Thursday 24 February 2022

@#$%& लोग!!

हसन निसार एक बार कहते हैं,"इरान इराक युद्ध वर्षों तक चलता रहा, दोनों तरफ लाखों लोग मारे गए. फिर युद्व बन्द हो गया. न तो किसी को समझ आया कि युद्ध हुआ क्यों,चलता क्यों रहा और न ही समझ आया कि युद्ध बन्द क्यों हुआ?"

कोरोना आया, कोरोना आया. कोरोना चला गया, कोरोना चला गया.

आम लोगों ने मास्क लगाया, वेक्सीन लगवा ली और अभी भी लगा रहे हैं. 

न तो इन को कोरोना के आने का कुछ पता, न जाने का पता. आया भी था कि नहीं, गया भी कि नहीं. इन को कुछ मतलब नहीं.

@#$%& लोग!!

तुषार कॉस्मिक

करो विश्लेषण इस पे वड्डे विश्लेषको

बारीक चुनावी  विश्लेषण यह किया जा रहा है कि सरकार किस की बनेगा, कैसे बनेगी. 

मूढ़ लोग. काश इस से आधा विश्लेषण इन पॉइंट पे किया जाता कि इन चुनावों का औचित्य क्या है? 

क्या इस तरह के चुनाव सच में आम इंसान का प्रतिनिधित्व करते हैं या फिर "पैसा फेंक तमाशा देख" वाला खेला ही हो रहा है.

क्या ये चुनाव असल जनतन्त्र देते हैं? क्या एक आम नाई, धोबी, मोची, प्लम्बर मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बन सकता है? 

असल बात है कि म्युनिसिपेलिटी के चुनाव भी करोड़ोंपति लोग ही लड़ते हैं. 

क्यों? 

करो विश्लेषण इस पे वड्डे विश्लेषको.

~ तुषार कॉस्मिक

आप को समझ आ गया कोरोना फ्रॉड है या कम से कम आप को गहन शंका है कि कोरोना फ्रॉड है तो अब आप क्या करें कि समाज में यह शंका, यह विश्वास फैले?

आप को समझ आ गया कोरोना फ्रॉड है या कम से कम आप को गहन शंका है कि कोरोना फ्रॉड है तो अब आप क्या करें कि समाज में यह शंका, यह विश्वास फैले? 

तो मोतियाँ वालियो, एक काम तो आप यह करें कि सोशल मीडिया यानि फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि पर पोस्ट करें या फिर कमेंट करें अपने विचार. 

दूसरा अपने गिर्द नाई, धोबी, हलवाई, कसाई सब से जब मौका लगे इस बारे में बात करें. अपने दोस्त-रिश्तेदार से भी बात करें. तीसरा हो सके तो कुछ पम्फलेट टाइप छाप लें/छपवा लें और जहाँ मौका लगे, बाँट दें. 

सवाल आप का, मेरा ही नहीं, अगली पीढ़ियों का भी है साहेब.

~ तुषार कॉस्मिक

डिक्शनरी में सारे शब्द हैं, तो क्या शेक्सपियर का लेखन बेमानी है?

मुझ से किसी ने कहा कि जनाब सब कुछ तो होता ही है इंटरनेट पे, आप क्या ख़ास कहते हैं.

अब यह मित्र कुछ बेसिक चीज़ें नहीं समझते? 

डिक्शनरी में सारे शब्द हैं, तो क्या शेक्सपियर का लेखन बेमानी है? या डिक्शनरी छोड़िए अल्फाबेट पकड़िये, उसी से तो सब शब्द बनते हैं. तो ABCD जो सीख गया, वो तमाम साहित्य समझ गया क्या?

नहीं. 

देखिए, चूंकि अक्षर तो वही प्रयोग होंगे, शब्द वही होंगे, वाक्य भी आप के जाने-पहचाने होंगें इसीलिए आप धोखा खा सकते हैं. यह कतई ज़रूरी नहीं इन वाक्यों का मतलब वही हो, इन कथनों का मैसेज वही हो, जो आप समझते आये हैं.

इंटरनेट पर सब है लेकिन क्या ज़रूरी है कि जो समझ, जो मैसेज मैं देना चाहता हूँ वो हूबहू हो ही. आप जो पँखा प्रयोग करते हैं, उस में जो भी लोहा- लंगड़ लगा है वो  सब पहले भी मौजूद था, लेकिन क्या पँखा अलग आविष्कार नहीं है?

बस वही साहित्य के साथ है. लेखन और भाषण में शब्द कोई आसमान से थोड़ा न उतरेंगे? लेकिन उन शब्दों का गठजोड़, उन शब्दों का अर्थ, वो हो सकता है आसमान से उतरा हो, नया हो, बेहतरीन हो, लाजवाब हो.

तो मात्र शब्दों पे, वाक्यों पे, मिसालों पे, किस्सों-कहावतों पे न जाएं, वो सब आपने कहीं भी पढ़े-सुने होंगे. जो कहा जा रहा है, उस का कुल मतलब क्या है, वो पकड़िए.

तुषार कॉस्मिक



Monday 21 February 2022

पहला विकल्प आप से छीन लिया गया है. और यही फ्रॉड है

होटल में घुसते ही पूछा जाता था, "आप चाय पीयेंगे या कॉफ़ी?" मतलब आप कुछ तो पीयेंगे ही. पहला विकल्प छोड़ ही दिया जाता है कि आप कुछ पीयेंगे भी कि नहीं. 

आप से पूछा जाता है,"धन्धा कैसा चला रहा है?" पहला विकल्प छोड़ ही दिया जाता है. पहला विकल्प है~ धंधा चल भी रहा है कि नहीं?

आप  Covaxin लेंगे Covishield. लेकिन वैक्सीन लेंगे भी या नहीं, यह है पहला विकल्प. पहला विकल्प आप से छीन लिया गया है. 

वोट भाजपा को दो या आप को या कांग्रेस को. वोट ज़रूर दो. लेकिन वोट दो ही क्यों? क्या कोई और सिस्टम नहीं बनाया जा सकता? यह विकल्प आप को दिया ही नहीं जाता. 
और यही फ्रॉड है. ~तुषार कॉस्मिक


खतरनाक ग्रन्थ

 मैं सब धार्मिक किताबों को नकारता हूँ. इसलिए नहीं कि वो ग़लत हैं. न. वो ग़लत भी हैं और सही भी हैं. कहीं ग़लत, कहीं सही. कुछ बहुत गलत, कुछ बहुत सही. दिक्कत यह है कि इन्सान ने इन किताबों को किताबों की तरह नहीं देखा. पवित्र ग्रन्थों की तरह देखा है. कोई बस मत्थे टेके जा रहा है, कोई बस पाठ ही किये जा रहा है, कोई तो इन के खिलाफ़ बोलने वाले को कत्ल ही कर देता है, कोई दंगा खड़ा कर देता है. सो इन ग्रन्थों ने जितना इन्सान का नुक्सान किया है शायद किसी भी अन्य चीज़ ने नहीं. इन ग्रन्थों ने इंसानी सोच को बाँध दिया है. ये ग्रन्थ पाश साबित हुए हैं इंसानी सोच के लिए. इन्सान पशु से उठा लेकिन फिर इन ग्रन्थों से बंध पशु से भी नीचे गिर गया. ~तुषार कॉस्मिक

Motive of my writings

I m not gonna give u any readymade solutions or even conclusions. 

No. My solutions and conclusions might be wrong. Rubbish. Garbage. And my conclusions are after all my conclusions. How can those be beneficial to you? I am me and you are you. I am not you and you are not me. 

Then what? My whole job is to confuse you. Induce you to debate. Debate on each and every issue of life. Debate not only with others but with yourself. Especially with yourself. That confusion, that debate may give birth to the Clarity. That clarity shall be yours. Got it? ~ Cosmic

नकली व्यापार

दो लड़के. बेरोज़गार. परेशान. फिर दिमाग की बत्ती जली. अब वो शहर-शहर जाते. देर रातों में. लोगों के घरों की खिड़कियों पर मिट्टी पोत देते. फिर कुछ दिन बाद दिन में फेरी लगाते,"दरवाजे, खिड़कियाँ साफ करवा लो." ऐसे दाल-दलिया मिलने लगा.

आदिवासियों के गाँव में शहर का राजनेता पहुँच भाषण झाड़ने लगा, हम तुम्हारी सारी समस्याएँ सुलझा देंगे."  

एक बुड्ढा आदिवासी बोला, "लेकिन हमें तो कोई समस्या है नहीं, हम तो खुश हैं."

नेता बोला,"कोई बात नहीं, अब हम आ गए हैं." 

समझे? समस्या नहीं है तो समस्या पैदा करो. फिर हल पेश करो और नाम-दाम कमाओ.

यही एलोपैथी करती है. कोरोना है नहीं, लेकिन पैदा करो, नकली ही सही, पैदा करो. फिर वैक्सीन दो, लॉक-डाउन थोपो.~ तुषार कॉस्मिक

नकली माफ़ीनामा

 "अच्छा मुझ से कोई गलती हुई हो तो मैं माफी मांगता हूँ." वो बोला


"भूतनी के, यह क्या होता है? अगर मुझ से गलती हुई हो तो..? मतलब अगर गलती हुई हो तो तू माफी माँग रहा है. गलती मान कहाँ रहा है बे तू? तू तो गुंजाईश छोड़े जा रहा है कि शायद गलती न भी हुई हो....और यदि नहीं भी हुई हो तो भी माफ़ी माँग रहा है. हमें नहीं चाहिए तेरा ऐसा माफ़ीनामा. चल हट." ~ मैंने कहा'

~ तुषार कॉस्मिक

दोस्त?

 "वो मेरा दोस्त है." ~ गुप्ता जी कौशिक के घर से निकलते हुए बोले.


"लेकिन वो तो आपको तू-तडांग कर रहे थे." ~ मैंने कहा.

"दोस्त है, कोई बात नहीं, चलता है."

"लेकिन आप तो उन को आप- आप , जी-जी कर रहे थे?"

"यारी-दोस्ती में सब चलता है..."

"झूठ बोल रहे हैं, गुप्ता जी. यदि वो आप का दोस्त होता तो आप भी उसे तू- तडांग ही कर रहे होते. या शायद गाली-गलौच भी. बराबर का."

"क्या आप कर सकते हैं ऐसा?"

"नहीं."

"तो मान जाइए न कि आप के लिए कौशिक सिर्फ एक क्लाइंट है, मोटा क्लाइंट, जिस की जी-हजूरी करना आप की खुद की ओढी हुई मजबूरी है."

तुषार कॉस्मिक

Sunday 20 February 2022

आखिरी मकसद

मेरे छोटे-बड़े कई लेख हैं. 900 से भी ज़्यादा. सब ऑनलाइन. क्या है मकसद? क्या अपने विचार, अपनी सोच को थोपना मकसद है मेरा? नहीं. कतई नहीं.  मकसद एक बहस खड़ी करना है. हर छोटे-बड़े मुद्दे पर. लेकिन यह आखिरी मकसद नहीं है. अंतिम उद्देश्य है बहस करने वाला मनस खड़ा करना. लॉजिकल. सतर्क. तार्किक मनस. यह है मेरा उद्देश्य. बस. यदि मनुष्य तर्कपूर्ण है, सतर्क है तो हल खुद ढूँढ लेगा. किसी और के दिए हल वैसे भी ज़रूरी नहीं आप के काम आयें. और कुरान, पुराण, ग्रन्थ के हल तो बिलकुल नहीं.  चूँकि वहाँ तो अंध-श्रधा जुड़ी रहती है. तर्क तो जूते के साथ पहले ही बाहर रख छोड़ा होता है. मुझे इस मनस को नष्ट-भ्रष्ट करना है. मुझे सतर्क मनुष्य चाहिए. ~ तुषार कॉस्मिक

Lockdown is Fraud

मुझे अभी पीछे ही पता लगा कि कमरों के अंदर और बाहर की हवा में एक बड़ा फर्क यह होता है कि indoor हवा में बाहर की हवा की अपेक्षा नमी बहुत कम होती है और ये नमी की कमी नज़ले को बहुत ही ख़तरनाक तरीक़े से बढ़ाती है. इसीलिए लोग कमरों में Humidifier रखने लगे हैं. मैं भी रखता हूँ. यह कमरों की हवा में नमी बढाने का कृत्रिम ढँग है.अब असली पॉइंट.  कोरोना लॉन्च करने वाले शैतानों को सम्भवत: यह पता था. तभी जुक़ाम को कोरोना घोषित किया गया और घरों में कैद कर दिया गया ताकि जल्दी ठीक ही न हो सके. ~ तुषार कॉस्मिक


Saturday 19 February 2022

गोरों के लगभग हर मुल्क में आग लगी है. उन्हें समझ आ चुका है कोरोना का ड्रामा.

गोरों के लगभग हर मुल्क में आग लगी है. लोग सड़कों पर हैं. उन्हें समझ आ चुका है कोरोना का ड्रामा. कोरोना की आड़ में गुलाम बनाया जा रहा है. कमाने-खाने, घूमने-फिरने, मित्रों-रिश्तेदारों से मिलने की आज़ादी छीनी जा रही है. ठीक से सांस तक लेने का हक छीना जा रहा है. अफ़सोस यह है भारत की इत्ती बड़ी आबादी चूतियों की तरह वैक्सीन ठुकवाये जा रही है. इन का इस आज़ादी की मुहिम में लगभग शून्य योगदान है. कोरोना योद्धा तुम्हारे सरकारी हीरो नहीं हैं, मेरे जैसे लोग हैं जो तुम्हे शुरू से बताते आये हैं कि यह फ्रॉड है. ~ तुषार कॉस्मिक

The value of Low Profile Social Accounts

 यदि आप सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं लेकिन आप के पढ़ने वाले,  सुनने वाले, देखने वाले बहुत ज़्यादा नहीं हैं तो मायूस न हों. बहुत बड़ा  योगदान हो सकता है आपका दुनिया की बेहतरी में. कैसे? बड़े प्रोफाइल वाले लोग कुछ भी हाहाकारी कहें तो बवाल मच जाता है. लोग  सड़क पे उतर आते हैं, कोर्ट चले जाते हैं, ज़रा-ज़रा सी बात ले कर. सो उन  के लिए मुश्किल है. लेकिन Low Profile social media account से आप कैसी भी बात कह सकते हैं. जल्दी कुछ नहीं होगा और आप की बात भी समाज तक पहुँच जाएगी. प्रसिद्ध लोगों को भी नकली अकाउंट बना के अपनी असल बात पहुँचानी चाहिए दुनिया के सामने और शायद वो करते भी हों ऐसा. ~तुषार कॉस्मिक

क्या आप जीतना चाहते हो जिंदगी में

 क्या आप जीतना चाहते हो जिंदगी में? मूलमंत्र दे रहा हूँ. हारना सीखो.  आप ने देखा होगा लोग सिर्फ जीतने वालों के लिए तालियाँ बजाते हैं लेकिन मेरी नज़र में जिन्होंने भी दौड़ में हिस्सा लिया वो सब विजेता होते हैं चूँकि वो नहीं दौड़ते तो फिर जीतने वाला विजेता कैसे कहलाता? और जो आज हार रहा है कब अपनी हार से सीख-सीख वो भी जीत जाए किसे पता? असल में तो जीतने का तरीका ही यही है कि हार के डर से खेल से दूर मत भागो, खेल खेलो और हार भी जाओ तो खेल छोड़ो मत,  खेलते रहो, जीत ही जाओगे...तुषार कॉस्मिक

Saturday 12 February 2022

जो समाज जितना अपने ग्रन्थों से बंधा होगा उतना ही हैरान-परेशान होगा

घोड़ा यदि गाड़ी के पीछे बंधा हो तो गाड़ी आगे कैसे चलेगी? नज़र आपकी रियर व्यू मिरर पर ही लगी रहे तो ड्राइव कैसे कर पाएंगे?

कभी-कभार पीछे देखना हो तो ठीक है लेकिन हमेशा पीछे देखते रहना एक्सीडेंट ही करवा देगा. लेकिन आप वही करते हैं. आप जीवन को देखने, समझने, जीने के लिए, जीवन की गाड़ी आगे हाँकने के लिए सदियों, सहस्त्राब्दियों पुराने ग्रन्थ, क़ुरान, पुराण में ही झांकते रहते हैं. जो समाज जितना अपने ग्रन्थों से बंधा होगा उतना ही हैरान-परेशान होगा. मुस्लिम समाज इस का ज़िंदा मिसाल है. ~ तुषार कॉस्मिक

जिस ने खाया पीया नहीं, वो क्या जीया.वो इस धरती पे आया ही क्यों?

मैं सुबह सवेरे पश्चिम विहार, दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट पार्क में होता हूँ. नशे कभी किये नहीं. माँस भी नहीं खाता. एक मित्र कह रहे थे, जिस ने खाया पीया नहीं, वो क्या जीया.वो इस धरती पे आया ही क्यों, यदि उस ने जीवन को एन्जॉय न किया. इन की नज़र में जीवन खाना-पीना ही है. इन के लिए शेक्सपियर का साहित्य, पंडित बिरजू महाराज का नृत्य, ज़ाकिर हुसैन का तबला, नुसरत साहेब की कव्वाली, ओशो के प्रवचन क्या माने रखते हैं? इन के लिए जीवन की कलात्मकता और वैज्ञानिकता दारू पीने और माँस खाने तक सीमित है. आइंस्टीन और न्यूटन क्या माने रखते हैं? ध्यान तो बहुत ही दूर की बात है. बुद्ध तो बुत से ज़्यादा न होंगें इन के लिए. प्राणायाम भी करते हैं तो इसलिए कि मुर्गे और फाड़ सकें बोतलें और खाली कर सकें. करें न करें, लेकिन और भी बहुत कुछ है ज़माने में. ~ तुषार कॉस्मिक

इंसान अपनी कब्र खुद अपने दाँतों से खोदता है.

पुरानी कहावत है,"इंसान अपनी कब्र खुद अपने दाँतों से खोदता है."

मतलब यदि बुद्धि से संयम से खाओगे तो भोजन "तुम" खाओगे वरना भोजन तुम्हें खा जाएगा.

चलो जाओ अब icecream, pizza, burger, मैदा, चीनी खाओ. चूतिया लोग.

तुषार कॉस्मिक

काफ़िर लोगों में रहना ही क्यों?

 मुल्क का बंटवारा हो ही गया था, मुस्लिम ने अलग मुल्क ले ही लिया था तो मुस्लिम को भारत में रहना ही नहीं चाहिए था. काफ़िर लोगों में रहना ही क्यों? बंटवारे के बाद सैंकड़ों दंगे हो चुके हिन्दू-मुस्लिम के. लाखों लोग मारे जा चुके. और सारी राजीनीति मुस्लिम/गैर-मुस्लिम मुद्दों के गिर्द घूमती रहती है. राजनीतिक ही नहीं सामाजिक ऊर्जा का बड़ा भाग भी इन्हीं मुद्दों में उलझा हुआ है. पाकिस्तान पाक-स्थान है.खुशहाल मुल्क. मुस्लिम वहीँ जाते तो खुशहाल रहते और पीछे भारत भी कहीं खुशहाल होता. इस की ऊर्जा, बुद्धि, समय बहुत से फ़िज़ूल मुद्दों में न फँसता.~ तुषार कॉस्मिक

भारत में भी इसे मुद्दा बनाओ ~ नकली बीमारी कोरोना हटाओ, वोट पाओ.

 कनाडा में सिक्ख भी साथ दे रहे हैं ट्रक वालों का जिन्होंने PM जस्टिन ट्रुडो का घर घेर रखा है. 

सब का नारा है,"नकली बीमारी कोरोना के नाम पर लगाई पाबंदियां हटाओ."

भारत में भी इसे मुद्दा बनाओ मूर्खो.

तुषार कॉस्मिक