मुझ से किसी ने कहा कि जनाब सब कुछ तो होता ही है इंटरनेट पे, आप क्या ख़ास कहते हैं.
अब यह मित्र कुछ बेसिक चीज़ें नहीं समझते?
डिक्शनरी में सारे शब्द हैं, तो क्या शेक्सपियर का लेखन बेमानी है? या डिक्शनरी छोड़िए अल्फाबेट पकड़िये, उसी से तो सब शब्द बनते हैं. तो ABCD जो सीख गया, वो तमाम साहित्य समझ गया क्या?
नहीं.
देखिए, चूंकि अक्षर तो वही प्रयोग होंगे, शब्द वही होंगे, वाक्य भी आप के जाने-पहचाने होंगें इसीलिए आप धोखा खा सकते हैं. यह कतई ज़रूरी नहीं इन वाक्यों का मतलब वही हो, इन कथनों का मैसेज वही हो, जो आप समझते आये हैं.
इंटरनेट पर सब है लेकिन क्या ज़रूरी है कि जो समझ, जो मैसेज मैं देना चाहता हूँ वो हूबहू हो ही. आप जो पँखा प्रयोग करते हैं, उस में जो भी लोहा- लंगड़ लगा है वो सब पहले भी मौजूद था, लेकिन क्या पँखा अलग आविष्कार नहीं है?
बस वही साहित्य के साथ है. लेखन और भाषण में शब्द कोई आसमान से थोड़ा न उतरेंगे? लेकिन उन शब्दों का गठजोड़, उन शब्दों का अर्थ, वो हो सकता है आसमान से उतरा हो, नया हो, बेहतरीन हो, लाजवाब हो.
तो मात्र शब्दों पे, वाक्यों पे, मिसालों पे, किस्सों-कहावतों पे न जाएं, वो सब आपने कहीं भी पढ़े-सुने होंगे. जो कहा जा रहा है, उस का कुल मतलब क्या है, वो पकड़िए.
तुषार कॉस्मिक
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