Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Monday, 18 April 2022
मेरी व्यायाम यात्रा
Sunday, 17 April 2022
धर्म और राजनीति -- २ सब से बड़े फ्रॉड
धर्मों ने इन्सान का जेहन जकड़ रखा है. इन्सान की Core Values धर्म से आती हैं. लेकिन ये जो धर्म हैं न आज जितने भी, इन सब को मैं अधर्म मानता हूँ. ये धर्म हैं ही नहीं. ये गिरोह हैं. धर्मों का गिरोह्बाज़ी से, रस्मों, रिवाजों से, रिवायतों से क्या लेना-देना?
मैं एक पेड़ के सहारे हेड-स्टैंड करता हूँ, मैंने उसे चूम लिया, एक लड़की बेंच प्रेस करती हुई आयरन प्लेट्स को चूम रही थी, मोची आता है गली में, उसे नमन करता हूँ मैं, क्या है यह?
धर्म है.
एक लड़की से चार लडके rape करने की कोशिश कर रहे थे, कपड़े फाड़ चुके थे, लड़की चीख रही थी. एक अधेड़ सरदार जी कूद गए, छोटी कृपान थी उन के पास, चला दी. तीन लडके भाग गए, एक मारा गया, क्या है यह?
धर्म है.
एक समाज-वैज्ञानिक लाइब्रेरी में रात-रात भर सर खपाता है, फिर कोई फार्मूला निकाल लाता है समाज कल्याण का. क्या है यह?
धर्म है.
जिन्हें आप धर्म समझते हैं, मैं उन के सख्त खिलाफ हूँ. वो सिर्फ अँधा-अनुकरण है. अंध-विश्वास हैं. माँ-बाप ने, समाज ने जो बता दिया आप ने मान लिया. बुद्धि तो खर्च की ही नहीं. करने ही नहीं दी गयी.
डेमोक्रेसी जिसे आप समझते हैं, जिस पर आप की सारी राजनीति खड़ी है. वो भी फ्रॉड है.
डेमोक्रेसी का मतलब है जनता का शासन, जनता द्वारा और जनता के लिए. पैसे का नंगा नाच खेला जाता है राजनीति में. एक निगम का चुनाव लड़ना हो तो करोड़ों रुपये लगते हैं. और इसे कहते हैं आप जनता का शासन? लानत है! यह सिर्फ करोड़पतियों का, अरब-पतियों का शासन है.
और नेताओं के बाद जो सरकारी अफसर हैं, जनता के सेवक, पब्लिक सर्वेंट, वो जनता की गर्दन पर चढ़े बैठे हैं, काले अँगरेज़. वो बदतमीज़ हैं और अव्वल दर्जे के काम-चोर हैं और रिश्वत-खोर हैं.
इसे रिपब्लिक कहते हैं?
फ्रॉड है यह.
तुषार कॉस्मिक
पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को जो अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए
मैं इस बात में नहीं जाता हूँ कि किसान कानून सही थे या गलत या फिर कितने सही थे और कितने गलत. लेकिन एक बात तय है कि सरकारों को कानून बिना जनता को विश्वास में लिए पास नहीं करने चाहियें.
क्या रूस और यूक्रेन युद्ध से पहले वहाँ की जनता से युद्ध के लिए सहमति ली गयी थी? क्या कोई वोटिंग कराई गयी थी? या फिर इन दोनों मुल्कों के नेताओं ने अपनी सनक जनता पर थोप दी? मैंने तो सुना है रूस की जनता युद्ध का विरोध कर रही थी और यूक्रेन की जनता युद्ध के दौरान धूप सेक रही थी.
अभी पूरी दुनिया कोरोना से दहला दी गयी, अभी भी दहलाई जा रही है. क्या जनता की राय ली गयी, पूरे आंकड़े दे कर? क्या उन को उन आंकड़ों का विश्लेषण करने का अवसर दिया गया? क्या जो लोग कोरोना को फर्जी बता रहे थे, उन की आवाज़ जनता तक पहुँचने दी गयी? नहीं दी गयी. सब लीडरान ने मिल कर घोषित कर दिया कि कोरोना महामारी है और इस के लिए lockdown, मास्क, वैक्सीन ज़रूरी है और जनता ने मान लिया, मान इस लिए लिया चूँकि जनता तक इस Narrative के विरोध में इनफार्मेशन, तर्क पहुँचने ही नहीं दिए गए.
तो साहेबान, मेरा कहना यह है कि पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए. जनता की राय के बिना बहुत कम फैसले लिए जाने चाहियें, या कोई भी फैसले लिए ही नहीं जाने चाहिए और आज यह बहुत आसान है, मोबाइल फ़ोन सब के पास हैं, इन फ़ोनों से वोटिंग ली जा सकती है लेकिन उस से पहले जनता तक सामने खड़े मुद्दे से जुड़ी हर तरह इम्कीपोर्टेन्ट इनफार्मेंमेशन भी पहुंचनी चाहिए. यह जैसा कोरोना मामले में हुआ कि विरोधी विचारों को Disaster Act तले दबा दिया गया, वैसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. जहां तक हो सके, जनता को सोचने का, बहस करने का मौका दिया जाना चाहिए.
तुषार कॉस्मिक
जिन को मेरा लेख लम्बा लगता है, वो दफ़ा हो जायें
क्या आप को कोई बढ़िया सा घर गिफ्ट दे तो आप यह कहेंगे कि छोटा सा होता, सस्ता सा होता तो ठीक था? क्या प्यारा सा बच्चा आप के साथ खेले तो आप यह सोचेंगे कि बस एक मिनट खेले तो ठीक है? क्या आप यह सोचते हैं कि सेक्स शुरू होते ही खतम हो जाये? क्या आप अपनी favourite dish बस एक चमच्च भर ही खाना चाहते हैं? मेरा लेखन गिफ्ट है, बढ़िया सेक्स है, प्यारे बच्चे का प्यार है, ये बढ़िया Dish है. जिन को मेरा लेख लम्बा लगता है, वो दफ़ा हो जायें. ~तुषार कॉस्मिक
Saturday, 16 April 2022
बाबा रामदेव को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें
बाबा रामदेव.....
इन्होंने योगासनों और प्राणायाम भारतीय घरों में पहुँचाया टीवी के ज़रिये. हालाँकि योगासनों और प्राणायाम कोई नई बात नहीं थी. जब हम लोग पांचवी छठी क्लास में थे तभी हमें यह सब पढ़ाया गया था और तभी हम ने कुछ आसन करने सीख भी लिए थे.
आसनों पर बाकायदा चैप्टर था फिजिकल एजुकेशन में. एक-एक आसन की विधि, सावधानियां और लाभ आदि.
फिर अनेक किताब राम देव से पहले मौजूद थीं ही योग पर. मेरे पास आज भी हैं.
टीवी पर आ कर भी कई लोग योग सिखाते ही थे. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का नाम सुना हो आप ने. यह सब ये भी सिखाते थे. पश्चिम में तो बिक्रम योग भी प्रसिद्ध था.
खैर, योग मात्र योगासन और प्राणायाम नहीं है. यह 'अष्टांग योग' है. यानि आठ अंग हैं जिस के. १) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि . मतलब आसन एक अंग है और प्राणायाम एक और. लेकिन बड़ा अजीब लगता है जब लोग इन दो को ही योग नहीं, "योगा" समझते हैं.
कहते हैं कि योग पतंजलि की देन है. मुझे लगता है, योग उन का अकेले का अविष्यकार नहीं होगा, यह सब कई व्यक्तियों का मिला-जुला प्रयास रहा होगा. उन का भी. पतंजलि ने यह सब compile किया होगा.
खैर, प्राइवेट टीवी चैनल आये-आये थे और उन पर बाबा राम देव रोज़ प्रकट होने लगे. वो प्राणायम से बड़ी-बड़ी बीमारियों के ठीक करने का दावा भी करते थे. अब है क्या कि सामूहिक सम्मोहन का बहुत असर होता है. मन अपना काम करता है. एक दूसरे को देख प्रभावित होता है. भीड़ को देख प्रभावित होता है. तो साहेब, इन बाबा का समाज में एक स्थान बनता चला गया.अच्छी बात थी.
फिर इन्होने आयुर्वेदिक दवा लांच कर दीं. वो भी अच्छी बात थी. हालाँकि कुछ भी नया नहीं था. इन से पहले सैंकड़ों कंपनी वो ही सब दवा बनाती थी और बेचती थीं.
फिर बाबा दाल, चावल, चीनी सब बेचने लगे. लेकिन बाबा अपने आप में एक ब्रांड बन चुके थे. सो सब बिकता चला गया.
यहाँ तक कुछ खराब नहीं है. लेकिन खराबी कहाँ है? मेरा नजरिया यह है कि बाबा को सिवा आसन और प्राणयाम के कुछ और पता नहीं. लेकिन यह महाशय सब जगह अपनी नाक घुसेड़ने का प्रयास करते रहे हैं. जब पहली बार मोदी सरकार बननी थी तो यह जनाब कहते थे कि मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा. अभी जब पेट्रोल के रेट लगातार बढ़ाये जा रहे हैं तो इन से किसी पत्रकार ने पूछ लिया, "बाबा, अब आप की क्या राय है पेट्रोल के रेट बढ़ते जा रहे हैं? आप तो कहते थे कि मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा ?"
अब बाबा तो उस पत्रकार पर बुरी तरह भड़क गए, उस से बदतमीज़ी करने लगे. बाबा के जवाब से यह भी पता लगता है कि ये कितने बड़े बाबा हैं, योगी हैं. इन को ध्यान, धारणा और समाधि से कोई लेना-देना नहीं है. ज़रा सा किसी ने आईना दिखाया और ये बोले, "हाँ, बोला था मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा, अब नहीं हुआ तो क्या पूँछ पाड़ लेगा मेरी?" इस से यह भी साबित होता है कि ये कोई पूंछ वाले जानवर हैं. जब वो खुद मान रहे हैं कि उन की पूँछ है तो हम काहे मना करें?
पीछे ये बोलते थे कि बड़े करेंसी नोट बंद कर दो, बड़े नोटों में रिश्वत लेना-देना आसान होता है. अब यह एक दम बकवास बात थी. सरकार ने मानी भी नहीं. सरकार ने हजार रुपये का नोट बंद कर के दो हजार रुपये का नोट निकाल दिया. रिश्वत क्या नोट-छोटे बड़े होने से घटेगी-बढ़ेगी? रिश्वत इस लिए ली-दी जाती है चूँकि आप के सिस्टम में छेद होते हैं, चूँकि अफसर जनता का नौकर नहीं जनता का मालिक बन बैठता है, चूँकि उसे नौकरी से निकालना आसान काम नहीं होता, चूँकि उस के काम की जवाब-देयी न के बराबर होती है. अब उस ने रिश्वत लेनी है तो वो ज़रूरी नहीं खुद लेगा. वो पान वाला फिक्स कर देगा. वहां जाओ और पैसे दो. वो मोची फिक्स कर लेगा. वो नाई, कसाई, हलवाई किसी को भी फिक्स कर लेगा. वो ज़रूरी नहीं कैश पैसे ले. वो कार, देशी-विदेशी ट्रिप, महंगी दारू, मंहगी लड़कियां......कुछ भी रिश्वत में ले सकता है. लेकिन बाबा को इतनी डिटेल में कहाँ जाना था? बड़े नोट बंद कर दो. यह था बाबा का सामाजिक ज्ञान! बकवास!!
मैं और मेरे जैसे अनेक लोग मानते हैं कि को.रो.ना. नकली बीमारी है. बाबा को भी अहसास है. बाबा बोले, "यह बहुत बड़ा षड्यन्त्र है, बहुत बड़े-बड़े लोग इस में शामिल है, लेकिन मैं अभी कुछ ज़्यादा नहीं बोलूँगा. बोलूँगा तो सब मेरे पीछे पड़ जायेंगे. 5 साल बाद मैं इस का पर्दा-फ़ाश करूंगा." वैरी गुड! 5 साल बाद क्या पूच्छल पाड़ लोगे बाबा? क्या घंटा उखाड़ लोगे बाबा? ज़रूरत आज है बोलने की और आप बोलोगे 5 साल बाद. मतलब सांप निकल जायेगा, फिर लकीर पीटोगे. क्या हम नहीं बोल रहे? क्या डॉक्टर Tarun Kothari, डॉक्टर विलास जगदले, डॉक्टर NK Sharma और कई-कई लोग नहीं बोल रहे कि को.वि.ड. नकली महामारी है? आप इसलिए नहीं बोलेंगे चूँकि आप को अपने साम्राज्य को खतरे में नहीं डालना. फिर आप को जो लोग लाला राम देव कह रहे हैं, क्या गलत कह रहे हैं?
तो कुल मिला कर मेरा नतीजा यह है कि बाबा का जितना बड़ा नाम है, जितना बड़ा ब्रांड बाबा बन चुके हैं, बाबा उस के लायक बिलकुल भी नहीं हैं. उन को सिवा आसन और प्राणायाम के कुछ नहीं आता-जाता. आसान आप को 'नताशा नोएल' YouTube पर उन से बेहतर सिखा देंगी. प्राणायाम सिखाने वाले भी भरे पड़े हैं वेब पर. सामाजिक समझ पर आप को वेब पर उन से बेहतर बहुत लिखने बोलने वाले मिल जायेंगे. मेरे 900 के करीब लेख हैं, उन के बोल-बचन से तो कहीं बेहतर.
फिर भी उन के सामाजिक योगदान को मैं शून्य नहीं मानता हूँ. उन का आसानों और प्राणायाम और आयुर्वेद को समाज तक पहुँचाने का योगदान तो है ही. टीवी के ज़रिये भी और साक्षात भी. लेकिन भारत में किसी के नाम के आगे 'बाबा' लग जाये, कोई भगवा कपड़े पहने हो तो लोग बहुत ज़्यादा प्रभावित होने लगते हैं, अंधे होने लगते हैं, अक्ल के अंधे. बस वही मत होईये. बाबा को इज्ज़त दीजिये लेकिन उतनी जितने के वो लायक हैं. उन को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें. वो आसन और प्राणायाम जानते हैं तो बस उतनी ही इज्ज़त उन को बख्शिए.
तुषार कॉस्मिक
Friday, 15 April 2022
इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.
इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.गिरोह चाहता है कि वो मज़बूत हो, और ज़्यादा मज़बूत हो, सब से मज़बूत हो, यही इस्लाम चाहता है. और इस के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है. येन-केन-प्रकारेण. साम-दाम-दंड-भेद सब तरह से.
मुस्लिम लड़की गैर-मुस्लिम लड़के से शादी कर ले, यह इस्लाम को स्वीकार ही नहीं, वो लड़की इस्लाम से बाहर हो जाएगी और मार भी जाये तो बड़ी बात नहीं.
नागराजू का क़त्ल कर दिया गया सुल्ताना के भाई द्वारा. दिन दिहाड़े. हैदराबाद की सड़क पर.
मुस्लिम लड़का यदि गैर-मुस्लिम लड़की से शादी कर ले तो इस का इस्लाम स्वागत करेगा चूँकि इस्लाम इस लड़की को मुस्लिम करेगा, अब इस से जो बच्चे पैदा होंगे वो भी मुस्लिम होंगे, इस तरह से इस्लाम बढ़ेगा और यही इस्लाम चाहता है.
भारत में Love-Jehad की चर्चा छिड़ती रहती है. कुछ लोग तो इसे सिरे से अस्वीकार कर देते हैं कि ऐसा कुछ है ही नहीं. कुछ इसे संघी शोशा बताते हैं. लेकिन मेरी नज़र में यह एक सच्चाई है. मेरी गली में ही कम से कम चार घर मैं ऐसे देखता हूँ जिन में औरत हिन्दू घर से है और पति मुस्लिम घर से है. पति ने इस्लाम नहीं छोड़ा, लेकिन पत्नी को मुस्लिम बना दिया गया. अब इन के बच्चे भी मुस्लिम हैं.
गैर-मुस्लिम हलाल मीट खरीदे तो इस्लाम इस का स्वागत करेगा, कोई मनाही नहीं लेकिन मुस्लिम यदि झटका मांस खरीद ले तो यह हराम है. यही नहीं, जितना मैंने देखा है मुस्लिम का हर सम्भव प्रयास होता है कि वो बिज़नस मुस्लिम को ही दे. मेरे बिज़नस पार्टनर हैं मुस्लिम. हम हिन्दू-बहुल एरिया में रहते हैं, प्रॉपर्टी का काम करते हैं. निश्चित ही हमारा ज़्यादा बिज़नस गैर-मुस्लिम से ही आता है. लेकिन ये मेरे बिज़नस पार्टनर को जब आगे काम देना होता है तो ये ढूंढ के किसी मुस्लिम को देते हैं. इन का फॅमिली डॉक्टर मुस्लिम है लेकिन यदि इन को मुफ्त इलाज करवाना होता है तो उस के लिए ये जैन या हिन्दू मंदिर जाते हैं, गुरूद्वारे जाते हैं. तब इन का दीन इन के आड़े नहीं आता.
कोई भी गैर-मुस्लिम यदि इस्लाम स्वीकार करे तो मुस्लिम समाज बड़ा हर्षित होता है लेकिन कोई मुस्लिम यदि इस्लाम छोड़ दे तो इस्लाम में यह स्वीकार्य नहीं है. ऐसा व्यक्ति वाजिबुल-कत्ल है.
लगभग हर गैर-मुस्लिम समाज आबादी कम करने में यकीन रखने लगा है. हिन्दू -सिक्ख-जैन-बौद्ध आदि के २-३ बच्चों से ज़्यादा नहीं हैं. कईयों के तो बस १-२ बच्चे ही हैं. मेरे दो बच्चे हैं. मेरे सांडू का एक ही लड़का है. मैंने पीछे दो मुस्लिम परिवारों को दो फ्लैट किराये पर दिलवाए, उन दोनों फॅमिली के मिला कर कोई 15 मेम्बर थे.
और इस के अलावा इतिहास भरा है मुस्लिम ने गैर-मुस्लिम के पूजा स्थल तोड़े हैं. यहीं क़ुतुब- मीनार के साथ जो टूटी-फूटी मस्जिद है वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनाए गयी, यह वहीं लिखा है. अजमेर में "अढाई दिन का झोपड़ा" नामक जगह है. यह अढाई दिन में मंदिर तोड़ के मस्जिद बनाई गयी थी. अफगानिस्तान में बामियान में बुद्ध की ये बड़ी मूर्तियाँ. पूरा पहाड़. वर्ल्ड हेरिटेज. तोड़ दिया. तुम मूर्ति पूजा मानो न मानो लेकिन उन मूर्तियों का ऐतिहासिक महत्व था. डायनामाइट लगाया. Finish.
जहाँ-जहाँ भी गैर-मुस्लिम अल्प-संख्या में हैं, वहां मुस्लिम उन का क्या हाल करते हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर में गैर-मुस्लिम के साथ क्या हुआ? उन्हें छोड़ भागना पड़ा सब. लाखों गैर-मुस्लिमों में एक मुस्लिम बड़े मज़े से रह लेगा, लेकिन एक मुस्लिम बहुल इलाके में आज नहीं तो कल गैर-मुस्लिम को या तो मार दिया जायेगा या भगा दिया जायेगा या मुस्लिम कर दिया जायेगा.
यह हैं चंद तरीके जिन से साबित होता है कि इस्लाम कोई धर्म की तरह नहीं, गिरोह की तरह चलता है.
और जैसा व्यवहार इस्लाम करता है, वैसा ही जवाब यदि गैर-मुस्लिम देने लगें तो मुस्लिम चीखने लगते हैं. तब इन को गांधी याद आते हैं. तब इन को ईश्ववर-अल्लाह तेरो नाम याद आते हैं. तब इन को सेकुलरिज्म याद आता है. Multi-Culturism याद आता है. खुद चाहे 5 टाइम मस्जिद से अल्ला-हू-अकबर (अल्लाह है सब से बड़ा), ला-इलाह-लिल्लाह (नहीं कोई अल्लाह के सिवा पूजनीय) कहते रहें. जैसे इन के सवाल का जवाब देने लगो तो इन को भारत में फासीवाद नज़र आने लगता है, भारत में डर लगने लगता है.
भारत का कोई धर्म परवाह नहीं करता कि आप उस के धर्म में आओ. यह इब्रह्मिक धर्मों में है और सब से ज़्यादा मुस्लिम में है. आप गुरूद्वारे जाते हो, आप के जूते सम्भाले जायेंगे, साफ़ किये जायेंगे, प्रसाद दिया जायेगा, लंगर दिया जायेगा. कोई आप को सिक्ख बनाने का प्रयास नहीं करता. कोई पूछता तक नहीं कि आप किस जात-धर्म के हो. किसी को कोई मतलब है ही नहीं. न ही मंदिरों में ऐसा कोई आयोजन किया जाता है कि आप गैर-हिन्दू से हिन्दू किये जाओ. यह जो 'घर-वापिसी' की बात उठ रही है, वो सब इस्लाम की क्रिया की प्रतिक्रिया है.
असल में धर्म की निशानी ही यही होनी चाहिए कि अपनी बात रख दी बस. किसी को समझ आये तो ठीक न समझ आये तो ठीक. बुद्ध-महावीर, नानक, कबीर- ये लोग कोई तलवार ले कर चलते थे कि हमारी बात मानो, नहीं तो काट देंगे? जहाँ तलवार उठाई, जहाँ लालच दिया, जहाँ चालबाज़ी प्रयोग की, वहां धार्मिकता कहाँ रही? यह राजनीति हो सकती है, यह व्यपार हो सकता है, यह घटिया व्यवहार हो सकता है लेकिन धार्मिकता नहीं.
धार्मिकता मैं सिखाता हूँ और मेरे जैसे कई लोग सिखा चुके हैं और आज भी सिखा रहे हैं. हम तर्क सिखाते हैं. हम खुली सोच रखना सिखाते हैं. हम सोच के बन्धनों से आज़ादी सिखाते हैं. हम सिखाते हैं 'अप्प दीपो भव' यानि अपना दीपक खुद बनिये. हम सिखाते हैं 'आपे गुर आपे चेला'. हम आप को कोई देवी, देवता, कोई भगवान, कोई शैतान का गुलाम नहीं बनाते. हम आप को गिरोह-बाज़ी नहीं सिखाते. हम आप को आप की निजता सिखाते हैं. हम आप को "अहम् ब्रह्मस्मि" समझना सिखाते हैं.
तुषार कॉस्मिक
"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीयेगा वो दहाड़ेगा"... बाबा अम्बेडकर. लेकिन कौन सी शिक्षा?
"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीयेगा वो दहाड़ेगा"... बाबा अम्बेडकर.
लेकिन कौन सी शिक्षा?
यह जो शिक्षा के नाम पर गुड़-गोबर किया जा रहा है उस से तो गोबर-गणेश ही पैदा होंगे.
जो शिक्षा तुम्हारे विचारों को दहका न दे, तुन्हें तपा न दे, तुम्हारे सदियों पुराने विचारों को जला न दे, तुम्हें तार्किक ढँग से विचार करना सिखा न दे, वो शिक्षा नहीं है, वो फ्रॉड है औऱ हाँ, तुम्हारे साथ शिक्षा के नाम पर फ्रॉड ही किया जा रहा है.
तुम्हारे स्कूल कॉलेज बंद कर दो अगले सौ सालों के लिए, इंसानियत सुधर जाएगी...ओशो
और ओशो ने सही कहा था
तुषारापात
Thursday, 14 April 2022
रिटायर्ड लोग, ख़ास सरकारी नौकरे से रिटायर्ड लोग, मैं देखता हूँ रिटायरमेंट के बाद का जीवन सम्भाल ही नहीं पाते.
रिटायर्ड लोग, ख़ास सरकारी नौकरे से रिटायर्ड लोग, मैं देखता हूँ रिटायरमेंट के बाद का जीवन सम्भाल ही नहीं पाते. एक सज्जन की अच्छी खासी जॉब थी, रिटायर हुए, कुछ पैसा बिज़नस में गंवा दिया चूँकि दुनियादारी की ट्रेनिंग ही न थी. हसंते-खेलते थे, अब ऐसे हो गए जैसे गुब्बारे में से हवा निकल गयी हो. एक सज्जन अच्छे-खासे हट्टे-कट्टे हैं, लेकिन मजाल रिटायरमेंट के बाद चवन्नी कमा के देखी हो. दुनिया जहां की फ़िज़ूल इनफार्मेशन इन के पास होती है. किस आदमी का चक्कर किस जनानी के साथ है, किस की बीवी किस के साथ सेट है, सब पता है. नाम अब्दुल है मेरा, सब की खबर रखता हूँ.
रिटायर लोगों को गाने, बजाने, नाचने, अभिनय या फिर कोई भी और कला की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि ये लोग आलतू-फ़ालतू बकवास-बाज़ी में न पड़ के समय का सदुपयोग कर सकें. या फिर इन को नाई, हलवाई, कारपेंटर, इलेक्ट्रीशियन, पेंटर जैसे कामों की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि ये लोग यदि कुछ कमाना चाहें तो हाथ-पैर चला कमा भी सकें. ~ तुषार कॉस्मिकशंघाई में इतना कड़ा Lockdown लगा है कि लोग मौत मांग रहे हैं.
शंघाई में इतना कड़ा Lockdown लगा है कि लोग मौत मांग रहे हैं. याद रखना मेरी बात, अपने राजनेताओं से पूछो, गर्दन पकड़ पूछो, सबूत क्या है इन के पास कि एक भी मौत कोरोना से हुई है. मौत हो रही हैं Lockdown से. ये Lockdown नहीं हैं, ये तुम्हें जेलों में डाला जा रहा है. ये तुम्हारी साँस लेने की आजादी तक को छीना जा रहा है. ये तुम्हारी दोस्त-रिस्श्तेदारों से मिलने की आज़ादी को छीना जा रहा है. रिसर्च करो. इस वैश्चिक फ्रॉड का पर्दा फाश करो. ~तुषार कॉस्मिक
Monday, 11 April 2022
NWO-New World Order
मैं और मेरे जैसे बहुत लोग को.Ro.ना को अंतर्राष्ट्रीय फ्रॉड मानते हैं. लिखते आ रहे हैं, बोलते आ रहे हैं. हमारी आवाज़ बहुत कमजोर है. मेन स्ट्रीम मीडिया में तो मेरे जैसे लोगों की आवाज़ है ही नहीं. सोशल मीडिया पर भी गला घोंटा जाता है. फेसबुक अकाउंट बंद किये जा रहे हैं. YouTube विडियो उड़ा दिए जा रहे हैं.
खैर, पिछले अढाई साल से यह ड्रामा चलता आ रहा है. अढाई साल से हमारे जैसे लोगों ने भी बहुत लिखा है, बोला है.
लोग हम से पूछते हैं, "भाई, अगर यह फ्रॉड है तो फिर इस के पीछे कोई तो एजेंडा होगा? कौन कर रहे हैं यह फ्रॉड?"
कोई बताते हैं कि पैसा कमाना मन्तव्य है. वैक्सीन बेचना.
चलिए, जितना मुझे समझ आ रहा है, बताता हूँ.
इस के पीछे मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है ही नहीं.
इस के पीछे मुख्य उद्देश्य है NWO. मतलब New World Order. और इस के पीछे हैं चंद अति-धनाडय लोग. जिन में से बिल गेट्स एक है. अमेरिका का हेल्थ मिनिस्टर डॉक्टर Fauci है और भी लोग हैं जो पर्दे के पीछे हैं. इन सब ने WHO की मदद से, सब राष्ट्राध्यक्षों की मदद से यह खेल खेला जा रहा है.
उद्देश्य है, आम-जन के हकूक छीनना और NWO ( New World Order) लाना.
चूँकि यह सब अंदाज़े हैं, तार्किक अंदाज़े हैं, लेकिन एक-दम क्लियर किसी को नहीं है. NWO में आम-जन को क्या हक़ मिलेंगे, क्या छिन जायेंगे, आबादी कितनी घटा दी जाएगी, कितनी बढ़ा दी जाएगी, सरकारें किस तरह से काम करेंगे? अभी किसी को ठीक-ठीक पता नहीं है.
लेकिन जिस तरह से कोरोना के नाम पर आम जन के कमाने, खाने, घर से बाहर निकलने, साँस लेने तक के हक़ छीन लिए गए, जिस तरह सरकारों ने आम लोगों को गृह-कारागार में डाल दिया, सो आगे आम इन्सान की आज़ादी आज जितनी रहेगी, इस पर गहन शँका है.
खैर, NWO कोई नई चीज़ नहीं है. असल में तो हर सोचने-विचारने वाला व्यक्ति NWO की बात कर के गया है.
इस्लाम क्या है? इस्लाम क्या रोज़े, नमाज़, ईद, बकरीद ही है. नहीं. इस्लाम पूरी समाजिक व्यवस्था है. इस्लाम पूरी दुनिया के लिए एक व्यवस्था है. इस्लाम World Order है.
Aldous Huxley ने कहानियां लिखी हैं, NWO पर. फिल्मों भी बनी हैं इन कहानियों पर.
ओशो को लोग आज भी गाली देते हैं. समझना तो बहत दूर की बात. ओशो ने भी नए समाज की बात की है. सिर्फ बात ही नहीं की. नया समाज जीवंत कर के दिखा दिया. उन्होंने अमेरिका में ऑरेगोन नाम की जगह में एक पूरा शहर बसा दिया था. अपनी सडकें, अपना हेलिपैड, अपनी कारें. 5 साल वो दुनिया रही. 1981 से 1988 के बीच. मुझे लगता है पृथ्वी पर वैसा समाज शायद ही कभी बना हो. एक दम स्वर्ग. NWO था यह.
आप मेरा लिखा यदि पढ़ते हैं तो समझते ही होंगे कि मैं धर्म, राजनीति, शिक्षा सब नकार देता हूँ. मैं तो असल में सारी ही सामाजिक व्यवस्था नकार देता हूँ. तो फिर समाज कैसा हो? मैंने कई लेख लिखे हैं कि नया समाज कैसा होना चाहिए.
मुझे लगता है जिस तरह की दुनिया है, अतार्किक विश्वासों, अंध-विश्वासों में जिस तरह से दुनिया फँसी है, NWO तो आना ही चाहिए लेकिन वो NWO कैसा होना चाहिए और कैसे लाना चाहिए, यह बहस का मुद्दा है.
क्या वो NWO हॉलीवुड फिल्म के विलन Thanos जैसा लाता है, वैसे लाना चाहिए? चुटकी मारी और आधी आबादी साफ़.
क्या वो NWO को.Ro.ना जैसी नकली बीमारी दिखा के या कोई और नकली आपदा पैदा कर के लाना चाहिए?
तो मेरा जवाब है, "नहीं". ऐसा नहीं करना चाहिए.
NWO के लिए छद्म तरीके न अपना कर सीधे तरीके अपनाये जाने चाहियें. यदि आप अमिताभ बच्चन को वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रयोग कर सकते हो तो आप आबादी कम करने के लिए भी प्रेरित कर सकते हो. आप नकली बीमारी का भ्रम फैला कर पूरी दुनिया में अफरा-तफरी मचा सकते हो तो आप कुछ भी कर सकते हो. यह Negative Approach है.
Positive Approach प्रयोग करो न.
आप को लगता है, यह जनतंत्र सही जनतंत्र नहीं है, इस में असल नायक, असल समाज वैज्ञानिक न आ कर आड़े-टेड़े लोग पॉवर में आ जाते हैं तो समझाओ, सुझाओ लोगों कि असल जनतंत्र कैसे आएगा.
आप को लगता है, लोग धर्मों में उलझे हैं, समझाओ लोगों कि धर्म उन के लिए कहाँ नुक्सान करते हैं-कहाँ फायदा करते हैं. तेज़ी से समझाओ, तमाम मडिया प्रयोग करो. बहस खड़ी करो. पूरी दुनिया को बहस का अखाड़ा बना दो. होने दो समुद्र-मंथन. निकलने दो विष. निकलेगा अमृत भी. तर्क-वितर्क की छलनी से सब मान्यताओं को गुज़रने दो. सब कचरा साफ़ होता चला जायेगा.
यह कोरोना जैसे चोर रास्ते मत करो अख्तियार. Thanos बनने की कोशिश मत करो. यह कामयाब होगा नहीं. अंततः ढह ढेरी होगा. अफरा-तफरी तो फैलाएगा लेकिन सफल नहीं होगा. हम होने ही नहीं देंगे. याद रखना.
तुषार कॉस्मिक
तो यह है, मैं जो समझता हूँ प्रेम से.
प्रेम. यह शब्द ध्यान में आते ही, ज़्यादातर लोगों के ज़ेहन में बॉलीवुडिया लड़का-लड़की का प्रेम आएगा.
यह असल प्रेम है ही नहीं. यह बाज़ारी-करण है सेक्स का.
"ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडत होए."
क्या यह इस प्रेम की बात है.
न. न.
आप प्रेममय होते हैं तो पूरी कायनात के लिए होते हैं, वो है असल प्रेम. और वो होते हैं आप जीवन की, जगत की अपनी समझ से. अगर समझ उथली है तो आपका प्रेम उथला ही होगा. समझ गहरी है तो किसी की गर्दन भी काटोगे, तो भी आप को दर्द होगा.
गुरु गोबिंद के शिष्य दुश्मन को काट भी रहे थे और उन्ही के शिष्य भाई कन्हैया उन को पानी भी पिला रहे थे. यह है प्रेम जो जीवन और जगत की समझ से उपजा है. "एक नूर ते सब जग उपजा, कौन भले कौन मन्दे." गर्दन काटना मज़बूरी हो तो काटेंगे ही, फिर भी प्रेम अपनी जगह है.
प्रेम किसी व्यक्ति विशेष के लिए होने का अर्थ यह नहीं कि बाकी कायनात से कोई दुश्मनी है या दुराव है. नहीं ऐसा कुछ नहीं. "एक नूर ते सब जग उपजा, कौन भले कौन मन्दे." लेकिन हाँ, सब तो करीब आने से रहे. तो जो करीब हैं, वो करीब हैं ही.
तो यह है, मैं जो समझता हूँ प्रेम से.
~तुषार कॉस्मिक
रिश्ते - लम्बे, छोटे, उथले, गहरे
मैंने देखा है, इंसान अक्सर अपनी नाक से आगे नहीं देख पाता.
उस की सोच बहुत लंबी नहीं होती.
वो पास के तुरत फायदे के लिए भविष्य के बड़े और लगातार होने वाले फायदे को नज़र-अंदाज़ कर देता है.
वो सोने का अंडा रोज़ लेने के बजाए तुरत-फुरत लालच में मुर्गी की हत्या कर देता है.
दुनिया की आबादी करोड़ों में है, लेकिन आप/हम बस 100 या 1000 लोगों के सम्पर्क में ही आ पाते हैं.
और
उस में भी गहन सम्पर्क में चंद लोग ही रह जाते हैं. रिश्ते बना कर रखिये, जहाँ तक हो सके, अच्छे रिश्ते ता-उम्र काम आते हैं. ~तुषार कॉस्मिक
Sunday, 10 April 2022
3 किस्से
प्रॉपर्टी डीलर हूँ. 3 किस्से सुनाता हूँ. सीखने को मिलेगा आप को.
अभी पीछे 'पंजाबी बाग दिल्ली' का एक फ्लोर बेचा था 3.5 करोड़ रुपये में. 50 लाख बयाना करवा दिया था. बेचने वाली पार्टी का मन बदल गया, वो खरीदने वाले को 70 लाख वापिस देने को राज़ी थीं. खरीद-दार ने नहीं लिया. मिन्नते करते रहे हम लोग, खरीदने वाला नहीं माना.
फिर हमें पता लगा कि खरीदने वाली पार्टी के पास बकाया पेमेंट नहीं है. उस ने सिर्फ बयाना दिया है, डील आगे बेचने के लिए. अब उसे सिर्फ 62 लाख ही वापिस दिए गए. और उसे मानना पड़ा.
एक फ्लैट कोई 50 लाख के करीब में ऑफर कर रहे थे हम खरीददार को. कई बार समझाया, उसे पल्ले नहीं पड़ी बात. हम ने वो फ्लैट किसी और को ५२ लाख रुपये का बिकवा दिया. कोई 6 महीने बाद यही फ्लैट पहले वाली पार्टी ने हमारे ज़रिये ही 58 लाख रुपये में खरीद लिया. समझदार!
एक खरीद-दार को हम ने कई प्रॉपर्टी दिखाईं'.अच्छी-अच्छी. फिर बड़े ही आत्मीय ढंग से हम ने जो प्रॉपर्टी हमें बेस्ट समझ में आई, वो प्रॉपर्टी उन को सुझाई. कारण भी बताये कि क्यों बेस्ट हैं. उन को हमारी बात समझ नहीं आई.
लेकिन उन्होंने हमारे ज़रिये ही एक और प्रॉपर्टी खरीदी, जो हम ने कभी ज़ोर दे के नहीं समझाई कि ले लो. लेकिन उन को वो ही समझ आई. ली भी कोई 4-5 लाख महँगी. फिर हमारे मना करने पे भी Renovation में काफ़ी से ज़्यादा पैसे लगा दिए. अब बेचना चाहते हैं, जो कि निकट भविष्य में लागत मूल्य पर भी बिकना मुश्किल है.
ऐसे गलतियाँ मैंने भी की हैं. हम सब ने की होंगीं. सोचिये और बचिए. ~ कॉस्मिक
नास्तिक धार्मिक है और आस्तिक अधार्मिक. कैसे?
तुम्हें लगता है कि नास्तिक तो कोई अधार्मिक प्राणी होता है.
और
आस्तिक बहुत बड़ा धार्मिक.
लेकिन
मेरी नजर में नास्तिक ही धार्मिक है.
और
आस्तिक अधार्मिक.
आस्तिक कौन है? उसे बस कुछ धारणाएं पकड़ा दी गयी और वो अँधा हो के उन धारणाओं का पालन कर रहा है. उसे बता दिया गया कि अल्लाह, भगवान, वाहेगुरु है कोई जो इस कायनात को बनाने वाला है, चलाने वाला है और उस की प्रार्थना करने से, अरदास करने से, नमाज़ पढ़ने से वो मदद करता है.
कभी आस्तिक ने बुद्धि चलाई? सवाल उठाये इन धारणाओं पर?
कही गयी बात को मानना ही हो तो उस के लिए क्या बुद्धि चलाने की ज़रूरत है?
लेकिन सवाल उठाने के लिए तो बुद्धि चलाने की ज़रूरत है. सवाल उठाने के लिए सोचने की ज़रूरत है.
नास्तिक सवाल उठाता है. सोचता है. और सवाल उठाने से, सोचने से ही ज्ञान-विज्ञान पैदा होता है. कुदरत ने बुद्धि दी ही सोचने के लिए है.
और नास्तिक कुदरत के अनुरूप चलता है.
आस्तिक कुदरत के विरुद्ध चलता है.
बुद्धि प्रयोग न करना कुदरत के विरुद्ध है. बुद्धि प्रयोग न करना बुधुपना है. बुधुपना कुदरत के विरुद्ध है.
इस लिए नास्तिक धार्मिक है और आस्तिक अधार्मिक.
तुषार कॉस्मिक
इस्लाम से कुछ सवाल
इस्लाम के मुताबिक अल्लाह बिना आकार का है. निराकार. मूर्ती तो इन्सान खुद ही बनाता है. मूर्ती भगवान कैसे हो सकती है?
गुड.
मैं मुस्लिम से कुछ सवाल पूछता हूँ.
आप को कैसे पता कि अल्लाह निराकार है?
आप को कैसे पता कि आप की नमाज़, आप की प्रार्थना से अल्लाह को कोई मतलब है?
आप को कैसे पता कि अल्लाह है भी कि नहीं?
आप को कैसे पता कि मोहम्मद अल्लाह के आखिरी नबी (मैसेंजर) हैं?
आप को कैसे पता कि मोहम्मद अल्लाह के मैसेंजर हैं भी?
सबूत दीजिये?
कोई ऑडियो, कोई वीडियो या कोई और सबूत दीजिये. सबूत जैसा सबूत. तर्क मत दीजिये. यह मत कहिये कि कायनात को बनाने, वाला चलाने वाला कोई तो है और वो अल्लाह है. इस तरह के तर्क आगे तर्कों की लड़ी लगा देते हैं, झड़ी लगा देते हैं.
यदि कायनात को चलाने वाला, बनाने वाला कोई तो होना ही चाहिए तो फिर अल्लाह को भी बनाने वाला, चलाने वाला भी कोई और होना चाहिए. फिर अल्लाह पर ही काहे रुके हो? और आगे क्यों नहीं सोचते? कायनात स्वयम्भु (शम्भू) क्यों नहीं हो सकती?
ये कुछ बेसिक सवाल हैं मेरे इस्लाम से. वैसे ये सवाल बाकी धर्मों से भी हैं.
तुषार कॉस्मिक
Saturday, 9 April 2022
भारतीय बहस
भारतीय बहस से बहुत बचते हैं. ठीक भी है और गलत भी. ठीक इसीलिए चूँकि बहस लड़ाई में तब्दील हो जाती है. मन-मुटाव पैदा होता है. सम्भावना बहुत ज़्यादा है.
गलत इसलिए चूँकि बहस से ही सारा ज्ञान-विज्ञान पैदा होता है. बहस से बचने वाले समाज पिछड़ जाएंगे. बहस व्यक्ति दूसरों से ही नहीं, खुद से भी करता है. बहस से व्यक्ति की clarity बढ़ती है.
सो सन्तुलित किस्म की बहस को बढ़ावा देना ही चाहिए.
तुषार कॉस्मिक
भाजपा बनाम केजरीवाल
विज्ञान का सिद्धान्त है, Vaccum को तुरत कोई न कोई चीज़ भर देती है.
जनता ने भाजपा को दो बार बहुमत दिया. लेकिन भाजपा ज़मीन से जुड़े मुद्दे हल न कर पाई. बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दों पर भाजपा का काम नज़र ही नहीं आया.
इस शून्य को भरा केजरीवाल की पार्टी ने. नतीजा दो राज्यों में "आप" सरकार.
अभी भी भाजपा में घमण्ड है. नहीं समझी तो "आप" बड़ी पार्टी बन उभरेगी.
दिल्ली में MCD में भाजपा 15 साल से है और काम के नाम पे शून्य. भाजपा ने काम किया होता तो चुनाव से भागती नहीं.
भाजपा को केजरीवाल से सीखना चाहिए कि जनता के रोज़मर्रा के मुद्दों पर काम करना होगा.
यदि बिजली पानी केजरीवाल मुफ्त कर सकता है, इलाज सस्ता दे सकता है, अच्छे सरकारी स्कूल दे सकता है तो भाजपा क्यों नहीं?
भाजपा सीखेगी तो जीतेगी..
आम आदमी पार्टी ने रोज़मर्रा के बेसिक मुद्दों पर काम किया. बिजली-पानी सस्ता किया. मोहल्ला क्लीनिक बनाये, स्कूलों पर काम किया. इसी का नतीजा है कि 2 राज्यों में इस की सरकार है.
लेकिन क्या यह पार्टी भाजपा का मुकाबला कर पायेगी? नहीं.
नहीं कर पायेगी चूँकि "ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम" वाला फ़लसफ़ा हिन्दू जनता लगभग नकार चुकी है, जिसे केजरीवाल पकड़े है.
हिन्दू जन-मानस इस्लाम के खतरे को समझने लगा है. सो केजरीवाल विपक्ष का हिस्सा तो बन सकता है लेकिन केंद्र इस से बहुत-बहुत दूर रहेगा.
Friday, 8 April 2022
इजराइल मे Jew से नफरत..........................
इजराइल मे Jew से नफरत.
श्रीलंका मे बोध से नफरत.
वर्मा मे बोध से नफरत.
चीन मे बोध से नफरत.
फ्रांस मे क्रिश्चियन से नफरत.
Europe me Christian se नफरत.
अफगनिस्तान मे गुरुद्वारे पर हमला.
भारत में हिन्दू से नफरत.
Arab me shia se नफरत.
भाई दुनिआ मे कोई है भी जिससे इनको नफरत नहीं है.
बस यही सही है. बाकी पुरी दुनिया गलत......Copied from a Youtube Comment
C.o.r.o.n.a is worldwide Fraud
Corona is worldwide Fraud.
Western people understood and protested on roads, hence no Corona restrictions now.
Eastern people esp Chinese and Indian are fools, they have no understanding, no guts, hence they are obeying their Govts which are bound to kill them in the name of viruses
Thursday, 7 April 2022
Happiness is not a State of mind.
Happiness is not a State of mind. It is a way of life.
A homely lady got a heart attack with the burst of happiness after winning a lottery of 10 lakhs rupees because it was something sudden, something unusual, something outta her life.
A man worth rupees 20 Crore, lost 15 crore in business, yet went to sleep peacefully because it was a way of life for him to earn and lose money.
Happiness depends upon your way of life, upon your life philosophy, upon your mindset, upon your mind.
~Tushar Cosmic
Wednesday, 6 April 2022
विस्तारवादी धर्मों का मुकाबला कैसे करें?
ईसाई पहले नम्बर पर है और इस्लाम दूजे नम्बर पर. मैं हैरान होता हूँ, इतने बचकाने धर्म फिर भी इतना पसारा. वजह क्या है?
वजह है, इन का विस्तार वाद. इब्रह्मिक धर्म जो भी हैं, वो विस्तारवादी हैं.
तुम्हें कोई सिक्ख यह कहता नहीं मिलेगा कि तुम ईसाई हो तो सिक्ख बन जाओ. बनना है बनो, न बनना हो तो भी कोई दिक्कत नहीं. गुरूद्वारे जाओ, तुम्हारी जात-औकात नहीं देखी जाएगी. तुम्हारे जूते साफ़ किये जायेंगे, तुम्हे प्रेम से लंगर खाने को दिया जायेगा. हर इन्सान के साथ एक जैसा व्यवहार.
हिन्दू तो अपने आप में कोई धर्म है ही नहीं. यह विभिन्न मान्यताओं का एक जमावड़ा है. एक दूसरे की विरोधी मान्यताओं का भी. यहाँ कुछ भी पक्का नहीं. इसे ज़बरन एक धर्म का जामा पहनाया जा रहा है. इसे क्या मतलब आप क्या मानते हो?
जैन तो बस मुफ्त इलाज करेंगे, कोई आये, इन को क्या मतलब? आप जैन बनो न बनो.
बौद्ध को तो भारत में वैसे ही कोई नहीं पूछता. जो बने, वो अम्बेडकर की वजह से. बौद्ध विहार खाली पड़े रहते हैं. कोई नहीं आता आप कि गली में कि आप बौद्ध बनो.
यह जो हिन्दुओं द्वारा "घर वापसी" के आयोजन हो रहे हैं, वो सिर्फ मुस्लिम के विरोध में. कुछ ईसाई के विरोध में भी.
तो क्या है मेरा सुझाव?
वैसे तो मैं सभी लगे-बंधे धर्मों के खिलाफ हूँ. लेकिन मैं इब्रह्मिक धर्मों के ज़्यादा खिलाफ हूँ. ख़ास कर के इस्लाम के. सब खराब हैं, लेकिन सब एक जैसे खराब नहीं हैं.Bad, Worse, Worst होता है या नहीं. सब धर्मों को मैं ज़हर मानता हूँ, लेकिन इस्लाम को Potassium Cyanide.
इन विस्तार-वादी धर्मों का मुकाबला करने के लिए एक तो तरीका यह है कि मेरे जैसे लोग जो भी लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, या जो भी लिख चुके, बोल चुके, उसे विस्तार दिया जाये. ताकि लोग धर्मों की गुफाओं से बाहर आ सकें और यह काम इब्रह्मिक दुनिया में सब से ज़्यादा करने की ज़रूरत है. चूँकि बाकी धर्मों को न तो विस्तार से कोई मतलब है और न ही मार-काट से.
ये बाकी धर्म यदि हिंसक होते भी हैं तो या तो मुस्लिम का मुकाबला करने को, जैसे बर्मा में बौद्ध हुए या मुस्लिम की साज़िश के शिकार हो कर, जैसे पंजाब में सिक्ख उग्रवादी हिन्दुओं के खिलाफ हो गए थे. अपने आप में बाकी दुनिया के धर्मों में अंतर-निहीत कुरीतियाँ हैं, कमियां हैं, जैसे हिन्दुओं में जाति-प्रथा लेकिन फिर भी ये धर्म उस तरह से हिंसक नहीं हैं जैसे इस्लाम. न किसी को अपने खेमे में लाने को कोई लालच देते हैं जैसे ईसाई.
हालाँकि सारे धर्म जो भी एक लगे-बंधे ढांचे में इन्सान को डालते हों, वो विदा होने ही चाहिए, चूँकि ये सब इंसानी सोच को बाधित करते हैं, इन्सान की बुद्धि को हर लेते हैं, हैक कर लेते हैं, उसे एक मशीन बना देते हैं. रोबोट बना देते हैं, जो एक निश्चित प्रोग्राम के तहत जीवन जीता चला जाता है.
लेकिन फिर भी चूँकि इस्लाम सब से ज़्यादा हिंसक है, सो सब से ज़्यादा काम इस्लामिक दुनिया में करने की ज़रूरत है ताकि लोग इस दुनिया से बाहर आ सकें.
इस के लिए अलग टापू खरीदे जा सकते हैं, जहाँ एक्स-मुस्लिम को बसाया जा सके. चूँकि बहुत से मुस्लिम जो इस्लाम छोड़ना चाहते हैं या छोड़ चुके हैं वो इस्लामिक मुल्कों में मज़बूरी में रह रहे हैं और मज़बूरी में ही इस्लामिक रवायतों को मान रहे हैं चूँकि यदि वो इस्लाम छोड़ने की घोषणा करेंगे तो भी मार दिए जा सकते हैं. सो ऐसे लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट कर के, बॉडी लैंग्वेज टेस्ट कर के, हैण्ड राइटिंग टेस्ट कर के या जो भी और कोई टेस्ट सम्भव हों, वो सब करने बाद, इन को अलग टापूओं पर, अलग मुल्कों में शिफ्ट कर देना चाहिए. अमेरिका भी तो ऐसे ही बसा था. वहां अलग-अलग मुल्कों से गोरे पहुँच गए थे. इस से इस्लामिक आबादी को बड़ा झटका लगेगा जो कि इंसानियत के लिए बहुत ज़रूरी है.
इस के साथ ही पूर्वी धर्म भी अपना प्रचार बढ़ा सकते हैं. वो इस लिए चूँकि बहुत से लोग अपने आप को धर्मों के बिना बिलकुल ही अनाथ समझने लगते हैं तो उन को फिलहाल पूर्वी धर्मों में लाये जाने का प्रयास किया जान चाहिए. सो हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन भी यदि विस्तारवाद अपनाएं तो यह अंततः शुभ ही साबित होगा.,...
नमन
तुषार कॉस्मिक
Tuesday, 5 April 2022
क्या तुम ने ध्यान दिया लैला-मजनू, मिर्ज़ा-साहेबा, शीरी -फरहाद, हीर-राँझा ये सब मुस्लिम समाज से थे?
क्या तुम ने ध्यान दिया लैला-मजनू, मिर्ज़ा-साहेबा, शीरी -फरहाद, हीर-राँझा ये सब मुस्लिम समाज से थे? इन की मोहब्बत स्वीकार न हो सकी समाज को. सब दुत्कारे गए, मारे गए. भारत का जो मूल कल्चर है, इस में तो शायद ऐसा विरोध न था, यहाँ तो वसंत-उत्सव होता था, जिस में स्त्री-पुरुष एक दुसरे के प्रेम-निमन्त्रण देते थे. 'वैलेंटाइन डे' जैसा कुछ. यूँ ही थोड़ा हम लिंग-पूजन करने लगे. यूँ ही थोड़ा हम ने मन्दिरों की दीवारों पे सम्भोग दर्शा दिया. इस्लामिक समाज में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध में शादियाँ हैं, सेक्स है और बच्चे पैदा करना है. लेकिन मोहब्बत कहाँ है? लैला-मजनू जैसी. इन को तो पत्थर मारे गए. आज भी मारे जायेंगे. मोहब्बत सिर्फ नबी से और इबादत सिर्फ अल्लाह की. बात खत्म.~ तुषार कॉस्मिक
अमीरी- गरीब
पीछे एक मित्र बता रहे थे कि उन्होंने 300 गज का फ्लोर बेच के ५०० गज का फ्लोर खरीद किया है. बड़ी अच्छी बात है. लेकिन इस कथन के पीछे एक घमण्ड है, वो किस लिए? दिल्ली में रहने वाले एकल फॅमिली के लिए 300 गज का फ्लोर कम है क्या? फिर लेने को आप ५००० गज का फ्लोर लो, कोठी लो, कुछ भी लो, लेकिन इसका औचित्य क्या है? दुनिया से हजार बे-इमानियाँ करोगे, खुद को तनाव दोगे, दूसरों को तनाव दोगे, बीमारी मोल लोगे, बीमारी बांटोगे, किस लिए?
ताकि तुम अमीर दिख सको, और अमीर, अमीर से भी अमीर.
राईट?
इसे मैं पागलपन कहता हूँ. और देखता हूँ इर्द-गिर्द, तो सब इसी पागलपन के घोड़े पे सवार भागे जा रहे हैं. किधर भाग रहे हैं? क्यों भाग रहे हैं? इन को खुद नहीं पता.
बस बड़ा घर लेना है, बड़ी कार लेनी है, दुनिया घूमनी है. चाहे घूमना होता क्या है, उस की ABCD न पता हो, चाहे Switzerland जा के भी कमरे में बंद हो के दारू ही पीनी है. चाहे सामने कितना ही सुंदर पहाड़ हो लेकिन मन पैसे का और बड़ा पहाड़ खड़ा करने में उलझा रहे, लेकिन घूमना है.
भाई जी, बहन जी, एक सीमा के बाद तो पैसे का प्रयोग आप कर ही नहीं सकते. क्या सोने की रोटी खाओगे? क्या करोगे? मैंने तो देखा है, जो लोग गाँव या कस्बों से बड़े शहरों में बसे हैं, वो तरसते हैं अपने पुराने दिनों को. दिल्ली एक इर्द-गिर्द ऐसे पिकनिक स्पॉट हैं, जो बिलकुल वही गाँव का खाना, वही 50 साल पुराना जीवन परोसते हैं, और लोग चाव से वहां जाते हैं.
बच्चों के लिए छोड़ना है अथाह धन? अमीरों के बच्चे देखे हैं. पिलपिले. ज़रूरत से ज़्यादा गोलू-मोलू. धरती के बोझ. उन्हें सब दे दोगे थाली में सजा के तो ये जीवन को एन्जॉय करने जितना स्ट्रगल भी झेल नहीं पायेंगे. मैंने पत्नी सहित पन्द्रह दिन के ट्रिप में कोई 300 किलोमीटर पहाड़ की ट्रैकिंग की. अब अमीरजादे तो एक दिन में ३० चालीस किलोमीटर पहाड़ पर चलने से रहे. अब ये तो इस आनंद से वंचित रह जायेंगे. मैं रोज़ एक से दो घंटे पग्गलों वाला व्यायाम करता हूँ. इस का अपना आनंद है. अमीरज़ादे इस आनंद को ले पायेंगे?
एक अमीर आदमी से कोई पूछता है, " बच्चे को स्कूल कौन छोड़ता है?"
जवाब, "नौकर रखा है."
"दूकान का हिसाब कौन लिखता है?"
जवाब, "नौकर रखा है."
"कुत्ते को कौन घुमाता है?"
जवाब,"नौकर रखा है."
"कार कौन चलाता है?"
जवाब ,"नौकर रखा है."
" बीवी से सेक्स कौन करता है?"
जवाब, "नौकर....."
दिल्ली में देखता हूँ, हर तीसरा-चौथा आदमी मोटा है, कोई तो बेहद मोटा है. ये ज़्यादा खाने की वजह से, ज़्यादा स्वादिष्ट खाने की वजह से, रंग-बिरंग-बदरंग खाने की वजह से मोटे हैं, बीमारू हैं. धरती के बोझ. और फिर इन्होने हर काम के लिए नौकर रखा है.........
देखिये, जब आप साइकिल पर हों और पहाड़ से नीचे को चल रहे हों. तो साइकिल अपने आप भागती रहेगी. जितना ढलान ज़्यादा होगी, उतना तेज गति से साइकिल चलती जाएगी. आप को पेडल मारने की ज़रूरत ही नहीं है.
आप अभाव से समृद्धि की और यात्रा करते हैं. बड़े ही जतन से. सब तरफ हेरा-फेरियां हैं. सब लूटने को बैठे हैं. धोखा देने को बैठे हैं. जरा चूके और आप का धन, आप का धन्धा, आप की बेहतरीन नौकरी छिन जाएगी. जैसे-तैसे रातें काली कर केआप धन जमा करते हैं. लेकिन यह धन जमा करते-करते आप जीवन का एक बड़ा हिस्सा कुर्बान भी कर चुकते हैं. अब आप को कमाने की लत लग चुकी है. आब आप बस एक insecurity की वजह से कमाए ही चले जा रहे हैं. बस यही गड़बड़ है.
पैसा कमायें, लेकिन एक सीमा के बाद कमाए जाने के औचित्य को परखें, खुद परखें और फैसला करें कि अब और कितनी देर साइकिल पर पेडल मारे जाना है. इर्द-गिर्द मत देखें, लोग तो हजार तरह के पागलपन में उलझे रहते हैं. आप अपना फैसला खुद करें.
~तुषार कॉस्मिक
Sportsmanship
मुझे लगता था कि बस खेल खेलो. मस्ती में. काहे किसी से मुकाबला करना? मुकाबले में पड़ना ही क्यों?
यदि मुकाबले में पड़ गए तो खेल की मस्ती जाती रहेगी. मुकाबला जीतने के तनाव से भर देगा.
लेकिन मुझे लगता है कि यह सोच जीवन का मुकाबला करने से ही दूर ले जा सकती है.सो मुकाबला करना सीखना चाहिए. हार से क्या डरना? हार-जीत तो होती ही रहनी है. यदि कोई हम से जीत भी जाता है तो उस का बस इतना ही मतलब है कि उस समय, उस ख़ास विधा में वो व्यक्ति हम से बेहतर है. लेकिन कुदरत के लिए हम सब उस की बेहतरीन कृतियाँ हैं. नायाब. सो हार से हारना थोडा न है. हार भी अपने आप में जीत है. मुकाबला करते रहना चाहिए. ~ तुषार कॉस्मिक
मेरी हल्की-फुलकी सी उद्घोषणा है
मैंने सुना, अम्बेडकर ने कहा था, "मैं हिन्दू घर में पैदा हुआ लेकिन हिन्दू मरूंगा नहीं." खैर, मैंने तो सब धर्मों से किशोर अवस्था में ही विदा ले ली थी. पंजाबी के महान कवि शिव बटालवी ने गाया था, "अस्सी जोबन रुत्त मरणा".और वो जवानी में मरे. मेरी हल्की-फुलकी सी उद्घोषणा है, "मेरी उम्र चाहे कितनी ही बढ़े, लेकिन मैं बुड्ढा हो के मरूँगा नहीं."~ तुषार कॉस्मिक
तुम आज़ाद हो?
तुम को लगता है, तुम आज़ाद हो. खुश-फहमी है.
यदि तुम मुस्लिम मुल्क हो तो तो तुम, अल्लाह, कुरान और मोहम्मद के खिलाफ बोल नहीं सकते, ईश-निंदा का कानून है, मार दिए जाओगे. तुम इस्लाम छोड़ तक नहीं सकते, मार दिए जा सकते हो. यदि लड़की हो तो, गैर-मुस्लिम से शादी तक की आज़ादी नहीं है. तुम आज़ाद हो?
तुम भारत जैसे मुल्क में अदालत के खिलाफ़ नहीं बोल सकते. अदालत चाहे कितने ही बकवास फैसले देती रहे. चाहे खुद के किये फैसले बदलती रहे. लेकिन तुम अदालत के खिलाफ बोले तो सजा हो सकती है, Contempt of Court का मामला बन जायेगा. और तुम आजाद हो?
तुम कोरोना, जो कि नकली बीमारी है, विश्व-व्यापी फ्रॉड है, इस के खिलाफ बोलोगे, लिखोगे तो तुम्हारे सोशल मीडिया अकाउंट बंद किये जा सकते हैं, तुम्हें अरेस्ट किया जा सकता है, तुम आज़ाद हो?
Thursday, 31 March 2022
नास्तिक
तुम्हारी अधिकाँश व्यवस्थायें भगवान/अल्लाह/गॉड के इर्द-गिर्द बुनी गई हैं.
जन्म-मरण, शादी-ब्याह, खुशी-ग़म सब स्थितियों में तथाकथित धर्म घुसा है.
किन्तु नास्तिक पूरी व्यवस्था को नकार देता है. सो नास्तिक बर्दाश्त नहीं होता.
वाल्मीकि रामायण में नास्तिक को चोर कहा गया है. इस्लाम में तो नास्तिक के लिए मृत्युदंड है.
लेकिन इंटरनेट के आने के बाद चीज़ें छुपानी मुश्किल हो गई हैँ. सोशल मीडिया पर अनवरत बहस चलती है अब. नास्तिक, संशयवादी, अज्ञेयवादी बढ़ रहे हैं. यह शुभ है.संशय से विचार पैदा होता है. विचार शुभ है. ~ तुषार कॉस्मिक
ग़रीब कौन?
रोज़ाना पहाड़ी पगडंडियाँ नापने वाली औरत
या
गाँव की पतली सड़कों पे साईकल से चलने वाला आदमी,
बड़े शहर के Gym में treadmill पे चलने वाले आदमी
और
Stationary Bike पर पैडल मारने वाली औरत से गरीब कैसे है,
यह मुझे अभी तक समझ नहीं आया.
~तुषार कॉस्मिक
Wednesday, 30 March 2022
सिख-मुस्लिम-हिन्दू :-- समानताएं-विषमताएं-- By Zoya Mansoori of Facebook
शाहीन बाग के लंगर से लेकर गुड़गांव के गुरुद्वारों में हो रही नमाज तक सिख मु.स्लिम गठजोड़ की खबरें सोशल मीडिया से लेकर मेंन स्ट्रीम मीडिया तक खूब बिखरी हुई हैं। मु.स्लिमों से सिखों की बढ़ती नजदीकी और हिंदुओं से उनकी लगातार बढ़ती घृणा किसी से छिपी नहीं है।
हिंदू अभी भी यह मानते हैं कि सिख सनातन हिंदू धर्म का ही एक पंथ, एक हिस्सा है जबकि कट्टरपंथी सिख यह दावा करते हैं कि वह हिंदू धर्म से अलग एक स्वतंत्र धर्म है। हिंदू मु.स्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई, यह नारा वीर सावरकर ने आजादी से पहले दिया था।
इस नारे में सिख पंथ को हिंदू मुस्लिम और ईसाई धर्मों की तरह एक अलग धर्म के रूप में उल्लिखित किया गया है। अगर सिख पंथ हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा था तो क्या सावरकर को यह नहीं पता होगा? अगर पता था तो सही नारा होना चाहिए था, हिंदू मुस्लिम यहूदी ईसाई आपस में सब भाई भाई।
हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख यह सभी सनातन परंपरा के ही हिस्से हैं लेकिन वीर सावरकर ने अपने नारे में सनातन बौद्ध या सनातन जैन धर्म के बजाय सिख धर्म को जगह दिया। क्या वीर सावरकर सेकुलर थे?
मेरे ख्याल से तो नहीं, तो फिर उन्होंने सिख धर्म के हिंदू सनातन धर्म से अलगाव को महसूस कर लिया था, वह भी आजादी से पहले जब खालिस्तान नाम की चिड़िया का अता पता भी नहीं था।
सिखों का सनातन परंपरा से अलगाव तब शुरू होता है जब इनमें अंतिम का कांसेप्ट आ जाता है। दसवें और अंतिम गुरु...! सनातन में कहीं भी अंतिम का कांसेप्ट नहीं है। सनातन हिंदू, सनातन जैन और सनातन बौद्ध तीनों ही अनंत के कांसेप्ट में विश्वास करते हैं। अंतिम का कांसेप्ट इस्लामिक कॉन्सेप्ट है, अंतिम पैगंबर, अंतिम किताब।
विभाजन थोड़ा और बढ़ जाता है, जब सिखों के बीच किताब महत्वपूर्ण हो जाती है। किताब इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि 'गुरु ग्रंथ साहब' को ही अंतिम गुरु मान लिया जाता है। सनातन परंपरा श्रुति परंपरा रही है, सुनना, याद करना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना। लिखने की परंपरा बहुत देर से शुरू हुई, वह भी पत्तों और ताम्र पर।
वेद खो गए, साढ़े तीन चार हज़ार साल पहले फिर से कंपोज करने पड़े। ढाई- तीन हजार साल पहले तक रामायण-महाभारत की कहानियां लोक परंपरा में ही सीमित थी। मूल रामायण महाभारत कहाँ है, किसी को नहीं पता। दो हज़ार साल पहले भगवद गीता को पूछने वाला कोई नहीं था। कटु लग सकता है, अविश्वसनीय लग सकता है, पर ऐतिहासिक रूप से सत्य है।
िताब महत्वपूर्ण है इस्लाम में, किताब महत्वपूर्ण है सिखों में। किताबों का महत्व सिखों को इस्लाम के करीब और सनातन परम्परा से दूर ले जाता है।
फिर आता है कॉन्सेप्ट बेअदबी का। बेअदबी की सजा है हिंसा! हाथ काट दो, पैर काट दो, जान से मार दो। संस्कृत का पूरा शब्दकोष छान मारिए, कहीं भी आपको बेअदबी या ईशनिंदा का समानार्थी शब्द ही नहीं मिलेगा। ईशनिंदा जैसा कोई कांसेप्ट सनातन में है ही नहीं।
ईशनिंदा, तौहीन-ए-रिसालत ये सब इस्लामिक कांसेप्ट है और 'बेअदबी' सिखों का कॉन्सेप्ट। दोनों की सजा मौत।
यह चीज भी सिखों को इस्लाम के करीब और सनातन से दूर ले जाती है। और भी कुछ असमानताएं है, पर ये मुख्य वजहें हैं जिन्हें शायद वीर सावरकर ने अपनी दूरदृष्टि या अध्ययन से देख लिया था, बाकी सारी वजहें राजनैतिक और क्षणिक है।
सवाल यह है किस सिख-मु.स्लिम गठजोड़ क्या लंबे समय तक चल सकता है? जवाब है नहीं। इतनी समानताओं के बावजूद कुछ विरोधाभास भी है। सिखों में कीर्तन-संगीत उनके धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जबकि इस्लाम में संगीत पूरी तरह हराम है। हलाल और झटका मीट भी दोनों के बीच असमानता पैदा करता है।
जहां हिंदू बहुसंख्यक होगा, वहां सिख हमेशा रहेंगे लेकिन जहां इस्लाम बहुसंख्यक होगा, वहां से सिखों को भाग कर फिर से हिंदुओं की शरण में आना पड़ेगा। बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान इसके सबसे ताजा और ज्वलन्त उदाहरण हैं।
Written by Zoya Mansoori of Facebook
Monday, 28 March 2022
Sunday, 27 March 2022
सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं. काले अंग्रेज़.
यदि कोई राजनेता तुम्हें रोज़गार देने के नाम पर सरकारी नौकरी देने का वादा करे तो उसे कभी वोट मत दो. चूँकि सरकारी नौकरी तो होनी ही बहुत कम चाहिए.
सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं.
काले अंग्रेज़.
मोटी तनख्वाह, अनगिनत छुट्टियाँ, भत्ते, ज़ीरो ज़िम्मेदारी, पक्की नौकरी, पेंशन. इन्हें तो GPL मार दफ़ा करना चाहिये. ये समाज की तरक्की मे Roadblock हैं. जो नेता सरकारी नौकर खत्म करने का, कम करने का वादा करे, इन की तनख्वाह, भत्ते, छुटियाँ घटाने का वादा करे, इन की नौकरियां कच्ची करने का वादा करे, काम के प्रति इन्हें ज़िम्मेदार बनाने का वादा करे, उसे वोट दो.
~ तुषार कॉस्मिक
पीछे किसी ने कहा कि मैं Mental हूँ.
पीछे किसी ने कहा कि मैं Mental हूँ. कहा तो derogatory ढँग से है लेकिन कथन सही है.
है क्या कि अधिकांशतः इंसान सिर्फ़ Physical है. शरीर मात्र. खाना-पीना-सोना-बच्चे जनना और मर जाना. सब शरीर के तल के काम. मन का यंत्र प्रयोग करना उस ने जाना ही नहीं. वो उसे यंत्रणा लगता हूँ. मन जंग खाये जाता है.
फिर कोई आये और उस की जमी-जमाई मान्यताओं को हिला दे, झकझोर दे तो वो उसे मेन्टल (पगगल) लगता है. लेकिन अनजाने में शब्द सही प्रयोग हुआ जा रहा है. Mental. मेन्टल. जो mind का प्रयोग करे, वो तो Mental होगा ही. जो सिर्फ फिजिकल रह गए, उन को चिंतित होने की ज़रूरत है, उन्हें Mind प्रयोग करने की ज़रूरत है, उन्हें Mental होने की ज़रूरत है.~ तुषार कॉस्मिक
क्या आप ने अक्सर सुना कि फलाँ ग्रेजुएट है लेकिन फिर भी रेहड़ी लगा रहा है?
क्या आप ने अक्सर सुना कि फलाँ ग्रेजुएट है लेकिन फिर भी रेहड़ी लगा रहा है?
या
सोशल मीडिया पर अक्सर पोस्ट देखी कि बाप मोची है लेकिन बेटी अफसर बन गयी?
लोग वाह-वाह करने जुटते हैं.
चलिए, आप को कुछ अलग बताता हूँ. क्या आप को पता है कि रविदास मोची थे और उन की शिष्या थी मीरा बाई? मीरा बाई, जो कि रानी थी. क्या आप को पता है कबीर जुलाहा थे. अपने हाथ से कपड़ा बुनने वाले. क्या आपको पता है नानक किसान थे? Mercedes पर चलने वाले ज़मींदार नहीं. खुद हल चलाने वाले किसान. समझे?
ये जो समाज में काम के प्रति छोटे-बड़े का भेद-भाव आ गया है न, गलत है.
समाज को एक मोची की, एक गटर साफ़ करने वाले की, एक कूड़ा इकट्ठा करने वाले की, पंचर लगाने वाले की, बाल काटने वाले की भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी किसी अफसर की. फिर यह छोटा-बड़ा क्या? फिर यह कमाई का इत्ता बड़ा फर्क क्या?
ठीक करो इसे. ~तुषार कॉस्मिक
Thursday, 24 March 2022
सरकार बनाने के लिए तमाम ताम-झाम होता है. क्या ज़रूरत है इन सब आडम्बरों की?
चुनाव पीछे सरकार बनाने के लिए तमाम ताम-झाम होता है. बड़े आयोजन. करोड़ों रुपैये का फूंक जाना होता है. कितना ही समय और ऊर्जा व्यर्थ बह जाती है.
Friday, 18 March 2022
तुम्हारे लीडर तुम्हारे पिछलग्गू हैं
तुम्हारे लीडर तुम्हारे पिछलग्गू हैं, वो तुम्हें नया रास्ता दिखाने का, तुम्हें सुधारने का रिस्क ले ही कैसे सकते हैं? तुम ने सड़ी-गली मान्यतायें चमड़ी की तरह चिपका रखी हैं. जंज़ीरों को जेवरात समझ रखा है. कौन पंगा ले? और जो पंगा लेगा, उसे तुम वोट दोगे? नहीं, तुम उसे सूली चढ़ाओगे, ज़हर दोगे, काट दोगे. सुकरात, जीसस, मंसूर जैसे लोगों के साथ क्या किया तुम ने? इन को कौन जिताएगा चुनाव? इन्हें वोट नहीं मौत दोगे तुम. लेकिन यकीन जानो, यही असल नेता हैं. बाकी सब बकवास. जो तुम्हें, तुम्हारी सोच को झकझोरता नहीं, वो तुम्हारा नेता हो ही नहीं सकता. ~ तुषार कॉस्मिक