Saturday 12 February 2022

आप मशीन हो. सच्ची. आप मशीन हो.

आप मशीन हो. सच्ची. आप मशीन हो. 

वर्षों पहले मैंने Landmark Forum अटेंड किया था. इस्कॉन टेंपल साउथ दिल्ली में.

हमारे टीचर ने कहा कि forum खत्म होते-होते एक चमत्कार होगा. सब हैरान! वो चमत्कार क्या होगा? वो चमत्कार यह था कि उन्होंने साबित कर दिया कि इंसान मशीन है. औऱ सब मान गए कि हाँ, हम मशीन हैं. 

मशीन औऱ इन्सान में फर्क क्या है? यही कि मशीन को जैसे चलाया जाता है, वो वैसे चलती जाती है. 
तो क्या इंसान भी वैसे ही हैं? 
जी हां, वैसे ही हैं. 

हालाँकि सब जान-वारों में इंसान के पास सब से ज़्यादा Freewill, बुद्धि  है बावजूद इस के इन्सान बड़ी जल्दी मशीन में तब्दील हो जाता है. वो बड़ी जल्दी सम्मोहित हो जाता है. वो बड़ी जल्दी अपने तर्क को सरेंडर कर देता है. वो बड़ी जल्दी सतर्क से तर्क-हीन हो जाता है. फिर ता-उम्र वो वही करता है, वैसे ही जीता है जैसा सम्मोहन उसे मिला होता है. 

इस की सीधी मिसाल है, हिन्दू घर का बच्चा हिन्दू हो जाता है, मुस्लिम का बच्चा मुस्लिम और सिक्ख का बच्चा सिक्ख. मशीन.  किस्म  किस्म की मशीन. अब उस की सारी राजनितिक सामाजिक सोच मशीनी होगी. हिन्दू भाजपा को वोट देगा और मुस्लिम भाजपा के खिलाफ़. सब मशीनी है. हिन्दू गाय को पूजेगा, मुस्लिम खा जायेगा. सब मशीनी है.  इन को  लगता है कि ये सब  स्वतंत्र सोच का मालिक है लेकिन ऐसा है नहीं. सब  मिले हुए सम्मोहन के  गुलाम हैं.  

ऐसे ही किसी ने आप को बचपन में कह दिया कि आप मंद-बुद्धि हो और यदि वो कथन आप के ज़ेहन ने पकड़ लिया तो बस हो गया बंटा-धार.

मुझे याद है, मैं आठवीं तक बहुत ही साधारण सा स्टूडेंट था. लेकिन पता नहीं कब एक टीचर ने कह दिया कि मैं इंटेलीजेंट हूँ. बस वो कथन मेरे ज़ेहन में फिक्स हो गया और मैं हर इम्तेहान टॉप करने लगा. .


ध्यान से देखें, कहीं आप के ज़ेहन ने भी तो कोई कथन, कोई पठन , कोई दृश्य पकड़ अपना बेडा गर्क तो नहीं कर रखा. ध्यान से पीछे झांकिए. बहुत कुछ मिलेगा. जिस ने आप को इन्सान से मशीन में बदला हो सकता है. 

इस मशीनी-करण को तोड़िए.

यदि सीधे हाथ से लिखते हैं तो कभी उलटे हाथ से लिखिए. लेफ्ट चलते हैं तो कभी राईट चलिए. सीधे चलते हैं तो कभी उलटे चलिए, साइड-साइड चलिए. गुरूद्वारे जाते हैं तो मन्दिर भी जाईये और मन्दिर जाते हैं तो मस्ज़िद भी जाएँ. आस्तिक है तो नास्तिकों को पढ़िए. नास्तिक हैं तो आस्तिकों के तर्क पढ़िए, सुनिए. मुस्लिम हैं तो एक्स-मुस्लिम को सुनिए. 

अपनी सोच के खिलाफ सोचिये. अपने जीवन के ढर्रे को तोड़िए. 
तभी आप कह पायेंगे कि नहीं, मैं मशीन नहीं हूँ. मैं इन्सान हो. मैं पाश में बंधा नहीं हूँ. मैं पशु नहीं हूँ. मैं इन्सान हूँ. 

वरना मशीन की तरह ही जीते चले जायेंगे और मशीन की तरह ही मर जायेंगे. 

नमन

तुषार कॉस्मिक

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