज करते हुए. यह पश्चिम विहार डिस्ट्रिक्ट पार्क, पंजाबी बाग पार्क और मेरे घर में शूट किया गया था. इसे मैंने फेसबुक पे डाल रखा है. 

फिर GYM छूट गया. काम-धंधे में उलझ गया.

यह GYM ज्वाइन करने और छोड़ने का सिलसिला चलता रहा. बीच-बीच में वाल्किंग करता रहता था. लम्बी वाल्क. कोई 5 से 10 किलोमीटर. एक बार पंजाबी बाग़ में कुत्ता काट गया, रात को वाक कर रहा था तो. 

इसे दौर में मैंने रात को रोड रनिंग भी शुरू की थी. उन दिनों मेट्रो का काम शुरू हुआ ही था. मैं अपने घर से निकल रोहतक रोड पर दौड़ते हुए रिंग रोड़ पहुँचता था. जेनरल स्टोर की क्रासिंग से लेफ्ट हो जाता था, फिर आगे NSP चौक से मुड़ कर पीतम पुरा के 'कोहाट एन्क्लेव' के आगे निकलता हुआ मधुबन चौक आउटर रिंग रोड पहुँचता, फिर पीरा गढ़ी चौक से वापिस रोहतक रोड पर आता और घर पहुँचता. यह कोई 15-20 किलोमीटर के बीच की रनिंग थी.  

उन दिनों मेरे पास मारुती 800 कार हुआ करती थी. इस कार से सपरिवार मैंने उत्तराखण्ड और हिमाचल के 15-15 दिन के टूर लगाये. केदारनाथ, यमुनोत्री, गोमुख की पहाड़ी यात्रा की. ट्रैकिंग.  कोई तकरीबन 100 किलोमीटर. इसे व्यायाम यात्रा में इसलिए शामिल कर रहा हूँ चूँकि पहाड़ों पर  चढ़ना-उतरना किसी व्यायाम से कम नहीं है. 

एक बात चार मित्रों के साथ इंडिया गेट से दौड़ना शुरू कर के धौला कुआँ होते हुए घर पहुंचे. साथ-साथ मेरी मारुती 800 कार भी एक लड़का चला रहा था ताकि जो मित्र न दौड़ पाए, वो कार में बैठ जाए. जहाँ तक मुझे याद है, मैंने दौड़ पूरी लगाई थी, बिना कार में बैठे. 

खैर,फिर हम वापिस पश्चिम विहार शिफ्ट हो गए. यहाँ घर के पास ही एक पार्क है. इस पार्क में खूब वाकिंग करता रहा.

एक बार बीवी से नाराज़ हुआ तो बंगला साहेब गुरुद्वारा पैदल निकल गया. यह कोई 40 किलोमीटर आना-जाना हो गया. रात के वक्त. 

फिर एक्सरसाइज बिलकुल छोड़ दी, काफी चिर.

अब कोई पिछले साल कोरोना पीरियड में ही एक्सरसाइज शुरू की. न सिर्फ एक्सरसाइज शुरू की बल्कि YouTube videos से खुद को re-train भी किया. सीखना हर उम्र में चाहिए.

लगभग एक साल होने को है. इस एक साल में मैंने अपनी सारी उम्र का तजुर्बा और जो भी मैंने नया सीखा सब लगाया है. वजन कोई 10 किलो घटा है, जो कि अच्छी बात है.  

आज फिर से फिटनेस काफी अच्छा है.

अब मैं Walking, Sprinting, योगासन, प्राणायाम, शैडो बॉक्सिंग,  Body-Weight Exercises, वेट ट्रेनिंग बहुत कुछ मिक्स कर के करता हूँ. 

मुझे व्यायाम करते हुए जो लोग देखते हैं, कुछ दांतों तले उंगली दबा लेते हैं, कुछ जल-भुन रहे होते हैं, कुछ प्रेरित हो रहे होते हैं. खैर, मैं डिस्ट्रिक्ट पार्क में घुसते हुए और बाहर आते हुए झुक कर नमन करता हूँ. यह मैंने अपनी किशोर अवस्था में सीखा था. पार्क, स्टेडियम, Gym हमें इतना कुछ देता है, नमन तो बनता है. 

इन्हीं सर्दियों में मैं दक्षिण दिल्ली में "जहाँपनाह फोरस्ट" गया. यह जंगल है. इस के किनारे किनारे पैदल-पथ बना है. छोटी से, पतली सी सड़क. जो इस जंगल के सब तरफ घूमती चली जाती है. कोई 6.5 किलोमीटर. यह अपने आप में नायाब जगह है, जहाँ हर दिल्ली वाले को एक बार ज़रूर जाना चाहिए. 

फिर मैं लोधी गार्डन भी गया. यह साफ़-सुथरा गार्डन हैं, जिस के बीचो-बीच पुरातन monument हैं. यहाँ बहुत लोग घूमने आते हैं. व्यायाम करने आते हैं. 

फिर रोहिणी के स्वर्ण-जयंती पार्क भी जाना हुआ. यह बहुत बड़ा पार्क है. बीचो-बीच तो आफ सुथरा है लेकिन किनारे-किनारे चलते जाओ तो कई जगह गन्दगी है. 

फिर वेस्ट पटेल नगर के रॉक गार्डन भी जाना हुआ. यह कोई बहुत बड़ी जगह नहीं है. और चूँकि पहाड़ी सी पर है सो ऊंची नीची जगह है. बहुत पसंद नहीं आई.

जनक पुरी के दो डिस्ट्रिक्ट पार्क भी जाना हुआ. लेकिन वो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आये.पश्चिम विहार के डिस्ट्रिक्ट पार्क के मुकाबले बड़े ही दीन-हीन.   

इस सारी यात्रा से जो कुछ भी मैंने सीखा, वो संक्षेप में बता रहा हूँ....

पहली तो बात यह कि व्यायाम करना ही चाहिए. आज से 40-50  साल पहले तक का जो जीवन इन्सान जीता था, उस में शारीरिक मेहनत थी सो यदि वो अलग से व्यायाम नहीं भी करता था तो चलता था

लेकिन
आज हम सब का अधिकांश जीवन कुर्सी-सोफे-बेड पर कटता है और विज्ञान यह कहता है कि बैठे रहना तो सिगरेट पीने से भी ज्यादा खतरनाक है. 

So understand clearly that  movement is medicine, movement is life. 

और मूवमेंट भी अलग-अलग किस्म की हो तो ही बेहतर. बहुत लोग तो मैं देखता हूँ बस वाक करेंगे और हो गया उन का दिन का कोटा पूरा. चलिए कुछ न करने से तो कुछ करना हमेशा बेहतर ही है, बशर्ते कि वो कुछ अच्छा ही हो. तो वाक करना अच्छा तो है ही. लेकिन एक मात्र व्यायाम वाक ही करते रहना, यह मैं recommend नहीं करता.

और लाल पत्थरों के ट्रैक पर या किसी भी और तरह की सख्त ज़मीन पर लगातार लम्बा वाक करना या दौड़ना कतई recommendable नहीं है. घुटनों और बाकी जोड़ों पर बुरा असर डाल सकता है. जहाँ तक हो सके घास पर, समुद्री तट पर या फिर हल्की गीली मिट्टी पर दौडें. यह घुटनों जो दर्द करने लगते हैं, उस की एक वजह यह भी है कि शरीर के कमर से निचले हिस्से को जो एक्सरसाइज मिलनी चाहिए, वो अक्सर हम देते ही नहीं. कहते हैं शरीर के  50 प्रतिशत muscle कमर से नीचे होते हैं. और हम समझते हैं ही वाक कर लिया तो हो गया काम. न. Squats, Hanuman Squats, Lunges, Toes raises आदि को अपनी routine में शामिल करें. 

मेरी नज़र में वाक, बॉडी warm-up करने के लिए करना चाहिए और फिर  उस के बाद फ्री-हैण्ड एक्सरसाइज और उस के बाद वेट ट्रेनिंग या फिर रस्सी कूदना या फिर दंड बैठक या फिर रनिंग.

रोज़ एक तरह का खाना इंसान खाए तो बोर हो जाता है. सो हम रंग-बिरंग खाते हैं. ऐसे ही रोजाना एक ही तरह की एक्सरसाइज भी न करें तो बेहतर है. कभी सिर्फ वाल्किंग कर ली, कभी स्प्रिंट मार ली, कभी योगासन ही कर लिए, कभी पूरा सेशन प्राणयाम का कर लिया, कभी दंड बैठक. या फिर आप अपने हिसाब से अपनी रूटीन बना सकते हैं. रंग बिरंगी.

अक्सर जो योगासन करते हैं, वो योगासन ही करते रहते हैं. जो वाक करते हैं, वाक ही करते रहते हैं. मुझे यह कम समझ आता है. 

हालाँकि मुझे तैरना आता है, बठिंडा की नहरों में कैसे सीख लिया पता ही नहीं चला. लेकिन दिल्ली में तैरने का मौका मुझे न के बराबर ही मिल पाया है लेकिन यदि आप के पास तैरने की सुविधा हो तो, ज़रूर तैरा करें. 

और आप की उम्र कोई भी हो, व्यायाम शुरू कर लें और जो नहीं करना आता उसे सीखते रहिये. बहुत से वर्ल्ड क्लास athletes ने तब व्यायाम शुरू किया जब लोग मौत का इंतज़ार कर रहे होते हैं. यह भज रहे होते हैं, "अब तो बस थोड़ा ही समय बचा है."  जब कि किस का समय कितना बचा है, यह आज तक किसी को पता नहीं लगा. 

किशोर अवस्था को छोड़ के, हांलाँकि मैंने खुद कभी किसी कम्पटीशन में हिस्सा नही लिया लेकिन यदि हो सके तो आप ज़रूर हिस्सा लिया करें. हार जाएँ, कोई बात नहीं. हार-जीत की परवाह न करें. हिस्सा लेना ही बड़ी बात है. 

हो सके तो नंगे हो कर एक्सरसाइज किया करें, धूप में. खुली हवा  खुली धूप. स्वर्ग. सुना है विटामिन डी, सिवा सूरज की रौशनी के कैसे भी नहीं मिलती.  इस की दवा बकवास हैं. कैप्सूल में भर के सूरज के रौशनी में जो है, वो कैसे मिलेगा? गोरे हजारों मील उड़ के आते हैं, गोवा के बीच पर नंगे लेटने. यहाँ भारतीय धूप की तरफ पीठ कर के बैठते हैं, वो भी पूरे कपड़ों में. कहीं रंग काला न पड़ जाए. गोरे रंग के प्रति दीवाने हैं भारतीय. शायद गोरों के गुलाम रहे हैं इसलिए. इन के सब गानों में लडकियाँ गोरी होती हैं. "गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा...." "गोरी हैं कलाइयां...". काली के गीत कोई नहीं गाते. हालाँकि हिन्दुओं के राम और कृष्ण काले कहे जाते हैं. कृष्ण का तो एक नाम श्याम है, जिसका अर्थ ही है काला. कृष्ण का भी वही अर्थ होता है. लेकिन फोटो में नीले बनाते हैं.  खैर, आप धूप में रहा कीजिये, गर्मियों में सुबह की धूप और सर्दियों में कभी भी. 

योगासनों और प्राणायाम को ही योग भी नहीं, "योगा" समझा जाता है. यह सही नहीं है. योग के आठ अंग हैं. १) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि . इसीलिए इसे "अष्टांग योग" कहा जाता है. फिर भी योगासनों और प्राणायाम को  मैं अति महत्वपूर्ण मानता हूँ. चूँकि धरती माता के गुरुत्वाकर्षण के विपरीत  शरीर को विभिन्न आयाम देते हैं हम इन आसनों में. ऐसा हम और बहुत कम व्यायामों में कर रहे होते हैं.  और प्राणयाम में हम श्वास को, श्वास जो मात्र श्वास नहीं है, प्राण हैं, विभिन्न आयाम दे रहे होते हैं. सो योगासन और प्राणायाम भी ज़रूर किया करें. तेज़ गति वाली या Hard Exercise करने के बाद में अंत में योगासन और प्राणायाम करना बेहतर है. 

शीर्षासन यदि नहीं भी कर सकते तो किसी पेड़ या दीवार के सहारे Head Stand किया करें. कुछ देर बॉडी को उल्टा करना ज़रूरी है.

जिस स्थिति में खेल-खलिहान में बैठ के मल त्याग किया जाता है, Squatting बोलते हैं इसे. Primal Squat. इस स्थिति में जितनी देर बैठ सकें, बैठा कीजिये.

किसी डंडे, दरवाजे या फिर दीवार को पकड़ कुछ देर लटकना भी ज़रूर चाहिए.

चौपाये जानवर की तरह चलना भी बहुत अच्छा है. मेंढक की तरह कूद-कूद चलना, बन्दर की तरह कूदते हुए आगे बढ़ना, ऐसे बहुत तरह से जानवरों की नकल की जा सकती है. फौजियों की तरह crawl भी किया जा सकता है. या फिर किसी साथी को आप की टांगें पकड़ने को कहिये और खुद हाथों पर चलिए. 

उल्टा चलना या दौड़ना भी अच्छा समझा जाता है. मुझे तो अच्छा लगता है. 

मैंने तो सिंपल वाल्किंग को भी कलर-फुल बनाया हुआ है. एक टांग पे दौड़ना. किसी साथी को पीठ या कंधे पर उठा कर दौड़ना या चलना. एक कैनवास बैग है मेरे पास, जिसमें Dumbbell आदि मिला कर कोई बीस किलो वजन होता है, इसे पीठ पर ले कर चलता हूँ मैं. और कई बार तो हाथों में कोई तीस या बीस किलो के Dumbbell और उठा लेता हूँ. 

एडियों पर चलना.
पंजों पर चलना.
साइड वाल्किंग.
Ankle weight-Wrist weight बांध कर चलना. 

खैर, मेरा मानना यह है कि सिंपल वाल्किंग/रनिंग से कलर-फुल वाल्किंग कहीं बेहतर है. कई-कई तरीके से की जा सकती है.  

और
मेरा मानना यह भी है कि GYM से बेहतर है खुली हवा और खुली धूप में व्यायाम करना

और
मेरा मानना यह है कि व्यायाम की कोई उम्र नहीं होती

और 
किस उम्र में कौन सा व्यायाम करना चाहिए इस की भी कोई उम्र नहीं होती. शुरूआती बचपने को छोड़ ....इन्सान हर उम्र में चल-फिर सकता है, दौड़-भाग सकता है, कूद-फाँद सकता है और उसे यह सब करना भी चाहिए.

हम जंगलों-पहाड़ों से आये हैं. जानवरों के साथ लड़ते-भिड़ते हुए. हमें उन का मुकाबला करना पड़ता था, वरना तो हमें अगले दिन का खाना तक नसीब न होता था. हम कूदते-फाँदते- दौड़ते-भागते,लक्कड़-पत्थर फ़ेंकते हुए जंगल से शहर तक पहुंचे हैं. 

हालाँकि कब कौन सा व्यायाम करना है, कितना करना है, यह अपनी क्षमता के अनुसार चुनना चाहिए. जोश में आ कर होश न खो दें. और ज़्यादा होश में आकर जोश न खो दें. खुद को रोज़ थोड़ा-थोड़ा चैलेंज  करते रहें.

और व्यायाम ऐसे न करें कि "करना पड़ रहा है". व्यायाम ऐसे करें जैसे बच्चे खेलते-कूदते हैं. मज़ा मारते हुए. जो आप को ज़्यादा अच्छा लगे, उसे प्राथमिकता दें. व्यायाम को जीवन का अंग नहीं, जीवन  मानें. गुरबाणी में कहीं लिखा है, "हसना-खेलना मन का चाव.....". तो हंसों, खेलो, कूदो, फांदों......Sportsmanship से मैं यही समझता हूँ कि खेलते-कूदते रहिये तमाम उम्र. 

शुरू में शरीर warm up और अंत में cool down ज़रूर करें. Injury  free रहने के लिए यह सब बहुत ज़रूरी है. शुरू में Dynamic Stretching और अंत में Static stretching करें. Dynamic Stretching मतलब हाथ पैर हिलाते-डुलाते हुए अंग-पैर खोलना और Static stretching  मतलब जैसे योगासन.

अपनी Date of Birth भूल जायें, Birth Certificate कहीं छुपा दें. Birthday हो सके तो मनाये ही न. जो कोई भी आप की उम्र पूछे, उसे कहें कि भूल गए या कहें कि पता नहीं चूँकि Birth Certificate है ही नहीं या कुछ भी और.  मान के चलिए कि आप ने डेढ़ सौ साल तो जीना ही है और वो भी स्वस्थ. उससे ज़्यादा डेढ़ सौ साल बाद फिर से सोचेंगे.

खाने में फल और सलाद जितना ज़्यादा हो उतना अच्छा. इन्सान न शाकाहारी है और न ही माँसाहारी. इन्सान सिर्फ फलाहारी है. आप कुत्ते को फल दीजिये, नहीं खायेगा. गाय को मांस दीजिये नहीं खाएगी.  क्या आप बिना पकाए, बिना तेल, मिर्च, मसाले डाले, साग-सब्ज़ी, अनाज खा सकते हैं? नहीं. तो कुदरती आहार हमारा बस एक ही है. फल. और या फिर दूसरे नम्बर पर टमाटर, खीरे, ककड़ी इत्यादि. सीधी बात, नो बकवास. बाकी फिर भी अगर कुछ खाना ही हो तो घर में बनाये, जितना हो सके कम तला, भुना. चीनी, दूध, मैदा, सफेद नमक से बचें. गुड़, शहद, मोटे मिक्स अनाज, सैंधा नमक प्रयोग कर लें इन की जगह अगर करना ही हो तो. 

भारतीय दूध और दूध के बने प्रोडक्ट के दीवाने हैं. डॉक्टर NK Sharma, पीतमपुरा, दिल्ली वालों ने एक किताब लिखी है, "Milk, a Silent Killer". इन से पहले ओशो ने भी कहा है कि इन्सान के लिए जानवर का दूध नहीं है. प्रकृति में कोई भी Species दूसरी Species का दूध नहीं पीती. कोई भी Species सारी उम्र दूध नहीं पीती. इन्सान के लिए उस की माँ का दूध होता है बस. जैसे-जैसे बच्चे के दांत आने लगते हैं, माँ के स्तनों में दूध घटने लगता है और जब बच्चे के पूरे दांत आते हैं, लगभग उसी वक्त तक माँ के स्तनों में दूध बिलकुल बंद हो जाता है चूँकि अब बच्चा खुद खाना खा सकता है, चबा सकता है. 

पानी भी घड़े का पीयें तो बेहतर.  

आप सब को लम्बा, स्वस्थ और "अर्थपूर्ण" जीवन जीने की शुभ-कामनाओं के साथ नमन.

तुषार कॉस्मिक

Sunday 17 April 2022

धर्म और राजनीति -- २ सब से बड़े फ्रॉड

धर्मों ने इन्सान का जेहन जकड़ रखा है. इन्सान की Core Values धर्म से आती हैं. लेकिन ये जो धर्म हैं न आज जितने भी, इन सब को मैं अधर्म मानता हूँ. ये धर्म हैं ही नहीं. ये गिरोह हैं. धर्मों का गिरोह्बाज़ी से, रस्मों, रिवाजों से, रिवायतों से क्या लेना-देना?

मैं एक पेड़ के सहारे हेड-स्टैंड करता हूँ, मैंने उसे चूम लिया, एक लड़की बेंच प्रेस करती हुई आयरन प्लेट्स को चूम रही थी, मोची आता है गली में, उसे नमन करता हूँ मैं, क्या है यह?
धर्म है.

एक लड़की से चार लडके rape करने की कोशिश कर रहे थे, कपड़े फाड़ चुके थे, लड़की चीख रही थी. एक अधेड़ सरदार जी कूद गए, छोटी कृपान थी उन के पास, चला दी. तीन लडके भाग गए, एक मारा गया, क्या है यह?
धर्म है.

एक समाज-वैज्ञानिक लाइब्रेरी में रात-रात भर सर खपाता है, फिर कोई फार्मूला निकाल लाता है समाज कल्याण का. क्या है यह?
धर्म है. 

जिन्हें आप धर्म समझते हैं, मैं उन के सख्त खिलाफ हूँ. वो सिर्फ अँधा-अनुकरण है. अंध-विश्वास हैं. माँ-बाप ने, समाज ने जो बता दिया आप ने मान लिया. बुद्धि तो खर्च की ही नहीं. करने ही नहीं दी गयी. 

डेमोक्रेसी जिसे आप समझते हैं, जिस पर आप की सारी राजनीति खड़ी है. वो भी फ्रॉड है.

डेमोक्रेसी का मतलब है जनता का शासन, जनता द्वारा और जनता के लिए. पैसे का नंगा नाच खेला जाता है राजनीति में. एक निगम का चुनाव लड़ना हो तो करोड़ों रुपये लगते हैं. और इसे कहते हैं आप जनता का शासन? लानत है! यह सिर्फ करोड़पतियों का, अरब-पतियों  का शासन है. 

और नेताओं के बाद जो सरकारी अफसर हैं, जनता के सेवक, पब्लिक सर्वेंट, वो जनता की गर्दन पर चढ़े बैठे हैं, काले अँगरेज़. वो बदतमीज़ हैं और अव्वल दर्जे के काम-चोर हैं और रिश्वत-खोर हैं.

इसे रिपब्लिक कहते हैं?

फ्रॉड है यह.


तुषार कॉस्मिक

पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को जो अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए

मैं इस बात में नहीं जाता हूँ कि किसान कानून  सही थे या गलत या फिर कितने सही थे और कितने गलत. लेकिन एक बात तय है कि सरकारों को कानून बिना जनता को विश्वास में लिए पास नहीं करने चाहियें.

क्या रूस और यूक्रेन युद्ध से पहले वहाँ की जनता से युद्ध के लिए सहमति ली गयी थी? क्या कोई वोटिंग कराई गयी थी? या फिर इन दोनों मुल्कों के नेताओं ने अपनी सनक जनता पर थोप दी? मैंने तो सुना है रूस की जनता युद्ध का विरोध कर रही थी और यूक्रेन की जनता युद्ध के दौरान धूप सेक रही थी. 

अभी पूरी दुनिया कोरोना से दहला दी गयी, अभी भी दहलाई जा रही है. क्या जनता की राय ली गयी, पूरे आंकड़े दे कर? क्या उन को उन आंकड़ों का विश्लेषण करने का अवसर दिया गया? क्या जो लोग कोरोना को फर्जी बता रहे थे, उन की आवाज़ जनता तक पहुँचने दी गयी? नहीं दी गयी. सब लीडरान ने मिल कर घोषित कर दिया कि कोरोना महामारी है और इस के लिए lockdown, मास्क, वैक्सीन ज़रूरी है और जनता ने मान लिया, मान इस लिए लिया चूँकि जनता तक इस Narrative के विरोध में इनफार्मेशन, तर्क पहुँचने ही नहीं दिए गए. 

तो साहेबान, मेरा कहना यह है कि पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए. जनता की राय के बिना बहुत कम फैसले लिए जाने चाहियें, या कोई भी फैसले लिए ही नहीं जाने चाहिए और आज यह बहुत आसान है, मोबाइल फ़ोन सब के पास हैं, इन फ़ोनों से वोटिंग ली जा सकती है लेकिन उस से पहले जनता तक सामने खड़े मुद्दे से जुड़ी हर तरह इम्कीपोर्टेन्ट इनफार्मेंमेशन भी पहुंचनी चाहिए. यह जैसा कोरोना मामले में हुआ कि विरोधी विचारों को Disaster Act तले दबा दिया गया, वैसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. जहां तक हो सके, जनता को सोचने का, बहस करने का मौका दिया जाना चाहिए. 

तुषार कॉस्मिक

जिन को मेरा लेख लम्बा लगता है, वो दफ़ा हो जायें

क्या आप को कोई बढ़िया सा घर गिफ्ट दे तो आप यह कहेंगे कि छोटा सा होता, सस्ता सा होता तो ठीक था? क्या प्यारा सा बच्चा आप के साथ खेले तो आप यह सोचेंगे कि बस एक मिनट खेले तो ठीक है? क्या आप यह सोचते हैं कि सेक्स शुरू होते ही खतम हो जाये? क्या आप अपनी favourite dish बस एक चमच्च भर ही खाना चाहते हैं? मेरा लेखन गिफ्ट है, बढ़िया सेक्स है, प्यारे बच्चे का प्यार है, ये बढ़िया Dish है. जिन को मेरा लेख लम्बा लगता है, वो दफ़ा हो जायें.  ~तुषार कॉस्मिक

Saturday 16 April 2022

बाबा रामदेव को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें

बाबा रामदेव.....

इन्होंने  योगासनों और प्राणायाम भारतीय घरों में पहुँचाया टीवी के ज़रिये. हालाँकि 
योगासनों और प्राणायाम  कोई नई बात नहीं थी. जब हम लोग पांचवी छठी क्लास में थे तभी हमें यह सब पढ़ाया गया था और तभी हम ने कुछ आसन करने सीख भी लिए थे. 

आसनों पर बाकायदा चैप्टर था फिजिकल एजुकेशन में. एक-एक  आसन की विधि, सावधानियां और लाभ आदि. 

फिर अनेक किताब राम देव से पहले मौजूद थीं ही योग पर. मेरे पास आज भी हैं.

टीवी पर आ कर भी कई लोग योग सिखाते  ही थे. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का नाम सुना हो आप ने. यह सब ये भी सिखाते थे. पश्चिम में तो बिक्रम योग भी प्रसिद्ध था. 

खैर, योग मात्र योगासन और प्राणायाम नहीं है. यह 'अष्टांग योग' है. यानि आठ अंग हैं जिस के. 
१) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि . मतलब आसन एक अंग है और प्राणायाम एक और. लेकिन बड़ा अजीब लगता है जब लोग इन दो को ही योग नहीं, "योगा" समझते हैं. 

कहते हैं कि योग पतंजलि की देन है. मुझे लगता है, योग उन का अकेले का अविष्यकार नहीं होगा, यह  सब कई व्यक्तियों का मिला-जुला प्रयास रहा होगा. उन का भी. 
पतंजलि ने यह सब compile किया होगा. 

खैर, प्राइवेट टीवी चैनल आये-आये थे और उन पर बाबा राम देव रोज़ प्रकट होने लगे. वो प्राणायम से बड़ी-बड़ी बीमारियों के ठीक करने का दावा भी करते थे. अब है क्या कि सामूहिक सम्मोहन का बहुत असर होता है. मन अपना काम करता है. एक दूसरे को देख  प्रभावित होता है. भीड़ को देख प्रभावित होता है. तो साहेब, इन बाबा का समाज में एक स्थान बनता चला गया.अच्छी बात थी. 

फिर इन्होने आयुर्वेदिक दवा लांच कर दीं. वो भी अच्छी बात थी. हालाँकि कुछ भी नया नहीं था. इन से पहले सैंकड़ों कंपनी वो ही सब दवा बनाती थी और बेचती थीं. 

फिर बाबा दाल, चावल, चीनी सब बेचने लगे. लेकिन बाबा अपने आप में एक ब्रांड बन चुके थे. सो सब बिकता चला गया. 

यहाँ तक कुछ खराब नहीं है. लेकिन खराबी कहाँ है? मेरा नजरिया यह है कि बाबा को सिवा आसन और प्राणयाम के कुछ और पता नहीं. लेकिन यह महाशय सब जगह अपनी नाक घुसेड़ने का प्रयास करते रहे हैं. जब पहली बार मोदी सरकार बननी थी तो यह जनाब कहते थे कि मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा. अभी जब पेट्रोल के रेट लगातार बढ़ाये जा रहे हैं तो इन से किसी पत्रकार ने पूछ लिया, "बाबा, अब आप की क्या राय है पेट्रोल के रेट बढ़ते जा रहे हैं? आप तो कहते थे कि मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता  हो जायेगा ?"

अब बाबा तो उस पत्रकार पर बुरी तरह भड़क गए, उस से बदतमीज़ी करने लगे. बाबा के जवाब से यह भी पता लगता है कि ये कितने बड़े बाबा हैं, योगी हैं. इन को ध्यान, धारणा और समाधि से कोई लेना-देना नहीं है. ज़रा सा किसी ने आईना  दिखाया और ये बोले, "हाँ, बोला था मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा, अब नहीं हुआ तो क्या पूँछ पाड़ लेगा मेरी?" इस से यह भी साबित होता है कि ये कोई पूंछ वाले जानवर हैं. जब वो खुद मान रहे हैं कि उन की पूँछ है तो हम काहे मना करें? 

पीछे ये बोलते थे कि बड़े करेंसी नोट बंद कर दो, बड़े नोटों में रिश्वत लेना-देना आसान होता है. अब यह एक दम बकवास बात थी. सरकार ने मानी भी नहीं. सरकार ने हजार रुपये का नोट बंद कर के दो हजार रुपये का नोट निकाल दिया. रिश्वत क्या नोट-छोटे बड़े होने से घटेगी-बढ़ेगी? रिश्वत इस लिए ली-दी जाती है चूँकि आप के सिस्टम में छेद होते हैं, चूँकि अफसर जनता का नौकर नहीं जनता का मालिक बन बैठता है, चूँकि उसे नौकरी से निकालना आसान काम नहीं होता, चूँकि उस के काम की जवाब-देयी न के बराबर होती है. अब उस ने रिश्वत लेनी है तो वो ज़रूरी नहीं खुद  लेगा. वो पान वाला फिक्स कर देगा. वहां जाओ और पैसे दो. वो मोची फिक्स कर लेगा. वो नाई, कसाई, हलवाई किसी को भी फिक्स कर लेगा. वो ज़रूरी नहीं कैश पैसे ले. वो कार, देशी-विदेशी ट्रिप, महंगी दारू, मंहगी लड़कियां......कुछ भी रिश्वत में ले सकता है. लेकिन बाबा को इतनी डिटेल में कहाँ जाना था? बड़े नोट बंद कर दो. यह था बाबा का सामाजिक ज्ञान! बकवास!! 

मैं और मेरे जैसे अनेक लोग मानते हैं कि को.रो.ना. नकली बीमारी है. बाबा को भी अहसास है. बाबा बोले, "यह बहुत बड़ा षड्यन्त्र है, बहुत बड़े-बड़े लोग इस में शामिल है, लेकिन मैं अभी कुछ ज़्यादा नहीं बोलूँगा. बोलूँगा तो सब मेरे पीछे पड़ जायेंगे. 5 साल बाद मैं इस का पर्दा-फ़ाश करूंगा." वैरी गुड! 5 साल बाद क्या पूच्छल पाड़ लोगे बाबा? क्या घंटा उखाड़ लोगे बाबा? ज़रूरत आज है बोलने की और आप बोलोगे 5 साल बाद. मतलब सांप निकल जायेगा, फिर लकीर पीटोगे. क्या हम नहीं बोल रहे? क्या डॉक्टर Tarun Kothari, डॉक्टर विलास जगदले, डॉक्टर NK Sharma और कई-कई लोग नहीं बोल रहे कि को.वि.ड. नकली महामारी है? आप इसलिए नहीं बोलेंगे चूँकि आप को अपने साम्राज्य को खतरे में नहीं डालना. फिर आप को जो लोग लाला राम देव कह रहे हैं, क्या गलत कह रहे हैं?


तो कुल मिला कर मेरा नतीजा यह है कि बाबा का जितना बड़ा नाम है, जितना बड़ा ब्रांड बाबा बन चुके हैं, बाबा उस के लायक बिलकुल भी नहीं हैं. उन को सिवा आसन और प्राणायाम के कुछ नहीं आता-जाता. आसान आप को 'नताशा नोएल' YouTube पर उन से बेहतर सिखा देंगी. प्राणायाम सिखाने वाले भी भरे पड़े हैं वेब पर. सामाजिक समझ पर आप को वेब पर उन से बेहतर बहुत लिखने बोलने वाले मिल जायेंगे. मेरे 900 के करीब लेख हैं, उन के बोल-बचन से तो कहीं बेहतर. 

फिर भी उन के सामाजिक योगदान को मैं शून्य नहीं मानता हूँ. उन का आसानों और प्राणायाम और आयुर्वेद को समाज तक पहुँचाने का योगदान तो है ही. टीवी के ज़रिये भी और साक्षात भी. लेकिन भारत में किसी के नाम के आगे 'बाबा' लग जाये, कोई भगवा कपड़े पहने हो तो लोग बहुत ज़्यादा प्रभावित होने लगते हैं, अंधे होने लगते हैं, अक्ल के अंधे. बस वही मत होईये. बाबा को इज्ज़त दीजिये लेकिन उतनी जितने के वो लायक हैं. उन को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें. वो आसन और प्राणायाम जानते हैं तो बस उतनी ही इज्ज़त उन को बख्शिए.

तुषार कॉस्मिक
   

Friday 15 April 2022

इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.

इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.गिरोह चाहता है कि वो मज़बूत हो, और ज़्यादा मज़बूत हो, सब से मज़बूत हो, यही इस्लाम चाहता है. और इस के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है. येन-केन-प्रकारेण. साम-दाम-दंड-भेद सब तरह से. 


मुस्लिम लड़की गैर-मुस्लिम लड़के से शादी कर ले, यह इस्लाम को स्वीकार ही नहीं, वो लड़की इस्लाम से बाहर हो जाएगी और मार भी जाये तो बड़ी बात नहीं.

नागराजू का क़त्ल कर दिया गया सुल्ताना के भाई द्वारा. दिन दिहाड़े. हैदराबाद की सड़क पर.

लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम. प्रेम. शादी. यह बरदाश्त ही नहीं है, इस्लाम में. चूँकि अब बच्चे हिन्दू हो जायेंगे. मुस्लिम समाज की संख्या कमतर हो जाएगी. इस्लाम तो पलता-पनपता ही संख्या बल पर है.
हां, यदि उल्टा होता तो स्वागत है. लड़की ब्याह लायें हिन्दू की तो स्वागत है. चूँकि अब बच्चे मुस्लिम होंगें. संख्या बल बढ़ेगा. अल्लाह-हू-अकबर !

मुस्लिम लड़का यदि गैर-मुस्लिम लड़की से शादी कर ले तो इस का इस्लाम स्वागत करेगा चूँकि इस्लाम इस लड़की को मुस्लिम करेगा, अब इस से जो बच्चे पैदा होंगे वो भी मुस्लिम होंगे, इस तरह से इस्लाम बढ़ेगा और यही इस्लाम चाहता है. 

भारत में Love-Jehad की चर्चा छिड़ती रहती है. कुछ लोग तो इसे सिरे से अस्वीकार कर देते हैं कि ऐसा कुछ है ही नहीं. कुछ इसे संघी शोशा बताते हैं. लेकिन मेरी नज़र में यह एक सच्चाई है. मेरी गली में ही कम से कम चार घर मैं ऐसे देखता हूँ जिन में औरत हिन्दू घर से है और पति मुस्लिम घर से है. पति ने इस्लाम नहीं छोड़ा, लेकिन पत्नी को मुस्लिम बना दिया गया. अब इन के बच्चे भी  मुस्लिम हैं.  

गैर-मुस्लिम हलाल मीट खरीदे तो इस्लाम इस का स्वागत करेगा, कोई मनाही नहीं लेकिन मुस्लिम यदि झटका मांस खरीद ले तो यह हराम है. यही नहीं, जितना मैंने देखा है मुस्लिम का हर सम्भव प्रयास होता है कि वो बिज़नस मुस्लिम को ही दे. मेरे बिज़नस पार्टनर हैं मुस्लिम. हम हिन्दू-बहुल एरिया में रहते हैं, प्रॉपर्टी का काम करते हैं. निश्चित ही हमारा ज़्यादा बिज़नस गैर-मुस्लिम से ही आता है. लेकिन ये मेरे बिज़नस पार्टनर को जब आगे काम देना होता है तो ये ढूंढ के किसी मुस्लिम को देते हैं. इन का फॅमिली डॉक्टर मुस्लिम है लेकिन यदि इन को मुफ्त इलाज करवाना होता है तो उस के लिए ये जैन या हिन्दू मंदिर जाते हैं, गुरूद्वारे जाते हैं. तब इन का दीन इन के आड़े नहीं आता. 

कोई भी गैर-मुस्लिम यदि इस्लाम स्वीकार करे तो मुस्लिम समाज बड़ा हर्षित होता है लेकिन कोई मुस्लिम यदि इस्लाम छोड़ दे तो  इस्लाम में यह स्वीकार्य नहीं है. ऐसा व्यक्ति वाजिबुल-कत्ल है. 

लगभग हर गैर-मुस्लिम समाज आबादी कम करने में यकीन रखने लगा है. हिन्दू -सिक्ख-जैन-बौद्ध आदि के २-३ बच्चों से ज़्यादा नहीं हैं. कईयों के तो बस १-२ बच्चे ही हैं. मेरे दो बच्चे हैं. मेरे सांडू का एक ही लड़का है. मैंने पीछे दो मुस्लिम परिवारों को दो फ्लैट किराये पर दिलवाए, उन दोनों फॅमिली के मिला कर कोई 15 मेम्बर थे. 

और इस के अलावा इतिहास भरा है मुस्लिम ने गैर-मुस्लिम के पूजा स्थल तोड़े हैं. यहीं क़ुतुब- मीनार के साथ जो टूटी-फूटी मस्जिद है वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनाए गयी, यह वहीं लिखा है. अजमेर में "अढाई दिन का झोपड़ा" नामक जगह है. यह अढाई दिन में मंदिर तोड़ के मस्जिद बनाई गयी थी. अफगानिस्तान में बामियान में बुद्ध की ये बड़ी मूर्तियाँ. पूरा पहाड़. वर्ल्ड हेरिटेज. तोड़ दिया. तुम मूर्ति पूजा मानो न मानो लेकिन उन मूर्तियों का ऐतिहासिक महत्व था. डायनामाइट लगाया. Finish.

जहाँ-जहाँ भी गैर-मुस्लिम अल्प-संख्या में हैं, वहां मुस्लिम उन का क्या हाल करते हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर में गैर-मुस्लिम के साथ क्या हुआ? उन्हें छोड़ भागना पड़ा सब. लाखों गैर-मुस्लिमों में एक मुस्लिम बड़े मज़े से रह लेगा, लेकिन एक मुस्लिम बहुल इलाके में आज नहीं तो कल गैर-मुस्लिम को या तो मार दिया जायेगा या भगा दिया जायेगा या मुस्लिम कर दिया जायेगा.   

यह हैं चंद तरीके जिन से साबित होता है कि इस्लाम कोई धर्म की तरह नहीं, गिरोह की तरह चलता है.

और जैसा व्यवहार इस्लाम करता है, वैसा ही जवाब यदि गैर-मुस्लिम देने लगें तो मुस्लिम चीखने लगते हैं. तब इन को गांधी याद आते हैं. तब इन को ईश्ववर-अल्लाह तेरो नाम याद आते हैं. तब इन को सेकुलरिज्म याद आता है. Multi-Culturism याद आता है. खुद चाहे 5 टाइम मस्जिद से अल्ला-हू-अकबर (अल्लाह है सब से बड़ा), ला-इलाह-लिल्लाह (नहीं कोई अल्लाह के सिवा पूजनीय) कहते रहें. जैसे इन के सवाल का जवाब देने लगो तो इन को भारत में फासीवाद नज़र आने लगता है, भारत में डर लगने लगता है. 

भारत का कोई धर्म परवाह नहीं करता कि आप उस के धर्म में आओ. यह  इब्रह्मिक धर्मों में है और सब से ज़्यादा मुस्लिम में है. आप गुरूद्वारे जाते हो, आप के जूते सम्भाले जायेंगे, साफ़ किये जायेंगे, प्रसाद दिया जायेगा, लंगर दिया जायेगा. कोई आप को सिक्ख बनाने का प्रयास नहीं करता. कोई पूछता तक नहीं कि आप किस जात-धर्म के हो. किसी को कोई मतलब है ही नहीं. न ही मंदिरों में ऐसा कोई आयोजन किया जाता है कि आप गैर-हिन्दू से हिन्दू किये जाओ. यह जो 'घर-वापिसी' की बात उठ रही है, वो सब इस्लाम की क्रिया की प्रतिक्रिया है. 

असल में धर्म की निशानी ही यही होनी चाहिए कि अपनी बात रख दी बस. किसी को समझ आये तो ठीक न समझ आये तो ठीक. बुद्ध-महावीर, नानक, कबीर- ये लोग कोई तलवार ले कर चलते थे कि हमारी बात मानो, नहीं तो काट देंगे? जहाँ तलवार उठाई, जहाँ लालच दिया, जहाँ चालबाज़ी प्रयोग की, वहां धार्मिकता कहाँ रही? यह राजनीति हो सकती है, यह व्यपार हो सकता है, यह घटिया व्यवहार हो सकता है लेकिन धार्मिकता नहीं.

धार्मिकता मैं सिखाता हूँ और मेरे जैसे कई लोग सिखा चुके हैं और आज भी सिखा रहे हैं. हम तर्क सिखाते हैं. हम खुली सोच रखना सिखाते हैं. हम सोच के बन्धनों से आज़ादी सिखाते हैं. हम सिखाते हैं 'अप्प दीपो भव' यानि अपना दीपक खुद बनिये. हम सिखाते हैं 'आपे गुर आपे चेला'. हम आप को कोई देवी, देवता, कोई भगवान, कोई शैतान का गुलाम नहीं बनाते. हम आप को गिरोह-बाज़ी नहीं सिखाते. हम आप को आप की निजता सिखाते हैं. हम आप को "अहम् ब्रह्मस्मि" समझना सिखाते हैं.  

तुषार कॉस्मिक

"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीयेगा वो दहाड़ेगा"... बाबा अम्बेडकर. लेकिन कौन सी शिक्षा?

"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीयेगा वो दहाड़ेगा"... बाबा अम्बेडकर. 

लेकिन कौन सी शिक्षा?

यह जो शिक्षा के नाम पर गुड़-गोबर किया जा रहा है उस से तो गोबर-गणेश ही पैदा होंगे.

जो शिक्षा तुम्हारे विचारों को दहका न दे, तुन्हें तपा न दे, तुम्हारे सदियों पुराने विचारों को जला न दे, तुम्हें तार्किक ढँग से विचार करना सिखा न दे, वो शिक्षा नहीं है, वो फ्रॉड है औऱ हाँ, तुम्हारे साथ शिक्षा के नाम पर फ्रॉड ही किया जा रहा है.

तुम्हारे स्कूल कॉलेज बंद कर दो अगले सौ सालों के लिए, इंसानियत सुधर जाएगी...ओशो

और ओशो ने सही कहा था

तुषारापात

Thursday 14 April 2022

रिटायर्ड लोग, ख़ास सरकारी नौकरे से रिटायर्ड लोग, मैं देखता हूँ रिटायरमेंट के बाद का जीवन सम्भाल ही नहीं पाते.

रिटायर्ड लोग, ख़ास सरकारी नौकरे से रिटायर्ड लोग, मैं देखता हूँ रिटायरमेंट के बाद का जीवन सम्भाल ही नहीं पाते. एक सज्जन की अच्छी खासी जॉब थी, रिटायर हुए, कुछ पैसा बिज़नस में गंवा दिया चूँकि दुनियादारी की ट्रेनिंग ही न थी. हसंते-खेलते थे, अब ऐसे हो गए जैसे गुब्बारे में से हवा निकल गयी हो. एक सज्जन अच्छे-खासे हट्टे-कट्टे हैं, लेकिन मजाल रिटायरमेंट के बाद चवन्नी कमा के देखी हो. दुनिया जहां की फ़िज़ूल इनफार्मेशन इन के पास होती है. किस आदमी का चक्कर किस जनानी के साथ है, किस की बीवी किस के साथ सेट है, सब पता है. नाम अब्दुल है मेरा, सब की खबर रखता हूँ.

रिटायर लोगों को गाने, बजाने, नाचने, अभिनय या फिर कोई भी और कला की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि ये लोग आलतू-फ़ालतू बकवास-बाज़ी में न पड़ के समय का सदुपयोग कर सकें. या फिर इन को नाई, हलवाई, कारपेंटर, इलेक्ट्रीशियन, पेंटर जैसे कामों की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि ये लोग यदि कुछ कमाना चाहें तो हाथ-पैर चला कमा भी सकें. ~ तुषार कॉस्मिक

शंघाई में इतना कड़ा Lockdown लगा है कि लोग मौत मांग रहे हैं.

 शंघाई में इतना कड़ा Lockdown लगा है कि लोग मौत मांग रहे हैं. याद रखना मेरी बात, अपने राजनेताओं से पूछो, गर्दन पकड़ पूछो, सबूत क्या है इन के पास कि एक भी मौत कोरोना से हुई है. मौत हो रही हैं Lockdown से. ये Lockdown नहीं हैं, ये तुम्हें जेलों में डाला जा रहा है. ये तुम्हारी साँस लेने की आजादी तक को छीना जा रहा है. ये तुम्हारी दोस्त-रिस्श्तेदारों से मिलने की आज़ादी को छीना जा रहा है. रिसर्च करो. इस वैश्चिक फ्रॉड का पर्दा फाश करो. ~तुषार कॉस्मिक

Monday 11 April 2022

NWO-New World Order

मैं और मेरे जैसे बहुत लोग को.Ro.ना को अंतर्राष्ट्रीय फ्रॉड मानते हैं. लिखते आ रहे हैं, बोलते आ रहे हैं. हमारी आवाज़ बहुत कमजोर है. मेन स्ट्रीम मीडिया में तो मेरे जैसे लोगों की आवाज़ है ही नहीं. सोशल मीडिया पर भी गला घोंटा जाता है. फेसबुक अकाउंट बंद किये जा रहे हैं. YouTube विडियो उड़ा दिए जा रहे हैं.  


खैर, पिछले अढाई साल से यह ड्रामा चलता आ रहा है. अढाई साल से हमारे जैसे लोगों ने भी बहुत लिखा है, बोला है. 


लोग हम से पूछते हैं, "भाई, अगर यह फ्रॉड है तो फिर इस के पीछे कोई तो एजेंडा होगा? कौन कर रहे हैं यह फ्रॉड?"


कोई बताते हैं कि पैसा कमाना मन्तव्य है. वैक्सीन बेचना. 


चलिए, जितना मुझे समझ आ रहा है, बताता हूँ.


इस के पीछे मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है ही नहीं.


इस के पीछे मुख्य उद्देश्य है NWO. मतलब New World Order. और इस के पीछे हैं चंद अति-धनाडय लोग. जिन में से बिल गेट्स एक है. अमेरिका का हेल्थ मिनिस्टर डॉक्टर Fauci है और भी लोग हैं जो पर्दे के पीछे हैं. इन सब ने WHO की मदद से, सब राष्ट्राध्यक्षों की मदद से यह खेल खेला जा रहा है. 


उद्देश्य है, आम-जन के हकूक छीनना और NWO ( New World Order) लाना. 


चूँकि यह सब अंदाज़े हैं, तार्किक अंदाज़े हैं, लेकिन एक-दम क्लियर किसी को नहीं है. NWO में आम-जन को क्या हक़ मिलेंगे, क्या छिन जायेंगे, आबादी कितनी घटा दी जाएगी, कितनी बढ़ा दी जाएगी, सरकारें किस तरह से काम करेंगे? अभी किसी को ठीक-ठीक पता नहीं है.


लेकिन जिस तरह से कोरोना के नाम पर आम जन के कमाने, खाने, घर से बाहर निकलने, साँस लेने तक के हक़ छीन लिए गए, जिस तरह सरकारों ने आम लोगों को गृह-कारागार में डाल दिया, सो आगे आम इन्सान की आज़ादी आज जितनी रहेगी, इस पर गहन शँका है. 


खैर, NWO कोई नई चीज़ नहीं है. असल में तो हर सोचने-विचारने वाला व्यक्ति NWO की बात कर के गया है.


इस्लाम क्या है? इस्लाम क्या रोज़े, नमाज़, ईद, बकरीद ही है. नहीं. इस्लाम पूरी समाजिक व्यवस्था है. इस्लाम पूरी दुनिया के लिए एक व्यवस्था है. इस्लाम World Order है. 


Aldous Huxley ने कहानियां लिखी हैं, NWO पर. फिल्मों भी बनी हैं इन कहानियों पर.


ओशो को लोग आज भी गाली देते हैं. समझना तो बहत दूर की बात. ओशो ने भी नए समाज की बात की है. सिर्फ बात ही नहीं की.  नया समाज जीवंत कर के दिखा दिया. उन्होंने अमेरिका में ऑरेगोन नाम की जगह में एक पूरा शहर बसा दिया था. अपनी सडकें, अपना हेलिपैड, अपनी कारें. 5 साल वो दुनिया रही. 1981 से 1988 के बीच. मुझे लगता है पृथ्वी पर वैसा समाज शायद ही कभी बना हो. एक दम स्वर्ग. NWO था यह. 


आप मेरा लिखा यदि पढ़ते हैं तो समझते ही होंगे कि मैं धर्म, राजनीति, शिक्षा सब नकार देता हूँ. मैं तो असल में सारी ही सामाजिक व्यवस्था नकार देता हूँ.  तो फिर समाज कैसा हो? मैंने  कई लेख लिखे हैं कि नया समाज कैसा होना चाहिए. 


मुझे लगता है जिस तरह की दुनिया है, अतार्किक विश्वासों, अंध-विश्वासों में जिस तरह से दुनिया फँसी है,  NWO तो आना ही चाहिए लेकिन वो NWO कैसा होना चाहिए और कैसे लाना चाहिए, यह बहस का मुद्दा है.


क्या वो NWO हॉलीवुड फिल्म के विलन Thanos जैसा लाता है, वैसे लाना चाहिए? चुटकी मारी और आधी आबादी साफ़. 


क्या वो NWO को.Ro.ना जैसी नकली बीमारी दिखा के या कोई और नकली आपदा पैदा कर के लाना चाहिए?


तो मेरा जवाब है, "नहीं". ऐसा नहीं करना चाहिए.


NWO के लिए छद्म तरीके न अपना कर सीधे तरीके अपनाये जाने चाहियें. यदि आप अमिताभ बच्चन को वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रयोग कर सकते हो तो आप आबादी कम करने के लिए भी प्रेरित कर सकते हो. आप नकली बीमारी का भ्रम फैला कर पूरी दुनिया में अफरा-तफरी मचा सकते हो तो आप कुछ भी कर सकते हो. यह Negative Approach है.


Positive Approach प्रयोग करो न.


आप को लगता है, यह जनतंत्र सही जनतंत्र नहीं है, इस में असल नायक, असल समाज वैज्ञानिक न आ कर आड़े-टेड़े लोग पॉवर में आ जाते हैं तो समझाओ, सुझाओ लोगों कि असल जनतंत्र कैसे आएगा.


आप को लगता है, लोग धर्मों में उलझे हैं, समझाओ लोगों कि धर्म उन के लिए कहाँ नुक्सान करते हैं-कहाँ फायदा करते हैं. तेज़ी से समझाओ, तमाम मडिया प्रयोग करो. बहस खड़ी करो. पूरी दुनिया को बहस का अखाड़ा बना दो. होने दो समुद्र-मंथन. निकलने दो विष. निकलेगा अमृत भी. तर्क-वितर्क की छलनी से सब मान्यताओं को गुज़रने दो. सब कचरा साफ़ होता चला जायेगा.


यह कोरोना जैसे चोर रास्ते मत करो अख्तियार. Thanos बनने की कोशिश मत करो. यह कामयाब होगा नहीं. अंततः ढह ढेरी होगा. अफरा-तफरी तो फैलाएगा लेकिन सफल नहीं होगा. हम होने ही नहीं देंगे. याद रखना. 


तुषार कॉस्मिक

तो यह है, मैं जो समझता हूँ प्रेम से.

प्रेम. यह शब्द ध्यान में आते ही, ज़्यादातर लोगों के ज़ेहन में बॉलीवुडिया लड़का-लड़की का प्रेम आएगा.

यह असल प्रेम है ही नहीं. यह बाज़ारी-करण है सेक्स का.

"ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडत होए."
क्या यह इस प्रेम की बात है.
न. न.

आप प्रेममय होते हैं तो पूरी कायनात के लिए होते हैं, वो है असल प्रेम. और वो होते हैं आप जीवन की, जगत की अपनी समझ से. अगर समझ उथली है तो आपका प्रेम उथला ही होगा. समझ गहरी है तो किसी की गर्दन भी काटोगे, तो भी आप को दर्द होगा.

गुरु गोबिंद के शिष्य दुश्मन को काट भी रहे थे और उन्ही के शिष्य भाई कन्हैया उन को पानी भी पिला रहे थे. यह है प्रेम जो जीवन और जगत की समझ से उपजा है. "एक नूर ते सब जग उपजा, कौन भले कौन मन्दे."   गर्दन काटना मज़बूरी हो तो काटेंगे ही, फिर भी प्रेम अपनी जगह है.

प्रेम किसी व्यक्ति विशेष के लिए होने का अर्थ यह नहीं कि बाकी कायनात से कोई दुश्मनी है या दुराव है. नहीं ऐसा कुछ नहीं. "एक नूर ते सब जग उपजा, कौन भले कौन मन्दे." लेकिन हाँ, सब तो करीब आने से रहे. तो जो करीब हैं, वो करीब हैं ही. 

तो यह है, मैं जो समझता हूँ प्रेम से. 

~तुषार कॉस्मिक

रिश्ते - लम्बे, छोटे, उथले, गहरे

मैंने देखा है, इंसान अक्सर अपनी नाक से आगे नहीं देख पाता. 

उस की सोच बहुत लंबी नहीं होती. 

वो पास के तुरत फायदे के लिए भविष्य के बड़े और लगातार होने वाले फायदे को नज़र-अंदाज़ कर देता है. 

वो सोने का अंडा रोज़ लेने के बजाए तुरत-फुरत लालच में मुर्गी की हत्या कर देता है.  

दुनिया की आबादी करोड़ों में है, लेकिन आप/हम बस 100 या 1000 लोगों के सम्पर्क में ही आ पाते हैं. 

और

उस में भी गहन सम्पर्क में चंद लोग ही रह जाते हैं. रिश्ते बना कर रखिये, जहाँ तक हो सके, अच्छे रिश्ते ता-उम्र काम आते हैं. ~तुषार कॉस्मिक

Sunday 10 April 2022

3 किस्से

प्रॉपर्टी डीलर हूँ. 3 किस्से सुनाता हूँ. सीखने को मिलेगा आप को. 

अभी पीछे 'पंजाबी बाग दिल्ली' का एक फ्लोर बेचा था 3.5 करोड़ रुपये में. 50 लाख बयाना करवा दिया था. बेचने वाली पार्टी का मन बदल गया, वो खरीदने वाले को 70 लाख वापिस देने को राज़ी थीं. खरीद-दार ने नहीं लिया. मिन्नते करते रहे हम लोग, खरीदने वाला नहीं माना.

फिर हमें पता लगा कि खरीदने वाली पार्टी के पास बकाया पेमेंट नहीं है. उस ने सिर्फ बयाना दिया है, डील आगे बेचने के लिए. अब उसे सिर्फ 62 लाख ही वापिस दिए गए. और उसे मानना पड़ा. 

एक फ्लैट कोई 50 लाख के करीब में ऑफर कर रहे थे हम खरीददार को. कई बार समझाया, उसे पल्ले नहीं पड़ी बात. हम ने वो फ्लैट किसी और को ५२ लाख रुपये का बिकवा दिया. कोई 6 महीने बाद यही फ्लैट पहले वाली पार्टी ने हमारे ज़रिये ही 58 लाख रुपये में खरीद लिया. समझदार! 

एक खरीद-दार को हम ने कई प्रॉपर्टी दिखाईं'.अच्छी-अच्छी. फिर बड़े ही आत्मीय ढंग से हम ने जो प्रॉपर्टी हमें बेस्ट समझ में आई, वो प्रॉपर्टी उन को सुझाई. कारण भी बताये कि क्यों बेस्ट हैं. उन को हमारी बात समझ नहीं आई.

लेकिन उन्होंने हमारे ज़रिये ही एक और प्रॉपर्टी खरीदी, जो हम ने कभी ज़ोर दे के नहीं समझाई कि ले लो. लेकिन उन को वो ही समझ आई. ली भी कोई 4-5 लाख महँगी. फिर हमारे मना करने पे भी Renovation में काफ़ी से ज़्यादा पैसे लगा दिए. अब बेचना चाहते हैं, जो कि निकट भविष्य में लागत मूल्य पर भी बिकना मुश्किल है. 

ऐसे गलतियाँ मैंने भी की हैं. हम सब ने की होंगीं. सोचिये और बचिए. ~ कॉस्मिक

नास्तिक धार्मिक है और आस्तिक अधार्मिक. कैसे?

तुम्हें लगता है कि नास्तिक तो कोई अधार्मिक प्राणी होता है.

और

आस्तिक बहुत बड़ा धार्मिक.

लेकिन

मेरी नजर में नास्तिक ही धार्मिक है.

और

आस्तिक अधार्मिक.

आस्तिक कौन है? उसे बस कुछ धारणाएं पकड़ा दी गयी और वो अँधा हो के उन धारणाओं का पालन कर रहा है. उसे बता दिया गया कि अल्लाह, भगवान, वाहेगुरु है कोई जो इस कायनात को बनाने वाला है, चलाने वाला है और उस की प्रार्थना करने से, अरदास करने से, नमाज़ पढ़ने से वो मदद करता है. 

कभी आस्तिक ने बुद्धि चलाई? सवाल उठाये इन धारणाओं पर?

कही गयी बात को मानना ही हो तो उस के लिए क्या बुद्धि चलाने की ज़रूरत है?

लेकिन सवाल उठाने के लिए तो बुद्धि चलाने की  ज़रूरत है. सवाल उठाने के लिए सोचने की ज़रूरत है. 

नास्तिक सवाल उठाता है. सोचता है. और सवाल उठाने से, सोचने से ही ज्ञान-विज्ञान पैदा होता है. कुदरत ने बुद्धि दी ही सोचने के लिए है.

और नास्तिक कुदरत के अनुरूप चलता है. 

आस्तिक कुदरत के विरुद्ध चलता है. 

बुद्धि प्रयोग न करना कुदरत के विरुद्ध है. बुद्धि प्रयोग न करना बुधुपना है. बुधुपना कुदरत के विरुद्ध है.


इस लिए नास्तिक धार्मिक है और आस्तिक अधार्मिक. 

तुषार कॉस्मिक 

इस्लाम से कुछ सवाल

इस्लाम में मूर्तिपूजा मना है. मुस्लिम मूर्तिपूजकों बड़ी ही हेय दृष्टि से देखते हैं. मूर्तिभंजक भी हैं मुस्लिम.अभी पीछे अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की ये बड़ी मूर्तियाँ डायनामाइट लगा के तोड़ दी. 

इस्लाम के मुताबिक अल्लाह बिना आकार का है. निराकार. मूर्ती तो इन्सान खुद ही बनाता है. मूर्ती भगवान कैसे हो सकती है?

गुड.

मैं मुस्लिम से कुछ सवाल पूछता हूँ.

आप को कैसे पता कि अल्लाह निराकार है?

आप को कैसे पता कि आप की नमाज़, आप की प्रार्थना से अल्लाह को कोई मतलब है?

आप को कैसे पता कि अल्लाह है भी कि नहीं?

आप  को कैसे पता कि मोहम्मद अल्लाह के आखिरी नबी (मैसेंजर) हैं?

आप को कैसे पता कि मोहम्मद अल्लाह के मैसेंजर हैं भी?

सबूत दीजिये?

कोई ऑडियो, कोई वीडियो या कोई और सबूत दीजिये. सबूत जैसा सबूत. तर्क मत दीजिये. यह मत कहिये कि कायनात को बनाने, वाला चलाने वाला कोई तो है और वो अल्लाह है. इस तरह के तर्क आगे तर्कों की लड़ी लगा देते हैं, झड़ी लगा देते हैं.

यदि कायनात को चलाने वाला, बनाने वाला कोई तो होना ही चाहिए तो फिर अल्लाह को भी बनाने वाला, चलाने वाला भी कोई और होना चाहिए. फिर अल्लाह पर ही काहे रुके हो? और आगे क्यों नहीं सोचते? कायनात स्वयम्भु (शम्भू) क्यों नहीं हो सकती?

ये कुछ बेसिक सवाल हैं मेरे इस्लाम से. वैसे ये सवाल बाकी धर्मों से भी हैं.  

तुषार कॉस्मिक

Saturday 9 April 2022

भारतीय बहस

भारतीय बहस से बहुत बचते हैं. ठीक भी है और गलत भी. ठीक इसीलिए चूँकि बहस लड़ाई में तब्दील हो जाती है. मन-मुटाव पैदा होता है. सम्भावना बहुत ज़्यादा है.

गलत इसलिए चूँकि बहस से ही सारा ज्ञान-विज्ञान पैदा होता है. बहस से बचने वाले समाज पिछड़ जाएंगे. बहस व्यक्ति दूसरों से ही नहीं, खुद से भी करता है. बहस से व्यक्ति की clarity बढ़ती है.

सो सन्तुलित किस्म की बहस को बढ़ावा देना ही चाहिए.

तुषार कॉस्मिक

भाजपा बनाम केजरीवाल

विज्ञान का सिद्धान्त है, Vaccum को तुरत कोई न कोई चीज़ भर देती है. 

जनता ने भाजपा को दो बार बहुमत दिया. लेकिन भाजपा ज़मीन से जुड़े मुद्दे हल न कर पाई. बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दों पर भाजपा का काम नज़र ही नहीं आया. 

इस शून्य को भरा केजरीवाल की पार्टी ने. नतीजा दो राज्यों में "आप" सरकार. 

अभी भी भाजपा में घमण्ड है. नहीं समझी तो "आप" बड़ी पार्टी बन उभरेगी.

दिल्ली में MCD में भाजपा 15 साल से है और काम के नाम पे शून्य. भाजपा ने काम किया होता तो चुनाव से भागती नहीं.  

भाजपा को केजरीवाल से सीखना चाहिए कि जनता के रोज़मर्रा के मुद्दों पर काम करना होगा. 

यदि बिजली पानी केजरीवाल मुफ्त कर सकता है, इलाज सस्ता दे सकता है, अच्छे सरकारी स्कूल दे सकता है तो भाजपा क्यों नहीं? 

भाजपा सीखेगी तो जीतेगी..

आम आदमी पार्टी ने रोज़मर्रा के बेसिक मुद्दों पर काम किया. बिजली-पानी सस्ता किया. मोहल्ला क्लीनिक बनाये, स्कूलों पर काम किया. इसी का नतीजा है कि 2 राज्यों में इस की सरकार है. 

लेकिन क्या यह पार्टी भाजपा का मुकाबला कर पायेगी? नहीं. 

नहीं कर पायेगी चूँकि "ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम" वाला फ़लसफ़ा हिन्दू जनता लगभग नकार चुकी है, जिसे केजरीवाल पकड़े है.

हिन्दू जन-मानस इस्लाम के खतरे को समझने लगा है. सो केजरीवाल विपक्ष का हिस्सा तो बन सकता है लेकिन केंद्र इस से बहुत-बहुत दूर रहेगा.

तुषार कॉस्मिक

Friday 8 April 2022

इजराइल मे Jew से नफरत..........................

इजराइल मे Jew से नफरत. 

श्रीलंका मे बोध से नफरत. 

वर्मा मे बोध से नफरत. 

चीन मे बोध से नफरत. 

फ्रांस मे क्रिश्चियन से नफरत. 

Europe me Christian se नफरत. 

अफगनिस्तान मे गुरुद्वारे पर हमला.

भारत में हिन्दू से नफरत. 

Arab me shia se नफरत. 

भाई दुनिआ मे कोई है भी जिससे इनको नफरत नहीं है.

बस यही सही है. बाकी पुरी दुनिया गलत......Copied from a Youtube Comment

C.o.r.o.n.a is worldwide Fraud

Corona is worldwide Fraud.

Western people understood and protested on roads, hence no Corona restrictions now.

Eastern people esp Chinese and Indian are fools, they have no understanding, no guts, hence they are obeying their Govts which are bound to kill them in the name of viruses

Thursday 7 April 2022

Happiness is not a State of mind.

Happiness is not a State of mind. It is a way of life.

A homely lady got a heart attack with the burst of happiness after winning a lottery of 10 lakhs rupees because it was something sudden, something unusual,  something outta her life. 

A man worth rupees 20 Crore, lost 15 crore in business, yet went to sleep peacefully because it was a way of life for him to earn and lose money.

Happiness depends upon your way of life, upon your life philosophy, upon your mindset, upon your mind.

~Tushar Cosmic